नीतीश सरकार पर पहली बार घोटाले का आरोप लगा हैं आरोप किसी विपक्षी पार्टी ने नही लगाया हैं बल्कि इनके मंत्रीमंडल के सदस्य ने लगाया हैं।आरोप हैं शराब माफियाओं के साथ मिलकर दस हजार करोड़ के घाटाले का।उत्पातमंत्री जमशेद असरफ ने इस घोटाले मैं मुख्यमंत्री सचिवालय की भूमिका पर भी सवाल उठाया हैं।मंत्री की माने तो विभाग में जारी घोटाले को लेकर पिछले छह माह से मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांग रहे हैं लेकिन मिलने का समय तक नही दिया जा रहा हैं।मजबूरन केविनेट की बैंठक में घाटाले से जुड़ी तमाम बाते साक्ष्य के साथ मुख्यमंत्री को लिखित रुप में दिये लेकिन कारवाई नही हुई।मंत्री की माने तो घोटाले को लेकर पिछले छह माह से लगातार फाईल पर लिख रहा हू लेकिन मंत्री के विरोध के बावजूद इस पर रोक नही लगा। इस घोटाले का तार नीतीश के सुशासन की सरकार के शपथ ग्रहण के साथ ही शुरु हो गया था।जरा आप भी गौर करे।नीतीश सरकार सत्ता सम्भालते ही निर्णय लिया कि सरकार शराब खुद बेचेगी और इसके लिए बिहार राज्य बेब्रिज कांरपोरेशन लिमिटेड का गठन किया गया। जो शराब के बिक्री का कार्य करेगा।उस समय उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने शराब माफिया को नियंत्रित करने के लिए यह कदम उठाने की बात कही थी।नयी नयी सरकार बनी थी लोगो को भी लगा कि सरकार जनता के हित में ही यह फैसला लिया हैं। लेकिन धीरे धीरे सरकार की मंशा सामने आने लगी और सरकार की भूमिका इस्टइंडिया कम्पनी जैसी हो गयी। शराब बैचने के लिए गांव गांव में लाइसेन्स दी जाने लगी और आज स्थिति यह हैं कि गांव में दवा की दुकान नही हैं लेकिन शराब की दुकान कही भी मिल जायेगी।सरकार के आकड़ो को ही माने तो सूबे में दुध से अधिक शराब की बिक्री हो रही हैं।
इस पूरे घोटाले में विजय माल्या की कम्पनी मैकडेव्ल की भूमिका प्रमुख मानी जा रही हैं।जिस पर सरकार के मिली भगत से अन्य राज्यों की तुलना में तीन सौ रुपया प्रति पेटी अधिक मुल्य पर बेब्रिज द्वारा शराब खरीदने की बाते सामने आयी हैं।मामले में कितनी सच्चाई हैं यह तो जांच के बाद ही सामने आयेगी लेकिन विजय माल्या के बिहार प्रेम से लोगो को संदेह जरुर बढा हैं और मंत्री के दावे पर किसी निष्पक्ष ऐजेसी से जांच कराने की बात जायज लग रही हैं।मामला सिर्फ अधिक कमित पर शराब खरीदने से ही नही जुड़ा हैं मामला स्प्रीट के खरीदारी से भी जुड़ा हैं।सरकार पिछले वर्ष मार्च से जून तक दूसरे प्रदेशों को स्प्रीट बेचती हैं और फिर मांग की पूर्ति नही होने की बात कर 60रुपया एल पी अधिक मुल्य में उत्तर प्रदेश की सरकार से बेब्रिज स्प्रीट की खरीदारी करता हैं।आखिर सवाल यह हैं कि जब आपके पास मांग के अनुसार स्प्रीट उपलब्ध नही था तो फिर बेचने की क्या जरुरत थी संदेह यही से पैंदा हुआ और इस खरीदारी औऱ बिक्री में हजारो करोड़ के लेन देन की बात की जा रही हैं।
मामला जो भी हो लेकिन सुशासन की इस सरकार की कलई खुल गयी हैं।नीतीश कुमार को इस पर जबाव देनी चाहिए सिर्फ इतने कहने भर से कि नीतीश को खरीदने के लिए कोई टकसाल नही बना हैं यह कहना काफी नही हैं।मंत्री द्वारा उठाये गये सवालों का जबाव तो आना ही चाहिए।
तस्वीर का दूसरा पंक्ष तो नीतीश सरकार से भी घिनौना हैं।उत्पाद मंत्री पिछले छह माह से इस घोटाले को लेकर मीडिया को लगातार बताते रहे लेकिन किसी ने भी इतनी बड़ी खबर को छापने की जहमत नही उठाई शुक्रगुजार माने बीबीसी की जिसने इस घोटाले को पूरे विश्व में उजागर किया ।फिर भी इस मसले पर बिहार की मीडिया खामोस ही रही शुक्रगुजार सूचना जनसम्पर्क मंत्री की माने जिन्होने एक अखबार के विज्ञापन पर रोक लगा दिया प्रबंधक से लेकर संपादक तक इसके लिए मंत्री के दरवार में माथा टेकते रहे लेकिन मंत्री ने एक न सुनी तो महाशय इस खबर को मुख्य पृष्ट पर छापकर नीतीश सरकार को खुली चुनौती दे दी।कहते है खबर छपते ही सरकार सक्रिय हुई और अखवार के प्रबंधक से विज्ञापन के नाम पर समझौता हो गया।यह आरोप अखवार पर आम पाठकों ने लगाया हैं क्यो कि जिस अखबार ने इतने बड़े धोटाले के पर्दाफास करने का दावा कर रही थी, कल होकर अचानक यह खबर अखबार के पेज पर से गुम हो गयी।पाठको का शंक लाजमी हैं और यह सवाल खड़ा करना की वैश्या की भी अपनी मर्यादा होती हैं कही से भी अमर्यादित नही हैं।
148. बंगाल का विभाजन
7 घंटे पहले
4 टिप्पणियां:
नीतीश कुमार का शासन पिछलों से बहुत बेहतर है. इस घोटाले की जांच कराना ही नीतीश के हक में होगा. मीडिया कैसा है, सबको पता है.
चिंताजनक.
मिडिया अब दलाली कर रहा है।
बात विचारनीय है और इसकी जांच होनी चाहिए... अगर सफ़ेद परदे के पीछे अंधेर है या हो रहा है तो गलत है... २-४ अच्छे काम करने से १-२ गलत काम करने की आज़ादी नहीं दी जा सकती.
एक टिप्पणी भेजें