शनिवार, नवंबर 28, 2009

नीतीश के बेचैनी का राज खुलने लगा हैं


नीतीश कुमार इन दिनों कुछ ज्यादा ही बैचेन दिख रहे हैं।हो भी क्यो न चुनावी साल हैं और विधान सभा उप चुनाव में मिली करारी हार से अभी भी उबर नही पाये हैं।फिर भी उनसे अलोकतांत्रिक व्यवहार की उम्मीद तो नही ही जा सकती हैं।लेकिन इन दिनों इन्होने कई ऐसे कदम उठाये हैं जो उनके लोकतात्रिक चरित्र से मेल नही खाता हैं।यह मेरे लिए भी खोज का विषय था कि आखिरकार नीतीश कुमार जैसे राजनेता जिसे देश का भावी नेता माना जाता हैं इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं। सबसे बड़ा मसला सूचना के अधिकार कानून में संशोधन से जुड़ा हैं बिहार देश का पहला राज्य हैं जिन्होने सूचना के अधिकार पर कैंची चलायी हैं और इसे सीमित करने का प्रयास किया हैं।लेकिन दुर्भाग्य यह हैं कि इस मसले पर बिहार के बुद्धिजीवी और पत्रकार पूरी तौर पर खामोश हैं।इस संशोधन को लेकर ब्लांग पर जो लिखना था वह तो लिख कर मैंने अपनी भ्रास मिटाली। लेकिन यह सवाल मेरे जेहन में बार बार उठ रहा था कि आखिरकार नीतीश जी ऐसा क्यों किये।इस सवाल का हल ढूढने में लगा ही हुआ था कि एक दिन पूर्व विधायक उमाधर सिंह का फोन आया कहा हैं संतोष जी, सर पटना में ही हैं मैं भी पटना आया हूं और होटल गली में न्यू अमर होटल के कमरा नम्बर 16 में ठहरा हूं।कलम के इस शेर से मेरी बड़ी बनती थी लेकिन पटना आने के बाद बातचीत कम हो गयी थी।काम निपटा कर शीघ्र ही होटल पहुंचा बातचीत शुरु हुई तो पता चला कि सूचना आयोग के मुख्यआयुक्त इनसे मिलना चाहते हैं।बात शुरु हुई तो मेरे पेर के नीचे से जमीन खिसकने लगी और जिस सवाल का जवाव ढूढने को लेकर मेरी नींद हराम थी उस सवाल का हल मिलते दिखने लगा ।जैसे जैसे बात आगे बढती जा रही थी नीतीश में आये बदलाव का राज खुलता जा रहा था।


इन्होने योजना एवं विकास विभाग से नीतीश के कार्यकाल के दौरान हुए विकास और इकोनोमीग्रोथ के बारे में सूचना मांगा। लेकिन विभाग सूचना देने को लेकर टालमटोल करता रहा जब विभाग पर कारवाई की बात होने लगी तो विभाग ने वित्त विभाग के पास इनका आवेदन भेज दिया। वित्त विभाग भी इनके आवेदन पर टाल मटोल करता रहा लेकिन जब मामला अपीलीय कोर्ट में चला गया तो आनन फानन में वित्त विभाग ने इनके आवेदन को गैर सरकारी संगठन आद्री के पास भेज दिया ।और आग्रह किया कि इनके प्रश्न का जवाव दे दे।आद्री बिहार के आर्थिक बदलवा पर शोध करने वाली संस्था हैं और इन दिनों नीतीश चलीसा पढने में महारत हासिल किये हुए हैं।शैवाल गुप्ता इसके चीफ हैं,लेकिन सवाल का जवाब सूचना के अधिकार के तहत देना था तो इन्होने कानूनी पचरे में पड़ने के बजाय पूरी सूचना मुहैया करा दिया।सूचना काफी चौकाने वाली और विकास पुरुष नीतीश कुमार की कलई खोलने वाली थी।जरा आप भी रिपोर्ट को देखे---------

बिहार एक कृषि प्रधान राज्य हैं और यहां की 90 प्रतिशत अबादी कृषि पर आधारित हैं लेकिन कृषि के क्षेत्र में विकास दर दिन प्रतिदिन कम होती जा रही हैं।

वर्ष-2004—2005—4.47प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।

वर्ष-2005-2006—3.66प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।

वर्ष 2006—2007—1.62प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में

इस तरह यह आंकड़ा बता रहा हैं कि बिहार में कैसा विकास हो रहा हैं।इसी तरह अर्थशास्त्र के द्वितीय सेक्टर उधोग के ग्रोथ का भी यही हाल हैं हलाकि आकड़े की माने तो ग्रोथ 4.06प्रतिशत से बढकर 11.13दिखाया गया हैं। लेकिन आकड़ो में बढोतरी के बारे में लिखा हैं उसमें उधोग के विकास के बारे में कुछ भी जानकारी नही दी गयी हैं।खुद आद्री ने लिखा हैं कि यह बढोतरी शहरों में भवनों निर्माण में तेजी आने के कारण हुई हैं।वही तीसरे सेक्टर में टेलीकोमनिकेशन, बैंकिग और ट्रान्सपोर्ट के क्षेत्र में .10प्रतिशत की बढोत्तरी दिखायी गयी हैं।अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों की माने तो यह ग्रोथ काले धन के फ्लो को दिखा रहा हैं। यह रिपोर्ट सरकार के तमाम रिपोर्ट कार्ड के दावे की कलई खोल कर रख दी हैं।अब मेरे समझ में आया कि नीतीश सूचना के अधिकार पर कैंची क्यों चलाये।बातचीत आगे बढी तो नीतीश से रही सही उम्मीद पर भी ग्रहन लग गया।योजना मद से जुड़े सूचना में सरकार की मशीनरी तो हद कर दी हैं।बिहार सरकार ने जो केन्द्र सरकार को लेखा जोखा भेजा या फिर विधानसभा के पटल पर जो लेखा जोखा रखा और सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी दी गयी तीनों अलग अलग हैं।उमाधर सिंह ने सूचना आयुक्त से पूछा हैं कि आखिरकार इन तीनों सूचना में कौन सी सूचना सही हैं ।इसी मसले पर बातचीत करने के लिए मुख्यसूचना आयुक्त इन्हे मिलने के लिए बुलाया था।मामला आगे न बढे इसको लेकर कई तरह का आफंर उमाधार सिंह को दी जा रही हैं।अब आप समझ सकते हैं कि बिहार की जनता को आकड़ों के सहारे किस तरह छला जा रहा हैं।बातचीत आगे बढी तो मीडिया के नीतीश परस्त होने का भी राज खुल गया हैं।इन्होने सूचना के अधिकार के तहत मांगा कि मीडिया को पिछले तीन वर्षों के दौरान किनता विज्ञापन सरकार की और से मिला हैं आकड़े चौकाने वाले हैं।पचास करोड़ प्रिट मीडिया को और तीन करोड़ रुपया का विज्ञापन इल्कट्रानिक मीडिया जो दिया गया हैं।विज्ञापन के अन्य माध्यमों को जोड़ दे तो लगभग सौं करोड़ खर्च सिर्फ सरकार के उपलब्धियों के प्रचार प्रसार पर किये गये हैं।अब आप ही बताये जिस प्रदेश की आधी से अधिक आबादी की औसत आमदानी रोजाना बीस रुपया से कम हैं वहां सरकार प्रचार प्रसार पर सौ करोड़ रुपये खर्च करती हैं।यही नीतीश के विकास का सच हैं जिसके सहारे दूसरी बार सत्ता में आना चाह रहे हैं।

मंगलवार, नवंबर 24, 2009

नीतीश ने पूरे किये चार वर्ष


आज पूरे बिहार में सीएम सचिवालय से लेकर डीएम सचिवालय तक उत्सव का महौल का था एक से एक लजीज पकवान मेज पर सजाये गये थे।कहते हैं कि इस उत्वस को सफल बनाने के लिए सरकार ने अपनी तिजौंरी खोल रखी थी।अखबार वालों को पचास लाख से एक करोड़ तक का विज्ञापन दिया गया हैं। अखबार वालों ने भी कोई कसर नही छोड़ी थी लग रहा था बिहार के आजादी का उत्सव मनाया जा रहा हैं।एक से एक विचारक, अर्थशास्त्री, और विशेषज्ञों की राय से पूरा अखबार पटा था।नीतीश को महिमामंडित करने में कोई कसर नही रह जाये इसके लिए चीफ रिपोर्टर से लेकर संपादक तक पूरी रात नीतीश चलीसा गढने मैं लगे रहे ऐसा सुबह सुबह अखबार पढने से लग रहा था ।होना भी चाहिए था क्यों कि आज नीतीश सरकार के कार्यकाल का चार वर्ष पूरा हुआ हैं।इस अवसर को भूनाने के लिए सीएम सचिवालय से लेकर डीएम सचिवालय पिछले दो माह से रात दिन एक किये हुए था।उपलब्धि का आकड़ा छूट न जाये इसके लिए विशेषज्ञों की पूरी फौंज लगायी गयी थी।रिपोर्ट कार्ड आने के बाद लगा की वाकय तैयारी पुलफ्रुफ था कार्ड देखने से लग रहा हैं कि इस सरकार की आलोचना करना सूर्य को दिपक दिखाने जैसा हैं।                       लेकिन इस उत्वस के बीच लोगो की राय जानने का जिम्मा आज मुझे मिला था।पटना के सड़कों पर पूरे दिन नीतीश सरकार के जनविरोधी नीति का हवाला देकर भाकपा माले का आन्दोलन जारी रहा। लेकिन बिहार में पहली बार यह देखने को मिला कि जनसरोकार की बात करने वाले भाकपा माले के आन्दोलन में कोई धार नही दिखाई दे रहा था।मुजफ्फरपुर,गया जैसे शहरों में दुकानदारों ने बंद करने से इनकार कर दिया और लोगो ने बंद समर्थकों को पीटा भी।वही दूसरी और लोक उपक्रम से जुड़े हजारों कर्मचारी वर्षों से बंद वेतन के भुकतान की मांग को लेकर अर्द्धनग्न प्रदर्शन किया और सरकार के रिपोर्ट कार्ड को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सरकार ब्यूरोक्रेट के हाथों की कटपूतली बन कर रह गया।पटना के वीमेंन्स कांलेज की छात्राओं ने नीतीश के सुशासन के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अभी भी महिलाये राजधानी पटना में सुरक्षित महसूस नही कर रही हैं।कही किसी ने बटाईदारी कानून की बात कर नीतीश सरकार को कटघरे में खड़े करने का प्रयास किया वही एक युवक ने कहा कि विकास का क्या मतलव हैं बेली रोड सड़क बनाने से विकास होता हैं इनके कार्यकाल में रोजगार के अवसर में कमी आयी हैं एक परीक्षा पास भी किये हैं तो लगता हैं बांस घाट(शमशान घाट)पर ही नियुक्ति पत्र मिलेगा। एक किसान खाद और बीज के लिए गांव से पटना आया था उसकी प्रतिक्रिया सहज और क़टु था किसान को सरकार से क्या चाहिए सरकार खाद और बीज भी मुहैया नही करा पाती हैं तो फिर सरकार क्या कर सकती हैं। सरकार फिलगुड महसूस कर रही हैं।एक रिक्शा चालक ने यहां तक कह डाला कि दिन पर कमाई करते हैं लेकिन परिवार को साथ रखने के लायक आमदनी नही होती हैं महंगाई इतनी बढ गयी हैं । हलाकि नीतीश सरकार को लेकर इस तरह की प्रतिक्रिया दवी जुबान ही सुनने को मिली लेकिन इतना तो जरुर दिखा कि नीतीश कुमार का हाल कही चन्द्र बावू नायडू वाला न हो जाये।क्यों कि नीतीश के फिलगुड,अपराध नियत्रण,विकास और सुशासन से सूबे की 90प्रतिशत जनता महरुम हैं।गांव में आज भी विकास की रोशनी दूर दूर तक दिखाई नही दे रही हैं वही भ्रष्टाचार की आंच मुखिया और पंचायत सचिव के माध्यम से गांव गांव तक पहुंच गया हैं।शिक्षक वहाली और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले को दी जाने वाली राशन किरासन में लूट को रोकने में सरकार की मशीनरी पूरी तरह फैल कर गयी हैं।नरेगा के नाम पर लूट मची हैं और एक बार फिर से मजदूरों का पलायन तेज हो गया हैं।                                                                                लेकिन सरकार और राजधानी में बैंठे बुद्दि विलास करने वालो को लिए यह कोई सवाल नही हैं।खैर मुझे भी इस सवाल से कोई खास वास्ता नही हैं लेकिन दुख हैं कि कही नीतीश कुमार का राजनैतिक कैरियर चन्दबाबू नायडू की तरह ध्वस्त न हो जाये। लेकिन इन सब के बीच जिस तरह से पत्रकारों ने अपनी कलम गिरवी लगा रखी हैं उसका क्या हर्ष होगा यह सोचकर रुह कांप जाती हैं।

गुरुवार, नवंबर 19, 2009

आपातकाल के दौड़ से गुजर रहा हैं बिहार


इतिहास की यह कैसी नियति हैं जिस आपातकाल के खिलाफ बिहार में जेपी के नेतृत्व में छात्र आन्दोलन हुआ और उस आन्दोलन की उपज बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री बिहार में आपातकाल लागू करने पर आमदा हैं।यह पढकर आप सबों को थोड़ा अटपटा जरुर लग रहा होगा लेकिन यह सच हैं।शायद आज जेपी होते तो 1974 से भी बड़े आन्दोलन की घोषणा करते।आपातकाल के समय जो इंदिरा जी नही कर पायी वह आज नीतीश कर रहे हैं और दुख की बात यह हैं कि बिहार जिसे पूरा देश परिवर्तन के आन्दोलन का प्रणेता मानता हैं आज मूक दर्शक बना हुआ हैं।


नीतीश के कार्यशैली को लेकर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं लेकिन इस बार मामला कही ज्यादा गम्भीर हैं नीतीश कुमार ने भारतीय संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का अदम्य साहस दिखाया हैं लेकिन मीडिया से लेकर सारा तंत्र नीतीश के इस दुसाहस पर चुप हैं।मामला सूचना के अधिकार में कटौती से जुड़ा हुआ हैं।बिहार में लोकतंत्र पर नौकरशाही कितनी हावी हैं इसकी लम्बी चौरी फेहरिस्त हैं ।बिहार में सूचना के अधिकार के तहत अधिकार मांगने वाले सैकड़ो ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर प्रशासन ने जुवान बंद करने के लिए झूठे मुकदमें में फसा दिया हैं।कई लोग जेल गये हैं यह सब लोकतंत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार के संरक्षण में चल रहा हैं।मामला जब जोर पकड़ने लगा तो मुख्यमंत्री ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी को लेकर पदाधिकारी द्वारा दमन की कारवाई करने पर टाल फ्रि नम्बर पर शिकायत दर्ज करने की घोषणा की ।लेकिन जिन अधिकारियों ने मौलिक अधिकार को दमित करने के लिए कानून का दुरउपयोग किया उस पर कोई कारवाई नही की नतीजा सामने हैं मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी सूचना मांगने वालों पर दमनात्मक कारवाई जारी हैं।अब तो हद हो गयी राज्य सरकार ने जिस महाश्य को राज्य का मुख्य सूचना आयूक्त बनाया हैं उन्होने तो हद कर दी।पद भार ग्रहण करते ही इन्होने पूरे बिहार के लोक सूचना अधिकारी को केन्द्रीय कार्मिक विभाग का एक पत्र भेजा जिस पर किसी भी अधिकारी का हस्ताक्षर नही हैं।पत्र में सूचना के अधिकार को परिभाषित किया गया हैं जिसमें लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार हैं कि जो सूचना आप को गैर जरुरी लगे उसे देने के लिए आप बाध्य नही हैं।इसी तरह की कई और बाते इस पत्र में लिखा हुआ हैं।पत्र मिलते ही लोकसूचना अधिकारी की बांझे खिल गयी और सूचना मांगने वाले का फर्म ही लेने से यह कहते हुए इनकार करने लगा कि यह सूचना देने लायक नही हैं।ऐसा पत्र जिस पर किसी ओथिरिटी का हस्ताक्षर नही हो और वह पत्र राज्य सूचना के मुख्य आयुक्त के कार्यालय से निर्गत होता हैं तो आप समझ सकते हैं कि सरकार की मंशा क्या हैं।इस पर बहस शुरु ही हुआ था कि नीतीश सरकार मंगलवार को मंत्रीमंडल की बैंठक में यह फैंसला लेते हैं कि अब एक आवेदन में एक ही सूचना मांगी जा सकती हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बीपीएल सूची के लोगों को भी सूचना पाने के लिए दस रुपये देने होगे।जब कि पहले इन्हे मुफ्त में सूचना दी जाती थी।लोगो को यह समझ में नही आ रहा हैं कि जो कानून देश की संसद ने बनायी जिस पर ऱाष्ट्रपति का मोहर लगा और मामला संवैधानिक अधिकार से जुड़ा हैं ऐसे मामले में राज्य सरकार के मंत्रीमंडल को संशोधन करने का अधिकार हैं क्या।संविधानविदों का मानना हैं कि नीतीश सरकार का यह कदम गैर संवैधानिक हैं।आखिरकार जनता द्वारा चूनी गयी सरकार क्यों जनता के अधिकार की कटौंती के लिए संविधान के प्रावाधान के विपरीत कार्य कर रही हैं ।यह सवाल आप सबों से हैं।सोचिए नीतीश कुमार जिस जनता की ताकत पर दंभ भर रहे हैं उसी जनता के साथ यह खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं।

मंगलवार, नवंबर 17, 2009

अब देश हुआ बेगाना


मुंबई मराठी का,गुजरात गुजराती का,बंगाल बंगाली का,तमिल तमिलों का, बिहार बिहारियों का, तो फिर इस देश के किसान कहा का जिसका कोई अपना प्रदेश नही हैं और ना ही कोई नेता हैं जो अलग से किसानिस्तान की मांग करे।सवाल मौजू हैं देश की अस्सी फिस्दी अबादी किसान हैं लेकिन इसकी सुनता कौंन हैं।मौंसम ने दगा क्या दे दिया आर्थिक महाशक्ति होने का दावा करने वाली भारतीय अर्थ व्यवस्था की हवा निकल गयी हैं।फिर भी इसकी बात सूनने वाला कोई नही हैं क्यों कि यह हमेशा अपने को पहले भारतीय कहता हैं फिर बिहारी,पंजाबी और मराठी।राज ठाकरे को मराठी मानुष से बेहद प्यार हैं सचिन ने क्या कह दिया की बुढा ठाकरे भी हुकांर मारने लगे लेकिन उसी महाराष्ट्र में जहां रोजना किसान आत्म हत्या कर रहा हैं उससे न तो ठाकरे परिवार को वास्ता हैं और ना ही भारतीयता का हुंकार मारने वाली मीडिया का।


पिछले एक सप्ताह से बिहार में आयोजनों की धूम मची हैं पुस्तक मेला,रोड कांग्रेस का ऱाष्ट्र सम्मेलन, राष्ट्रीय बिजनेस मीट,सहकारिता सम्मेलन और आज नंदन निलेकणि साहब बिहार आ रहे हैं।सारा मशीनरी और मीडिया के लिए जैसे उत्सव का माहौल हैं। मुख्यमंत्री बिहार बदल रहा हैं यह सूनने के लिए सारा कुछ दाव पर लगाने को तैयार हैं।मीडिया को बस बिहार बदल रहा हैं कही से भी ये बाते सामने आनी चाहिए बस मुख्यपृष्ठ के लिए खबर मिल गयी।लेकिन इन सब के बीच पूरे बिहार में खाद और बीज को लेकर किसानों का आन्दोलन चल रहा हैं जिसे दमाने के लिए नीतीश कुमार पूरी ताकत लगाये हुए हैं और नीतीश के दमन को यहां के नेता और मीडिया दमाने में लगा हैं।यू कहे तो मीडिया और नेता के लिए किसान कोई मुद्दा नही हैं क्यों कि यह कभी नही कह सकता कि मुझे अलग देश किसानिस्तान चाहिए।पिछले एक पखवाड़े में खाद और बीज के लिए आन्दोलन कर रहे किसानों पर लाठिया चली हैं और आज भी कई इलाकों में चक्का जाम आन्दोलन चल रहा हैं।खाद के लिए आन्दोलन कर रहे दर्जनों किसान आज भी बेतिया जेल में बंद हैं कसूर सिर्फ इतना ही हैं कि ये सब गांव से जिला मुख्यालय खाद लेने पहुंच गये थे।पुलिस ने पहले तो जमकर लाठी चलाई और जब इससे भी बात नही बनी तो आंशू गैंस के गोले बरसाये लेकिन सरकार इससे परेशान नही हैं।सरकार ने पूरे सूबे में कृषि यात्रा निकाली थी यात्रा जिस इलाके से गुजरा लोगो ने जबरदस्त विरोध किया ।मुजफ्फरपुर में कृषि मंत्री को बिना भाषण दिये भागना पड़ा और बेगूसराय में कृषि मंत्री को जान बचा कर भागना पड़ा।

सरकार के पास जबाव नही हैं कि अगर किसान को बीज और खाद नही मिल रहा हैं तो इससे लिए जबावदेह कौन हैं इस मसले पर न तो मुख्यमंत्री कुछ बोलने को तैयार नही और ना ही मुख्यमंत्री की पंसदीदा मंत्री रेणू देवी जिनकी योग्यता यही हैं कि इनकी पहुंच नीतीश के अंतहपुरी तक हैं।ऐसा नही हैं कि खाद और बीज मिल नही रहा हैं जितने चाहिए उतना उपलब्ध हैं लेकिन किमत दो गुनी आदा करनी होगी।

डीएपी जिसकी किमत 486रुपया हैं सात सौं में व्यापारी घर पर पहुंचाने को तैयार हैं।यही स्थिति पोटाश,यूरिया और मकई,गेंहू,मशाले के बीज का हैं पैंसे दिजिए और जितनी चाहिए उपलब्ध हैं।इस मामले में जब में खुद खाद दुकानदार से बात किया तो कहा कि सौं रुपया प्रति बोरा तो खाद लेने के समय ही डीएम के प्रतिनिधि ले लेते हैं और रेलवे के गोदाम से लाने में दस से पाच रुपये प्रति बोरा खर्च परता हैं।आपको 640रुपया प्रति बोरा जितान खाद कहेगे पहुचवा देगे।दुकानदार ऐसे बात कर रहा था कि जैसे मुझ पर ऐहसान कर रहा हो।मैंने समस्तीपुर डीएम को फोन किया और कहा कि आप के जिला में क्या हो रहा हैं डीएम ने जब रोसड़ा एडीओ को मामले की जांच का आदेश के साथ कारवाई करने को कहा तो पूरी मशीनरी दुकानदार को बचाने में लग गया ।कहने का मतलव यह हैं कि सरकार जब किसान को बीज औऱ खाद तक उपलब्ध कराने में असफल हैं तो फिर इस सरकार का मतलव क्या हैं।फिर यह कहे तो भारतीय होने का क्या मतलब हैं।

बुधवार, नवंबर 11, 2009

कुत्ते के प्रेस वार्ता में पत्रकारों की बोलती हुई बंद


स्थान पटना का गांधी मैंदान मौंका था कुत्ते के राज्य स्तरीय सम्मेलन का बिहार के मुख्यमंत्री का कुत्ता से लेकर सूबे के तमाम आलाधिकारी, मंत्री, और विधायक का कुत्ता इस सम्मेलन में उपस्थित थे।तीन दिनों तक चले इस सम्मलेन का मुख्य ऐंजडा था नीतीश कुमार के चार वर्षों के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड तैयार करना।सम्मेलन में पत्रकारों के प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगा था।तीन दिनों तक मीडिया और अखबारों में सूत्रों के हवाले से इस सम्मेलन की खबड़ छपती रही।लेकिन अंतिम दिन आज राजधानी के तमाम मीडिया हांउस के पत्रकारों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था भेज नानभेज से लेकर पिटर एसकोच की व्यवस्था थी तय यह हुआ कि खाना औऱ पीने के बाद प्रेस वार्ता होगी।


प्रेस को सम्बोधित करने को लेकर मुख्यमंत्री ,उपमुख्यमंत्री और गिराजराज सिंह के कुत्ता के बीच कसमकश चल रहा था ।लेकिन आम राय नही बन पा रही थी इन तीनों पर कही एक बार फिर से बटाईदारी के मसले पर फिसलने की सम्भावना को देखते हुए कोई रिक्स लेने को तैयार नही था।लम्बी बहस के बाद डीजी साहब का कुत्ता राधे राधे कहते हुए सभा स्थल पर प्रस्ताव रखा कि यह जवावदेही डीजी होमर्गाड नीलमणि के कुत्ता को दिया जाये।प्रस्ताव आते ही एक स्वर से सभी कुत्ते ने इसका समर्थन कर दिया।प्रस्ताव पास होते ही डीजी होमगार्ड का कुत्ता मुस्कुराते हुए सभी को धन्यवाद दिया और इस जवाबदेही पर पूरी तौर पर खड़े होने का भरोसा दिलाते हुए मुख्यमंत्री के कुत्ते को इशारे इशारे में कुछ कहा और प्रेस वार्ता के लिए निर्धारित स्थल की और प्रस्थान कर गये।स्थल पर पहुंचे तो नजारा देखने लायक था कुत्ते की तरह भोजन पर सभी पत्रकार टुटे हुए थे।हाथ जोड़ते हुए नीलमणि साहब के स्वान ने कहा साँरी विलम्भ के लिए खेद हैं।पास खड़े भारद्वाज के कुत्ते से धीरे से कहा यार क्या माजरा हैं खाने पर इस तरह टुट पड़े हैं जैसे लगता हैं वर्षों से भूखा हो ।एक घंटे तक चली धक्का मुक्की के बाद प्रेस वार्ता शुरु हुई।नीलमणि जी के स्वान ने कहा पहले आप सभी सवाल करे और फिर हम एक एक कर जवाब देगे।सारे तोप पत्रकार वार्ता में मौंजूद थे।अधिकांश चैनलों पर लाईभ चल रहा था क्यों न हो सभी ने जो मोटी रकम लाईभ करने के लिए जो लिया था।सवाल सूबे में बढते अपराध से लेकर बिजली बोर्ड के धोटाले, ललन नीतीश के रिश्ते में आयी खटास सहित मनसे विधायकों के कारनामे तक से जुड़ा था।

आंधे घंटे तक सवाल के बौछार के बाद बारी आयी जबाव देने का नीलमणि साहब के अंदाज में ही उनके स्वान ने भी एक एक सवाल का जवाब देना शुरु किया।अंदर पंडाल में मुख्यमंत्री के कुत्ते साहब प्रेस वार्ता को बड़ी गम्भीरता से देख रहे थे।मोदी साहब का लाडला बटाईदारी से जुड़े सवालों के जवाब का इंतजार कर रहे थे वही नगर विकास के प्रधान सचिव अमानुल्लाह का कुत्ता आराम से खराटा ले रहा था।वार्ता स्थल पर जबरदस्त बहस चल रही थी।इसी दौरान हिन्दुस्तान अखबार के प्रतिनिधि ने स्वान साहब को टोकते हुए कहा कि अपराध से जुड़ा जो आकड़ा आप दे रहे हैं वह पूरी तरह गलत हैं स्वान साहब ने कहा आप सही कह रहे हैं आंकड़ा सही में गलत हैं ।लेकिन यह आंकड़ा तो पिछले चार वर्षों से आप ही अखबार के मुख्य पेंज पर छाप रहे हैं। भारद्वाज साहव यह प्रेस कतरन सभी लोगो को बांट दिजिए।कतरन देखते ही हिन्दुस्तान के प्रतिनिधि मुंह छिपाये वार्ता स्थल से खिसक चले ।अब बारी जागरण के प्रतिनिधि के सवालों के जबाव का था जिसमें भ्रष्टाचार के तरीके से जुड़े आकंड़ों पर जबाव देनी थी ।नीलमणि साहब के स्वान ने पास बैंठे पी0के0ठाकुर के स्वान को इशारे किये और कुछ लाने का निर्देश दिया।इस बीच नीलमणि साहब का स्वान निगरानी के कारवाई पर बोलते रहे लेकिन जागरण के महोदय सूनने को तैयार नही थे।तब तक पी0के0ठाकुर साहब के स्वान सूचना जनसम्पर्क के प्रधान सचिव राजेश भूषण के स्वान के साथ तीन चार मोंटी फाईले लेकर आते हुए दिखे ।उनके आते ही पूरे प्रेसं वार्ता स्थल पर भूचाल आ गया जागरण के प्रतिनिधि किधर गये पता नही चला और प्रभात खबड़ ,आज और सहारा के प्रतिनिधि की भाषा ही बदल गयी।देखते देखते प्रेस वर्ता स्थल पर नीतीश के सुशासन का राष्ट्र गान शुरु हो गया और सभी एक स्वर से राग भैंरवी गाने लगे प्रेस वार्ता नीतीश की जय हो के नारे से गुजने लगा और धीरे धीरे लोग जाने भी लगे नीलमणि साहब का स्वान खड़े होकर सभी का अभिवादन कर रहे थे।तभी उनकी नजर ई0टी0भी0 के प्रतिनिधि पर परा झट से आगे बढते हुए नीलमणि साहब के स्वान ने कहा आप कहा आ जाते हैं इनकी महफिल में। आप अपनी राग जारी रखिये आप का हाल लालू जी के समय भी वही था और नीतीश जी के समय भी वही हैं जिसका स्वभाव बैंरागी वाला रहता हैं उसको बदला नही जा सकता हैं।आवाज थोड़ा लरखराते हुए कहा ऐ सर इ कोन सा ललका फाईल मंगवाये जो सब के सब भाग गया नीलमणि साहब के स्वान ने कहा आप नही समझियेगा।आपके यहां से जो महुंआ में गया हैं उससे पुछये उस ललका फाईल में क्या हैं।ये सब पांच सौं करोड से ज्यादा का विज्ञापन सरकार से लिया हैं और रिपोर्ट कार्ड छापने के लिए सरकार ने सौं करोड़ का बजट बनाया हैं इस फाईल पर एक दो दिन मैं दस्तख्त होना हैं किसको कितना विज्ञापन मिलना हैं।वो सर अब समझ में आया साला हमरे यहां तो इस सब से मतलबे नही हैं चलिए कुछ कहना हैं आपको, क्या कहे आप तो सरकार की ऐसी की तैसी करवे किजिएगा।चलिए सर गुडनाईट बहुत अच्छा खस्सा बना था।अंदर लाईभ देख रहे सभी लोग गदगद थे अरे भाई नीलमणि तो कमाल कर दिया।जाते हैं साहब को कहगे ऐ सर नीलमणि साहब को पर्मानेन्ट प्रवक्ता बनाईये दिजिए।बरका बराक पत्रकार को पानी पीला दिये जो साहब को आये दिन जड़ा में भी पसीना छोड़ाया रहता हैं।

रविवार, नवंबर 08, 2009

किसने कहा प्रभाष जी इस दुनिया से चले गये



प्रभाष जी को पत्रकारिता के क्षेत्र का गांधी कहे तो कोई अतिशियोक्ति नही होगी ।आने वाले समय में जब भी क्रिकेट पर बात होगी, देश के शासन व्यवस्था को लेकर लिखी जायेगी या फिर भारत के आर्थिक सामाजिक और विदेश नीति पर लिखने की बात आयेगी तो एक बार लोगो के जेहन में यह अवश्य आयेगा कि प्रभाष जी इस अंदाज में लिखते या फिर प्रभाष जी इस मसले को इस तरह से सोचते।कहने का मतलब यह हैं कि प्रभाष जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में वो महल खड़ा कर दिया हैं जिसके सामने दुनिया की सबसे बड़ी इमारत भी बौंनी लग रही हैं।


मुझे लगता हैं कि इस दुनिया में मौंत ही एक मात्र सत्य हैं जिसे झुठलाया नही जा सकता। भले ही प्रभाष जी अब टीवी स्क्रीन और अखबारों में बेवाकी से लिखते हुए नही दिखे। लेकिन आने वाले सौ साल बाद भी पत्रकार कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो जाये उसके जुबान और कलम पर प्रभाष जी की झलक दिख ही जायेगी।इनकी यही कृत्ति इन्हे पत्रकारिता का गांधी होने का गुरुर प्रदान करती हैं।कौन कहता हैं कि प्रभाष जी इस दुनिया से चले गये आज भी और अभी भी हमारे बीच उसी अंदाज में धोती पहने खड़े हैं ।और चुनौती दे रहे हैं अखबार में काम करने वाले पत्रकारों को, टीवी चैनल के एंकर और रिपोर्टर को कह रहे हैं मद्दा हैं तो प्रभाष जोशी बनकर दिखाओं।

आज पटना में पत्रकारों के बीच यह चर्चा आम रही कि दैंनिक जागरण अखबार ने प्रभाष जी के बारे में एक खबड़ तक नही लिखा। शायद गुप्ता परिवार को लग रहा होगा कि हमारे नही छापने से प्रभाष जी की लोकप्रियता में बड़ी सेंधमारी हो जायेगी।इनकी नादानी पर हंसी आती हैं बाबू अखबार के पीछे के पन्ने पर पूरे खानदान का नाम प्रबंध संपादक से लेकर स्थानीय संपादक तक क्यों न छपवा लों लोग कहेगे ही कि यह कविता और संपादकीय इसके बाप की लिखी हुई नही हैं।पैंसा है अखबार की फैक्ट्री लगा सकते हो लेकिन बाजार में प्रभाष जोशी जैसा संस्कार नही बिकता हैं जो खरीद लोगे।वक्त अभी बहुत बाकी हैं पत्रकारिता के बल पर पैंसा लूटने वाले जल्द ही इस क्षेत्र से भांगते नजर आयेगे प्रभाष जोशी का भूत इन्हें पीछा छोड़ने वाला नही हैं। प्रभाष जोशी ने एक नही, सौं नही हजार नही ,लाख नही ,करोड़ो ऐसे पाठक पैंदा करके गये हैं जो इन्हे पत्रकारिता करने पर मजबूर कर देगी।खैर छोड़िये बात करते करते कहां चले गये सवाल तो प्रभाष जी के जाने का हैं।

मुझे आज भी याद हैं तारीख 9मई 2000 समस्तीपुर जिले में बाढ आयी हुई थी प्रभाष जोशी और रामबहादुर राय रोसड़ा आये थे बाढ के हलात पर लिखने के लिए और लोगो से बाढ के स्थायी समाधान पर वहस करने के लिए।स्थान था भरतदास मंदीर परिसर में तील रखने की जगह नही थी बाढ पीड़ितों के साथ साथ आसपास के लोग आये हुए थे।कार्यक्रम की शुरुआत बाढ पीड़ितों के आप बीती से हुई और अंत प्रभाष जोशी के दमदार भाषण के साथ। प्रभाष जोशी के भाषण के दौरान सभा स्थल पर मौंजूद फटेहाल और कई दिनों से तटबंध पर शरण लिए हुए ग्रामीणों में लगा जैसे दूसरा गांधी उनके बीच हो सबों के जुबान पर बस एक ही नारा था जोशी बाबा इस दर्द से मुक्ति दिलाओं।

उस वक्त मेरी नयी नयी शादी हुई थी और अपनी पत्नी को प्रभाष जोशी का भाषण सुनाने ले गया था हलाकि उसे इक्छा नही थी उसे लग रहा था कि एक पत्रकार को देख ही रहे हैं तो दूसरा कैसा हो सकता हैं।लेकिन प्रभाष जोशी की बात सून कर पत्रकारों को लेकर उसकी पूरी धारना ही बदल गयी और आज पत्रकारिता के लिए कुछ भी कर पा रहा हू तो उसमें मेरी पत्नी की भूमिका कम कर नही आंकी जा सकती हैं ।क्यों कि हर वक्त वो जोशी जी के आदर्शों को याद दिलाती रहती हैं।यह कैसा संयोग हैं जिस दिन सुबह जोशी जी के मरने की खबर मिली उसी दिन आंफिस जाने पर मुझे प्रमोशन दिये जाने की सूचना दी गयी । लेकिन पूरे घर में खामोशी छाई हुई हैं सिर्फ एक ही चर्चा हो रही हैं किस तरह प्रभाष जोशी और राम बहादुर राय खूले आकाश के नीचे मछरदानी लगा कर सोने की जिंद करते रहे यह कहते हुए कि ऐसी स्वच्छ हवा दिल्ली में मिलती कहा हैं।काफी दिनों बाद आकाश को देखने का अवसर मिला हैं इतनी तारा को कब देखा याद भी नही हैं।घर को लोग चितित थे कि ओस में सोने पर कही इन लोगो की तबियत न बिगड़ जाये ।लेकिन दो दिनों के निवास के दौरान कभी भी जोशी जी को खांसी होते नही देखा।बाद के दिनों में इन्होने अपनी नियमित कांलम में रोसड़ा की यात्रा को लिखा था।प्रभाष जी पढे लिखे के बीच ही नही गांव के किसान के बीच भी उतने ही लोक प्रिय हैं जितने उनके कांलम पढने वाले पाठकों के बीच, ऐसे में कोई इतनी जल्दी कैसे जोशी जी के इस जहां से चले जाने की बात स्वीकार कर ले।