पिछले कुछ वर्षो से मीडिया में एक फोबिया देखने को मिल रहा है इसको लेकर कई बार चर्चाये भी हुई आखिर इस फोबिया का कारण क्या है। भाई नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन गया तो लगता है इस देश में क्या हो जायेगा।पता नही इसको लेकर मीडिया मैं इतनी बैचेनी क्यो है। कल जब दफ्तर पहुंचा तो मोहन भागवत के बयान पर बबेला मचा हुआ था सीएम से प्रतिक्रिया लिजिए जितने भी राजनैतिक दल है उसके बड़े नेताओ की जितनी जल्दी हो प्रतिक्रया चाहिए।राजनीति मेरा प्रिय विषय नही रहा है लेकिन राजनैतिक गतिविधियो पर नजर रखते है और राजनैतिक हलात पर सोचते भी है ।मुझे तरस आती है उन बड़े पत्रकारो पर जिनके राजनैतिक समझ के काऱण मीडिया में पहचान है, कैसे नीतीश कुमार को वे पीएम के रेस में मानते है। सीएम के गतिविधियो को मैं भी एक वर्षो से लगातार करीब से देख रहा हूं मुझे तो नही लगता कि नीतीश कुमार इतने बेवकूफ है ।उन्हे अपनी मंजिल और लक्ष्य के बारे में पूरी समझ है और वे जानते है कि उनकी राजनीत अभी आने वाले 2014तक ढलान पर आने वाले नही है।कई बार मीडिया में इन्होने पीएम की बात खारिज भी कर दिये है फिर भी चर्चाये बंद होने का नाम नही ले रहा है ।कल तो हाईट हो गया चीख चीख कर सुशासन की धज्जिया उड़ने वाले टीवी चैनल भी मोहन भागवत के बायन को प्रमुखता से दिखा रहा था जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति ने नीतीश की तारिफ कर दिया हो। इससे पहले भी नीतीश के सुशासन की तारीफ करते रहे है लेकिन इस तरह के न्यूज डस्टबिन में फेक दिये जाते थे। लेकिन कल की खबर नीतीश की जय वाली थी लगता है । मीडिया इस वक्त दो गेम खेल रहा है एक तो नरेन्द्र मोदी को नीतीश के बहाने गुजरात से बाहर आने से रोकना और इसके लिए तरह तरह का हथाकंडा अजमा रहे है।आडवाणी जी के ब्लांग को ही ले उन्होने लिखा क्या उसको दिखाया क्या गया । वही बात मोहन भागवत को लेकर चल रहा है विदेशी मीडिया को भागवत ने क्या कहा उसको किस अंदाज में चलाया जा रहा है ।इसका सीधा मतलब तो यही ही है कि मीडिया अब समाज को एजुकेंट करने के बजाय डिकटेंट करने में लग गया है। जनाव बचिए इस प्रवृति से।प्रधानमंत्री तय करने की जिम्मेवारी भारत की जनता का है मीडिया हाउस का नही ऐसा न हो फिर एक बार भ्रम टूट जाये
143. अरविंद घोष
5 घंटे पहले
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