भ्रष्टाचार को लेकर देश में आजादी के बाद सबसे बड़ी लड़ाई जय प्रकाश नरायण के नेतृत्व मे लड़ी गयी थी और उसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स मसले पर पूरे देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ गोलबंद किया था और अब अन्ना मैदान में हैं।दोनो आन्दोलन का हस्र सामने है।जय प्रकाश नरायण के नेतृत्व में लड़ी गयी लड़ाई का परिणाम 1977में काग्रेस की पराजय के रुप में सामने आयी। और वीपी सिंह ने अभूतपूर्ण बहुमत के साथ देश का बागडोर सम्भालने वाले मिस्टर किलिंन राजीव गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया।दोनो आन्दोलन का एक परिणाम समान्य रहा वह है देश में सत्ता का परिवर्तन।लेकिन दोनो ही बार सत्ता परिवर्तन का प्रयोग पूरी तौर पर सफल नही हो सका। लेकिन एक सत्य जो इस दोनो जन आन्दोलन के बाद सामने आयी वह यह था कि इस व्यवस्था में बहुत कुछ करने की गुनजायस नही है।जेपी ने बाहर रहते हुए सत्ता को जनता के हित में संचालित करने का प्रयास किया। उर्म के साथ साथ नेताओ के आपसी खीचतान के कारण जेपी के अभियान को बड़ी सफलता नही मिली।लेकिन सत्ता की राजनीत से इतर जेपी के अनुयाईयो ने समाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में हो या फिर पत्रकारिता का क्षेत्र हो या फिर ब्यूरो क्रेसी का क्षेत्र हो आज उनमें से कई आदर्श पुरुप है। लेकिन जिसने भी राजनीत के माध्यम से व्यवस्था बदलने की बात की वे सभी के सभी असफल हुए और आज वे कही से भी जेपी के आदर्शो पर खड़े नही उतर रहे हैं। ऐसा नही है कि उनमें जेपी के आदर्शो के प्रति समर्पन नही है लेकिन विधायक और सांसद बने रहने के लिए जो कुछ भी खोना पड़ता है उसके बाद उनके पास खोने के लिए कुछ भी नही बचता है।
वीपी सिंह ने जेपी और गांधी के प्रयोग को लोकतांत्रिक व्यवस्था के माध्यम से मजबूत करने का प्रयोग किया। प्रयोग कितना सफल रहा यह तो विवाद का विषय हो सकता है। लेकिन मुझे याद है 1991 का वह आम चुनाव रामविलास पासवान हमारे यहां से चुनाव लड़ रहे थे ।मंडल कमीशन के दौरान रामविलास पासवान के भाषण से खास कर सर्वण मतादात खासे नराज थे।
रामविलास पासवान की जीत के लिए सर्वण मतदाताओ का मत आना जरुरी था।इसके लिए वीपी सिंह की सभा राजपूत बहुल्य इलाके में आयोजित की गयी जहां वीपी सिंह ने खूले मंच से कहा कि संकट की घड़ी में रामविलास छोटे भाई की तरह हमारे पीठ पर खड़ा रहा जिस तरह राम के साथ लक्ष्मण खड़े हुए थे।रामविलास की जीत में आप सबो की भागीदारी जरुरी है छोटे भाई की भूमिका में इनका कर्ज मेरे उपर है। इतिहास गवाह है कि हमलोग वफादारी को जबाव सर कटा कर देते आये है ऐसे में रामविलास को वोट देना अपनी हजारो वर्ष पूरानी रिवाज को फिर से स्थापित करने से जुड़ा है।
लोगो ने जमकर वोट किया और रामविलास पासवान रेकर्ड मत से चुनाव जीते।लेकिन इसके लिए वीपी सिंह को बहुत कुछ खोना पड़ा और यही कारण था कि सासंद उन्हे प्रधानमंत्री बनाने के लिए कुर्सी लेकर खोज रहे थे और बीपी सिंह दिल्ली के रिंग रोड पर चक्कर लगा रहे थे।आखिर में इंन्द्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री बने थे।
यही चीज समझने की है ,अन्ना के आन्दोलन का मैं पूरी तौर पर समर्थन करता हूं लेकिन भ्रष्टाचार को कानून के सहारे खत्म किया जा सकता है इस विचार से मैं सहमत नही हूं।साथ ही अन्ना और उनके समर्थन में अनशन पर बैंठे लोगो से मेरी गुजारिस है कि स्टेडियम या फिर टीवी स्क्रिन पर मैंच देखना और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना या फिर मैदान में स्टेन और ब्रेट ली का सामना करते हुए बल्ले से जबाव देना। दोनो में जो फर्क है उन्हे समझने की कोशिस करे।
वीपी सिंह ने जेपी और गांधी के प्रयोग को लोकतांत्रिक व्यवस्था के माध्यम से मजबूत करने का प्रयोग किया। प्रयोग कितना सफल रहा यह तो विवाद का विषय हो सकता है। लेकिन मुझे याद है 1991 का वह आम चुनाव रामविलास पासवान हमारे यहां से चुनाव लड़ रहे थे ।मंडल कमीशन के दौरान रामविलास पासवान के भाषण से खास कर सर्वण मतादात खासे नराज थे।
रामविलास पासवान की जीत के लिए सर्वण मतदाताओ का मत आना जरुरी था।इसके लिए वीपी सिंह की सभा राजपूत बहुल्य इलाके में आयोजित की गयी जहां वीपी सिंह ने खूले मंच से कहा कि संकट की घड़ी में रामविलास छोटे भाई की तरह हमारे पीठ पर खड़ा रहा जिस तरह राम के साथ लक्ष्मण खड़े हुए थे।रामविलास की जीत में आप सबो की भागीदारी जरुरी है छोटे भाई की भूमिका में इनका कर्ज मेरे उपर है। इतिहास गवाह है कि हमलोग वफादारी को जबाव सर कटा कर देते आये है ऐसे में रामविलास को वोट देना अपनी हजारो वर्ष पूरानी रिवाज को फिर से स्थापित करने से जुड़ा है।
लोगो ने जमकर वोट किया और रामविलास पासवान रेकर्ड मत से चुनाव जीते।लेकिन इसके लिए वीपी सिंह को बहुत कुछ खोना पड़ा और यही कारण था कि सासंद उन्हे प्रधानमंत्री बनाने के लिए कुर्सी लेकर खोज रहे थे और बीपी सिंह दिल्ली के रिंग रोड पर चक्कर लगा रहे थे।आखिर में इंन्द्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री बने थे।
यही चीज समझने की है ,अन्ना के आन्दोलन का मैं पूरी तौर पर समर्थन करता हूं लेकिन भ्रष्टाचार को कानून के सहारे खत्म किया जा सकता है इस विचार से मैं सहमत नही हूं।साथ ही अन्ना और उनके समर्थन में अनशन पर बैंठे लोगो से मेरी गुजारिस है कि स्टेडियम या फिर टीवी स्क्रिन पर मैंच देखना और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना या फिर मैदान में स्टेन और ब्रेट ली का सामना करते हुए बल्ले से जबाव देना। दोनो में जो फर्क है उन्हे समझने की कोशिस करे।
1 टिप्पणी:
भ्रष्टाचार सिर्फ कानून के जरिये समाप्त तो नहीं किया जा सकता , मगर यह एक हथियार तो बन सकता है !
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