रविवार, अक्तूबर 10, 2010

इस बार का बिहार चुनाव ऐतिहासिक होगा

मुझे लगता है कि इस बार का चुनाव कई मामलो में ऐतिहासिक होगा एक तो पूरे देश की नजर बिहार चुनाव पर टिकी हुई है और सबो का एक ही सबाल है क्या नीतीश वापस सत्ता में लौटते हैं, या बिहार में एक बार फिर से विकास पर जातीय राजनीत भारी पड़ता है।यह सवाल दिल्ली और महानगरो में राजनीत पर बहस करने वाले और मीडिया के वैसे जमात जो मनमोहन संस्कृति के वाहक है उनके बीच बड़ी जोर शोर से चल रही है।हलाकि चुनावी व्यस्तता के कारण ब्लांग पर लगातार बने रहने में थोड़ी परेशानी जरुर है लेकिन मेरा प्रयास रहेगा कि वैसी महत्वपूर्ण खबरें जिन्हे मीडिया पैसे के कारण सामने लाने से कतरा रही है वे खबरे भी आपके सामने लाये।मीडिया और ब्यूरोक्रेसी का पूरा तबका नीतीश कुमार को दूबारा मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते है जिसका प्रभाव पूरे देश में दिख रहा है ।

बिहार के तमाम मित्र चुनाव को लेकर फोन करते है और एक ही आग्रह होता है नीतीश को जीताओ बड़े दिनो के बाद बिहारी कहलाने में गौरव महसूस हो रहा है,ऐसा ही एक मित्र का फोन बेगलरु से आया कहा संतोष नीतीश की आलोचना करना चुनाव तक बंद कर दो मैंने पुछा क्यो यार, तुम बिहार में हो इसलिए नही समझ पा रहे हो कदम कदम पर गाली देने वाला आज बड़े गर्व से कहता है कि तुम्हारा नीतीश ने तो कमाल कर दिया बिहार को स्वर्ग बना दिया है। आफिस लेकर होटल रेस्टरा तक में बिहारी के प्रति नजरिया बदल गया है,कमोवेश बिहार में रहने वाले मीडिल क्लास की भी यही राय है।स्थिति यह है कि नीतीश के हर सही और गलत फैसले को सही ठहराने को लेकर होड़ मची है,मुझे इससे एतराज भी नही है लेकिन सिर्फ मुझे इतना ही कहना है कि लालू की वापसी न हो इसके लिए नीतीश कुमार का गुणगान पर गुनगान करे यह कही से भी सही नही कहा जा सकता है।

कल तक परिवारवाद और राजनीत के अपराधी करण पर नीतीश कुमार के बयाने पर कलम तोड़ने वाले मेरे सीनियर पत्रकार बंधु क्यो चुप हैं,नीतीश कुमार और सुशील मोदी के जुगल जोड़ी ने बिहार के राजनीत में एक नयी परम्परा की शुरुआत की है 70ऐसे उम्मीदवारो को टिकट दिया है जो दूसरे दल से आये है दोपहर में पार्टी ज्वाईन करता है औऱ शाम में पार्टी उनके टिकट देती है।बाहुबलि की कौन कहे खुद नीतीश कुमार आनंद मोहन के घर पहुंच कर पार्टी में शामिल होने की भीख मांगते हैं।आनंद मोहन पप्पू यादव सहित कई बाहुबलि जो राजनीत में आज सक्रिय है वे कही न कही राज्य में जारी समाजिक टकराव के दौरान पैंदा हुए थे और उनकी पहचान अपने जाति में नायक के रुप में आज भी बचा है लेकिन नीतीश और सुशील मोदी की जुगल जोरी ने मोस्टवान्टेंड सतीष पांडेय जिनके खिलाफ बिहार औऱ उत्तरप्रदेश में दर्जनो अपराधिक मामले दर्ज है उनके भाई को नीतीश जी ने टिकट दिया है।ऐसा ही कुछ भाजपा ने भी किया है बिहार में अपहरण और रंगदारी उधोग से जुड़े सबसे बड़े गिरोह पाडंव सेना के चीफ को अरवल से टिकट दिया है ।जिसको लेकर भाजपा में बबाल मचा है यह वही पांडव सेना गिरोह है जिसने रंगदारी नही देने के कारण दर्जनो व्यापारियो को मौंत की नींद सुला चुका है, और इसके भय से पूरा मध्य बिहार से व्यापारियो का पलायण हो गया था।लेकिन कहते है कि राजनीत में सब कुछ जायज है।

दूसरी बात परिवारवाद कि है, तो नीतीश कुमार ने इसमें भी सारे रेकर्ड को तोड़ दिया रामविलास पासवान के मामा रामसेवक हजारी के परिवार के चार सदस्यो को भाजपा और जदयू ने टिकट दिया ऐसा एक उदाहरण नही है।जब इसको लेकर सवाल किया गया तो नीतीश का कहना था कि इस प्रयोग के लिए समाज अभी तैयार नही है।

लेकिन लगता है नीतीश कुमार भी इतिहास से सबक लेने को तैयार नही है, जिसके कारण इन्होने भी लालू प्रसाद के उस शैली को इस बार के चुनाव में बड़े धड़ल्ले से उपयोग किया है कि कुत्ते के गले में भी पार्टी का सिम्बल पहना देगे तो वे भी विधायक बन जायेगा।यही कारण है कि पार्टी कार्यलय में पिछले कई दिनो से हंगमा हो रहा है औऱ स्थिति यह है कि पार्टी दफ्तर पुलिस छावनी में तब्दील हो गयी है।अधिकारिक सूत्रो की माने तो बिहार के बैंक और हवाला के माध्यम से पिछले एक माह के दौरान दो सौ करोड़ रुपये से अधिक की निकासी हुई है, और उसका उपयोग टिकट खरीदने में की गयी है।ऐसे कई वाकिया सामने आया है जो पहले बिहार में धड़ल्ले से नही होता था।इसलिए मेरा मनना है कि इस बार का चुनाव कई मायनो में महत्वपूर्ण है,क्या राजनैतिक दल लिमिडेंड कम्पनी बन गयी है जिसे चाहे कही भी प्रत्याशी बनाकर लोंच कर दे यही कारण है कि इस बार काफी संख्या में बागी उम्मीदवार खड़े हुए है अब देखना यह है कि जनता जमीनी कार्यकर्ता को वोट देती है या फिर पार्टी लाईन पर मतदान करती है।दूसरा महत्वपूर्ण सवाल है समाजिक टकराव के कारण जातियों के नायक रहे प्रभूनाथ सिंह,आनंद मोहन,पप्पू यादव जैसे लोग राजनीत मे टिके रहते है या फिर उनकी विदाई होती है।तीसरा महत्वपूर्ण सवाल है कि नीतीश और सुशील मोदी ने पिछड़ावाद की जो नयी शैली विकसित कि है उसका परिणाम क्या होता है।

चौथा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस चुनाव में तमाम वैसे बड़े सर्वण नेता जिनकी राजनैतिक हैसियत को दरकिनार कर नीतीश मोदी की जोड़ी ने बिहार में एक नये समीकरण को जन्म देने का प्रयास किया है। देखना यह है कि इस मिशन में इन दोनो जोड़ी को कितनी कामयाबी मिलती है। क्यो कि विकास और कानून व्यवस्था के नाम पर सर्वण का एक बड़ा तबका राजनीत के परम्परागत शैली से अलग होकर वोट देने की बात बड़े जोर शोर से कर रहा है ।अब देखना यह बाकि है कि तथाकथित विकास का ढिढोरा रंग लाता है या फिर बिहार में त्रिसंकु विधानसभा उभर कर सामने आता है।

2 टिप्‍पणियां:

सागर ने कहा…

लालू ने नीतीश की शैली अपना ली है और नीतीश ने लालू की... दोनों पर यह बदला हुआ रूप जाँच नहीं रहा... सरकार में रहते हुए नीतीश भी विज्ञापन की जद में आ गए .... लालू को अपना पुराना पाप कचोट रहा है... जिसके पहुँच में जो आ रहा है कर रहा है... मौजूदा कदम नीतीश की छवि धूमिल करती है वहीँ लालू भी यह बनावटी मुखौटा देर तक बनाये नहीं रख पाएंगे...

ऐसे में चुनाव वाकई दिलचस्प होगा... आप अपडेट और सच के पीछे का सच बताने का वक्त निकालते रहिये...

Mukesh hissariya ने कहा…

जय माता दी ,
आपको दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये....

माँ लक्ष्मी सदैव आप पर अपनीकृपा दृष्टि बनाये रखे यही कामना है....

दीपावली रौशनी का त्योहार है..आइये कुछ ऐसा करें जिससे सबकी की जिंदगी रोशन हो जाये....

शुभ दीपावली......