
पटना में महिला को सरेआम अपमानित करने की घटना को मीडिया ने जिस तरीके से परोसा हैं उसको लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गयी हैं।वह मीडिया जो पूरे समाज को आये दिन नैतिकता का पाठ पढाते रहता हैं वह खुद कितना नैतिकवान हैं आज यह सवाल बिहार की आम जनता आप मीडिया वाले से कर रही हैं।आपके पास माध्यम हैं तो आप कुछ भी दिखा सकते हैं और कुछ भी लिख सकते हैं इस बिनहा पर की सवाल जनता से और लोकतंत्र की रक्षा से जुड़ा हुआ हैं।खबड़ से जुड़े हुए पूरे फूटेक को देखने और घटना स्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी की माने तो घटना को लेकर जो कुछ भी दिखाया गया हैं और अखबार ने जिस तरीके से खबड़ो को परोसा हैं वह घटना का एक पहलु हैं।बिहार में तालिबान,चिरहरण होता रहा लेकिन कोई कृष्ण बचाने नही आया,भीड़ असहाय महिला को गिद्ध और चील की तरह नौचती रही।पटना मुझे माफ करो,जैसे शीर्षक के माध्यम से अखबार वाले पिछले तीन दिनों से समाज को आईना दिखाने का काम कर रही हैं।लेकिन पूरे घटना क्रम का एक सबसे अहम पहलू जिसे मीडिया ने जान बूझ कर दरकिनार किया पता नही यह मीडियाकर्मीयों के मानसिक दिवालियापन का परिचायक हैं या फिर बाजारबाद का प्रभाव यह तो मीडिया वाले खुद तय करे।लेकिन दस वर्षो का मेरा खुद का जो अनुभव रहा हैं उसके आधार पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं की मीडिया में जितने अयोग्य लोगो को जगह मिली हुई हैं शायद दूसरे किसी भी प्रोफेशन में नही होगा।समाज को आईना दिखाने वाला खुद कितने आदर्शवादी हैं मीडिया वाले अपने दिला पर हाथ रख कर सोचे समाज को जाति और धर्म को तोड़ने का नसीहत देने वाली मीडिया में जितना जातिवाद हैं शायद कही और देखने को मिले। जिस द्रोपदी के चिरहरण की बात कर मीडिया वाले हायतोबा मचाये हुए हैं उस मीडिया हाउस में काम करने वाली लड़की से जड़ा पुछे किस तरह आफिस बांय से लेकर गाड़ी का ड्रायवर,कैमरामैंन आबीभेन का तेकनीसियन और फिर रिपोर्टर के बाहो में खेलना पड़ता हैं।ब्यूरोचीफ और एडीटर की बात ही छोड़ दे यही स्थिति अखवार के दफ्तर मैं भी हैं।मुझे यह स्वीकार करने में कतई गुरेज नही हैं की मीडिया हाउस में काम करने वाली लड़कियों के साथ वह सब कुछ होता हैं।जिसको लेकर मीडिया वाले आये दिन हाई तौवा मचाते रहते हैं।फर्क इतना ही हैं कि इस फिल्ड के गलैमर के सामने कोई मुंह नही खोलता हैं। लेकिन इसका यह कतई मतलव नही हैं कि पटना की सड़को पर जो कुछ भी हुआ उसे दिखाने का हक मीडिया वाले को नही हैं।दोस्तो जिस महाभारत का उदाहरण देकर आप समाज के सामने सवाल खड़े कर रहे हैं लेकिन आपने पत्रकारिता के परोधा वेद व्यास की लेखन शैली से सीख नही लिया।उसने द्रोपदी के चीरहरण को लिखते समय समाज के सामने कृष्ण को एक नायक के रुप में प्रस्तुत किया जिसका उदाहरण आप खुद दे रहे हैं।आपने अपने मन को टोटेले हमेशा दो मन एक साथ आपके साथ रहता हैं एक मन जो बुड़ा काम करने को प्रेरित करता हैं और दूसरा मन जो काफी कमजोर हैं आपको सही काम करने की सलाह दोती हैं।आप किस समाज मैं रहते हैं आपकी शिक्षा दिक्षा कैसी हैं और आपका परिवारिक पाढशाला कैसा रहा हैं उसी अनुसार आपका मन
काम करता हैं।बूरा वाला मन सबसे ताकत बर होता हैं हम सबों का दायुत्व हैं कि बूरे मन को समाज पर हौबी नही होने दे।उस भीड़ में अधिकांश लोग बेवस और लचार महिला के जिस्म के साथ खेल रहे थे या फिर तमाशबीन बनकर मोबाईल में फोटो उतार रहा था।लेकिन उस भीड़ को चीरते हुए कई लोग अन्दर आये और महिलाओं को कपड़े पहनाने और सुरक्षित थाना पहुचाने में मदद की, मीडिया के लिए नायक वह शक्स हैं जिसने इस भीड़ में कृष्ण की भूमिका निभायी लेकिन हम सबों ने क्या किया कृष्ण की जगह दुसाशन को महिमामंडीत करने में लगे रहे।आप भूल गये की आप पर समाज को सही दिशा दिखाने का दायु्त्त्व हैं।जिस व्यक्ति ने महिला को सुरक्षित थाना पहुचाया कोई और नही सीआईएसएफ का जवान था समाज और राज्य के नेत़ृत्वकर्ता को चाहिए की इस भीड़ में जिसने भी कृष्ण की भूमिका निभायी उन्हे सम्मानित करे। पथ भ्रष्ठ हो चुके हमारे समाज के लिए उम्मीद की किरण के रुप में वह जवान उभरा हैं।