गुरुवार, सितंबर 30, 2010

आज तो मीडिया की अग्निपरीक्षा है

कल जब मोरनिंग डियूटी से घर में जैसे ही प्रवेश किया मेरी बेटी श्रेया बोली पापा आज आफिस से बड़ी जल्दी आ गये हंगामा होने वाला है तो फिर आप आ कैसे गये।मैंने पुछा किसने कहा हंगामा होने वाला है मेंम बोली है कि हंगामा होने वाला है इसलिए कल स्कूल बंद रहेगा।लगभग पाच दस संकेंड तक बाते समझ में नही आयी हंगामा किस बात का अचानक याद आया अरे, कल अयोध्या पर फैसला आने वाला है।मैं जोर से हस पड़ा ऐसा कुछ नही है ,लेकिन हंगामा होने वाला है तो पापा की छुट्टी केनलिस हो जायेगी यह बात मेरी पाच वर्ष की बेटी सोच रही है यह देख कर मैं हैरान जरुर हो गया क्या जिदंगी हमलोगो कि है ।

खेर हमलोगो के चैयरमेन की और से संख्त हिदायत है कि अयोध्या मसले पर खबर दिखानी ही नही इसको लेकर कई बैंठके भी हो चुकी है जिसके कारण इस और ध्यान गया भी नही। वही दूसरी और बिहार विधानसभा चुनाव के कारण परेशनी इतनी बढ गयी है कि चैनल की कौन कहे अखबार भी ठिक से नही देख पा रहे है।

आज सुबह 9बजे के करीब हमारे एक पत्रकार मित्र का दरभंगा से फोन आया क्या सोये हुए है मैने कहा है आज नाईट डियूटी है आराम से आफिस निकलना है इसलिए सो रहे है पटना का क्या हाल है मैने कहा सब कुछ ठिक है। अरे भाई यहां तो आज दुकान खुली ही नही है सारा स्कूल कांलेज बंद है सड़क पर दूर दूर तक आदमी दिखायी नही दे रहा है पूरी और रैभ फ्लेंग मार्च कर रहा है मैंने कहा सही बात है क्या पटना में ऐसा नही है मैने कहा ऐसा कुछ नही है मोबाईल रखते ही बिहारशरीफ से फोन आया ऐ सर यहा बहुत तनाव है कभी भी कुछ भी हो सकता है कई राउंड पत्थरबाजी होते होते बचा है खबर लिखाना है क्या, नही नही कोई खबर नही चलाना है। भाग कर टीवी के पास गया और न्यूज चैनलो का बटन दबाने लगा आज तक,इंडिया टीवी और बिहार के कुछ रिजनल चैनल को छोड़कर अधिकांश चैनल सकारात्मक खबरे चला रहा था बेहद सकून महसूस हुआ।आज बीबीसी से भी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस तरह की खबड़े नही चलाये,

मीडिया और खासकर भिजुल मीडिया के लिए आज का दिन बेहद कठिन और चाईलेनजिंग हैं क्यो कि आज सब कुछ उसके स्क्रीन पर निर्भर करता है।उम्मीद है मीडिया इस जिम्मेवारी पर खड़े उतरेगी और अफवाह फैलाने वाले को तरजीह नही देगी।

और अंत में आज बिहार में जितिया पर्व है माँ अपने बेटे के सलामति के लिए यह पर्व करती है जिसमें 36घंटे तक महिलाये अन्न और पानी लिए बिना रहती है। मैं इस तरह के पर्व का घोर विरोधी हूं लेकिन आज पत्नी और माँ दोनो को पूजा पर जाने से पहले कहा कि आज अपने बेटे की सलामति के साथ साथ सूबे के सभी हिन्दू मुस्लिम माँ के बेटे की सलामति की दुआ करना।

उन्मादी तत्व सफल न हो इसी कामना के साथ जय हिन्द---






रविवार, सितंबर 26, 2010

काँमनवेल्थ गेम को लेकर मीडिया की नकारात्मक भूमिका-

मेरी जानकारी में काँमनवेल्थ गेम में वही देश भाग लेते है जो कभी ब्रिटेन के राजसत्ता के अधीन रहा है।लेकिन अभी समय इस पर बहस करने कि नही हैं,बहस तो मीडिया की भूमिका पर होनी चाहिए जिन्होने इतने बड़े आयोजन को आलोचनाओ के भंवर में इस कदर उलझा दिया है कि आज देश के साथ साथ भारतीय नागरिक भी शर्मशार है।माना की आयोजन में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है,लेकिन मीडिया ने जिस तरीके से उस धांधली को उजागर करने के नाम पर इनभेसटिगेटिंग स्टोरी करना शुरु किया उसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है। लगता है भारतीय मीडिया अभी भी गुलामी की मानसिकता से उपर नही उठ पायी है।जो चरित्र दिख रहा है उससे बेहतर चरित्र तो वेश्या की होती है मुझे कहने में थोड़ी सी भी शर्म महसूस नही हो रहा है कि हमारी स्थिति एक वेश्या से भी गयी गुजरी है उसका भी इमान होता है औऱ कई बार सामने भी आया है।

लेकिन हम पत्रकारो ने उसको भी बेच डाला है पता नही कल प्रबंधको के जी हजूरी में अपने घर के बहु बेटियो तक को दाव पर न लगा दे।क्या घोटाले के अलावा कुछ और खबर काँमनवेल्थ गेम से जुड़ा नही है।कल किसी अखबार में पाकिस्तान के हांकी टीम के पूर्व कप्तान का बयान पढने को मिला कही कोने में उनको जगह मिली थी उसने बड़ी बेवाकी के कहा कि आस्ट्रेलिया जो आज भाषण दे रहा है अपना कांमनवेल्थ गेम भूल गया क्या भारतीय और पाकिस्तान की टीम को कांलेज के हांस्टल में ठहराया गया था जहां गंदगी की कौन कहे क्या क्या नही बिखरे हुए थे पूरे कांलेज कैम्पस में एक एक रुम में चार चार खेलाड़ियो की रहने की व्यवस्था की गयी थी,इसलिए आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैन्ड को तो इस तरह की बात नही करनी चाहिए।

पाकिस्तानी खेलाड़ी ये कोई नयी जानकारी नही दे रहे इसी तरह का प्रबंध होता रहा है लेकिन उस देश की मीडिया कभी इस तरह की फौड़ी हरकत नही करता है इनता बड़ा आयोजन है कमी रहेगी लेकिन हमलोग हौसला अफजाई करने के बजाय नीचा दिखाने में लगे हैं, यब सब इसलिए हो रहा है कि देश का नेतृत्व आज ऐसे कापुरुष के पास है जिसका अपना स्वाभिमान कभी कभी जागता है और सोनिया गांधी देश की बहु बनने को लेकर जो दिखावा कर ले लेकिन देश के प्रति वह जजवा कैसे पैंदा हो सकता है जो इंदिरा औऱ राजीव,और बाजपेयी के साथ था।मीडिया के नकारात्मक और गैर जिम्मेदराना भूमिका के काँमनवेल्थ जैसे गेम के आयोजन का जो लाभ भारत को मिलता उससे वंचित करने का काम किया है देश इन मीडियाकर्मियो को कभी माफ नही करेगा।मैने ने चैनल देखना ही बंद कर दिया है और अगर यही हालत रही तो लोग एक बार फिर से दूरदर्शन समाचार देखने लगेगे।

गुरुवार, सितंबर 16, 2010

जनवादियो को चश्मे बदलने की दरकार है

बुधवार को कोई खास ऐसाईनमेंट नही था मुख्यमत्री नीतीश कुमार दिल्ली चले गये गये थे और हमारी खुद के बीट में भी कोई खास हलचल नही था ,माओवादियो के बंद का मियाद खत्म हो चुका था और इसको लेकर कई स्टोरी चल भी चुकी थी।दफ्तर पहुंचा तो ऐसाईनमेंट टेबल पर गया तो दो ऐसाईनमेंट मेरे नाम पर था।दो बजे विधानपरिषद के सभा कंक्ष में कोई सेमीनार को कवर करना था और दूसरा ऐसाईनमेंट अभियंता दिवस से जुड़ा हुआ था।ब्यूरो चीफ के साथ मीडिंग के बाद आराम फरमा रहे थे तभी खबर आयी की डेंगू और स्वाईन फ्लू को लेकर कैबिनेट सचिव के साथ बैठक हो रही है अचानक खबर मिली थी भागे भागे पटना डीएम कार्यलय पहुंचे।बैठक खत्म हुई और उसके बाद पत्रकारो से बात करने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ।अफजल अमानुल्लाह काफी मीडिया फ्रेडली है तो बाते बढती गयी और जब घड़ी पर नजर पड़ी तो दो बजने को था।भागे भागे विधानपरिषद के सभा कंक्ष पहुंचा देखते है आयोजक महोदय अभी बैनर ही लगा रहे हैं ।

बड़ी गुस्सा आया समय से इन लोगो का कोई वास्ता ही नही है,यह विचार चल ही रहा था कि तब तक बैनर लग गया। बैनर पर लिखा था चाहिए एक और वैचारिक क्रांति।बैनर पढने के बाद विषय तो जनवादी है थोड़ा गुस्सा शांत हुआ आयोजक से बात करनी शुरु की तो पता चला कि सेमीनार के साथ साथ बाबा नागर्जुन के कविताओ पर आधारित एक फिल्म का भी लोकार्पण किया जायेगा।लगा मुझे चलो काम कि चीज है बात बात में ही पता चला कि आउटलुक की फीचर संपादक गीता श्री, वरीय पत्रकार वर्तिका नंदा और मुहल्ला लाईभ के अविनाश कुमार मुख्य वक्ता है।मुझे लगा चलो इसी बहाने इन जनवादियो से मुलाकात तो हो जायेगी।

इन लोगो के आने की खबर के साथ ही पूरानी यादे ताजा होने लगी लगभग बीस वर्ष बाद गीता श्री से और लगभग 10वर्ष बाद अविनाश कुमार से आमने सामने होने जा रहा था,वक्त 1990का है जब में एलएस कांलेज में 12वी का छात्र था उस समय गीता श्री हिन्दी से एमए कर रही थी और छात्र नेता थी नवभारत टाईम्स के पत्रकार राघवेन्द्र नरायण मिश्रा के यहां पहली बार मिली थी वहा मेरा नियमित आना जाना था और ये कभी कभी न्यूज के सिलसिले में आया करती थी धीरे धीरे वैचारिक स्तर पर बातचीत होने लगी और उसके बाद तो रोज का मिलना शुरु हो गया ।लगभग एक वर्ष तक यह सिलसिला चला और उसके बाद वो दिल्ली चली गयी ।बाद के दिनो में गीता श्री के बारे में कोई खास जानकारी नही मिल पा रही थी मैं भी दिल्ली पहुंचा औऱ पूरे आठ वर्षो के दौरान मेरा भी कैरियर का दोड़ था औऱ ये भी दिल्ली में सघर्ष कर रही थी कही कही से इनके बारे में जानकारी मिलती रहती थी।

लेकिन मुलाकात का मौका नही मिल पा रहा था।वापस मैं जब वर्ष 2000में बिहार लौटा तो प्रभात खबर से पत्रकारिता की शुरुआत की उन दिनो अविनाश जी से मुलाकात हुआ करता था उस वक्त मैं रोसड़ा से लिखा करता था।बाढ की रिपोर्टिग को लेकर इनसे परिचय हुआ और जब भी मैं पटना आता था तो इनसे लम्बी बाते होती रहती थी लेकिन वक्त के साथ ये पत्रकारिता के क्षेत्र में आगे बढते गये और मेरी दूरिया बढती गयी। लेकिन निरुपमा मामले में अविनाश कुमार के ब्लांग पर मेरे ब्लाग की चर्चा की गयी थी फिर भी मुझे लग रहा था कि हो सकता है संतोष से याद नही कर पा रहे होगे ।

मुझे खुशी थी आज एक जनवादी और एक मोडरेट जनवादी के बीच काफी लम्बे अर्से बाद मुलाकात होगी देखते है पहचान पाते है कि नही।दोनो आये और सामने से गुजरते हुए सामने के डेस पर बैंठ गये।फोटो सेशन चल रहा था मुझे लगा कि परिचय का इससे बेहतर मौंका क्या हो सकता है मैं डेस कि और बढा और पहले अविनाश जी से मुखातिव हुआ बोले संतोष जी अपका ब्लांग पढते रहते है मैने कहा आपको याद है मैं रोसड़ा वाला संतोष हू पूरी तरह याद है कार्यक्रम के बाद मिलते है।

आगे बढे तो सामने बैंठी हुई थी गीता श्री जिसे में खुद भी पहचान नही पाया था मोटी तो उस वक्त भी थी लेकिन इतनी नही लेकिन रंग तो गजब बदला है स्यामलि रंग की गीता श्री तो साफ गोरी दिख रही थी चलो मैने झुक कर प्रणाम किया और पुछा पहचान रही है बोली उठी काहे शर्मिदा कर रहे हो। लेकिन उनके चेहरे से लग रहा था कि वे याद करने की कोशिस कर रही है और चंद सैकंड बाद ही चहक उठी सतोषवा रे तुमको कैसे भूल जायेगे।जिस मगही भाषा में आज तक उनसे बाद नही हुई थी वे उसी भाषा में बीते दिनो की बाते जोर जोर से कहने लगी, यह खासियत है जनवादियो का जो बीते कल को बेहतर तरीके से याद रखते है।

फिर सेमीनार का दौड़ शुरु हुआ और शुरु हो गया भूख गरीबी,आकाल,बुर्जआ सामंती और जनक्रांति की बाते। काफी लंबे अर्से बाद उन लोगो की बात सूनने का मौंका मिला था लगा आज भी इतने उतार चढाव देखने के बावजूद संर्घष का जजवा उभान बरकरार है ।लेकिन मुझे लगा कि इन लोगो के नजरिया में आज भी बदलाव नही आया है लगता है समय से इन लोगो ने कोई सीख नही ली। वही पूरानी मानसिकता जात के आधार पर घटनाओ को देखने का नजरिया और सामंत शब्द के सहारे विचारो को अमली जामा पहनना ।

मै भी जनवादी है लेकिन किसी भी मसले पर ओपेनियन बनाने से पहले सभी पहलुओ पर सोचते हैं,इस सोच में आये परिवर्तन के लिए भी मैं इन जनवादियो को ही जिम्मेवार मानता हूं। जिन्होने अपनी साख खुद गिरायी और आज जनवाद को जातिवाद के सहारे जिंदा रखने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।निरुपमा मामले को ही ले लड़की ब्राह्रण और लड़का कायस्थ फिर क्या था जनवादियो को एक मुद्दा मिल गया लेकिन दलित औऱ महादलित और पिछड़ा और अतिपिछड़ा के बीच जो समाजिक दव्द चल रहा है उनके लिए इनके पास वक्त नही है।क्यो कि इनकी लड़ाई जातिये गोलबंदी के आधार पर नही लड़ी जा सकती है।आज समाज की कई परिभाषाये बदल गयी है जिसे बदलने में कई दशक लगते वे आये दिन बदल रही है आज समाज में सामंत की परिभाषा बदल गयी है लेकिन उनो नवसामंत के खिलाफ इनके कलम में सियाही नही है उनके जुल्म पर आवाज उठाने का साहस नही है क्यो कि इससे इनके जनवादी जातिये सोच को बल नही मिलता है।बदलिये श्रीमान नही तो वक्त के हासियो में कही गुम हो जायेगे।

रविवार, सितंबर 12, 2010

आँप्रेशन लखीसराय का सच और मीडिया की भूमिका—


 मित्र आपसे काफी दिनो तक दूर रहा बीच बीच में कई बार इक्छा हुई आपसे अपनी बात कहने की लेकिन स्थिति ऐसी थी कि चंद मिनट भी शांति से बैंठ नही पा रहा था।मोबाईल की घंटी और बाँस के फरमान ने जीना दुभर कर दिया था।तीनो बंधक के रिहाई से जिनती खुशी बंधक बने पुलिसकर्मी के परिवार को मिली होगी ।उससे कम खुशी हमारे परिवार वाले नही थी, सभी खुश थे,घर में अब तो शांति मिलेगी।

रविवार को मेरा आंफ रहता है लेकिन पिछले दो रविवार ने ऐसा झंटका दिया कि हमारी कई मान्यताये तास की पत्तो की तरह बिखर गया।वाकिया बिहार में एक साथ दो बड़ी माओवादी घटनाओ से जुड़ा हुआ है।29 अगस्त दिन रविवार आज मेरी प्यारी सी नन्ही सी बेटी टिया का जन्म दिन था नाना नानी मामा मामी दादा दादी सभी को आना था सुबह से ही तैयारी चल रही थी लेकिन पता नही क्यो जन्म दिन दिन में ही मनाने की मेरी इक्छा प्रबंल हो रही थी ।लेकिन इस बात को लेकर घर में आम राय नही हो पा रही थी लेकिन एक सहमति बनी कि खाने का कार्यक्रम दिन में हो।मेरे मन पसंद चिकेन बनाने की तैयारी शुरु हो गयी सभी मेहमान भी आ गये एक बजते बजते भोजन का कार्यक्रम पूरा हो गया और फिर बातचीत का सिलसिला शऱु हो गया मैं बीच में ही उठकर सोने चला गया।लगभग आधे घंटे सोया होगा कि आफिसियल मोबाईल की घंटी बजी नींद में ही मोबाईल रिसिव किया एक तरफ हमारे इनपुट हेड का आवाज था संतोष कहा हो, भैया सो रहे है उठो न बिहार में बड़ी घटनाये हो गयी है अचानक मेरी नींद उड़ गयी। मैने पुछा क्या हुआ है भैया ,शिवहर से बीडीयो का अपहरण हो गया है औऱ लखीसराय में माओवादी और पुलिस के बीच मुठभेड़ हो रहा है कई पुलिसकर्मी वाले मारे गये।थोड़ा डीजीपी से बात करते, मैंने कहा भैया चंद मिनट में रिपोर्ट करते है।मैने तुरंत डीजीपी नीलमणि जी को मोबाईल लगा दिया जैसे ही उन्होने मोबाईल उठाया मुझपे बरस गये क्या चला रहे है मैंने बड़े शांत भाव से कहा मुझे तो कुछ नही पता है वही जानने के लिए फोन किया यह सूनते ही उनका गुस्सा थोड़ा शांत हो गया बोले बीडीओ को माओवादियो ने अपहरण कर लिया और लखीसराय में मुठभेड़ की खबर सही है लेकिन पुलिसकर्मी के मारे जाने की अधिकारिक खबर नही है लेकिन संकेत शुभ नही है।तुरंत खबर फैलेस हुआ औऱ दूसरी औऱ फोनो के लिए पेच कर दिया। खबर प्रसारित होते ही पूरे बिहार में हड़कम्प मच गया डीजीपी ने मामले की पुष्टि कर दी ।

इसके बाद बेटी का जन्मदिन कैसे मना, घर आये मेहमानो के साथ क्या क्या हुआ पुछने का साहस आज तक नही जुटा पाया हूं। बेटी मेरी खुश है चलो पापा जिसके लिए परेशान थे वह घर लौट आया है मम्मी ने उसे यही बताया था कि कोई गुम हो गया है पापा उसे खोज रहे हैं।

खबर मिलते ही अपने पूराने स्रोतो से संपर्क साधना शुरु कर दिया, मेरे सामने एक साथ दोहरी चुनौती थी एक और अपने चैनल के छवि को बचाये रखने और दूसरी और सारे राष्ट्रीय औऱ क्षेत्रीय चैंनल के रिपोटरो से दो दो हाथ करनी थी ।

पुराने संबंध काफी काम आया।वैसे पुलिस पदाधिकारी जिनसे मेरे बेहतर सम्बन्ध रहा था सभी को इस खबर के पीछे लगा दिया वही माओवादी विचार धारा को मानने वाले मित्रो का भी उपयोग किया स्थिति यह हुई कि घटना के दूसरे दिन से ही पुलिस औऱ माओवादियो से जुड़ी पल पल की खबर मुझे मिलने लगी माओवादी प्रवक्ता अविनाश औऱ सेन्ट्रल कमिटी के प्रवक्ता प्रहार से मेरी लगातार बात होने लगी हलाकि अविनाश से सभी मीडियाकर्मियो की बाद में बात होने लगी थी ,लेकिन मैं प्रारम्भ से ही अविनाश के खबर को क्रोस भेरीफिकेशन किये बगैर नही चलाते थे।क्यो कि अविनाश बातचीत में बेहद सतही लग रहा था और उसकी मंसा मीडिया का उपयोग करना दिख रहा था।30तारीख की शाम खबर फैली की बीडीओ को नक्सली रिहा कर दिया है ये खबरे मेरे पास भी आयी लेकिन चलाने से पहले अपने एक करीबी वरिय पुलिस अधिकारी को फोन किया उसने रिहाई की खबर के सच से अवगत करा दिया।मैने खबर ब्रेक नही किया लेकिन थोड़ी देर बाद सभी चैनलो पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगा बीडीओ रिहा।चारो औऱ से फोन आने लगा मै खबर का खंडन करता रहा बेमन से ही सही लेकिन मेरे चैनल ने इस खबर को प्रसारित नही किया।इस बीच कई मीडिया वाले बीडीओ के मुजफ्फपुर स्थित आवास पर पहुंचकर परिवार वाले को आपस में मिठाई तक खिलवा दिया औऱ चैनल पर ब्रेकिंग खबर चलने लगा थोड़ी ही देर में बीडीओ पहुंच रहे है अपने घर जैसे जैसे रात बितता गया परिवार वालो की बैचेनी बढती गयी और अंत में मीडिया वाले को उसके घर से खिसकना पड़ा।खबर को लेकर पूरी रात पुलिस के आलाधिकारी से बात होती रही लेकिन दो बजे रात के करीब पुलिस अधिकारी ने कहा कि माओवादियो ने गलत सूचना आपको को दिया है उसका मकसद पुलिस को डायभर्ट करना है।31अगस्त को 10.45मिनट पर उसी पुलिस के आलाधिकारी का फोन आया बीडीयो घर पहुंचा और सबसे पहले सही खबर मैने ब्रेक कर दी।

इस प्रकरण में माओवादियो के गतिविधियो पर मेरी पेनी नजर थी और कई बाते इस दौरान उभर कर सामने आयी की माओवादी की कार्यशैली क्या है क्या चाहते है माओवादी।हलाकि बरामदगी की खबर के बाद थोड़ी राहत हुई।लेकिन कुछ ही घंटो के बाद माओवादियो के प्रवक्ता ने पहली बार चार पुलिसकर्मियो को बंधक बनाये जाने की बात स्वीकारते हुए।आजाद की हत्या और ग्रींनहंट के विरोध में लखीसराय की घटना को अंजाम देने की बात स्वीकार किया।खबर चलने लगी इस दौरान केन्द्रीय कमिटी के प्रवक्ता से भी सम्पर्क किया उसने सीधे तोड़ पर कहा कि हमलोग अपहरण कर सौदे बाजी के पंक्षधर नही है लेकिन लखीसराय वाले दस्ता से सम्पर्क नही हो पा रहा है इसलिए कुछ भी कहना सम्भव नही है।कल होकर प्रवक्ता ने आठ माओवादियो को छोड़ने की शर्त रखी औऱ नही छोड़ने पर हत्या करने की धमकी दी।इस बयान के बाद भी सरकार की और से कोई प्रयास होता नही दिख रहा है पुलिस महकमा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे गिरगिरा रहे थे जैसे माओवादियो के रहमो करम पर राज्य का शासन चल रहा है।माओवादियो द्वारा रखी गयी शर्त का समय पूरा होते ही प्रवक्ता अविनाश का फोन आया दरोगा अभय यादव को जन अदालत के फैसले के आलोक में मार दिया गया।मैं खबर की पुष्टि के लिए केन्द्रीय कमिटी से बात किया तो उन्होने कहा कि खबर पक्की नही है।जब तक बातचीत हो रही थी सभी चैनलो में ब्रेकिंग खबर चलने लगी दरोगा अभय यादव मारा गया देखते देखते कई चैनलो में उसके फोटे पर फूल माले का ग्राफिक्स भी लगा दिया और कुछ तो उसके फोटे के सामने मोमबति तक जलवा दिया।डेक्स से लेकर प्रभारी तक का बेतहासा फोन आ रहा था और मैं खबर का खडंन करता रहा और अंत में तय हुआ कि नाम नही चलाया जाये और प्रवक्ता के हवाले से खबर चला दिया जाये।क्यो कि जो माओवादियो का प्रवक्ता बनकर फोन कर रहा था उसके बारे में मेरे पास सारी जानकारी थी किस लोकेशन से फोन कर रहा है और पार्टी में उसकी हैसियत क्या है सब कुछ मुझे पता चल गया था।इस खबर के बाद अजय यादव के परिवार का क्या हाल हुआ होगा आप खुद समझ सकते है।

देर रात में केन्द्रीय कमिटी के प्रवक्ता का फोन आया कि संगठन में बंधक बनाने को लेकर मतभेद हो गया है और उसमें से कोई एक की हत्या कर दी गयी है सुबह उसी इलाके में लाश मिल जायेगी जहां मुठभेड़ हुआ था।मैने अपने लखीसराय रिपोर्ट को सतर्क कर दिया औऱ सूबह होते होते लाश मिलने की खबर भी आ गयी हमलोगो ने बंधकपुलिसकर्मी की हत्या के साथ साथ टे0टे0 के मारे जाने की भी पुष्टि हमलोगो ने ही किया।उसके बाद जो कुछ भी हुआ सब टीवी पर देखे ही होगे एक नक्सली भाई दरोगा के घर पहुंचता है औऱ खबर ब्रेक करत है कि तीनो बंधक रिहा लेकिन यह सब मीडिया के गैरजिम्मेदराना हरकत के अलावे कुछ नही था।इस पूरे प्रकरण में जा बाते मुझे समझ में आयी वह यह है कि—

1-माओवादी अपराधियो का संगठित गिरोह है इसका मकसद भय पैदा करके पैसा उगाही करना है इनका कोई वैचारिक लड़ाई नही है एक सूत्री अभियान है बंदूक के बल पर सत्ता काबिज करना,हमारे राजनेता जो कहते है कि ये लोग भूले भटके लोग है ऐसा नही है इसमें शामिल सभी लोगो का मिशन स्पष्ट है।

2-यह गिरोह भी राजसत्ता द्वारा पोषित है औऱ उसको राजनीतिज्ञो से समर्थन मिलता है और उसके बदले में चुनाव में मदद करता है।मेरी माओवादियो के टांप लीडर से इस दौरन बात हुई उनसे मैंने पुछा बिहार के मुख्यमंत्री ग्रीनहंट का विरोध करते है,माओवादियो के समर्थन में खुल कर बोलते है विकास की बात करते है तो फिर यह हमला क्यो किया गया।उन्होने बड़ी बेवाकी से कहा आपको याद होगा जहानावाद जेल ब्रेक कांड उसके पीछे भी मंशा था राजसत्ता और जनता में आतंक पैदा करना और बाद में हमलोगो को कई तरह के लाभ मिले।इसी को ध्यान में रख कर यह कारवाई की गयी है।

3-एक जानकारी जो इस दौरान मुझे जो मिली वह यह था कि बिहार से विकास के नाम पर माओवादियो को दस हजार करोड़ से अधिक की राशी लेवी के रुप में पिछले पाच वर्षो के दौरान मिला है।यह राशी बच्चो के दोपहर के भोजन मीड डे मिल योजना ,इंदिरा आवास योजना ,नरेगा,और सड़क बनाने के नाम पर पदाधिकारी और माओवादियो ने आपस में बाट लिया।आप सब टीवी चैनल पर देखे होगे टे0टे0 को जहां मार कर फैका गया था उस सड़क के निर्माण के नाम पर तीन बार राशी की निकासी हो चुकी है और सड़क वैसे की वैसे ही है।

4-कहते है गरिबो का प्रतिनिधुत्व करता है माओवादी, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया चार बंधको में सबसे गरीब और माओवादियो के हमदर्द कहे जाने वाले टे0टे0 तो आदिवासी था फिर क्यो उसकी हत्या कर दी गयी।माओवादियो का भी चेहरा वही है जो राजनीतिज्ञो का है जिस तरीके से गरीबी मिटाने के नाम पर गरीब और गरीब हो रहे है और गरीबी मिटाने में लगे तंत्र और नेता अमीर हो रहे है ।वही स्थिति माओवादी नेताओ का है ये भी गरीबी के नाम पर बंदूक उठाते है और फिर वह बंदूक गरीबो पर ही गरजती है।

5-सबसे बूरी स्थिति तो मीडिया वालो की है पता नही कहा तक गिरेगे लेकिन इस पूरे प्रकरण का एक सुखद पहलु यह रहा कि मीडिया के वैसे परोकार जो कहते है कि दर्शक चटपटा और सनसनी फैलाने वाली खबर देखना चाहते है। लेकिन जो इस सप्ताह का टीआरपी आया है उसने मीडिया के परोकारो की बोलती बंद कर दी है ,वही चैनल नम्बर वन पर रहा जिसने सबसे सही और समान्य तरीके से खबर को दिखाया।जिन लोगो ने सनसनी फैलायी वे औधे मूह गिरे।