मंगलवार, अक्तूबर 06, 2009
तूती की आवाज के सफर का एक वर्ष
आज से एक वर्ष पूर्व तूती की आवाज के माध्यम से आप सबों से मिलने का मौंका मिला कई अच्छे अनुभव भी हुए टी0वी0स्टार रविश जी जैसे लोगो का प्यार मिला, सागर जैसा पाठक मिला जिन्होने समय समय पर बेहतर सलाह दिया।वन्दना अवस्थी जैसी महिला मित्र मिली जिन्होने महिलाओं से जुड़ी खबरो पर सार्थक सलाह समय समय पर देती रही ।कौशल जी जैसे नीतीश समर्थक भी मिले।इस तरह ब्लांग के इस सफर में कई ऐसे लोग मिले जिन्होने सफर को जारी रखने में काफी मदद की।सुधा गुप्ता, अर्शिया, अजय कुमार झा जैसे मित्र भी मिले जिन्होने समय समय पर हौंसला अफजाई किया।
साथ काम करने वाले वरिष्ट प्रबोध जी का सहयोग सराहनीय रहा जिन्होने समय पर समय तकनीकी सहयोग के साथ साथ आलेख पर प्रतिक्रिया भी दिया।हमारे संस्थान के तकनीकि इनचार्ज का भी सहयोग मिला जिन्होने मेरे ब्लांग को साथ काम करने वाले लोगो के कम्पूटर से जोड़ दिया।सबो के प्यार और स्नेह से यह सफर जारी रहा हैं अब तो ऐसा लगने लगा हैं कि भोजन की तरह ब्लांग पर जाना शाररीक और मानसिक जरुरत बन गयी हैं। इसके बगैर जी नही सकते हैं जैसे सुबह सुबह अखबार देखने की बैचेनी रहती हैं उसी तरह रात में सोने से पहले ब्लांग पर जाने की बैचेनी रहती हैं।इस आदत से मेरी पत्नी काफी नराज भी रहती हैं।
मेरी पहचान साथ काम करने वालो के बीच ननसिरियस लोगो की श्रेणी में आता हैं हसना और हसाना मेरी पहचान हैं कोई कभी भी गम्भीर बहस के दौड़ान मेरी प्रतिक्रिया पर ध्यान नही देते हैं लोगो को लगता हैं संतोष को बोलने की आदत हैं ।लेकिन तूती की आवाज ने मेरे कई मित्र को मेरे बारे में अलग तरह से सोचने को मजबूर किया हैं।साथ काम करने वाले ऐसे ही एक मित्र जो उर्दु चैनल के बिहार के चीफ हैं महफुज जी एक दिन अचानक मेरे पास आये और धीरे से कहा भाई हम तो आपके फैन हो गये हैं। तूती की आवाज को पढने के बाद आपके बारे में मेरा नजरिया ही बदल गया आप रोजमर्रे की घटना को जिस अंदाज में रखते हैं इसकी सानी नही हैं। इसी तरह की प्रतिक्रिया साथ कार्य करने वाले कुलभूषण जी का भी रहा।मुझे लगा कि ब्लांग बनाने का मेरा मकसद कामयाब हो गया मैंने ब्लांग के माध्यम से वैसे लोगो की लड़ाई भी जीती हैं जिसको लेकर आज का अखबार और टीवी0 चैनल खामोश हैं।दरभंगा की पिक्की जिसे लोगो ने वैश्यामंडी में बेच दिया था ब्लांग पर खबड़ आने के बाद इस तरह भूचाल मचा कि आज इसमें शामिल सभी अपराधी सलाखो के पीछे हैं।इसी तरह कि प्रतिक्रिया बेगूसराय में सरेआम थानेदार द्वारा एक रिक्शा चालक की पिटायी के मामले में सामने आया थानेदार निलम्बित हुआ और रिक्शा चालक पर दर्ज झूठा मुकदमा वापस लेना पड़ा।
मैं इसी मकसद के साथ ब्लांग शुरु किया था कि वैसे अंतिम आदमी का आवाज बनकर कार्य करु जिसकी आवाज इस सोर में कही गुम हो गयी हैं।आप सबों का इसी तरह से प्यार मिलता रहा तो यह ब्लांग एक आन्दोलन बनकर बिहार के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।
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5 टिप्पणियां:
संतोषजी
टूटी की आवाज के सालगिरह पर मेरी बधाई स्वीकार करें.पत्रकारिता में असीम सभावनाएं हैं और बिहार जैसे पिछडे ,उपेक्षित और सामंती मन मिजाज वाले प्रदेश में तो लोकतांत्रिक मूल्यों और जन साधारण के हक़ हुकूक के संघर्ष में तो यह अनिवार्य हथियार है.पत्रकारिता की जनापेक्षी इस्तेमाल आप करते रहें हैं यह आप के ब्लॉग पर उठाये मुद्दों से जाहिर होता है. मैं कामना करता hoon की आप और जोरदार ढंग से पत्रकारिता का इस्तेमाल बिहारी समाज को लोकतांत्रिक बनाने और हासिये पर खड़े और पड़े लोगों के हक़ में करते रहेंगें.
आपने अपनी ब्लॉग यात्रा के एक वर्ष पुरे होने पर जो लेख लिखा है उसमें मेरा जीकर किया उसके लिए मैं आभारी हूँ. पर हाँ अपनी ओर से एक बात रखना चाहता हूँ. पता नहीं आपने मुझे क्यों नीतिश समर्थक कह दिया. मैं न तो वेबजः नीतिश समर्थक हूँ और न हिन् वेबजः नीतिश विरोधी.बिहार की संसदीय राजनीती में नीतिश कुमार औरों की तुलना में बेहतर साबित हो रहें हैं.लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं हैं की वर्तमान सरकार की नीति और नीयत में अगर खोट दिखे तो उसकी आलोचना न की जाय . वस्तुपरक तटस्थ विश्लेषण की जरूरत है.मेरी इस प्रतिकिर्या में बिहार मौजूदा निजाम का सम्यक विश्लेषण संभव नहीं है .अतः इस मुद्दे पर आगे और कुछ नहीं कहूँगा . हालांकि हर आदमी अपने बारे में कई गैरवाजिब खुशफहमी पाले रहता है और मैं भी इसका अपवाद नहीं हूँ .गुस्ताखी माफ करें तो एक बात कहूं की मैं अपने आप को लोकतांत्रिक ,जनवादी मूल्यों का समर्थक मानता हूँ और हर तरह के शोषण और गैरबराबरी का घोर विरोधी .
अंत में एक बार पुनः ब्लॉग के साल गिरह की बधाई.बिहार को संतोष जी जैसे कई और पत्रकारों की जरूरत है.
सादर
बंधुवर माफ़ करें गलती से ब्लॉग का नाम टूटी की आवाज हो गया है. गर संभव हो तो इसे सुधार लिया जाय.
धन्यवाद संतोष जी. ये आपका बडप्पन है जो हमें मान दे रहे हैं. मैं भी पत्रकारिता से जुडी हूं और जानती हूं इसकी ताकत को. बस अन्याय के खिलाफ़ लगे रहिये. हम सब आपके साथ हैं.
बहुत ही बेहतरीन लेख प्रस्तुतिकरण .....पढकर अच्छा लगा.........सालगिरह पर ढेरो शुभकामानाये और ऐसे ही लिखते रहे ............
हर आदमी में होते हैं दस- बीस आदमी
जिसे भी देखना, कई बार देखना
--- आप को जो नॉन-सिरिअस समझे यह शेर उनके लिए सलाह की तरह है...
कई बातें यहाँ उभर कर आती है मसलन -
आपकी ब्लॉग्गिंग के सालगिरह पर बहुत - बहुत बधाई
अपने इस पोस्ट में हमारा आकाश और अनंत महिमामंडन सिर्फ एक लाइन में कर दिया जैसे आकाशवाणी की फ़ोन सेवा हो (यह मजाक है :):):) )
सच कहूँ तो में डर गया था परसों यह खबर पढ़ कर की नीतिश जी की सुरक्षा बढाई गयी, एक धमकी भरा मेसेज एक पत्रकार के मोबाइल पर आया था इसलिए... मुझे लगा कहीं वो आप तो नहीं... शुक्रिया इश्वर का....
पटना आना होगा तो आपसे मिलूँगा... अगर आप चाहें तो हाँ तब तक के लिए आप अपना इ-मेल या फ़ोन नो. तो दे ही सकते हैं...
अंत में, लिखते रहिये... यह लाजमी है और अगर कहने और बांटने के लिए कोई बात है तो ब्लॉग अच्छा जरिए है... मेरे फ़ोन नो. वाले बात पर गौर कीजियेगा... तब तक आगे के लिए शुभकामनाएं...
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