बुधवार, जुलाई 25, 2012

पत्रकार अक्सर लक्ष्मण रेखा पार करते रहते है

गुवाहाटी की घटना के क्रम में ही पटना के मीडिया वाले को भी कही से एक सीडी मुहैया कराया गया था, जिसमें एक स्कूली छात्रा के साथ गैंगरेप होते दिखाया गया है।जब तक सीडी चलाने पर कुछ निर्णय होता तब तक एक चैनल ने इस खबर को ब्रेक कर दिया।व्यवसायिक प्रतिद्वव्दता के कारण बाकी चैनल चुप्पी साध लिया अखबार वालो ने भी यही किया।कई हाउस में इस खबर को लेकर बहस भी हुई आखिर क्या किया जाये।तय हुआ जब तक पीड़िता सामने नही आती है तब तक इस तरह की खबर नही दिखायी जाये। क्यो कि इस तरह की खबर को दिखाना गैर कानूनी है, हो सकता है पूरा सीडी ही फेक हो, यह भी सम्भव हो कि किसी को बदनाम करने के लिए किसी और लड़की का चेहरा पेस्ट कर दिया गया हो जो आजकल धड़ल्ले से हो रहा है।इन सब बातो को देखते हुए कुछ चैनल ने खबर नही दिखाने का फैसला लिया ,वही दूसरी औऱ पत्रकारो के बीच की प्रतिद्वव्दता के कारण कुछ चैनल के रिपोर्टर खबर को गलत साबित करने में लग गये।यह सब चलता रहा वही खबर दिखाने वाला चैनल मामले को जिंदा रखने के लिए मोमवती जुलुस,राज्य महिला आयोग के अधिकारी को जांच करने के लिए प्रेरित करने के साथ साथ चैनल के माध्यम से पूरे मामले को जिंदा रखने की कोशिस जारी रखा। इस दौरान पत्रकारो ने वह सारे हथकंडे अपनाये जो उनसे सम्भव था, महिला समाजिक कार्यकर्ता को आन्दोलन के लिए प्रेरित करना, रोजना बाईट लेना ,विपंक्ष को गोलबंद करना,पुलिस पर दबाव बनाने के लिए डिवेट कराना,मुख्यमंत्री से सवाल करना ,ऐसे सारे हथकंडे अपनाये। लेकिन फिर भी बात नही बन पा रही थी पुलिस के अधिकारी पीड़िता के सामने आये बगैर कारवाई करने को तैयार नही था।जांच के लिए गये अधिकारी से पीड़ित का परिवार बात करने से साफ इनकार कर दिया। वही दूसरी और मीडिया उन लड़को का स्टील फोटो दिखा रहे थे और चीख चीख कर कह रहे थे ये वही बलात्कारी है जिन्होने स्कूली छात्रा के साथ गैंगरेप किया है।यह सब चलता रहा इस बीच कल राज्य महिला आयोग ने पीड़ित लड़की का बयान डीजीपी को भेजा। आयोग का पत्र मिलते ही डीजीपी के आदेश पर कल ही महिला थाने में मामला दर्ज कर दिया गया और आज पुलिस ने जांच भी प्रारम्भ कर दिया।यह कारवाई पूरी तौर पर उस चैनल की जीत है जिसने एक मुहिम के तहत पिछले 10 दिनो से उस खबर को जिंदा ऱखने के लिए चला रहा था।लेकिन सवाल यह उठता है कि मीडिया की यह मुहिम जायज है क्या, पूरी कानूनी प्रावधानो को दरकिनार कर मीडिया की यह अति सक्रियता घातक नही है क्या ।क्यो कि इसी अति सक्रियता के कारण गुवाहाटी में पत्रकारो को शर्मसार होना पड़ा ।क्योकि एक स्थिति के बाद खबर की दुनिया मैं पत्रकारो को एहसास ही नही हो पाता  है कि समाज औऱ संविधान ने उसकी भूमिका क्या निर्धारित की है। अक्सर उत्साह में वे सारे लक्ष्मण रेखा पार कर जाते है ऐसी स्थिति में यही वक्त है सोचने का क्योकि अति हमेशा बूरा होता है।

शनिवार, जुलाई 21, 2012

जीवन जीने के लिए मिला है खोने के लिए हमारे आपके पास बहुत कुछ है


ऱाष्ट्रपति चुनाव के दिन विधानसभा में डियूटी लगी हुई थी सुबह 9बजे विधानसभा पहुंचा और घर पहुंचते पहुंचते रात के 10बजे गये।इस दौरान हलात बिहार पुलिस के जबान से कम नही था लगातार खड़े रहो ।शुक्र रहा पत्रकार मित्रो का जिन्होने पूरानी याद को बया कर जमकर हंसाया, इतनी हंसी याद नही कब आयी थी।घर पहुचते पहुचते किसी काम के लायक नही रह गया था, लेकिन आदतन टीवी खोलकर पूरे दिन का हाल जानने बैंठ गया सभी चैनलो पर  राजेश खन्ना छाये हुए थे देखते देखते कब नींद आ गयी पता ही नही चला । अचानक मोबाईल की घंटी बजने लगा अमूमन देर रात मोबाईल की घंटी बजने पर एक से दो रिंग में उठा लेते हैं लेकिन लगता है शायद उस दिन अंतिम रिंग के दौरान मोबाईल उठाया सर मैं बर्डीगार्ड राजीव बोल रहा हूं मैंडम हाथ काट ली है और साहब का मोबाईल नही लग रहा है अचानक नींद में लगा कोई खोलता हुआ गर्मी पानी डाल दिया ।
आनन फानन में मोबाईल लेकर विस्तर से बाहर निकला लेकिन पत्रकार की पत्नी समझे नही ऐसा तो सम्भव नही था जब तक बाहर निकलते वह भी बाहर आ गयी क्या हुआ है कोई घटना घट गया है क्या किसी तरह से उसे झाझा देकर बाहर बालकोनी में पहुंचा और फिर राजीव से पुंछा मैंडम किस हाल में है सर बेहोश है पास में जो भी बड़ा अस्पताल है ले जाओ एसीपी को हम खुद फोन कर रहे है तुम लेकर बढो।
इस दौरान किसी तरह मैंडम के साहब से भी बात हो गयी वे विशेष मिशन में बाहर निकले थे काम छोड़कर वापस चल पड़े इस दौरान कम सुबह हो गया पता ही नही चला डांक्टर ने सुबह कहा कि अब चिंता करने की जरुरत नही अब मैंडम पूरी तरह खतरे से बाहर है।मित्रो मैंडम का परिचय है एक ईमानदार अधिकारी का है इनके प्रशासनिक क्षमता का उदाहरण दिया जाता है। सभी क्षेत्रो में बेहतर है लेकिन उन्हे अपने पति पर हर वक्त यह शंक रहता है कि किसी और के साथ कोई चक्कर तो नही चला रहा है या फिर कोई उसे फसा तो नही रहा है।अमूमन आज की युवा पीढी जो काम करते है इस बिमारी से ग्रसित है लड़किया कुछ ज्यादा ही परेशान है ।
ऐरेंज मैरेज हो या फिर लभ मैंरेज ही क्यो न हो दोनो परेशान है,ऐरेंज मैरेज वाले को इन समस्याओ से लड़ने के लिए कुछ वक्त मिलता है और फिर दोनो परिवार और रिश्तेनाते होते है जो स्थिति सम्भालते रहते है लेकिन लभ मैंरेज करने वाले के साथ कोई नही होता है और उन्हे अपने हलात से खुद लड़ना पड़ता है।यह बिमारी अब महानगरो से कसबे तक पहुंच गया है काम करने वाले 80 फिसद्दी शादी शुदा जोड़ा आज इस द्वव्द से गुजर रहा है। कही पति घूटन महसूस कर रहा है तो कही पत्नी।
विदेशो में तो सरकार की औऱ से कई तरह से स्पोट सिस्टम मौंजूद है या फिर वहां के समाज ने इसको स्वीकार कर लिया है ।लेकिन हमारे यहां कुछ भी अनुकुल नही है आज भी अकेले जीवन जीने के बारे में सोचा नही जा सकता है ऐसे हलात में इस बिमारी का क्या इलाज हो सकता है। पुरुष इस मामले में इनता कमजोर है कि बहुत कुछ चाह कर भी बहुत कुछ नही कर पाता है। समाज के बदलाव को अभी भी वह पूरी तौर पर आत्मसात नही कर पाया है, महिलाओ के साथ रिश्ते बनाने में अभी भी वह सहज नही हो पाया है। साथ काम करते करते कब दोस्ती प्यार में बदल जाता है पता ही नही चलता है।हलाकि समय समय पर समाज इस बिमारी का इलाज खुद करता रहता है लेकिन इसके इलाज की प्रक्रिया मनुष्य के निर्माण के साथ शुरु हुआ है वह आज भी जारी है ।और लगता है जब तक मनुष्य है खोज जारी रहेगा।बेहतर है इस रिश्ते को अपने अंदाज में चलने दिजिए जीवन बहुत किमती है फिर यह जीवन मिलेगा की नही किसी ने नही देखा है ।ऐसे में इस बहुल्य जीवन को महज रिश्ते में आ रहे बदलाव के कारण खत्म कर ले जायज नही है ।महिला और पुऱुष दोनो को यह समझने की जरुरत है जीवन मिला है कुछ करके जाओ, प्यार किया है तो निभाने की कला सीखो और कोई रिश्ता टूटने है तो नये रिश्ते बनाने की कला सीखे इसी में बेहतरी है