बुधवार, अप्रैल 15, 2009

प्रजातंत्र का यह कैसा महापर्व हैं।

15वीं लोकसभा चुनाव की उलटी गिनति शुरु हो गयी हैं।पहली बार चुनाव आयोग और कई स्वंयसेवी संगठनों ने मतदाताओं से मतदान में बढ चढ कर हिस्सा लेने के लिए अभियान चलाया हैं।लेकिन यह अभियान कितना सफल हो पाता हैं वह आने वाला वक्त ही बतायेगा।15वीं लोकसभा चुनाव के पूर्व आज तक देश में जितने भी चुनाव हुए हैं उसमें मतदान का प्रतिशत देखे तो कम से कम 48प्रतिशत और अधिक से 62प्रतिशत अपने मताधिकार का प्रयोग किया हैं।ऐलेक्सन वाच द्वारा तैयार आकंङों पर गौर करे तो शहरों में मतदान का प्रतिशत दिनों दिनों कम होता जा रहा हैं।झौपङ पट्टी के मतदाताओं का प्रतिशत हटा दे तो दिल्ली,मुबई,लखनुउ जैसे शहरों में बङे लोग और शिक्षित वर्ग के मतदाताओं के मतदान का प्रतिशत महज दस से बारह प्रतिशत हैं।मेरा खुद का अनुभव हैं 1998 लोकसभा चुनाव के दौरान मैं दिल्ली विश्वविधालय का छात्र था चुनाव में न तो हमारे शिक्षक मतदान करने गये थे और ना ही दिल्ली के रहने वाले हमारे साथ पढने वाले छात्र।शिक्षक औऱ छात्र चुनाव के दिन मतदान के लिए घोषित छुट्टी का उपयोग पार्क, रेस्टरा और कांलेज के लांन में मौज मस्ती में कर रहे थे।बिहारी होने के कारण नही चाहते हुए भी मतदान केन्द्र पर जाने की इक्छा को रोक नही सका मतदान केन्द्र पहुचा तो नजारा ही कुछ और ही था लम्बी लाईनो की बात करनी तो दूर बङे बुजुर्ग को छोङकर बूथ पर दूर दूर तक कोई नजर नही आ रहा था पार्टी द्वारा वाहन मुहैया कराने के बावजूद भी वोट डालने को लेकर लोगो में कोई खास उत्साह नही दिख रहा था यह नजारा किंग्वेकैम्प इलाका का था।हाई प्रोफाईल माने जाने वाले बंसत कुंज मालवीय नगर,जवाहर लाल नेहूरु विश्वविधालय के आस पास स्थित मतदान केन्द्रो का हाल तो और भी बुरा था दुर दुर तक वोटर दिखायी दी दे रहे थे।उसके उलट नंदनगरी जिसे हमलोग गंधनगरी कहते थे उन इलाकों में वोटरो की लम्बी कतारे देखी जा रही थी।इस बार दिल्ली और कर्नाटक में विधान सभा का चुनाव हुआ तो मैं अपने पुराने मित्रों से मतदाताओं का ट्रन्ड जानना चाहा तो कमों वेस यही स्थिति आज भी हैं।चुनाव के दिन अधिकांश प्राईवेट कम्पीनयों के दफ्तर में आम दिनों की तरह ही चलह पहल देखी जा रही हैं।लाखो रुपये का पैकेज पाने वाले हमारे कई सोफ्टवेयर इनजीनियर और पत्रकार मित्रों से चुनाव के दिन बात किया तो वोट देने की बात करना उन्हे अच्छा नही लगा।मेरे कहने का आसय यह हैं कि जिनके सहारे हम विश्व के सबसे बङे लोकतंत्र होने का दावा कर रहे हैं उनके लिए हमारी सरकार आज तक क्या की हैं।दिल्ली में एक घंटे बिजली कट जाये तो मीडिया के लिए सबसे बङी खबङ बन जाती हैं।सरकार को जबाव देनी पङती हैं लेकिन भारत में आज भी दो लाख से अधिक गांव हैं जहां आज तक बिजली का खम्भा भी नही पहुचा हैं।सरकार की आकङों पर ही गौर करे तो देश की 35करोङ आबादी निरक्षर हैं,31.8करोङ लोगो को स्वच्छ पानी से वचित हैं।वही देश की 25करोङ आवादी को स्वास्थय सुविधा उपल्बध नही हैं।85करोङ आवादी की रोज की आमदानी बीस रुपया से कम हैं। लेकिन आज दो वक्त की रोटी और समान्य सुविधा से भी महरुम देश की 65 प्रतिशत आबादी लोकतंत्र के इस महा पर्व में भाग लेने के लिए पंजाब और दिल्ली से वापस गांव लौट रहे हैं।गांव के ग्रामीण जनता की लोकतत्र के प्रति सब कुछ लुटा देने के बावजूद जो आस्था आज भी बरकरार हैं उनसे खेलवाङ न करे नही तो आने वाल कल वाकय भयावह होगा।आप आपना बजूद ढूढते रह जायेगे कब तक देश की भोली भाली जनता के मेहनत की कमाई के बल पर महानगरों की सुदरता बढाते रहेगे।जरा सोचिए नही तो भारतीय लोकतंत्र का क्षय निश्चित हैं।आज देख लिजिए माओवादियों के वोट बहिष्कार के घोषणा का असर सरकार ने नक्सल प्रभावित इलाकों से पांच सौ मतदान केन्द्रों को हटा लिया हैं और दो सौ से अधिक विधान सभा क्षेत्रों में नकस्लीयों के सम्भावित हमलो को देखते हुए मतदान की समय कम कर दी गयी हैं।यह प्रवृति बढ रही है और इसी तरह हमारी अर्थ नीति चलती रही तो एक दिन ऐसा भी आ सकता हैं की सरकार ई0भी0एम0 लेकर घुमती रहेगी कोई वोट देने वाला नही मिलेगा।

1 टिप्पणी:

hempandey ने कहा…

वोट न डालने की प्रवृति जनता की हताशा और निराशा के फलस्वरूप है.