वो भी दिन थे जब कलम चलती थी तो नगाड़े का शोर भी दब जाता था। समय का पहिया घूमता रहा और अब वही कलम तूती की आवाज भी नही बन पा रही है । शायद मेरा ये ब्लॉग बहरी व्यवस्था के कानो की मोटी चमड़ी के पार जा सके। कुछ ऐसे ही इरादों के साथ आपके सामने आया हूँ । आज बस शुरुआत, आगे ढेर सारा जहर उगलना बाकी है ।
5 टिप्पणियां:
Poisionous material send negative message to the youngsters.Try to mend message like mirch masala kuch khatte kuch tite and like jam kuch khatte aur kuch mithe.
mr. phulendra, it is well known that truth is bitter than fiction. that's why u r mentioning 'poisonous' word for santosh's article.
sanjay
जय माता दी,
कम शब्दों में गूढ़ बात कह देने के कला ने हमें आपका कायल बना दिया है.
मलहम से अब क्या होगा घाव अब नासूरी है,
अब तो इसका चोर फार करना एक मजबूरी है:
और कोई कहे यह हिंसा है,
है तो है और होगी क्योंकि बहूत ज़रूरी है.
अपने कलम को बूजने मत दीजयेगा आग से टपके ही सोने की सुधता आती है
अपना अपना किस्सा है. अपना अपना राग. दुनिया अब ऐसे ही चलेगी. सुधर सकें तो हम ही क्यों नहीं थोड़े सुधर जाते.
विजय
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