भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 15वी लोकसभा का चुनाव कई मायनों में यादगार रहेगा।
आजादी के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव रहा जिसमें किसी भी राजनैतिक दल के पास कोई मुद्दा नही था।जब कि मंहगाई चरम पर हैं लेकिन किसी भी राजनैतिक दल ने इस मुद्दे को लेकर मनमोहन की सरकार को घेरने का प्रयास नही किया।वामपंथी जो चुनाव से पूर्व परमाणु डील के मुद्दे पर सरकार गिराने को आमदा थे चुनाव में इस मुद्दे को लेकर चर्चाये भी नही हुई।मुंबई में बिहारियों के पिटाई के मामले में जद यू के सांसद अपने पद से त्यागपत्र दे दिये थे लेकिन चुनाव में इस मसले को लेकर चर्चाये तक नही हुई।आये दिन लोगो की नौकरी जा रही हैं लेकिन यह किसी भी राजनैतिक दल के लिए कोई मुद्दा नही रहा कहने का यह मतलब हैं कि जनता के सरोकार से जुङे मुद्दे को लेकर कोई भी राजनैतिक दल चुनावी मैदान में नही आये थे ऐसे में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नही किया तो कौन सा गुनाह किया।वही इस चुनाव का दूसरा पहलु यह रहा कि चुनावी हिंसा में कही से भी किसी के हताहत होने की खबर नही आयी नक्सलीयों ने तबाही मचाने का प्रयास जरुर किया लेकिन कुछ खास कामयाबी उसे भी नही मिला।कहने का यह तातपर्य हैं कि राजनैतिक दल के गैर लोकतांत्रिक आचरण के बावजूद जनता ने मर्यादित होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया लोकतंत्र के बेहतरी के लिए किया ।लेकिन चुनाव परिणाम के आहट के साथ ही जिस तरीके से दिल्ली के सिंहासन के लिए चौसर में दाव लग रहा हैं भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नही हैं।चुनाव खत्म होते ही राजनेता वह सब कुछ भूल गये जो कुछ चुनाव अभियान के दौरान जनता के सामने वादा किया था।बिहार के मुख्यमंत्री अपने ही गठबंधन के नेता नरेन्द्र मोदी को बिहार आने पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन चुनाव खत्म होते ही दोनो गले मिल रहे हैं। नीतीश कुमार पर भरोसा करने वाले अल्पसंख्यक मतदाताओं को आज क्या महसूस हो रहा होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं।यही स्थिति कांग्रेस का हैं जिन्होने बिहार की जनता से चुनाव के दौरान लालू को मदद करने को लेकर माफी मांगा था लेकिन चुनाव खत्म होंते ही आज एक दूसरे को गले लगा रहे हैं।लालू प्रसाद से अलग हुए अल्पसंख्यक मतदाता और नीतीश के सामंती कार्यशैली से क्षुब्द मतदाताओ का क्या हाल होगा जो कांग्रेस को खुलकर वोट दिया।भारतीय इतिहास में सत्ता के लिए सबसे बङा संग्राम महाभारत को माना जाता हैं जहां सत्ता पर काबिज रहने के लिए सभी तरह के मर्यादाओं को ताक पर रख दिया गया था।लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां जनता की भागीदारी से सरकार बनती हैं इस दौङ में भी सत्ता के लिए इस तरह का खेल क्या जायज हैं।यह एक यक्ष सवाल हैं क्या यही लोकतंत्र हैं।
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