निरुपमा मामले में मेरा स्टंड पूरी तौर पर स्पष्ट हैं क्रायम रिपोर्टर के रुप में मेरा जो अनुभव रहा हैं और इस तरह के मामले में स्कसपर्ट पुलिस और सीबीआई से जुड़े अधिकारी ,डांक्टर के साथ साथ फौरेन्सिंक विशेषज्ञो से जो हमारी बाते हुई हैं ।उससे निरुपमा के आत्महत्या के प्रयाप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं।निरुपमा की हत्या हुई हैं इसको लेकर जो साक्ष्य पुलिस के पास अभी तक मिला हैं वह सिर्फ पोस्टमार्टन रिपोर्ट।जिस पर कई तरह के सावल खड़े हो चुके हैं।
इस मसले पर आज मैं इसलिए लिख रहा हूं कि ब्लांग पर रजनीश और राज ने इस मामले को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं।हलाकि मैं इस तरह के सवाल जबाव से बचना चाहता था।क्यो कि इस सवाल जबाव के सिलसिले में कई ऐसी बाते भी लिखनी पड़ेगी जो मेरे विचार के विपरीत हैं।
सबाल जबाव का सिलसिला शुरु करने से पहले एक सूचना आप सबो को दे दे।जेएनयू देश की सर्वक्षेष्ठ शिक्षण संस्थान हैं लेकिन निरुपमा मामले में यहां पढने वाले छात्रो की जो भूमिका रही हैं। उसमें मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी गुरेज नही हैं कि जेएनयू कैम्पस संक्रमण काल से गुजर रहा हैं।मैने भी जेएनयू को काफी करीब से देखा हैं आज तक ये मैंने नही देखा कि किसी मुद्दे पर एक पंक्षीय बयान जारी किया हो।स्थिति इतनी बुरी हैं कि अगर कोई पत्रकार इस मसले पर हत्या के एंगल के विपरीत कोई स्टोरी भेजता हैं तो उसे नौंकरी से निकाल देने की धमकी दी जाती हैं।
यह सही हैं कि अच्छे संस्थान मैं पढे हैं।और दिल्ली में रहते हैं तो उनकी पकड़ अधिक होगी हैं, लेकिन इसका यह मतलव नही हैं कि दिल्ली में पत्रकारिता करने वालो की समझ दरभंगा और कोडरमा जैसे जगहो पर काम करने वाले पत्रकारो से बेहतर ही हो।दरभंगा मे छात्र संगठनो ने प्रियभाशु के आचरण पर सवाल खड़े करते हुए प्रतिवाद मार्च निकला था इस खबर को जिस रिपोर्टर ने भेजा उसे नौकरी से निकाल देने की धमकी दी गयी और आज एपवा के बैंनर तले सैकड़ो महिलाये प्रियभशु के घर पर हल्ला बोलने जा रही हैं।यह उदाहरण इसलिए दिया गया हैं कि मीडिया में दोनो पंक्ष आना चाहिए लेकिन जिस तरीके से एक पंक्षीय बाते चल रही हैं वह मीडिया के एथिक्स के साथ साथ जेएनयू के कल्चर के विरपित हैं।मुझे भी दर्द हैं एक होनहार पत्रकार हमारे बीच से चली गयी लेकिन इसका यह कतई मतलब नही हैं कि जिस झझांवत के कारण उन्होने जान दी उसको दरकिनार कर एक नयी थ्योरी गंढ दे।
निरुपमा की मौंत के लिए सिर्फ और सिर्फ पाखंडी पिता और बुजदिल पति प्रियभाशु जिम्मेवार हैं।आपको पता नही दिल्ली में जहां निरुपमा और प्रियभाशु रहता था।अपने परिवार को ही नही जिस मकान में रहता था या यू कहे जिस समाज में रहता था उसे भी धोखा दे रहा था।दोनो एक ही मकान में रहते थे लेकिन दोनो का कमरा दो था क्यो भाई जब आप एक दूसरे को पति पत्नी मान लिए तो फिर दो कमरे में रहने नाटक करने की क्या जरुरत थी ।किसका डर आपको सता रहा था।वही दूसरी बात जिस भोले पन में कह रहे हैं कि मुझे पता ही नही था कि निरुपमा गर्भवती थी।क्या इससे बड़ा भी कोई झूठ हो सकता हैं।निरुपमा तीन माह की गर्भवती हैं और भोलू प्रियभाशु को पता नही हैं।
अब जो सवाल किये जा रहे हैं उसका जबाव भी देख ले-----
1-एक सवाल बड़ी जोर से उठा की प्रिभायशु निची जाति के थे इसलिए निरुपमा के माता पिता शादी करने को राजी नही थे।आपकी जानकारी के लिए बिहार में कायस्थ या लाला जाति उच्ची जाति माने जाते हैं।बड़े ओहदे से लेकर नीचे ओहदे तक सरकारी अधिकारी की संख्या अनगिनत हैं।इसलिए प्रियभाशु जाति गत आधार पर सहानुभूति के पात्र नही हैं।
2-मोबाईल गायब करने और निरुपमा के माता के बार बार बयान बदलने के बारे में तथ्य यही हैं कि पंडित जी की नाक न कट जाये इसके लिए ये सब किया गया ।क्यो कि बिहार झांरखंड में कुउरी बेटी के फांसी लगाने की बात को समाजिक रुप से काफी घृणित माना जाता हैं इतना घृणित की इससे बेहतर होता बेटी डोम से शादी कर ले।रही बात मोबाईल गायब करने की तो उससे फायदा क्या मिलने वाला हैं।सारा कुछ डिटेल्स में निकल सकता हैं।
3-पार्वती अस्पताल ले जाने वाले निरुपमा के सभी पड़ोसी थे उससे एसपी ने पुछताछ भी किया और कई ने मीडिया के सामने भी अपनी बात रखी हैं वही घटना के दिन निरुपमा के सभी रिश्तादार अपने अपने डियूटी पर मौंजूद थे कोडरमा पुलिस तहकिकात कर आ गयी हैं।पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने वाले डांक्टर ही जब कह रहा कि मैने पहली बार पोस्टमार्टम किया हैं तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि उसने क्या किया होगा।
4-जिस चिन्ह की बात कर रहे हैं वह महज खरोच हैं कोई हार्टबलंट इनजूरी नही हैं।रही बात साक्ष्य को छुपाने की तो उसकी सजा उसकी माँ भूगत रही हैं।
5-मोबाईल से जुड़े सवालो के बारे में मेरा कहना हैं कि 22अप्रैल से 28अप्रैल तक निरुपमा अपने दिल्ली के कई मित्रो से दर्जनो बार बात की हैं।लेकिन एख भी बार प्रियभाशुसे बात नही की हैं,इस पर सवाल क्यो नही उठाया जा रहा हैं।दूसरी बात जो सबसे महत्वपूर्ण हैं जितने एसएमएस के बारे में दिखाया जा रहा हैं उनमें से अधिकांश मेसेज सेभ ब्कांस में हैं आप सब मोबाईल यूजर हैं साधारण सवाल हैं मैसेज बांक्स में मैसेज रहता हैं कि सेभ ब्कांस में ।सेभ ब्कांस में रखे मैसेज को मैं ट्रेपिंग कर सकते हैं।यही कारण हैं कि दिल्ली पुलिस के ऐसपेसल सेल ने जब मोबाईल का प्रिंट आउट के साथ साथ मैसेज की जांच प्रारम्भ की तो कई जगह ट्रेम्परिंग नजर आयी जिसके कारण प्रियभाशु का मोबाईल शीज कर पुलिस इसकी जांच सर्बर विशेषज्ञ से कराने जा रही हैं।मोबाईल प्रिंट आउट में जो बाते सामने आयी हैं उसमें 28अप्रैल की शाम 4बजकर 45मिनट से लगभग 5बजे तक निरुपमा और प्रियभाशु के बीच बातचीत हुई हैं और उसके बाद निरुपमा के मोबाईल से कोई फोन नही हुआ हैं।इस बातचीत के बारे में प्रियभाशु कुछ भी बोलने को तैयार नही हैं क्यो कि मोबाईल के प्रिट आउट आने से पहले तक प्रियभाशु निरुपमा से बातचीत होने से साफ इनकार कर रहा था।
6-सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि जिस शोसाईड नोट को लेकर मीडिया तरह तरह का सवाल उठा रहा हैं उनसे मैं जनाना चाहता हू कि निरुपमा के हेडराईटिंग को सबसे करीब से जानने वाला प्रियभाशु और उसके दोस्त हैं उनके पास निरुपमा का लिखा काफी कुछ होगा क्यो नही मीडिया के सामने लाता हैं।ऐसा करने से इसलिए बच रहे हैं कि सोसाईड नोड की लिखावट निरुपमा की हैं रही बात तारीख पर ओभर राईटिंग का तो जिस दौड़ से वह गुजर रही थी कुछ भी कर सकती थी।
7-प्रियभाशु जो तर्क दे रहे हैं और उनके समर्थन में जो तर्क आ रहा हैं उन सबो से मेरा एक ही सबाल हैं।तीन माह की गर्भवती निरुपमा को शादी करने से कौन रोक रहा था। जिनके प्यार को समर्थन करने वाले इतने सबल हाथ मौजूद हो उसकी कौन सी मजबूरी थी जो माता पिता की सहमति के बाद शादी करना चाहती थी।माँ बिमार हैं उस सूचना पर निरुपमा कोडरमा आती हैं और शादी से इनकार करने पर उसकी हत्या कर दी जाती हैं। क्या यह सम्भव हैं वह भी एक पत्रकार के साथ।
और दूसरा सवाल जब निरुपमा से प्रियभाशु की बात नही हो रही थी और जो मैसेंज दिखलाया जा रहा हैं उससे लगता हैं कि उसकी प्रेमिका मुसीबत में हैं तो जो पहल निरुपमा के मरने के बाद प्रियभाशु औऱ उसके दोस्तो ने किया वह पहल तो उसके जिंदा रहते भी किया जा सकता था।जिस तरीके से आज पूरे मशीनरी को अपने पंक्ष में करने पर मजबूर कर रहे हैं उससे काफी कम मेहनत में निरुपमा को कोडरमा से दिल्ली माँ और बाप के चंगुल से छुड़ाकर लाया जा सकता था निरुपमा कोई बच्ची तो थी नही।क्या इस सबाल का जबाव प्रियभाशु औऱ उसके दोस्त के पास हैं जो आज घड़ियाली आशू बहा रहा हैं।
153. ज़ुलु-विद्रोह घायलों की सेवा
3 घंटे पहले
19 टिप्पणियां:
आपसे पूर्ण सहमत , ये एकपक्षीय ढकोसलेबाजी मुझे भी बिलकुल पसंद नहीं !
सही कहा है
यहां का मीडिया एकपक्षीय रिपोर्ट दे रहा है
सही व स-तर्क रहस्योद्घाटन। प्रियभांशु को बचाने की साजिश ( या कहें निरुपमा की मॄत्यु से लाभ उठाने की साजिश ) तो अब हर किसी को साफ़ साफ़ दिखाई दे ही रही है।
सच्चाई का पक्ष रखने पर धन्यावाद
JNU असमाजिक तत्वों की पनाहगाह बनी हुई है इसके और भी की प्रमाण हैं
इस प्रक्रण ने सेकुलर गिरोह के अलोकतांतरिक व भेदभावपूर्म मानसिकता को सबके सामने उधेड़ कर रख दिया
पूर्णत: सहमत
आपसे पूर्ण सहमत |
इन लम्पटों ने तो मोहल्ला लाइव पर एक जनमत पोल भी लगा रखी है जहाँ साफ तौर पर इन्होने निरुपमा के पिता को हत्यारा ठहरा रखा है जबकि अभी तक इस पर जांच चल रही है |
जानते हैं संतोष भाई इस बार पहली बार मुझे ब्लोग की ताकत उसके महत्व और उसकी उपयोगिता का ठीक ठीक अंदाज़ा हुआ । इस प्रकरण पर ब्लोग्गर्स ने जितनी निष्पक्षता से , जितने तथ्यों को समेटा और पूरी बेबाकी से उसे सामने रखा उसने जरूर ही भारतीय पत्रकारिता की आत्मा को बेच खाए लोगों के मुंह पर एक शानदार तमाचा जडा है । आपकी सारी पोस्टें इस मुद्दे पर बहुत ही कारगर हैं । शुभकामनाएं
अफ़सोस ये है कि १०-२० वामपंथी देशद्रोहियों को ही जेएनयू का प्रतिनिधि समझ लिया जाता है. याहां आकार देखें तो पता चलेगा कि ६००० छात्रों में से कितने इनके ढकोसलों और पाखण्ड का समर्थन करते हैं और कितने विरोध. जेएनयू के बारे में इस भ्रान्ति को मिटाने की जरुरत है.
इस खोजपूर्ण, तथ्यात्मक रिपोर्टिंग के लिए धन्यवाद! एक होनहार व्यक्ति की जान तो वापस आने से रही, मगर इसकी पुनरावृत्ति न हो, यह प्रयास तो होना ही चाहिए!
muzaffarnagar ki ghatna ke baad se dilli ki media ko aukat me aa jani chahiye. abhee tak main ye nahee samajh paa rahaa ki priyabhansu ko hero kyon banaya gaya. ye kaisee patrakarita hai. thanx santosh for active blogging.
ayachee.blogspot.com
क्या आप लोगों को नहीं लगता की स्वयम इस चर्चा तक में सब एकतरफा बयानबाज़ी चल रही है. जिन्हें जे.एन.यू. और 'भारतीय जन संचार संस्थान' (IIMC) के बारे में कुछ पता तक नहीं है, जिसे वहां के तथ्यों की पूरी जानकारी तक नहीं है और वो घडियाली आंसुओं की बात कर रहे है. यह सोचने की बात है. खैर, यह गर्व की बात है कि 'भारतीय जन संचार संस्थान' (IIMC) जे.एन.यू. परिसर का एक अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. लेकिनहमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वह पत्रकारिता का एक स्वायत्त संस्थान भी है. बहरहाल, सुनील दत्त जी आप किन तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकल रहे है रहे है कि- "JNU असामाजिक तत्वों की पनाहगाह बनी हुई है इसके और भी की प्रमाण हैं." स्पष्ट है कि यहाँ 'भारतीय जन संचार संस्थान' (IIMC) की बात की जा रही है. पर एक पुख्ता प्रमाण तो आपके पास स्पष्ट है नहीं और औरों की बात कर रहे है. क्या किसी जरुरी बहस को मुद्दा बनाना और उसे चर्चा में लाना ''असामाजिक तत्वों की पनाहगाह'' बनाना है? अगर ऐसा है तो जे.एन.यू. और भारतीय जन संचार संस्थान' (IIMC) असामाजिक तत्वों की पनाहगाह ही सही. आपको जो तथ्य सही लगते है आप उन्हें सबके सामने रखें. हम सभी आपके शुक्रगुजार रहेंगे. इसमें किसी तरह की जल्दबाजी सही नहीं है. रत्नसिंह शेखावत जी की बात में दम है कि- "मोहल्ला लाइव पर एक जनमत पोल भी लगा रखी है जहाँ साफ तौर पर इन्होने निरुपमा के पिता को हत्यारा ठहरा रखा है जबकि अभी तक इस पर जांच चल रही है |'' सतीशचंद्र सत्यार्थीजी आप आखिर दिखाना या कहना क्या चाहते है कृपया स्पष्ट करें. कहीं यह गाली आप अपने आप को तो नहीं दे रहे है. लगता तो यही है कि आप वहीं के विद्यार्थी है. स्मार्ट इंडियंस जी की बात से पुर्णतः सहमत हूँ कि ''इस खोजपूर्ण, तथ्यात्मक रिपोर्टिंग के लिए धन्यवाद! एक होनहार व्यक्ति की जान तो वापस आने से रही, मगर इसकी पुनरावृत्ति न हो, यह प्रयास तो होना ही चाहिए!'' निरुपमा मामले को लेकर मिडिया ने मुद्दा जातिवादी, सामंतवादी और प्रतिक्रियावादी ताकतों को बनाया था, इसमें भटकाव आ सकता है, लेकिन बात निकली है यह बड़ी बात है और इसे दूर तलक तक जाना ही चाहिए. कार्यवाही निरंतर जारी है. अतः किसी भी तरह की भी जल्दबाजी सही नहीं है. सहमत होना गलत नहीं है, लेकिन यह देखना जरुरी है की हमारा स्टेंड क्या है? आखिर हम खड़े कहाँ और किसके साथ है? ''दो बुजदिल कायर के चक्कर में निरुपमा की हुई मौत'' के लिए आपका आभार संतोषकुमार सिंह जी.. लेकिन यहाँ "दो बुल्दिल कायर" से आप क्या कहना चाहते है स्पष्ट नहीं है? बहुत संभव है की आप इसे मोडरेट कर बहस का मुद्दा ही न बनने दें. खैर! इसके लिए भी आपका स्वागत है... आपका पुखराज.
संतोष जी, किस चिरकुट अखबार या टीवी के क्राइम रिपोर्टर हैं आप. अपने ब्लॉग पर आपने ब्राह्मण सभा की बढ़िया बैठकी लगा रखी है.
आपके पोस्ट का बिन्दुवार जवाब दे रहा हूं. दम है तो कमेंट डिलीट मत कीजिएगा. आपके जैसे रिपोर्टर को मैं अपने दफ्तर में पांव न रखने दूं.
“इसको लेकर जो साक्ष्य पुलिस के पास अभी तक मिला हैं वह सिर्फ पोस्टमार्टम रिपोर्ट।जिस पर कई तरह के सावल खड़े हो चुके हैं।“
क्या आप एमबीबीएस हैं या एमडी. पुलिस वालों ने मेडिकल का कोर्स किया है क्या. पोस्टमार्टम तीन डॉक्टरों ने किया था. सबके पास डिग्री है, कई पोस्टमार्टम का अनुभव है. एक था जिसका पहला पोस्टमार्टम था लेकिन वो घर से सुबह उठकर पोस्टमार्टम के लिए नहीं पहुंच गया था, मेडिकल कॉलेज से डिग्री लेकर आया था. मेडिकल कॉलेज में ये सब पढ़ा दिया जाता है. इसलिए पोस्टमार्टम टीम की वेसरा और भ्रूण न रखने की गलती के बावजूद पोस्टमार्टम रिपोर्ट विधिवत वैध है और एम्स के एक्सपर्ट या आप जैसे चिरकुट क्राइम रिपोर्टर के विचार के बावजूद पीएम रिपोर्ट वही रहेगा.
“वही दूसरी बात जिस भोले पन में कह रहे हैं कि मुझे पता ही नही था कि निरुपमा गर्भवती थी।क्या इससे बड़ा भी कोई झूठ हो सकता हैं।निरुपमा तीन माह की गर्भवती हैं और भोलू प्रियभाशु को पता नही हैं।“
आप क्राइम रिपोर्टर हैं तो कल सुबह उठकर अस्पताल जाइए. चार महिला डॉक्टरों से मिलिए. पूछिए कि क्या ये संभव है कि किसी लड़की को 3 महीने के गर्भ का पता न चले. वो जवाब देंगी, ये संभव है. कई पेपर छप चुके हैं जर्नल्स में. पढ़ोगे-लिखोगे, तब तो जानोगे. ब्लॉग खोल लिए हो तो ऐसे बखान कर रहे हो जैसे तुमसे बड़ा क्राइम कोई समझता ही नहीं है.
“एक सवाल बड़ी जोर से उठा की प्रिभायशु निची जाति के थे इसलिए निरुपमा के माता पिता शादी करने को राजी नही थे।आपकी जानकारी के लिए बिहार में कायस्थ या लाला जाति उच्ची जाति माने जाते हैं।“
ये आपके चाचा धर्मेंद्र पाठक ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि प्रियभांशु निचली जाति का है. वर्ना सब यही मानते थे कि कायस्थ उच्च जाति में ही हैं.
“रही बात मोबाईल गायब करने की तो उससे फायदा क्या मिलने वाला हैं।सारा कुछ डिटेल्स में निकल सकता हैं।“
आप कितने टुच्चे रिपोर्टर हैं, ये इसी से समझा जा सकता है कि कॉल डिटेल्स से एसएमएस की जानकारी हासिल करने की बात कर रहे हो. मोबाइल से ही पता चलेगा न बबुआ कि निरुपमा ने क्या लिखा था और क्या नहीं, डिटेल्स से तो यही पता चलेगा कि उसने किसे लिखा था या किससे बात की. पेंच तो यहीं फंसा है.
“पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने वाले डांक्टर ही जब कह रहा कि मैने पहली बार पोस्टमार्टम किया हैं तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि उसने क्या किया होगा।“
फिर चिरकुटई. ये मेडिकल बोर्ड का एक मेंबर है. तुम्हारी तरह घसकटुआ नहीं है. मेडिकल कॉलेज से पढ़कर आया है. बाकी दो डॉक्टर भी थे, वो अंधे थे क्या, उनकी राय का क्या करें. आप कहें तो अचार बना लें.
“जिस चिन्ह की बात कर रहे हैं वह महज खरोच हैं कोई हार्टबलंट इनजूरी नही हैं।रही बात साक्ष्य को छुपाने की तो उसकी सजा उसकी माँ भूगत रही हैं।“
क्या आप ये जख्म देखने के लिए कोडरमा अस्पताल में थे या आपको पता है कि ये चोट कैसे लगी. आप कैसे कह सकते हैं कि ये खरोंच है, पुलिस को आपसे पूछताछ करनी चाहिए. आपके पास कुछ जानकारी है कि चाचा के घर की नीरू को कैसे खरोंच आई थी और कैसे वो चोट नहीं थी.
“जिस तरीके से आज पूरे मशीनरी को अपने पंक्ष में करने पर मजबूर कर रहे हैं उससे काफी कम मेहनत में निरुपमा को कोडरमा से दिल्ली माँ और बाप के चंगुल से छुड़ाकर लाया जा सकता था निरुपमा कोई बच्ची तो थी नही।“
निरुपमा ने जो आखिरी एसएमएस किया था उसमें एक्सट्रीम स्टेप नहीं उठाने कहा गया था. ये एक्सट्रीम स्टेप पुलिस को बुलाना ही था. क्या आपको कभी अपने मां-बाप से हत्या का खतरा महसूस हो सकता है. प्रियभांशु ने 28 अप्रैल की बातचीत में ही कहा था कि पुलिस को बताऊं तो उसने कहा था कि जब कहूंगी, तब. वो मौका आपके चाचा-चाची ने उसे नहीं दिया.
Beta chirkut tum cirkut nahi .tum bhi koi priyanshu ki tarh kitni nirupmaon ko apne jal me fasaye hoge . unka shoshan kiya hoga aur aur unko chor diya hoga .tum reporter ya journalism ko sayad nahi jante ho beta padh lo pahle phir comment dena theek hai .tum jase logone he media ko randi khana bana rakha hai.
काश आपके पत्रकार बनने के सपने कभी न सच हों. आप जैसे लोगों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ बर्बाद करके रख दिया है.
पुखराज जी, जी हाँ मैं जेएनयू का छात्र हूँ और मैं एक कम्यूनिस्ट नहीं हूँ. और आपको बता दूं कि जेएनयू के अधिकांश छात्र कम्यूनिस्ट नहीं हैं. फर्स्ट इयर के स्टुडेंट्स का ब्रेन वाश करके जुलूस में साथ कर लेना और माओ जिंदाबाद (जबकि गाँव से आये छात्र माओ के बारे में ठीक से जान भी नहीं रहे होते हैं.) के नारे लगवा लेना अलग बात है.
अभी दांतेवाडा की घटना के बाद आम छात्रों द्वारा कम्यूनिस्टों को खदेड़ खदेड़ कर भगाए जाने की घटना तो आप तक पहुची नहीं होगी!!
और कश्मीर को अलग करने का समर्थन करने वालों को और भारत विरोधी हर विदेशी शक्ति का समर्थन करने वालों को 'देशद्रोही' कहना मेरे हिसाब से गलत नहीं है.
आपके तथ्यात्मक आवाज को अनकही ने फिर से चुराया,
सटीक विवेचना को अपने ब्लॉग पर चस्पा लिया है मैंने.
बेहतरीन संवाद के लिए आप बधाई लीजिये.
http://rajneeshkjha.blogspot.com/2010/05/blog-post_15.html
sambhav ho to mujhe call karen-09532485770 ,mai priyabhanshu ka batchmate tha.
priyabhanshu ki galti hai.. shadi se pahle sex karte hue sharm nahi ayi.. kya wo apni badi kunwari bahan ko aise kam ki ijaazat dega..? shayad kabhi nahi.. shadi ka jhansa dekar apni bhookh mitata raha.. ab apne nasamajh doston ki aad mein media manage kar raha hai.. yakinan use kadi saja milni chahiye.. bahut kadi..
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