रविवार, मार्च 29, 2009

इस बाजार में मेरी अस्मत की बोली लगी हैं

दोस्त आज मेरी अस्मत की बोली लगायी जा रही हैं मौका मिले तो आप भी इस बोली में शामिल हो जाये।मेरी कमित मात्र पचास रुपया पर सेन्टी मीटर पर एसक्वायर है,अगर रंगीन मिजाज जैसी कोई बात हो तो मात्र वासठ रुपया पर सेन्टीमीटर पर एसक्वायर में बिकने को तैयार हैं,इससे भी मन नही भरा तो आधे घंटे का सीधा प्रसारण कराले किमत मात्र पांच से दस लाख रुपये अदा करनी होगी।शायद अब आप भी कुछ कुछ समझने लगे होगे।इस बार के लोकसभा चुनाव के दौरान भारत का नम्बर वन होने का दावा करने वाले अखबार के सम्पादक जिला जिला जाकर अपने संवाददाताओं को जिस्म बेचने की तरकीब बता रहे हैं।यही स्थिति चैनेल चलाने वाले हुकंमरानों का हैं पैसा मिला तो सरकार की अच्छाई दिखाने में लगा हैं पैसा नही मिला तो खिसिंयानी बिल्ली खम्भा नोचे वाली स्थिति बना ली हैं।कहने का मतलब यह हैं कि आज जिसके पास पैसा हैं कुछ भी अपने बारे में लिखवा सकता हैं या फिर कुछ भी अपने बारे में दिखवा सकता हैं।अखवार या फिर चैंनल वाले सरकार या फिर नेताओं की बाते विज्ञापन के माध्यम से दिखाते थे और जनता को भी स्पष्ट तौर बताया जाता था कि यह विज्ञापण हैं लेकिन इस बार से ऐसा नही होगा।बङे से बङे पत्रकार जिनके लेखनी को पढने के लिए सुबह होने का लोक इन्तजार करते हैं उनकी लेखनी भी अब पैसे पर खरीदी जायेगी कहने का मतलब यह हैं कि आप चुनाव लङ रहे हैं और आपके पास पैसा हैं तो आप चुनाव में जो चाहे समाचार के रुप में छपवा सकते हैं।चुनावी समीक्षा भी सबसे अधिक बोली लगाने वाले उम्मीदवार के इक्छा के अनुसार छापा जायेगा और उसके इक्छा के अनुसार दिखाया भी जायेगा।अब आप ही बताये जिस देश में अखवार और चैनल में छपने और दिखाने वाली बातो को जनता सच का आईना मानती हो और इस प्रोफेसन से जुड़े लोगो को समाज सम्मान की दृष्टी से देखता हो ।साथ ही संविधान जिसे देश के चौथे स्तम्भ का दर्जा दिया हो उनसे ऐसे हलात में इस तरह का धोखा क्या जायज हैं ।यह सवाल मात्र नही हैं देश की जनता के भरोसा के साथ दगा देने की बात हैं। क्या बाजार वाद के इस दौड में इसी तरह अपने जिस्म दिल और आत्मा को बेचते रहेगे शायद इससे बेहतर तो चकला घर चलाने वाली कविता,सरिता जैसे लाखों लङकिया हैं जो किसी न किसी मजबूरी में अपना जिस्म बेचकर दो वक्त की रोटी खरीद रही हैं।कलम के सौदागार अपने कलम को गिरवी रखने से बेहतर हैं अपने कौशल का उपयोग करे अभिव्यक्ति के और भी साधन इस देश में उपल्बध हैं।इस शहर में एक बार वैश्या होने को मोहर लग गया तो दामन में लगे दाग को मिटाने में कई दशक लग जायेगा

गुरुवार, मार्च 26, 2009

जातिगत राजनीत को जिंदा रखना चाहते हैं राजनीतिज्ञ

लालू प्रसाद की सत्ता को उखाङ फैकने के लिए नीतीश कुमार ने बिहार में बिकास को चुनावी मुद्दा बनाया था और पहली बार बिहार में जातिये गोलबंदी के बजाय आम मतदाताओं ने विकास के आधार पर वोट दिया।सत्ता सम्भालते ही नीतीश कुमार विकास और सुशासन को अपना मुख्य ऐजंडा बनाया और इस पर अमल हो इसके लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय भी लिये।देखते देखते बिहार में सङको का हाल बदलने लगा वर्षो से मृत प्राय सरकारी अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढने लगी जनता निजी अस्पतालो से मुख मोङने लगे।वर्षो से जिस सङकों पर गाङी चलनी बंद थी उन सङकों पर कार दौङने लगी।बङे बङे फ्लाई ओभर बनने लगे शहरों की सुन्दरता बढने लगी,कानून व्यवस्था में काफी सुधार हुआ राजधानी पटना में जहां शाम के सात बजते बजते दुकाने बंद होने लगती थी अब स्थिति यह हैं कि राजधानीवासी रात के 11 बजे तक शहर में बैखोफ घुमते हैं।इस बदलाव का असर व्यवसाय पर भी देखने को मिला आधुनिक संस्कृति की दुकाने और रेस्टोरेन्ट देखते देखते पूरे बिहार में फैल गया।तीन वर्ष वाद सरकार ही नही वर्षो बाद बिहार आने वाले बिहारी भी बिहार में हो रहे बदलाव की तारीफ करने से नही थकते।लेकिन चुनाव का बिगुल फूकते ही सारा समीकरण बदलने लगा हैं।नीतीश कुमार जो कल तक विकास के नाम पर वोट मांगने की बात कर रहे थे आज सोशल इंजीनियरिंग के सहारे चुनाव जीतने के लिए वो सारे तिकरम कर रहे हैं जिसके सहारे लालू प्रसाद 15 वर्षों तक बिहार में राज्य किया।प्रतिभा की दुहायी लगाने वाले नीतीश कुमार जात और जमात के नाम पर अपराधियों से लेकर दलबदलुओं तक को अपनी पार्टी से टिकट देने से परहेज नही किये और स्थिति यह हैं कि पूरे बिहार में एक बार फिर जातिये गोलबंदी तेज हो गयी।प्रारम्भिक तोङ पर इस मामले को लेकर जनता का नब्ज टटोलने का प्रयास किया तो काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिला हैं।जिस नीतीश कुमार ने सोशल इंजीनयरिंग के नाम पर बिहार के सर्वणों को राजनीत के मुख्य धारा से अलग करने का प्रयास किया हैं वो तवका आज भी विकास के नाम पर नीतीश के खिलाफ आक्रमंक वोटिंग से परहेज करते दिख रहे हैं।काराकाट लोकसभा क्षेत्र जहां राजपूतो का अच्छा खासा वोट हैं और कई बार यहां से राजपूत सांसद रहे हैं।लेकिन नीतीश कुमार ने सोशल इंनजीनियरिंग के तहत कोयरी जाति के महाबली सिंह को टिकट दिया हैं जो एक सप्ताह पूर्व तक राजद (लालू) के पार्टी का विधायक था।इस क्षेत्र के दर्जनों राजपूत मतदाताओ से बात की तो सभी ने विकास की बात दोहराते हुए नीतीश कुमार को वोट देने की बात कर रहे हैं लेकिन यह भी कह रहे हैं कि नीतीश कुमार भी जातिये गोलबंदी को तहजीह दिये तो परिणाम उलट भी हो सकता हैं फिर भी राजपूत मतदाता नीतीश के प्रत्याशी के खिलाफ आक्रमंक वोटिंग नही करेगा।यही स्थिति दरंभंगा,मधुवनी,सहरसा के ब्रह्णण वोटरो का हैं। गौर करने वाली बात यह हैं कि नीतीश कुमार बिहार की राजनीत में राजपूत और ब्रह्णाण को पूरी तौर पर दर किनार कर दिया हैं। लालू प्रसाद समाजिक न्याय के आंधी में भी इन जातियों के दरकिनार करने का साहस नही उठा पाया थे। फिर भी इस जाति के वोटर बिहार के विकास के नाम पर नीतीश कुमार के खिलाफ जातिये गोलबंदी से आज तक परहेज कर रहे हैं।लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह से राजनेता जातिये भवनाओ को भङका कर लोगो को गोलबंद करने में कामयाब हो जाती हैं तो इस स्थिति में नीतीश कुमार की पार्टी को बङा नुकसान झेलना पङ सकता हैं।ऐसे हालात में यह कहना की विकास के नाम पर वोट नही होता सच के कोसो दूर होगा।यू कहे तो एक बार फिर नीतीश कुमार ने ही जातिय समीकरण,के नाम पर राजनीत की एक नयी शैली की शुरुआत की हैं जो चुनाव से पूर्व ही लोगो को आहत कर दिया हैं।ऐसे स्थिति में बिहार में वोटो का प्रतिशत काफी कम हो जाये तो अतिशियोक्ति नही होगी।जातिवादी राजनीत की नयी धारये जो जन्म देने के लिए नीतीश की जय हो।

शनिवार, मार्च 21, 2009

संसदीय लोकतंत्र वैश्या के समान हैं-महात्मा गांधी

आज से सौ वर्ष पहले गांधी जी ने संसदीय लोकतंत्र के बारे में यह तल्ख टिप्पनी अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में की थी उस वक्त इसको लेकर बङा बवेला मचा था।खास कर ब्रिटिश महिलाओं ने इसको लेकर काफी हाय तौबा मचायी थी।गांधी जी हलाकि इसमें आशिंक संशोधन की बात करते हुए संसदीय लोकतंत्र को बांझ महिला की संज्ञा दी लेकिन यह संशोधन किसी कारण बस दर्ज नही हो पाया था।आज से सौ वर्ष पहले 1909 में ये बाते कही थी।भारतीय संसदीय लोकतंत्र का 15 महापर्व होने जा रहा हैं ऐसा लगता हैं कि गांधी जी की कही बाते आज और भी प्रासांगिक हो गया हैं,। टिकट के लिए जिस तरह से पार्टी प्राईवेंट लिमिटेङ कम्पीन की तरह व्यवहार कर रही हैं और खुलेआम टिकट बेची जा रही हैं।ऐसे में इस व्यव्सथा को वैश्यालय नही तो क्या कहा जाय।ऐसे घरों में दीप जलाना चाहते हैं जिसके घरों में बर्षों से अन्धेरा हैं यह नारा हैं दलित के हिमायती माने जाने वाले राम विलास पासवान का जो अपने जन सभा को इसी नारे के साथ शुरु करते हैं।लेकिन जब टिकट देने की बारी आयी तो दीप जलाना तो दूर माफिया और अपराधियों के हाथ पार्टी के विचार को बेच डाला।यही स्थिति लालू प्रसाद,कांग्रेस,भाजपा और अन्य पार्टियों का भी हैं।लेकिन सबसे ज्यदा चोट नीतीश कुमार ने पहुचायी हैं विकास और सुशासन के नारे पर चुनाव जीत कर आये नीतीश कुमार तो तीन वर्ष में ही बदल गये। टिकट देने के नाम पर इन्होने जो मापदंङ अपनाया वो वाकई प्रदेश के युवा पीढी को सकते डाल दिया हैं।नीतीश कुमार की जीत को राजनैतिक विशलेषक देश में एक अलग तरह की राजनीत की शुरुआत मानने लगे थे। लेकिन इनकी कलई तो महज तीन वर्ष में ही खुल गयी।आप जानना चाहेगे टिकट लेने के लिए उम्मीदवारों ने अपनी पत्नी,रिश्तेदार और बेटी तक को नेताओं के बेड रुम में भेजने से परहेज नही कर रहे हैं ।ऐसे हालात में संसद में जाने वाले सांसद से देश की जनता क्या उम्मीद कर सकती हैं।हालात इससे भी बदतर हैं जो मैं लिख नही सकता।अब वक्त आ गया हैं ऐसे व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने का आप भी इस अभियान में शामिल हो ।पूरे चुनाव के दौरान मेरा प्रयास रहेगा की रोजाना इन वैश्यओं के बारे में आप को कुछ खास जानकरी देते रहे।उम्मीद हैं आप भी अपनी राय भेज कर इस अभियाण को सफल बनाने में सहयोग करेगे।