शुक्रवार, मार्च 30, 2012

बदलते बिहार की यह एक तस्वीर है

दो तीन दिनों पूर्व बिहार के मधुवनी के रहने वाले राज झा का फेसबूक पर एक मैंसेज आया,उनका कहना था कि आपका चैनल रोजना देखते है चैनल देखने से लगता है, कि बिहार में कोई खास बदलाव नही आया है। मैं बिहार आना चाहता हूं क्या वाकई में स्थिति ऐसी ही है आप मुझे बेहतर सलाह दे।बिहार से बाहर बिहार के बारे में जो छवि मीडिया ने बनायी है उसमें इस तरह का सवाल पुछना लाजमी है। लेकिन इनके सवाल के जबाव देने के लिए में बेहतर समय का इन्तजार कर रहा था।शायद आज उनके सवालो का जबाव बेहतर तरीके से दिया जा सकता है,मेरा मानना है कि देश में आज नीतीश कुमार के टक्कर का राजनेता नही के बराबर है। बिहार को बदलने के प्रति गम्भीर भी है लेकिन जो समाजिक आर्थिक और प्रशासनिक ढंचा है उसमें बदलाव के लिए जो जजवा चाहिए उसकी कमी नीतीश कुमार में जरुर है। लेकिन इसके लिए सिर्फ नीतीश कुमार को ही जिम्मेवार नही ठहराय सकता है।एक घटना से आप बिहार के बदलाव को बेहतर तरीके से समझ जायेगे।तीन दिन पहले जमुई में रोड लुटेरे ने एक परिवार को लूट लिया और उसमें सवार एक महिला के साथ बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी गयी।पुलिस जांच में ये बाते सामने आयी है कि पति ने ही उस महिला की हत्या करायी है, अपने प्रेमी को पाने के लिए।ऐसा हो भी सकता है लेकिन आप देखिए जिस दिन यह घटना घटी उस दिन घटना के समय गांड़ी में साथ चल रहे मृतका की 8वर्ष की बेटी ,भाई पति और भाभी चीख चीख कर रात भर इस थाने से उस थाने और एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में दौड़ती रही लेकिन किसी पुलिस ने उसकी बात तक नही सुनी। मीडिया में जब खबर चली तो 14घंटे बाद प्राथमिकी दर्ज हुई ,बिहार के किसी भी अखबार ने इस खबर को प्रमुखता नही दिया लेकिन जैसे ही ये बाते आयी कि इस घटना में पति शामिल है खबर प्रथम पेज पर छपने लगा कहने का मतलब यह है कि यहां लोकतंत्र के चारो स्तम्भ नीतीश वंदना करने में लगा है फेस बचाने के लिए किसी भी हद तक सौदा कर सकता है अब आप खुद तय करे,यह महज उदाहरण है लेकिन इश एक उदाहरण से बिहार के बदलाव को समझा जा सकता है रही बात मेरे चैनल द्वारा खबर दिखाये जाने की तो इस पर मेरी कोई प्रतिक्रिया नही होगी।

शनिवार, मार्च 03, 2012

क्या कर रहे हो मित्र

मुझे अब अपने प्रोफेसन से शर्म आने लगा है,समझ में नही आ रहा है की इस प्रोफेसन का क्या होगा, हमलोगो ने तो इस प्रोफेसन के स्वर्णिम काल का आनंद ले लिया। दुर्भाग्य यह है कि नये लड़के जो इस प्रोफेसन से जुड़ रहे  हैं पता नही किस दुनिया में रहते हैं।उन्हे यह समझ में क्यो नही आ रहा है कि पत्रकारिता विश्वास के बुनियाद पर है ठिका है। विश्वास खो दिये तो फिर इस प्रोफेसन से जुड़े लोगो का क्या होगा, लगता है इस और कोई सोचता ही नही है।राजनेता और मीडिया के व्यापार करने वाले उघोगपति भी तो यही चाह रहे है और हमलोग उसके गिरफ्त में फसते जा रहे है, हमारे पास क्या है जनता का विश्वास अगर वही खत्म हो गया तो फिर मेरा हाल क्या होगा सोचिए मित्र।अब जरा कल ही की घटना को ले राज्य के एक बड़े अग्रेजी दैनिक अखबार के बड़े पत्रकार ने लिखा की तीन सौ रुपये के खातिर ठिकेदार नें एक लड़के का दोनो हाथ काट दिया खबर छपते ही हंगामा हो गया।मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश दे दिया विधानसभा और विधानपरिषद में विपंक्षी ने जमकर हंगामा मचाया और उसके बाद तो भिजुउल मीडिया ने  जो खेल खेला  वह तो आप लोग देखे ही होगे।मैंने इस खबर को लेकर संदेह व्यक्त किया लेकिन किसी ने मेरी नही सुनी और उसके बाद शाम में जब सच सामने आये तो खबर चल रही है अपना खंडन क्यो रहे इस दंभ में कोई भी खबर रोकने को तैयार नही हुआ।मामला यह है कि अरवल निवासी रामसागर चन्द्रवंशी का 19फरवरी को दानापुर में ट्रेन से गिरने के दौरान घायल हो गया था।दानापुर  जीआरपी ने घायल चन्द्रवंशी को बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच में भर्ती कराया स्थिति में सुधार होने पर चन्द्रवंशी अस्पताल से भाग खड़ा हुआ और फिर गांव पहुंच कर इस तरह का खेल रचा गया और इसके झांसे में मीडिया आ गया क्यो कि हमारे लिए सरकार को नीचा दिखाने का इससे बेहतर मौंका और क्या हो सकता था।

गुरुवार, मार्च 01, 2012

ससुरा नलायक पुरुष कौम कब सुधरेगा

पुरुष और महिलाओ के रिश्ते को लेकर आये दिन चर्चाय होती रहती है निशाने पर पुऱुष ही होता है,चलिए आज आप सबो से कुछ अलग अंदाज में बात करते है उम्मीद है मित्र आप दिमाग से नही दिल से जबाब देगे।पुरुष आलसी होता है,दूसरे का खयाल नही रखता है,घर का दबाव नही रहे तो पूरे दिन अवारागर्दी करते रहेगा,घर में माँ और पत्नी के एहसान तले दवा रहता है, तो घर से बाहर लड़कियो पर डोरा डालता रहता है,कानून और समाज का भय नही हो तो राह चलते लड़कियो के साथ किसी भी हद को जाने में देर नही लगायेगा,बंधन उसे पसंद नही है ,महिलाओ के मामले में पूरी तौर पर फ्लट करने में विश्वास रखता है, घर से बाहर निकलते ही दूसरे पर डोरा डालना शुरु कर देता है,महिलाओ के साथ इसका व्यवहार इस कदर होता है जैसे कोई उपभोग की वस्तु हो इनते बूरे होते है पुरुष। अब आप बताये इस पुरुष रुपी समस्या का समाधान क्या है। हजारो वर्षो के दौरान हमारे पूर्वजो ने जो समाज का निर्माण किया या फिर परिवार जैसी संस्था बनायी ,जिसके बारे में महिलाये कहती है कि परिवार जैसी संस्था ने महिलाओ के शोषण को और बढा दिया।अब आप ही बताये कौन सी संस्था होनी चाहिए क्यो कि बाकी और जो भी संस्था है उसमें पुऱुष का तो बल्ले बल्ले है ।पुऱुष तो चाहता ही कि जीवन में जीतनी महिलाए मिले बेहतर है बच्चा पैंदा करे और महिलाये उसका लालन पालन करे और सड़क पर पुरुष आवारा कि तरह डोरा डालते रहे।यह सच एक पुरुष के रुप में मैं पूरे होशो हवास में स्वीकार कर रहा हूं और अब आप बताये इस  पुऱुष रुपी समस्या का समाधान क्या हो सकता है
·