गुरुवार, सितंबर 03, 2009

काश में लड़की होती तो हालात को बेहतर तरीके से समझ पाता

अगर इस जहा में ईश्वर,अल्लाह,ईशा जैसा कोई भगवान हैं। तो मेरी एक फरियाद सुन ले। अगले जन्म में पटना के पत्रकारों का अगर इंसान के रुप में जन्म देते हो तो।, हलाकि इसकी सम्भावना कम ही हैं तो इन्हे महिला में जन्म देना।यह अभिशाप ऐसी टीन ऐंजर छात्राओं की हैं।जिसने काफी उम्मीद से पटना के पत्रकारों से मदद मांगी थी।मामला कांलेज आंफ कोमर्स से जुड़ी हुई हैं जहां पिछले एक सप्ताह से सीनियर छात्रों द्वारा जमकर रैंगिग ली जा रही थी रैंगिग के दौरान लड़के गर्लस कांमन रुम में भी जाने से परहेज नही करते थे।शादी करने के प्रस्ताव के लेकर गद्दी गद्दी गाली देने और इससे भी मन नही भरा तो शाररिक रुप से लड़कियों को प्रताड़ित करने से भी परहेज नही कर रहे थे।हद तो तब हो गयी जब एक दिन छात्रों ने रैंगिग नही करने पर एक लड़की को चाटा मार बैठा।अधिकांश लड़किया लड़कों के इस जुल्म को सहती रही लेकिन कुछ छात्रा ने कांलेज के प्रचार्य से इसकी लिखित शिकायत की लेकिन कारवाई के बदले उलटे प्रचार्य ने लड़कियों को ही नसीहत दे डाली यह सब होता हैं और इसे फैंस करने की आदत डालनी चाहिए प्रचार्य के इस रवैये से छात्राओं को गहरा सदमा लगा लेकिन इन लड़कियों ने हार नही मानी और पूरे मामले की जानकारी अपने अभिभावक को दिया अभिभावक कांलेज आये और मामले को लेकर कांलेज के प्रचार्य से बात की मामला बढता देख कांलेज प्रशासन दो तीन दिनों तक चौंकसी बरती और छात्रों को हिदायत दिया।जैसे ही मामला शांत हुआ लड़कों का आतंक फिर से बढने लगा और स्थिति बढते बढते लड़कियों को पोज में फोटे खिचवाने पर मजबूर करने लगा।इसी बीच किसी लड़की ने जलालत की जिदंगी से मुक्ति के लिए मीडिया का दरवाजा खटखटाया इस उम्मीद से की मीडिया मामले को हाईलाईट करेगे तो कारवाई होगी अक्सर टीवी और अखवार खबड़ के असर के रुप में इस तरह की चीजे लिखते और दिखाते रहते हैं।तय कार्यक्रम के अनुसार रैंगिग करने जैसे ही छात्रों की टीम गलर्स कांमन रुम के पास पहुचा एक लड़की ने मीडिया वाले को फोन कर दिया।तय कार्यक्रम के अनुसार इसकी सूचना सिटी एसपी0 को भी दिया गया।पहले से ही सादे वर्दी में मौजूद पुलिस हरकत में आयी और तीन छात्रों को हिरासत में लेकर जमकर कांलेज परिसर में ही धुनाई कर दी यह सब मीडिया वाले के पहुचने के पहले हो चुका था।इस बीच कई छात्राओं के अभिभावक भी कांलेज पहुंच गये मीडिया वालों की भीड़ देख कांलेज के प्रचार्य की बोलती बंद थी ।उनकी एक की विनती थी कांलेज की छवी धुमिल हो जायेगी।इस बीच कुछ मीडिया वालों की भाषा बदलने लगी यह रैंगिग हैं या फिर छेडखानी।मीडिया वाले के इस रुख से मैं हैरान था और तुरंत ही मैं लड़कियों को अपने चेहरे पर डुपटा ओढ लेनी की सलाह दी क्यों की मीडियाकर्मीयों के बदले रुख को मैं समझ गया था।चंद सैंकेड बाद ही चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज आने लगी कांलेज आंफ कोमर्स की छात्रा के साथ छेड़खानी पुलिस ने तीन छात्रों को हिरासत में लिया।उस वक्त मेरी पूरे मामले को लेकर फोनिंग चल रही थी जिसमें कांलेज प्रशासन के गैर जिम्मेदराना रवैये के साथ सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बावजूद सरेआम रैंगिग होने को लेकर ऐंकर के सवाल का जबाव दे रहा था।थोड़ी देर बाद खबड़ भी इसी ऐंगिल से बुलेटिन में चलने लगी।लेकिन शाम होते होते कई चैनलों का तैवर बदलने लगा और मामले को लगभग छेड़खानी पर लाकर खत्म कर दिया।मीडिया के इस रुप को देख लड़किया थोड़ी विचलित हुई और चैनल वाले से खुला चेहरा नही दिखाने का आग्रह करते हुए छेड़खानी की बातो का प्रतिवाद किया। लेकिन हद तो तब हो गयी जब सुबह आखवार ने पूरे मामले को प्रेम प्रसंग का मामला बताकर लड़कियों के चरित्र का ही मुल्याकन करने लगा।सात बजते बजते लड़कियों के घर में कोहराम मच गया जिस अंदाज में फोटो छापा था मानों फिल्म की सुटींग हो रहा हो।चाय की दुकान से लेकर दूध बेचने वालो की जबाव पर एक ही बाते आ रही थी फलाना की बहन और बेटी कांलेज में क्या क्या गुल खिलाती रहती हैं।देखते देखते जो अभिभावक बेटी की इस लड़ाई में खुल कर मदद कर रहे थे अचानक सकते में आ गये और लड़कियों पर ही बरसने लगे।पूरे परिवार के जुवान पर मीडिया वालों को लिए बददुआ ही निकल रहा था।मीडिया वालो के घर में मां बहने हैं की नही इसी बीच कांलेज की एक छात्रा ने फोन कर यह सारी बाते बतायी खबड़ पढकर मैं भी काफी विचलित था लेकिन मुझे एक दिन पहले ही अंदेशा हो गया था।शर्मीदगी महसूस करने के आलावे और मेरे पास कोई विकल्प भी नही था फोलोअप स्टोरी की सारी सम्भावनाये ही खत्म हो चुकी थी।महिला आयोग के अध्यक्ष से मिलने,मगध विश्वविधालय के अधिकारी से मिलने का पूर्व निर्धारित कार्यक्रमों को रद्द करनी पड़ी।भारी मन से अपने आप को कोसते हुए अपने दफ्तर पहुंचा मन इतनी व्यथित था कि कुछ भी करने का मन नही कर रहा था ।इसी दौरान हमारे वरिष्ट साथी हिन्दुस्तान के कभी संपादक रहे गिरिश मिश्रा के कार्यकलापों का पुल बाधने लगे और कहते कहते यहां तक कह गये की आज अखबार में नये नये लोग दिख रहे हैं उसमें गिरिश मिश्रा की बड़ी भूमिका रही हैं।यह सूनते ही मैं आपा खो बैंठा जिस गिरिश मिश्रा के आलेख को आज भी मैं संयोग कर रखा हैं और प्रेरणा के लिए आये दिन पढता रहता हैं उस गिरिश मिश्रा को गाली देते हुए मैंने कहा कि लानत हैं गिरिश मिश्रा को जिन्होने ऐसे संवेदनहीन व्यक्ति को समाज को दिशा दिखाने की जिम्मेवारी सौंपी।गुस्से मैं कही बातो को लेकर मेरे वरिष्ट साथी को बूरा भी लगा लेकिन मैं आज भी बैचेन हू की उन लड़कियों के मन मैं मीडिया के प्रति जो भावना पैंदा हुई हैं उसका कितना बुरा असर हमारे प्रोफेसन पर पड़ेगा।

6 टिप्‍पणियां:

Randhir Singh Suman ने कहा…

thik hai.

सागर ने कहा…

काश की गिरीश मिश्र का लेख मैं भी पढ़ सकता... घटना वाकई शर्मिंदगी वाली है... बाजारीकरण का परिणाम देखने को मिला.. ब्रेकिंग न्यूज़ की चाहत ने मुआमले को पलट कर रख दिया... बहरहाल यह पढ़ कर जितना खुंदक आप खा रहे है मेरा भी यही हाल है... बिहार के टुच्चे लड़कों को मैं जानता हूँ... वो संकीर्ण और घिनौनी मानसिकता से जीते हैं...

अब नैतिकता का वो जमाना भी नहीं रहा की चैनल्स अपने बुरे कृत्यों पर मुआफी भी मांगे... आप लगे रहे अपने धर्म में यही कहना चाहूँगा...

एक अनुरोध है. की आलेख पराग्राफ्स में लिखा करें... लगातार बोझिल और पढने में भटकाव कर देता है... पटना आऊंगा तो आपसे मिलूँगा जरूर... आपकी इच्छा हो रही थी ना!

ओम आर्य ने कहा…

bilkul aapane sahi kaha par jitani tatsthata se aapane lekh likhi hai
our imandari se wyakt kari hai .......isake liye bahut bahut bahut shukriya

JI ..KAHA JAY ने कहा…

AAP JAISE LOG HAI TO YE VISWAAS BHI HAI KI IS KADAR VISWAS NAHI DAGMAGAYEGA.

बेनामी ने कहा…

main desh ke ek bare media house se judi houn aur kbhi isi campus mein padhi houn.halanki main manti houn ki aj life mein jo kuchh bhi houn isme iska yogdan hai. yahan ke psy dpt ke md suleman sir,rks sir, choudhry sir... ye mere liye god se kam respectable nahin. par yeh bhi sach hai ki inter mein jab yanha padhti thi tab bhi aise ghatnayein aam thi. mejhe khushi hai ki girls ne apni khamoshi todi aour aap jaise log bhi sajag houe. aaj se dedh-do dasak pahle college chodna ya tension main jeena, girls bas yahi karti thin. hum iska aisa pratikaar nahi kar paate the. halanki graduation ke doran psy dept ke teacher arajak mahoul par control pa lete the, par inter main humne bhi is college main bhut kharab mahoul dekha hai.

chetna ने कहा…

main desh ke ek bare media house se judi houn aur kbhi isi campus mein padhi houn.halanki main manti houn ki aj life mein jo kuchh bhi houn isme iska yogdan hai. yahan ke psy dpt ke md suleman sir,rks sir, choudhry sir... ye mere liye god se kam respectable nahin. par yeh bhi sach hai ki inter mein jab yanha padhti thi tab bhi aise ghatnayein aam thi. mejhe khushi hai ki girls ne apni khamoshi todi aour aap jaise log bhi sajag houe. aaj se dedh-do dasak pahle college chodna ya tension main jeena, girls bas yahi karti thin. hum iska aisa pratikaar nahi kar paate the. halanki graduation ke doran psy dept ke teacher arajak mahoul par control pa lete the, par inter main humne bhi is college main bhut kharab mahoul dekha hai.

September 3, 2009 9:01 AM