रविवार, जनवरी 09, 2011

इस बेपनाह अंधेरे को सुबह कैसे कहूं इन नजारो का मैं अंधा तमाशवीन नही

सभी मित्रो को नव वर्ष की शुभकामनाये काफी दिनो बाद आपसे मिल रहा हूं विषय ऐसा है कि आपके लिए कुछ विशेष जानने के लिए बचा नही होगा,सरकार पूरे मामले की जाँच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी है।अब सारा खेल सीबीआई के पाले में है अब आप भी समझ गये होगे कि मैं किस मामले में बात कर रहा हूं। वही मामला पूर्णिया विधायक की हत्या का जिसमें सरकार के उप मुख्यमत्री सुशील कुमार मोदी अपने बयानो के कारण विवाद में घिरे हैं।फिर भी मैं इस पूरे प्रकरण के उन पहलुओ से आप सबो को अवगत करा रहा हूं जो अभी भी मीडिया के सुर्खियो में नही है या यू कहे तो मीडिया इन पहलुओ को छूने से परहेज कर रही है।अखबार ने अपनी भूमिका से पत्रकारिता को शर्मसार तो कर ही दिया लेकिन पहली बार पांच वर्षो के बाद प्रिंट मीडिया का वह दंभ चकनाचूर हुआ है कि जब तक मैं पहल नही करुंगा कोई मामला सुर्खियो में नही आयेगा।

वही दूसरी और इस पूरे प्रकरण में बिहारी समाज का वह चेहरा सामने आया है जिसकी कल्पना मैने नही की थी ।बेहद दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि बिहारी समाज जिसकी संवेदनशीलता की देश भर में चर्चाये हुआ करती थी वह समाज इतना कुंद हो गया इसका एहसास मुझे पहली बार इस पूरे प्रकरण में देखने को मिला।घटना चार जनवरी की है मेरा मोरनिंग सिफ्ट था कड़ाके की ठंड के कारण थोड़े विलम्भ से दफ्तर पहुंचा स्टोरी को लेकर मंथन चल ही रहा था कि डीजीपी का मैसेंज आया जैसे ही मैंसेज बोक्स खोला होश उड़ गये पूर्णिया विधायक की हत्या ,हत्या उसी महिला ने की जिसने विधायक पर यौन शोषण का आरोप लगाया था।शुरु हो गया ब्रेकिंग न्यूज का सिलसिला तभी खबड़ आयी कि इस मामले में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कुछ कहना चाह रहे है।भागे भागे उनके पोलो रोड स्थित सरकारी आवास पर पंहुचा उपमुख्यमंत्री इस मामले पर बोलना शुरु किये शुरुआत महिला के चरित्रहीन,ब्लैक मेलर के उपमा से हुआ वही विधायक को 1974के आन्दोलन का सिपाही होने की बात करते हुए उसके महानता की गाथा सुनाने लगे जैसे कि 1974 का आन्दोलन देश के आजादी का आन्दोलन हो।

टीवी स्क्रिन पर मोदी का बयान चलने लगा रुपम पाठक चरित्रहीन है ब्लैक मेलर है विधायक की एक बड़ी साजिश के तहत हत्या की गयी है।इस बयान के बाद मैने कई महिला संगठनो के प्रतिनिधियो से बात किया लेकिन मोदी के इस बयान पर उन्होने प्रतिक्रिया व्यक्त करने की इक्छा जाहिर नही की ऐसे मैं ऐसे महिलाओ की राय लेकर स्क्रिन पर चलाने का फैसला लिया गया जो सिर्फ महिलाये थी उनका कोई समाजिक और राजनैतिक पहचान नही थी ।वही बाद में जब मामला गरमाने लगा तो वही महिलाये चीख चीख कर महिलाओ के स्वाभिमान पर आघात की बात करते हुए हल्ला बोल दिया।

दूसरा पहलु तो इससे भी दुखद है लोग मोदी के बचाव में खुलकर बोलने लगे हैं और स्थिति यहां तक आ गयी है कि जिस तरीके से लालू प्रसाद पर चारा घोटाला का आरोप लगा था तब बिहारी समाज का एक बड़ा तबका समाजिक न्याय के नाम पर लालू प्रसाद के बचाव में खुलकर सामने आये थे और आज वही स्थिति है सुशासन और विकास के नाम पर बिहारी समाज का एक बड़ा तबका इस मामले को सही साबित करने मे लगा है।

लेकिन इन सबसे दूर रुपम पाठक के साथ आज उनका पूरा परिवार खड़ा है उनकी माँ जहाँ बेटी के कदम को सही ठहरा रही है वही उनका पति इस हत्या को वध की संज्ञा देने की बात करते हुए पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात कर रहे है।फिर भी मेरा बिहारी समाज सोया हुआ है और मजा ले रहा है और बेशर्म की तरह सवाल कर रहा है कि क्या रुपम की बेटी पर भी विधायक हाथ फेर दिया।