चुनाव आयोग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान उपराष्ट्रपति ने पैसे लेकर खबर छापने की जमकर आलोचना की थी। यह मामला अभी शांत भी नही हुआ था कि फिल्म रण ने मीडिया की कलई खोल कर रख दी। पटना में तो वाकायदा एक संगठन ने सभी मीडिया हाउस को रण फिल्म देखने के लिए आमंत्रित भी किया बड़ी संख्या में पत्रकार फिल्म देखने भी गये पता नही फिल्म का असर पड़ा भी की नही।वही दूसरी और मीडिया के कार्यशैली पर पटना में दो दो सेमीनार हुए हैं जिसमें लोगो ने मीडियाकर्मियों पर जमकर भरास निकाली।यू कहे तो बिहार में इन दिनों मीडियाकर्मी के कार्य को लेकर पूरे समाज में बहस छिड़ी हैं।आमलोग खुलकर आलोचना करने लगे हैं गांव की चौपाटी पर या फिर किसी सरकारी दफ्तर में या फिर किसी कांलेज के कैम्पस में चले जाये मीडिया को लेकर बहस हो रही हैं।कभरेज करने जाये कही न कही से यह आवाज जरुर सुनाई देती हैं कि अरे यह साला सब बिका हुआ हैं।पटना में यह वाकया आये दिन बढता ही जा रहा हैं लोगो का विश्वास लगभग समाप्ति की और हैं राजनैतिक दलों का हाल तो यह हैं कि संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों को खरी खोटी सुनाते है और कहते हैं आप तो नही ही छापेगे।इन दिनों बिहार के कांग्रेसी नेता मीडिया वालो से काफी खफा चल रहे हैं।राहुल गांधी ने पटना में पत्रकारो से बात करते हुए कहा था कि नीतीश की नीयत सही हैं लेकिन इनपिलीमेनटेशन में पूरी तौर पर असफल हैं।लेकिन अखवार वालों ने बयान ही बदल दिया राहुल बोले नीतीश के इरादे नेक पर काम में कमी, इसी तरह किसी अखवार ने छाप दिया राहुल ने नीतीश की तारीफ की।यह तो बानगी हैं बिहार कोई आये पहला सवाल पत्राकारों का होगा बिहार कैसा लग रहा हैं भला कौन कहेगा कि बिहार बूरा हैं कहा और बस सुबह के मुख्यपृष्ठ की लीड खबर होगी अमेरिकन राजदूत ने नीतीश के कार्यशैली को सराहा,बिहार बदल रहा हैं।एक वर्ष के अखबार को देखेगे तो इस तरह के हेंडिग आये दिन देखने को मिलेगा।अब तो आम पाठक भी बिहार साईनिंग और फिलगुड की बात करने लगे हैं।एक गैर पत्रकार मित्र द्वारा इस और इंकित करने पर मैने भी एक अभियान चलाया कि अखबार बिहार को लेकर जो खबरे लिख रहे है उसकी पड़ताल की जाये
जरा आप भी गौर करीये जिस पत्रकार ने बिहार के मैरेकल इकोनोमीग्रोथ को लेकर कांलम लिखा उसी पत्रकार ने 25अप्रैल 2007को लिखा था कि लालू नेहरु से भी बड़ा नेता हैं और इसके कार्यकाल में बिहार का इकोनोमीग्रोथ पंजाब से भी अधिक था हलाकि इस आलेख में लालू के कार्यकाल के दौरान की खामिया भी गिनायी गयी हैं लेकिन लेख के माध्यम से लालू का महिमामडित ही किया गया हैं।(इंडेक्स से सहारे आप लेख पढ सकते हैं।)इसी तरह इकोनोमीस्ट पत्रिका बिहार के बारे में लिखा लेकिन अखबारों ने पत्रिका की आधी बात छापी और ऐसी बाते भी छापी जो उस लेख में लिखा ही नही हैं।ऐसे कई उदाहरण हैं। पता नही बिहार में नीतीश कुमार के सुशासन को लेकर इस तरह की खबर लिखने की होड़ क्यो मची हुई हैं।मेरी नजर में पत्रकार शायद इस दुनिया के पहले प्रोफेसनल हैं जो अपने प्रोफेसन की साख दाव पर लगा कर व्यापार कर रहे।
1-Laloo Yadav beats Nehru hollow
25 Apr 2007, 0043 hrs IST, Swaminathan S Anklesaria Aiyar,
2-India's new miracle economies: Bihar, poor states 3 Jan 2010, 1020 hrs IST, Swaminathan S Anklesaria Aiyar, ET Bureau
3--Bihar has blossomed under Nitish Kumar. But his reforms need deeper roots Jan 28th 2010
PATNA
From The Economist print edition
4--हिन्दुस्तान,30जनवरी2010,पटना ऐडिसन
अंतरराष्ट्रीय पत्रिका इकाँनामिस्ट ने ताजा अंक में नीतीश को सराहा
बिहार की विलक्षण उपलब्धि(नई दिल्ली डेट लाईन से ऐंजसी की खबर हैं)
5--हिन्दुस्तान,3फरवरी 2010,पटना ऐडिसन
राहुल बोले,नीतीश के इरादे नेक पर काम में कमी
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1 टिप्पणी:
सहमत ... आपकी बात गौर करने लायक है सर जी.
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