गुरुवार, मई 19, 2011

आज खुद सुजाता टीवी और अखबार की सुर्खिया बनी है


कल तक जो खुद हेडलाईन बनाती थी आज वह खुद हेडलाईन बनी हुई है।बात हम पटना के सुजाता की कर रहे हैं जिन्हें मौंत के मुंह से बाहर निकालने की क्रेडिंट लेने की होड़ चैनलो में मची हुई है।लेकिन खोजपूर्ण पत्रकारिता का दंभ भरने वाली मीडिया सुजाता के इस हालात के पीछे के सच को खोजने में दिलचस्पी क्यो नही दिखा रही है।

आज से सात आठ वर्ष पहले सुजाता पटना से प्रकाशित होने वाले एक अखबार में पत्रकार हुआ करती थी।अपने पिता के गुम होने और माँ के साथ साथ दो भाई के सिजोफेमिया से ग्रसित होने के बावजूद दोनो बहने परिवार को बचाने के जद्दोजहन से जुझ रही थी।सब कुछ ठिक ठाक चल रहा था माँ को पिता की जगह सरकारी नौकरी दिलवाने में भी कामयाब रही। लेकिन सुजाता के साथ ऐसा क्या हुआ कि वो भी अपने को काली कोठरी में कैंद कर ली, इसका जबाव तो उसके साथ काम करने वाले पत्रकार ही दे सकते है।लेकिन आज स्थिति यह है कि पटना का कोई भी पत्रकार यह कहने को तैयार नही है कि सुजाता मेरे साथ काम करती थी।इसके साथ काम करने वालो में एक दिल्ली में परचम लहराह रहे है कई ऐसे है लोग है जो महिला संशसक्तिकरण और पत्रकारिता में समाजिक न्याय की बात करते हुए उसकी दुकान चला रहे हैं ।लेकिन सुजाता का नाम सुनते ही पसीने छुटने लगते है।

जो बाते सामने आ रही है वह यह है कि सुजाता के साथ काम करने वाला कोई साथी पत्रकार ने ही धोखा दिया ,प्यार में धोखा दिया सुजाता उस पर इतना विश्वसास करने लगा था कि अपनी छोटी बहन के विरोध के बावजूद उसे अपने घर में रहने की जगह दी। अपने पैसे से बाईक खरीद कर दिया लेकिन कुछ दिनो के बाद उसे छोड़कर वह लड़का चला गया कहने वालो का कहना है कि अभी वह जमशेदपुर में पत्रकार है।लेकिन इतना सब कुछ ओपेन होने के बावजूद सुजाता को लेकर खोजपूर्ण पत्रकारिता नही हो पा रही है।उसकी माँ और छोटी बहन पिछले कई वर्षो से गायब है कहा गया कोई निठारी जैसी घटना तो पटना में नही हो रही है। इस तरह के कई सवाल खड़े हो रहे है लेकिन सभी के कलम और कैमरे में मानो जंग लग गया है।

नयी पीढी के पत्रकार कुछ अपने बल पर मदद का प्रयास कर रहे हैं।वह भी कब तक चलता है पाता नही, इस अभियान में शामिल एनजीओ के लोग है य़ा फिर वैसे लोग जो समाज सेवा का स्वांग रचते है आज वे सभी अपनी कमित मांग रहे हैं।मुझे लगता है कि हमारी स्थिति गिद्ध से भी बदतर हो गयी है इतने प्रदूषण के बावजूद गिद्ध अभी भी अपने विरादरी का माँस नही खाता है।





1 टिप्पणी:

Abhishek Anand ने कहा…

संतोष सर,
अभी अभी कहीं से भटकते हुए आपके इस पोस्ट पर आया| अपने शहर में घटी इस घटना पर आपके कीबोर्ड से लिखी पोस्ट वाकई अच्छी लगी| घटना से कोई दुःख नहीं हुआ| दिखावे के दुःख व्यक्त करने से मुझे लगता है कोई फायदा नहीं| हां, अब मेरी जिज्ञासा उस सच जानने को जरुर है| लेकिन शायद ही सच सामने आ पाए| आपने नए लोगों से उम्मीद की है| तो निश्चित तौर पर नए लोग कुछ बेहतर कर सकते हैं तब जब कम से कम आप जैसे लोगों से उन्हें हौसला और उत्साह ही मिले| लेकिन कुछ दूसरी बात, चुकी मैं आपके इस ब्लॉग पोस्ट पढ़ने से पहले सुजाता के बारें में किसी खबर से अनजान हूं, अतः मेरे लिए ये खबर अधूरा है| आगे से अगर पिछला सन्दर्भ जोड़ दें, जैसे वो कैसे बंद कोठरी में और कहां पायी गई इत्यादि तो बेहतर रहेगा| और एक बात एक पाठक के तौर पर बताना चाहता हूं कि कई बार कुछ शाब्दिक गलतियां बहुत मायने नहीं रखती, अगर सन्देश स्पष्ट हो तो| हो सकता है आपके पास समय की कमी हो, पर अगर इस तरह की शाब्दिक गलती शायद बर्तन की वजह से हो रही हो मतलब कंप्यूटर टाइपिंग की वजह से.. अगर कम हो तो आपका ब्लॉग और उन्नत हो सकता है... जैसे आपके ब्लॉग में प्रयुक्त निम्नलिखित शब्दों पर ध्यान दें-
'क्रेडिंट लेने' - अनुस्वार नहीं होगा ना
'क्यो नही' - अनुस्वार होगा
'ठिक ठाक' - ठीक
'कई ऐसे है लोग है जो' - वाक्य को पढ़ें
'महिला संशसक्तिकरण' - शब्द को देखें
'प्यार में धोखा दिया सुजाता उस पर इतना' - मतलब ही बदल जाएगा
'विश्वसास' - फिर से टाइप करें
'चलता है पाता नही' - इसे भी पढ़ें
'जद्दोजहन'- द बन गया न
आपका पाठक
अभिषेक आनंद