रविवार, दिसंबर 05, 2010

आज के पत्रकारिता की हकीकत है बरखा दत्त


लगभग एक माह से बरखा दत्त को लेकर पूरे मीडिया में जंग छिड़ा है वीर साहब तो अपना काँलम लिखना बंद कर संन्यास पर जाने के संकेत दे दिये लेकिन बरखा दत्त को लेकर अभी भी खीचतान जारी है।एनडीटीवी भले ही उसका बचाव करे लेकिन बरखा दत्त अपना सब कुछ लूटा चुकी है।लेकिन सच यही है कि आज अधिकांश पत्रकार किसी न किसी स्तर पर बरखा दत्त की तरह लोबिंग करने में जुटे हुए हैं।यह अलग बात है कि बरखा दत्त और वीर सांघवी इस खेल में ऐक्सपोज हो गये और आज यह मुद्दा होटकैक बना हुआ है।लेकिन यह तो आज न कल होना ही था आखिर बकरा कब तक खेर मनायेगा। सवाल यह है कि पत्रकारिता का धंधा भले ही विश्वास का धंधा है लेकिन इस धंधे को चलाने वालो को मुनाफा चाहिए है और अपने गलत कमाई को इस धंधे के सहारे जारी रखने का जरिया चाहिए ।जब उद्देश्य ही गलत है तो फिर इससे बेहतर परिणाम की बात सोचना ही बेमानी है।आखिर कोई भी मालिक जनता के लिए लाखो की पगार क्यो आप पर खर्च करेगा। कोई भी व्यवसायी सौ करोड़ से अधिक की पूंजी का निवेश जनता के लड़ाई के लिए क्यो करेगा कई ऐसे सवाल है।

जिस तरह के लोग पत्रकार बन रहे है उनसे क्या उम्मीद कि जा सकती है वे तो नौकरी करने आये हैं। जहां बेहतर पगार मिलेगा वही नौंकरी करेगें।साथ ही नौकरी में बने रहे इसके लिए ऐसे डिल करने पड़ते है।यह तो अब आप पर निर्भर करता है कि आप इस तरह के डिल में अपना दामन कब तक दागदार होने से बचाते रहते हैं।

सवाल यह भी हैं कि काम कोयले के खादान में करेगे और फिर कालिख लगने से परहेज करेगे यह कैसे सम्भव है। मित्रों वक्त आलोचना करने का नही है बरखा दत्त के हस्र से सीख लेने का है ।पूरी मशीनरी चौथे खम्भे को लेकर कही ज्यादा संवेदनशील हो गया है ।लोग चाहते हैं कि मेरी मर्जी पर कोई रोक न लगाये, कानून का हाल तो आप देख ही रहे हैं कोर्ट अपने गिरेवान में झांकने के बजाय दूसरे को नसीहत देने में लगा है ।ऐसे मैं आपकी जबाबदेही कही ज्यादा बढ गयी है लेकिन इस मैंदान में जमे रहने के लिए इस तरह के कार्य करने की मजबूरी भी है लेकिन इस मजबूरी से बाहर निकलने का कोई मान्य फर्मूला नही है। ऐसे में सब कुछ आपके विवेक औऱ सोच पर निर्भर करता है।वक्त आ गया है अपने आपके बारे मैं सोचने का, बरखा दत्त के तेवर को मरने न दे, भले ही एक बरखा सिस्टम की भेंट चढ गयी लेकिन सौ बरखा के पैदा होने जैसी उर्वर भूमि अभी भी मौंजूद है। आलोचना के बजाय बरखा की उन अदाओ का जिन्दा रखने की जरुरत है जो आज भी करोड़ो भारतीयो के दिल पर राज कर रही है।

रविवार, नवंबर 28, 2010

बिहार की जनता ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया


बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम को लेकर विशलेषण का दौड़ जारी है।एक और जहां नीतीश कुमार में लोग देश के प्रधानमत्री की छवी देखने लगे हैं, तो वही दूसरी और विशलेषक परिणाम को मडंल राजनीत के होलिका दहन के रुप में भी देख रहे हैं।वही मुख्यमत्री नीतीश कुमार की अपनी एक अलग व्याख्या है और जनता के इस अपार समर्थन से थोड़ा घबराये हुए हैं। उनकी घबराहट से मैं भी इत्फाक रखता हूं,हो सकता है वे इतनी दूर तक नही सोचते होगे लेकिन मेरा मानना है कि बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम भारतीय लोकतंत्रातिक व्यवस्था के लिए मील का पथ्थर साबित होगा।जिस उम्मीद से मतदाताओ ने नीतीश कुमार को वोट दिया है उस पर अगर नीतीश खड़े नही उतरे तो भाई यह बिहार है ऐसी प्रतिक्रिया होगी कि मैं सोचकर ही घबरा जाता हूं।मैंने पिछले लेख में नीतीश कुमार के आपार बहुमत से जीतने की बात लिखा था साथ ही मैंने यह भी लिखा था कि जनता में भ्रष्टाचार को लेकर खासा आक्रोश है। मेरी नीतीश कुमार से राय है कि भ्रष्टाचारियो को कानून के सहारे रोका नही जा सकता है कृप्या करके भ्रष्टाचार को नियत्रित करने वाली जो ऐंजसी उपलब्ध है उसकी आजादी बनाये रखे।सूचना के अधिकार कानून पर जो पाबंदी नीतीश कुमार ने लगा रखी है उसे मुक्त करे अधिकारियो को जबाबदेह बनाये सूचना नही देने वाले अधिकारियो के पंक्ष में नही खड़े हो।राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश के पालन में जाति नही देखे।वही लोकपाल और उपभोगता फोरम जैसी संस्थान को मजबूती प्रदान करे नही तो जिस अंदाज में बिहार में हिंसक प्रवृति बढ रही है उसे रोकना काफी मुश्किल होगा।

वामपंथी पार्टियां खासकर भाकपा माले के बिहार विधानसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने पर नक्सलियो की जो प्रतिक्रिया आयी है वह बेहद गम्भीर है और सरकार को नक्सली नेता के बयान को गम्भीरता से लेनी चाहिए।माओवादी संगठन के प्रवक्ता ने चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया वयक्त करते हुए कहा कि चुनाव लड़ने वाली कम्युनिस्ट पार्टिया जिस तरह संसदीय भटकाव में फंसी थी उसमें इनकी यही दुर्गिति होनी होनी थी।वही भाकपा माले जो वर्ग संधर्ष और संसदीय संघर्ष को एक साथ मिलाने का दावा किया वही खुद संसदवाद के दलदल में फंस गई।कई इलाको में भाकपा माले इन्ही तर्क के आधार पर गरीबो को लोकतांत्रिक व्यवस्था से जोड़कर रखे हुए था और गरीबो को लगता था कि वे हमारे हक और हकुक की बात करते हैं। लेकिन बिहार के राजनीत में यह पहला मौंका है जब विधानसभा में लाल झंडा का एक मात्र प्रतिनिधि पहुंचा है।चर्चित नक्सली नेता उमाधर सिंह जिन्हे पहली बार इस तरह से जनता ने खारिज कर किया है उन्हे मांत्र चार हजार के करीब वोट आया है जबकि आम अमाव और भ्रष्टाचारियो के खिलाफ आवाज उठाने वाले राजनेताओ में इनकी गिनती होती है।

मुझे जनता के इसी आचरण से डर लग रहा है क्योकि नीतीश कुमार की जो छवि जनता के सामने है वह पूरी तौर पर मीडिया का क्रियेसन है जिसमें सच्चाई का दूर दूर तक वास्ता नही है।जब भ्रष्टाचारियो को मुख्यमंत्री सचिवालय से ही संरक्षण मिलेगा तो फिर भ्रष्टाचारियो पर कैसे नकेल कसेगी।लालू के कभी नम्वर वन सलाहकार रहे श्याम रजक से क्या उम्मीद की जा सकती है वैसे कई मंत्री इनके मंत्रीमंडल में शामिल हुए जिनकी योग्यता सिर्फ और सिर्फ जात है।

जनता ने तो जात आधारित राजनीत को पूरी तौर पर नकार दिया लेकिन लगता है राजनेता इस जीन को बचाकर रखना चाहते है।हलाकि मैं नीतीश कुमार को लेकर कोई खुश फोमी पाल नही रखा था लेकिन जो दिन में सपने देख रहे थे उन्हे नीतीश के मंत्रीमंडल गठन से थोड़ा झटका जरुर लगा है।कई दागी और काम चोर चेहरा इस बार भी मंत्रीमंडल में शामिल किये गये है और काम करने वाले मंत्री को कमजोर मत्रांलय दिया गया है।वही सरकार द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के बाद जो पहली नियुक्ति हुई है महाअधिवक्ता के पद पर वे मुख्यमंत्री के विरादरी का है।

देखिये आगे आगे होता है क्या --

गुरुवार, नवंबर 18, 2010

कई मायने में ऐतिहासिक रहा बिहार विधानसभा का चुनाव


बिहार विधानसभा चुनाव लगभग समाप्ति पर है और अब सबो की नजर चुनाव परिणाम पर टिकी हुई है।उम्मीद की जा रही है की चुनाव परिणाम बिहार की जनता के लिए खुशहाली और समृद्धि लेकर आयेगी। क्यो कि पहली बार बिहार के वोटरो नें जाति,धर्म,मजहब,नाते रिश्ते को तोड़कर विकास और समाजिक समरसता के नाम पर वोटिंग किया है।मतदाताओ ने एक और जहां नीतीश कुमार के विकास और सुशासन के दावे पर मोहर लगा दी, वही नीतीश कुमार के अंहकार और राज्य में जारी अफसरशाही औऱ भ्रष्टाचार को लेकर खिचाई भी किया है। यही कारण रहा कि प्रथम चरण के चुनाव के बाद नीतीश कुमार जहां भ्रष्टाचारियो की सम्पत्ति जप्त करने की घोषणा कर मतदाताओ की वाहवाही लूटे। वही दूसरी और लालू प्रसाद ने अफसरशाही खत्म करने का भरोसा दिलाकर ऱुठे मतदाताओ को मनाते दिखे।लेकिन पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जो अहम बाते रही की मतदाताओ ने नीतीश कुमार के एक बार और मुख्यमत्री बनाने की अपील को काफी गम्भीरता से लिया ।लेकिन इसका असर चुनाव परिणाम पर कितना पड़ता है ये तो परिणाम आने के बाद ही सामने आयेगा।

पूरे चुनावी अभियान के दौरान नीतीश कुमार के पास कोई टिंक टैंक जैसी बाते देखने को नही मिला जो पार्टी उम्मीदवार के नकारात्मक पंक्षो के काऱण जनता में उपजे आक्रोश को नियंत्रित कर सके। और यही कारण है कि जनता के अपार समर्थन के बावजूद नीतीश मंत्रीमंडल के अधिकांश मंत्री और विधायक की विधायकी खतरे में है।अगर परिणाम प्रतिकुल होता है तो इसमें जनता से कही अधिक गुनाहगार खुद नीतीश कुमार होगे जिन्होने टिकट बटवारे से लेकर पूरे चुनाव अभियान के दौरान जनता के भवानाओ को दरकिनार करते दिखे।लेकिन इन सबके बावजूद जनता ने जो दिलेरी दिखायी है वह वाकई देखने लाईक था।

नीतीश कुमार का नालंदा के रहुउ में 11बजे सभा होनी थी लाईफ कभरेज हो इसके लिए पूरी टीम के साथ सुबह 9.35में ही सभा स्थल पर पहुंच गये थे।कार्यक्रम नीतीश कुमार के कर्मभूमि पर होने वाला था इसलिए सभी की पैनी नजर चुनावी सभा पर टिकी हुई थी।सभा स्थल पर एक बूढा व्यक्ति जिसकी उर्म 55 के करीब होगा लेकिन देखने में 75के करीब लग रहा था डी एरिया के बाहर बैंठा हुआ था उस समय कुछ पुलिस को छोड़कर कोई नही पहुचा था जैसे जैसे सभा का समय करीब होने को हो रहा था लोगो के आने का सिलसिला तेज होने लगा और नीतीश कुमार जब पहुंचे तो पूरा मैंदान भरा हुआ था नीतीश कुमार जिन्दावाद का नारा लग ही रहा था कि पीछे से कोई व्यक्ति बार बार चिल्ला रहा था तनी हटहो(जरा हट जाये)मैंने पलट कर देखा वही बूढा चिल्ला रहा था जो डी एरिया में मीडियाकर्मियो के ट्रायपोर्ट लगने के कारण नीतीश कुमार को नही देख पा रहा था मै उसके पास गया औऱ डी ऐरिया के बाहर लगे बांस के बल्ले के नीचे से आने का इशारा करते हुए उन्हे मीडिया सेंन्टर में ले आया औऱ उसके बाद मैंने अपनी कुर्सी में बैंठा दिया पूरे भाषण के दौरान मेरी नजर जब भी उस बूढे व्यक्ति पर पड़ता देखता की वह टकटकी निगाह से नीतीश कुमार को देख रहा है।भाषण खत्म हुआ नीतीश उड़ चले हम लोग समान पैंकप करा रहे थे तभी मुझे लगा कि पीछे से कोई व्यक्ति आशिर्वाद देना चाह रहा है जैसे ही पलटा सामने वही बूढा व्यक्ति खड़ा था मैने पुछा बाबा गये नही है नही बाबू तोड़ से मिलले बिना कैसे जतियो(तुमसे मिले बगैर कैसे जाते, मैनें पुछा बाबा नीतीश जी की कहलथून बड़ी शांत भाव से उन्होने कहा बाबू अंतिम आस इही छे मैने पुछा क्या कहा बाबा, तो उन्होने कहा लोग कहे रहे अपन सरकार बनले 15वर्ष लालू के इही नाम पर वोट देलिए पांच वरस नीतीश बबुआ के वोट देलिए औऱ इही बेर द रहल बानी लेकिन गरीब के भला नही भेल तो अनर्थ भे जाईते, मैने पुछा क्यो बूरा होगा, बाबू नईका छौड़ा(लड़का, सब हथियार उठवे के बात करे छे गरीब के भला नही भले त बाबू बढ बूरा दिन आवे वाला छई,55वर्ष से इ नाटक चली रहल छई पहले कही छले बड़का सब लूट ले छई लेकिन बीस वर्ष से बिहार में गिरिबहे के बेटा मुख्यमंत्री होई रहल छई ओकरा बादो गरीब के देखे वाला कोई नही है।

उस बूढे की बात जब जब जेहन में आता है मेरे सामने अंधेरा छा जाता है और आने वाले बिहार को लेकर चिंतित हो उठता हूं।वाकई बिहार का यह चुनाव या तो बिहार की दिशा और दशा को बदल देगी या फिर घोर निराशा के खाई में इतने नीचे चला जायेगा कि जहां से निकलना मूमकिन ही नही पूरी तौर नामूमकिन होगा।

रविवार, अक्तूबर 10, 2010

इस बार का बिहार चुनाव ऐतिहासिक होगा

मुझे लगता है कि इस बार का चुनाव कई मामलो में ऐतिहासिक होगा एक तो पूरे देश की नजर बिहार चुनाव पर टिकी हुई है और सबो का एक ही सबाल है क्या नीतीश वापस सत्ता में लौटते हैं, या बिहार में एक बार फिर से विकास पर जातीय राजनीत भारी पड़ता है।यह सवाल दिल्ली और महानगरो में राजनीत पर बहस करने वाले और मीडिया के वैसे जमात जो मनमोहन संस्कृति के वाहक है उनके बीच बड़ी जोर शोर से चल रही है।हलाकि चुनावी व्यस्तता के कारण ब्लांग पर लगातार बने रहने में थोड़ी परेशानी जरुर है लेकिन मेरा प्रयास रहेगा कि वैसी महत्वपूर्ण खबरें जिन्हे मीडिया पैसे के कारण सामने लाने से कतरा रही है वे खबरे भी आपके सामने लाये।मीडिया और ब्यूरोक्रेसी का पूरा तबका नीतीश कुमार को दूबारा मुख्यमंत्री बनते देखना चाहते है जिसका प्रभाव पूरे देश में दिख रहा है ।

बिहार के तमाम मित्र चुनाव को लेकर फोन करते है और एक ही आग्रह होता है नीतीश को जीताओ बड़े दिनो के बाद बिहारी कहलाने में गौरव महसूस हो रहा है,ऐसा ही एक मित्र का फोन बेगलरु से आया कहा संतोष नीतीश की आलोचना करना चुनाव तक बंद कर दो मैंने पुछा क्यो यार, तुम बिहार में हो इसलिए नही समझ पा रहे हो कदम कदम पर गाली देने वाला आज बड़े गर्व से कहता है कि तुम्हारा नीतीश ने तो कमाल कर दिया बिहार को स्वर्ग बना दिया है। आफिस लेकर होटल रेस्टरा तक में बिहारी के प्रति नजरिया बदल गया है,कमोवेश बिहार में रहने वाले मीडिल क्लास की भी यही राय है।स्थिति यह है कि नीतीश के हर सही और गलत फैसले को सही ठहराने को लेकर होड़ मची है,मुझे इससे एतराज भी नही है लेकिन सिर्फ मुझे इतना ही कहना है कि लालू की वापसी न हो इसके लिए नीतीश कुमार का गुणगान पर गुनगान करे यह कही से भी सही नही कहा जा सकता है।

कल तक परिवारवाद और राजनीत के अपराधी करण पर नीतीश कुमार के बयाने पर कलम तोड़ने वाले मेरे सीनियर पत्रकार बंधु क्यो चुप हैं,नीतीश कुमार और सुशील मोदी के जुगल जोड़ी ने बिहार के राजनीत में एक नयी परम्परा की शुरुआत की है 70ऐसे उम्मीदवारो को टिकट दिया है जो दूसरे दल से आये है दोपहर में पार्टी ज्वाईन करता है औऱ शाम में पार्टी उनके टिकट देती है।बाहुबलि की कौन कहे खुद नीतीश कुमार आनंद मोहन के घर पहुंच कर पार्टी में शामिल होने की भीख मांगते हैं।आनंद मोहन पप्पू यादव सहित कई बाहुबलि जो राजनीत में आज सक्रिय है वे कही न कही राज्य में जारी समाजिक टकराव के दौरान पैंदा हुए थे और उनकी पहचान अपने जाति में नायक के रुप में आज भी बचा है लेकिन नीतीश और सुशील मोदी की जुगल जोरी ने मोस्टवान्टेंड सतीष पांडेय जिनके खिलाफ बिहार औऱ उत्तरप्रदेश में दर्जनो अपराधिक मामले दर्ज है उनके भाई को नीतीश जी ने टिकट दिया है।ऐसा ही कुछ भाजपा ने भी किया है बिहार में अपहरण और रंगदारी उधोग से जुड़े सबसे बड़े गिरोह पाडंव सेना के चीफ को अरवल से टिकट दिया है ।जिसको लेकर भाजपा में बबाल मचा है यह वही पांडव सेना गिरोह है जिसने रंगदारी नही देने के कारण दर्जनो व्यापारियो को मौंत की नींद सुला चुका है, और इसके भय से पूरा मध्य बिहार से व्यापारियो का पलायण हो गया था।लेकिन कहते है कि राजनीत में सब कुछ जायज है।

दूसरी बात परिवारवाद कि है, तो नीतीश कुमार ने इसमें भी सारे रेकर्ड को तोड़ दिया रामविलास पासवान के मामा रामसेवक हजारी के परिवार के चार सदस्यो को भाजपा और जदयू ने टिकट दिया ऐसा एक उदाहरण नही है।जब इसको लेकर सवाल किया गया तो नीतीश का कहना था कि इस प्रयोग के लिए समाज अभी तैयार नही है।

लेकिन लगता है नीतीश कुमार भी इतिहास से सबक लेने को तैयार नही है, जिसके कारण इन्होने भी लालू प्रसाद के उस शैली को इस बार के चुनाव में बड़े धड़ल्ले से उपयोग किया है कि कुत्ते के गले में भी पार्टी का सिम्बल पहना देगे तो वे भी विधायक बन जायेगा।यही कारण है कि पार्टी कार्यलय में पिछले कई दिनो से हंगमा हो रहा है औऱ स्थिति यह है कि पार्टी दफ्तर पुलिस छावनी में तब्दील हो गयी है।अधिकारिक सूत्रो की माने तो बिहार के बैंक और हवाला के माध्यम से पिछले एक माह के दौरान दो सौ करोड़ रुपये से अधिक की निकासी हुई है, और उसका उपयोग टिकट खरीदने में की गयी है।ऐसे कई वाकिया सामने आया है जो पहले बिहार में धड़ल्ले से नही होता था।इसलिए मेरा मनना है कि इस बार का चुनाव कई मायनो में महत्वपूर्ण है,क्या राजनैतिक दल लिमिडेंड कम्पनी बन गयी है जिसे चाहे कही भी प्रत्याशी बनाकर लोंच कर दे यही कारण है कि इस बार काफी संख्या में बागी उम्मीदवार खड़े हुए है अब देखना यह है कि जनता जमीनी कार्यकर्ता को वोट देती है या फिर पार्टी लाईन पर मतदान करती है।दूसरा महत्वपूर्ण सवाल है समाजिक टकराव के कारण जातियों के नायक रहे प्रभूनाथ सिंह,आनंद मोहन,पप्पू यादव जैसे लोग राजनीत मे टिके रहते है या फिर उनकी विदाई होती है।तीसरा महत्वपूर्ण सवाल है कि नीतीश और सुशील मोदी ने पिछड़ावाद की जो नयी शैली विकसित कि है उसका परिणाम क्या होता है।

चौथा महत्वपूर्ण सवाल यह है कि इस चुनाव में तमाम वैसे बड़े सर्वण नेता जिनकी राजनैतिक हैसियत को दरकिनार कर नीतीश मोदी की जोड़ी ने बिहार में एक नये समीकरण को जन्म देने का प्रयास किया है। देखना यह है कि इस मिशन में इन दोनो जोड़ी को कितनी कामयाबी मिलती है। क्यो कि विकास और कानून व्यवस्था के नाम पर सर्वण का एक बड़ा तबका राजनीत के परम्परागत शैली से अलग होकर वोट देने की बात बड़े जोर शोर से कर रहा है ।अब देखना यह बाकि है कि तथाकथित विकास का ढिढोरा रंग लाता है या फिर बिहार में त्रिसंकु विधानसभा उभर कर सामने आता है।

गुरुवार, सितंबर 30, 2010

आज तो मीडिया की अग्निपरीक्षा है

कल जब मोरनिंग डियूटी से घर में जैसे ही प्रवेश किया मेरी बेटी श्रेया बोली पापा आज आफिस से बड़ी जल्दी आ गये हंगामा होने वाला है तो फिर आप आ कैसे गये।मैंने पुछा किसने कहा हंगामा होने वाला है मेंम बोली है कि हंगामा होने वाला है इसलिए कल स्कूल बंद रहेगा।लगभग पाच दस संकेंड तक बाते समझ में नही आयी हंगामा किस बात का अचानक याद आया अरे, कल अयोध्या पर फैसला आने वाला है।मैं जोर से हस पड़ा ऐसा कुछ नही है ,लेकिन हंगामा होने वाला है तो पापा की छुट्टी केनलिस हो जायेगी यह बात मेरी पाच वर्ष की बेटी सोच रही है यह देख कर मैं हैरान जरुर हो गया क्या जिदंगी हमलोगो कि है ।

खेर हमलोगो के चैयरमेन की और से संख्त हिदायत है कि अयोध्या मसले पर खबर दिखानी ही नही इसको लेकर कई बैंठके भी हो चुकी है जिसके कारण इस और ध्यान गया भी नही। वही दूसरी और बिहार विधानसभा चुनाव के कारण परेशनी इतनी बढ गयी है कि चैनल की कौन कहे अखबार भी ठिक से नही देख पा रहे है।

आज सुबह 9बजे के करीब हमारे एक पत्रकार मित्र का दरभंगा से फोन आया क्या सोये हुए है मैने कहा है आज नाईट डियूटी है आराम से आफिस निकलना है इसलिए सो रहे है पटना का क्या हाल है मैने कहा सब कुछ ठिक है। अरे भाई यहां तो आज दुकान खुली ही नही है सारा स्कूल कांलेज बंद है सड़क पर दूर दूर तक आदमी दिखायी नही दे रहा है पूरी और रैभ फ्लेंग मार्च कर रहा है मैंने कहा सही बात है क्या पटना में ऐसा नही है मैने कहा ऐसा कुछ नही है मोबाईल रखते ही बिहारशरीफ से फोन आया ऐ सर यहा बहुत तनाव है कभी भी कुछ भी हो सकता है कई राउंड पत्थरबाजी होते होते बचा है खबर लिखाना है क्या, नही नही कोई खबर नही चलाना है। भाग कर टीवी के पास गया और न्यूज चैनलो का बटन दबाने लगा आज तक,इंडिया टीवी और बिहार के कुछ रिजनल चैनल को छोड़कर अधिकांश चैनल सकारात्मक खबरे चला रहा था बेहद सकून महसूस हुआ।आज बीबीसी से भी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तरह की खबड़े नही चलाये,

मीडिया और खासकर भिजुल मीडिया के लिए आज का दिन बेहद कठिन और चाईलेनजिंग हैं क्यो कि आज सब कुछ उसके स्क्रीन पर निर्भर करता है।उम्मीद है मीडिया इस जिम्मेवारी पर खड़े उतरेगी और अफवाह फैलाने वाले को तरजीह नही देगी।

और अंत में आज बिहार में जितिया पर्व है माँ अपने बेटे के सलामति के लिए यह पर्व करती है जिसमें 36घंटे तक महिलाये अन्न और पानी लिए बिना रहती है। मैं इस तरह के पर्व का घोर विरोधी हूं लेकिन आज पत्नी और माँ दोनो को पूजा पर जाने से पहले कहा कि आज अपने बेटे की सलामति के साथ साथ सूबे के सभी हिन्दू मुस्लिम माँ के बेटे की सलामति की दुआ करना।

उन्मादी तत्व सफल न हो इसी कामना के साथ जय हिन्द---






रविवार, सितंबर 26, 2010

काँमनवेल्थ गेम को लेकर मीडिया की नकारात्मक भूमिका-

मेरी जानकारी में काँमनवेल्थ गेम में वही देश भाग लेते है जो कभी ब्रिटेन के राजसत्ता के अधीन रहा है।लेकिन अभी समय इस पर बहस करने कि नही हैं,बहस तो मीडिया की भूमिका पर होनी चाहिए जिन्होने इतने बड़े आयोजन को आलोचनाओ के भंवर में इस कदर उलझा दिया है कि आज देश के साथ साथ भारतीय नागरिक भी शर्मशार है।माना की आयोजन में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है,लेकिन मीडिया ने जिस तरीके से उस धांधली को उजागर करने के नाम पर इनभेसटिगेटिंग स्टोरी करना शुरु किया उसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है। लगता है भारतीय मीडिया अभी भी गुलामी की मानसिकता से उपर नही उठ पायी है।जो चरित्र दिख रहा है उससे बेहतर चरित्र तो वेश्या की होती है मुझे कहने में थोड़ी सी भी शर्म महसूस नही हो रहा है कि हमारी स्थिति एक वेश्या से भी गयी गुजरी है उसका भी इमान होता है औऱ कई बार सामने भी आया है।

लेकिन हम पत्रकारो ने उसको भी बेच डाला है पता नही कल प्रबंधको के जी हजूरी में अपने घर के बहु बेटियो तक को दाव पर न लगा दे।क्या घोटाले के अलावा कुछ और खबर काँमनवेल्थ गेम से जुड़ा नही है।कल किसी अखबार में पाकिस्तान के हांकी टीम के पूर्व कप्तान का बयान पढने को मिला कही कोने में उनको जगह मिली थी उसने बड़ी बेवाकी के कहा कि आस्ट्रेलिया जो आज भाषण दे रहा है अपना कांमनवेल्थ गेम भूल गया क्या भारतीय और पाकिस्तान की टीम को कांलेज के हांस्टल में ठहराया गया था जहां गंदगी की कौन कहे क्या क्या नही बिखरे हुए थे पूरे कांलेज कैम्पस में एक एक रुम में चार चार खेलाड़ियो की रहने की व्यवस्था की गयी थी,इसलिए आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैन्ड को तो इस तरह की बात नही करनी चाहिए।

पाकिस्तानी खेलाड़ी ये कोई नयी जानकारी नही दे रहे इसी तरह का प्रबंध होता रहा है लेकिन उस देश की मीडिया कभी इस तरह की फौड़ी हरकत नही करता है इनता बड़ा आयोजन है कमी रहेगी लेकिन हमलोग हौसला अफजाई करने के बजाय नीचा दिखाने में लगे हैं, यब सब इसलिए हो रहा है कि देश का नेतृत्व आज ऐसे कापुरुष के पास है जिसका अपना स्वाभिमान कभी कभी जागता है और सोनिया गांधी देश की बहु बनने को लेकर जो दिखावा कर ले लेकिन देश के प्रति वह जजवा कैसे पैंदा हो सकता है जो इंदिरा औऱ राजीव,और बाजपेयी के साथ था।मीडिया के नकारात्मक और गैर जिम्मेदराना भूमिका के काँमनवेल्थ जैसे गेम के आयोजन का जो लाभ भारत को मिलता उससे वंचित करने का काम किया है देश इन मीडियाकर्मियो को कभी माफ नही करेगा।मैने ने चैनल देखना ही बंद कर दिया है और अगर यही हालत रही तो लोग एक बार फिर से दूरदर्शन समाचार देखने लगेगे।

गुरुवार, सितंबर 16, 2010

जनवादियो को चश्मे बदलने की दरकार है

बुधवार को कोई खास ऐसाईनमेंट नही था मुख्यमत्री नीतीश कुमार दिल्ली चले गये गये थे और हमारी खुद के बीट में भी कोई खास हलचल नही था ,माओवादियो के बंद का मियाद खत्म हो चुका था और इसको लेकर कई स्टोरी चल भी चुकी थी।दफ्तर पहुंचा तो ऐसाईनमेंट टेबल पर गया तो दो ऐसाईनमेंट मेरे नाम पर था।दो बजे विधानपरिषद के सभा कंक्ष में कोई सेमीनार को कवर करना था और दूसरा ऐसाईनमेंट अभियंता दिवस से जुड़ा हुआ था।ब्यूरो चीफ के साथ मीडिंग के बाद आराम फरमा रहे थे तभी खबर आयी की डेंगू और स्वाईन फ्लू को लेकर कैबिनेट सचिव के साथ बैठक हो रही है अचानक खबर मिली थी भागे भागे पटना डीएम कार्यलय पहुंचे।बैठक खत्म हुई और उसके बाद पत्रकारो से बात करने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ।अफजल अमानुल्लाह काफी मीडिया फ्रेडली है तो बाते बढती गयी और जब घड़ी पर नजर पड़ी तो दो बजने को था।भागे भागे विधानपरिषद के सभा कंक्ष पहुंचा देखते है आयोजक महोदय अभी बैनर ही लगा रहे हैं ।

बड़ी गुस्सा आया समय से इन लोगो का कोई वास्ता ही नही है,यह विचार चल ही रहा था कि तब तक बैनर लग गया। बैनर पर लिखा था चाहिए एक और वैचारिक क्रांति।बैनर पढने के बाद विषय तो जनवादी है थोड़ा गुस्सा शांत हुआ आयोजक से बात करनी शुरु की तो पता चला कि सेमीनार के साथ साथ बाबा नागर्जुन के कविताओ पर आधारित एक फिल्म का भी लोकार्पण किया जायेगा।लगा मुझे चलो काम कि चीज है बात बात में ही पता चला कि आउटलुक की फीचर संपादक गीता श्री, वरीय पत्रकार वर्तिका नंदा और मुहल्ला लाईभ के अविनाश कुमार मुख्य वक्ता है।मुझे लगा चलो इसी बहाने इन जनवादियो से मुलाकात तो हो जायेगी।

इन लोगो के आने की खबर के साथ ही पूरानी यादे ताजा होने लगी लगभग बीस वर्ष बाद गीता श्री से और लगभग 10वर्ष बाद अविनाश कुमार से आमने सामने होने जा रहा था,वक्त 1990का है जब में एलएस कांलेज में 12वी का छात्र था उस समय गीता श्री हिन्दी से एमए कर रही थी और छात्र नेता थी नवभारत टाईम्स के पत्रकार राघवेन्द्र नरायण मिश्रा के यहां पहली बार मिली थी वहा मेरा नियमित आना जाना था और ये कभी कभी न्यूज के सिलसिले में आया करती थी धीरे धीरे वैचारिक स्तर पर बातचीत होने लगी और उसके बाद तो रोज का मिलना शुरु हो गया ।लगभग एक वर्ष तक यह सिलसिला चला और उसके बाद वो दिल्ली चली गयी ।बाद के दिनो में गीता श्री के बारे में कोई खास जानकारी नही मिल पा रही थी मैं भी दिल्ली पहुंचा औऱ पूरे आठ वर्षो के दौरान मेरा भी कैरियर का दोड़ था औऱ ये भी दिल्ली में सघर्ष कर रही थी कही कही से इनके बारे में जानकारी मिलती रहती थी।

लेकिन मुलाकात का मौका नही मिल पा रहा था।वापस मैं जब वर्ष 2000में बिहार लौटा तो प्रभात खबर से पत्रकारिता की शुरुआत की उन दिनो अविनाश जी से मुलाकात हुआ करता था उस वक्त मैं रोसड़ा से लिखा करता था।बाढ की रिपोर्टिग को लेकर इनसे परिचय हुआ और जब भी मैं पटना आता था तो इनसे लम्बी बाते होती रहती थी लेकिन वक्त के साथ ये पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढते गये और मेरी दूरिया बढती गयी। लेकिन निरुपमा मामले में अविनाश कुमार के ब्लांग पर मेरे ब्लाग की चर्चा की गयी थी फिर भी मुझे लग रहा था कि हो सकता है संतोष से याद नही कर पा रहे होगे ।

मुझे खुशी थी आज एक जनवादी और एक मोडरेट जनवादी के बीच काफी लम्बे अर्से बाद मुलाकात होगी देखते है पहचान पाते है कि नही।दोनो आये और सामने से गुजरते हुए सामने के डेस पर बैंठ गये।फोटो सेशन चल रहा था मुझे लगा कि परिचय का इससे बेहतर मौंका क्या हो सकता है मैं डेस कि और बढा और पहले अविनाश जी से मुखातिव हुआ बोले संतोष जी अपका ब्लांग पढते रहते है मैने कहा आपको याद है मैं रोसड़ा वाला संतोष हू पूरी तरह याद है कार्यक्रम के बाद मिलते है।

आगे बढे तो सामने बैंठी हुई थी गीता श्री जिसे में खुद भी पहचान नही पाया था मोटी तो उस वक्त भी थी लेकिन इतनी नही लेकिन रंग तो गजब बदला है स्यामलि रंग की गीता श्री तो साफ गोरी दिख रही थी चलो मैने झुक कर प्रणाम किया और पुछा पहचान रही है बोली उठी काहे शर्मिदा कर रहे हो। लेकिन उनके चेहरे से लग रहा था कि वे याद करने की कोशिस कर रही है और चंद सैकंड बाद ही चहक उठी सतोषवा रे तुमको कैसे भूल जायेगे।जिस मगही भाषा में आज तक उनसे बाद नही हुई थी वे उसी भाषा में बीते दिनो की बाते जोर जोर से कहने लगी, यह खासियत है जनवादियो का जो बीते कल को बेहतर तरीके से याद रखते है।

फिर सेमीनार का दौड़ शुरु हुआ और शुरु हो गया भूख गरीबी,आकाल,बुर्जआ सामंती और जनक्रांति की बाते। काफी लंबे अर्से बाद उन लोगो की बात सूनने का मौंका मिला था लगा आज भी इतने उतार चढाव देखने के बावजूद संर्घष का जजवा उभान बरकरार है ।लेकिन मुझे लगा कि इन लोगो के नजरिया में आज भी बदलाव नही आया है लगता है समय से इन लोगो ने कोई सीख नही ली। वही पूरानी मानसिकता जात के आधार पर घटनाओ को देखने का नजरिया और सामंत शब्द के सहारे विचारो को अमली जामा पहनना ।

मै भी जनवादी है लेकिन किसी भी मसले पर ओपेनियन बनाने से पहले सभी पहलुओ पर सोचते हैं,इस सोच में आये परिवर्तन के लिए भी मैं इन जनवादियो को ही जिम्मेवार मानता हूं। जिन्होने अपनी साख खुद गिरायी और आज जनवाद को जातिवाद के सहारे जिंदा रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।निरुपमा मामले को ही ले लड़की ब्राह्रण और लड़का कायस्थ फिर क्या था जनवादियो को एक मुद्दा मिल गया लेकिन दलित औऱ महादलित और पिछड़ा और अतिपिछड़ा के बीच जो समाजिक दव्द चल रहा है उनके लिए इनके पास वक्त नही है।क्यो कि इनकी लड़ाई जातिये गोलबंदी के आधार पर नही लड़ी जा सकती है।आज समाज की कई परिभाषाये बदल गयी है जिसे बदलने में कई दशक लगते वे आये दिन बदल रही है आज समाज में सामंत की परिभाषा बदल गयी है लेकिन उनो नवसामंत के खिलाफ इनके कलम में सियाही नही है उनके जुल्म पर आवाज उठाने का साहस नही है क्यो कि इससे इनके जनवादी जातिये सोच को बल नही मिलता है।बदलिये श्रीमान नही तो वक्त के हासियो में कही गुम हो जायेगे।

रविवार, सितंबर 12, 2010

आँप्रेशन लखीसराय का सच और मीडिया की भूमिका—


 मित्र आपसे काफी दिनो तक दूर रहा बीच बीच में कई बार इक्छा हुई आपसे अपनी बात कहने की लेकिन स्थिति ऐसी थी कि चंद मिनट भी शांति से बैंठ नही पा रहा था।मोबाईल की घंटी और बाँस के फरमान ने जीना दुभर कर दिया था।तीनो बंधक के रिहाई से जिनती खुशी बंधक बने पुलिसकर्मी के परिवार को मिली होगी ।उससे कम खुशी हमारे परिवार वाले नही थी, सभी खुश थे,घर में अब तो शांति मिलेगी।

रविवार को मेरा आंफ रहता है लेकिन पिछले दो रविवार ने ऐसा झंटका दिया कि हमारी कई मान्यताये तास की पत्तो की तरह बिखर गया।वाकिया बिहार में एक साथ दो बड़ी माओवादी घटनाओ से जुड़ा हुआ है।29 अगस्त दिन रविवार आज मेरी प्यारी सी नन्ही सी बेटी टिया का जन्म दिन था नाना नानी मामा मामी दादा दादी सभी को आना था सुबह से ही तैयारी चल रही थी लेकिन पता नही क्यो जन्म दिन दिन में ही मनाने की मेरी इक्छा प्रबंल हो रही थी ।लेकिन इस बात को लेकर घर में आम राय नही हो पा रही थी लेकिन एक सहमति बनी कि खाने का कार्यक्रम दिन में हो।मेरे मन पसंद चिकेन बनाने की तैयारी शुरु हो गयी सभी मेहमान भी आ गये एक बजते बजते भोजन का कार्यक्रम पूरा हो गया और फिर बातचीत का सिलसिला शऱु हो गया मैं बीच में ही उठकर सोने चला गया।लगभग आधे घंटे सोया होगा कि आफिसियल मोबाईल की घंटी बजी नींद में ही मोबाईल रिसिव किया एक तरफ हमारे इनपुट हेड का आवाज था संतोष कहा हो, भैया सो रहे है उठो न बिहार में बड़ी घटनाये हो गयी है अचानक मेरी नींद उड़ गयी। मैने पुछा क्या हुआ है भैया ,शिवहर से बीडीयो का अपहरण हो गया है औऱ लखीसराय में माओवादी और पुलिस के बीच मुठभेड़ हो रहा है कई पुलिसकर्मी वाले मारे गये।थोड़ा डीजीपी से बात करते, मैंने कहा भैया चंद मिनट में रिपोर्ट करते है।मैने तुरंत डीजीपी नीलमणि जी को मोबाईल लगा दिया जैसे ही उन्होने मोबाईल उठाया मुझपे बरस गये क्या चला रहे है मैंने बड़े शांत भाव से कहा मुझे तो कुछ नही पता है वही जानने के लिए फोन किया यह सूनते ही उनका गुस्सा थोड़ा शांत हो गया बोले बीडीओ को माओवादियो ने अपहरण कर लिया और लखीसराय में मुठभेड़ की खबर सही है लेकिन पुलिसकर्मी के मारे जाने की अधिकारिक खबर नही है लेकिन संकेत शुभ नही है।तुरंत खबर फैलेस हुआ औऱ दूसरी औऱ फोनो के लिए पेच कर दिया। खबर प्रसारित होते ही पूरे बिहार में हड़कम्प मच गया डीजीपी ने मामले की पुष्टि कर दी ।

इसके बाद बेटी का जन्मदिन कैसे मना, घर आये मेहमानो के साथ क्या क्या हुआ पुछने का साहस आज तक नही जुटा पाया हूं। बेटी मेरी खुश है चलो पापा जिसके लिए परेशान थे वह घर लौट आया है मम्मी ने उसे यही बताया था कि कोई गुम हो गया है पापा उसे खोज रहे हैं।

खबर मिलते ही अपने पूराने स्रोतो से संपर्क साधना शुरु कर दिया, मेरे सामने एक साथ दोहरी चुनौती थी एक और अपने चैनल के छवि को बचाये रखने और दूसरी और सारे राष्ट्रीय औऱ क्षेत्रीय चैंनल के रिपोटरो से दो दो हाथ करनी थी ।

पुराने संबंध काफी काम आया।वैसे पुलिस पदाधिकारी जिनसे मेरे बेहतर सम्बन्ध रहा था सभी को इस खबर के पीछे लगा दिया वही माओवादी विचार धारा को मानने वाले मित्रो का भी उपयोग किया स्थिति यह हुई कि घटना के दूसरे दिन से ही पुलिस औऱ माओवादियो से जुड़ी पल पल की खबर मुझे मिलने लगी माओवादी प्रवक्ता अविनाश औऱ सेन्ट्रल कमिटी के प्रवक्ता प्रहार से मेरी लगातार बात होने लगी हलाकि अविनाश से सभी मीडियाकर्मियो की बाद में बात होने लगी थी ,लेकिन मैं प्रारम्भ से ही अविनाश के खबर को क्रोस भेरीफिकेशन किये बगैर नही चलाते थे।क्यो कि अविनाश बातचीत में बेहद सतही लग रहा था और उसकी मंसा मीडिया का उपयोग करना दिख रहा था।30तारीख की शाम खबर फैली की बीडीओ को नक्सली रिहा कर दिया है ये खबरे मेरे पास भी आयी लेकिन चलाने से पहले अपने एक करीबी वरिय पुलिस अधिकारी को फोन किया उसने रिहाई की खबर के सच से अवगत करा दिया।मैने खबर ब्रेक नही किया लेकिन थोड़ी देर बाद सभी चैनलो पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगा बीडीओ रिहा।चारो औऱ से फोन आने लगा मै खबर का खंडन करता रहा बेमन से ही सही लेकिन मेरे चैनल ने इस खबर को प्रसारित नही किया।इस बीच कई मीडिया वाले बीडीओ के मुजफ्फपुर स्थित आवास पर पहुंचकर परिवार वाले को आपस में मिठाई तक खिलवा दिया औऱ चैनल पर ब्रेकिंग खबर चलने लगा थोड़ी ही देर में बीडीओ पहुंच रहे है अपने घर जैसे जैसे रात बितता गया परिवार वालो की बैचेनी बढती गयी और अंत में मीडिया वाले को उसके घर से खिसकना पड़ा।खबर को लेकर पूरी रात पुलिस के आलाधिकारी से बात होती रही लेकिन दो बजे रात के करीब पुलिस अधिकारी ने कहा कि माओवादियो ने गलत सूचना आपको को दिया है उसका मकसद पुलिस को डायभर्ट करना है।31अगस्त को 10.45मिनट पर उसी पुलिस के आलाधिकारी का फोन आया बीडीयो घर पहुंचा और सबसे पहले सही खबर मैने ब्रेक कर दी।

इस प्रकरण में माओवादियो के गतिविधियो पर मेरी पेनी नजर थी और कई बाते इस दौरान उभर कर सामने आयी की माओवादी की कार्यशैली क्या है क्या चाहते है माओवादी।हलाकि बरामदगी की खबर के बाद थोड़ी राहत हुई।लेकिन कुछ ही घंटो के बाद माओवादियो के प्रवक्ता ने पहली बार चार पुलिसकर्मियो को बंधक बनाये जाने की बात स्वीकारते हुए।आजाद की हत्या और ग्रींनहंट के विरोध में लखीसराय की घटना को अंजाम देने की बात स्वीकार किया।खबर चलने लगी इस दौरान केन्द्रीय कमिटी के प्रवक्ता से भी सम्पर्क किया उसने सीधे तोड़ पर कहा कि हमलोग अपहरण कर सौदे बाजी के पंक्षधर नही है लेकिन लखीसराय वाले दस्ता से सम्पर्क नही हो पा रहा है इसलिए कुछ भी कहना सम्भव नही है।कल होकर प्रवक्ता ने आठ माओवादियो को छोड़ने की शर्त रखी औऱ नही छोड़ने पर हत्या करने की धमकी दी।इस बयान के बाद भी सरकार की और से कोई प्रयास होता नही दिख रहा है पुलिस महकमा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे गिरगिरा रहे थे जैसे माओवादियो के रहमो करम पर राज्य का शासन चल रहा है।माओवादियो द्वारा रखी गयी शर्त का समय पूरा होते ही प्रवक्ता अविनाश का फोन आया दरोगा अभय यादव को जन अदालत के फैसले के आलोक में मार दिया गया।मैं खबर की पुष्टि के लिए केन्द्रीय कमिटी से बात किया तो उन्होने कहा कि खबर पक्की नही है।जब तक बातचीत हो रही थी सभी चैनलो में ब्रेकिंग खबर चलने लगी दरोगा अभय यादव मारा गया देखते देखते कई चैनलो में उसके फोटे पर फूल माले का ग्राफिक्स भी लगा दिया और कुछ तो उसके फोटे के सामने मोमबति तक जलवा दिया।डेक्स से लेकर प्रभारी तक का बेतहासा फोन आ रहा था और मैं खबर का खडंन करता रहा और अंत में तय हुआ कि नाम नही चलाया जाये और प्रवक्ता के हवाले से खबर चला दिया जाये।क्यो कि जो माओवादियो का प्रवक्ता बनकर फोन कर रहा था उसके बारे में मेरे पास सारी जानकारी थी किस लोकेशन से फोन कर रहा है और पार्टी में उसकी हैसियत क्या है सब कुछ मुझे पता चल गया था।इस खबर के बाद अजय यादव के परिवार का क्या हाल हुआ होगा आप खुद समझ सकते है।

देर रात में केन्द्रीय कमिटी के प्रवक्ता का फोन आया कि संगठन में बंधक बनाने को लेकर मतभेद हो गया है और उसमें से कोई एक की हत्या कर दी गयी है सुबह उसी इलाके में लाश मिल जायेगी जहां मुठभेड़ हुआ था।मैने अपने लखीसराय रिपोर्ट को सतर्क कर दिया औऱ सूबह होते होते लाश मिलने की खबर भी आ गयी हमलोगो ने बंधकपुलिसकर्मी की हत्या के साथ साथ टे0टे0 के मारे जाने की भी पुष्टि हमलोगो ने ही किया।उसके बाद जो कुछ भी हुआ सब टीवी पर देखे ही होगे एक नक्सली भाई दरोगा के घर पहुंचता है औऱ खबर ब्रेक करत है कि तीनो बंधक रिहा लेकिन यह सब मीडिया के गैरजिम्मेदराना हरकत के अलावे कुछ नही था।इस पूरे प्रकरण में जा बाते मुझे समझ में आयी वह यह है कि—

1-माओवादी अपराधियो का संगठित गिरोह है इसका मकसद भय पैदा करके पैसा उगाही करना है इनका कोई वैचारिक लड़ाई नही है एक सूत्री अभियान है बंदूक के बल पर सत्ता काबिज करना,हमारे राजनेता जो कहते है कि ये लोग भूले भटके लोग है ऐसा नही है इसमें शामिल सभी लोगो का मिशन स्पष्ट है।

2-यह गिरोह भी राजसत्ता द्वारा पोषित है औऱ उसको राजनीतिज्ञो से समर्थन मिलता है और उसके बदले में चुनाव में मदद करता है।मेरी माओवादियो के टांप लीडर से इस दौरन बात हुई उनसे मैंने पुछा बिहार के मुख्यमंत्री ग्रीनहंट का विरोध करते है,माओवादियो के समर्थन में खुल कर बोलते है विकास की बात करते है तो फिर यह हमला क्यो किया गया।उन्होने बड़ी बेवाकी से कहा आपको याद होगा जहानावाद जेल ब्रेक कांड उसके पीछे भी मंशा था राजसत्ता और जनता में आतंक पैदा करना और बाद में हमलोगो को कई तरह के लाभ मिले।इसी को ध्यान में रख कर यह कारवाई की गयी है।

3-एक जानकारी जो इस दौरान मुझे जो मिली वह यह था कि बिहार से विकास के नाम पर माओवादियो को दस हजार करोड़ से अधिक की राशी लेवी के रुप में पिछले पाच वर्षो के दौरान मिला है।यह राशी बच्चो के दोपहर के भोजन मीड डे मिल योजना ,इंदिरा आवास योजना ,नरेगा,और सड़क बनाने के नाम पर पदाधिकारी और माओवादियो ने आपस में बाट लिया।आप सब टीवी चैनल पर देखे होगे टे0टे0 को जहां मार कर फैका गया था उस सड़क के निर्माण के नाम पर तीन बार राशी की निकासी हो चुकी है और सड़क वैसे की वैसे ही है।

4-कहते है गरिबो का प्रतिनिधुत्व करता है माओवादी, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया चार बंधको में सबसे गरीब और माओवादियो के हमदर्द कहे जाने वाले टे0टे0 तो आदिवासी था फिर क्यो उसकी हत्या कर दी गयी।माओवादियो का भी चेहरा वही है जो राजनीतिज्ञो का है जिस तरीके से गरीबी मिटाने के नाम पर गरीब और गरीब हो रहे है और गरीबी मिटाने में लगे तंत्र और नेता अमीर हो रहे है ।वही स्थिति माओवादी नेताओ का है ये भी गरीबी के नाम पर बंदूक उठाते है और फिर वह बंदूक गरीबो पर ही गरजती है।

5-सबसे बूरी स्थिति तो मीडिया वालो की है पता नही कहा तक गिरेगे लेकिन इस पूरे प्रकरण का एक सुखद पहलु यह रहा कि मीडिया के वैसे परोकार जो कहते है कि दर्शक चटपटा और सनसनी फैलाने वाली खबर देखना चाहते है। लेकिन जो इस सप्ताह का टीआरपी आया है उसने मीडिया के परोकारो की बोलती बंद कर दी है ,वही चैनल नम्बर वन पर रहा जिसने सबसे सही और समान्य तरीके से खबर को दिखाया।जिन लोगो ने सनसनी फैलायी वे औधे मूह गिरे।

गुरुवार, अगस्त 26, 2010

दर्शक न्यूज चैनलो से क्यो खफा है

पिछले तीन वर्षो के टीआरपी रेटिंग पर गौर करे तो न्यूज चैनल के दर्शको में अप्रत्याशित ढंग से कमी आयी है।एक से एक प्रयोग हो रहे है लेकिन दर्शक बढने के बजाय घटते ही जा रहे है।दिल्ली में बैठे मैनेजमैंन्ट गुरु को बुधवार आते आते ऐसी रुम में पसीने आने लगते हैं।स्थिति यह हो गयी है कि मीडिया फिल्ड के एक से एक धुरधर का आईडिया दूसरे सप्ताह आते आते पीट रहा है।मीडियाकर्मी परेशान है और पत्रकार ठहाके लगा रहे हैं। दोनो एक दूसरे को कोस रहे है स्थिति यहा तक पहुच गया है कि नेशनल चैनल के स्टेट हेड खबर में बने रहने के लिए कोई अखबार चला रहा है। तो कोई पत्रिका चला रहा तो कोई केबूल के माध्यम से समाचार चला रहा है। हर कोई मीडिया के फिल्ड में बने रहने के लिए हाथ पाव मार रहा है।वही स्ट्रींगर अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए जुगार टैक्नोलोजी का उपयोग कर रहे हैं।जिसके काऱण आये दिन मीडियाकर्मियो की भद पीट रही है।

ऐसे हलात में मीडियाकर्मी करे तो क्या करे माध्यम इतने आ गये है कि आप खबर को छुपा नही सकते और अब मीडियाकर्मी पर भी खबरे आ रही है,ब्लांग औऱ इंटरनेट अब मीडिया का एक सशक्त माध्यम हो गया है। मीडियाकर्मी हमेशा ऐसा ब्लांग पर क्लींक करते रहते है जिसके सहारे खबर बनायी जाये।कहने का मतलब यह है कि अब दर्शक के पास सिर्फ सुबह का अखबार ही नही रिमोंट के साथ साथ माउस भी आ गया है। जिसके सहारे अपने अपने पसंद की चीजे लोग खोज लेते है।

मुझे लगता है कि मीडियाकर्मियो को क्रिकेंट फिल्म और अपराध की थ्योरी से बाहर निकलना होगा क्यो कि इनके बारे में जानकारी कई और स्रोतो से दर्शको के पास पहुंच रहा है।वही चैनल में इन विषयो पर एक ही धरे में खबरे दिखाने की आदत लग गयी है। भारत जीता तो बाह बाह और दूसरे ही दिन हारा तो टीम को समुद्र में फैंक देनी चाहिए। क्रिंटकल विशलेषण नही होने के कराण दर्शक टीवी से दूर हो रहे है।

वही सूचना का माध्यम इतना ससक्त हो गया है कि अब आपका बकवास सूनने का वक्त किसी के पास नही है।वही सबसे बड़ी बात यह है कि मीडिया छात्र से किसान से और आम आदमी से अपने को जोड़ नही पा रहा है उनके पास आम आदमी से जुड़ी खबरे दिखाने का वक्त नही है जिसके कारण मीडिया धीरे धीरे आम आदमी से कटता जा रहा है। यही कारण है कि क्षेत्रीय चैंनल नेशनल चैनल से काफी आगे निकल गया है।

यह स्थिति सिर्फ पटना ,लखनउ,जयपुर और भोपाल में ही नही है दिल्ली मुबंई और बेगलुरु जैसे शहरो में भी है ।लोग खबर देखना चाहते है लेकिन नेशनल चैनल खास आदमी को ध्यान में रख कर अपनी दिनचर्या बनाते है।वही आम लोग अभी भी मीडिया को जनता का मददगार मानता है लेकिन मीडिया अपना विश्ववास खोता जा रहा है।मीडियाकर्मी के हाथ में लोगो क्या आ गया अपने को खास समझने लगता है यही प्रवृति मीडिया को दीमक की तरह खाया जा रहा है।मीडिया की ताकत का अंदाजा इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ,कोमनबेल्थ गैंम में इतने बड़े पैमाने पर घोटाले को लेकर मीडियाकर्मी चिल्लाते रहे लेकिन कोई रिस्सपोन्स नही मिला। वक्त आ गया है आत्ममंथन करने का

गुरुवार, अगस्त 05, 2010

निरुपमा मौंत मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए

निरुपमा मामले में माँ को जमानत मिल गयी है, कोडरमा पुलिस द्वारा 90दिनो के अंदर हत्या से जुड़े साक्ष्य जुटा नही पाने के कारण कोर्ट ने 167के तहत जमानत दे दी है।हलाकि पूरे घटना क्रम पर मेरी नजर थी लेकिन कुछ भी लिखने से पहले मैं पूरी केश डायरी और पुलिस के अनुसंधान पर अध्ययण करना चाह रहा था।अब मुझे लगता है कि पूरे मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए या फिर ऐसे ऐंजसी से जांच होनी चाहिए जिनके पास अनुसंधान के सभी आधुनिक संसाधन उपलब्ध हो, क्यो कि इस मामले में कोडरमा पुलिस ने कई महत्वपूर्ण साक्ष्यो को नजरअंदाज किया है।ऐसा लग रहा है कि पुलिस अनुसंधान के दौरान निरुपमा के मौंत की वजह तलासने के बजाय पूरे मामले को किसी तरह निपटाना चाह रही थी।

निरुपमा के कई मित्र से पुलिस की बात हुई जिसमें निरुपमा के मौंत से जुड़े कई महत्वपूर्ण साक्ष्य पुलिस को मिली है लेकिन उस पर जांच करने का साहस अभी तक कोडरमा पुलिस नही उठा पायी है।निरुपमा के बैंक खाते से घटना के बाद एटीएम से पैसा निकाला गया है वही प्रियभांशु द्वारा एसएमस से छेड़छाड़ करने की बात जांच के दौरान साबित हो चुका है।वही कई ऐसे साक्ष्य पुलिस ने डायरी में दर्ज किया है जिसमें निरुपमा के माँ बनने की खबर के बाद प्रियभांशु और निरुपमा के रिश्ते में खटास आने की बात सामने आयी है।पुलिस इस मामले में प्रियभांशु से पुछताछ की जरुरत की बात डायरी में जरुर लिखा है, वही प्रियभांशु के कई करीबी मित्रो की भूमिका पर भी सवाल उठाया गया है ।लेकिन उस पर कोई कारवाई पुलिस की औऱ से नही हुई है, हलाकि निरुपमा के हत्या से जुड़े तमाम साक्ष्यो की जांच के बाद पुलिस ने पूरे मामले को आत्महत्या मान लिया है।लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर निरुपमा ने आत्महत्या क्यो कि उसके आत्महत्या करने के लिए कौन कौन जिम्मेवार है।पुलिस उनके खिलाफ कारवाई करने से क्यो घबरा रही है हलाकि कोडरमा एसपी ने भरोसा दिलाया है कि इस मामले में दोषी बक्से नही जायेगे।

कहा गये वी वान्ट जसटिस वाले लोग आगे आये अब तो जांच की प्रक्रिया पूरी हो रही है चलिए मैं भी आपके साथ हूं तय किजिए मोमबत्ति जुलूस की तारीख।कहा गये आर्नर किलिंग साबित करने वाले पत्रकार बंधु खोलिए अपने ज्ञाण का पिटारा औऱ बसर परिये कोडरमा पुलिस पर,क्यो खामोश है हत्यारिण माँ बाहर आ गयी है क्यो नही पुलिस पर सवाल खड़े कर रहे हैं ।जब उस बेबस माँ के खिलाफ कोई साक्ष्य नही था तो फिर सुधा पाठक को क्यो जेल भेजा गया।कहा है वे मुहल्ले वाले जो ब्लांग पर सिरिज निकाल रहे थे।ओपेनियन पोल करा रहे थे जबाव दिजिए ।बड़ी बड़ी बाते करने वाले दिलीप मंडल,अविनाश कहा हैं। आये सामने सीबीआई जांच के लिए रांची हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले क्यो बीच में ही मुकदमे की पेरवी छोड़कर भाग गये सिर्फ बड़ी बड़ी बाते लिखने से समाजिक न्याय या फिर ब्रह्मणवादी व्यवस्था को कमजोर नही किया जा सकता है।चले है ब्रह्राणवादी व्यवस्था पर सवाल खड़े करने तो उस व्यवस्था के दूसरे पहुलु पर भी गौर किया होता ।जिसने भी महाभारत लिखा उसने एकलभ्य के अंगूठा काटने की बात को भी लिखा लेकिन आप लोगो ने क्या किया सारी मर्यादाओ को ताख पर रखते हुए एक पंक्षीय बाते लिखते रहे।

ब्लांग पर लगे तस्वीर को गौर करे, जेल से बाहर निकलते उस बेवस और लाचार माँ को देखे अपने पति से भी आंख नही मिली पा रही है इसके लिए कौन जिम्मेवार है। क्या मीडिया इस जिम्मेवारी से अपने को बचा सकती है।

क्या वे लोग जिम्मेवार नही है जिन्होने दिल्ली की सड़को पर वी वान्ट जिसटिंस के नारे लगाकर पुलिस पर दबाव बना रहे थे।हम सब के सब जिम्मेवार है कहा है वे लोग जो मुझे ब्लांग पर मेरी माँ बहनो को गाली देते थे ।मैं भगवान को नही मानता हूं लेकिन समय को जरुर मानता हूं। उस समय से मेरी विनती है इन्हे सद बुद्धि दे नही तो आने वाला कल इतना भयावह होगा कि मैं पत्रकार हूं कहने से पहले दौ सौ बार सोचना होगा।

रविवार, जुलाई 25, 2010

हम तेरे शहर में आये हैं मुसाफिर की तरह--

वक्त का तकाजा है कभी खबर बनाने वाले भी खबर बन जाते हैं घटना 19जुलाई की है। शाम के 7बजकर 40मिनट के करीब दफ्तर से काम निपटाकर निकल रहा था इसी दौरान गाँधी मैंदान के ठिक सामने रामगुलाम चौक से जैसे ही होटल मोर्या की तरफ मुड़ा सामने देखते हैं कि एक लड़की को पीछे से एक एसकोरपियो वाले ने धक्का मार दिया, औऱ लड़की वही गिर गयी लेकिन तुरंत वे उठी औऱ गांड़ी पर सवार लोगो को कुछ कहने लगी इतने में तीन नौजवान तेजी से गांड़ी से उतरा औऱ लड़की के साथ उची स्वर में बात करने लगा ।तब तक मेरी गांड़ी भी वहा पहुंच गयी।मैं जब तक गांड़ी से उतरता देखते है एक लड़का लड़की को अपनी और खीच रहा है मैं अचानक उसकी और दौड़ा और कहा ये क्या कर रहो हो इतने में उसके औऱ साथियो ने लड़की को छोड़कर मुझ पर ही टूट परा स्थिति इतनी बिगड़ गयी की मुझे एसएसपी कन्ट्राल को फोन करना पड़ा।जब तक और बाते बढती पुलिस की दो जिप्सी पहुंच गयी जिस्पी पर सवार पुलिस वाले ने उन लड़को की और लपका तो कहने लगा मैं सासंद सुभाष यादब(लालू प्रसाद का साला)का रिश्तेदार हू तो दूसरो ने नीतीश कुमार के नजदीकी कैबिनेट मंत्री विषृण पटेल का रिश्तेदार होने का हवाला देते हुए पुलिस पर ही बसरने लगा।किसी तरह से पुलिस वालो ने उसे लेकर थाना आया।थाने पर पहुंचते ही उन तीनो का मोबाईल बजने लगा स्थिति यह हो गयी कि पुलिस वाले भाग रहे थे और वो तीनो गाली देते हुए पुलिस वाले को मोबाईल से बात करने को कह रहे थे। कोई कह रहा था मंत्री का फोन है तो दूसरा कह रहा था सासंद का फोन है कहा गया रे थानेदार गाली देते हुए बात काहे नही करते हो।साला तुम्हारा एसपी दिन में तीन बार सलामी देता है, और मुख्यमंत्री तो भरुआ है मैं चुपचाप इन लोगो का हड़कत देख रहा था।


उलेट एक पुलिस वाला डांट कर मुझे कहता है रोड पर पक्का लेते है शर्म नही आता है। मैने धीरे से कहा वही जगह था जहां पिछले वार दिनदहाड़े लड़की को नंगे कर घुमाया गया था जिसके कारण पूरे पुलिस महकमा को मुख्यमंत्री ने हटा दिया था इतना कहना था कि पुलिस वाले मुझपर ही बरस पड़े।मैं चुपचाप एक कोने में बैंठ गया और उन तीनो का हरकत देख रहा था जितनी भी गाली देनी थी दिये जा रहा था ।

वही पुलिस वाले चुप चाप उसके गाली को सूने जा रहा था स्थिति यह थी कि गाली देते देते थक जाता था तो पुलिस वाले उसे पीने के लिए पानी दे रहे थे। मैं बड़े अराम से यह सब देख और सून रहा था स्थिति मेरे लिए तब असहज हो गयी जब एक नौजबान दरोगा उसका मोबाईल छिन कर दो थप्पर मारा तो वहा तैनात थाने की मुंशी कहता है आप उसके संवैधानिक अधिकार पर चोट कर रहे मैने बड़े ही आराम से कहा आपके सामने मुझे गाली दी जा रही है क्या यह गैर संवैधानिक नही है।मुंशी कहता है कागज लिजिए इस पर जो भी लिखना है लिखकर दे दिजिए ज्यादा भाषण देने की जरुरत नही है।

लगभग दस वर्षो के बाद पहली बार आम लोगो की तरह मैं थाना पर पहुंचा था नही तो कभी कलम लेकर तो कभी लोगो लेकर प्रेस लिखे गांड़ी से थाना जाया करते थे थानेदार से लेकर सभी कर्मी स्वागत में लगे रहते थे मुझे लगता था कि समय के साथ थाने में बदलाव आया है।

लेकिन अब मुझे समझ में आने लगा था कि आम लोग सरेआम गाली गलौज सूनने के बाद भी थाना आने से क्यो कतराते हैं क्यो परिवार के साथ चलने वाले लोग आंखो के सामने छेड़खानी होते देख बरदास्त कर जाते हैं। कोई घटना होने पर लोगो का आक्रोश इतना उग्र क्यो हो जाता है पुलिस वाले के खिलाफ आम लोगो में इतना आक्रोश क्यो है।

यह सब दिमाग में चल ही रहा था कि अचानक एक कड़क आवाज सूनाई दी कितने देर से लिख रहे हैं।अब मेरा धैर्य जबाव देने लगा पहले मैने अपने मीडिया मित्रो को सूचित किया देखते देखते दस मिनट में सारे चैनल के पत्रकार थाने पर पहुंच गये मीडियाकर्मियो को देखते ही उन तीनो लड़को का तेवर और उग्र हो गया औऱ जमकर गाली गलौज करने लगा।

मीडिया वाले को थाने में इस तरह का लाईफ सोंट तो कभी कभी ही मिलता है जो भी आया सबके सब फोटो लेने में मस्त हो गया थाने में मुख्यमंत्री ले कर डीजीपी को गाली दे इससे बढिया स्टोरी क्या हो सकती है।मीडिया वाले के पहुंचने के बाद भी थाने की पुलिस का रहमदिल युवको के प्रति साफ दिख रहा था अब मुझे लगा कि कुछ करना चाहिए मैंने सीधे डीजीपी को फोन किया एक ही रिंग हुआ होगा कि उसने कहा क्या संतोष जी क्या हाल है ।सर ऐसी ऐसी बात अरे आपके साथ घटना घटी है आप वही रहे तुरंत कारवाई होगी।दो मिनट बाद ही देखते है थानेदार भागे भागे बरामदे पर आता है ।

अरे कहा गये संतोष जी क्या सर आपको पहले कहना चाहिए कहा गया रे पानी लाउ देखते देखते पूरे थाने का नजारा बदल गया दो मिनट पहले जो मुंशी मुझे संविधान बता रहा था उसके चेहरे से पसीना टपक रहा था पूरे थाने में मानो मौहाल ही बदल गया, सभी उन तीनो लड़के को चुप्प करने लगे।सुबह जब अखबार में खबर छपी और चैनलो पर खबर चलने लगा तो पूरे विभाग में हरकम्प मच गया तीनो लड़को पर गैर जमानतीय धारा लगाने को लिए पुलिस वाले मुझसे लगातार बात कर रहे थे सर थोड़ी देर के लिए थाने पर आ जाइए।यह है पुलिस जिसकी जबावदेही आम लोगो को सुरक्षा प्रदान करने की है।

गुरुवार, जुलाई 22, 2010

आदमखोर हीरा सिंह को ग्रामीणो ने पीट पीटकर कर मार डाला

बिहार इन दिनो फिर सुर्खियो मे है,नीतीश कुमार पर 11हजार करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप है ।आरोप में कितना दम है यह तो जांच के बाद सामने आयेगा लेकिन यह तो पूरी तौर पर सिद्ध है कि बिहार के नौकरशाह ने देश की जनता की मेहनत की कमाई को खर्च किया लेकिन पिछले आठ वर्ष बाद भी उस खर्च का हिसाब देना जरुरी नही समझा।दुर्भाग्य यह है जिसे हिसाब लेना था वह आज नौकरशाह के बचाव में लगा है और उसके लिए नीतीश कुमार कुछ भी करने को तैयार है।लेकिन जिस नौकरशाह को बचाने में नीतीश कुमार अपना सब कुछ दाव पर लगाये हुए है उनका चरित्र किया है उसे आप भी जाने---

मामला बिहार के दरभंगा जिले के मब्बी थाना क्षेत्र स्थित मखनाही गांव का है जहां दो दिन पूर्व गांव के ग्रामीणो ने एक तीस वर्षीय युवक हीरा सिंह पर आदमखोर होने का आरोप लगाते हुए गांव के बीचो बीच बिजली के खम्भे में बांध कर तब तक पिटता रहा जब तक उसकी मौंत नही हो गयी। इस दौरान दर्द से कराह रहे हीरा को पानी की जगह ग्रामीण, बच्चो को सामने में पेसाब करावा कर उसे पिलाया गया। इसकी सूचना गांव के कुछ युवक पूरी रात जिले के एसपी से लेकर तमाम आलाधिकारी को देते रहे। लेकिन रात भर कोई अधिकारी नही आया।सुबह में भी थाना वाला इस मामले को रफा दफा करने में लगा हुआ था लेकिन गांव के कुछ युवक ने इसकी सूचना मीडिया वाले को दे दी, मीडियाकर्मियो के पहुंचने के बाद पुलिस घटना स्थल पर पहुंची।

अब जरा आदमखोर हीरा सिंह के द्स्तान के बारे में जान ले ये लड़का एक पुलिसकर्मी का बेटा था।गांव में खेती करता था आज से छह माह पूर्व गांव के पास से गुजर रही नदी में ग्रामीणो ने एक लाश देखा लाश का पेट फटा हुआ था इसकी सूचना गांव वाले ने पुलिस को दी पुलिस ने जांच के दौरान पाया कि लाश का पोस्टमार्टम हुआ है।पुलिस वाले उसके बाद लाश को नदी में बहा दिया किसी ने कहा कि जिस व्यक्ति का वह लाश था उसे दो तीन दिनो से हीरा सिंह के साथ घूमते हुए देख रहे थे।

इस घटना के एक सप्ताह के अंदर फिर एक लाश नदी में तैरते हुए देखा गया उसका भी पेट फटा हुआ था इस बार ग्रामीणो ने पुलिस को सूचना दिया तो पुलिस नही आयी इसको लेकर पुलिस वालो का तर्क था कि जो लाश को पहचानने वाला कोई नही होता है उसे पोस्टमार्टम के बाद नदी में फैक दिया जाता है।वही इस मामले को लेकर गांव में चर्चाये होने लगी कि जो आज लाश नदी में तैर रहा था रात मे उसे हीरा सिंह के साथ दरभंगा से लौटते हुए देखा गया है।बात बढते बढते यहा तक पहुंच गयी कि हीरा सिंह लोगो को बाहर से फसा कर लाता है और उसको मारने के बाद उसका खून पीता है और फिर उसका पेट फारकर उसका कलेजा खाता है।

बात इतनी बढ गयी कि आज उस गांव में एक लाश मिला है फिर दो दिनो के बाद फिर अफवाह फैलता कि रात में हीरवा किसी राहगीर को मार कर खा गया है।स्थिति इतनी भयावह वह गयी कि गांव के बच्चो से लेकर जवान तक शाम ढलने से पहले घर लौट जाते थे।कई चैनल वाले आदमखोर मानव की स्टोरी बनाने गांव भी पहुंच गये लेकिन आसपास के किसी भी गांव से किसी के लपाता होने की सूचना नही मिलने के बाद मीडिया वाले भी चुप बैंठ गये।

इस बीच गांव वालो ने महापंचायत बुलाकर हीरा को गांव छोड़ने का आदेश दिया और उस पर उसके रिटायर पुलिसपदाधिकारी पिता से जबरन हस्ताक्षर भी करा लिया।इसकी सूचना हीरा सिंह और उसके पिता ने थाने को भी दिया लेकिन थान की औऱ से कोई कारवाई नही हुई।गांव वाले का रुख देखते हुए हीरा सिंह गांव छोड़कर चला गया।उसके जाने के बाद भी आये दिन हल्ला होता रहता था की आज हीरा सिंह को वहा देखा गया एक अजनवी व्यक्ति के साथ घूमते देखा गया स्थिति यहा तक आ गयी कि गांव के लोग रात में जगकर पहरेदारी करने लगे। इन सारी घटनाओ की सूचना थाने को थी।एक माह पहले उसी गांव के पास खानाबदोस जाति के लोगो ने अपना डेरा डाला एक दिन किसी गांव वाले ने हल्ला किया कि रात में हीरा सिंह को इस खानाबदोस के टेंट से निकलते देखे हैं।

फिर क्या था देखते देखते गांव के बच्चे से लेकर बूढे तक यहा तक कि महिलाये भी जिसको जो मिला वही लेकर खानाबदोस के डेरा को घेर लिया। किसी ने कहा यही चारो है जिसे हीरा के साथ में रात देखे थे।फिर क्या था सबके सब उस पर टूट परा। किसी तरह से चारो भागते भागते मब्वी थाने पर पहुंचा।पूरे गांव वाला थाना को घेर लिया और उस चारो पर हीरा का दोस्त होने का आरोप लगाते हुए पुलिस से जबरन छुड़ाने लगा स्थिति यहा तक बिगड़ गयी की लोगो ने थाना में आग लगा दिया उसके बाद जिले के तमाम आलाधिकारी औऱ दस थाने की पुलिस और पदाधिकारी स्थिति को नियत्रित करने मब्वी थाने पहुचे तब भी स्थिति नियत्रित करने में कई घंटे लग गये।इस दौरान कई बार पुलिस को गोली चलाने के लिए पोजीशन भी लेनी पड़ी।शाम तक पुलिस और प्रशासन के लोग समझाते रहे की यह अफवाह है ऐसा नही होता है।किसी तरह मामला शांत हो गया और फिर हमारे अधिकारी वापस अपने अपने धंधे में लिप्त हो गये ।

दो दिन पहले किसी तरह से छुप कर आधी रात में अपने बीमार बाप को देखने आये हीरा के बारे में गांव वालो को भनक लग गयी औऱ फिर क्या था गांव वालो ने बिमार बाप से लिप्टे हीरा को खिचकर बाहर निकाला, और घर के सामने लगे बिजली के खम्भे में उसे बांध दिया धीरे धीरे पूरे गांव के लोग आ गये और उसके बाद शुरु हुआ पिटाई का दौड़।

अब मेरा सवाल राज्य के मुखिया और आप सबो से है हीरा के मौंत के लिए कौन जिम्मेवार हैं। पिछले छह माह से आये दिन हो रही घटनाओ को रोकने की जिम्मेवारी किसकी है।वही दूसरा सवाल राज्य के मुखिया से भी है जो दरभंगा जिले के नौकरशाह के चरित्र के सहारे सूबे में सुशासन लाने की बात करते हैं जहां पुलिस महानिरीक्षक और आयुक्त जैसे अधिकारी बैंठते हैं। (---राज्य के नौकरशाह के आचरण का एक और पंक्ष आप सबो को जल्द ही पढने को मिलेगा।)

रविवार, जुलाई 18, 2010

चुप्पी क्यो साधे हो नीतीश जी कुछ तो बोलिये

चार माह पूर्व जब राज्य के अवकारी मंत्री ने नीतीश कुमार पर घोटाले का आरोप लगाया था, तो नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने पूरे दंभ के साथ कहा था कि देश में कोई ऐसा टकसाल नही बना है जो नीतीश को खरीद सके।लेकिन हाईकोर्ट के गम्भीर टिप्पणी ने नीतीश कुमार के दंभ को चकनाचूर कर दिया है।और पिछले तीन दिनो से चेहरा छुपाये फिर रहे हैं।शुक्र मीडिया का जो नीतीश के असली चेहरा को छुपाने के लिए अपनी सारी मर्यादओ को ताख पर रख दिया है।

खैर नीतीश को लेकर मेरी राय आज भी वही है जो दो वर्ष पूर्व थी जिसको लेकर मेरे मित्र काफी नराज रहा करते थे।हाईकोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश के बाद भी तरह तरह के विचार सामने आ रहे हैं और नीतीश कुमार को पाक साफ दिखाने की होड़ मची है।अब जरा आप भी इस महाघोटाले के बारे में समझने का प्रयास करे आखिर यह महाघोटाला है क्या।हलाकि इस घोटाल में लालू राबड़ी की भी उतनी ही भागीदारी है। लेकिन दोनो इस घोटाले में शामिल है इसलिए दोनो के दोनो खामोश है।

राज्य सरकार के अधिकारी ट्रेजरी से वर्ष 2002 से वर्ष 2008के बीच विकास कार्य और कल्याणकारी योजनाओ के लिए 11,924.44हजार करोड़ रुपया अग्रिम लिया लेकिन पिछले छह वर्षो के दौरान मात्र 511.90करोड़ रुपया का ही हिसाब महालेखागार को भेजा है।शेष 11,412,54हजार करोड़ रुपया के खर्च का कोई हिसाब सीएजी को नही दी गयी हैं.सीएजी लगातार विधानसभा को इस वित्तिय गोलमाल से सूचित करता रहा।इसी वर्ष जनवरी में सीएसजी ने एक विस्तृत रिपोर्ट विधान सभा के पटल पर रखा जिसमें सरकारी राशी के बड़े पैमाने पर लूट खसोट की बात करते हुए सरकार को अगाह किया। वही पैसे का कोई हिसाब नही देने के कारण केन्द्र सरकार बिहार के आवंटित राशी पर रोक लगा दिया मुख्यमंत्री ने राशी रोके जाने को मुद्दा बना दिये लेकिन इतने बड़े पैमाने पर राशी के दुरउपयोग पर चुप्पी साधे रहे।इस मामले में विधानसभा की लोकलेखा समिति ने जमकर हंगामा किया और मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री सुशील मोदी से तत्तकाल इस मसले की गम्भीरता को देखते हुए कारवाई का आदेश निर्गत करने की मांग की।लेकिन छह माह तक सरकार के कान में जू तक नही रेंगी।वही हाईकोर्ट ने सीएजी की रिपोर्ट पर आधारित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई जांच का आदेश निर्गत कर दिया।हाईकोर्ट की इस कारवाई के बाद सरकार सक्ते में है और कल मुख्यमंत्री ने बिहार के सभी डीएम को राशी के उपयोग का प्रमाण पत्र 24जुलाई तक सौपने का निर्देश जारी किया है।अगर वर्ष 2002से वर्ष 2010तक की राशी को जोड़े तो यह मामला बीस हजार करोड़ से अधिक का बनता है।सबसे महत्वपूर्ण बाते यह हैं कि ये सभी राशी गरीबो के उत्थान से जुड़ी योजनाओ के लिए अग्रिम ली गयी थी।

अब जरा इसकी कानूनी पहलुओ पर भी गौर कर ले कोई भी सरकारी पदाधिकारी किसी भी मद में अग्रिम राशी लेता है तो उसे छह माह के अंदर राशी के उपयोगिता का प्रमाण पत्र सौंप देना है। अगर आप नही सौपते हैं तो यह वित्तिय अपराध की के श्रेणी में आयेगा।वही किसी भी स्थिति में राशी अगर एक वर्ष के अंदर खर्च नही होती है तो उसे विभाग को लौटा देनी है लेकिन यहा तो छह छह वर्ष से लोग पैसे का हिसाब नही दे रहे जो गम्भीर वित्तिय अपराध की श्रेणी में आता है।अब आप ही बताये सरकार के मुखिया का क्या काम है आपके खजाने से पैसे निकल रहा है लेकिन पैसे का क्या हो रहा है उसका हिसाब कौन लेगा।चालीस के अधिक ऐसे मामले सामने आ चुके है जिसमें सरकारी पैसे का उपयोग निजी कार्यो मे करते हुए अधिकारी पकड़े गये हैं।तो सवाल यह उठता है कि जो सरकार जनता के मेहनत की कमाई के पैसे का हिसाब नही रख सकता है उसे गद्दी पर बने रहने का कोई हक है क्या।

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

मेरे दिवानगी पर कुछ तो रहम करो

मीडियाकर्मियो को किन किन हलातो से गुजरना पड़ता है उसकी एक बनगी आप सबो से शेयर कर रहा हूं,पिछले एक माह से हमारे दरभंगा के साथी एक अंननोन लड़की की समस्या को लेकर परेशान है।लड़की की समस्या है कि दरभंगा(बिहार)का लड़का उसके साथ शादी करने के कुछ माह बाद छोड़कर दूसरा शहर चला गया है।लड़की चाहती है कि किसी तरह उस लड़के को वापस लौटने पर मजबूर किया जाये।इसके लिए स्थानीय समाज द्वारा लड़के के परिवार पर दबाव बनाने में पत्रकार मित्रो का सहयोग चाह रही है।स्थानीय पत्रकारो ने इसके लिए पहल भी किया स्थानीय वार्ड पार्षद,मुहरंम कमिटी के अध्यक्ष के माध्यम से लड़के के परिवार वालो पर दबाव भी बनाया गया लेकिन बाद में धर्म के नाम पर दोनो अपने को इस मामले से अलग कर लिये।इसी दौरान दरभंगा के मेरे मित्र ने इस मसले पर मेरी राय जाननी चाही और बातचीत में यह तह हुआ कि इस मसले पर लड़की पहले आपसे बात करे।


दो दिन पूर्व दिन के तीन बजे के करीब उस लड़की का फोन आया बोली में वो बोल रही हूं थोड़ा अटपटा लगा फिर दरभंगा का हवाला देते हुए अपनी बात कहने लगी।मैं दरभंगा के एक मुस्लिम लड़के से पिछले 14 वर्षो से प्यार कर रही हूं इस दौरान कई बार हमारे रिश्ते में तनाव भी आया लेकिन अक्सर लड़का किसी न किसी स्थिति में मेरा गुस्सा शांत कर देता था।पिछले वर्ष हम दोनो ने शादी करने का निर्णय लिया मेरी शर्त थी कि मैं मुस्लिम नही बनूगी,लड़के ने आर्य समाज मंदिर दिल्ली मे हिन्दू धर्म अपनाने के बाद मुझसे शादी कर लिया।सब कुछ ठिक ठाक चल रहा था कि अचानक एक दिन वह घर से निकला और फिर कई दिनो तक वापस नही आया।बात करने पर उसने कहा कि तुम मुस्लिम धर्म अपनाओ तो फिर मैं तुम्हारे साथ रहूगा।मैने पुछा क्या लड़का कोई काम नही करता है।बोली मेरठ में किसी डेयरी फर्म में काम करता है।मैने पुछा तुम इतने बड़े पद पर कार्यरत हो और लड़का सड़क छाप है ऐसे प्यार का क्या मतलव है।(लड़की आईसीआई बैंक में अधिकारी है)बोली मैं उसे 14 वर्ष से जानती हूं ऐसा लड़का नही था उसे किसी कोलकोता की लड़की से चेटिंग के दौरान प्यार हो गया है।

उसी के चक्कर में वह दिवाना है, एक बार उस लड़की से रिस्ता खत्म हो जाये वह भागे भागे मेरे पास आ जायेगा।मैने सवाल किया क्या उस लड़की को आप जानती है उसने बोली उसके पूरे खनदान को जानती हू कोलगर्ल है वह शाहिद को ट्रेप करने अपने जाल में फसाये हुए है एक बार शाहिद कोलकोता गया था वही उसे कुछ खिला दिया है उसके बाद से वह उसका दिवाना बना है उससे सम्बन्ध तोड़ने के लिए मैने उस लड़की के परिवार से भी बात किया।लेकिन लड़की के परिवार वाले वे भी मुस्लिम है मेरी एक नही सूना।

उसके खिलाफ कोलकोता क्रायम ब्रांच में मेरे पति को बहलाह फुसला कर रखने के आरोप में मुकदमा भी दर्ज किया है।लेकिन जानते ही मुकदमे में कितना वक्त लगता है।वही लड़का दिल्ली कोर्ट में जबरन धर्म परिवर्तन कराकर शादी करने की बात कर मुकदमा किया है। लेकिन तारीख के अलावे अभी कुछ भी नही हुआ है।इतनी बातो के बाद मैने पुछा तो फिर जब ममाला कोर्ट में चल रहा है तो फिर आप हमलोगो से क्या चाहती हैं।मैं चाहती हू कि शाहिद के परिवार पर समाजिक दबाव बने, किस तरह एक लड़की के साथ शादी करने के बाद धोखा दे रहा है।मैने सीधे सीधे पुछा क्या आपने समाज से पुछकर या फिर समाज की सहमति से शादी की है।जब आपने समाजिक मान्यताओ के ठीक उलट आपने अपनी मर्जी से अपने माँ बाप की जानकारी के बगैर शादी की और अब आप समाज से मदद की उम्मीद कर रही है क्यो।इस सवाल पर थोड़ी झल्ला गयी और फिर मै किससे उम्मीद करु कानूनी प्रक्रिया इतनी जटील है कि समाधान में वर्षो लग जायेगा।

तो मैने बड़ी आराम से पुछा उस सड़क छाप में रखा क्या है क्यो उसके लिए जान दी हुई है जब आपका परिवार इस शादी के बारे में कुछ भी नही जानता है तो बात खत्म करे। नये सिरे से अपना जीवन शुरु करे क्यो ऐसे लोगो के चक्कर में अपना जीवन तबाह कर रही है।बड़ी मासूमियत मे बोलती है क्या करे रहा नही जाता है।मैं चाहती हू कि किसी भी स्थिति में एक बार शाहिद मेरे पास आ जाये फिर वे मुझे कभी छोड़कर नही जायेगा।पिलिज कुछ करिये,मैने कहा कोई कानून नही है जो शाहिद को तुम्हारे साथ रहने पर मजबूर करे रही बात समाजिक दबाव का तो उसकी एक सीमा है वार्ड पार्षद और मुहरंम किमटी के अध्यक्ष भी उसी मुस्लिम समाज से आता है ।वह आज तक जो भी कुछ पहल किया है वह इसलिए की हमलोगो से उसका सम्बन्ध बेहतर है।

अब आप ही बताये इस समस्या का क्या समाधान हो सकता है,क्योकि आज इस तरह के स्थिति से लाखो युवा गुजर रहा है,कहते है प्यार मजहब और देश की सीमाओ को नही मानती,प्यार करने वाले समाजिक मान्यताओ को दकियानुसी मानता है। मीडिया हो या फिर देश के बुद्दिजिवी इस मसले पर बड़ी ही प्रोग्रेसिव पोस्जर देते है और इस तरह से शादी करने वाले को क्रांतिकारी मानते हैं। लेकिन शादी के बाद जो समस्याये सामने आती है उसके समाधान का उपाय न तो मीडिया के पास है और ना ही प्रोग्रेसिव विचार के सहारे बाते करने वाले बुद्दिजिवीयो के पास। यह एक अहम सवाल है और आने वाले समय में हमारे समाज के सामने एक बड़ी चुनौती होगी क्यो कि यह कहना कि लवमेरेंज से जाति का बंधन टुटेगा और दहेज जैसी कुप्रथा पर लगाम लगेगा यह तो दिख रहा है लेकिन इस तरह के शादी का जो प्रभाव सामने आ रहा है वह इन कुप्रथाओ से कम भयावह नही है।वक्त इस विषय पर गम्भीरता से सोचने का है क्यो कि जैसे जैसे उदारीकरण का दौड़ तेज हो रहा है इस तरह के मामले और तेजी से बढेगे ऐसे हलात में देश के युवा पीढी के साथ साथ अभिभावको को भी इस मसले पर सोचना चाहिए क्यो कि देश में कानून और न्याय प्रणाली की जो स्थिति है उसमे आने वाले समय में अराजक स्थिति हो जायेगी।

मंगलवार, जुलाई 06, 2010

देश के नेताओ कुछ तो शर्म करो

नेता की ठाठशाही,और अधिकारी की अफरशाही देश की मेहनत कस जनता की गांढी कमाई पर चल रही।यह जूमला बचपन से सूनता आ रहा हू,पत्रकारिता में आने के बाद यह जुमला अक्सर किसी न किसी कार्यक्रम के दौरान सूनने को मिलता रहा है। लेकिन कभी भी इस विन्दु को गम्भीरता से नही लिया,लगा यह महज समाजवादी और वामपंथियो की राजनैतिक चौचलेबाजी मात्र है।


सोमवार को एनडीए और वामपंथी पार्टी द्वारा महंगाई को लेकर आयोजित बंद का कभरेज के दौरान पेट्रोल पम्प ऐसोसिएन के लोगो से भेट हुई बातचीत के दौरान एक पेट्रोल पम्प मालिक ने कहा सभी दल राजनीत कर रहा है, किसी को भी जनता का फिक्र नही है। लेकिन जनता के नाम पर ये सभी दल अपनी अपनी राजनीत की दुकाने चला रही है।कोई कहने वाला नही है राजनीति में वैसे लोगो की जमात है जिन्हे देश की अर्थ व्यवस्था की समक्ष नही है।शिक्षाविदो को अपनी नौकरी करने के अलावे समाजिक और आर्थिक मुद्दे पर सोचने का वक्त कहा है।और पत्रकारिता के बारे में बात करनी ही बेकार है।जोरदार बहस चल रही थी लेकिन पल पल की खबर पर नजर रखने की मजबूरी ने इस बहस का हिस्सा बनने की प्रबल इक्छा के बाद भी शामिल नही हो पा रहा था।

लेकिन जाते जाते मैंने उनका मोबाईल नम्बर ले लिया।रात में जब घर लौटा तो दिन की गर्मी और खबर भेजनी की आपाधापी में पूरी तरह थक जाने के बावजूद मैने पेट्रोल पम्प मालिक को फोन लगा दिया जैसे जैसे बाते आगे बढ रही थी मेरी बैचेनी बढती जा रही थी उन्होने जो कहा वह मुझे यकिन ही नही हो रहा था।मैं बार बार कह रहा था कि जो तथ्य आप रख रहे है, इतने बड़े बड़े जानकार इस देश में मौंजूद हैं बड़े बड़े पत्रकार हैं उनके नजर में ये बाते क्यो नही आ रही है।यह तो बहूत बड़ा पाखंड है उनके तथ्यो को लिखने के बाद पटना विश्वविधालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एन0के0चौधरी से मैंने बात की उन्होने कहा कि पेट्रोल पम्प के मालिक ने जो कहा है वह पूरी तौर पर सही है।उसके बाद और कई मित्रो से बात किया, जिसने भी सूना सभी के सभी भौंचक रहे गये।हो सकता है आप लोगो की जानकारी में ये बाते हो लेकिन इस सच से सबो का अवगत कराने की मेरी बैंचनी ने आज लिखने को मजबूर कर दिया है।जिस पेट्रोलियम पदार्थ के दाम को लेकर इतनी हाई तौबा मचायी जा रही है जरा उसके अंक गणित को समझे,

केन्द्र सरकार ने कहा कि सबसिडी खत्म करने के कारण तेल का दाम बढाया गया है यह मजबूरी में उठाया गया कदम है। लेकिन तेल के दामो में बढोतरी करने से केन्द्र और राज्य सरकार के आमदनी में बीस हजार करोड़ के करीब बढोतरी हुई है।जरा इस आकड़ो पर आप भी गौर करे।

पेट्रोल पर केन्द्र सरकार 11.80प्रतिशत सेन्ट्रल ऐक्ससाईज 9.75प्रतिशत एक्सपोर्ट टेक्स लेती है।और बिहार सरकार 24.50प्रतिशत वेट टेक्स के रुप में लेती है।इस तरह एक लीटर पेट्रोल पर दोनो मिलकर 46प्रतिशत टेक्स लेती है,इसका मतलब हुआ 53रुपये 19पैसे में 23रुपया टेक्स सरकार आम जनता से लेती है।यही स्थिति डीजल का हैं इसमें भी 40प्रतिशत के करीब टेक्स राज्य और केन्द्र वसूलती है।ऐसे हलात में सरकार टेक्स में कमी कर जनता के बोझ को कम कर सकती है लेकिन इस पर सभी खामोश हैं।ब्लाग पर इस तथ्य को सामने लाने के पीछे इस विषय खुलकर चर्चाये हो और अगर आकंड़ो के खेल में ये बाते सही साबित होती है तो सरकार और नेताओ के पाखंड पर खुलकर हल्ला बोलने की जरुरत है।

शनिवार, जून 26, 2010

निरुपमा मामला सुधा पाठक की जमानत याचिका खारिज


निरुपमा हत्याकांड मामले में कोडरमा की निचली अदालत ने निरुपमा की माँ सुधा पाठक की जमानत याचिका खारिज कर दी है।सुधा पाठक के वकील इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल करने की बात कहते हुए कोडरमा पुलिस पर कई गम्भीर आरोप लगाये है।वही एडीजे के कोर्ट में दस मिनट चली बहस के बाद न्यायलय ने सुधा पाठक की जमानत याचिका खारिज कर दी।सुधा पाठक के वकील ने न्यायलय के समंक्ष सोसाईड नोट और अन्य फौरेन्सिंग रिपोर्ट का हवाला देते हुए पुलिस द्वारा कोर्ट में पेश डायरी के आधार पर मामले को आत्महत्या करार दे रहे थे। वही सरकारी वकील ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के साथ साथ आत्महत्या के लिए प्रेरित करने से सम्बन्धित प्रयाप्त साक्ष्य उपलब्ध होने की बात करते हुए जमानत याचिका का विरोध किया।


दोनो पंक्ष के सुनने के बाद न्यायलय ने सुधा पाठक की जमानत याचिका को खारिज कर दिया है।84पेज के पुलिस डायरी में पुलिस का अनुसंधान पूरी तौर पर आत्महत्या की तरफ बढता दिख रहा हैं,जिसमें पुलिस निरुपमा के आत्महत्या के लिए निरुपमा के परिवार वाले और प्रियभांशु को जबावदेह ठहराने का प्रयास करते दिख रहा है।इस बीच फौरेन्सिंक जांच रिपोर्ट में निरुपमा के लैपटांप से छेड़छाड़ की बात सामने आयी है वही प्रियभांशु के मोबाईल फोन के मैसेज बोक्स और कांल डिटेल्स से रहस्य पर से पर्दा उठने लगा है इसमें भी छेड़छाड़ की बाते सामने आ रही है।

प्रियभांशु पर निरुपमा के साथ शादी का झांसा देकर शाररिक सम्बन्ध बनाने,गर्भपात कराने को लेकर लगातार दबाव डालने और शादी की तारीख को लेकर प्रियभांशु द्वारा बहाना बनाने, जिसमें प्रियभांशु द्वारा बहन की शादी करने के बाद शादी करने की बात को पुलिस ने प्रमुखता से लिया है।पुलिस इस मामले में प्रियभांशु से शीघ्र पुछताछ करने जा रही है ।

कोडरमा पुलिस के आलाधिकारी की माने तो निरुपमा के परिवार वाले और प्रियभांशु पर, निरुपमा को आत्महत्या करने को लेकर प्रेरित करने से जुड़े साक्ष्यो के आधार पर पुलिस चार्जसीट करने पर विचार कर रही है।कांड का 90दिन 2अगस्त को पूर हो रहा है, उससे पहले पुलिस चार्जसीट दायर करने के लिए सारी प्रक्रिया को शीघ्र पूरा कर लेना चाह रही है।अगर हलात यही रहा तो प्रियभांशु की गिरफ्तारी भी हो सकती हैं।क्यो कि पुलिस को न्यायलय के आदेश पर प्रियभांशु पर दर्ज हत्या के मुकदमो पर भी फैसला लेना है,अगर केश धारा 306में सिद्द हो जाती हैं तो इसमें आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है लेकिन इसे साबित करना थोड़ मुश्किल जरुर है।

अगर जस्टीस फोर निरुपमा ग्रुप प्रियभांशु बचाओ ग्रुप की तरह काम नही करे तो निरुपमा के मौंत के लिए जिम्मेवार लोगो को सजा मिल सकती हैं।आगे आये और जस्टीस फांर निरुपमा के अभियान को आगे बढाये।

बुधवार, जून 23, 2010

निरुपमा मामले में कोडरमा पुलिस ने सौपी रिपोर्ट

कोडरमा पुलिस ने निरुपमा हत्याकांड मामले में आज अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी हैं।84पेज के इस रिपोर्ट में पुलिस को हत्या से सम्बन्धित अभी तक कोई साक्ष्य नही मिला हैं।प्रारम्भिक रिपोर्ट के अनुसार मामले को धारा 306के तहत मुड़ता दिख रहा हैं।ऐसा हुआ तो प्रियभांशु की मुश्किले बढ सकती है और इस मामले में प्रियभांशु को पूरा ट्रायल फेस करना पड़ सकता हैं।पुलिस ने यह रिपोर्ट सोसाईड नोट और निरुपमा के घर से बरामद साक्ष्य के आधार पर फौरेन्सिंक विभाग द्वारा दी गयी रिपोर्ट पर आधारित हैं।कोडरमा एसपी बी क्रांति कुमार द्वारा जारी निर्देश के तहत सोसाईड नोट की जांच करायी गयी जिसमें विशेषज्ञो ने निरुपमा द्वारा ही सोसाईड नोट लिखे जाने का रिपोर्ट कोर्ट मे समर्पित किया हैं।वही दूसरी और कई ऐसे साक्ष्य पुलिस ने डायरी में लिखा हैं जिसके तहत यह मामला आत्महत्या का प्रतीत होता हैं। हलाकि धारा 306 भी ननबलेबुल ओफैन्स हैं और इसमें अधिक से अधिक आजीवन करावास की सजा हो सकती हैं।अगली सुनवाई 26जून को निर्धारित की गयी हैं।

रविवार, जून 13, 2010

मोदी मामले में नीतीश कुमार का पाखंड सामने आया

नरेन्द्र मोदी के साथ फोटो छपने के मामले में भले ही भाजपा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने घुटने टेक दिये हो, लेकिन इस मामले में नीतीश कुमार का पाखंड खुलकर सामने आ गया हैं।पिछले 16वर्षो से भाजपा के साथ इनकी दोस्ती हैं गुजरात दंगे के समय ये बाजपेयी मंत्रीमंडल में मंत्री थे इतना ही दर्द था तो मंत्री पद छोड़ देते।




लोकसभा चुनाव के दौरान लुधियाना के जिस सभा में दोनो एक मंच पर बैंठे और कार्यक्रम के दौरान दोनो ने हाथ मिलाकर लोगो का अभिवादन किया लेकिन उस वक्त इसको लेकर नीतीश को कोई झिझक नही हुई थी ।क्यो कि बिहार में लोकसभा का चुनाव हो चुका था और ऐसा लग रहा था कि बीजेपी गठबंधन की सरकार केन्द्र में बनेगी।

नीतीश कुमार का यह चरित्र पहली बार सामने नही आया हैं लेकिन मुस्लिम वोट के खिसकने की सम्भावना को देखकर आपा खो बैंठे और उनका पाखंड खुलकर सामने आ गया।नीतीश कुमार कहते हैं जाति से उपर उठे और बिहारी बने लेकिन जरा आकड़े को देखे चालीस जिले में 33जिला के सरकारी वकील मुख्यमंत्री के विरादरी का हैं।40जिले में 30जिलो के डीएम,एसपी या फिर डीडीसी के पद पर उनके विरादरी के लोक पद स्थापित हैं।यही स्थिति एसडीओ के पद का हैं।ऐसे स्थिति में जात पात कैसे मिटेगा,
अक्सर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं पार्टी कार्यकर्ता को सम्मान देना मेरी पहली प्राथमिकता हैं लेकिन राज्य सभा चुनाव में जदयू ने जिन लोगो को टिकट दिया हैं उसमें से एक आरसीपी सिन्हा आईएस अधिकारी हैं और मुख्यमंत्री के निजी सचिव रहे हैं और उनके विरादरी के भी हैं।दूसरा टिकट उपेन्द्र कुशवाहा को दिया हैं जो पिछले चार वर्ष से नीतीश कुमार को खुले मंच से गाली देते रहे हैं लेकिन जातिये गोलबंदी को देखते हुए उन्हे पार्टी में शामिल किया गया और राज्यसभा का टिकट भी दिया गया ।अब आप ही बताये की यह क्या हैं इस हलात में कैसे जाति से उपर लोग सोच सकता हैं।इनके कार्यकाल में प्रतिभा के बजाय जाति को खुलेआम तब्जो दी जाती रही हैं ऐसे एक नही सैकड़ो उदाहरण हैं चार चार मेडिकल कांलेज के प्रचार्य इनके विरादरी के हैं जिन्हे वरियता को तोड़कर पोस्टिग किया गया हैं।कई ऐसे उदाहरण हैं अगर लिखा जाये तो कितने पेज भर जायेगे।

नीतीश कुमार के इन्ही पाखंड के कारण मैं इनका आलोचक रहा हू और मेरा मानना हैं कि, नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद के कुशासन के खिलाफ बिहार में पहली बार विकास के नाम पर गोलबंद हुए जनता के साथ विश्वास घात किया हैं।मोदी वाले मामले को ही ले बिहार में विकास जब ऐजंडा हैं और गांव गांव में सड़के बनी हैं कानून व्यवस्था में काफी सुधार हुआ हैं पूरे सूबे में इसकी चर्चा हैं। और एक बार नीतीश कुमार को और मौंका देने की बात कर रहे हैं। लेकिन जिस तरीके से मोदी के बहाने मुस्लिम तुष्टीकरण के राजनीत को हवा देने का काम नीतीश कुमार ने किया हैं उसका नुकसान आने वाले समय में नीतीश कुमार को झेलनी पड़े तो कोई बड़ी बात नही होगी।

शनिवार, जून 05, 2010

निरुपमा मौंत मामला में प्रियभांशु एंड कम्पनी के 33 सवाल


निरुपमा मामले में जारी वेव अभियान लगभग थम सा गया हैं।मोहल्ला वाले दूसरे सनातनी मामले में उलझ गये हैं ।मेरी भी इक्छा कुछ खास लिखने की नयी थी लेकिन प्रियभांशु एंड कम्पनी द्वारा उठाये गये सवालो का जबाव देना लाजमी हैं।वही निरुपमा के कई मित्रो ने मुझसे बात की हैं और वे भी चाहती हैं कि असली कातिल सामने आये। कई ने तो यहां तक कहा कि हमलोगो को उपयोग किया गया हैं,


अब जरा सबाल जबाव हो जाये,क्यो कि प्रियभांशु एंड कम्पनी के सवाल का जबाव तुरंत दिया जा सकता था लेकिन मुझे लगा कि इनके सवालो को जबाव देने से पहले पुलिस अनुसंधान की दिशा और दशा के बारे में और जानकारी ली जाये।इसी कारण प्रश्न के जबाव देने में थोड़ा विलम्भ हो गया ।

1पहली बात यह कि झारखंड के राज्यपाल के दिल्ली दौड़ा के दौरान प्रियभांशु एंड कम्पनी ने राज्यपाल को प्रभावित करने के लिए पूरी ताकत लगा दी लेकिन इस मुहिम में कल तक जो लोग प्रियभांशु मामले में सनातन और समाज सुधारक बन रहे थे।वैसे सभी के सभी इस मुहिम से भाग खड़े हुए कई बार इन लोगो ने फोन किया गया लेकिन अधिकांश लोग नही आये।इस झटका से प्रियभांशु एंड कम्पनी को अभी तक होश नही हुआ हैं।वही दूसरी और प्रियभांशु इन सबसे बेखबर पीटीआई दफ्तर रोजना जा रहा हैं।

2-इस मामले में सवाल पर सवाल खड़े करने वाले रीतेश कुमार,दिलीप मंडल औऱ रजनीश कई मामलो में साक्ष्य को पूरी तौर पर तोड़ मरोड़ कर पेश किये हैं।जो बेहद दुखद हैं,जिस तरीके से इसने यह सवाल उठाया कि निरुपमा के पापा औऱ भाई घटना के 24घंटे पहले से ही दफ्तर में मौंजूद नही थे पूरी तौर पर तथ्य से पड़े हैं।कोडरमा पुलिस इस मामले में तीन टीम गठित की थी जिसमें,श्री प्रकाश सिंह दिल्ली,टुडु गोंडा और राजेश बोचा मुबंई गया था।दोनो अपने दफ्तर में मौंजूद था।

3-मेरी एक सलाह हैं कुछ भी लिखने से पहले उसकी कानूनी प्रावधान की जानकारी लेनी चाहिए जैसे इस सवाल का क्या मतलव हैं कि कोडरमा पुलिस ने कोर्ट में को कहा कि सीबीआई जांच की जरुरत नही हैं।इसी तरह सीआईडी को रिमांड पर लेने से रोका गया कोई भी जानकार व्यक्ति जो अपराधिक मामलो पर नजर रखते हैं इस तरह की बाते नही लिख सकती हैं। केश जबतक सीआईडी जांच के लिए रिकोमेंन्ड नही होता हैं उस मामले में सीआईडी को रिमांड पर लेने का अधिकार ही नही हैं।और पुलिस कोर्ट में किस हेसियत से कहेगी की सीबीआई जांच की जरुरत नही हैं।

4-कोडरमा पुलिस के कार्यशैली पर सवाल खड़े किये जा रहे हैं वे तो अभी भी निरुपमा की हत्या मान रहे हैं यह अलग बात हैं कि हत्या को लेकर साक्षंय जुटाने में उन्हे कठनाई हो रही हैं।

5-निरुपमा के पापा औऱ भाई भी सीबीआई जांच की मांग को लेकर राज्यपाल और मुख्यमंत्री से गुहार लगाया हैं।

6-इस मौंत की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी अंकिता हैं जिसे कोडरमा पुलिस भी खोज रही हैं और मीडिया के लोग भी अंतिका तक पहुचने में एड़ी चोटी एक किये हुए हैं।प्रारम्भिक जानकारी मिली की अंकिता दरभंगा की रहने वाली हैं लेकिन इसकी पुष्टी नही हो सकी हैं।फिर पता चला कि निरुपमा और अंकिता बनारस में साथ पढती थी औऱ मेडिकल की तैयारी करती इस समय मंगलौर में बीडीएस कर रही हैं।मंगलौंर में हुए विमान हादसा को कभर करने गये मीडियाकर्मीयो में एक मेरा मित्र भी बेगलूरु से गया था। अंकिता को खोजने के लिए उसने तीन दिन और मंगलौर में रहा लेकिन उसका पता नही चला।ब्लांग पर अंकिता के बारे में लिखा गया हैं कि प्रियभांशु से उसकी बात हो रही थी कृप्या करके अंकिता का कोई पता हो तो जारी करे इस मौंत की सबसे अहम कड़ी अंकिता ही हैं।क्यो कि निरुपमा की अंतिम समय तक अंकिता से काफी देर देर तक बातचीत होती रही हैं लेकिन घटना के दिन के बाद से अंकिता का मोबाईल स्वीच आंफ बता रहा हैं।कोडरमा पुलिस उसके मोबाईल का डिटेल्स लिया हैं।उसमें प्रियभांशु से बातचीत की जानकारी मिली हैं।इस कांड की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी अंकिता ही हैं।अगर वो ब्लांग पर आती हैं तो वो राज बेनामी ही सही लिख कर लोगो के सामने लाये।

7-पोस्टमार्टम रिपोर्ट.दुपट्टा,सोसोईड नोट और निरुपमा के गर्भवती होने पर सवाल खड़े करने से बचे तो बेहतर होगा सारे तथ्य जल्द सामने आ जायेगे।आज बहुत सारी ऐसा तकनीक मौंजूद हैं जिससे इसका खुलासा हो सकता हैं।

8-जहां तक 28अप्रैल को निरुपमा के दिल्ली लौटने की बात कही जा रही हैं कई सज्जन ने ब्लांग पर जिक्र भी किया हैं उनसे आग्रह हैं कि उस ई0 टिकट को पब्लिस करे क्यो कि पुलिस को जांच के दौरान 28 तारीख के रिजर्वेसन चार्ट में निरुपमा के नाम पर कोई टिकट बुक नही हैं।रद्द टिकट में भी इसका नाम दर्ज नही हैं।

9-प्रियभांशु के मोबाईल की प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट में मैसेज बांक्स में छेड़छाड़ का मामला सामने आया हैं,

10-मैं उम्मीद करता हूं कि इससे जुड़ी जो भी जानकारी आप सबो के पास हैं उसे सामने लाये कोडरमा पुलिस भी चाहती हैं कि सच्चाई सामने आये, सहयोग करे।

11-एक सवाल यह भी बार बार उठाया जा रहा हैं कि निरुपमा को निर्सिगहोम किसने पहुचाया दयानंद, नरेन्द्र प्रसाद सहित सभी लोगो का बयान पुलिस ने दर्ज कर लिया हैं जिसने निरुपमा को निर्सिंग होम ले गया था निर्सिगहोम के कम्पाउडर चन्द्रेश्वर से भी पुलिस बयान ले चुकी हैं।

12-जहां तक निरुपमा के जिस एसएमएस का हवाला दिया जा रहा हैं कि उनपर नजर रखी जा रही हैं, बाथरुम से मैसेज भेज रही हुं।जबकि निरुपमा घटना दो दिन पहले भी अकेली अपने कांलेज के दोस्त से मिलने गयी हैं वहां घंटो रही हैं।पुलिस उस लड़की से भी बयान लिया हैं।निरुपमा के मोबाईल के कांल डीटेल्स में दिल्ली प्रियभांशु को छोड़कर कई लोगो से बात की हैं।दिल्ली से भी फोन आया हैं।ऐसे में इस तरह के मैसेज भेजने का कोई कारण पुलिस के समझ में नही आ रही हैं।---

गुरुवार, मई 27, 2010

आँनर किलिंग को लेकर हदे पार कर रहे हैं,प्रियभांशु एंड कम्पनी


प्रियभांशु एंड कम्पनी सारी मर्यादाओ को ताख पर रख कर किसी भी स्थिति में निरुपमा की मौंत को आँनर किंलिग साबित करने में लगे हैं।झारखंड के डीजीपी पर दबाव डलवाने के साथ साथ अखवार और मीडिया का जितना भी दुरउपयोग हो सकता हैं किया जा रहा हैं।स्थिति यहां तक पहुंच गयी हैं कि निरुपमा मामले में सवाल खड़े करने पर ब्लांगर को माँ बहनो को गाली दी जा रही हैं।पता नही प्रियभांशु एंड कम्पनी प्रियभांशु के साथ किस जनम का बदला ले रहे हैं।उन सबो के व्यवहार ने कही न कही एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया हैं जो इन सबो से किसी भी स्थिति तक जबाव देने की तैयारी प्रारम्भ कर दी हैं।इसी का परिणाम हैं कि कोडरमा में पिछले चार दिनो से निरुपमा के माँ के मामले में लोग खुलकर सामने आने लगे हैं।


जिस तरीके से तथाकथित जनवादी विचार धारा के परोकार इस मामले को ब्रह्रामण जाति से जोड़कर पूरे मामले को जाति में बाँट दिया हैं उसका फायदा कही न कही निरुपमा के असली हत्यारे को मिलता दिख रहा हैं।अब जरा प्रियभांशु एंड कम्पनी के कारगुजारी पर चर्चा हो जाये—

1-निरुपमा मामले में प्रियभांशु एंड कम्पनी झारखंड के डीजीपी पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस के एक बड़े नेता से लगातार फोन करवा रहे हैं।

2-कोडरमा एसपी को उसके बैंचमेंट यूनियन टेरेटरी केंडर के एक आईपीएस अधिकारी से लगातार फोन करवाया जा रहा हैं।उससे भी बात बनते नही देख शहाबुद्दीन मामले में चर्चा में रहे एक आईपीएस अधिकारी से भी फोन करवाया गया हैं जो इन दिनो सेट्रल डीपटेशन पर दिल्ली में हैं कोडराम पुलिस और झारखंड पुलिस मुख्यालय में तैनात आलाधिकारी की माने तो ऐसा एक भी दिन नही गुजरता जब किसी न किसी आईपीएस अधिकारी का फोन नही आता हो आखिर ये चाहते क्या हैं।

3-मीडिया की बात करे 25मई को सभी चैनलो ने ब्रेकिंग खबर चलाया कि निरुपमा की माँ ने जमानत याचिका दायर की जबकि यह खबर पूरी तौर पर गलत था जमानत याचिका 26मई को दायर किया और 28मई को इस पर सुनवाई होगी कल जब ये बाते सामने आयी तो कई चैनलो पर खबर ब्रेक हुआ निरुपमा की माँ को नही मिली जमानत 28मई को होगी सुनवाई अब आप ही बताये इस खबर का क्या मतलब हैं।झारखंड के अखबारो में दिल्ली से खबर छपती हैं कि निरुपमा मामले में कोई भी कांग्रेसी नेता आन्दोलन नही करेगे।एक अखबार ने खबर छापा फौरेन्सिंक जांच रिपोर्ट ने निरुपमा की हत्या की पुष्टी की।

4-मोहल्ला में रीतेश जितने तार्किक अंदाज में लिख रहे हैं उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है,बयान बदलने का ही नतीजा हैं कि सुधा पाठक जेल में हैं और उसके परिवार संदेह के घेरे में हैं लेकिन पूरे मामले का जो सबसे मजबूत पहलु हैं वह यह हैं कि घटना के लगभग एक माह बाद भी पुलिस को हत्या को लेकर कोई सांक्ष्य नही मिल पा रहा हैं।

5-कोडरमा पुलिस निरुपमा के भाई के पाच दोस्तो से भी पुछताछ किया हैं एक बीएसएफ में पदस्थापित हैं वे अपने पोस्टिंग वाले जगह पर ही घटना के दिन मौंजूद थे यही स्थिति बैंक में तैनात एक दोस्त का हैं।पुलिस को दोस्त से भी कोई सुराग नही मिला हैं।

6-निरुपमा के मामा के पंक्ष में पुलिस को ऐसा साक्ष्य मिला हैं जिसे तोड़ना सम्भव नही हैं।घटना के दिन बाढ के जिस ऐटीएम से पैंसा निकाला हैं उसमें लगे थ्रिसीसीडी कैमरे में उसका फोटो हैं।इसलिए मामा पर जारी अनुसंधान पुलिस को बंद करनी पड़ी हैं।

7-यही स्थिति निरुपमा के पिता,और भाई के मामले में सामने आयी हैं उसके बाद पुलिस ने उन विन्दुओ पर भी अनुसंधान बंद कर दिया हैं।

8-पोस्टमार्टम रिपोर्ट को लेकर जारी बहस पर भी पुलिस ने विराम लगा दिया हैं।पुलिस इस मसले पर कुछ भी लिखने को तैयार नही हैं ।पोस्टमार्टम करने वाले डांक्टर नोटिस जारी होने के बाद भी पुलिस के सामने उपस्थित नही हुए जो पुलिस ने कांड दैनकी में अंकित कर लिया कर लिया गया हैं।वही कोडरमा के सिविल सर्जन ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को अभी तक रांची एक्सपर्ट के पास ओपेनियन के लिए नही भेजा हैं.।

9-मीडिया में फौरेन्सिंक रिपोर्ट आने की खबर के बाद तिलैया थाना के थाना अध्यक्ष ने विधिवत थाने में तैनात सिपाही राजू मिंज को कमान देकर रांची फौरेन्सिंक लैंब भेजा लेकिन लैंब के निदेशक ने लिखित सूचना दी हैं कि अभी तक किसी भी तरह की फौरेन्सिंक जांच पूरी नही हुई हैं।थाने के स्टेशन डायरी में भी इस तथ्य को दर्ज कर दिया गया हैं।

10-फौरेन्सिंक लैंब के आलाधिकारी के हवाले से जो बाते सामने आ रही हैं पूरी रिपोर्ट आने में तीन से चार माह का समय लग सकता हैं।ऐसा हुआ तो कोडरमा पुलिस निर्धारित 90 दिनो के अंदर चारशीट दायर नही कर पायेगी,ऐसे हलात में निरुपमा की माँ को जमानत मिल जायेगी।

11-दिल्ली वाले हल्ला पार्टी से मेरी एक विनती हैं अगर निरुपमा मामले में सच को सामने लाना चाहते हैं तो इस तरह से ब्लांग पर आकर तर्क वितर्क करने और मोमवती जलाकर इंडिया गेट तक मार्च करने से कुछ भी मिलने वाला नही हैं। वही जनवादी सोच रखने मात्र से कानून आपके दलील को नही मान लेगी। आप रांची आये लेकिन खुले दिमाग से हत्या या आत्महत्या की मानसिकता से उपर उठकर ।प्रधानमंत्री के चाहने पर भी मामला की सीबीआई जांच नही हो सकती हैं।राज्य में जारी राजनैतिक संकट के समाप्त होने का इन्तजार करे।आप लोगो ने जो क्रिमनल पेटिशन फाईल किया हैं उस पर सुनवाई होने में इतना वक्त लग जायेगा कि न्याय का कोई मतलब नही रह जायेगा।प्रियभांशु या फिर आपका जो संकठन हैं रांची हाईकोर्ट में आवेदन दे और मामले की सीबीआई जांच की मांग करे।ये दिल्ली हाईकोर्ट में भी हो सकता हैं।

12-पुलिस हत्या साबित करने में जिस तरह से असफल हो रही हैं ऐसे हलात में प्रियभांशु का जेल जाना तय हैं अगर कानूनी प्रक्रिया तेज हुई तो प्रियभांशु को सजा भी हो सकती हैं ।जिस तरह के साक्ष्य निरुपमा के घर वाले पुलिस के सामने पेश कर रहे हैं वह प्रियभांशु की मुश्किले बढा सकती हैं।निरुपमा के पिता ने प्रियभांशु के पिता से तीन बार मोबाईल पर बातचीत किया हैं। अब ये कह रहे हैं कि प्रियभांशु के पिता से शादी के सिलसिले में मिलने को लेकर बात हुई थी लेकिन उन्होने शादी के प्रस्ताव को पूरी तौर से खारिज कर।यह सबूत जनवादी नही हैं इस साक्ष्य को कांटने के लिए प्रियभांशु को बड़ी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती हैं।ऐसे कई साक्ष्य पुलिस ने भी संकलित किया हैं जिससे प्रियभांशु की मुश्किले बढ सकती हैं।

गुरुवार, मई 20, 2010

निरुपमा मामला डीजीपी ने खबर का किया खंडन-

                                                                                                                                                            निरुपमा मामले में मीडिया की बैचनी समझ से पड़े हैं पिछले चार दिनो से रांची से लेकर दिल्ली तक इस मामले में मीडिया की जो भूमिका रही हैं उसे यू कहे तो मीडियाकर्मियो ने सारी ऐथिक्स को ताख पर रख दिया हैं।मैं शुरु से ही इस मामले को लेकर लिख रहा हू कि थोड़ा धैर्य रखे सच पूरी तौर पर सामने आने वाली हैं।ऐसा कुछ मत करे जो कल होकर आप सबो को चेहरा छुपाना पड़े।


1-18मई को टाईम्स आँफ इंडिया ने डीजीपी के हवाले से प्रथम पेज पर खबर छापी जो निरुपमा की हत्या हुई हैं।सुबह अखवार में खबर छपते ही रांची में पदस्थापित चैनल के पत्रकारो की जमकर कलास लग गयी आनन फानन में उसी खबर के आधार पर कई चैनल ने खबर भी चला दी।शाम चार बजे डीजीपी से मीडिया वालो की बात हुई और उन्होने पाच बने मिलने का समय दिया।मीडियाकर्मियो के पहुंचते ही डीजीपी भड़क गये बोले जब मेरे पास फौरेन्सिक रिपोर्ट आयी ही नही हैं तो फिर मेरे हवाले से आप लोगो ने खबर कैसे चला दी।उसके बाद इन्होने जो बाईट दिया उसमें उसने कहा कि अभी तक फौरेन्सिंक जांच पूरी नही हुई हैं और इस मामले में पुलिस एक एक बिन्दु पर जांच कर रही हैं।हत्या या आत्महत्या को लेकर पुलिस अभी किसी ठोस नतीजे पर नही पहुंची हैं लेकिन पूरे मामले में सबसे अहम सबूत सुसाईड नोट हैं जिसकी जांच देश के दो बड़े फौरेन्सिंक लैब से कराने का फैसला लिया गया हैं।लेकिन यह खबर किसी भी चैनल और अखवार वाले न तो छापा और ना ही दिखाया।

2-कोडरमा पुलिस के हवाले से एक खबर मीडिया के पास आयी कि 17मई को निरुपमा से जुड़े साक्ष्यो को फौरेन्सिंक जांच के लिए भेजा गया हैं तो फिर रिपोर्ट आने का सवाल कहा से उठता।हलाकि इस खबर को कुछ चैनल और अखबार वालो ने झापा भी लेकिन इसके लिए स्थानीय पत्रकारो को काफी जोर लगानी पड़ी।

3-19मई को फिर हिन्दुस्तान दैनिक के मुख्यपृष्ठ पर खबर छपती हैं कि 18मई को फौरेन्सिंक रिपोर्ट डीजीपी को मिला जिसमें निरुपमा के हत्या की बाते सामने आयी हैं।अब आप ही बताये एक दिन पहले टाईम्स आंफ इंडिया खबर छापती हैं कि डीजीपी को रिपोर्ट मिली वही और उसमें हत्या की पुष्टी हुई हैं।आखिर दोनो में कौन सही लिख रहे हैं।

4-20मई को आज फिर हिन्दुस्तान के प्रथम पेज पर खबर छपी हैं।निरुपमा के मोबाईल का कांल डिटेस्लस मिला परिवार को कोडरमा से बाहर जाने पर पुलिस ने लगायी रोक। इस मसले पर जब निरुपमा के भाई से बात हुई तो उसने कहा कि अखबार से ही मालूम हुआ हैं। पुलिस की और से कोई सूचना हमलोगो को नही दी गयी हैं वैसे भी जब तक मामले का खुलासा नही होता हैं पूरा परिवार कोडरमा से बाहर जाने के बारे में सोच भी नही रहा हैं।सीबीआई जांच को लेकर दिल्ली में जो हाई तौबा मचायी जा रही हैं उसमें मेरे सहयोग की जरुरत हो तो मैं भी पूरे मामले की सीबीआई जांच कराना चाहता हू।मीडिया के बन्धुओ से मेरा नम्र निवेदन हैं कि मैं भी इसी देश का नागरिक हूं और मुझे भी अपनी बात रखने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं कृप्या एक पंक्षीय खबर प्रकाशित कर और मानसिक प्रताड़ना न दे।

5-पुलिस रिमांड में निरुपमा की माँ ने कई चौकाने वाले तथ्यो से पुलिस को अवगत कराया हैं।पुछताछ में शामिल एक आलाधिकारी ने बताया कि पूरे मामले उनकी माँ ने जो बाते कही हैं उससे पुलिस की मुश्किले और बढ गयी हैं।निरुपमा की माँ ने पुलिस को बतायी की इस बार जो दिल्ली से निरुपमा आयी थी तो काफी गुमसुम रहती थी कई बार बोलने पर कुछ बोलती थी।मै पिछले कई दिनो से बिमार था मुझे देखने के लिए ही वे आयी थी लेकिन उसकी स्थिति देख कर मैं खुद घबरा गयी थी।28तारीख की शाम किसी से अंग्रेजी में जोर जोर से बात कर रही थी और काफी गुस्से में थी मैं दौड़ कर उसके रुम में पहुंची तो देखा की वो रो रही थी और काफी गुस्से में थी, मैं पुछती रही क्या बात हैं बेटा तो कुछ बोल नही पा रही थी सिर्फ इतना ही बोली माँ मैं कही की नही रही उसके बाद मैने उसे काफी समझाया सुबह निरुपमा थोड़ी देर से उठी लेकिन चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था।मैं आठ बजे के करीब पूजा पर बैंठ गयी और पूजा खत्म होने के बाद जब प्रसाद लेकर निरुपमा के रुम में गई तो दरवाजा सटा हुआ था जैसे ही मैं धक्का दिया सामने पंखे से निरुपमा लटकी हुई थी। मैं दोड़ कर पलंग पर चढी और उसके गले में लगे फंदे को खोली निरुपमा पंलग पर गिर गयी मेरे चिल्लाने की आवाज सूनकर कई लोग अंदर आ चुके थे मैं दौड़कर सामने के बाथरुम मे जाकर पानी लायी और निरुपमा के चेहरे पर जोर जोर से मारने लगी उसी दौरान निरुपमा की कराह सूनने को मिला और उसके बाद आस परोस से आये लोगो ने मिलकर पार्वति निर्सिंग होम ले गया जहां डां0 उसे देखने के बाद मृत घोषित कर दिया।

6निरुपमा की मां से पुछताछ के बाद जो बाते सामने आयी उसके आधार पर पुलिस निरुपमा के परोसी से फिर पुछताछ की हैं जिसमें अभी तक पुलिस को कोई भी कनट्राडीकट्री बयान सामने नही आया हैं।

7अभी अभी यह जानकारी मिली हैं कि सोसाईड नोट को लेकर फौरेन्सिंक टीम प्रथम दृष्टया निरुपमा का लिखा हुआ माना हैं।और विशेष जांच के लिए कोलकोता और हैदरावाद भेजा जा रहा हैं।

रविवार, मई 16, 2010

कोडरमा पुलिस निरुपमा की मौंत को हत्या मान रही हैं तो फिर हाई तौबा क्यो--


निरुपमा की मौंत को लेकर मचे बवाल पर जिस तरीके से प्रियभांशु के मित्र व्यवहार कर रहे हैं मुझे लगता हैं कि इसका जबाव अब खुल कर देने की जरुरत हैं।कल तक मैं बहुत कुछ जानते हुए भी समाजिक दायुत्व बोध के कारण लिखने से परहेज कर रहा था। लेकिन अब सब्र का बांध टुट गया हैं।बेनामी प्रतिक्रिया देने वालो से मेरी


खास बिनती हैं, मै जो कुछ भी लिख रहा हू वह सब कुछ आपके सामने हैं, मैं कौन हू कहा रह रहा हू और मेरी क्या हेसियत हैं,वह सब को पता हैं ।लेकिन जिस तरीके से अर्मादित भाषा का उपयोग कुछ बेनामी लोग कर रहे हैं उनसे मेरी खास बिनती हैं नाम और पहचान के साथ सामने आये।

दोस्ती मुझे भी निभानी आती हैं लेकिन इस अंदाज में नही हमारे औऱ आप मैं फर्क सिर्फ इतना हैं कि आप प्रियभांशु को बचाना चाहते हैं और निरुपमा के पूरे परिवार को फांसी पर चढाना चाहते हैं।और मैं चाहता हू कि निरुपमा के मौंत के लिए जिम्मेवार व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा मिले।जब निरुपमा के मौंत को आज तक पुलिस हत्या मानकर उसके माँ को जेल में बंद कर रखा हैं तो मुझे ये समझ में नही आ रहा हैं कि दिल्ली में इसको लेकर हाई तौंबा क्यो मची हैं।क्यो कोडरमा पुलिस पर निष्पक्ष जांच नही करने का आरोप लगाया जा रहा हैं।केडिल मार्च निकाल कर क्या साबित करना चाहते हैं।निष्पक्ष जांच की मांग तो निरुपमा के परिवार वाले को करनी चाहिए जिन्हे दोहरी सजा दी जा रही हैं।एक तो मीडिया ने पूरे परिवार को आँनर किलिंग के नाम पर जिन्दा में ही मार दिया हैं और दूसरी और उस माँ को जिसने निरुपमा जैसी पवित्र बेटी को नौ माह तक अपने कोख में पाली और लोरी सूनाकर बड़ी की, और उसकी हत्या के आरोप मैं आज वह जेल में बंद हैं।किसी ने सोचा हैं उस माँ पर क्या बित रही होगी जिसने निरुपमा की शादी के जोड़े से लेकर मांगटीका तक खरीद कर रखी हुई थी।इस और आप सबो को सोचने की जरुरत नही हैं ।क्यो की आप सभी ऐसे जबावदेह भारतीय यूथ हैं जिन्हे सिर्फ अपनी आजादी से मतलब हैं दायुत्व से नही।ऐसा नही हैं कि मुझे कांलेज छोड़े ज्यादा दिन हुआ हैं जिस आजादी और स्वछदंता से जीने की आप हिमायती बन रहे हैं उसके पंक्ष धर मैं भी हूं। जिस संस्थान में पढने का दंभ आप भर रहे हैं तो आपकी जानकारी के लिए मेरी पढाई भी दिल्ली विश्वविधालय के ऐसे काँलेजो से हुई हैं जहां नामकंन होने पर लोग गर्व महसूस करते हैं लेकिन इसका मुझे कोई गरुर नही हैं।एक बेनामी साथी ने लिखा कि अगर तुम मेरे दरबाजे पर नौकरी लेने आये तो धक्के मार कर बाहर कर देगे।मेरी विनती हैं उन साथियो से जिन संस्थान में वे काम कर रहे हैं उस संस्थान के सबसे बड़े पत्रकारो जो होगे उनसे मेरे बारे में जानकारी लेगे।छोड़िए मैं भी विषय से अलग होकर थोड़ा अंहग में आकर कुछ ज्यादा ही लिख दिया अब सबाल जबाव हो जाये।

मैने पत्रकारिता के माध्यम से कई बड़ी जंग जीत चुका हू लेकिन आज मैं जितना खुश हू उतनी खुशी आज तक नही हुई थी।निरुपमा और प्रियभांशु के कई मित्रो ने मुझसे बात करने की इक्छा जाहिर की और कई से मेरी बात भी हुई जिस अंदाज से उन्होने मुझे सराहा उसकी कल्पना मैने नही की थी।सबो का सिर्फ इतना ही कहना था आपने जो सबाल खड़े किये हैं क्या वाकई उसमें सच्चाई हैं। जब उसने सारी बाते सूनी तो कहा हमलोगो से बड़ी गलती हो रही थी।प्रियभांशु और निरुपमा की कांमन लड़की मित्र तो बात करते करते रो पड़ी बोली मुझे भी लग रहा था कि प्रियभांशु उसके साथ ब्लेकमेल कर रहा हैं।सबो ने निरुपमा के न्याय के खातिर इस लड़ाई को जारी रखने की विनती की और उसी का परिणाम हैं कि मैं दुगुने उत्साह के साथ इस जंग को जारी रखने का फैसला लिया हैं।और सबसे बड़ी बात जिस लड़के लड़कियो ने मुझसे बात की मैने उनसे एक ही सबाल किया सोसोईड नोट का लिखावत किसका हैं सबो ने कहा यह लिखावत निरुपमा की हैं।

1-पहला सवाल प्रियभांशु के मित्रो से हैं आपको कुछ भी करने से पहले यह जरुर सोचना चाहिए की आप पत्रकार हैं और आप सबसे पहले जनता के लिए जबावदेह हैं।जिसने आपको घोषित तौर पर देश का चौथा स्तम्भ मान रखा हैं।जिस तरीके से आप एक्ट कर रहे हैं किसका भला कर रहे हैं।

2-इस आन्दोलन से किसको क्या मिला प्रो प्रधान की बीबी की नौकरी पक्की हो गयी हिमांशु के वेभ अखवार चल परे, सुमन को दिल्ली लौटने का प्लेट फर्म मिल गया और मुहल्ला वाले अविनाश को दरभंगा के पंडित को नीचे दिखाने का मौंका मिल गया।वही चमरिया साहब को एक बार फिर से जनवादी दिखाने का मौंका मिल गया। लेकिन जिसे कुछ नही मिल वह कौन हैं निरुपमा, जिसके सबंधो के बारे में क्या क्या नही लिखा गया और क्या क्या नही दिखाया गया।

3-काश निरुपमा भी कौनभेन्ट में पढी रहती थी तो यह दिन उसे देखने को नही मिलता कोडरमा जैसे छोटे शहर में पली बढी जहां शिक्षक के साथ साथ छात्राये क्लास रुम में आती हैं और शिक्षक के निकलने से पहले छात्राये बाहर निकल जाती हैं।साथ पढने वाले लड़को की परछाही भी कभी कभी ही देखने को मिलता हैं। ऐसे जगह से सीधे निरुपमा दिल्ली पहुंचती हैं जहां लड़के औऱ लड़कियो के आपसी सम्बन्ध कपड़ो की तरह रोज बदलते रहते हैं।वैसे सोसाईटी में गांव की भोली भाली सीधी सादी निरुपमा पहुंचती हैं जिसके जीवन में पुरुष के रुप में भाई और पापा के अवाला दूसरा कोई नही आया था।कांलेज पहुंचते ही गिद्दो की उस पर नजर पर गयी और उस गिद्द में प्रियभांशु सबो से तेज निकला जिसने बिहारी होने और भोले भाले सुरत के सहारे निरुपमा को अपने जाल में फंसाने में कामयाब हो गया।आज जो को कुछ भी निरुपमा के साथ हुआ उसके लिए सिर्फ और सिर्फ प्रियभांशु जिम्मेवार हैं जिसने धोखे में निरुपमा के साथ शाररिक सम्बन्ध बनाया और उसके बाद उसके साथ ब्लेकमेलिंग किया।प्रियभांशु को पता नही था कि इनटरकास्ट मैरेज करने में उसको अपने परिवार का कितना सहयोग मिलेगा ।दिल्ली में रहने वाले के लिए ये कोई बात नही हो सकती लेकिन बिहार में आज भी कोई लड़का इंटरकास्ट मैंरेज करता हैं तो उसकी बहन के शादी तक में परेशानी होती हैं इतना कुछ जानते हुए भी प्रियभांशु ने इतना बड़ा कदम कैसे उठाय़ा।कानून और धर्म भी कहता हैं कि धोखा में कोई सम्बन्ध बनाता हैं तो वह सम्बन्ध बलात्कार के श्रेणी में आता हैं।

4-क्या आधुनिक दिखने के लिए इस तहर के सम्बन्ध बनाना आजकल महानगर की संस्क़ृति नही बन गयी हैं। क्या पत्रकारिता का यही मतलब हैं कि इन सम्बन्धो के आधार पर एक कहानी गढी जाये औऱ उसे टीआरपी के लिए भुनाया जाये ।क्या पत्रकारिता का यह दायुत्व नही हैं कि इस तरह के सम्बन्धो के कारण रोजना दिल्ली जैसे शहरो में बिन बिहायी मां की संख्या बढती जा रही हैं।और इसके कारण पूरी परिवारिक जीवन चौपट हो रहा हैं।क्या यह स्टोरी नही हैं।जिस मां बाप ने अपनी जिंदगी की चैन और सुख हराम कर अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देने के लिए अपनी जमीन और जेबरात तक गिरबी रख देते हैं और बाद के दिनो में बेटे उन्ही माँ और बाप को गुमनामी की दुनिया में थपेरे खाने को छोड़ देता हैं क्या वह स्टोरी नही हैं।वह स्टोरी नही हैं क्यो कि वह बूढा माँ और बाप आज के इस बाजार की जरुरत नही हैं।

5-हम पत्रकार विरादरी कही कुछ भी होता हैं विवेचन करने बैंठ जाते हैं।कल ही बीबीसी के एक संवाददाता ने भेरोसिंह शेखावत के मौंत पर लिखा था कि यह शक्स जिसने अपने विरादरी के विरोध का परवाह नही करते हुए रुप कुउर के सति होने पर जमकर विरोध किया था। लेकिन आज खास पंचायत पर सवाल उठाने का साहस कोई राजनेता नही कर रहे हैं।यही सवाल मैं पत्रकारिता जगत के दो स्टार से करना चाहता हू रविस कुमार और पुण्यप्रसुन बाजपेयी जी आप सभी मसले पर बेवाकी से लिखते हैं लेकिन निरुपमा मामले में आपकी कलम क्यो खामोश हैं इस महाभारत में आपकी भूमिका भीष्म पितामह वाली क्यो बनी हुई हैं।आप जैसे लोग इस उद्दंता पर खामोश रहेगे तो फिर पत्रकारित का क्या होगा।

6-जेएनयू के बंधु से भी एक सवाल हैं चप्पल जींन्स,कुर्ता और सिगरेट के कस से क्रांति नही होती हैं।आपके प्रिय चन्द्रेशखर की हत्या किसने की सर्वविदित हैं। सीबीआई जांच कर रही हैं लेकिन दस वर्ष होने को हैं लेकिन अभी तक इस मुकदमे की प्रक्रिया भी शुरु नही हुई हैं लेकिन दुर्भाग्य हैं उनकी बरसी पिछले ही माह गुजरी हैं लेकिन कही से भी कोई आवाज नही उठा।शायद आप भूल गये होगे चन्द्रशेखर आपके विश्वविधालय के दो दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं डाँन शहाबुदीन के विरोध के कारण सिवान बाजार में दिनदहाड़े एक सभा के दौरान गोली से छलनी कर दिये गये। लेकिन आज उनका हत्यारा पकड़ा जाये उसका कोई बाजार भाव नही हैं इसलिए इसके याद करने का कोई मतलव नही हैं।

(आवाज उठनी चाहिए कारवा बनता जायेगा।)---