लालू प्रसाद की सत्ता को उखाङ फैकने के लिए नीतीश कुमार ने बिहार में बिकास को चुनावी मुद्दा बनाया था और पहली बार बिहार में जातिये गोलबंदी के बजाय आम मतदाताओं ने विकास के आधार पर वोट दिया।सत्ता सम्भालते ही नीतीश कुमार विकास और सुशासन को अपना मुख्य ऐजंडा बनाया और इस पर अमल हो इसके लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिये।देखते देखते बिहार में सङको का हाल बदलने लगा वर्षो से मृत प्राय सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढने लगी जनता निजी अस्पतालो से मुख मोङने लगे।वर्षो से जिस सङकों पर गाङी चलनी बंद थी उन सङकों पर कार दौङने लगी।बङे बङे फ्लाई ओभर बनने लगे शहरों की सुन्दरता बढने लगी,कानून व्यवस्था में काफी सुधार हुआ राजधानी पटना में जहां शाम के सात बजते बजते दुकाने बंद होने लगती थी अब स्थिति यह हैं कि राजधानीवासी रात के 11 बजे तक शहर में बैखोफ घुमते हैं।इस बदलाव का असर व्यवसाय पर भी देखने को मिला आधुनिक संस्कृति की दुकाने और रेस्टोरेन्ट देखते देखते पूरे बिहार में फैल गया।तीन वर्ष वाद सरकार ही नही वर्षो बाद बिहार आने वाले बिहारी भी बिहार में हो रहे बदलाव की तारीफ करने से नही थकते।लेकिन चुनाव का बिगुल फूकते ही सारा समीकरण बदलने लगा हैं।नीतीश कुमार जो कल तक विकास के नाम पर वोट मांगने की बात कर रहे थे आज सोशल इंजीनियरिंग के सहारे चुनाव जीतने के लिए वो सारे तिकरम कर रहे हैं जिसके सहारे लालू प्रसाद 15 वर्षों तक बिहार में राज्य किया।प्रतिभा की दुहायी लगाने वाले नीतीश कुमार जात और जमात के नाम पर अपराधियों से लेकर दलबदलुओं तक को अपनी पार्टी से टिकट देने से परहेज नही किये और स्थिति यह हैं कि पूरे बिहार में एक बार फिर जातिये गोलबंदी तेज हो गयी।प्रारम्भिक तोङ पर इस मामले को लेकर जनता का नब्ज टटोलने का प्रयास किया तो काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिला हैं।जिस नीतीश कुमार ने सोशल इंजीनयरिंग के नाम पर बिहार के सर्वणों को राजनीत के मुख्य धारा से अलग करने का प्रयास किया हैं वो तवका आज भी विकास के नाम पर नीतीश के खिलाफ आक्रमंक वोटिंग से परहेज करते दिख रहे हैं।काराकाट लोकसभा क्षेत्र जहां राजपूतो का अच्छा खासा वोट हैं और कई बार यहां से राजपूत सांसद रहे हैं।लेकिन नीतीश कुमार ने सोशल इंनजीनियरिंग के तहत कोयरी जाति के महाबली सिंह को टिकट दिया हैं जो एक सप्ताह पूर्व तक राजद (लालू) के पार्टी का विधायक था।इस क्षेत्र के दर्जनों राजपूत मतदाताओ से बात की तो सभी ने विकास की बात दोहराते हुए नीतीश कुमार को वोट देने की बात कर रहे हैं लेकिन यह भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार भी जातिये गोलबंदी को तहजीह दिये तो परिणाम उलट भी हो सकता हैं फिर भी राजपूत मतदाता नीतीश के प्रत्याशी के खिलाफ आक्रमंक वोटिंग नही करेगा।यही स्थिति दरंभंगा,मधुवनी,सहरसा के ब्रह्णण वोटरो का हैं। गौर करने वाली बात यह हैं कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीत में राजपूत और ब्रह्णाण को पूरी तौर पर दर किनार कर दिया हैं। लालू प्रसाद समाजिक न्याय के आंधी में भी इन जातियों के दरकिनार करने का साहस नही उठा पाया थे। फिर भी इस जाति के वोटर बिहार के विकास के नाम पर नीतीश कुमार के खिलाफ जातिये गोलबंदी से आज तक परहेज कर रहे हैं।लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह से राजनेता जातिये भवनाओ को भङका कर लोगो को गोलबंद करने में कामयाब हो जाती हैं तो इस स्थिति में नीतीश कुमार की पार्टी को बङा नुकसान झेलना पङ सकता हैं।ऐसे हालात में यह कहना की विकास के नाम पर वोट नही होता सच के कोसो दूर होगा।यू कहे तो एक बार फिर नीतीश कुमार ने ही जातिय समीकरण,के नाम पर राजनीत की एक नयी शैली की शुरुआत की हैं जो चुनाव से पूर्व ही लोगो को आहत कर दिया हैं।ऐसे स्थिति में बिहार में वोटो का प्रतिशत काफी कम हो जाये तो अतिशियोक्ति नही होगी।जातिवादी राजनीत की नयी धारये जो जन्म देने के लिए नीतीश की जय हो।
1 टिप्पणी:
नितीश ने निश्चित रूप से बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति को पटरी पर लाने का प्रयास किया है. लेकिन चुनाव जीतने के लिए जाते समीकरण तलाश रहे हैं, तो इसे भातीय लोकतंत्र की
विफलता ही कहा जायेगा.
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