रविवार, दिसंबर 05, 2010

आज के पत्रकारिता की हकीकत है बरखा दत्त


लगभग एक माह से बरखा दत्त को लेकर पूरे मीडिया में जंग छिड़ा है वीर साहब तो अपना काँलम लिखना बंद कर संन्यास पर जाने के संकेत दे दिये लेकिन बरखा दत्त को लेकर अभी भी खीचतान जारी है।एनडीटीवी भले ही उसका बचाव करे लेकिन बरखा दत्त अपना सब कुछ लूटा चुकी है।लेकिन सच यही है कि आज अधिकांश पत्रकार किसी न किसी स्तर पर बरखा दत्त की तरह लोबिंग करने में जुटे हुए हैं।यह अलग बात है कि बरखा दत्त और वीर सांघवी इस खेल में ऐक्सपोज हो गये और आज यह मुद्दा होटकैक बना हुआ है।लेकिन यह तो आज न कल होना ही था आखिर बकरा कब तक खेर मनायेगा। सवाल यह है कि पत्रकारिता का धंधा भले ही विश्वास का धंधा है लेकिन इस धंधे को चलाने वालो को मुनाफा चाहिए है और अपने गलत कमाई को इस धंधे के सहारे जारी रखने का जरिया चाहिए ।जब उद्देश्य ही गलत है तो फिर इससे बेहतर परिणाम की बात सोचना ही बेमानी है।आखिर कोई भी मालिक जनता के लिए लाखो की पगार क्यो आप पर खर्च करेगा। कोई भी व्यवसायी सौ करोड़ से अधिक की पूंजी का निवेश जनता के लड़ाई के लिए क्यो करेगा कई ऐसे सवाल है।

जिस तरह के लोग पत्रकार बन रहे है उनसे क्या उम्मीद कि जा सकती है वे तो नौकरी करने आये हैं। जहां बेहतर पगार मिलेगा वही नौंकरी करेगें।साथ ही नौकरी में बने रहे इसके लिए ऐसे डिल करने पड़ते है।यह तो अब आप पर निर्भर करता है कि आप इस तरह के डिल में अपना दामन कब तक दागदार होने से बचाते रहते हैं।

सवाल यह भी हैं कि काम कोयले के खादान में करेगे और फिर कालिख लगने से परहेज करेगे यह कैसे सम्भव है। मित्रों वक्त आलोचना करने का नही है बरखा दत्त के हस्र से सीख लेने का है ।पूरी मशीनरी चौथे खम्भे को लेकर कही ज्यादा संवेदनशील हो गया है ।लोग चाहते हैं कि मेरी मर्जी पर कोई रोक न लगाये, कानून का हाल तो आप देख ही रहे हैं कोर्ट अपने गिरेवान में झांकने के बजाय दूसरे को नसीहत देने में लगा है ।ऐसे मैं आपकी जबाबदेही कही ज्यादा बढ गयी है लेकिन इस मैंदान में जमे रहने के लिए इस तरह के कार्य करने की मजबूरी भी है लेकिन इस मजबूरी से बाहर निकलने का कोई मान्य फर्मूला नही है। ऐसे में सब कुछ आपके विवेक औऱ सोच पर निर्भर करता है।वक्त आ गया है अपने आपके बारे मैं सोचने का, बरखा दत्त के तेवर को मरने न दे, भले ही एक बरखा सिस्टम की भेंट चढ गयी लेकिन सौ बरखा के पैदा होने जैसी उर्वर भूमि अभी भी मौंजूद है। आलोचना के बजाय बरखा की उन अदाओ का जिन्दा रखने की जरुरत है जो आज भी करोड़ो भारतीयो के दिल पर राज कर रही है।

4 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

व्यस्तता के कारण बरखा दत्त मामला मैं जान नहीं पाया -एक छोटी सी टिप्पणी नीचे इस बारे में लगा देते तो हम पाठकों का भला हो जाता !

दीपक बाबा ने कहा…

@सौ बरखा के पैदा होने जैसी उर्वर भूमि अभी भी मौंजूद है।


यही सत्य है..... और हमारे देश कि विडंबना है.

rohit kashyap ने कहा…

santosh ji aapki baat sahi kahi hai, aaj ki jo marichika hai wah aam logon se kaphi dur hai. aur jahan tak barkha aur veer ki baat hai to aakhir yah log kab tak bachenge. lekin is desh me kai veer aur barkha hain jinhe dusron ki khilli banane me khub maja aata hai lekin jab apni baari aati hai to inhe sanp sungh jaata hai.
http/kashyap-iandpolitics.blogspot.com

अभिषेक आनंद ने कहा…

आपका कोई संपर्क सूत्र आपके प्रोफाइल में नहीं मिल पाया, अपना ईमेल या कांटैक्ट नंबर उपलब्ध कराते तो बेहतर रहता. वैसे मैंने आपके नाम को फेसबुक पर खोजा आप शायद वहां नहीं हैं, आमंत्रण देता हूँ.
अभिषेक आनंद
मीडिया स्टूडेंट
पटना
abhishek.letters@gmail.com