नये वर्ष की शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत हैं काफी लम्बे अर्से बाद ब्लांग पर आपसे मिल रहा हूं।सोचा था नये वर्ष में नये तेवर के साथ आपसे मिलेगे लेकिन पिछले एक माह से जारी कड़ाके की ठंड ने पूरी योजना पर पानी फेर दिया।नही चाहते हुए भी एक बार फिर नीतीश कुमार को लेकर लिखना पड़ रहा हैं इस बार मामला और भी गम्भीर हैं लेकिन आश्चार्य यह हैं कि इस मसले पर विपक्ष के साथ साथ सभी स्तम्भ खामोश हैं।मामला भारतीय संविधान के अनदेखी से जुड़ा हैं।आप सबों से भी राय अपेक्षित हैं बिहार सरकार ने बीपीएससी के अध्यक्ष अशोक कुमार चौधरी को राज्य सूचना आयोग का मुख्य आयुक्त नियुक्त किया हैं संविधान के अनुच्छेद 319के अनुसार संघ लोकसेवा आयोग और राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य या अध्यक्ष को राज्य सरकार द्वारा किसी और पद पर नियुक्त नही किया जा सकता हैं।लेकिन नीतीश कुमार ऐसा किये हैं अशोक कुमार चौधरी वही हैं जो बीपीएससी के अध्यक्ष बनने से पहले बिहार का चीफ सैक्रट्री थे औऱ इन पर अपने बेटी का मेडिकल कांलेज में गलत तरीके से नामंकन करवाने का आरोप हैं इसके आलावा भी इनका सर्विस काल साफ सुथरी नही रही हैं लेकिन जातिये समीकरण और सरकार के इशारे पर काम करने में फिट बैठने के काऱण सरकार इनके लिए संविधान को ताक पर रख दिया हैं क्या यही नीतीश जी का रुल आंफ लां हैं।
नीतीश कुमार के चार वर्षो के कार्यकाल पर गौर करेगे तो इस तरह के गैर संवैधानिक कार्यो के दर्जनों दृष्टान मिल जायेगे।लेकिन सबसे दुखद पहलु यह हैं कि इस तरह के गैर संवैधानिक कार्य पर पूरा तंत्र खामोस हैं मीडिया तो नीतीश के यश गान में लगा हैं और यही हाल बिहार के बुद्धिजीवीओं का हैं और कोर्ट के बारे में टिप्पनी करना तो अवमानना माना जाता हैं लेकिन इनकी शैली भी अदभूत हैं।
लालू फिर से लौट के नही आ जाये इस भय ने पूरा बिहार को नपुसंक बना दिया हैं और नीतीश इसी भय को दिखाकर वह सब कुछ कर रहे हैं जो कभी राजा महराजा किया करते थे।अशोक चौधरी ने भी पद भार ग्रहन करते ही सरकार को खुश करने के लिए वह कदम उठाया हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र में हैं ही नही इन्होने सूचना के अधिकार के कानून में बदलाव कर दिया हैं जो देश की संसद ने बनायी थी।
148. बंगाल का विभाजन
11 घंटे पहले
3 टिप्पणियां:
पत्रकारिता निस्पक्ष होती है| करना नहीं दिखाना ज़रूरी होता है| निस्पक्षता का ढोंग तो रचिए|
Santosh Ji, स्वागत !!!
बहुत दिनों बाद आमद...
बात वाकई गौर करने वाली है...
किन्तु थोडा असहमत... कभी कभी आपका आलेख खुन्नस दिखता लगता है... अभी कुछ दिनों पहले बिहार की विकास दर को लेकर सभी मुख्य अखबारों ने प्रमुखता से सम्पादकीय छापा था... मुझे लगा था आप इस पर कुछ कहेंगे... किन्तु आपने हमेशा ... नज़र आलोचनात्मक रखना जरूरी है... और सच्ची दिखाना और बताना भी और भी जरूरी ... किन्तु एक भी अच्छा पक्ष न दिखाना... कहाँ तक जायज़ है ? आपने जो मामला उठाया है उस पर नहीं कह रहा...
हाँ जून में पटना आना होगा... आपसे मिलने की तमन्ना है... अपना संपर्क नो. इस पते पर दें तो आभार... sksaagartheocean @gmail .com
सागर जी आपके राय से मैं भी सहमत हू लेकिन नीतीश के मसले पर मैं कुछ ज्यादा ही संवेदनशील हू जिस मैरेक्ल इगोनोमीग्रोथ को लेकर आप मेरा ध्यान आकृष्ट कराना चाह रहे हैं शायद आप भूल गये इस मसले पर मैं 28नम्बर को
(नीतीश के बैचेनी का राज खुलने लगा हैं )शीर्षक के माध्यम से बहुत कुछ लिख चुका हूं आपकी प्रतिक्रिया भी आयी हैं जरा उस आलेख को फिर से पढे ले सच समझ में आ जायेगा।आपके जानकारी के लिए बिहार के इकोनोमीग्रोथ के बारे में मैंने 28 नम्बर को लिखा हैं 3जनवरी को इकोनोमीटाईम्स लिखा और उसके बाद पांच जनवरी को टाईम्स आंफ इंडिया इस पर लिखा और देखते देखते यह खबड़ अखवार से संपादकीय पृष्ठ पर आ गया लेकिन ग्रोथ के एक पंक्ष को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया जिसमें नीतीश के चार वर्षो के कार्यकाल के दौरान कृषि के क्षेत्र में बिहार का ग्रोथ काफी कम हुआ हैं।वही चार जनवरी को पीटीआई ने सीएसओ के चीफ के हवाले से खबड़ चलाया था कि यह आकड़ा बिहार सरकार का हैं और इस आकड़े की सत्यता की जांच मैंने नही किया दुर्भाग्य से पीटीआई के इस रिलीज को किसी अखबार ने नही छापा और नीतीश कुमार का गुणगान शुरु हो गया उस वक्त मैंने अपने चैनल के माध्यम से नीतीश के खेल का भंडाफोड़ कर दिया था तीन दिनों तक इसको लेकर खबड़ दिखाये थे लेकिन कड़ाके की ठंड के कारण ब्लांग पर ये बाते नही लिख पाया था।
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