रविवार, सितंबर 12, 2010

आँप्रेशन लखीसराय का सच और मीडिया की भूमिका—


 मित्र आपसे काफी दिनो तक दूर रहा बीच बीच में कई बार इक्छा हुई आपसे अपनी बात कहने की लेकिन स्थिति ऐसी थी कि चंद मिनट भी शांति से बैंठ नही पा रहा था।मोबाईल की घंटी और बाँस के फरमान ने जीना दुभर कर दिया था।तीनो बंधक के रिहाई से जिनती खुशी बंधक बने पुलिसकर्मी के परिवार को मिली होगी ।उससे कम खुशी हमारे परिवार वाले नही थी, सभी खुश थे,घर में अब तो शांति मिलेगी।

रविवार को मेरा आंफ रहता है लेकिन पिछले दो रविवार ने ऐसा झंटका दिया कि हमारी कई मान्यताये तास की पत्तो की तरह बिखर गया।वाकिया बिहार में एक साथ दो बड़ी माओवादी घटनाओ से जुड़ा हुआ है।29 अगस्त दिन रविवार आज मेरी प्यारी सी नन्ही सी बेटी टिया का जन्म दिन था नाना नानी मामा मामी दादा दादी सभी को आना था सुबह से ही तैयारी चल रही थी लेकिन पता नही क्यो जन्म दिन दिन में ही मनाने की मेरी इक्छा प्रबंल हो रही थी ।लेकिन इस बात को लेकर घर में आम राय नही हो पा रही थी लेकिन एक सहमति बनी कि खाने का कार्यक्रम दिन में हो।मेरे मन पसंद चिकेन बनाने की तैयारी शुरु हो गयी सभी मेहमान भी आ गये एक बजते बजते भोजन का कार्यक्रम पूरा हो गया और फिर बातचीत का सिलसिला शऱु हो गया मैं बीच में ही उठकर सोने चला गया।लगभग आधे घंटे सोया होगा कि आफिसियल मोबाईल की घंटी बजी नींद में ही मोबाईल रिसिव किया एक तरफ हमारे इनपुट हेड का आवाज था संतोष कहा हो, भैया सो रहे है उठो न बिहार में बड़ी घटनाये हो गयी है अचानक मेरी नींद उड़ गयी। मैने पुछा क्या हुआ है भैया ,शिवहर से बीडीयो का अपहरण हो गया है औऱ लखीसराय में माओवादी और पुलिस के बीच मुठभेड़ हो रहा है कई पुलिसकर्मी वाले मारे गये।थोड़ा डीजीपी से बात करते, मैंने कहा भैया चंद मिनट में रिपोर्ट करते है।मैने तुरंत डीजीपी नीलमणि जी को मोबाईल लगा दिया जैसे ही उन्होने मोबाईल उठाया मुझपे बरस गये क्या चला रहे है मैंने बड़े शांत भाव से कहा मुझे तो कुछ नही पता है वही जानने के लिए फोन किया यह सूनते ही उनका गुस्सा थोड़ा शांत हो गया बोले बीडीओ को माओवादियो ने अपहरण कर लिया और लखीसराय में मुठभेड़ की खबर सही है लेकिन पुलिसकर्मी के मारे जाने की अधिकारिक खबर नही है लेकिन संकेत शुभ नही है।तुरंत खबर फैलेस हुआ औऱ दूसरी औऱ फोनो के लिए पेच कर दिया। खबर प्रसारित होते ही पूरे बिहार में हड़कम्प मच गया डीजीपी ने मामले की पुष्टि कर दी ।

इसके बाद बेटी का जन्मदिन कैसे मना, घर आये मेहमानो के साथ क्या क्या हुआ पुछने का साहस आज तक नही जुटा पाया हूं। बेटी मेरी खुश है चलो पापा जिसके लिए परेशान थे वह घर लौट आया है मम्मी ने उसे यही बताया था कि कोई गुम हो गया है पापा उसे खोज रहे हैं।

खबर मिलते ही अपने पूराने स्रोतो से संपर्क साधना शुरु कर दिया, मेरे सामने एक साथ दोहरी चुनौती थी एक और अपने चैनल के छवि को बचाये रखने और दूसरी और सारे राष्ट्रीय औऱ क्षेत्रीय चैंनल के रिपोटरो से दो दो हाथ करनी थी ।

पुराने संबंध काफी काम आया।वैसे पुलिस पदाधिकारी जिनसे मेरे बेहतर सम्बन्ध रहा था सभी को इस खबर के पीछे लगा दिया वही माओवादी विचार धारा को मानने वाले मित्रो का भी उपयोग किया स्थिति यह हुई कि घटना के दूसरे दिन से ही पुलिस औऱ माओवादियो से जुड़ी पल पल की खबर मुझे मिलने लगी माओवादी प्रवक्ता अविनाश औऱ सेन्ट्रल कमिटी के प्रवक्ता प्रहार से मेरी लगातार बात होने लगी हलाकि अविनाश से सभी मीडियाकर्मियो की बाद में बात होने लगी थी ,लेकिन मैं प्रारम्भ से ही अविनाश के खबर को क्रोस भेरीफिकेशन किये बगैर नही चलाते थे।क्यो कि अविनाश बातचीत में बेहद सतही लग रहा था और उसकी मंसा मीडिया का उपयोग करना दिख रहा था।30तारीख की शाम खबर फैली की बीडीओ को नक्सली रिहा कर दिया है ये खबरे मेरे पास भी आयी लेकिन चलाने से पहले अपने एक करीबी वरिय पुलिस अधिकारी को फोन किया उसने रिहाई की खबर के सच से अवगत करा दिया।मैने खबर ब्रेक नही किया लेकिन थोड़ी देर बाद सभी चैनलो पर ब्रेकिंग न्यूज चलने लगा बीडीओ रिहा।चारो औऱ से फोन आने लगा मै खबर का खंडन करता रहा बेमन से ही सही लेकिन मेरे चैनल ने इस खबर को प्रसारित नही किया।इस बीच कई मीडिया वाले बीडीओ के मुजफ्फपुर स्थित आवास पर पहुंचकर परिवार वाले को आपस में मिठाई तक खिलवा दिया औऱ चैनल पर ब्रेकिंग खबर चलने लगा थोड़ी ही देर में बीडीओ पहुंच रहे है अपने घर जैसे जैसे रात बितता गया परिवार वालो की बैचेनी बढती गयी और अंत में मीडिया वाले को उसके घर से खिसकना पड़ा।खबर को लेकर पूरी रात पुलिस के आलाधिकारी से बात होती रही लेकिन दो बजे रात के करीब पुलिस अधिकारी ने कहा कि माओवादियो ने गलत सूचना आपको को दिया है उसका मकसद पुलिस को डायभर्ट करना है।31अगस्त को 10.45मिनट पर उसी पुलिस के आलाधिकारी का फोन आया बीडीयो घर पहुंचा और सबसे पहले सही खबर मैने ब्रेक कर दी।

इस प्रकरण में माओवादियो के गतिविधियो पर मेरी पेनी नजर थी और कई बाते इस दौरान उभर कर सामने आयी की माओवादी की कार्यशैली क्या है क्या चाहते है माओवादी।हलाकि बरामदगी की खबर के बाद थोड़ी राहत हुई।लेकिन कुछ ही घंटो के बाद माओवादियो के प्रवक्ता ने पहली बार चार पुलिसकर्मियो को बंधक बनाये जाने की बात स्वीकारते हुए।आजाद की हत्या और ग्रींनहंट के विरोध में लखीसराय की घटना को अंजाम देने की बात स्वीकार किया।खबर चलने लगी इस दौरान केन्द्रीय कमिटी के प्रवक्ता से भी सम्पर्क किया उसने सीधे तोड़ पर कहा कि हमलोग अपहरण कर सौदे बाजी के पंक्षधर नही है लेकिन लखीसराय वाले दस्ता से सम्पर्क नही हो पा रहा है इसलिए कुछ भी कहना सम्भव नही है।कल होकर प्रवक्ता ने आठ माओवादियो को छोड़ने की शर्त रखी औऱ नही छोड़ने पर हत्या करने की धमकी दी।इस बयान के बाद भी सरकार की और से कोई प्रयास होता नही दिख रहा है पुलिस महकमा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे गिरगिरा रहे थे जैसे माओवादियो के रहमो करम पर राज्य का शासन चल रहा है।माओवादियो द्वारा रखी गयी शर्त का समय पूरा होते ही प्रवक्ता अविनाश का फोन आया दरोगा अभय यादव को जन अदालत के फैसले के आलोक में मार दिया गया।मैं खबर की पुष्टि के लिए केन्द्रीय कमिटी से बात किया तो उन्होने कहा कि खबर पक्की नही है।जब तक बातचीत हो रही थी सभी चैनलो में ब्रेकिंग खबर चलने लगी दरोगा अभय यादव मारा गया देखते देखते कई चैनलो में उसके फोटे पर फूल माले का ग्राफिक्स भी लगा दिया और कुछ तो उसके फोटे के सामने मोमबति तक जलवा दिया।डेक्स से लेकर प्रभारी तक का बेतहासा फोन आ रहा था और मैं खबर का खडंन करता रहा और अंत में तय हुआ कि नाम नही चलाया जाये और प्रवक्ता के हवाले से खबर चला दिया जाये।क्यो कि जो माओवादियो का प्रवक्ता बनकर फोन कर रहा था उसके बारे में मेरे पास सारी जानकारी थी किस लोकेशन से फोन कर रहा है और पार्टी में उसकी हैसियत क्या है सब कुछ मुझे पता चल गया था।इस खबर के बाद अजय यादव के परिवार का क्या हाल हुआ होगा आप खुद समझ सकते है।

देर रात में केन्द्रीय कमिटी के प्रवक्ता का फोन आया कि संगठन में बंधक बनाने को लेकर मतभेद हो गया है और उसमें से कोई एक की हत्या कर दी गयी है सुबह उसी इलाके में लाश मिल जायेगी जहां मुठभेड़ हुआ था।मैने अपने लखीसराय रिपोर्ट को सतर्क कर दिया औऱ सूबह होते होते लाश मिलने की खबर भी आ गयी हमलोगो ने बंधकपुलिसकर्मी की हत्या के साथ साथ टे0टे0 के मारे जाने की भी पुष्टि हमलोगो ने ही किया।उसके बाद जो कुछ भी हुआ सब टीवी पर देखे ही होगे एक नक्सली भाई दरोगा के घर पहुंचता है औऱ खबर ब्रेक करत है कि तीनो बंधक रिहा लेकिन यह सब मीडिया के गैरजिम्मेदराना हरकत के अलावे कुछ नही था।इस पूरे प्रकरण में जा बाते मुझे समझ में आयी वह यह है कि—

1-माओवादी अपराधियो का संगठित गिरोह है इसका मकसद भय पैदा करके पैसा उगाही करना है इनका कोई वैचारिक लड़ाई नही है एक सूत्री अभियान है बंदूक के बल पर सत्ता काबिज करना,हमारे राजनेता जो कहते है कि ये लोग भूले भटके लोग है ऐसा नही है इसमें शामिल सभी लोगो का मिशन स्पष्ट है।

2-यह गिरोह भी राजसत्ता द्वारा पोषित है औऱ उसको राजनीतिज्ञो से समर्थन मिलता है और उसके बदले में चुनाव में मदद करता है।मेरी माओवादियो के टांप लीडर से इस दौरन बात हुई उनसे मैंने पुछा बिहार के मुख्यमंत्री ग्रीनहंट का विरोध करते है,माओवादियो के समर्थन में खुल कर बोलते है विकास की बात करते है तो फिर यह हमला क्यो किया गया।उन्होने बड़ी बेवाकी से कहा आपको याद होगा जहानावाद जेल ब्रेक कांड उसके पीछे भी मंशा था राजसत्ता और जनता में आतंक पैदा करना और बाद में हमलोगो को कई तरह के लाभ मिले।इसी को ध्यान में रख कर यह कारवाई की गयी है।

3-एक जानकारी जो इस दौरान मुझे जो मिली वह यह था कि बिहार से विकास के नाम पर माओवादियो को दस हजार करोड़ से अधिक की राशी लेवी के रुप में पिछले पाच वर्षो के दौरान मिला है।यह राशी बच्चो के दोपहर के भोजन मीड डे मिल योजना ,इंदिरा आवास योजना ,नरेगा,और सड़क बनाने के नाम पर पदाधिकारी और माओवादियो ने आपस में बाट लिया।आप सब टीवी चैनल पर देखे होगे टे0टे0 को जहां मार कर फैका गया था उस सड़क के निर्माण के नाम पर तीन बार राशी की निकासी हो चुकी है और सड़क वैसे की वैसे ही है।

4-कहते है गरिबो का प्रतिनिधुत्व करता है माओवादी, लेकिन इस घटना ने साफ कर दिया चार बंधको में सबसे गरीब और माओवादियो के हमदर्द कहे जाने वाले टे0टे0 तो आदिवासी था फिर क्यो उसकी हत्या कर दी गयी।माओवादियो का भी चेहरा वही है जो राजनीतिज्ञो का है जिस तरीके से गरीबी मिटाने के नाम पर गरीब और गरीब हो रहे है और गरीबी मिटाने में लगे तंत्र और नेता अमीर हो रहे है ।वही स्थिति माओवादी नेताओ का है ये भी गरीबी के नाम पर बंदूक उठाते है और फिर वह बंदूक गरीबो पर ही गरजती है।

5-सबसे बूरी स्थिति तो मीडिया वालो की है पता नही कहा तक गिरेगे लेकिन इस पूरे प्रकरण का एक सुखद पहलु यह रहा कि मीडिया के वैसे परोकार जो कहते है कि दर्शक चटपटा और सनसनी फैलाने वाली खबर देखना चाहते है। लेकिन जो इस सप्ताह का टीआरपी आया है उसने मीडिया के परोकारो की बोलती बंद कर दी है ,वही चैनल नम्बर वन पर रहा जिसने सबसे सही और समान्य तरीके से खबर को दिखाया।जिन लोगो ने सनसनी फैलायी वे औधे मूह गिरे।

1 टिप्पणी:

सुशील छौक्कर ने कहा…

मीडिया को बदलना होगा
। नहीं तो लोगो का मीडिया की खबरों पर से विश्वास ही उठ जाऐगा।