निरुपमा मामले में मेरा स्टंड पूरी तौर पर स्पष्ट हैं क्रायम रिपोर्टर के रुप में मेरा जो अनुभव रहा हैं और इस तरह के मामले में स्कसपर्ट पुलिस और सीबीआई से जुड़े अधिकारी ,डांक्टर के साथ साथ फौरेन्सिंक विशेषज्ञो से जो हमारी बाते हुई हैं ।उससे निरुपमा के आत्महत्या के प्रयाप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं।निरुपमा की हत्या हुई हैं इसको लेकर जो साक्ष्य पुलिस के पास अभी तक मिला हैं वह सिर्फ पोस्टमार्टन रिपोर्ट।जिस पर कई तरह के सावल खड़े हो चुके हैं।
इस मसले पर आज मैं इसलिए लिख रहा हूं कि ब्लांग पर रजनीश और राज ने इस मामले को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं।हलाकि मैं इस तरह के सवाल जबाव से बचना चाहता था।क्यो कि इस सवाल जबाव के सिलसिले में कई ऐसी बाते भी लिखनी पड़ेगी जो मेरे विचार के विपरीत हैं।
सबाल जबाव का सिलसिला शुरु करने से पहले एक सूचना आप सबो को दे दे।जेएनयू देश की सर्वक्षेष्ठ शिक्षण संस्थान हैं लेकिन निरुपमा मामले में यहां पढने वाले छात्रो की जो भूमिका रही हैं। उसमें मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी गुरेज नही हैं कि जेएनयू कैम्पस संक्रमण काल से गुजर रहा हैं।मैने भी जेएनयू को काफी करीब से देखा हैं आज तक ये मैंने नही देखा कि किसी मुद्दे पर एक पंक्षीय बयान जारी किया हो।स्थिति इतनी बुरी हैं कि अगर कोई पत्रकार इस मसले पर हत्या के एंगल के विपरीत कोई स्टोरी भेजता हैं तो उसे नौंकरी से निकाल देने की धमकी दी जाती हैं।
यह सही हैं कि अच्छे संस्थान मैं पढे हैं।और दिल्ली में रहते हैं तो उनकी पकड़ अधिक होगी हैं, लेकिन इसका यह मतलव नही हैं कि दिल्ली में पत्रकारिता करने वालो की समझ दरभंगा और कोडरमा जैसे जगहो पर काम करने वाले पत्रकारो से बेहतर ही हो।दरभंगा मे छात्र संगठनो ने प्रियभाशु के आचरण पर सवाल खड़े करते हुए प्रतिवाद मार्च निकला था इस खबर को जिस रिपोर्टर ने भेजा उसे नौकरी से निकाल देने की धमकी दी गयी और आज एपवा के बैंनर तले सैकड़ो महिलाये प्रियभशु के घर पर हल्ला बोलने जा रही हैं।यह उदाहरण इसलिए दिया गया हैं कि मीडिया में दोनो पंक्ष आना चाहिए लेकिन जिस तरीके से एक पंक्षीय बाते चल रही हैं वह मीडिया के एथिक्स के साथ साथ जेएनयू के कल्चर के विरपित हैं।मुझे भी दर्द हैं एक होनहार पत्रकार हमारे बीच से चली गयी लेकिन इसका यह कतई मतलब नही हैं कि जिस झझांवत के कारण उन्होने जान दी उसको दरकिनार कर एक नयी थ्योरी गंढ दे।
निरुपमा की मौंत के लिए सिर्फ और सिर्फ पाखंडी पिता और बुजदिल पति प्रियभाशु जिम्मेवार हैं।आपको पता नही दिल्ली में जहां निरुपमा और प्रियभाशु रहता था।अपने परिवार को ही नही जिस मकान में रहता था या यू कहे जिस समाज में रहता था उसे भी धोखा दे रहा था।दोनो एक ही मकान में रहते थे लेकिन दोनो का कमरा दो था क्यो भाई जब आप एक दूसरे को पति पत्नी मान लिए तो फिर दो कमरे में रहने नाटक करने की क्या जरुरत थी ।किसका डर आपको सता रहा था।वही दूसरी बात जिस भोले पन में कह रहे हैं कि मुझे पता ही नही था कि निरुपमा गर्भवती थी।क्या इससे बड़ा भी कोई झूठ हो सकता हैं।निरुपमा तीन माह की गर्भवती हैं और भोलू प्रियभाशु को पता नही हैं।
अब जो सवाल किये जा रहे हैं उसका जबाव भी देख ले-----
1-एक सवाल बड़ी जोर से उठा की प्रिभायशु निची जाति के थे इसलिए निरुपमा के माता पिता शादी करने को राजी नही थे।आपकी जानकारी के लिए बिहार में कायस्थ या लाला जाति उच्ची जाति माने जाते हैं।बड़े ओहदे से लेकर नीचे ओहदे तक सरकारी अधिकारी की संख्या अनगिनत हैं।इसलिए प्रियभाशु जाति गत आधार पर सहानुभूति के पात्र नही हैं।
2-मोबाईल गायब करने और निरुपमा के माता के बार बार बयान बदलने के बारे में तथ्य यही हैं कि पंडित जी की नाक न कट जाये इसके लिए ये सब किया गया ।क्यो कि बिहार झांरखंड में कुउरी बेटी के फांसी लगाने की बात को समाजिक रुप से काफी घृणित माना जाता हैं इतना घृणित की इससे बेहतर होता बेटी डोम से शादी कर ले।रही बात मोबाईल गायब करने की तो उससे फायदा क्या मिलने वाला हैं।सारा कुछ डिटेल्स में निकल सकता हैं।
3-पार्वती अस्पताल ले जाने वाले निरुपमा के सभी पड़ोसी थे उससे एसपी ने पुछताछ भी किया और कई ने मीडिया के सामने भी अपनी बात रखी हैं वही घटना के दिन निरुपमा के सभी रिश्तादार अपने अपने डियूटी पर मौंजूद थे कोडरमा पुलिस तहकिकात कर आ गयी हैं।पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने वाले डांक्टर ही जब कह रहा कि मैने पहली बार पोस्टमार्टम किया हैं तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि उसने क्या किया होगा।
4-जिस चिन्ह की बात कर रहे हैं वह महज खरोच हैं कोई हार्टबलंट इनजूरी नही हैं।रही बात साक्ष्य को छुपाने की तो उसकी सजा उसकी माँ भूगत रही हैं।
5-मोबाईल से जुड़े सवालो के बारे में मेरा कहना हैं कि 22अप्रैल से 28अप्रैल तक निरुपमा अपने दिल्ली के कई मित्रो से दर्जनो बार बात की हैं।लेकिन एख भी बार प्रियभाशुसे बात नही की हैं,इस पर सवाल क्यो नही उठाया जा रहा हैं।दूसरी बात जो सबसे महत्वपूर्ण हैं जितने एसएमएस के बारे में दिखाया जा रहा हैं उनमें से अधिकांश मेसेज सेभ ब्कांस में हैं आप सब मोबाईल यूजर हैं साधारण सवाल हैं मैसेज बांक्स में मैसेज रहता हैं कि सेभ ब्कांस में ।सेभ ब्कांस में रखे मैसेज को मैं ट्रेपिंग कर सकते हैं।यही कारण हैं कि दिल्ली पुलिस के ऐसपेसल सेल ने जब मोबाईल का प्रिंट आउट के साथ साथ मैसेज की जांच प्रारम्भ की तो कई जगह ट्रेम्परिंग नजर आयी जिसके कारण प्रियभाशु का मोबाईल शीज कर पुलिस इसकी जांच सर्बर विशेषज्ञ से कराने जा रही हैं।मोबाईल प्रिंट आउट में जो बाते सामने आयी हैं उसमें 28अप्रैल की शाम 4बजकर 45मिनट से लगभग 5बजे तक निरुपमा और प्रियभाशु के बीच बातचीत हुई हैं और उसके बाद निरुपमा के मोबाईल से कोई फोन नही हुआ हैं।इस बातचीत के बारे में प्रियभाशु कुछ भी बोलने को तैयार नही हैं क्यो कि मोबाईल के प्रिट आउट आने से पहले तक प्रियभाशु निरुपमा से बातचीत होने से साफ इनकार कर रहा था।
6-सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि जिस शोसाईड नोट को लेकर मीडिया तरह तरह का सवाल उठा रहा हैं उनसे मैं जनाना चाहता हू कि निरुपमा के हेडराईटिंग को सबसे करीब से जानने वाला प्रियभाशु और उसके दोस्त हैं उनके पास निरुपमा का लिखा काफी कुछ होगा क्यो नही मीडिया के सामने लाता हैं।ऐसा करने से इसलिए बच रहे हैं कि सोसाईड नोड की लिखावट निरुपमा की हैं रही बात तारीख पर ओभर राईटिंग का तो जिस दौड़ से वह गुजर रही थी कुछ भी कर सकती थी।
7-प्रियभाशु जो तर्क दे रहे हैं और उनके समर्थन में जो तर्क आ रहा हैं उन सबो से मेरा एक ही सबाल हैं।तीन माह की गर्भवती निरुपमा को शादी करने से कौन रोक रहा था। जिनके प्यार को समर्थन करने वाले इतने सबल हाथ मौजूद हो उसकी कौन सी मजबूरी थी जो माता पिता की सहमति के बाद शादी करना चाहती थी।माँ बिमार हैं उस सूचना पर निरुपमा कोडरमा आती हैं और शादी से इनकार करने पर उसकी हत्या कर दी जाती हैं। क्या यह सम्भव हैं वह भी एक पत्रकार के साथ।
और दूसरा सवाल जब निरुपमा से प्रियभाशु की बात नही हो रही थी और जो मैसेंज दिखलाया जा रहा हैं उससे लगता हैं कि उसकी प्रेमिका मुसीबत में हैं तो जो पहल निरुपमा के मरने के बाद प्रियभाशु औऱ उसके दोस्तो ने किया वह पहल तो उसके जिंदा रहते भी किया जा सकता था।जिस तरीके से आज पूरे मशीनरी को अपने पंक्ष में करने पर मजबूर कर रहे हैं उससे काफी कम मेहनत में निरुपमा को कोडरमा से दिल्ली माँ और बाप के चंगुल से छुड़ाकर लाया जा सकता था निरुपमा कोई बच्ची तो थी नही।क्या इस सबाल का जबाव प्रियभाशु औऱ उसके दोस्त के पास हैं जो आज घड़ियाली आशू बहा रहा हैं।