शनिवार, मार्च 21, 2009

संसदीय लोकतंत्र वैश्या के समान हैं-महात्मा गांधी

आज से सौ वर्ष पहले गांधी जी ने संसदीय लोकतंत्र के बारे में यह तल्ख टिप्पनी अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में की थी उस वक्त इसको लेकर बङा बवेला मचा था।खास कर ब्रिटिश महिलाओं ने इसको लेकर काफी हाय तौबा मचायी थी।गांधी जी हलाकि इसमें आशिंक संशोधन की बात करते हुए संसदीय लोकतंत्र को बांझ महिला की संज्ञा दी लेकिन यह संशोधन किसी कारण बस दर्ज नही हो पाया था।आज से सौ वर्ष पहले 1909 में ये बाते कही थी।भारतीय संसदीय लोकतंत्र का 15 महापर्व होने जा रहा हैं ऐसा लगता हैं कि गांधी जी की कही बाते आज और भी प्रासांगिक हो गया हैं,। टिकट के लिए जिस तरह से पार्टी प्राईवेंट लिमिटेङ कम्पीन की तरह व्यवहार कर रही हैं और खुलेआम टिकट बेची जा रही हैं।ऐसे में इस व्यव्सथा को वैश्यालय नही तो क्या कहा जाय।ऐसे घरों में दीप जलाना चाहते हैं जिसके घरों में बर्षों से अन्धेरा हैं यह नारा हैं दलित के हिमायती माने जाने वाले राम विलास पासवान का जो अपने जन सभा को इसी नारे के साथ शुरु करते हैं।लेकिन जब टिकट देने की बारी आयी तो दीप जलाना तो दूर माफिया और अपराधियों के हाथ पार्टी के विचार को बेच डाला।यही स्थिति लालू प्रसाद,कांग्रेस,भाजपा और अन्य पार्टियों का भी हैं।लेकिन सबसे ज्यदा चोट नीतीश कुमार ने पहुचायी हैं विकास और सुशासन के नारे पर चुनाव जीत कर आये नीतीश कुमार तो तीन वर्ष में ही बदल गये। टिकट देने के नाम पर इन्होने जो मापदंङ अपनाया वो वाकई प्रदेश के युवा पीढी को सकते डाल दिया हैं।नीतीश कुमार की जीत को राजनैतिक विशलेषक देश में एक अलग तरह की राजनीत की शुरुआत मानने लगे थे। लेकिन इनकी कलई तो महज तीन वर्ष में ही खुल गयी।आप जानना चाहेगे टिकट लेने के लिए उम्मीदवारों ने अपनी पत्नी,रिश्तेदार और बेटी तक को नेताओं के बेड रुम में भेजने से परहेज नही कर रहे हैं ।ऐसे हालात में संसद में जाने वाले सांसद से देश की जनता क्या उम्मीद कर सकती हैं।हालात इससे भी बदतर हैं जो मैं लिख नही सकता।अब वक्त आ गया हैं ऐसे व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने का आप भी इस अभियान में शामिल हो ।पूरे चुनाव के दौरान मेरा प्रयास रहेगा की रोजाना इन वैश्यओं के बारे में आप को कुछ खास जानकरी देते रहे।उम्मीद हैं आप भी अपनी राय भेज कर इस अभियाण को सफल बनाने में सहयोग करेगे।

1 टिप्पणी:

अक्षत विचार ने कहा…

महोदय, गाँधी जी आज भी प्रासंगिक हैं सिर्फ उनको समझने की जरूरत है परन्तु हमने उनके विचारों से ज्यादा उनकी तस्वीर और मूर्तियों से प्यार किया है
काफी अच्छा लिखा है
साधुवाद