गुरुवार, सितंबर 16, 2010

जनवादियो को चश्मे बदलने की दरकार है

बुधवार को कोई खास ऐसाईनमेंट नही था मुख्यमत्री नीतीश कुमार दिल्ली चले गये गये थे और हमारी खुद के बीट में भी कोई खास हलचल नही था ,माओवादियो के बंद का मियाद खत्म हो चुका था और इसको लेकर कई स्टोरी चल भी चुकी थी।दफ्तर पहुंचा तो ऐसाईनमेंट टेबल पर गया तो दो ऐसाईनमेंट मेरे नाम पर था।दो बजे विधानपरिषद के सभा कंक्ष में कोई सेमीनार को कवर करना था और दूसरा ऐसाईनमेंट अभियंता दिवस से जुड़ा हुआ था।ब्यूरो चीफ के साथ मीडिंग के बाद आराम फरमा रहे थे तभी खबर आयी की डेंगू और स्वाईन फ्लू को लेकर कैबिनेट सचिव के साथ बैठक हो रही है अचानक खबर मिली थी भागे भागे पटना डीएम कार्यलय पहुंचे।बैठक खत्म हुई और उसके बाद पत्रकारो से बात करने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ।अफजल अमानुल्लाह काफी मीडिया फ्रेडली है तो बाते बढती गयी और जब घड़ी पर नजर पड़ी तो दो बजने को था।भागे भागे विधानपरिषद के सभा कंक्ष पहुंचा देखते है आयोजक महोदय अभी बैनर ही लगा रहे हैं ।

बड़ी गुस्सा आया समय से इन लोगो का कोई वास्ता ही नही है,यह विचार चल ही रहा था कि तब तक बैनर लग गया। बैनर पर लिखा था चाहिए एक और वैचारिक क्रांति।बैनर पढने के बाद विषय तो जनवादी है थोड़ा गुस्सा शांत हुआ आयोजक से बात करनी शुरु की तो पता चला कि सेमीनार के साथ साथ बाबा नागर्जुन के कविताओ पर आधारित एक फिल्म का भी लोकार्पण किया जायेगा।लगा मुझे चलो काम कि चीज है बात बात में ही पता चला कि आउटलुक की फीचर संपादक गीता श्री, वरीय पत्रकार वर्तिका नंदा और मुहल्ला लाईभ के अविनाश कुमार मुख्य वक्ता है।मुझे लगा चलो इसी बहाने इन जनवादियो से मुलाकात तो हो जायेगी।

इन लोगो के आने की खबर के साथ ही पूरानी यादे ताजा होने लगी लगभग बीस वर्ष बाद गीता श्री से और लगभग 10वर्ष बाद अविनाश कुमार से आमने सामने होने जा रहा था,वक्त 1990का है जब में एलएस कांलेज में 12वी का छात्र था उस समय गीता श्री हिन्दी से एमए कर रही थी और छात्र नेता थी नवभारत टाईम्स के पत्रकार राघवेन्द्र नरायण मिश्रा के यहां पहली बार मिली थी वहा मेरा नियमित आना जाना था और ये कभी कभी न्यूज के सिलसिले में आया करती थी धीरे धीरे वैचारिक स्तर पर बातचीत होने लगी और उसके बाद तो रोज का मिलना शुरु हो गया ।लगभग एक वर्ष तक यह सिलसिला चला और उसके बाद वो दिल्ली चली गयी ।बाद के दिनो में गीता श्री के बारे में कोई खास जानकारी नही मिल पा रही थी मैं भी दिल्ली पहुंचा औऱ पूरे आठ वर्षो के दौरान मेरा भी कैरियर का दोड़ था औऱ ये भी दिल्ली में सघर्ष कर रही थी कही कही से इनके बारे में जानकारी मिलती रहती थी।

लेकिन मुलाकात का मौका नही मिल पा रहा था।वापस मैं जब वर्ष 2000में बिहार लौटा तो प्रभात खबर से पत्रकारिता की शुरुआत की उन दिनो अविनाश जी से मुलाकात हुआ करता था उस वक्त मैं रोसड़ा से लिखा करता था।बाढ की रिपोर्टिग को लेकर इनसे परिचय हुआ और जब भी मैं पटना आता था तो इनसे लम्बी बाते होती रहती थी लेकिन वक्त के साथ ये पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढते गये और मेरी दूरिया बढती गयी। लेकिन निरुपमा मामले में अविनाश कुमार के ब्लांग पर मेरे ब्लाग की चर्चा की गयी थी फिर भी मुझे लग रहा था कि हो सकता है संतोष से याद नही कर पा रहे होगे ।

मुझे खुशी थी आज एक जनवादी और एक मोडरेट जनवादी के बीच काफी लम्बे अर्से बाद मुलाकात होगी देखते है पहचान पाते है कि नही।दोनो आये और सामने से गुजरते हुए सामने के डेस पर बैंठ गये।फोटो सेशन चल रहा था मुझे लगा कि परिचय का इससे बेहतर मौंका क्या हो सकता है मैं डेस कि और बढा और पहले अविनाश जी से मुखातिव हुआ बोले संतोष जी अपका ब्लांग पढते रहते है मैने कहा आपको याद है मैं रोसड़ा वाला संतोष हू पूरी तरह याद है कार्यक्रम के बाद मिलते है।

आगे बढे तो सामने बैंठी हुई थी गीता श्री जिसे में खुद भी पहचान नही पाया था मोटी तो उस वक्त भी थी लेकिन इतनी नही लेकिन रंग तो गजब बदला है स्यामलि रंग की गीता श्री तो साफ गोरी दिख रही थी चलो मैने झुक कर प्रणाम किया और पुछा पहचान रही है बोली उठी काहे शर्मिदा कर रहे हो। लेकिन उनके चेहरे से लग रहा था कि वे याद करने की कोशिस कर रही है और चंद सैकंड बाद ही चहक उठी सतोषवा रे तुमको कैसे भूल जायेगे।जिस मगही भाषा में आज तक उनसे बाद नही हुई थी वे उसी भाषा में बीते दिनो की बाते जोर जोर से कहने लगी, यह खासियत है जनवादियो का जो बीते कल को बेहतर तरीके से याद रखते है।

फिर सेमीनार का दौड़ शुरु हुआ और शुरु हो गया भूख गरीबी,आकाल,बुर्जआ सामंती और जनक्रांति की बाते। काफी लंबे अर्से बाद उन लोगो की बात सूनने का मौंका मिला था लगा आज भी इतने उतार चढाव देखने के बावजूद संर्घष का जजवा उभान बरकरार है ।लेकिन मुझे लगा कि इन लोगो के नजरिया में आज भी बदलाव नही आया है लगता है समय से इन लोगो ने कोई सीख नही ली। वही पूरानी मानसिकता जात के आधार पर घटनाओ को देखने का नजरिया और सामंत शब्द के सहारे विचारो को अमली जामा पहनना ।

मै भी जनवादी है लेकिन किसी भी मसले पर ओपेनियन बनाने से पहले सभी पहलुओ पर सोचते हैं,इस सोच में आये परिवर्तन के लिए भी मैं इन जनवादियो को ही जिम्मेवार मानता हूं। जिन्होने अपनी साख खुद गिरायी और आज जनवाद को जातिवाद के सहारे जिंदा रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।निरुपमा मामले को ही ले लड़की ब्राह्रण और लड़का कायस्थ फिर क्या था जनवादियो को एक मुद्दा मिल गया लेकिन दलित औऱ महादलित और पिछड़ा और अतिपिछड़ा के बीच जो समाजिक दव्द चल रहा है उनके लिए इनके पास वक्त नही है।क्यो कि इनकी लड़ाई जातिये गोलबंदी के आधार पर नही लड़ी जा सकती है।आज समाज की कई परिभाषाये बदल गयी है जिसे बदलने में कई दशक लगते वे आये दिन बदल रही है आज समाज में सामंत की परिभाषा बदल गयी है लेकिन उनो नवसामंत के खिलाफ इनके कलम में सियाही नही है उनके जुल्म पर आवाज उठाने का साहस नही है क्यो कि इससे इनके जनवादी जातिये सोच को बल नही मिलता है।बदलिये श्रीमान नही तो वक्त के हासियो में कही गुम हो जायेगे।

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

कुछ लोगों के लिए ब्राम्हण भारत की सारी समस्याओं की जड है,विशेष कर मोहल्ला लाइव के लिए .आप जिन लोगो को तथाकथित जनवादी कह रहे है वे परले दर्जे के कुंठित है .