शुक्रवार, अक्तूबर 16, 2009

दवा के साथ साथ मर्ज बढता ही जा रहा हैं


मनुष्य के अंदर अमुमन जो बुराईया होती हैं उससे अभी तक मेरा साकपा नही पड़ा हैं।जन्म से पहले पिता का साया सर से उठ गया लेकिन आज तक कभी एहसास नही हुआ कि पिता मेरे नही हैं। अपनी बहन नही हैं लेकिन आज तक बहन का प्यार नही मिला हो ऐसा कभी नही हुआ।समाज रिश्तेदार और मित्रों का इतना प्यार मिला हैं कि आज भी मैं गैरजबावदेह हुं।बचपन दादा के गोद में गुजरा जहां सुबह होते ही ऐसे लोगो से भेट होती थी जिसके तन पर वस्त्र नही रहता था किसी का भाई बैमानी कर लिया हैं तो किसी को थाने वाला तंग कर रहा हैं तो किसी को शहर का महाजन अधिक सूद मांग रहा हैं। रोजना रोते बिलखते लोगो के बीच मेंरी नींद खुलती थी औऱ दिन भर ऐसे लोगो के बीच रहता था।यहां आने वाला हर कोई दुखिया ही रहता था ।


दादी के पास पहुंचता तो कोई महिला अपने बच्चों के इलाज के लिए पैंसा लेने के लिए बैंठी रहती थी तो कोई पिया के परदेश भेजने के लिए टिकट का पैसा लेने के लिए। कई बार तो ऐसी महिलाये भी आती थी जो कई दिनों से भुखी रहती और एक दो किलो मकई या गेहू की मांग करते हुई दिन भर बैंठी रह जाती थी।मुझे लगता था लोग गरीब क्यों होते हैं पुलिस वाले और ब्लांक वाले गरीब लोगो को ही तंग क्यों करता है।एक दिन की बात हैं एक रिक्शा वाला जो अकसर मुझे घुमाता था वह पूरी तरह से खून से लथपथ भागे भागे दादा के पास आकर गिर गया।दादा जी उसका हाल जानने के बदले उसकी पिटाई शुरु कर दी मुझे लगा यह क्या हो रहा हैं मैं जोड़ जोड़ से रोने लगा और दादा जी इसे मत मारो मत मारो कहने लगा इसी बीच वह रिक्शा चालक मार खाने के दौरान ही मुझे गोद में ले लिया और कहने लगा बाबू चलिए चलिए रिक्शा पर घुमाते हैं। उसके गोद में गया तो मुझे आज भी याद हैं कि उसका मुंह इतना गंदा महक रहा था कि उसके बाद कभी भी उसके गोद में नही गया और ना ही कभी उसके रिक्शा पर बैठा।थोड़ी देर बाद पच्चीस तीस लोग आये साथ में कई महिलाये भी थी।पता चला रिक्शा वाला अपनी पत्नी को मार दिया हैं क्यो कि उसकी पत्नी शराब पीने से हमेशा रोकती रहती थी।मुझे याद हैं कि मैंने दादा से पुछा था शराब क्या होता हैं और यह कैसे बनता हैं पता चला सरकार ही बनाकर बेचती हैं ।तब से शराब के बारे में मेरा जो ख्यालात बना आज तक कायम हैं।

बचपन में मुझसे जो कोई भी पुछता क्या बनोगे मैं गर्व से कहता था नेता बनूंगा लेकिन जैसे जैसे बड़ा होते गया नेता बनने की इक्छा मरती गयी ।बाद के दिनों मैंने देखा जनता नेता से उम्मीद करता हैं कि आप हमारे लिए गलत पेरवी करे ,हमारे नजायज कार्यों का समर्थन करे हम लोगो को लूटे आप मुझे बचाये।गरीब और बेसहारा लोगो का जमीन हड़प ले विधवा के साथ अन्याय करे और उस पाप में आप भी सह भागी बने।अगर आपने ऐसा नही किया तो आपको वोट नही देगे ।जनता के इस व्यवहार को लेकर घर में चर्चाये होनी लगी थी और सामूहिक फैसला हुआ कि अब चुनाव नही लड़ना चाहिए लेकिन चुनाव आते ही लोगो का इतना दवाव पड़ा कि चाचा जी को चुनाव लड़ना ही पड़ा और दादा जी से लेकर अभी तीस वर्ष से लगातार प्रतिनिधुत्व करे रहे मेरे चाचा जी को चुनावी हार झेलनी पड़ी।

इस खेल में वैसे ही प्रपंची लोग शामिल थे जिन्हे कभी जमीन हड़पने या फिर अपराधिक मामले में जेल जाने पर मदद नही किया गया।इस हार के बाद यू कहे तो मेरी आस्था और सम्मान इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से पूरी तरह समाप्त हो गयी।लेकिन बचपन से जिन समस्याओं को देखा उसके समाधान को लेकर मन कभी भी शांत नही रहा दिल्ली विश्वविधालय से पढाई पूरी करने के बाद कई खयालात आये सिविल सर्विसेज की नौकरी का प्रयास किया लेकिन सफलता नही मिली ।कपार्ट जैसी संस्थान से जुड़ने का मौंका मिला लेकिन मुझे लगा कि स्वयंसेवी संस्थान के साथ काम करने या खुद का एनजीओ खड़ा कर लोगो के लिए काम करे इसके लिए फंडिंग को लेकर जो खेल होता हैं उसमें संतोष को पहले मरना पड़ेगा।

काफी सोच विचार कर पत्रकारिता की राह थामी और दिल्ली में पत्रकारिता करने के बजाय गांव से पत्रकारिता की शुरुआत की मेरा कैरियर 1998में प्रभातखबर से शुरु हुई और प्रिंट मीडिया में हिन्दुस्तान अखवार से खत्म हुआ।इस फिल्ड में आने के बाद पता चला कि जिस शोषण के खिलाफ आवाज उठाने आये हैं वह खुद इतना शोषित हैं। लेकिन महज संयोग रहा कि इसका प्रभाव कभी भी मेरे लेखनी पर नही पड़ा शोषण के खिलाफ लिखते रहे और हर दूसरे दिन नये उत्साह के साथ अभियान जारी रखा। लालू के शासन काल में कई बड़े नेता के गिरेवान पर हाथ डाला और सुरजभान जैसे माफिया की धमकी मेरे काम पर प्रभाव नही डाल सका।मेरे उपर फर्जी मुकदमें दायर किये गये लेकिन लेखनी में निष्पक्षता और वेवाकी को देखते हुए बड़े से बड़े अधिकारी ने कभी मेरे स्वाभिमान को ठेस नही पहुंचाया।

आप को जानकर यह आशर्चय होगा कि माफिया तत्वों ने जब कलम पर अंकुश नही लगा सका तो मेरी पत्नी को भी एक मामले में अभियुक्त बना दिया लेकिन जज साहब को धन्यावाद देना चाहुंगा जिन्होने न्यायपालिक के इतिहास में पहली बार अभियुक्ति को गठघड़े में बुलाने के बजाय घर पर आकर जमानत दिये और उस मामले को तुंरत खत्म कर दिया।इस तरह के कई झंझावत झेलने पड़े हैं लेकिन मेरा मानना हैं कि आप अपने लेखनी में निष्पक्ष हैं तो एक से एक भ्रष्ठ आचरण वाले अधिकारी, माफिया,नेता और अपराधी कभी भी आपके काम में बाधा नही डालेगा।जब कभी भी किसी मसले पर कलम उठाया भ्रष्ट से भ्रष्टतम अधिकारी त्वरीत कारवाई कर लोगो को समाज को और कभी कभी गांव को न्याय दिलाया हैं।अगर किसी व्यक्ति के बारे में सीधे जाकर अधिकारी को कहा कि यह व्यक्ति अपराधी नही हैं पुलिस सोचने पर मजबूर हो जाती थी।इसके साथ न्याय नही हो रहा हैं यह कहना ही काफी था कभी किसी ने इसका प्रतिकार नही किया लेकिन इस विश्वास को जनता ने ही तोड़ा और धीरे धीरे यह संर्घष कुंद पड़ने लगा।लेकिन अभी भी वह लड़ाई जारी हैं जिसका एहसास मुझे लोरी की गीत के साथ हुआ था लेकिन इस मर्ज से अब मुक्ति चाहते हैं रात में चैंन से सोना चाहता हूं।आपके पास कोई नुकसा हो तो बताये अभी तक तो स्वस्थय और रोग विहीन बिंदास हूं ।अपने में मदमस्त व्यवस्था से लड़ता रहता हूं जितने ताकत से वार करता हूं उतनी उर्जा मिलती हैं लेकिन अब थोड़ी थकान महसूस होने लगी हैं।चलिए इस पर्व के अवसर पर आपका नींद क्यो हराम करु।दिपावली और छठ की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ एक सप्ताह के लिए अपनी लेखनी को यही विराम देते हैं।आज से 26अक्टूबर तक संचार के अधिकांश संशाधनों से मुक्त होकर गांव जा रहा हूं फिर वही मेंघू बाबा,खल्टू,मधुरी वकिल भुनैया तेतर,मन्ना के पास जो कभी मुझे लोरी सुनाकर कंधे पर बैठाकर मेला घुमाते थे।वक्त गुजरेगा खेत के मेर पर धान की कटनी में और गेहू और मकई के साथ साथ ईख की रोपनी करने में। मेरे दोस्त गांव जाता हू तो पूरी तौर पर किसान का जीवन जीता हूं मजदूर और किसानों से मिलता हूं।लोगो से सुशासन पर बात करता हू सरकारी योजनाओं का हाल जानता हू और उस स्कूल का हाल जरुर जानता हूं जहां से पढकर दिल्ली पहुचा था।

5 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सुंदर प्रस्‍तुतीकरण .. बचपन से लेकर आजतक की आपकी भावनाओं को पढकर अच्‍छा लगा .. आप लौटकर आएं .. अगले आलेख का इंतजार है .. दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

आपके अनुभव हमारे काम आएं।
दीपपर्व की अशेष शुभकामनाएँ।
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आइए हम पर्यावरण और ब्लॉगिंग को भी सुरक्षित बनाएं।

sandhyagupta ने कहा…

Deepawali ki dheron shubkamnayen

सागर ने कहा…

आपने तो इमोशनल कर दिया बॉस... कमाल की जीवनी है आपकी... मैं प्रभावित हुआ... आप लगातार कुछ ऐसा लिख रहे है की मिलने की तमन्ना बलवती होती जा रही है... कपार्ट के साथ अगर याद हो तो हमने रेडियो धारावाहिक "बढायें हाथ कपार्ट से साथ" बनाई है ...

प्रमोद रंजन ने कहा…

भाई संतोष जी, आपके ब्‍लॉग के लगभग सभी लेख एक बैठकी में ही पढ गया। आपके अनेक मुझे लेख विचारोत्‍तेजक लगे हैं।

राजनीति पर आपने जिस तरह का लेखन आपने किया है, उसके अपने खतरे हैं। मुझे विश्‍वास है आपका यह अदम्‍य साहस निरंतर नयी उंचाईयों छूएगा।

आपके तेवर और प्रगतिशीलता को मेरा सलाम।