tag:blogger.com,1999:blog-55396084481127982152024-02-20T07:30:31.017+05:30तूती की आवाजक्यूंकि दुनिया नक्कारखाने में तब्दील हो चुकी है . . .संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.comBlogger104125tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-38098640812075578082013-01-10T19:09:00.000+05:302013-01-10T19:09:59.217+05:30यह सेना जो आप के शरहद की रक्षा करता है भाड़े का टटू नही है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
आज पूरे दिन में दो ऐसे फोन कांल आये है जिसने मुझे अभी तक बैचेन किये हुए है एक से तो मैं निपट लिया लेकिन दूसरे के लिए मेरे पास जबाव नही है--सुबह सुबह शुभ प्रभात के साथ साथ मेरे एक सीनियर सैन्य अधिकारी मित्र का फोन आय़ा फिलहाल वे दिल्ली में पोस्टेट हैं, उन्होने कहा कि आज कहां कैडिल मार्च निकलवा रहे है-----बरसब मेरे मुंह से निकल गया क्या सुबह सुबह मजाक कर रहे है इस कैंडिल मार्च को लेकर मेरी क्या सोच है उससे तो आप अवगत है, नही नही देश की सीमा की रक्षा कर रहे दो जवानो का सर काट कर पाकिस्तान की सेना अपने साथ ले गया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नही दिख रही है ।मीडिया में बहस हो रही है सोशल साईट पर लोगो की प्रतिक्रिया आ रही है लेकिन इंडिया गेट और जंतर मंतर सूना है आपका कारगिल चौक से भी कोई प्रतिक्रिया सुनने को नही आ रहा है। अरे भाड़े के लोगो को भी लाकर कैंडिल मार्च करवा दे और नही हो तो वही पूरानी वाली भिजूउल आप लोगो के पास तो रहता है ही उसमें से दामिनी लिखा पोस्टर को हटा दे--- दो अदद सिपाही मरा है उसकी कोई किमत भारतीय नागरिक के सामने क्या है आप मित्र है इतना तो मेरे लिए कर ही सकते हैं मारे गये सैनिक के परिवारो को थोड़ी सकून तो मिलेगी। बात करिए सविता भी आप कुछ कहना चाह रही है नमस्ते कैसे है संतोष जी ओ हो लगता है विस्तर में ही है सुना है पटना में 1 डिग्री तापमान हो गया है बड़ी मुश्किल हो गयी है चलिए सम्भल कर रहिएगा --पता है जहां से दो भारतीय सेना का सिर काटकर पाकिस्तानी ले गया है वहां पिछले एक माह से क्या तापमान है शून्य से सात से आठ डिग्री कम उसमें वह दोनो लड़का डियूटी कर रहा था--- चलिए आपको मैं क्यो सूना रही हूं देखिए राजीव जी ने जो कहा है कोशिश करिएगा पूरानी भिउजुल ही सही कुछ तो चला दिजिए--- यह सवाल सेना में काम करने वाले हर एक फौजी के परिवार के जुवान पर है और चीख चीख कर यह सवाल आप सबो से कर रहा है वो मां कर रही है जिसने अपना जवान बेटा मारा गया है ,उसकी विधवा पत्नी दहार दहार कर सवाल कर रही है बड़े प्यार से वो घर बनवाये थे और अब इस घर में रहेगा कौन ---इस फोन की पीड़ा से अभी उभरा भी नही था कि दोपहर बाद नकस्ली संगठन के प्रवक्ता बिक्रम जी,श्याम जी अनुप जी का फोन आया कहा लाल सलाम कामरेड कैसे है नव वर्ष मगलमंय हो-- लाल सलाम क्या हाल कैसे फोन किया ।इसी तरह से बहुत दिन हो गये थे नही मुझे तो लगा कि आप शायद लातेहार वाली घटना कि निंदा के लिए फोन किया है क्यो इसमें निंदा की क्या बात है हमलोगो ने तो 12 से अधिक जवान को मार गिराया है वो तो ठिक है आपने बहादूरी का परिचय दिया। लेकिन उसके पेट चीर कर बम लगाया ये आपका का कौन सा चेहरा है कभी मत फोन करिएगा, देखिए पुलिस मेरे साथी को गिरफ्तार कर लिया है फर्जी इनकाउटर कर देगा ---आप मैं और अपराधी में कोई फर्क नही रहा गया है आपने एक बड़े वर्ग की सहानुभूति खो दिया है ।अब कभी अपने जुवान से लाल सलाम मत निकालिएगा आपने सारी मर्यादाओ को तोड़ा है इसका परिणाम भुगतने को तैयार रहिएगा ।<br />सरकार जो चाह रही है उसका मकसद पूरा हो रहा है उन्हे आपको सिर्फ हम लोगो जैसे सिमपेथाईजर के नजरो में गिराना चाह रही थी और उसमें वो कामयाब हो रहा है। दो दिन में आपके सारे आर्मस फोर्स को चिठ्ठी की तरह मसल देगा क्या हैसियत है आपकी कृप्या आप कभी भी मुझे फोन मत करिएगा आपमें और तालिबानियो में कोई फर्क नही रह गया है। जिसके साथ आपने यह व्यवहार किया वो भी भारतीय है किसी पूंजी पति या किसी सांवत का बेटा नही है वो किसी किसान और मजदूर का बेटा है जिसमें अभी देश के प्रति सम्मान बचा हुआ है किसको मार कर गर्व कर रहे हो बंद करिए थोथी दलिल इस अपराध का कोई माफी नही है परिणाम भुकतने के लिए तैयार रहिए लाल सलाम-- </div>
संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-21853927808526945242013-01-08T19:46:00.000+05:302013-01-08T19:46:59.947+05:30दिल्ली गैंग रेप के आर में मीडिया आम लोगो के साथ गैंग रेप कर रही है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
शुक्रवार की रात मेरे एक मित्र का फोन आया घर पहुंच गये हैं-- जी न्यूज देखिए गैंग रेप मामले में पीड़िता का दोस्त पूरी घटना क्रम को वया कर रहा है । जैसे ही टीवी खोला जी न्यूज के संवाददाता देश के बड़े शहरो से आंन लाईन थे लोगो की प्रतिक्रिया देख लग रहा था क्या कह दिया थोड़ी देर बाद फिर चैनल पर ब्रेकिंग आने लगा कि रात दस बजे देश की सबसे बड़ी गवाही देखिए--लेकिन थोड़ी देर में मन विचलित होने लगा और मैंने चैनल बदल दिया लेकिन कुछ देर बाद फिर से जी न्यूज पर आना पड़ा उसके बाद जो कुछ दिखाया गया आप सबो ने भी देखा और प्रतिक्रियाये भी देखी और अभी तक प्रतिक्रिया जारी है। इस बीच उसी मित्र का एक मैंसेज आया पूरी खबरे को लेकर कुछ सवाल उन्होने मुझसे पुछा मैने सोचा उनके सवालो को क्यो नही पब्लिक डोमेन रख दे देखे लोगो की प्रतिक्रिया है ----लेकिन उनके सवाल को मैंने पोस्ट क्या किया पोस्ट पर और फोन कर लोगो ने जमकर ऐसी की तैसी सुनाने लगे चार दिन तक चुप रहा लेकिन अब लगता है इस पाखंड का जबाव देने होगा---मेरा सवाल देश के सबसे बड़े गवाही के हीरो और उस हीरो को महिमा मंडित करने वाले पत्रकारो से भी है क्यो कि जो सवाल मैं रखने जा रहा हूं इस तरह के सवाल से मुझे दो चार होना पड़ा रहा है।<br />1 जिस समय जी चैनल पर यह सब चल रहा था उस वक्त मुझे लग रहा था कि कोई मेरी भवनाओ और विश्वास के साथ गैंग रेप कर रहा है--1992 से 2002 तक मैं भी दिल्ली और दिल्ली वालो के साथ खेला हूं ,जिया हूं समझा हूं और बहुत कुछ दिल्ली में खो कर भी आया हूं जिसकी याद आज भी सताती है ।मेरा सवाल दुनिया के उस सबसे बड़े गवाह से है जिन्होने कहा कि घटना स्थल पर तीन पीसीआर भेन पहुंचा और आंधे घंटे तक थाना क्षेत्र को लेकर बहस करते रहे बाबू दिल्ली गोरखपुर नही है दिल्ली में पीसीआर भेन किसी थाने की नही होती है कई बार मेरे व्यक्तिगत अनुभव रहे है 100 नम्बर पर फोन करिए घायल है तो अस्पताल पहुंचायेगा और मामले मुकदमें का है तो सम्बन्धित थाना पहुंचायेगा ।आज भी यही व्यवस्था है और उसके लिए कल मैंने अपने दिल्ली के बैंचमेंट को अजमाने को कहा और वही हुआ जो पहले हुआ करता था। पीसीआर आयी और मामले को समझने के बाद चल गया उसका अवास वसंत कूंज में है और मदद के लिए जो पीसीआर भेन पहुंचा वह उस इलाके के थाने क्षेत्र का नही था।कल मेरे उस मित्र का भी भ्रम टूट गया जो देश की सबसे बड़ी गवाही सुनकर गुस्से में था।<br />2दूसरा सवाल देश के सबसे बड़े गवाह से है घटना शायद 16 दिसम्बर की रात 9 बजे के करीब की है ,मेरे जांवाज गवाह की ही माने तो उसनें आंधे घंटे तक छह दरिंदो से अपनी दामिनी को बचाता रहा और उस पर लात घूंसे और रोड से वार होता रहा लेकिन घटना के बीस दिन बाद 4जनवरी को जब वो टीवी पर आया तो मुझे उसके पैर को छोड़कर कही भी इनज्यूरी नही दिखी आप सबो से ही जानना चाहता हूं अगर कोई आपको पीटता है या फिर आप पीटते है तो क्या होता है।<br />दोनो स्थिति में सबसे पहले हाथ उठता है पता नही इस बाबू का पैर कैसे पहले उठ गया---और हाथ तब तक लड़ता रहता है जब तक कि वो पूरी तरह से हार नही जाता है मतलब यह है कि या तो वो हाथ तोड़ दे या फिर हाथ को बांध दे तभी आप मुझे पर आराम से वार कर सकते हो आप ही बताये बाबू का तो दोनो हाथ सुरक्षित दिख रहा था एक हाथ में ब्रासलेट और दूसरे हाथ के अंगूली में अंगूठी साफ दिख रहा था कही चोट के निशान तो नही दिख रहे थे।सिर पर भी कही कोई चोट नही दिख रहा था बाल इतने चमकिले और खुबसूरत दिख रहा था मानो शादी के मंडप पर जाने की तैयारी में हो ।रही बात जी न्यूज के कैमरेमैंन का पूरी वार्ता के दौरान कैमरा उसके आंखो के आस पास घुमता रहा लेकिन उसके आंखो से कभी आंसू निकलते नही देखा बेहद बहादूर है----<br />3तीसरी सवाल सुधीर चौधरी जी से है मैंने इन्हे कई वर्षो से चैनल पर देख रहा हूं इनके सवाल पुंछने का यही अदा रही है क्या-- ऐसा लग रहा था अपने वीर बालक से ज्यादा दुखी यही थे आपने तो दिल्ली के साथ कई सपने संजोयो होगे दिल्ली आपकी है और आपके दिल्ली को एक वीर बालक ऐसी की तैसी किये जा रहा था और आप क्रोस सवाल नही कर रहे थे-- इनकी छोड़िए ये तो दिल्ली पुलिस के फेरे में खुद फंसे हुए है लेकिन उन पत्रकारो पर मुझे तरस आती है उनके जेहन में यह सवाल क्यो नही आया जो बड़े बड़े की बोलती बंद कर देते है वो क्यो इस वीर बालक को महिमा मंडित करने में लगे हैं।<br />4चौथा सवाल थोड़ा कानूनी है हमारे वीर बालक टीवी पर आने से पहले 161के तहत पुलिस के सामने पूरे मामले पर बयान दिये हैं-- उसके बाद 164 के तहत कोर्ट में पूरे मामले पर बयान दिये हैं और तीसरा बयान टीवी पर दिया है---पुलिस और कोर्ट के सामने जो बयान इसने दिया है उससे इतर कई बयान ये चैनल पर दिये है।यह सवाल मैं इस लिए कर रहा हूं कि पूरे घटना क्रम का एक मात्र चश्मदीद गवाह मेरा वीर बालक ही है लेकिन जिस तरीके से वीर बालक अलग अलग बयान दे रहे है उसका फायदा किसको मिलेगा कभी सोचा है आपने इसका फायदा उन छह दरिंदो को मिलेगा जिसके फांसी की आप मांग कर रहे है तो फिर आप बताये देश की यह सबसे बड़ी गवाही किसके लिए प्रायोजित कि गयी थी --यह सवाल कल आपको राम जेठ मलानी जैसे वकीलो से सूनना पड़ सकता है और कोर्ट में आपके वकील को सफाई देते देते हाल बूरे हो जायेगे---मित्र दामिनी के साथ हुए गैंगरेप से बड़ा गैगरेप है भावनाओ और विश्वास के साथ खेलना है-- इसकी क्या सजा हो मीडिया वाले जरा कैंडिल मार्च निकलवा कर सर्वे करा ले क्यो कि यह भी रेप बेहद जानलेवा होता है--</div>
संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-862181372721632082012-11-06T18:41:00.000+05:302012-11-06T18:41:05.609+05:30क्या बिहार में कानून का राज्य है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcJonKywtfxzo6dU5BFBXaestlqflG90R7fhKfEDD0bFYmW11whyphenhyphenwoliWFrKSdjxYjee3D_hPsrqr5jliLUzsTaeox_FRY-I_iiRpBVQfZclT9yEBcjVM39YqgpxTnxruI1YjE8GpHIlqx/s1600/pHOTO.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="400" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcJonKywtfxzo6dU5BFBXaestlqflG90R7fhKfEDD0bFYmW11whyphenhyphenwoliWFrKSdjxYjee3D_hPsrqr5jliLUzsTaeox_FRY-I_iiRpBVQfZclT9yEBcjVM39YqgpxTnxruI1YjE8GpHIlqx/s400/pHOTO.JPG" width="320" /></a></div>
मित्रों किसी ऐसे व्यक्ति ने ये खबर मुझे भेजी
है जो मुझे एक निर्मिक, निडर और उत्साही पत्रकार के रुप में जानता है
।लेकिन शायद पहली बार उसके उम्मीद पर मैं खड़ा उतर नही पाया ।मैंने इस खबर
के लिए सोशलसाईट का सहारा लिया शायद इस खबर में सुशील मोदी<br />
<div class="text_exposed_show">
की जगह विपंक्ष का कोई भी नेता रहता है या कही लालू प्रसाद होते तो आज
पूरे देश के मीडिया में पहले खबर भजने की होड़ मची रहती ।लेकिन ऐसा नही है
इस खबर के बारे में सभी मीडिया हाउस को मालूम है लेकिन सभी ने अपना ईमान
गिरवी रखने में परहेज नही किया।खबर ये है कि बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील
मोदी बिहार में बाध के सरक्षंण को लेकर बाल्मिकीनगर जंगल के दौरे पर गये
थे। दो दिनो तक इसको लेकर विशेष अभियान चलाया गया जोरदार कभरेज मिले इसके
लिए पत्रकारओ की एक पूरी फौज को वहां पर ठहराने और रहने की विशेष व्यवस्था
की गयी थी।भले ही खबर प्रथम पृष्ठ पर नही छपी लेकिन खबर आयी थी।अब इस खबर
के पीछे की खबर जान ले याद करिए बाहुवलि शाहाबुद्दीन का वो जवाना जब उसकी
तुती बोलती थी। उस वक्त इंडिया टू़डे ने एक कभर स्टोरी छापी थी जिसमें हीरण
को मारकर जश्न मनाते हुए शहाबुद्दीन की तस्वीर छपी थी। जिसके आधार पर
शहाबुद्दीन सहित कई लोगो पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था, यही सुशील मोदी इस
तस्वीर को लेकर बड़े बवेला मचाये थे पशु सरंक्षण लेकर कई तरह की दलीले देकर
तत्तकालिन राजद सरकार को कठघरे में खड़े किये और पूरे देश के पशु सरंक्षक
और पर्यावरणविद इसको लेकर आवाज उठाये थे।अब जरा तस्वीर का दूसरा रुप देखिए
शहाबद्दीन हीरण को मार कर जिस समय जस्न माना रहा था उस समय के फोटो को गौर
से देखे और लाल लकीर से जिस व्यक्ति का चेहरा घेरा है उसको देखे। उसके बारे
में कुछ कहने की जरुरत नही है शहाबुद्दीन के इतने करीब रहने वाला भगत सिंह
तो नही ही हो सकता है। उस लड़के पर आरोप था कि जिस समय शहाबुद्दीन अपने
कुनवे के साथ हीरण का शिकार करने बल्मिकीनगर जंगल गया था उस वक्त यही लड़का
गाड़ी चला रहा था। आज देखिए जब सुशील मोदी बाल्मिकीनगर बाघ के सरंक्षण के
लिए पहुंचे है तो <span class="userContent">यही लड़का जो आज न्याज हसन डांन के नाम से
चर्चित है मोदी का ड्रायवरी कर रहा है।ये संयोग नही हो सकता क्यो कि
ड्रायविंग सीट पर कोई खास आदमी ही बैंठ सकता है वह भी तब जब सूबे के उप
मुख्यमंत्री को बगल के सीट पर बैठना हो।मोदी या उनके जानने वालो का यादास्त
भले ही कमजोर हो गयी लेकिन उन वन अधिकारियो और पुलिस अधिकारियो पर क्या
गुजरा होगा जब न्याज हसन को बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी के इतना
करीब देखा होगा। जिस पर न जाने कितने बाघ और हीरण मारने के आरोप लगते रहे
है क्या यही सुशासन है इसी को कानून राज्य कहते हैं।</span></div>
</div>
संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-82288503537007036092012-11-05T15:08:00.001+05:302012-11-05T15:08:43.894+05:30सिस्टम ने मुझे कायर बना दिया <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
वर्षो बाद किसी बड़े इभेंन्ट में मैं दर्शक की भूमिका में चैनल बदल कर जानकारी ले रहा था मैं बीते कल की बात कर रहा हूं। एक और पटना के गांधी मैंदान में नीतीश कुमार बिहारी अस्मिता के बहाने बिहार की राजनीत की नीति और नियति बदलने में लगे हुए थे। तो दूसरी तरफ कांग्रेस एफडीआई के बहाने अपने आपको स्थापित करने की कोशिस कर रहा था।रैली में कितने लोग जुटे और कैसे जुटे इस पर बहस कि कोई जरुरत नही है लेकिन इन दोनो रैली में कुछ बाते ऐसे हुई जिस पर सोचने की जरुरत है।एक और राहुल गांधी का भाषण जिसको लोगो ने बेहद मजाकिया अंदाज में लिया, किसी ने कहा भाषण के दौरान राहुल ऐसे बोल रहे थे जैसे कि कोई विरोधी दल का नेता बोल रहा है। किसी ने कहा इसके लिए तो उनका ही परिवार जिम्मेवार है सब कुछ सही है। लेकिन राहुल ने आखिर कहा क्या --- आमलोग और कमजोर आदमी के लिए राजनीतिक सिस्टम बंद है,राजनैतिक पार्टियो में आम लोगो के लिए दरवाजा बंद है,आम आदमी सपना देखते है और राजनैतिक सिस्टम उसे ठोकर मार कर गिरा देता है। ऐसे कई सवाल उन्होने वर्तमान राजनैतिक हलात के बारे में खुलकर रखा शायद राहुल के सवाल का बेहतर जबाव आज की व्यवस्था में जहां कही भी किसी भी तरह के संस्थानो में काम करने वाले लोग बेहतर दे सकते है।इस तरह के सवाल से आज हर यूथ जुझ रहा है चाहे वह किसी बड़ी कम्पनी का मालिक ही क्यो न हो । राहुल के उदगार को हलके से न ले देश आज इसी हलात से गुजर रहा है। और दूसरी बड़ी बात राहुल की कौन कहे आज इंदिरा गांधी ही क्यो नही रहती जितना विवश राहुल है उससे कम विविश वो भी नही रहती है। आज कोई भी संस्थान हो उसमें आम आदमी का प्रवेश और आम लोगो के लिए काम करना और ईमानदारी के साथ काम करना कितना मुश्किल है वह कोई काम करने वाला ही बेहतर बता सकता है। हमलोग वैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करते है जैसे पवेलिएन में बैंठे दर्शक सचिन को स्टेन की बाहर जाती गेंद पर विकेट गवाने पर व्यक्त करते है शायद दर्शक को पता नही है एक अदना स्टेन को भी खेलना कितना मुश्किल है।<br />अब बात करते है बिहार के मिस्टर किलिंन नीतीश कुमार की कल बड़े जोरदार तरीके से विशेष राज्य को लेकर रैली बुलायी और मीडिया ने जो लिखा है और जो दिखाने की कोशिस किया है उससे लगता है कि ऐसी ऐतिहासिक रैली पहले कभी नही हुई है। कई तरह की बाते लिखी गयी और चैनलो पर बहस भी हुई रैली में आये लोग बेहद अनुशासित थे। तो किसी ने कहा कि इस रैली से नीतीश को एक अलग पहचान देश स्तर पर मिला है।जिसको जो हुआ कहा और लिखा और मीडिया वाले मान्य तरीके के तहत रैली की घोषणा के दिन से ही बार गर्ल के डांन्स, बाहुबलियो की नौंटकी ,रैली के नाम पर चंदा उगाही या फिर रैली में आये लोग कहा उत्पात मचा रहे है ऐसी खबरो में ही अपना दिन बिता दिये।लेकिन किसी ने ये सवाल नही उठाया कि भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी बड़ी बाते करने वाले नीतीश कुमार की पार्टी रैली के सफल आयोजन के लिए पचास करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कंहा से किया यह पैसा कहा से आया क्या इस तरह के पैसे देने वाले किसकी हकमारी करके पैसा दिया होगा आम आदमी का ---<br />जरा नीतीश कुमार से पुछुए लखनुउ से जो साउन्ड सिस्टम आया था उसकी राशी किसने दिया ऐसे कई सवाल है, तमाम मंत्री के यहां विभाग के अधिकारी व्यवस्था करने में लगे हुए थे जिस पार्टी के 80 प्रतिशत विधायक की आय वेतन के अलावा एक लाख भी नही है वो एक दिन में हजारो लोगो के रहने खाने का व्यवस्था कहा से किया ।.ये सही है लालू की रैली की तरह थाना या बीडियो से पैसा की उगाही नही की गयी लेकिन खर्च तो हुए और ये खर्च भी कही न कही से आम आदमी के हकमारी करके ही किया गया है। चाहे वो कोई डीएम एसपी या इनिजीनयर या व्यापारी ही क्यो न दिया हो ।ये मैं इसलिए कह रहा हूं कि आज के सिस्टम में बने रहने के लिए पैसा बेहद जरुरी है और उसके लिए आपको अपनी बोली लगानी पड़ेगी नीतीश इससे अलग नही है। सिस्टम के खिलाफ गोलबंद होने की जरुरत है, राहुल, सोनिया मनमोहन या फिर नीतीश, और नरेन्द्र मोदी जितने मजबूत दिखते है उससे कही अधिक कमजोर है और सिस्टम के गुलाम की तरह कार्य करते है।ये समझने की जरुरत है नही तो इसी तरह हमलोग गुस्से का इजहार करते रहेगे सरकार बदलती रहेगी ,लेकिन आम आदमी कमजोर और बिमार होता जायेगा ।सोचिए और अपने गुस्से को सही अंजाम तक पहुंचाने में मदद करिए। राहुल की आवाज एक निराश पीढी का आवाज है जो कुछ करने की इक्छा रखता है लेकिन सिस्टम के आगे विवश है उसके आवाज को गम्भीरता से लेने की जरुरत है।</div>
संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-5585861409824618602012-09-10T15:36:00.000+05:302012-09-10T15:36:35.770+05:30मनमोहन सिंह जी फेसबुक पर और कुछ भी हो रहा है <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
फेसबुक को लेकर इन दिनो काफी चर्चाये हो रही है,कहने वाले तो यहां तक कहने लगे है कि आने वाले समय में यह बेहद घातक हथियार के रुप में सामने आयेगा,असम मामले में हो या फिर अन्ना आन्दोलन हो या फिर कोई और मसला हो हर कोई अपने अपने तरीके से इस माध्यम का उपयोग कर रहा है। स्थिति यहां तक आ गयी है कि इस पर प्रतिबंध तक लगाने की बात कही जाने लगी है।इस मसले पर मैं अपने फेसबुक दोस्त से ही जानना चाहा सभी के अपने अपन<br /> े अनुभव रहे। लेकिन एक जो आम राय रही वह यह कि इस माध्यम का बेहतर इस्तमाल हो तो भारतीय समाज के कई बुराई से निजात पायी जा सकती है।तीन चार मित्रो का अनुभव आपके बीच रख रहा हूं एक दिन एक लड़की अपने कोर्स का मेटेरियल हमारे पोस्ट पर पोस्ट कर दी देखा तो सारा मेटेरियल पत्रकारिता के कोर्स से जुड़ा हुआ था। एक दिन रात में उससे बात करने का मौंका मिला पहले तो उसने साँरी बोली की यह पोस्ट किसी और को करना था लेकिन आपके पोस्ट पर चला गया। फिर बात बढने लगा वे भोपाल से पत्रकारिता में स्नातक कर रही थी ।<br /> पत्रकारिता के बारे में बात होने लगी और यह सिलसिला दो तीन माह तक लगातार जारी रहा एक दिन उसका मैसेज आया कहां है आपसे से जरुरी बात करनी है। उस वक्त में आंन लाईन नही था लगभग छह सात घंटे बाद उसका मैंसेज देखा जैसे ही मैं आंन लाईन हुआ लगा जैसे इन्तजार ही कर रही थी।<br /> जरा आप भी जानिए उसे क्या हुआ था उसके पिता जी और भाई आज होस्टल आये हुआ थे, भाई ने बोला कि अब तुम्हारी पढाई पूरी हो गयी और अब लौटो घर शादी विवाह करनी है ।आरजु विनती करती रही लेकिन घर वाले नही माने कल उसे हांस्टल छोड़ना पड़ेगा। लगभग दो घंटे तक बातचीत होती रही इस दौरान स्त्री पुरुष के बीच रिश्ते को लेकर चर्चाये हुई अंत में फैसला हुआ की पहले घर जाओ फिर इसके समाधान के बारे में विचार किया जायेगा।दो दिन बाद उसका नाम फ्रेंड लिस्ट से गायब देखा थोड़ा घबराया क्या हुआ उसके साथ। लगभग 15दिनो के बाद एक अनजान यूजर चेंट पर आया और बोली मैं स्मिता हूं अरे कहां हो, सर जी आपका टिप्स काम कर गया मेरा भाई आज मान गया कल में पीजी में नामंकन के लिए भोपाल जा रही हूं।आपने जो सलाह दिया था उसी के अनुसार पहले मैंने अपने भाई को कांलेज के बारे में समझाया लड़को के साथ दोस्ती के बारे में बताया फेसबुक और मोबाईल फोन का नम्बर उसके सामने हटा दिया और कहा तुम्हारे इज्जत पर कभी दाग नही आने देगे।स्मिता के पूरे परिवार में स्मिता ही एक थी जो स्नातक पास किया था बड़ा भाई मेट्रिक के बाद पिता जी का बिजनेश सम्भाल रहा था और उसमें इतना लीन था कि दुनिया की कौन कहे आस पास की दुनिया के बारे में कोई जानकारी उसके पास नही था। ऐसे में कोई उसके बहन को लड़का फोन करे, घर छुट्टी में पहुंचे तो देर रात तक फेसबुक पर रहे। कोई मिडिल क्लास भाई यह सब कैसे स्वीकार कर सकता। खुशी है आज उसका पूरा परिवार उसके साथ है और पीजी कर रही है क्यो कि उसने पहले अपने भाई और पिता को विश्वास में लिया और आज वो मिशन में आगे बढ रही है।<br /> इस तरह के कई वाकई है एक वाकया तो ऐसा है कि देश के जाने माने कांलेज से पीजी कर रही रुची जिसके साथ कई माह से देश के सामाजिक और राजनैतिक हलातो पर बात होती रहती थी। एक दिन उसने बड़े धबरायी हुई मैंसेज दी रात दस बजे के बाद कुछ बाते करनी है जरुर आंन लाईन रहगे।बात शुरु हुई मेरी शादी होने वाली है आप तो शादी शुदा है,जरा बताये लड़के लड़कियो को किस नजरिए से देखता है, शादी के बारे में लड़के क्या सोचते है एक अनजान व्यक्ति के साथ शादी के बाद कमरे में बंद कर दिया जाता है और उसके बाद बलात्कार नही तो और क्या होता है मैने उसे एल एम वासम की प्राचीन भारत किताब पढने की सलाह दी जिसमें वेद में भारतीय शादी परम्परा के बारे में काफी विस्तार से लिखा गया है उसमें प्रेम विवाह की भी चर्चा है।इस तरह के कई और सवाल रुची से हुई और एक एक सावल पर घंटो बहस हुई। प्रेम विवाद और अरेंज मैंरेज को लेकर जोरदार बहस चली क्यो प्रेम विवाह असफल हो रहा है इस पर भी चर्चाये हुई ।तीन दिनो के बाद उसने कहा सर जी आपने सही कहा लड़के और लड़कियो, दोनो का स्वर्णीम काल शादी तय होने से पहले तक रहता है और उसके बाद बच्चो के सेटल होने के बाद। इस दौरान समझौता महत्वपूर्ण हो जाता है जिसके प्रति कभी लोग सोच भी नही पाता है इसलिए समझौता के काल में जितने बेहतर तरीके से अपने को बचाते हुए समझौता निभाते रहे आपका जीवन सुख मय रहेगा ।आज रुची अपने वैवाहिक जीवन के खुश है क्यो कि इस नये जीवन में उसे अभी तक कुछ ऐसा समझौता नही करना पड़ा है जिससे कि उसके होने का सवाल खड़ा हो। शादी के छह माह बाद भी वो आज भी अपनी फिलिंग शेयर करती है और उसका परिवारिक जीवन बेहतर तरीके से चल रहा है कहने का मतलब यह है कि फेसबूक या और जो साईट है उसके बेहतर इस्तमाल के कई सम्भावनाये है ।<br /> ऐसे भी अनुभव रहे है कि एक लड़का लड़की का फोटो लगाकर किसी से दोस्ती की और फसाते फसाते पाच लाख रुपये अधिक की ठगी कर ली हुआ यू कि पहले अपना मोबाईल नम्बर देकर रिजार्ज करवाना शुरु किया और उसके बाद बात होने लगी और जैसै जैसे वह फसता गया उससे अपने बैंक खाते में पैसा भी डलवाने लगा इसके लिए लड़के ने चाईनिंज मोबाईल का उपयोग किया करता था जिसमें लड़के के आवाज को लड़की के आवाज में बदल देता है ऐसा भी वाकिया मेरे जानकारी में है।<br /> </div>
संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-76427171046595925742012-08-25T16:41:00.000+05:302012-08-25T16:41:20.922+05:30इस रिश्ते को क्या नाम दू<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
कल शाम दिल्ली से सुशांत का फोन आया था संतोष भाई रवि सुसाईट की कोशिस किया है।खबरो के साथ खेलना तो रोज का हमलोगो का धंधा ही है लेकिन इस खबर ने चंद मिनट के लिए होश उड़ा दिया जब तक सम्भल पाते उसने सारी स्टोरी बता दी ।अभी अभी अपोलो से वापस तीन दिन बाद लौटा है। मैने पुछा पत्नी से कुछ हुआ था क्या पता नही क्या हुआ पूरा परिवार चुप है ।कोई कुछ नही बोल रहा है तरुणा से बात किये क्या हो सकता है उसे पता हो ,नही वो तो मोबाईल ही नही उठा रही है लगता है देश से बाहर गयी हुई है।ठिक है घर पहुंच कर बात करते है।रात आठ बजे के करीब फोन दिया रिंग हो रहा था कोई रिसपोन्स नही लगातार तीन चार बार रिंग किया लेकिन मोबाईल नही उठा,अंत में बेसफोन पर लगाया अंतिम रिंग होते होते स्वाति रवि की पत्नी ने फोन उठायी।भारी मन से बोली रवि बाथरुम में है निकलता है तो फिर बात कर लेगा और कुछ बात कर पाते उससे पहले फोन रख दी। रवि के फोन का इन्तजार करता रहा लेकिन रात के दस बजे तक कोई फोन नही आया इस बीच तरुणा को भी कई बार फोन किया लेकिन उसका भी कोई जबाव नही आया।लगभग 11बजे मेरे मोबाईल की घंटी बजी मेने देखा रवि का कांल है तुरंत उठाया अरे क्या सून रहे सही बात है इतना कहना था कि फफक फफक कर रोने लगा साले इतने तू बुजदिल हो क्या स्वाति से कुछ हुआ क्या नही ऐसा नही है। मुझसे इतनी बड़ी गलती हो गयी है कि मैं अपने आपको फेस नही कर पा रहा हूं, ऐसा क्या हो गया मैंने तरुणा के साथ जबरदस्ती किया हूं अरे साले क्या बोल रहे हो हैं क्या हुआ पता नही मेरे अंदर कौन का जानवर जागृत हो।<br />तुरुणा मैं और रवि तीनो साथ साथ दिल्ली विश्व विधालय में पढता था।कांलेज में जब हमलोग पहले दिन पहुंचे तो लगा कि किस दुनिया में आ गये है। लड़कियो की कौन कहे लड़को का रंग ढंग गजब का था।मैं ही तीन लोग थे जो शुद्ध देहाती लग रहे थे।सिर में तेल समान्य पेट शर्ट और हाथ में किताब का साधारण बैंग।क्लास में पहुंचे तो संयोग से हम तीने बैंठ भी एक साथ पूरे क्लास से अलग बीच वाले डेक्स पर पहली मुलाकात में ही हमलोगो की दोस्ती हो गयी ।और यह दोस्ती पाच वर्षो तक लगातार जारी रहा सम्बन्ध इतने धनिष्ठ हो गये कि उसके परिवार वाले भी तय नही कर पा रहे थे कि तरुणा शादी किससे करेगी।कई बार उसके परिवार वाले इशारे इशारे में पूछते भी थे तो हम लोगो का जबाव रहता था ऐसा कुछ नही है।बाद में मेरी शादी हो गयी और उसके बाद रवि की भी शादी हो गयी फिर सभी दोस्त तुरुणा के शादी में एक साथ मिले सभी लोग परिवार के साथ एक ही होटल में ठहरे हुए थे। शादी के कल होकर मैं और मेरी पत्नी ,रवि और उसकी पत्नी एक साथ खाना के टेबल पर मिले सारी रात शादी में जगे रहने के कारण थोड़ा थका थका सा महसूस कर रहा था खाने का कुछ ओर्डर दिया जाता इससे पहले रवि की पत्नी बड़ी ही मजाकिये लहजा में बोली कैसा महसूस हो रहा है तरुणा तो आज किसी और की हो गयी दोनो मित्र एक साथ बोल पड़े क्यो महसूस क्या होना है हमलोगो का पूरा आशिर्वाद उसके साथ है कैसा रिश्ता है मेरे समझ में नही आ रहा है लेकिन दोनो महिलाओ की चेहरे पर जो भाव दिख रहा था उससे लगा रहा था कि रवि के जबाव से दोनो सहमत नही है फिर बात शुरु हुई तरुणा नाम के जैसे हमेशा तरुण ही दिखती रहती थी ऐसा ड्रेस कमबिनेसन रहता था कि सीधे सीधे उस पर नजर नही खीचती थी कभी हम लोगो ने मेकेप में उसे नही देखा कभी भी बिना दोपट्टा को उसको कभी नही देखा उसके घर पर भी गये तो कभी हाई फाई ड्रेस में नही देखा पंजाबी लड़की हाईट 5फिट 7इंच रंग विशुद्ध गोरा लेकिन चेहरे पर कभी लटका झतटा नही देखा गम्भीर बातो में शालिनता और किसी भी मसले पर खुल कर बात करना उसकी आदत थी कई बार कांलेज टूर में रात भर साथ रहने का मौका मिला साथ घूमने टहलने घंटे बात करने का भी मौंका मिला ,लेकिन कभी उसके बारे में उस तरह का खयाल नही आया। कई बार बातचीत के दौरान काफी करीब भी आये लेकिन मन में कभी भी बूरा ख्याल नही आया आज उसकी शादी हो गयी है तो थोड़ा जलन हो रहा है। इस बात का कि जिस तरीके से तुम लोगो को तुऱुणा से कोई परहेज नही था मजाकिया लहजे में जो कह देते थे। लेकिन इसको लेकर कभी घर में विवाद नही हुआ काश उसका पति भी ऐसे ही खलायात के हो।बात चल ही रहा था कि तरुणा अपने पति के साथ होटल पहुंच गयी सामने देखा तो होश उड़ गया अरे यही तरुणा है आज उसके सामने बड़ी से बड़ी हीरोईन भी फिका लग रही थी।कुछ देर साथ रही और उसके बाद अपने पति के साथ चली गयी।संयोग ऐसा हुआ कि बाद में रवि और तरुणा दोनों एक ही एनजीओ को लिए काम करने लगे और बराबरा उन लोगो के बीच मुलाकात होने लगी पता नही अचानक क्या हुआ जो रवि ने 15वर्षो के सम्बन्ध को दागदार कर दिया।<br />काफी कुरदने के बाद रवि ने बोलना शुरु किया देखो ने पिछले तीन माह से मैं राजस्थान में काम कर रहा था दिल्ली लौटने पर तुरुणा को फोन किया दिल्ली पहुंच गये है कुछ एसाईनमेंट है उस पर बात करनी है वह जब पहुंचे तो में हक्का बक्का रह गया इतना भड़किला ड्रेस पहन कर वो आयी थी कि उससे बात ही नही कर पा रहे थे काफी कोशिस के बाद बी सहज नही हो पा रहे था आखिर में मीडिग को मैंने रद्द कर दिया और कल मिलने की बात तय कर वापस डेरा चला आया लेकिन बड़ी कोशिस के बावजूद सहज नही हो पा रहा था सुबह खुद तरुणा फोन की डेरा पर आ जाये मुझे पता नही था कि स्वाति आज सुबह ही घर से निकल गयी है मैंने हां कह दिया लेकिन उसके आने के बाद जो नही होना था वह हो गया और इसके लिए मैं अपने आपको माफ नही कर पा रहा हूं आखिर इतने पढाई लिखाई और विचार के बाबजूद मनुष्यो में कब पसुता जग जाये कहना मुश्किल है इसी कारण मैं बेहद परेशान है क्या स्वाति को पता चल गया है हां मैंने बता दिया है तो फिर सोसाईड की कोशिस क्यो किया, जो सहयोग स्वाति से मिलनी चाहिए थी वह नही मिला और 15वर्षो के दोस्ती को उसने शाररिक रिश्तो पर आधारित दोस्ती की संज्ञा देकर ऐसे ऐसे बाते बोली जिसका जबाव नही था मेरे पास।<br />तुरुणा के साथ बने इस नये रिश्ते को लेकर भले ही रवि को आज पशुता तक की संज्ञा ग्रहण करनी पड़ रही है,हो सकता है इस फेज से मैं भी गुजर सकता हूं आप भी गुजर सकते है लेकिन इसका समाधान क्या हो ।<br /></div>
संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-57984481379406886302012-08-11T15:51:00.001+05:302012-08-11T15:51:32.079+05:30नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी के बहाने मीडिया समाज को डिंकटेट कर रही है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पिछले कुछ वर्षो से मीडिया में एक फोबिया देखने को मिल रहा है इसको लेकर कई बार चर्चाये भी हुई आखिर इस फोबिया का कारण क्या है। भाई नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन गया तो लगता है इस देश में क्या हो जायेगा।पता नही इसको लेकर मीडिया मैं इतनी बैचेनी क्यो है। कल जब दफ्तर पहुंचा तो मोहन भागवत के बयान पर बबेला मचा हुआ था सीएम से प्रतिक्रिया लिजिए जितने भी राजनैतिक दल है उसके बड़े नेताओ की जितनी जल्दी हो प्रतिक्रया चाहिए।राजनीति मेरा प्रिय विषय नही रहा है लेकिन राजनैतिक गतिविधियो पर नजर रखते है और राजनैतिक हलात पर सोचते भी है ।मुझे तरस आती है उन बड़े पत्रकारो पर जिनके राजनैतिक समझ के काऱण मीडिया में पहचान है, कैसे नीतीश कुमार को वे पीएम के रेस में मानते है। सीएम के गतिविधियो को मैं भी एक वर्षो से लगातार करीब से देख रहा हूं मुझे तो नही लगता कि नीतीश कुमार इतने बेवकूफ है ।उन्हे अपनी मंजिल और लक्ष्य के बारे में पूरी समझ है और वे जानते है कि उनकी राजनीत अभी आने वाले 2014तक ढलान पर आने वाले नही है।कई बार मीडिया में इन्होने पीएम की बात खारिज भी कर दिये है फिर भी चर्चाये बंद होने का नाम नही ले रहा है ।कल तो हाईट हो गया चीख चीख कर सुशासन की धज्जिया उड़ने वाले टीवी चैनल भी मोहन भागवत के बायन को प्रमुखता से दिखा रहा था जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति ने नीतीश की तारिफ कर दिया हो। इससे पहले भी नीतीश के सुशासन की तारीफ करते रहे है लेकिन इस तरह के न्यूज डस्टबिन में फेक दिये जाते थे। लेकिन कल की खबर नीतीश की जय वाली थी लगता है । मीडिया इस वक्त दो गेम खेल रहा है एक तो नरेन्द्र मोदी को नीतीश के बहाने गुजरात से बाहर आने से रोकना और इसके लिए तरह तरह का हथाकंडा अजमा रहे है।आडवाणी जी के ब्लांग को ही ले उन्होने लिखा क्या उसको दिखाया क्या गया । वही बात मोहन भागवत को लेकर चल रहा है विदेशी मीडिया को भागवत ने क्या कहा उसको किस अंदाज में चलाया जा रहा है ।इसका सीधा मतलब तो यही ही है कि मीडिया अब समाज को एजुकेंट करने के बजाय डिकटेंट करने में लग गया है। जनाव बचिए इस प्रवृति से।प्रधानमंत्री तय करने की जिम्मेवारी भारत की जनता का है मीडिया हाउस का नही ऐसा न हो फिर एक बार भ्रम टूट जाये</div>
संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-85237571678292906352012-07-25T19:50:00.001+05:302012-07-25T19:50:41.426+05:30पत्रकार अक्सर लक्ष्मण रेखा पार करते रहते है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
गुवाहाटी की घटना के क्रम में ही पटना के मीडिया वाले को भी कही से एक सीडी मुहैया कराया गया था, जिसमें एक स्कूली छात्रा के साथ गैंगरेप होते दिखाया गया है।जब तक सीडी चलाने पर कुछ निर्णय होता तब तक एक चैनल ने इस खबर को ब्रेक कर दिया।व्यवसायिक प्रतिद्वव्दता के कारण बाकी चैनल चुप्पी साध लिया अखबार वालो ने भी यही किया।कई हाउस में इस खबर को लेकर बहस भी हुई आखिर क्या किया जाये।तय हुआ जब तक पीड़िता सामने नही आती है तब तक इस तरह की खबर नही दिखायी जाये। क्यो कि इस तरह की खबर को दिखाना गैर कानूनी है, हो सकता है पूरा सीडी ही फेक हो, यह भी सम्भव हो कि किसी को बदनाम करने के लिए किसी और लड़की का चेहरा पेस्ट कर दिया गया हो जो आजकल धड़ल्ले से हो रहा है।इन सब बातो को देखते हुए कुछ चैनल ने खबर नही दिखाने का फैसला लिया ,वही दूसरी औऱ पत्रकारो के बीच की प्रतिद्वव्दता के कारण कुछ चैनल के रिपोर्टर खबर को गलत साबित करने में लग गये।यह सब चलता रहा वही खबर दिखाने वाला चैनल मामले को जिंदा रखने के लिए मोमवती जुलुस,राज्य महिला आयोग के अधिकारी को जांच करने के लिए प्रेरित करने के साथ साथ चैनल के माध्यम से पूरे मामले को जिंदा रखने की कोशिस जारी रखा। इस दौरान पत्रकारो ने वह सारे हथकंडे अपनाये जो उनसे सम्भव था, महिला समाजिक कार्यकर्ता को आन्दोलन के लिए प्रेरित करना, रोजना बाईट लेना ,विपंक्ष को गोलबंद करना,पुलिस पर दबाव बनाने के लिए डिवेट कराना,मुख्यमंत्री से सवाल करना ,ऐसे सारे हथकंडे अपनाये। लेकिन फिर भी बात नही बन पा रही थी पुलिस के अधिकारी पीड़िता के सामने आये बगैर कारवाई करने को तैयार नही था।जांच के लिए गये अधिकारी से पीड़ित का परिवार बात करने से साफ इनकार कर दिया। वही दूसरी और मीडिया उन लड़को का स्टील फोटो दिखा रहे थे और चीख चीख कर कह रहे थे ये वही बलात्कारी है जिन्होने स्कूली छात्रा के साथ गैंगरेप किया है।यह सब चलता रहा इस बीच कल राज्य महिला आयोग ने पीड़ित लड़की का बयान डीजीपी को भेजा। आयोग का पत्र मिलते ही डीजीपी के आदेश पर कल ही महिला थाने में मामला दर्ज कर दिया गया और आज पुलिस ने जांच भी प्रारम्भ कर दिया।यह कारवाई पूरी तौर पर उस चैनल की जीत है जिसने एक मुहिम के तहत पिछले 10 दिनो से उस खबर को जिंदा ऱखने के लिए चला रहा था।लेकिन सवाल यह उठता है कि मीडिया की यह मुहिम जायज है क्या, पूरी कानूनी प्रावधानो को दरकिनार कर मीडिया की यह अति सक्रियता घातक नही है क्या ।क्यो कि इसी अति सक्रियता के कारण गुवाहाटी में पत्रकारो को शर्मसार होना पड़ा ।क्योकि एक स्थिति के बाद खबर की दुनिया मैं पत्रकारो को एहसास ही नही हो पाता है कि समाज औऱ संविधान ने उसकी भूमिका क्या निर्धारित की है। अक्सर उत्साह में वे सारे लक्ष्मण रेखा पार कर जाते है ऐसी स्थिति में यही वक्त है सोचने का क्योकि अति हमेशा बूरा होता है।<br /></div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-2877917278371098612012-07-21T19:25:00.000+05:302012-07-21T19:25:11.987+05:30जीवन जीने के लिए मिला है खोने के लिए हमारे आपके पास बहुत कुछ है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a class="profileLink" data-hover="tooltip" href="http://www.facebook.com/arbind.ambastha.5" id="js_5" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;">ऱाष्ट्रपति चुनाव के दिन विधानसभा में डियूटी लगी हुई थी सुबह 9बजे विधानसभा पहुंचा और घर पहुंचते पहुंचते रात के 10बजे गये।इस दौरान हलात बिहार पुलिस के जबान से कम नही था लगातार खड़े रहो ।शुक्र रहा पत्रकार मित्रो का जिन्होने पूरानी याद को बया कर जमकर हंसाया, इतनी हंसी याद नही कब आयी थी।घर पहुचते पहुचते किसी काम के लायक नही रह गया था, लेकिन आदतन टीवी खोलकर पूरे दिन का हाल जानने बैंठ गया सभी चैनलो पर राजेश खन्ना छाये हुए थे देखते देखते कब नींद आ गयी पता ही नही चला । अचानक मोबाईल की घंटी बजने लगा अमूमन देर रात मोबाईल की घंटी बजने पर एक से दो रिंग में उठा लेते हैं लेकिन लगता है शायद उस दिन अंतिम रिंग के दौरान मोबाईल उठाया सर मैं बर्डीगार्ड राजीव बोल रहा हूं मैंडम हाथ काट ली है और साहब का मोबाईल नही लग रहा है अचानक नींद में लगा कोई खोलता हुआ गर्मी पानी डाल दिया ।<br />आनन फानन में मोबाईल लेकर विस्तर से बाहर निकला लेकिन पत्रकार की पत्नी समझे नही ऐसा तो सम्भव नही था जब तक बाहर निकलते वह भी बाहर आ गयी क्या हुआ है कोई घटना घट गया है क्या किसी तरह से उसे झाझा देकर बाहर बालकोनी में पहुंचा और फिर राजीव से पुंछा मैंडम किस हाल में है सर बेहोश है पास में जो भी बड़ा अस्पताल है ले जाओ एसीपी को हम खुद फोन कर रहे है तुम लेकर बढो।<br />इस दौरान किसी तरह मैंडम के साहब से भी बात हो गयी वे विशेष मिशन में बाहर निकले थे काम छोड़कर वापस चल पड़े इस दौरान कम सुबह हो गया पता ही नही चला डांक्टर ने सुबह कहा कि अब चिंता करने की जरुरत नही अब मैंडम पूरी तरह खतरे से बाहर है।मित्रो मैंडम का परिचय है एक ईमानदार अधिकारी का है इनके प्रशासनिक क्षमता का उदाहरण दिया जाता है। सभी क्षेत्रो में बेहतर है लेकिन उन्हे अपने पति पर हर वक्त यह शंक रहता है कि किसी और के साथ कोई चक्कर तो नही चला रहा है या फिर कोई उसे फसा तो नही रहा है।अमूमन आज की युवा पीढी जो काम करते है इस बिमारी से ग्रसित है लड़किया कुछ ज्यादा ही परेशान है ।<br />ऐरेंज मैरेज हो या फिर लभ मैंरेज ही क्यो न हो दोनो परेशान है,ऐरेंज मैरेज वाले को इन समस्याओ से लड़ने के लिए कुछ वक्त मिलता है और फिर दोनो परिवार और रिश्तेनाते होते है जो स्थिति सम्भालते रहते है लेकिन लभ मैंरेज करने वाले के साथ कोई नही होता है और उन्हे अपने हलात से खुद लड़ना पड़ता है।यह बिमारी अब महानगरो से कसबे तक पहुंच गया है काम करने वाले 80 फिसद्दी शादी शुदा जोड़ा आज इस द्वव्द से गुजर रहा है। कही पति घूटन महसूस कर रहा है तो कही पत्नी।<br />विदेशो में तो सरकार की औऱ से कई तरह से स्पोट सिस्टम मौंजूद है या फिर वहां के समाज ने इसको स्वीकार कर लिया है ।लेकिन हमारे यहां कुछ भी अनुकुल नही है आज भी अकेले जीवन जीने के बारे में सोचा नही जा सकता है ऐसे हलात में इस बिमारी का क्या इलाज हो सकता है। पुरुष इस मामले में इनता कमजोर है कि बहुत कुछ चाह कर भी बहुत कुछ नही कर पाता है। समाज के बदलाव को अभी भी वह पूरी तौर पर आत्मसात नही कर पाया है, महिलाओ के साथ रिश्ते बनाने में अभी भी वह सहज नही हो पाया है। साथ काम करते करते कब दोस्ती प्यार में बदल जाता है पता ही नही चलता है।हलाकि समय समय पर समाज इस बिमारी का इलाज खुद करता रहता है लेकिन इसके इलाज की प्रक्रिया मनुष्य के निर्माण के साथ शुरु हुआ है वह आज भी जारी है ।और लगता है जब तक मनुष्य है खोज जारी रहेगा।बेहतर है इस रिश्ते को अपने अंदाज में चलने दिजिए जीवन बहुत किमती है फिर यह जीवन मिलेगा की नही किसी ने नही देखा है ।ऐसे में इस बहुल्य जीवन को महज रिश्ते में आ रहे बदलाव के कारण खत्म कर ले जायज नही है ।महिला और पुऱुष दोनो को यह समझने की जरुरत है जीवन मिला है कुछ करके जाओ, प्यार किया है तो निभाने की कला सीखो और कोई रिश्ता टूटने है तो नये रिश्ते बनाने की कला सीखे इसी में बेहतरी है</a></div>
</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-4641031369545252842012-05-22T15:58:00.000+05:302012-05-22T15:58:13.482+05:30बाजार में बिकने को सजधज कर तैयार हूं कोई खरीदोगे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
पढाई पूरी करने के बाद हमारे पास कैरियर को लेकर कई विकल्प थे राजनीत,एनजीओ,और फिर सरकारी नौकरी के लिए जोर तोड़ करना।मैने सबसे पहले निर्णय लिया कि दिल्ली छोड़ना है गांव जाना है फिर कैरियर के बारे में सोचा जायेगा।दिल्ली से लौटने के बाद खेती करना शुरु किया और पूरी मन से ,नगदी फसल में ईख और गेहू की खेती से शुऱुआत किया और धीरे धीरे खेती के क्षेत्र में कई सफल प्रयोग भी किये। आज भी उसके लिए समय निकाल लेता हूं, लगता है देश के निर्माण में मेरी सार्थक भूमिका यही है।धीरे धीरे खेती में मन लगने लगा लेकिन कुछ कुछ खाली खाली पन महसूस होता रहता था। खासकर जब कोई परेशान व्यक्ति न्याय के लिए चौखट पर आता था या फिर कही अन्नाय होता दिखता था ।ऐसे में मुझे महसूस हुआ कि इतनी पहुंच होनी चाहिए कि सिस्टम को सही काम करने पर मजबूर कर सकू और इसी उम्मीद से पत्रकार बना ।तीन वर्षो तक आंचलिक पत्रकारिता किया और उस पूरे इलाके में पत्रकारिता का मायने बदल दिया। राजद के शासनकाल के बावजूद प्रशासन से लेकर विधायक और मंत्री तक हमारी बात को बड़ी अहमिएत देते थे। एक तो बेवाक लेखनी और दूसरा दिल्ली विश्वविधालय का जलवा।लेकिन यह समय ज्यादा दिनो तक नही चल सका औऱ एक स्टोरी ने मेरी पूरी भूमिका को ही बदल दिया। मैंने एक स्टोरी लिखा किस तरीके से रोसड़ा प्रखंड के एक गांव में आये दिन जंगली भेड़िया बच्चे को मार रहा है और यह सिलसिला पिछले पाच वर्षो से चल रहा है। स्थिति यह हो गयी थी कि गर्भवती महिलाये बच्चे देने का समय आने पर अपने मायके चली जाती थी फिर भी पचास से अधिक बच्चे जंगली भेड़िया का शिकार हो चुका था। इस स्टोरी के छपने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम उस गांव के दौरे पर आयी ।जिस दौरान बिहार के बड़े पत्रकार गुंजन सिन्हा जी से मुलाकात हुई और उन्होने मुझे ईटीवी में काम करने को कहां ।मेरी पहली पोस्टिंग दरभंगा हुआ फिर भी खेती के साथ साथ पत्रकारिता भी जारी रहा और मुझे गर्व है कि दरभंगा जैसे जगह में जहां घर घर में बड़े बड़े पत्रकार है आज भी दरभंगा छोड़ने के चार वर्ष बाद भी गांव गांव से फोन आता है और आम लोग शिद्दत से याद करते है और पत्रकारिता की दुहाई देते हैं।आज भले ही मैं पटना में सीएम से लेकर डीजीपी तक को कभर कर रहा हूं लेकिन लगता है जैसे मेरी हैसियत कोठे के बाई से भी बदतर है हर कोई बोली लगाने को तैयार रहता है मानो बजार में मेरी यही पहचान हो।कसवे से राजधानी तक के इस सफर में मैं तो पत्रकार बन गया, लेकिन पत्रकारिता वही छूट गयी देखते है इस द्वव्द के साथ कब तक जीते हैं।<br />यही हलात है कुछ समझ में नही आ रहा है<br /></div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-76818747913612551422012-03-30T19:19:00.000+05:302012-03-30T19:19:24.121+05:30बदलते बिहार की यह एक तस्वीर है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="statusUnit"><div class="tlTxFe"><div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_4f75b98f00dda4290823829">दो तीन दिनों पूर्व बिहार के मधुवनी के रहने वाले राज झा का फेसबूक पर एक मैंसेज आया,उनका कहना था कि आपका चैनल रोजना देखते है चैनल देखने से लगता है, कि बिहार में कोई खास बदलाव नही आया है। मैं बिहार आना चाहता हूं क्या वाकई में स्थिति ऐसी ही है आप मुझे बेहतर सलाह दे।बिहार से बाहर बिहार के बारे में जो छवि मीडिया ने बनायी है उसमें इस तरह का सवाल पुछना लाजमी है। लेकिन इनके सवाल के जबाव देने के लिए में बेह<span class="text_exposed_show">तर समय का इन्तजार कर रहा था।शायद आज उनके सवालो का जबाव बेहतर तरीके से दिया जा सकता है,मेरा मानना है कि देश में आज नीतीश कुमार के टक्कर का राजनेता नही के बराबर है। बिहार को बदलने के प्रति गम्भीर भी है लेकिन जो समाजिक आर्थिक और प्रशासनिक ढंचा है उसमें बदलाव के लिए जो जजवा चाहिए उसकी कमी नीतीश कुमार में जरुर है। लेकिन इसके लिए सिर्फ नीतीश कुमार को ही जिम्मेवार नही ठहराय सकता है।एक घटना से आप बिहार के बदलाव को बेहतर तरीके से समझ जायेगे।तीन दिन पहले जमुई में रोड लुटेरे ने एक परिवार को लूट लिया और उसमें सवार एक महिला के साथ बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी गयी।पुलिस जांच में ये बाते सामने आयी है कि पति ने ही उस महिला की हत्या करायी है, अपने प्रेमी को पाने के लिए।ऐसा हो भी सकता है लेकिन आप देखिए जिस दिन यह घटना घटी उस दिन घटना के समय गांड़ी में साथ चल रहे मृतका की 8वर्ष की बेटी ,भाई पति और भाभी चीख चीख कर रात भर इस थाने से उस थाने और एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में दौड़ती रही लेकिन किसी पुलिस ने उसकी बात तक नही सुनी। मीडिया में जब खबर चली तो 14घंटे बाद प्राथमिकी दर्ज हुई ,बिहार के किसी भी अखबार ने इस खबर को प्रमुखता नही दिया लेकिन जैसे ही ये बाते आयी कि इस घटना में पति शामिल है खबर प्रथम पेज पर छपने लगा कहने का मतलब यह है कि यहां लोकतंत्र के चारो स्तम्भ नीतीश वंदना करने में लगा है फेस बचाने के लिए किसी भी हद तक सौदा कर सकता है अब आप खुद तय करे,यह महज उदाहरण है लेकिन इश एक उदाहरण से बिहार के बदलाव को समझा जा सकता है रही बात मेरे चैनल द्वारा खबर दिखाये जाने की तो इस पर मेरी कोई प्रतिक्रिया नही होगी।</span></div></div></div><span class="UIActionLinks UIActionLinks_bottom" data-ft="{"type":"20"}"><button class="like_link stat_elem as_link" data-ft="{"type":22}" name="like" title="Like this item" type="submit"><span class="default_message">Lik</span></button></span></div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-18181370645778929602012-03-03T11:16:00.000+05:302012-03-03T11:16:14.633+05:30क्या कर रहे हो मित्र<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">मुझे अब अपने प्रोफेसन से शर्म आने लगा है,समझ में नही आ रहा है की इस प्रोफेसन का क्या होगा, हमलोगो ने तो इस प्रोफेसन के स्वर्णिम काल का आनंद ले लिया। दुर्भाग्य यह है कि नये लड़के जो इस प्रोफेसन से जुड़ रहे हैं पता नही किस दुनिया में रहते हैं।उन्हे यह समझ में क्यो नही आ रहा है कि पत्रकारिता विश्वास के बुनियाद पर है ठिका है। विश्वास खो दिये तो फिर इस प्रोफेसन से जुड़े लोगो का क्या होगा, लगता है इस और कोई सोचता ही नही है।राजनेता और मीडिया के व्यापार करने वाले उघोगपति भी तो यही चाह रहे है और हमलोग उसके गिरफ्त में फसते जा रहे है, हमारे पास क्या है जनता का विश्वास अगर वही खत्म हो गया तो फिर मेरा हाल क्या होगा सोचिए मित्र।अब जरा कल ही की घटना को ले राज्य के एक बड़े अग्रेजी दैनिक अखबार के बड़े पत्रकार ने लिखा की तीन सौ रुपये के खातिर ठिकेदार नें एक लड़के का दोनो हाथ काट दिया खबर छपते ही हंगामा हो गया।मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश दे दिया विधानसभा और विधानपरिषद में विपंक्षी ने जमकर हंगामा मचाया और उसके बाद तो भिजुउल मीडिया ने जो खेल खेला वह तो आप लोग देखे ही होगे।मैंने इस खबर को लेकर संदेह व्यक्त किया लेकिन किसी ने मेरी नही सुनी और उसके बाद शाम में जब सच सामने आये तो खबर चल रही है अपना खंडन क्यो रहे इस दंभ में कोई भी खबर रोकने को तैयार नही हुआ।मामला यह है कि अरवल निवासी रामसागर चन्द्रवंशी का 19फरवरी को दानापुर में ट्रेन से गिरने के दौरान घायल हो गया था।दानापुर जीआरपी ने घायल चन्द्रवंशी को बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच में भर्ती कराया स्थिति में सुधार होने पर चन्द्रवंशी अस्पताल से भाग खड़ा हुआ और फिर गांव पहुंच कर इस तरह का खेल रचा गया और इसके झांसे में मीडिया आ गया क्यो कि हमारे लिए सरकार को नीचा दिखाने का इससे बेहतर मौंका और क्या हो सकता था।</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-59891427783662801182012-03-01T22:37:00.002+05:302012-03-01T22:40:57.534+05:30ससुरा नलायक पुरुष कौम कब सुधरेगा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="statusUnit"><div class="tlTxFe"><div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_4f4fabe3e87169327481098">पुरुष और महिलाओ के रिश्ते को लेकर आये दिन चर्चाय होती रहती है निशाने पर पुऱुष ही होता है,चलिए आज आप सबो से कुछ अलग अंदाज में बात करते है उम्मीद है मित्र आप दिमाग से नही दिल से जबाब देगे।पुरुष आलसी होता है,दूसरे का खयाल नही रखता है,घर का दबाव नही रहे तो पूरे दिन अवारागर्दी करते रहेगा,घर में माँ और पत्नी के एहसान तले दवा रहता है, तो घर से बाहर लड़कियो पर डोरा डालता रहता है,कानून और समा<span class="text_exposed_show">ज का भय नही हो तो राह चलते लड़कियो के साथ किसी भी हद को जाने में देर नही लगायेगा,बंधन उसे पसंद नही है ,महिलाओ के मामले में पूरी तौर पर फ्लट करने में विश्वास रखता है, घर से बाहर निकलते ही दूसरे पर डोरा डालना शुरु कर देता है,महिलाओ के साथ इसका व्यवहार इस कदर होता है जैसे कोई उपभोग की वस्तु हो इनते बूरे होते है पुरुष। अब आप बताये इस पुरुष रुपी समस्या का समाधान क्या है। हजारो वर्षो के दौरान हमारे पूर्वजो ने जो समाज का निर्माण किया या फिर परिवार जैसी संस्था बनायी ,जिसके बारे में महिलाये कहती है कि परिवार जैसी संस्था ने महिलाओ के शोषण को और बढा दिया।अब आप ही बताये कौन सी संस्था होनी चाहिए क्यो कि बाकी और जो भी संस्था है उसमें पुऱुष का तो बल्ले बल्ले है ।पुऱुष तो चाहता ही कि जीवन में जीतनी महिलाए मिले बेहतर है बच्चा पैंदा करे और महिलाये उसका लालन पालन करे और सड़क पर पुरुष आवारा कि तरह डोरा डालते रहे।यह सच एक पुरुष के रुप में मैं पूरे होशो हवास में स्वीकार कर रहा हूं और अब आप बताये इस पुऱुष रुपी समस्या का समाधान क्या हो सकता है </span></div></div></div><span class="UIActionLinks UIActionLinks_bottom" data-ft="{"type":"20"}"><button class="like_link stat_elem as_link" data-ft="{"type":22}" name="like" title="Like this item" type="submit"><span class="default_message">Like</span></button> · </span></div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-16742111937994725252012-01-05T23:41:00.000+05:302012-01-05T23:41:34.455+05:30मुझे कुछ कहना है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">किसी खबर के सिलसिले में फोनिंग चल रहा था ।इस दौरान एक अपरिचित नम्बर से लगातार फोन आ रहा था, जैसे ही फोनिंग खत्म हुआ उस नम्बर पर फोन किया।फोन के रिसिव होते ही सामने वाली बरस पड़ी ।जब तक कुछ समझ पाते जो कुछ नही भी बोलने चाहिए बोलती चली गयी पुरुष होता ही ऐसा है ।एक स्वर से बोली जा रहा थी अचानक आवाज पहचान में आ गयी अरे कैसी हो इतने दिनो बाद मेरा नम्बर कैसे मिला। अच्छा तो अब तुम मुझे पहचाने ।मैने कहा अरे बाबा ऐसी कोई बात नही है फोनिंग चल रहा था इसलिए फोन काट कर बात नही क्या छोड़ो बात क्या है।देखो आदित्य आज कल मेरे साथ बड़ा ही बुरा वर्ताव कर रहा है। क्यो, ऐसा क्या हो गया फोन करो तो बात नही करता मेरा ख्याल नही रखता है घर में अकेली बैठी बोर होती रहती हूं आफिस फोन करु तो डपट देता है। तुम्हे तो वह दिन याद होगा किस तरह कांलेज में मेरे लिए पलके बिछाये रहता था अब स्थिति यह है कि हमसे ठिक से बात तक नही करता है ।पाच मिनट में आदिय्त को पूरी तरह धो डाली लगा ऐसा जो आदित्य जैसा बूरा इंसान इस जहां में कोई और नही है।जब भी आदित्य का पंक्ष रखना चहता था कि वह भड़क उठती थी और बस एक बात सारे पुरुष एक जैसे होते है।मैने प्यार से बोला देख यह सिर्फ तुम्हारी समस्या नही है यह समस्या पूरी आंधी आबादी की है ।देख अपना बचपन याद कर मा पापा के सबसे लाडली तुम रही होगी पूरे परिवार का केन्द्र विन्दु रही होगी।जैसे जैसे बड़ी हुई चाहने वालो की लम्बी सूची तैयार हो गयी होगी ।घर के नौकर से लेकर ड्रायवर औऱ फिर कोचिंग जाने के रास्ते तक पलके बिछाये लोग तुम्हारा इंन्तजार करते हो यह सिलसिला वर्षो चली होगी ।फिर कांलेज आय़ी तो प्रो0 से लेकर सीनियर औऱ बेचमेट के ऐटेशन में रही फिर जीवन में आदित्य की तरह चाहने वाले कई लोग आये आज भी वो लोग तुमको उसी तरह पलके बिछाये याद करते होगे।लेकिन शादी के बाद धीरे धीरे चाहने वालो की फेहरिस्त छोटी होने लगी होगी । औऱ एक समय बाद सिर्फ तुम बच जाती हो। यह हर किसी के जीवन में आता है ।हर लड़किया अपने दायरे में सेलिब्रेटी होती है । इस सेलिब्रेटी वाली सोच से बाहर निकलने की जरुरत है दुनिया फिर विंदास है ।इतना कहना था कि वह पूराने रंग में आ गयी और फिर शुरु हो गयी दिल्ली विश्व विधालय के कैंटीन की कहानी जहां पहली बार आदित्य से मिली थी </div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-36494744932122744652011-08-04T19:51:00.000+05:302011-08-04T19:51:40.000+05:30माओवादियो के अगले निशाने पर है मीडियाकर्मी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">बिहार के सासाराम जिले में माओवादियो ने तीन ग्रामीणो को शनिवार की शाम को हत्या कर दिया था हलाकि खबर छह लोगो के मारे जाने की आयी हुई थी।पूरी रात खबर को लेकर परेशानी रही लगातार पुलिस मुख्यालय और अपने सासाराम रिपोर्टर से बात होती रही।सुबह सुबह सासाराम रिपोर्टर का फोन आया भैया पहाड़ी पर पहुंच गये है आगे जाने से पुलिस रोक रही है। हलाकि रात में ही मालूम हो गया था पुलिस किसी दूसरे रास्ते से घटना स्थल पर जाने वाला है। मैने अपने रिपोर्टर को नही जाने को कहा लेकिन पत्रकारिता के प्रतिस्पर्धा के कारण जंगल में जाना पड़ा। उसके प्रवेश करते ही सूचना मिली की सभी पत्रकारो को माओवादी अपने साथ ले गया है। डर इसी को लेकर था कि खबर को लेकर कही ज्यादा नराजगी होगी तो दुरव्यवहार कर सकता है ।लेकिन जो कुछ भी हुआ वह अच्छा ही हुआ कम से कम से तो पता चला की आखिर माओवादी मीडियाकर्मियो के बारे में क्या सोचते हैं।<br />
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जंगल में थोड़ी दूर जाने के बाद बुधुवाकला गांव आया उभर खाबड़ सड़क पर रेगते हुए मीडियाकर्मियो की बाईक जैसे ही गांव में प्रवेश किया कि पुलिस का वर्दी पहने तीन चार लोग मीडियाकर्मियो को चारो और से घेर लिया और फिर शुरु हुआ माओवादियो का जन आदालत दस करीब मीडिया वाले थे सभी को एक चबुतरानुमा जगह पर बिठाया गया और चारो तरफ से हथियार बंद दस्ता खड़ा हो गया जिसमें महिला दस्ता भी शामिल थी।इस बीच वायरलेस पर लगातार संदेशो का आदान प्रदान जारी रहा यह सब चल ही रहा था कि अचानक दस्ता के सभी सदस्य एलर्ट हो गया थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति जिसे आगे पीछे अत्याधुनिक हथियार से लैश चार पाच लोग चल रहे थे सामने आया और सामने लगे बिछावन बैंठ गया उसके बाद शुरु हुई सुनवाई आपका क्या नाम है कितने दिनो से पत्रकार है किस किसी मीडिया हाउस से जुड़े हुए हैं आपको घटना की जानकारी कौन देता है इन सब सवालो के बाद शुरु हुआ मौलिक अधिकार क्या है सम्पत्ति का अधिकार किस तरह का अधिकार है जनता का मौलिक कर्तव्य क्या है, संविधान से आम नागरिक को क्या अधिकार मिला है। गरीबो के हक के लिए संविधान में क्या क्या प्रावधान है।भगत ही शहीद है तो फिर हमे उग्रवादी क्यो कहते है।मनमोहन सिंह कहते है कि देश में आतंकवाद से बड़ा खतरा उग्रवादी है क्या उग्रवादी देश के नागरिक नहीं है गरीबो की लड़ाई लड़ना देश द्रोह है।<br />
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अन्ना की लड़ाई में गरीब लोगो को कोई स्थान नही है इस तरह के कई सवाल जन अदालत के दौरान माओवादी नेता ने मीडियाकर्मियो से किया सवाल जबाव का यह सिलसिसा लगभग चार घंटे तक चला और उसके बाद अंत में कहा कि जल्द ही आप लोगो के खिलाफ भी अभियान शुरु होने वाला है क्यो कि आपका आचरण गरीब विरोधी होता जा रहा है मरने के लिए तैयार रहे कुछ ही दिनो में इस तरह का फरमान जारी होने वाला है क्यो कि आप सरकार पुलिस और दमन करने वाले अधिकारियो और नेता के जुवान हो गये हैं। गरीबो की बात दिखाने और छापने के लिए आपके पास जगह नही है। अपने प्रबंधको को यह जानकारी दे दे और इस तरह जगंल मे मत आया करिए क्यो कि आप ही लिखते है कि जगंल में माओवादी रहते है और वह उग्रवादी है ।लेकिन वह किस हालात में रहते है उसे लिखने और दिखाने की जरुरत नही है आप जनता का विश्वास खोते जा रहे है जो आपकी पूंजी थी। यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच काफी संख्या में सामने से गाँव वाले आते दिखायी दिये जैसे जैसे वे करीब आ रहे थे माओवादी वहां से निकलने लगे जब वे लोग पास आसे तब तक सभी निकल गये।गांव वालो ने मीडियाकर्मियो से पुंछा आपके साथ यह मारपीट किया है गांव वाले काफी गुस्से में थे लेकिन मीडियाकर्मियो ने किसी वारदात से इनकार किया तो वे लोग शांत हुए और कहने लगे मीडिया वाले ही तो मेरा हाल जानने आते है औऱ हमलोग किस हलात में है दुनिया को बतायेगे उसके साथ बदसुलिकी बर्दास्त नही किया जायेगा।गाँव वालो ने सभी मीडियाकर्मियो को पहाड़ से उतारा और उसके बाद सभी को पहले चीनी के साथ पानी पिलाया और उसके बाद भोजन कराकर पहाड़ी के नीचे छोड़ दिया।पूरी घटना के लिखने के पीछे मेरी मंशा यह है कि प्रबंधक कुछ भी शर्ते लागू करे हमारी जो जबावदेही है उससे मुख नही मोड़े नही तो एक बार जनता के नजर से गिर गये तो फिर कोई पुछने वाला नही रहेगा। मेरी पूंजी है जब भी कैमरा या कलम उठाये अंतिम आदमी को सोचकर।<br />
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</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-11743079229209541942011-05-19T22:46:00.000+05:302011-05-19T22:46:02.277+05:30आज खुद सुजाता टीवी और अखबार की सुर्खिया बनी है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
कल तक जो खुद हेडलाईन बनाती थी आज वह खुद हेडलाईन बनी हुई है।बात हम पटना के सुजाता की कर रहे हैं जिन्हें मौंत के मुंह से बाहर निकालने की क्रेडिंट लेने की होड़ चैनलो में मची हुई है।लेकिन खोजपूर्ण पत्रकारिता का दंभ भरने वाली मीडिया सुजाता के इस हालात के पीछे के सच को खोजने में दिलचस्पी क्यो नही दिखा रही है।<br />
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आज से सात आठ वर्ष पहले सुजाता पटना से प्रकाशित होने वाले एक अखबार में पत्रकार हुआ करती थी।अपने पिता के गुम होने और माँ के साथ साथ दो भाई के सिजोफेमिया से ग्रसित होने के बावजूद दोनो बहने परिवार को बचाने के जद्दोजहन से जुझ रही थी।सब कुछ ठिक ठाक चल रहा था माँ को पिता की जगह सरकारी नौकरी दिलवाने में भी कामयाब रही। लेकिन सुजाता के साथ ऐसा क्या हुआ कि वो भी अपने को काली कोठरी में कैंद कर ली, इसका जबाव तो उसके साथ काम करने वाले पत्रकार ही दे सकते है।लेकिन आज स्थिति यह है कि पटना का कोई भी पत्रकार यह कहने को तैयार नही है कि सुजाता मेरे साथ काम करती थी।इसके साथ काम करने वालो में एक दिल्ली में परचम लहराह रहे है कई ऐसे है लोग है जो महिला संशसक्तिकरण और पत्रकारिता में समाजिक न्याय की बात करते हुए उसकी दुकान चला रहे हैं ।लेकिन सुजाता का नाम सुनते ही पसीने छुटने लगते है।<br />
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जो बाते सामने आ रही है वह यह है कि सुजाता के साथ काम करने वाला कोई साथी पत्रकार ने ही धोखा दिया ,प्यार में धोखा दिया सुजाता उस पर इतना विश्वसास करने लगा था कि अपनी छोटी बहन के विरोध के बावजूद उसे अपने घर में रहने की जगह दी। अपने पैसे से बाईक खरीद कर दिया लेकिन कुछ दिनो के बाद उसे छोड़कर वह लड़का चला गया कहने वालो का कहना है कि अभी वह जमशेदपुर में पत्रकार है।लेकिन इतना सब कुछ ओपेन होने के बावजूद सुजाता को लेकर खोजपूर्ण पत्रकारिता नही हो पा रही है।उसकी माँ और छोटी बहन पिछले कई वर्षो से गायब है कहा गया कोई निठारी जैसी घटना तो पटना में नही हो रही है। इस तरह के कई सवाल खड़े हो रहे है लेकिन सभी के कलम और कैमरे में मानो जंग लग गया है।<br />
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नयी पीढी के पत्रकार कुछ अपने बल पर मदद का प्रयास कर रहे हैं।वह भी कब तक चलता है पाता नही, इस अभियान में शामिल एनजीओ के लोग है य़ा फिर वैसे लोग जो समाज सेवा का स्वांग रचते है आज वे सभी अपनी कमित मांग रहे हैं।मुझे लगता है कि हमारी स्थिति गिद्ध से भी बदतर हो गयी है इतने प्रदूषण के बावजूद गिद्ध अभी भी अपने विरादरी का माँस नही खाता है।<br />
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</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-63804839893190584272011-04-08T13:08:00.000+05:302011-04-08T13:08:46.939+05:30जेपी, वीपी और अब अन्ना की बारी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">भ्रष्टाचार को लेकर देश में आजादी के बाद सबसे बड़ी लड़ाई जय प्रकाश नरायण के नेतृत्व मे लड़ी गयी थी और उसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स मसले पर पूरे देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ गोलबंद किया था और अब अन्ना मैदान में हैं।दोनो आन्दोलन का हस्र सामने है।जय प्रकाश नरायण के नेतृत्व में लड़ी गयी लड़ाई का परिणाम 1977में काग्रेस की पराजय के रुप में सामने आयी। और वीपी सिंह ने अभूतपूर्ण बहुमत के साथ देश का बागडोर सम्भालने वाले मिस्टर किलिंन राजीव गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया।दोनो आन्दोलन का एक परिणाम समान्य रहा वह है देश में सत्ता का परिवर्तन।लेकिन दोनो ही बार सत्ता परिवर्तन का प्रयोग पूरी तौर पर सफल नही हो सका। लेकिन एक सत्य जो इस दोनो जन आन्दोलन के बाद सामने आयी वह यह था कि इस व्यवस्था में बहुत कुछ करने की गुनजायस नही है।जेपी ने बाहर रहते हुए सत्ता को जनता के हित में संचालित करने का प्रयास किया। उर्म के साथ साथ नेताओ के आपसी खीचतान के कारण जेपी के अभियान को बड़ी सफलता नही मिली।लेकिन सत्ता की राजनीत से इतर जेपी के अनुयाईयो ने समाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में हो या फिर पत्रकारिता का क्षेत्र हो या फिर ब्यूरो क्रेसी का क्षेत्र हो आज उनमें से कई आदर्श पुरुप है। लेकिन जिसने भी राजनीत के माध्यम से व्यवस्था बदलने की बात की वे सभी के सभी असफल हुए और आज वे कही से भी जेपी के आदर्शो पर खड़े नही उतर रहे हैं। ऐसा नही है कि उनमें जेपी के आदर्शो के प्रति समर्पन नही है लेकिन विधायक और सांसद बने रहने के लिए जो कुछ भी खोना पड़ता है उसके बाद उनके पास खोने के लिए कुछ भी नही बचता है।<br />
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वीपी सिंह ने जेपी और गांधी के प्रयोग को लोकतांत्रिक व्यवस्था के माध्यम से मजबूत करने का प्रयोग किया। प्रयोग कितना सफल रहा यह तो विवाद का विषय हो सकता है। लेकिन मुझे याद है 1991 का वह आम चुनाव रामविलास पासवान हमारे यहां से चुनाव लड़ रहे थे ।मंडल कमीशन के दौरान रामविलास पासवान के भाषण से खास कर सर्वण मतादात खासे नराज थे।<br />
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रामविलास पासवान की जीत के लिए सर्वण मतदाताओ का मत आना जरुरी था।इसके लिए वीपी सिंह की सभा राजपूत बहुल्य इलाके में आयोजित की गयी जहां वीपी सिंह ने खूले मंच से कहा कि संकट की घड़ी में रामविलास छोटे भाई की तरह हमारे पीठ पर खड़ा रहा जिस तरह राम के साथ लक्ष्मण खड़े हुए थे।रामविलास की जीत में आप सबो की भागीदारी जरुरी है छोटे भाई की भूमिका में इनका कर्ज मेरे उपर है। इतिहास गवाह है कि हमलोग वफादारी को जबाव सर कटा कर देते आये है ऐसे में रामविलास को वोट देना अपनी हजारो वर्ष पूरानी रिवाज को फिर से स्थापित करने से जुड़ा है।<br />
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लोगो ने जमकर वोट किया और रामविलास पासवान रेकर्ड मत से चुनाव जीते।लेकिन इसके लिए वीपी सिंह को बहुत कुछ खोना पड़ा और यही कारण था कि सासंद उन्हे प्रधानमंत्री बनाने के लिए कुर्सी लेकर खोज रहे थे और बीपी सिंह दिल्ली के रिंग रोड पर चक्कर लगा रहे थे।आखिर में इंन्द्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री बने थे।<br />
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यही चीज समझने की है ,अन्ना के आन्दोलन का मैं पूरी तौर पर समर्थन करता हूं लेकिन भ्रष्टाचार को कानून के सहारे खत्म किया जा सकता है इस विचार से मैं सहमत नही हूं।साथ ही अन्ना और उनके समर्थन में अनशन पर बैंठे लोगो से मेरी गुजारिस है कि स्टेडियम या फिर टीवी स्क्रिन पर मैंच देखना और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना या फिर मैदान में स्टेन और ब्रेट ली का सामना करते हुए बल्ले से जबाव देना। दोनो में जो फर्क है उन्हे समझने की कोशिस करे। <br />
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</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-825395114677771942011-03-27T16:50:00.000+05:302011-03-27T16:50:02.851+05:30बिहार की जय हो, नीतीश की जय हो बिहार के पत्रकारो की जय हो<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgR4es1ePwTFpZJLFCXLBV5PRcb1LLi8fPF9V-aXVL3guy69W9TZx8FJ1itJ306Ho01h-OeLc8vTqxOrM7Lsks68uZ3GPPFZZsWG85n7p9Ontne0nYgy7IEJG1tCSc2AypYO8dJQP8VuBZ_/s1600/images%255B2%255D.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="0" r6="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgR4es1ePwTFpZJLFCXLBV5PRcb1LLi8fPF9V-aXVL3guy69W9TZx8FJ1itJ306Ho01h-OeLc8vTqxOrM7Lsks68uZ3GPPFZZsWG85n7p9Ontne0nYgy7IEJG1tCSc2AypYO8dJQP8VuBZ_/s200/images%255B2%255D.jpg" width="0" /></a></div>बिहारी होना मेरे लिए कल भी गर्व की बात थी और आज भी गर्व की बात है लेकिन एक फर्क जरुर आया है पहले दबंगई और पढाई के बल पर लोगो को स्वीकार करने पर विवश करना पड़ता था लेकिन आज पूरे देश में सर्वसाधारण के बीच बिहारी होना स्वाभिमान की बात है आज बिहारी गाली नही गर्व की बात है।इसमें कोई दो राय नही की बिहार की छवि बदलने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अहम भूमिका रही है। लेकिन बिहार के छवि को बदलने मे बिहार की मीडिया की भूमिका को भी नकारा नही जा सकता है।सूबे से जुड़ी नकारात्मक खबड़े या तो डस्टबिन में डाल दिये जाते हैं या फिर ऐसी जगह प्रकाशित किया जाता है की लोगो की नजर पहुंच नही पाये लेकिन इसका यह मतलब भी नही है कि बिहार मे बदलाव नही आया है।<br />
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बिहार अपना 99वर्षगांठ मना रहा है मुख्यमंत्री ने इस वर्षगांठ को बिहारी स्वाभिमान से जोड़ा है और इसका प्रभाव भी दिख रहा है लोग काफी उत्साहित है और देश विदेश से बिहार दिवस मनाये जाने की खबर आ रही है।बुद्दवार को रात के करीब 11बजे न्यायिक सेवा से जुड़े एक अधिकारी का फोन आया ये अधिकारी नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते हैं।हाल चाल से बाते शुरु हुई और बाते बढते बढते बिहार दिवस पर केन्द्रीत हो मैंने कहा सर विधानसभा सत्र के कारण गांधी मैंदान जाने का मौंका नही मिला है।उन्होने बड़ी आहतमन से कहा संतोष जी मैं मानता हूं कि आप बेहद संवेदनशीन पत्रकार है देखिये इन अधिकारियो को अपना कार्यलय को रोशनी से नहा दिया है और बगल के गांधी संग्रहालय में अंधेरा छाया है क्या गांधी के बगैर बिहार का इतिहास कभी पूरा हो सकता है।कुछ किजिए मैंने कहा सर कल मेरा रात्री डियूटी है कोशिस करेगे इस खबर को प्रमुखता से चलायेगे।।कल होकर भारत आस्ट्रेलिया के बीच मैंच था लेकिन मैंच के बाद बिहार दिवस का हाल जानने निकला देख कर काफी दुख हुआ गांधी संग्रहालय को कौन कहे चंद कदम की दूरी पर स्थित गोलघर और डाँ राजेन्द्र प्रसाद के समाधि स्थल पर एक दीप भी नही जल रहा था जबकि सामने में स्थित आयुक्त कार्यलय,डीएम आवास दुल्हन की तरह सजा हुआ था।<br />
खबर कर ही रहे थे कि स्कूली छात्रो का एक ग्रुप बाईक से काफी तेजी से पास से गुजरा लेकिन थोड़ी दूर जा कर वे लोग फिर से लौंट कर मेरे सामने आये और पुंछा क्रिकेट मैंच पर प्रतिक्रिया ले रहे हैं मैने कहा नही बिहार दिवस पर हमारी ऐतिहासिक घरोहर किस तरह उपेक्षित है उस पर स्टोरी बना रहे हैं सभी के सभी छात्र बाईक पर से उतर गये और पास आकर बोले सर जी अभी तो हमलोग बिहार दिवस के समापन समारोह में हिस्सा लेकर लौंट रहे हैं लेकिन आपने तो ऐसे सच से रुबरु करा दिया कि बिहार दिवस का मजा ही किरकिरा हो गया।सब लड़को ने इस मसले पर जबरदस्त बाईट दिया और अंत में एक लड़के ने जो कहा तो मेरा होश ही उर गया।सर जी आप जो खबर कर रहे हैं वह चलेगा की नही यह तो मैं नही जानता लेकिन आपने जो मुद्दा उठाया है वह वाकई गम्भीर है और आपके गम्भीरता के हम कायल है। इस तरह से सोचने वाले लोग अभी भी पत्रकारिता में हैं मेरे लिए गर्व की बात है। इतना कह कर वह लड़का जिसका उर्म महज 18साल होगा बाईक से चलता बना। <br />
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</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-20269733785497899602011-03-03T11:10:00.000+05:302011-03-03T11:10:32.161+05:30कोडरमा पुलिस ने निरुपमा मामले मे क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट को सौपी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEilU-EoHvWgfIKRKd-m8Co0horYC3jSA3Ai1xoU0WSycl0bQHhjIKOhK7uABaXlEJrLi9T5rT_tjRC5cqiX07fXHqOBfOctdeoEuFkA0L8cd_Lk-J88UDpHSgk1PbIWTJWThLfT0Isyz8cb/s1600/Justice-for-Nirupama-Candle-March-1-300x225%5B1%5D%5B1%5D.jpg" /></div><br />
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मित्रों खबरो की भूख ने मुझे ब्लांग से जुड़ने को मजबूर किया था संस्थागत मजबूरियो के काराण कई बार एसहास होता था कि हमलोग खबरो के साथ न्याय नही कर पा रहे हैं ।या फिर जिस उद्देश्य से मीडिया से जुड़े हैं वह कही समय के साथ साथ खोता जा रहा है और जिस अंतिम व्यक्ति की आवाज बनने की सोच को लेकर मीडिया से जुड़ा उसके साथ न्याय नही कर पा रहे हैं।लेकिन ब्लांग के लगभग दो वर्ष के सफर के बाद मुझे बेहद सकून महसूस हो रहा है कि मैं अपने मकसद में बहुत हद तक कामयाब रहा खासकर निरुपमा पाठक के मौंत मामले में जिस तरीके से मीडिया के धाराओ के साफ विपरित निरुपमा के मौंत को लेकर जारी मीडिया ट्रायल को तूती की आवाज के माध्यम से कुंद किया उसको लेकर आज मुझे गर्व महसूस हो रहा है।<br />
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आज सभी चुप हैं क्योकि पुलिस ने भी मेरी थ्योरी को ही मौहर लगायी है। पुलिस ने अपने क्लोजर रिपोर्ट में निरुपमा के आत्महत्या की बात लिखी है जिसके लिए निरुपमा के माँ,पिता और भाई के साथ साथ प्रेमी प्रियभांशु को जबावदेह ठहराया है।पूरा अनुसंधान एम्स के डाँक्टर के रिपोर्ट के साथ साथ हैदराबाद के फौरेन्सिक लैब के रिपोर्ट पर आधारित है जिसमें सोसाईड नोट निरुपमा के द्वारा ही लिखे जाने की बात जांच में सामने आयी है।साथ ही एम्स के डांक्टरो की संयुक्त जांच टीम ने निरुपमा की मौंत को आत्महत्या माना है।हैदारबाद लैब ने निरुपमा के लैपटोप के साथ मोबाईल के उन तमाम मैसेज को भी समाने लाया है जिसे प्रियभांशु ने बड़ी सावधानी से उड़ा दिया था।पुलिस इन सभी तथ्यो के आधार पर धारा 306 के तहत कैस को सही पाया है ।इस मामले में दस वर्षो तक की सजा का प्रावधान है।<br />
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पाखंडी पंडित परिवार को जितनी सजा मिलनी थी वह मिल चुकी है और अब बारी प्रियभांशु एण्ड कम्पनी की है जिन्होने इस पूरे प्रकरण के दौरान प्रियभांशु के बचाव में अनर्गल अलाप करते रहे।पुलिस के जाँच में जो बाते सामने आयी है उनमें से अधिकांश तथ्यो का मैंने खुलासा अपने ब्लांग के माध्यम से पहले ही कर दिया था।लेकिन पुलिस ने उन बातो को भी अपने अनुसंधान में लिखा है जिसको लिखने से मैं परहेज कर रहा था। निरुपमा के साथ प्रियभांशु का व्यवहार समय के साथ साथ कैसे कैसे बदला सारा कुछ पुलिस के डायरी में दर्ज है। किस तरीके से प्रियभांशु ने निरुपमा के लैपटोप से सारा साक्ष्य मिटाने की पूरी कोशिस की लेकिन हैदरावाद की रिपोर्ट ने प्रियभांशु के सारे मनसूबे पर पानी फेर दिया।प्रियभांशु ने निरुपमा के गर्भवती होने की खबर के बाद किस तरह से निरुपमा को शाररिक और मानसिक रुप से प्रतारित किया वह सब कुछ निरुपमा के लैंपटोप में दर्ज है ।फिर भी इस मामले की सीबीआई जांच को लेकर पहल होनी चाहिए इसलिए नही कि निरुपमा के साथ न्याय नही हुआ इसलिए होना चाहिए कि प्रियभांशु जैसे भेड़िया आये दिन किस तरीके से महानगरो में लड़कियो को अपने जाल में फंसा कर शाररिक और मानसिक शौषण कर रहा है और इससे बचने के लिए किस किस तरह के हथकंडो का उपयोग करते हैं।इस पूरे प्रकरण में जिन जिन लोगो ने मुझे हौसला अफजाई किया उन्हे स हद्यय धन्यवाद ।साथ ही उन मित्रो को भी धन्यवाद जिन्होने इस पूरे प्रकरण में मेरी माँ बहनो को भी गाली देने से नही चुंके।<br />
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</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-3819490655077486382011-02-24T12:28:00.002+05:302011-02-24T12:28:46.592+05:30बिहार के पत्रकारो को अब खोने के लिए कुछ भी नही बचा है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">बिहार में विधानसभा का सत्र चल रहा है बुधवार को राज्यपाल के अभिभाषण पर विपंक्ष के नेता अब्दुलबारी सिद्दीकी को बोलना था।जैसी उम्मीद की जा रही थी उससे कही जबरदस्त प्रस्तुति सिद्दीकी का रहा। पूरा सदन खामोस होकर सिद्दीकी की बात सूनता रहा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चेहरा छुपाये अपने किये से मुख मोड़ते दिखे।राज्य में कानून व्यवस्था से लेकर राज्य सरकार द्वारा अधिकारियो के चयण के मामलो में पैसा और जाति का नग्गा खेल खेलने का तथ्य सदन के सामने रखते हुए सिद्दीकी ने मुख्यमत्री को खुली चुनौती दी ।<br />
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आशर्चय जनक तो यह रहा है कि जिस तेवर मे सिद्दीकी बोल रहे थे और पूरा सदन ऐसा खामोस था जैसे सिद्दीकी की बातो से सभी सदस्य सहमत हो वही नीतीश अपने अगल बगल झाक रहे थे लेकिन मौंन समर्थन से अधिक कुछ भी नही मिल पा रहा था।सवाल ही ऐसा था भ्रष्टाचार को लेकर इन दिनो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जो बयान आ रहे हैं उस पर चुटकी लेते हुए सिद्दीकी ने खुली चुनौती दी कि राजधानी पटना के एपार्टमेंन्ट खरीदार की सूची सरकार सार्वजनिक करे 75प्रतिशत ऐपार्टमेंन्ट सूबे के भ्रष्टअधिकारी है जो राज्य की जनता का हकमारी कर मुख्यमंत्री के आंखो के तारे बने हुए है।वही सबसे बड़ा सवाल उन्होने सदन के सामने रखा कि आखिर मुख्यमंत्री जो आये दिन आम जनता को जाति और धर्म से उपर उठ कर बिहारी बनने की नसीहत देने वाले मुख्यमंत्री तमाम नियम कायदो को ताख पर रख कर अपनी जाति के ही आइएस अधिकारी जो दूसरे स्टेट कैंडर के हैं उन्हे ही पटना का डीएम क्यो बनाया जा रहा है।पटना के एसएसपी जिन्हे बनाया गया है उनका नाम जम्मू काश्मीर में गैरजिम्मेदार अधिकारी के रुप में दर्ज है ।पिछले छह माह पहले बिहार डिपटेशन पर आया है और बिहार के किसी भी जिले के पुलिस कप्तान के रुप मे कोई अनुभव नही है लेकिन उन्हे पटना का सीनियर एसएसपी बना दिया गया क्योकि वह नीतीश कुमार के गृह जिले का रहने वाला है।भष्टाचार को लेकर कई उदाहरण दिये जिसमें समाजकल्याण से जुड़े योजनाओ को किस तरह के अधिकारी अपने बीबी बच्चा के नाम पर एनजीओ खोलकर लूट रहे हैं।सिद्दीकी ने इसकी पूरी सूची सदन के पटल पर रखा लेकिन दुर्भाग्य है आज राजधानी के किसी भी अखबार में सिद्दकी के इस आरोप की चर्चा तक नही है पूरा पेज फिलगुड से भरा है आखिर हम चाहते क्या हैं हम क्यो पार्टी बन रहे हैं पत्रकारिता कभी भी रोजगार नही हो सकता है हमारी पूंजी विश्वास है उसको क्यो दाव पर लगाये।<br />
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</div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-67464670575872390482011-02-06T17:40:00.001+05:302011-02-06T17:40:22.593+05:30बिहार में जूनियर डाँ के सामने क्यो बेवस है सरकार<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><div class="MsoNormal" style="margin: 0in 0in 10pt; text-indent: 0.5in;"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; font-size: 12pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-GB; mso-ascii-font-family: Arial; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: 'Times New Roman'; mso-hansi-font-family: Arial;">बिहार मे कानून का राज्य है ऐसा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर बोलते रहते है,लेकिन जूनियर डाँ के मामले में ऐसा होता नही दिख रहा है नीतीश कुमार के शासनकाल में जूनियर डाँ पर मरीज के परिजन के साथ मारपीट करने और सरकारी सम्पत्ति को तोड़फोड़ करने को लेकर 28मुकदमा सूबे के विभिन्न थानो में दर्ज है।लेकिन उन मुकदमो पर कोई कारवाई आज तक नही हुई है।इनके हड़ताल पर जाने <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>के कारण दो सौ से अधिक मरीजो की मौत हो चुकी है।मरने वालो में अधिकांश वही थे जिनका मसिहा होने का दावा नीतीश कुमार करते हैं।मानवाधिकार आयोग ने जूनियर डाँ के इस आचरण को गैर कानूनी मानते हुए मरीजो के मौत के लिए जूनियर डाँ को जबावदेह ठहराया था यह फैसला दो वर्ष पूर्व <span style="mso-spacerun: yes;"> </span>आया है।आयोग राज्य सरकार से उन जूनियर डाँ की सूची पिछले दो वर्ष से लगातार माँग रही है जो इस मामले में आरोपित है।लेकिन सरकार सूची देने से आना कानी कर रही है, नीतीश कुमार पर सीधा आरोप है कि जूनियर डाँ में अधिकांश चर्चित रंजीत डोन का प्रोडक्ट है और मुख्यमंत्री के स्वजातीय है जिसके कारण उन जूनियर डाँ पर कारवाई नही हो रही है तहकिकात के दौरान लोगो का आरोप लगभग सही पाया गया है। अब आप ही बताये सूबे मे कानून का राज्य है क्या--- </span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Arial','sans-serif'; font-size: 12pt; line-height: 115%; mso-ansi-language: EN-GB; mso-bidi-font-family: Mangal; mso-bidi-theme-font: minor-bidi; mso-fareast-font-family: 'Times New Roman';"></span></div></div>संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-40152320855119542712011-01-09T11:25:00.000+05:302011-01-09T11:25:23.131+05:30इस बेपनाह अंधेरे को सुबह कैसे कहूं इन नजारो का मैं अंधा तमाशवीन नही<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7Gu7M1MtfhrNk8kt4uCQjaoUCEuUA_idTo8eHNg75p_Wt4tJ1TUp8wXNDIKycJJN4-x7nCdGxhBlypX-HJsmqTGNplypUCiXM2yoKf457OIVi5JDkm6NhkDnf-mD0i0XQRqJ7K7zeRX6i/s1600/stab_336506f%255B1%255D.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" n4="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi7Gu7M1MtfhrNk8kt4uCQjaoUCEuUA_idTo8eHNg75p_Wt4tJ1TUp8wXNDIKycJJN4-x7nCdGxhBlypX-HJsmqTGNplypUCiXM2yoKf457OIVi5JDkm6NhkDnf-mD0i0XQRqJ7K7zeRX6i/s320/stab_336506f%255B1%255D.jpg" width="320" /></a></div>सभी मित्रो को नव वर्ष की शुभकामनाये काफी दिनो बाद आपसे मिल रहा हूं विषय ऐसा है कि आपके लिए कुछ विशेष जानने के लिए बचा नही होगा,सरकार पूरे मामले की जाँच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी है।अब सारा खेल सीबीआई के पाले में है अब आप भी समझ गये होगे कि मैं किस मामले में बात कर रहा हूं। वही मामला पूर्णिया विधायक की हत्या का जिसमें सरकार के उप मुख्यमत्री सुशील कुमार मोदी अपने बयानो के कारण विवाद में घिरे हैं।फिर भी मैं इस पूरे प्रकरण के उन पहलुओ से आप सबो को अवगत करा रहा हूं जो अभी भी मीडिया के सुर्खियो में नही है या यू कहे तो मीडिया इन पहलुओ को छूने से परहेज कर रही है।अखबार ने अपनी भूमिका से पत्रकारिता को शर्मसार तो कर ही दिया लेकिन पहली बार पांच वर्षो के बाद प्रिंट मीडिया का वह दंभ चकनाचूर हुआ है कि जब तक मैं पहल नही करुंगा कोई मामला सुर्खियो में नही आयेगा।<br />
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वही दूसरी और इस पूरे प्रकरण में बिहारी समाज का वह चेहरा सामने आया है जिसकी कल्पना मैने नही की थी ।बेहद दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि बिहारी समाज जिसकी संवेदनशीलता की देश भर में चर्चाये हुआ करती थी वह समाज इतना कुंद हो गया इसका एहसास मुझे पहली बार इस पूरे प्रकरण में देखने को मिला।घटना चार जनवरी की है मेरा मोरनिंग सिफ्ट था कड़ाके की ठंड के कारण थोड़े विलम्भ से दफ्तर पहुंचा स्टोरी को लेकर मंथन चल ही रहा था कि डीजीपी का मैसेंज आया जैसे ही मैंसेज बोक्स खोला होश उड़ गये पूर्णिया विधायक की हत्या ,हत्या उसी महिला ने की जिसने विधायक पर यौन शोषण का आरोप लगाया था।शुरु हो गया ब्रेकिंग न्यूज का सिलसिला तभी खबड़ आयी कि इस मामले में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कुछ कहना चाह रहे है।भागे भागे उनके पोलो रोड स्थित सरकारी आवास पर पंहुचा उपमुख्यमंत्री इस मामले पर बोलना शुरु किये शुरुआत महिला के चरित्रहीन,ब्लैक मेलर के उपमा से हुआ वही विधायक को 1974के आन्दोलन का सिपाही होने की बात करते हुए उसके महानता की गाथा सुनाने लगे जैसे कि 1974 का आन्दोलन देश के आजादी का आन्दोलन हो।<br />
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टीवी स्क्रिन पर मोदी का बयान चलने लगा रुपम पाठक चरित्रहीन है ब्लैक मेलर है विधायक की एक बड़ी साजिश के तहत हत्या की गयी है।इस बयान के बाद मैने कई महिला संगठनो के प्रतिनिधियो से बात किया लेकिन मोदी के इस बयान पर उन्होने प्रतिक्रिया व्यक्त करने की इक्छा जाहिर नही की ऐसे मैं ऐसे महिलाओ की राय लेकर स्क्रिन पर चलाने का फैसला लिया गया जो सिर्फ महिलाये थी उनका कोई समाजिक और राजनैतिक पहचान नही थी ।वही बाद में जब मामला गरमाने लगा तो वही महिलाये चीख चीख कर महिलाओ के स्वाभिमान पर आघात की बात करते हुए हल्ला बोल दिया।<br />
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दूसरा पहलु तो इससे भी दुखद है लोग मोदी के बचाव में खुलकर बोलने लगे हैं और स्थिति यहां तक आ गयी है कि जिस तरीके से लालू प्रसाद पर चारा घोटाला का आरोप लगा था तब बिहारी समाज का एक बड़ा तबका समाजिक न्याय के नाम पर लालू प्रसाद के बचाव में खुलकर सामने आये थे और आज वही स्थिति है सुशासन और विकास के नाम पर बिहारी समाज का एक बड़ा तबका इस मामले को सही साबित करने मे लगा है।<br />
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लेकिन इन सबसे दूर रुपम पाठक के साथ आज उनका पूरा परिवार खड़ा है उनकी माँ जहाँ बेटी के कदम को सही ठहरा रही है वही उनका पति इस हत्या को वध की संज्ञा देने की बात करते हुए पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात कर रहे है।फिर भी मेरा बिहारी समाज सोया हुआ है और मजा ले रहा है और बेशर्म की तरह सवाल कर रहा है कि क्या रुपम की बेटी पर भी विधायक हाथ फेर दिया।संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-66823261220857667132010-12-05T18:46:00.000+05:302010-12-05T18:46:29.008+05:30आज के पत्रकारिता की हकीकत है बरखा दत्त<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"></div><br />
<div class="separator" style="border-bottom: medium none; border-left: medium none; border-right: medium none; border-top: medium none; clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQDsF-o8yQDfnnrvR0_HYBtMJCx7w9yvHnz6aFwXOohqalS-7UMCVgZoD6ARwdvfUlHwO_Rx2eB0GJDLwbDP1TSu2Hu3cXBvWKkL0EIvWzzuAE7C7PKy4YaQSJRLQvXGwbh3H89NsX6tHr/s1600/timthumb%255B4%255D.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="208" ox="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgQDsF-o8yQDfnnrvR0_HYBtMJCx7w9yvHnz6aFwXOohqalS-7UMCVgZoD6ARwdvfUlHwO_Rx2eB0GJDLwbDP1TSu2Hu3cXBvWKkL0EIvWzzuAE7C7PKy4YaQSJRLQvXGwbh3H89NsX6tHr/s320/timthumb%255B4%255D.jpg" width="320" /></a></div>लगभग एक माह से बरखा दत्त को लेकर पूरे मीडिया में जंग छिड़ा है वीर साहब तो अपना काँलम लिखना बंद कर संन्यास पर जाने के संकेत दे दिये लेकिन बरखा दत्त को लेकर अभी भी खीचतान जारी है।एनडीटीवी भले ही उसका बचाव करे लेकिन बरखा दत्त अपना सब कुछ लूटा चुकी है।लेकिन सच यही है कि आज अधिकांश पत्रकार किसी न किसी स्तर पर बरखा दत्त की तरह लोबिंग करने में जुटे हुए हैं।यह अलग बात है कि बरखा दत्त और वीर सांघवी इस खेल में ऐक्सपोज हो गये और आज यह मुद्दा होटकैक बना हुआ है।लेकिन यह तो आज न कल होना ही था आखिर बकरा कब तक खेर मनायेगा। सवाल यह है कि पत्रकारिता का धंधा भले ही विश्वास का धंधा है लेकिन इस धंधे को चलाने वालो को मुनाफा चाहिए है और अपने गलत कमाई को इस धंधे के सहारे जारी रखने का जरिया चाहिए ।जब उद्देश्य ही गलत है तो फिर इससे बेहतर परिणाम की बात सोचना ही बेमानी है।आखिर कोई भी मालिक जनता के लिए लाखो की पगार क्यो आप पर खर्च करेगा। कोई भी व्यवसायी सौ करोड़ से अधिक की पूंजी का निवेश जनता के लड़ाई के लिए क्यो करेगा कई ऐसे सवाल है।<br />
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जिस तरह के लोग पत्रकार बन रहे है उनसे क्या उम्मीद कि जा सकती है वे तो नौकरी करने आये हैं। जहां बेहतर पगार मिलेगा वही नौंकरी करेगें।साथ ही नौकरी में बने रहे इसके लिए ऐसे डिल करने पड़ते है।यह तो अब आप पर निर्भर करता है कि आप इस तरह के डिल में अपना दामन कब तक दागदार होने से बचाते रहते हैं।<br />
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सवाल यह भी हैं कि काम कोयले के खादान में करेगे और फिर कालिख लगने से परहेज करेगे यह कैसे सम्भव है। मित्रों वक्त आलोचना करने का नही है बरखा दत्त के हस्र से सीख लेने का है ।पूरी मशीनरी चौथे खम्भे को लेकर कही ज्यादा संवेदनशील हो गया है ।लोग चाहते हैं कि मेरी मर्जी पर कोई रोक न लगाये, कानून का हाल तो आप देख ही रहे हैं कोर्ट अपने गिरेवान में झांकने के बजाय दूसरे को नसीहत देने में लगा है ।ऐसे मैं आपकी जबाबदेही कही ज्यादा बढ गयी है लेकिन इस मैंदान में जमे रहने के लिए इस तरह के कार्य करने की मजबूरी भी है लेकिन इस मजबूरी से बाहर निकलने का कोई मान्य फर्मूला नही है। ऐसे में सब कुछ आपके विवेक औऱ सोच पर निर्भर करता है।वक्त आ गया है अपने आपके बारे मैं सोचने का, बरखा दत्त के तेवर को मरने न दे, भले ही एक बरखा सिस्टम की भेंट चढ गयी लेकिन सौ बरखा के पैदा होने जैसी उर्वर भूमि अभी भी मौंजूद है। आलोचना के बजाय बरखा की उन अदाओ का जिन्दा रखने की जरुरत है जो आज भी करोड़ो भारतीयो के दिल पर राज कर रही है।संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-32365394215233274452010-11-28T15:23:00.000+05:302010-11-28T15:23:06.180+05:30बिहार की जनता ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDNv1YCSjHnaj_-MvNE-a_E61kDWryS9-8iw1srAdU-ls0xDooJV5_D8LdjwhZMttlzNsrZLvPSYHqVnImjcXId5MAA5vHuX2cdz8lzYIbUqeBpXr8Or3nQF9uYbaGbqLASvwYkau3XUwj/s1600/Nitish-Kumar-007%255B1%255D.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" ox="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjDNv1YCSjHnaj_-MvNE-a_E61kDWryS9-8iw1srAdU-ls0xDooJV5_D8LdjwhZMttlzNsrZLvPSYHqVnImjcXId5MAA5vHuX2cdz8lzYIbUqeBpXr8Or3nQF9uYbaGbqLASvwYkau3XUwj/s400/Nitish-Kumar-007%255B1%255D.jpg" width="400" /></a><br />
बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम को लेकर विशलेषण का दौड़ जारी है।एक और जहां नीतीश कुमार में लोग देश के प्रधानमत्री की छवी देखने लगे हैं, तो वही दूसरी और विशलेषक परिणाम को मडंल राजनीत के होलिका दहन के रुप में भी देख रहे हैं।वही मुख्यमत्री नीतीश कुमार की अपनी एक अलग व्याख्या है और जनता के इस अपार समर्थन से थोड़ा घबराये हुए हैं। उनकी घबराहट से मैं भी इत्फाक रखता हूं,हो सकता है वे इतनी दूर तक नही सोचते होगे लेकिन मेरा मानना है कि बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम भारतीय लोकतंत्रातिक व्यवस्था के लिए मील का पथ्थर साबित होगा।जिस उम्मीद से मतदाताओ ने नीतीश कुमार को वोट दिया है उस पर अगर नीतीश खड़े नही उतरे तो भाई यह बिहार है ऐसी प्रतिक्रिया होगी कि मैं सोचकर ही घबरा जाता हूं।मैंने पिछले लेख में नीतीश कुमार के आपार बहुमत से जीतने की बात लिखा था साथ ही मैंने यह भी लिखा था कि जनता में भ्रष्टाचार को लेकर खासा आक्रोश है। मेरी नीतीश कुमार से राय है कि भ्रष्टाचारियो को कानून के सहारे रोका नही जा सकता है कृप्या करके भ्रष्टाचार को नियत्रित करने वाली जो ऐंजसी उपलब्ध है उसकी आजादी बनाये रखे।सूचना के अधिकार कानून पर जो पाबंदी नीतीश कुमार ने लगा रखी है उसे मुक्त करे अधिकारियो को जबाबदेह बनाये सूचना नही देने वाले अधिकारियो के पंक्ष में नही खड़े हो।राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश के पालन में जाति नही देखे।वही लोकपाल और उपभोगता फोरम जैसी संस्थान को मजबूती प्रदान करे नही तो जिस अंदाज में बिहार में हिंसक प्रवृति बढ रही है उसे रोकना काफी मुश्किल होगा।<br />
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वामपंथी पार्टियां खासकर भाकपा माले के बिहार विधानसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने पर नक्सलियो की जो प्रतिक्रिया आयी है वह बेहद गम्भीर है और सरकार को नक्सली नेता के बयान को गम्भीरता से लेनी चाहिए।माओवादी संगठन के प्रवक्ता ने चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया वयक्त करते हुए कहा कि चुनाव लड़ने वाली कम्युनिस्ट पार्टिया जिस तरह संसदीय भटकाव में फंसी थी उसमें इनकी यही दुर्गिति होनी होनी थी।वही भाकपा माले जो वर्ग संधर्ष और संसदीय संघर्ष को एक साथ मिलाने का दावा किया वही खुद संसदवाद के दलदल में फंस गई।कई इलाको में भाकपा माले इन्ही तर्क के आधार पर गरीबो को लोकतांत्रिक व्यवस्था से जोड़कर रखे हुए था और गरीबो को लगता था कि वे हमारे हक और हकुक की बात करते हैं। लेकिन बिहार के राजनीत में यह पहला मौंका है जब विधानसभा में लाल झंडा का एक मात्र प्रतिनिधि पहुंचा है।चर्चित नक्सली नेता उमाधर सिंह जिन्हे पहली बार इस तरह से जनता ने खारिज कर किया है उन्हे मांत्र चार हजार के करीब वोट आया है जबकि आम अमाव और भ्रष्टाचारियो के खिलाफ आवाज उठाने वाले राजनेताओ में इनकी गिनती होती है।<br />
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मुझे जनता के इसी आचरण से डर लग रहा है क्योकि नीतीश कुमार की जो छवि जनता के सामने है वह पूरी तौर पर मीडिया का क्रियेसन है जिसमें सच्चाई का दूर दूर तक वास्ता नही है।जब भ्रष्टाचारियो को मुख्यमंत्री सचिवालय से ही संरक्षण मिलेगा तो फिर भ्रष्टाचारियो पर कैसे नकेल कसेगी।लालू के कभी नम्वर वन सलाहकार रहे श्याम रजक से क्या उम्मीद की जा सकती है वैसे कई मंत्री इनके मंत्रीमंडल में शामिल हुए जिनकी योग्यता सिर्फ और सिर्फ जात है।<br />
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जनता ने तो जात आधारित राजनीत को पूरी तौर पर नकार दिया लेकिन लगता है राजनेता इस जीन को बचाकर रखना चाहते है।हलाकि मैं नीतीश कुमार को लेकर कोई खुश फोमी पाल नही रखा था लेकिन जो दिन में सपने देख रहे थे उन्हे नीतीश के मंत्रीमंडल गठन से थोड़ा झटका जरुर लगा है।कई दागी और काम चोर चेहरा इस बार भी मंत्रीमंडल में शामिल किये गये है और काम करने वाले मंत्री को कमजोर मत्रांलय दिया गया है।वही सरकार द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के बाद जो पहली नियुक्ति हुई है महाअधिवक्ता के पद पर वे मुख्यमंत्री के विरादरी का है।<br />
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देखिये आगे आगे होता है क्या --संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5539608448112798215.post-84118563568695682772010-11-18T13:20:00.000+05:302010-11-18T13:20:10.150+05:30कई मायने में ऐतिहासिक रहा बिहार विधानसभा का चुनाव<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2deGZsIhJc4IKqr4aOea9bYYsbCN4uHT7_eV7vGNSM9aH5tNyHJEwRL74-xcxnd2on4RO1pa_3-4QKhcTRpgUV9GFMJoFemcMTDH9LShAnpkrz32epJRSfi6osNJ6vlTpT0kRTHX3OylP/s1600/DSC03038%255B1%255D.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; cssfloat: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="240" ox="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2deGZsIhJc4IKqr4aOea9bYYsbCN4uHT7_eV7vGNSM9aH5tNyHJEwRL74-xcxnd2on4RO1pa_3-4QKhcTRpgUV9GFMJoFemcMTDH9LShAnpkrz32epJRSfi6osNJ6vlTpT0kRTHX3OylP/s320/DSC03038%255B1%255D.JPG" width="320" /></a><br />
बिहार विधानसभा चुनाव लगभग समाप्ति पर है और अब सबो की नजर चुनाव परिणाम पर टिकी हुई है।उम्मीद की जा रही है की चुनाव परिणाम बिहार की जनता के लिए खुशहाली और समृद्धि लेकर आयेगी। क्यो कि पहली बार बिहार के वोटरो नें जाति,धर्म,मजहब,नाते रिश्ते को तोड़कर विकास और समाजिक समरसता के नाम पर वोटिंग किया है।मतदाताओ ने एक और जहां नीतीश कुमार के विकास और सुशासन के दावे पर मोहर लगा दी, वही नीतीश कुमार के अंहकार और राज्य में जारी अफसरशाही औऱ भ्रष्टाचार को लेकर खिचाई भी किया है। यही कारण रहा कि प्रथम चरण के चुनाव के बाद नीतीश कुमार जहां भ्रष्टाचारियो की सम्पत्ति जप्त करने की घोषणा कर मतदाताओ की वाहवाही लूटे। वही दूसरी और लालू प्रसाद ने अफसरशाही खत्म करने का भरोसा दिलाकर ऱुठे मतदाताओ को मनाते दिखे।लेकिन पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जो अहम बाते रही की मतदाताओ ने नीतीश कुमार के एक बार और मुख्यमत्री बनाने की अपील को काफी गम्भीरता से लिया ।लेकिन इसका असर चुनाव परिणाम पर कितना पड़ता है ये तो परिणाम आने के बाद ही सामने आयेगा।<br />
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पूरे चुनावी अभियान के दौरान नीतीश कुमार के पास कोई टिंक टैंक जैसी बाते देखने को नही मिला जो पार्टी उम्मीदवार के नकारात्मक पंक्षो के काऱण जनता में उपजे आक्रोश को नियंत्रित कर सके। और यही कारण है कि जनता के अपार समर्थन के बावजूद नीतीश मंत्रीमंडल के अधिकांश मंत्री और विधायक की विधायकी खतरे में है।अगर परिणाम प्रतिकुल होता है तो इसमें जनता से कही अधिक गुनाहगार खुद नीतीश कुमार होगे जिन्होने टिकट बटवारे से लेकर पूरे चुनाव अभियान के दौरान जनता के भवानाओ को दरकिनार करते दिखे।लेकिन इन सबके बावजूद जनता ने जो दिलेरी दिखायी है वह वाकई देखने लाईक था।<br />
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नीतीश कुमार का नालंदा के रहुउ में 11बजे सभा होनी थी लाईफ कभरेज हो इसके लिए पूरी टीम के साथ सुबह 9.35में ही सभा स्थल पर पहुंच गये थे।कार्यक्रम नीतीश कुमार के कर्मभूमि पर होने वाला था इसलिए सभी की पैनी नजर चुनावी सभा पर टिकी हुई थी।सभा स्थल पर एक बूढा व्यक्ति जिसकी उर्म 55 के करीब होगा लेकिन देखने में 75के करीब लग रहा था डी एरिया के बाहर बैंठा हुआ था उस समय कुछ पुलिस को छोड़कर कोई नही पहुचा था जैसे जैसे सभा का समय करीब होने को हो रहा था लोगो के आने का सिलसिला तेज होने लगा और नीतीश कुमार जब पहुंचे तो पूरा मैंदान भरा हुआ था नीतीश कुमार जिन्दावाद का नारा लग ही रहा था कि पीछे से कोई व्यक्ति बार बार चिल्ला रहा था तनी हटहो(जरा हट जाये)मैंने पलट कर देखा वही बूढा चिल्ला रहा था जो डी एरिया में मीडियाकर्मियो के ट्रायपोर्ट लगने के कारण नीतीश कुमार को नही देख पा रहा था मै उसके पास गया औऱ डी ऐरिया के बाहर लगे बांस के बल्ले के नीचे से आने का इशारा करते हुए उन्हे मीडिया सेंन्टर में ले आया औऱ उसके बाद मैंने अपनी कुर्सी में बैंठा दिया पूरे भाषण के दौरान मेरी नजर जब भी उस बूढे व्यक्ति पर पड़ता देखता की वह टकटकी निगाह से नीतीश कुमार को देख रहा है।भाषण खत्म हुआ नीतीश उड़ चले हम लोग समान पैंकप करा रहे थे तभी मुझे लगा कि पीछे से कोई व्यक्ति आशिर्वाद देना चाह रहा है जैसे ही पलटा सामने वही बूढा व्यक्ति खड़ा था मैने पुछा बाबा गये नही है नही बाबू तोड़ से मिलले बिना कैसे जतियो(तुमसे मिले बगैर कैसे जाते, मैनें पुछा बाबा नीतीश जी की कहलथून बड़ी शांत भाव से उन्होने कहा बाबू अंतिम आस इही छे मैने पुछा क्या कहा बाबा, तो उन्होने कहा लोग कहे रहे अपन सरकार बनले 15वर्ष लालू के इही नाम पर वोट देलिए पांच वरस नीतीश बबुआ के वोट देलिए औऱ इही बेर द रहल बानी लेकिन गरीब के भला नही भेल तो अनर्थ भे जाईते, मैने पुछा क्यो बूरा होगा, बाबू नईका छौड़ा(लड़का, सब हथियार उठवे के बात करे छे गरीब के भला नही भले त बाबू बढ बूरा दिन आवे वाला छई,55वर्ष से इ नाटक चली रहल छई पहले कही छले बड़का सब लूट ले छई लेकिन बीस वर्ष से बिहार में गिरिबहे के बेटा मुख्यमंत्री होई रहल छई ओकरा बादो गरीब के देखे वाला कोई नही है।<br />
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उस बूढे की बात जब जब जेहन में आता है मेरे सामने अंधेरा छा जाता है और आने वाले बिहार को लेकर चिंतित हो उठता हूं।वाकई बिहार का यह चुनाव या तो बिहार की दिशा और दशा को बदल देगी या फिर घोर निराशा के खाई में इतने नीचे चला जायेगा कि जहां से निकलना मूमकिन ही नही पूरी तौर नामूमकिन होगा।संतोष कुमार सिंहhttp://www.blogger.com/profile/08520071837262802048noreply@blogger.com2