गुरुवार, मई 27, 2010

आँनर किलिंग को लेकर हदे पार कर रहे हैं,प्रियभांशु एंड कम्पनी


प्रियभांशु एंड कम्पनी सारी मर्यादाओ को ताख पर रख कर किसी भी स्थिति में निरुपमा की मौंत को आँनर किंलिग साबित करने में लगे हैं।झारखंड के डीजीपी पर दबाव डलवाने के साथ साथ अखवार और मीडिया का जितना भी दुरउपयोग हो सकता हैं किया जा रहा हैं।स्थिति यहां तक पहुंच गयी हैं कि निरुपमा मामले में सवाल खड़े करने पर ब्लांगर को माँ बहनो को गाली दी जा रही हैं।पता नही प्रियभांशु एंड कम्पनी प्रियभांशु के साथ किस जनम का बदला ले रहे हैं।उन सबो के व्यवहार ने कही न कही एक ऐसा वर्ग तैयार कर दिया हैं जो इन सबो से किसी भी स्थिति तक जबाव देने की तैयारी प्रारम्भ कर दी हैं।इसी का परिणाम हैं कि कोडरमा में पिछले चार दिनो से निरुपमा के माँ के मामले में लोग खुलकर सामने आने लगे हैं।


जिस तरीके से तथाकथित जनवादी विचार धारा के परोकार इस मामले को ब्रह्रामण जाति से जोड़कर पूरे मामले को जाति में बाँट दिया हैं उसका फायदा कही न कही निरुपमा के असली हत्यारे को मिलता दिख रहा हैं।अब जरा प्रियभांशु एंड कम्पनी के कारगुजारी पर चर्चा हो जाये—

1-निरुपमा मामले में प्रियभांशु एंड कम्पनी झारखंड के डीजीपी पर दबाव बनाने के लिए कांग्रेस के एक बड़े नेता से लगातार फोन करवा रहे हैं।

2-कोडरमा एसपी को उसके बैंचमेंट यूनियन टेरेटरी केंडर के एक आईपीएस अधिकारी से लगातार फोन करवाया जा रहा हैं।उससे भी बात बनते नही देख शहाबुद्दीन मामले में चर्चा में रहे एक आईपीएस अधिकारी से भी फोन करवाया गया हैं जो इन दिनो सेट्रल डीपटेशन पर दिल्ली में हैं कोडराम पुलिस और झारखंड पुलिस मुख्यालय में तैनात आलाधिकारी की माने तो ऐसा एक भी दिन नही गुजरता जब किसी न किसी आईपीएस अधिकारी का फोन नही आता हो आखिर ये चाहते क्या हैं।

3-मीडिया की बात करे 25मई को सभी चैनलो ने ब्रेकिंग खबर चलाया कि निरुपमा की माँ ने जमानत याचिका दायर की जबकि यह खबर पूरी तौर पर गलत था जमानत याचिका 26मई को दायर किया और 28मई को इस पर सुनवाई होगी कल जब ये बाते सामने आयी तो कई चैनलो पर खबर ब्रेक हुआ निरुपमा की माँ को नही मिली जमानत 28मई को होगी सुनवाई अब आप ही बताये इस खबर का क्या मतलब हैं।झारखंड के अखबारो में दिल्ली से खबर छपती हैं कि निरुपमा मामले में कोई भी कांग्रेसी नेता आन्दोलन नही करेगे।एक अखबार ने खबर छापा फौरेन्सिंक जांच रिपोर्ट ने निरुपमा की हत्या की पुष्टी की।

4-मोहल्ला में रीतेश जितने तार्किक अंदाज में लिख रहे हैं उनकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है,बयान बदलने का ही नतीजा हैं कि सुधा पाठक जेल में हैं और उसके परिवार संदेह के घेरे में हैं लेकिन पूरे मामले का जो सबसे मजबूत पहलु हैं वह यह हैं कि घटना के लगभग एक माह बाद भी पुलिस को हत्या को लेकर कोई सांक्ष्य नही मिल पा रहा हैं।

5-कोडरमा पुलिस निरुपमा के भाई के पाच दोस्तो से भी पुछताछ किया हैं एक बीएसएफ में पदस्थापित हैं वे अपने पोस्टिंग वाले जगह पर ही घटना के दिन मौंजूद थे यही स्थिति बैंक में तैनात एक दोस्त का हैं।पुलिस को दोस्त से भी कोई सुराग नही मिला हैं।

6-निरुपमा के मामा के पंक्ष में पुलिस को ऐसा साक्ष्य मिला हैं जिसे तोड़ना सम्भव नही हैं।घटना के दिन बाढ के जिस ऐटीएम से पैंसा निकाला हैं उसमें लगे थ्रिसीसीडी कैमरे में उसका फोटो हैं।इसलिए मामा पर जारी अनुसंधान पुलिस को बंद करनी पड़ी हैं।

7-यही स्थिति निरुपमा के पिता,और भाई के मामले में सामने आयी हैं उसके बाद पुलिस ने उन विन्दुओ पर भी अनुसंधान बंद कर दिया हैं।

8-पोस्टमार्टम रिपोर्ट को लेकर जारी बहस पर भी पुलिस ने विराम लगा दिया हैं।पुलिस इस मसले पर कुछ भी लिखने को तैयार नही हैं ।पोस्टमार्टम करने वाले डांक्टर नोटिस जारी होने के बाद भी पुलिस के सामने उपस्थित नही हुए जो पुलिस ने कांड दैनकी में अंकित कर लिया कर लिया गया हैं।वही कोडरमा के सिविल सर्जन ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट को अभी तक रांची एक्सपर्ट के पास ओपेनियन के लिए नही भेजा हैं.।

9-मीडिया में फौरेन्सिंक रिपोर्ट आने की खबर के बाद तिलैया थाना के थाना अध्यक्ष ने विधिवत थाने में तैनात सिपाही राजू मिंज को कमान देकर रांची फौरेन्सिंक लैंब भेजा लेकिन लैंब के निदेशक ने लिखित सूचना दी हैं कि अभी तक किसी भी तरह की फौरेन्सिंक जांच पूरी नही हुई हैं।थाने के स्टेशन डायरी में भी इस तथ्य को दर्ज कर दिया गया हैं।

10-फौरेन्सिंक लैंब के आलाधिकारी के हवाले से जो बाते सामने आ रही हैं पूरी रिपोर्ट आने में तीन से चार माह का समय लग सकता हैं।ऐसा हुआ तो कोडरमा पुलिस निर्धारित 90 दिनो के अंदर चारशीट दायर नही कर पायेगी,ऐसे हलात में निरुपमा की माँ को जमानत मिल जायेगी।

11-दिल्ली वाले हल्ला पार्टी से मेरी एक विनती हैं अगर निरुपमा मामले में सच को सामने लाना चाहते हैं तो इस तरह से ब्लांग पर आकर तर्क वितर्क करने और मोमवती जलाकर इंडिया गेट तक मार्च करने से कुछ भी मिलने वाला नही हैं। वही जनवादी सोच रखने मात्र से कानून आपके दलील को नही मान लेगी। आप रांची आये लेकिन खुले दिमाग से हत्या या आत्महत्या की मानसिकता से उपर उठकर ।प्रधानमंत्री के चाहने पर भी मामला की सीबीआई जांच नही हो सकती हैं।राज्य में जारी राजनैतिक संकट के समाप्त होने का इन्तजार करे।आप लोगो ने जो क्रिमनल पेटिशन फाईल किया हैं उस पर सुनवाई होने में इतना वक्त लग जायेगा कि न्याय का कोई मतलब नही रह जायेगा।प्रियभांशु या फिर आपका जो संकठन हैं रांची हाईकोर्ट में आवेदन दे और मामले की सीबीआई जांच की मांग करे।ये दिल्ली हाईकोर्ट में भी हो सकता हैं।

12-पुलिस हत्या साबित करने में जिस तरह से असफल हो रही हैं ऐसे हलात में प्रियभांशु का जेल जाना तय हैं अगर कानूनी प्रक्रिया तेज हुई तो प्रियभांशु को सजा भी हो सकती हैं ।जिस तरह के साक्ष्य निरुपमा के घर वाले पुलिस के सामने पेश कर रहे हैं वह प्रियभांशु की मुश्किले बढा सकती हैं।निरुपमा के पिता ने प्रियभांशु के पिता से तीन बार मोबाईल पर बातचीत किया हैं। अब ये कह रहे हैं कि प्रियभांशु के पिता से शादी के सिलसिले में मिलने को लेकर बात हुई थी लेकिन उन्होने शादी के प्रस्ताव को पूरी तौर से खारिज कर।यह सबूत जनवादी नही हैं इस साक्ष्य को कांटने के लिए प्रियभांशु को बड़ी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ सकती हैं।ऐसे कई साक्ष्य पुलिस ने भी संकलित किया हैं जिससे प्रियभांशु की मुश्किले बढ सकती हैं।

गुरुवार, मई 20, 2010

निरुपमा मामला डीजीपी ने खबर का किया खंडन-

                                                                                                                                                            निरुपमा मामले में मीडिया की बैचनी समझ से पड़े हैं पिछले चार दिनो से रांची से लेकर दिल्ली तक इस मामले में मीडिया की जो भूमिका रही हैं उसे यू कहे तो मीडियाकर्मियो ने सारी ऐथिक्स को ताख पर रख दिया हैं।मैं शुरु से ही इस मामले को लेकर लिख रहा हू कि थोड़ा धैर्य रखे सच पूरी तौर पर सामने आने वाली हैं।ऐसा कुछ मत करे जो कल होकर आप सबो को चेहरा छुपाना पड़े।


1-18मई को टाईम्स आँफ इंडिया ने डीजीपी के हवाले से प्रथम पेज पर खबर छापी जो निरुपमा की हत्या हुई हैं।सुबह अखवार में खबर छपते ही रांची में पदस्थापित चैनल के पत्रकारो की जमकर कलास लग गयी आनन फानन में उसी खबर के आधार पर कई चैनल ने खबर भी चला दी।शाम चार बजे डीजीपी से मीडिया वालो की बात हुई और उन्होने पाच बने मिलने का समय दिया।मीडियाकर्मियो के पहुंचते ही डीजीपी भड़क गये बोले जब मेरे पास फौरेन्सिक रिपोर्ट आयी ही नही हैं तो फिर मेरे हवाले से आप लोगो ने खबर कैसे चला दी।उसके बाद इन्होने जो बाईट दिया उसमें उसने कहा कि अभी तक फौरेन्सिंक जांच पूरी नही हुई हैं और इस मामले में पुलिस एक एक बिन्दु पर जांच कर रही हैं।हत्या या आत्महत्या को लेकर पुलिस अभी किसी ठोस नतीजे पर नही पहुंची हैं लेकिन पूरे मामले में सबसे अहम सबूत सुसाईड नोट हैं जिसकी जांच देश के दो बड़े फौरेन्सिंक लैब से कराने का फैसला लिया गया हैं।लेकिन यह खबर किसी भी चैनल और अखवार वाले न तो छापा और ना ही दिखाया।

2-कोडरमा पुलिस के हवाले से एक खबर मीडिया के पास आयी कि 17मई को निरुपमा से जुड़े साक्ष्यो को फौरेन्सिंक जांच के लिए भेजा गया हैं तो फिर रिपोर्ट आने का सवाल कहा से उठता।हलाकि इस खबर को कुछ चैनल और अखबार वालो ने झापा भी लेकिन इसके लिए स्थानीय पत्रकारो को काफी जोर लगानी पड़ी।

3-19मई को फिर हिन्दुस्तान दैनिक के मुख्यपृष्ठ पर खबर छपती हैं कि 18मई को फौरेन्सिंक रिपोर्ट डीजीपी को मिला जिसमें निरुपमा के हत्या की बाते सामने आयी हैं।अब आप ही बताये एक दिन पहले टाईम्स आंफ इंडिया खबर छापती हैं कि डीजीपी को रिपोर्ट मिली वही और उसमें हत्या की पुष्टी हुई हैं।आखिर दोनो में कौन सही लिख रहे हैं।

4-20मई को आज फिर हिन्दुस्तान के प्रथम पेज पर खबर छपी हैं।निरुपमा के मोबाईल का कांल डिटेस्लस मिला परिवार को कोडरमा से बाहर जाने पर पुलिस ने लगायी रोक। इस मसले पर जब निरुपमा के भाई से बात हुई तो उसने कहा कि अखबार से ही मालूम हुआ हैं। पुलिस की और से कोई सूचना हमलोगो को नही दी गयी हैं वैसे भी जब तक मामले का खुलासा नही होता हैं पूरा परिवार कोडरमा से बाहर जाने के बारे में सोच भी नही रहा हैं।सीबीआई जांच को लेकर दिल्ली में जो हाई तौबा मचायी जा रही हैं उसमें मेरे सहयोग की जरुरत हो तो मैं भी पूरे मामले की सीबीआई जांच कराना चाहता हू।मीडिया के बन्धुओ से मेरा नम्र निवेदन हैं कि मैं भी इसी देश का नागरिक हूं और मुझे भी अपनी बात रखने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त हैं कृप्या एक पंक्षीय खबर प्रकाशित कर और मानसिक प्रताड़ना न दे।

5-पुलिस रिमांड में निरुपमा की माँ ने कई चौकाने वाले तथ्यो से पुलिस को अवगत कराया हैं।पुछताछ में शामिल एक आलाधिकारी ने बताया कि पूरे मामले उनकी माँ ने जो बाते कही हैं उससे पुलिस की मुश्किले और बढ गयी हैं।निरुपमा की माँ ने पुलिस को बतायी की इस बार जो दिल्ली से निरुपमा आयी थी तो काफी गुमसुम रहती थी कई बार बोलने पर कुछ बोलती थी।मै पिछले कई दिनो से बिमार था मुझे देखने के लिए ही वे आयी थी लेकिन उसकी स्थिति देख कर मैं खुद घबरा गयी थी।28तारीख की शाम किसी से अंग्रेजी में जोर जोर से बात कर रही थी और काफी गुस्से में थी मैं दौड़ कर उसके रुम में पहुंची तो देखा की वो रो रही थी और काफी गुस्से में थी, मैं पुछती रही क्या बात हैं बेटा तो कुछ बोल नही पा रही थी सिर्फ इतना ही बोली माँ मैं कही की नही रही उसके बाद मैने उसे काफी समझाया सुबह निरुपमा थोड़ी देर से उठी लेकिन चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था।मैं आठ बजे के करीब पूजा पर बैंठ गयी और पूजा खत्म होने के बाद जब प्रसाद लेकर निरुपमा के रुम में गई तो दरवाजा सटा हुआ था जैसे ही मैं धक्का दिया सामने पंखे से निरुपमा लटकी हुई थी। मैं दोड़ कर पलंग पर चढी और उसके गले में लगे फंदे को खोली निरुपमा पंलग पर गिर गयी मेरे चिल्लाने की आवाज सूनकर कई लोग अंदर आ चुके थे मैं दौड़कर सामने के बाथरुम मे जाकर पानी लायी और निरुपमा के चेहरे पर जोर जोर से मारने लगी उसी दौरान निरुपमा की कराह सूनने को मिला और उसके बाद आस परोस से आये लोगो ने मिलकर पार्वति निर्सिंग होम ले गया जहां डां0 उसे देखने के बाद मृत घोषित कर दिया।

6निरुपमा की मां से पुछताछ के बाद जो बाते सामने आयी उसके आधार पर पुलिस निरुपमा के परोसी से फिर पुछताछ की हैं जिसमें अभी तक पुलिस को कोई भी कनट्राडीकट्री बयान सामने नही आया हैं।

7अभी अभी यह जानकारी मिली हैं कि सोसाईड नोट को लेकर फौरेन्सिंक टीम प्रथम दृष्टया निरुपमा का लिखा हुआ माना हैं।और विशेष जांच के लिए कोलकोता और हैदरावाद भेजा जा रहा हैं।

रविवार, मई 16, 2010

कोडरमा पुलिस निरुपमा की मौंत को हत्या मान रही हैं तो फिर हाई तौबा क्यो--


निरुपमा की मौंत को लेकर मचे बवाल पर जिस तरीके से प्रियभांशु के मित्र व्यवहार कर रहे हैं मुझे लगता हैं कि इसका जबाव अब खुल कर देने की जरुरत हैं।कल तक मैं बहुत कुछ जानते हुए भी समाजिक दायुत्व बोध के कारण लिखने से परहेज कर रहा था। लेकिन अब सब्र का बांध टुट गया हैं।बेनामी प्रतिक्रिया देने वालो से मेरी


खास बिनती हैं, मै जो कुछ भी लिख रहा हू वह सब कुछ आपके सामने हैं, मैं कौन हू कहा रह रहा हू और मेरी क्या हेसियत हैं,वह सब को पता हैं ।लेकिन जिस तरीके से अर्मादित भाषा का उपयोग कुछ बेनामी लोग कर रहे हैं उनसे मेरी खास बिनती हैं नाम और पहचान के साथ सामने आये।

दोस्ती मुझे भी निभानी आती हैं लेकिन इस अंदाज में नही हमारे औऱ आप मैं फर्क सिर्फ इतना हैं कि आप प्रियभांशु को बचाना चाहते हैं और निरुपमा के पूरे परिवार को फांसी पर चढाना चाहते हैं।और मैं चाहता हू कि निरुपमा के मौंत के लिए जिम्मेवार व्यक्ति को कड़ी से कड़ी सजा मिले।जब निरुपमा के मौंत को आज तक पुलिस हत्या मानकर उसके माँ को जेल में बंद कर रखा हैं तो मुझे ये समझ में नही आ रहा हैं कि दिल्ली में इसको लेकर हाई तौंबा क्यो मची हैं।क्यो कोडरमा पुलिस पर निष्पक्ष जांच नही करने का आरोप लगाया जा रहा हैं।केडिल मार्च निकाल कर क्या साबित करना चाहते हैं।निष्पक्ष जांच की मांग तो निरुपमा के परिवार वाले को करनी चाहिए जिन्हे दोहरी सजा दी जा रही हैं।एक तो मीडिया ने पूरे परिवार को आँनर किलिंग के नाम पर जिन्दा में ही मार दिया हैं और दूसरी और उस माँ को जिसने निरुपमा जैसी पवित्र बेटी को नौ माह तक अपने कोख में पाली और लोरी सूनाकर बड़ी की, और उसकी हत्या के आरोप मैं आज वह जेल में बंद हैं।किसी ने सोचा हैं उस माँ पर क्या बित रही होगी जिसने निरुपमा की शादी के जोड़े से लेकर मांगटीका तक खरीद कर रखी हुई थी।इस और आप सबो को सोचने की जरुरत नही हैं ।क्यो की आप सभी ऐसे जबावदेह भारतीय यूथ हैं जिन्हे सिर्फ अपनी आजादी से मतलब हैं दायुत्व से नही।ऐसा नही हैं कि मुझे कांलेज छोड़े ज्यादा दिन हुआ हैं जिस आजादी और स्वछदंता से जीने की आप हिमायती बन रहे हैं उसके पंक्ष धर मैं भी हूं। जिस संस्थान में पढने का दंभ आप भर रहे हैं तो आपकी जानकारी के लिए मेरी पढाई भी दिल्ली विश्वविधालय के ऐसे काँलेजो से हुई हैं जहां नामकंन होने पर लोग गर्व महसूस करते हैं लेकिन इसका मुझे कोई गरुर नही हैं।एक बेनामी साथी ने लिखा कि अगर तुम मेरे दरबाजे पर नौकरी लेने आये तो धक्के मार कर बाहर कर देगे।मेरी विनती हैं उन साथियो से जिन संस्थान में वे काम कर रहे हैं उस संस्थान के सबसे बड़े पत्रकारो जो होगे उनसे मेरे बारे में जानकारी लेगे।छोड़िए मैं भी विषय से अलग होकर थोड़ा अंहग में आकर कुछ ज्यादा ही लिख दिया अब सबाल जबाव हो जाये।

मैने पत्रकारिता के माध्यम से कई बड़ी जंग जीत चुका हू लेकिन आज मैं जितना खुश हू उतनी खुशी आज तक नही हुई थी।निरुपमा और प्रियभांशु के कई मित्रो ने मुझसे बात करने की इक्छा जाहिर की और कई से मेरी बात भी हुई जिस अंदाज से उन्होने मुझे सराहा उसकी कल्पना मैने नही की थी।सबो का सिर्फ इतना ही कहना था आपने जो सबाल खड़े किये हैं क्या वाकई उसमें सच्चाई हैं। जब उसने सारी बाते सूनी तो कहा हमलोगो से बड़ी गलती हो रही थी।प्रियभांशु और निरुपमा की कांमन लड़की मित्र तो बात करते करते रो पड़ी बोली मुझे भी लग रहा था कि प्रियभांशु उसके साथ ब्लेकमेल कर रहा हैं।सबो ने निरुपमा के न्याय के खातिर इस लड़ाई को जारी रखने की विनती की और उसी का परिणाम हैं कि मैं दुगुने उत्साह के साथ इस जंग को जारी रखने का फैसला लिया हैं।और सबसे बड़ी बात जिस लड़के लड़कियो ने मुझसे बात की मैने उनसे एक ही सबाल किया सोसोईड नोट का लिखावत किसका हैं सबो ने कहा यह लिखावत निरुपमा की हैं।

1-पहला सवाल प्रियभांशु के मित्रो से हैं आपको कुछ भी करने से पहले यह जरुर सोचना चाहिए की आप पत्रकार हैं और आप सबसे पहले जनता के लिए जबावदेह हैं।जिसने आपको घोषित तौर पर देश का चौथा स्तम्भ मान रखा हैं।जिस तरीके से आप एक्ट कर रहे हैं किसका भला कर रहे हैं।

2-इस आन्दोलन से किसको क्या मिला प्रो प्रधान की बीबी की नौकरी पक्की हो गयी हिमांशु के वेभ अखवार चल परे, सुमन को दिल्ली लौटने का प्लेट फर्म मिल गया और मुहल्ला वाले अविनाश को दरभंगा के पंडित को नीचे दिखाने का मौंका मिल गया।वही चमरिया साहब को एक बार फिर से जनवादी दिखाने का मौंका मिल गया। लेकिन जिसे कुछ नही मिल वह कौन हैं निरुपमा, जिसके सबंधो के बारे में क्या क्या नही लिखा गया और क्या क्या नही दिखाया गया।

3-काश निरुपमा भी कौनभेन्ट में पढी रहती थी तो यह दिन उसे देखने को नही मिलता कोडरमा जैसे छोटे शहर में पली बढी जहां शिक्षक के साथ साथ छात्राये क्लास रुम में आती हैं और शिक्षक के निकलने से पहले छात्राये बाहर निकल जाती हैं।साथ पढने वाले लड़को की परछाही भी कभी कभी ही देखने को मिलता हैं। ऐसे जगह से सीधे निरुपमा दिल्ली पहुंचती हैं जहां लड़के औऱ लड़कियो के आपसी सम्बन्ध कपड़ो की तरह रोज बदलते रहते हैं।वैसे सोसाईटी में गांव की भोली भाली सीधी सादी निरुपमा पहुंचती हैं जिसके जीवन में पुरुष के रुप में भाई और पापा के अवाला दूसरा कोई नही आया था।कांलेज पहुंचते ही गिद्दो की उस पर नजर पर गयी और उस गिद्द में प्रियभांशु सबो से तेज निकला जिसने बिहारी होने और भोले भाले सुरत के सहारे निरुपमा को अपने जाल में फंसाने में कामयाब हो गया।आज जो को कुछ भी निरुपमा के साथ हुआ उसके लिए सिर्फ और सिर्फ प्रियभांशु जिम्मेवार हैं जिसने धोखे में निरुपमा के साथ शाररिक सम्बन्ध बनाया और उसके बाद उसके साथ ब्लेकमेलिंग किया।प्रियभांशु को पता नही था कि इनटरकास्ट मैरेज करने में उसको अपने परिवार का कितना सहयोग मिलेगा ।दिल्ली में रहने वाले के लिए ये कोई बात नही हो सकती लेकिन बिहार में आज भी कोई लड़का इंटरकास्ट मैंरेज करता हैं तो उसकी बहन के शादी तक में परेशानी होती हैं इतना कुछ जानते हुए भी प्रियभांशु ने इतना बड़ा कदम कैसे उठाय़ा।कानून और धर्म भी कहता हैं कि धोखा में कोई सम्बन्ध बनाता हैं तो वह सम्बन्ध बलात्कार के श्रेणी में आता हैं।

4-क्या आधुनिक दिखने के लिए इस तहर के सम्बन्ध बनाना आजकल महानगर की संस्क़ृति नही बन गयी हैं। क्या पत्रकारिता का यही मतलब हैं कि इन सम्बन्धो के आधार पर एक कहानी गढी जाये औऱ उसे टीआरपी के लिए भुनाया जाये ।क्या पत्रकारिता का यह दायुत्व नही हैं कि इस तरह के सम्बन्धो के कारण रोजना दिल्ली जैसे शहरो में बिन बिहायी मां की संख्या बढती जा रही हैं।और इसके कारण पूरी परिवारिक जीवन चौपट हो रहा हैं।क्या यह स्टोरी नही हैं।जिस मां बाप ने अपनी जिंदगी की चैन और सुख हराम कर अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा देने के लिए अपनी जमीन और जेबरात तक गिरबी रख देते हैं और बाद के दिनो में बेटे उन्ही माँ और बाप को गुमनामी की दुनिया में थपेरे खाने को छोड़ देता हैं क्या वह स्टोरी नही हैं।वह स्टोरी नही हैं क्यो कि वह बूढा माँ और बाप आज के इस बाजार की जरुरत नही हैं।

5-हम पत्रकार विरादरी कही कुछ भी होता हैं विवेचन करने बैंठ जाते हैं।कल ही बीबीसी के एक संवाददाता ने भेरोसिंह शेखावत के मौंत पर लिखा था कि यह शक्स जिसने अपने विरादरी के विरोध का परवाह नही करते हुए रुप कुउर के सति होने पर जमकर विरोध किया था। लेकिन आज खास पंचायत पर सवाल उठाने का साहस कोई राजनेता नही कर रहे हैं।यही सवाल मैं पत्रकारिता जगत के दो स्टार से करना चाहता हू रविस कुमार और पुण्यप्रसुन बाजपेयी जी आप सभी मसले पर बेवाकी से लिखते हैं लेकिन निरुपमा मामले में आपकी कलम क्यो खामोश हैं इस महाभारत में आपकी भूमिका भीष्म पितामह वाली क्यो बनी हुई हैं।आप जैसे लोग इस उद्दंता पर खामोश रहेगे तो फिर पत्रकारित का क्या होगा।

6-जेएनयू के बंधु से भी एक सवाल हैं चप्पल जींन्स,कुर्ता और सिगरेट के कस से क्रांति नही होती हैं।आपके प्रिय चन्द्रेशखर की हत्या किसने की सर्वविदित हैं। सीबीआई जांच कर रही हैं लेकिन दस वर्ष होने को हैं लेकिन अभी तक इस मुकदमे की प्रक्रिया भी शुरु नही हुई हैं लेकिन दुर्भाग्य हैं उनकी बरसी पिछले ही माह गुजरी हैं लेकिन कही से भी कोई आवाज नही उठा।शायद आप भूल गये होगे चन्द्रशेखर आपके विश्वविधालय के दो दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं डाँन शहाबुदीन के विरोध के कारण सिवान बाजार में दिनदहाड़े एक सभा के दौरान गोली से छलनी कर दिये गये। लेकिन आज उनका हत्यारा पकड़ा जाये उसका कोई बाजार भाव नही हैं इसलिए इसके याद करने का कोई मतलव नही हैं।

(आवाज उठनी चाहिए कारवा बनता जायेगा।)---




























गुरुवार, मई 13, 2010

दो बुजदिल कायर के चक्कर में निरुपमा की हुई मौंत

निरुपमा मामले में मेरा स्टंड पूरी तौर पर स्पष्ट हैं क्रायम रिपोर्टर के रुप में मेरा जो अनुभव रहा हैं और इस तरह के मामले में स्कसपर्ट पुलिस और सीबीआई से जुड़े अधिकारी ,डांक्टर के साथ साथ फौरेन्सिंक विशेषज्ञो से जो हमारी बाते हुई हैं ।उससे निरुपमा के आत्महत्या के प्रयाप्त साक्ष्य उपलब्ध हैं।निरुपमा की हत्या हुई हैं इसको लेकर जो साक्ष्य पुलिस के पास अभी तक मिला हैं वह सिर्फ पोस्टमार्टन रिपोर्ट।जिस पर कई तरह के सावल खड़े हो चुके हैं।


इस मसले पर आज मैं इसलिए लिख रहा हूं कि ब्लांग पर रजनीश और राज ने इस मामले को लेकर कई सवाल खड़े किये हैं।हलाकि मैं इस तरह के सवाल जबाव से बचना चाहता था।क्यो कि इस सवाल जबाव के सिलसिले में कई ऐसी बाते भी लिखनी पड़ेगी जो मेरे विचार के विपरीत हैं।

सबाल जबाव का सिलसिला शुरु करने से पहले एक सूचना आप सबो को दे दे।जेएनयू देश की सर्वक्षेष्ठ शिक्षण संस्थान हैं लेकिन निरुपमा मामले में यहां पढने वाले छात्रो की जो भूमिका रही हैं। उसमें मुझे यह स्वीकार करने में तनिक भी गुरेज नही हैं कि जेएनयू कैम्पस संक्रमण काल से गुजर रहा हैं।मैने भी जेएनयू को काफी करीब से देखा हैं आज तक ये मैंने नही देखा कि किसी मुद्दे पर एक पंक्षीय बयान जारी किया हो।स्थिति इतनी बुरी हैं कि अगर कोई पत्रकार इस मसले पर हत्या के एंगल के विपरीत कोई स्टोरी भेजता हैं तो उसे नौंकरी से निकाल देने की धमकी दी जाती हैं।

यह सही हैं कि अच्छे संस्थान मैं पढे हैं।और दिल्ली में रहते हैं तो उनकी पकड़ अधिक होगी हैं, लेकिन इसका यह मतलव नही हैं कि दिल्ली में पत्रकारिता करने वालो की समझ दरभंगा और कोडरमा जैसे जगहो पर काम करने वाले पत्रकारो से बेहतर ही हो।दरभंगा मे छात्र संगठनो ने प्रियभाशु के आचरण पर सवाल खड़े करते हुए प्रतिवाद मार्च निकला था इस खबर को जिस रिपोर्टर ने भेजा उसे नौकरी से निकाल देने की धमकी दी गयी और आज एपवा के बैंनर तले सैकड़ो महिलाये प्रियभशु के घर पर हल्ला बोलने जा रही हैं।यह उदाहरण इसलिए दिया गया हैं कि मीडिया में दोनो पंक्ष आना चाहिए लेकिन जिस तरीके से एक पंक्षीय बाते चल रही हैं वह मीडिया के एथिक्स के साथ साथ जेएनयू के कल्चर के विरपित हैं।मुझे भी दर्द हैं एक होनहार पत्रकार हमारे बीच से चली गयी लेकिन इसका यह कतई मतलब नही हैं कि जिस झझांवत के कारण उन्होने जान दी उसको दरकिनार कर एक नयी थ्योरी गंढ दे।

निरुपमा की मौंत के लिए सिर्फ और सिर्फ पाखंडी पिता और बुजदिल पति प्रियभाशु जिम्मेवार हैं।आपको पता नही दिल्ली में जहां निरुपमा और प्रियभाशु रहता था।अपने परिवार को ही नही जिस मकान में रहता था या यू कहे जिस समाज में रहता था उसे भी धोखा दे रहा था।दोनो एक ही मकान में रहते थे लेकिन दोनो का कमरा दो था क्यो भाई जब आप एक दूसरे को पति पत्नी मान लिए तो फिर दो कमरे में रहने नाटक करने की क्या जरुरत थी ।किसका डर आपको सता रहा था।वही दूसरी बात जिस भोले पन में कह रहे हैं कि मुझे पता ही नही था कि निरुपमा गर्भवती थी।क्या इससे बड़ा भी कोई झूठ हो सकता हैं।निरुपमा तीन माह की गर्भवती हैं और भोलू प्रियभाशु को पता नही हैं।

अब जो सवाल किये जा रहे हैं उसका जबाव भी देख ले-----

1-एक सवाल बड़ी जोर से उठा की प्रिभायशु निची जाति के थे इसलिए निरुपमा के माता पिता शादी करने को राजी नही थे।आपकी जानकारी के लिए बिहार में कायस्थ या लाला जाति उच्ची जाति माने जाते हैं।बड़े ओहदे से लेकर नीचे ओहदे तक सरकारी अधिकारी की संख्या अनगिनत हैं।इसलिए प्रियभाशु जाति गत आधार पर सहानुभूति के पात्र नही हैं।

2-मोबाईल गायब करने और निरुपमा के माता के बार बार बयान बदलने के बारे में तथ्य यही हैं कि पंडित जी की नाक न कट जाये इसके लिए ये सब किया गया ।क्यो कि बिहार झांरखंड में कुउरी बेटी के फांसी लगाने की बात को समाजिक रुप से काफी घृणित माना जाता हैं इतना घृणित की इससे बेहतर होता बेटी डोम से शादी कर ले।रही बात मोबाईल गायब करने की तो उससे फायदा क्या मिलने वाला हैं।सारा कुछ डिटेल्स में निकल सकता हैं।

3-पार्वती अस्पताल ले जाने वाले निरुपमा के सभी पड़ोसी थे उससे एसपी ने पुछताछ भी किया और कई ने मीडिया के सामने भी अपनी बात रखी हैं वही घटना के दिन निरुपमा के सभी रिश्तादार अपने अपने डियूटी पर मौंजूद थे कोडरमा पुलिस तहकिकात कर आ गयी हैं।पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने वाले डांक्टर ही जब कह रहा कि मैने पहली बार पोस्टमार्टम किया हैं तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता हैं कि उसने क्या किया होगा।

4-जिस चिन्ह की बात कर रहे हैं वह महज खरोच हैं कोई हार्टबलंट इनजूरी नही हैं।रही बात साक्ष्य को छुपाने की तो उसकी सजा उसकी माँ भूगत रही हैं।

5-मोबाईल से जुड़े सवालो के बारे में मेरा कहना हैं कि 22अप्रैल से 28अप्रैल तक निरुपमा अपने दिल्ली के कई मित्रो से दर्जनो बार बात की हैं।लेकिन एख भी बार प्रियभाशुसे बात नही की हैं,इस पर सवाल क्यो नही उठाया जा रहा हैं।दूसरी बात जो सबसे महत्वपूर्ण हैं जितने एसएमएस के बारे में दिखाया जा रहा हैं उनमें से अधिकांश मेसेज सेभ ब्कांस में हैं आप सब मोबाईल यूजर हैं साधारण सवाल हैं मैसेज बांक्स में मैसेज रहता हैं कि सेभ ब्कांस में ।सेभ ब्कांस में रखे मैसेज को मैं ट्रेपिंग कर सकते हैं।यही कारण हैं कि दिल्ली पुलिस के ऐसपेसल सेल ने जब मोबाईल का प्रिंट आउट के साथ साथ मैसेज की जांच प्रारम्भ की तो कई जगह ट्रेम्परिंग नजर आयी जिसके कारण प्रियभाशु का मोबाईल शीज कर पुलिस इसकी जांच सर्बर विशेषज्ञ से कराने जा रही हैं।मोबाईल प्रिंट आउट में जो बाते सामने आयी हैं उसमें 28अप्रैल की शाम 4बजकर 45मिनट से लगभग 5बजे तक निरुपमा और प्रियभाशु के बीच बातचीत हुई हैं और उसके बाद निरुपमा के मोबाईल से कोई फोन नही हुआ हैं।इस बातचीत के बारे में प्रियभाशु कुछ भी बोलने को तैयार नही हैं क्यो कि मोबाईल के प्रिट आउट आने से पहले तक प्रियभाशु निरुपमा से बातचीत होने से साफ इनकार कर रहा था।

6-सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि जिस शोसाईड नोट को लेकर मीडिया तरह तरह का सवाल उठा रहा हैं उनसे मैं जनाना चाहता हू कि निरुपमा के हेडराईटिंग को सबसे करीब से जानने वाला प्रियभाशु और उसके दोस्त हैं उनके पास निरुपमा का लिखा काफी कुछ होगा क्यो नही मीडिया के सामने लाता हैं।ऐसा करने से इसलिए बच रहे हैं कि सोसाईड नोड की लिखावट निरुपमा की हैं रही बात तारीख पर ओभर राईटिंग का तो जिस दौड़ से वह गुजर रही थी कुछ भी कर सकती थी।

7-प्रियभाशु जो तर्क दे रहे हैं और उनके समर्थन में जो तर्क आ रहा हैं उन सबो से मेरा एक ही सबाल हैं।तीन माह की गर्भवती निरुपमा को शादी करने से कौन रोक रहा था। जिनके प्यार को समर्थन करने वाले इतने सबल हाथ मौजूद हो उसकी कौन सी मजबूरी थी जो माता पिता की सहमति के बाद शादी करना चाहती थी।माँ बिमार हैं उस सूचना पर निरुपमा कोडरमा आती हैं और शादी से इनकार करने पर उसकी हत्या कर दी जाती हैं। क्या यह सम्भव हैं वह भी एक पत्रकार के साथ।

और दूसरा सवाल जब निरुपमा से प्रियभाशु की बात नही हो रही थी और जो मैसेंज दिखलाया जा रहा हैं उससे लगता हैं कि उसकी प्रेमिका मुसीबत में हैं तो जो पहल निरुपमा के मरने के बाद प्रियभाशु औऱ उसके दोस्तो ने किया वह पहल तो उसके जिंदा रहते भी किया जा सकता था।जिस तरीके से आज पूरे मशीनरी को अपने पंक्ष में करने पर मजबूर कर रहे हैं उससे काफी कम मेहनत में निरुपमा को कोडरमा से दिल्ली माँ और बाप के चंगुल से छुड़ाकर लाया जा सकता था निरुपमा कोई बच्ची तो थी नही।क्या इस सबाल का जबाव प्रियभाशु औऱ उसके दोस्त के पास हैं जो आज घड़ियाली आशू बहा रहा हैं।

सोमवार, मई 10, 2010

मदर्स डे—जेल से निरुपमा के लिए एक बड़ी सौगात लेकर आयी हैं माँ


पता नही किसने मदर्स डे बनाया था जिन्होने भी बनाया होगा उसने कभी सपने में भी नही सोचा होगा कि एक दिन ऐसा भी आयेगा जब कोई माँ अपनी बेटी की हत्या के जुल्म में जेल जायेगी।कल जब मदर्स डे के दिन निरुपमा की माँ पेय रोल पर जेल से बाहर आ रही थी तो, मैं यही सोच रहा था कि माँ की इस स्थिति पर निरुपमा क्या सोच रही होगी।----


निरुपमा के मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट को लेकर जो हाई तौंबा मचा रहे हैं।उनसे मेरी एक सलाह हैं खासकर इस मामलो से जुड़े मीडिया,पुलिस और डांक्टर से, कृपया कर डां के0एस0नरायण रेडी की बुक द इन्सटाईल्स ओफ फोरेन्सिंक मेडिसीन एन्ड टोभीकोलोजी के चेपटर 14 के पेज संख्या 276से 308 के बीच पढे जिसमे हेंगिग के मामले में विस्तृत तरीके से लिखा हैं।इसका अध्यण करे यह किताब आज की तारीख में पोस्टमार्टम का बाईबिल माना जाता हैं।भारत ही नही अमेरिन डांक्टर भी हेंगिंग के मामले में इस बुक का रिफरेन्स देने से परहेज नही करते हैं।इस किताब में हेंगिंक को लेकर कई तरीके से लिखा गया हैं किस परिस्थिति में हत्या होगा और किस परिस्थिति में आत्महत्या माना जायेगा।

निरुपमा के मामले में सिविल सर्जन जो तर्क दे रहे हैं कि गले की हडडी नही टुटी हुई नही हैं दम घुटने के कारण इसकी मौंत हुई हैं जो हत्या का लक्षण हैं।ब्लांक पर दिये गये हेगिंग से जुड़े फोटो संख्या चार को देखे जिसमें फांसी लगाने वाला व्यक्ति फांसी लगाकर सिर्फ अपना सिर नीचे कर लिया हैं।इस स्थिति में फांसी लगाने पर व्यक्ति की मौंत दम घुटने से होती हैं और गले की हडडी नही टुटती हैं।पुलिस को जो अभी तक साक्ष्य मिला हैं उसमें निरपमा पहले पखे से अपनी आढनी बांधी हैं औऱ फिर ओढनी को अपने गर्दन में बांध कर पलग पर बैंठ गयी और सिर झुका दी जिसके कारण उसकी माँ आसानी से फंदा भी खोल ली और मौंत का कारण पोस्टमार्टम में दम घुटना आया हैं।ये जो कहा जा रहा हैं कि उस रुम में न तो कोई स्टुल मिला हैं जिसके सहारे निरुपमा खड़ी होती यह सही हैं लेकिन डाक्टर के सामने जो चीजे पोस्टमार्टम के दौरान सामने आया उसकी विस्तृत विवरण के बाद मौंत के कारणो पर विशलेशन करती तो ये बाते सामने आ जाती हैं।डाँ0जिस फर्मूला के आधार पर निरुपमा की मौंत को हत्या बता रहा हैं वह बेहद सिम्पल थ्यूरी हैं प्रैकटिस में पूरे बिहार ही नही पूरे देश में खासकर जिला अस्पताल में यही थ्योरी चलती हैं।जिसके कारण यह विवाद पैंदा लिया हैं।इस विवाद से सीखने की जरुरत हैं यह नही की जिस थ्योरी को लेकर अपनी बात रख दिया हैं उस पर अंतिम तक कायम रहे।मीडिया के बंधुओ से तो विशेष कर विनती हैं की इस तरह के मामले में ओपेनियन देने से पहले विशेषज्ञो से पूरी बहस कर ले और हो सके तो इससे सपोर्टिंग किताब का अक्सर अध्यण करते रहे खासकर जो क्रायम रिपोर्टिग करते हैं।

यह वाकिया मुझे इसलिए याद हैं कि चार वर्ष पहले इसी तरह अपहरण के दो कैंदी की मौंत थाने के हाजत में समस्तीपुर में हो गयी थी।पुलिस हाजत मैं सीधे सीधे थानेदार सहित थाने के सभी पुलिस हत्या के अभियुक्त हो गये उस वक्त जमकर हंगामा हुआ था नीतीश कुमार की सरकार बनी थी और अतिपिछड़े वर्ग के दो लोगो की मौंत भी हुई थी।मीडिया ने जमकर हंगामा किया था।एक रात करीब 11बजे उस वक्त में दरभंगा में पोस्टेड था उसी आरोपी थानेदार का फोन आया औऱ कहां मैं आपके मकान के नीचे हैं जरा मिलना चाहते हैं।मैंने उपर बुलाया उसने मुझे फोरेन्सिंक विभाग से जुड़े कई किताबो का जिरोक्स दिया जिसमें हेंगिग को लेकर विस्तृत जानकारी दी गयी थी।साथ ही कहा कि पुलिस हाजत में जिन दो कैंदी की मौंत हुई हैं वह दोनो से अपनी लुंगी को फारकर गले में बांधा और हाजत के लोहा में बांधकर बैंठ गया जिसके कारण उसकी मौंत हो गयी हैं हमलोगो ने उसकी हत्या नही की हैं जबकि वह खुद आत्महत्या किया हैं।मैने कहा इसके लिए भी तो आपही लोग दोषी हैं।खेर दूसरे दिन पूरे कागजात को लेकर दरभंगा मेडिकल कांलेज के फोरेन्सिक डिपार्टमेंन्ट के हेड एस0के0पी0सिंह से मिला उन्होने कहा कि इस तरह के साक्ष्य में हत्या लिखना पूरी तौर पर सही नही होता हैं।और इस मामले में पुलिस द्वारा संकलित साक्ष्य और पंचनामा को ज्यादा महत्व दी जानी चाहिए।क्यो कि इस तरह के सिम्टम में दोनो बाते हो सकती हैं।मैंने उनकी बाईट लेकर खबर बनायी कि ताजपुर थाने में कैंदी की हुई मौंत हत्या नही आत्महत्या भी हो सकती हैं।खबर को लेकर विवाद भी हुआ लेकिन इस मामले में गठित जांच टीम ने इस मसले को भी अपनी जांच में शामिल किया हलाकि यह मामला आज भी चल ही रहा हैं।वही इस मामले में ताजा खबर यह हैं कि प्रियभांशु के वे सभी मित्र जो इसकी वकालत कर रहे थे दिल्ली से फरार हो गये हैं।मेरे सुत्र की माने तो इस मामले में कांलेज के शिक्षक प्रधान से भी पुछताछ होनी चाहिए जिन्होने इस मामले को लेकर बड़ी हाई तौबा मचायी हैं इनकी भूमिका के बारे में इसी कांलेज के छात्रो ने कई तरह की बाते बतायी हैं।

शनिवार, मई 08, 2010

निरुपमा की मौंत ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं।

निरुपमा मामले में ब्लांग पर जारी बहस को लेकर सबसे अधिक व्यथित मेरे सहकर्मी हैं।पिछले 24घंटो से उनका गुस्सा झेल रहा हूं।बहस थमने का नाम नही ले रहा हैं एक से एक तर्क दिया जा रहा हैं सबो की इक्छा हैं कि ब्लांग पर मीडिया को लेकर जो लिखा गया हैं उसे तत्तकाल हटा दिया जाये।इस बहस के दौरान ही कुछ वरिष्ठ साथियो ने एक प्रयोग करने की सलाह मुझे दी ।उन्होने कहा कि निरुपमा को लेकर जिस सच को तुमने उजागर किया हैं वाकई बहुत अच्छा काम हैं लेकिन खबर की दुनिया में इसका कोई मार्केट भेल्यू नही हैं।मैंने कहा इसमें दम नही हैं।मेरे इस आलेख पर सबसे अधिक लोगो की प्रतिक्रिया आयी हैं और एक हजार से अधिक पाठक इस खबर को पढने मेरे साईट पर आये।बहस के दौरान हमारे बीच उपस्थित एक वरिष्ठ मित्र ने एक प्रयोग करने की सलाह दी।उन्होने कहा कि आज भी तुम्हारे पास बहुत अच्छा मेटेरियल हैं उसको लिखो साथ में किसी लड़की का भलगर फोटो खबर के साथ ब्लांग पर लगा तो उसके बाद जो परिणाम आयेगा उस पर बहस होगी और उसके बाद तय होगा।मैं बैठ गया खबर लिखने वही हमारे मित्र गुगल पर फोटो खोजने लगे।आधे धेटे बाद मेरी स्टोरी पूरी हो गयी लेकिन जब स्टोरी के साथ फोटो लगाने की बात आयी तो मैने फोटो पर आपत्ति दर्ज किया ।लेकिन कहा गया की दो घंटे के लिए इसे ब्लांग पर आने तो दो उसके बाद जो परिणाम आयेगा उस पर बहस के बाद हटा दिया जायेगा।ब्लांग पर डालने के बाद सभी अपने अपने काम पर निकल गये ।लेकिन दो घंटे बाद जब ब्लांग खोला तो मैं हैरान था पांच सौ से अधिक लोग ब्लांग पर आ चुके थे और जिन चार लोगो की प्रतिक्रिया आयी उन्होने भी ब्लांग पर लिखी गयी बातो पर प्रतिक्रिया देने के बाजाय लड़कियो के न्यूड फोटो को लेकर प्रतिक्रिया दी,हलाकि कौशल जी जैसे लोगो ने नसीहत भी दी लेकिन जिस तहर का रिसपोन्स इस पेज को लेकर था वाकई शर्मसार करने वाली थी ।अब बहस शुरु हुई और एक समय मुझे चुप होना पड़ा कि मीडिया व्यवसाय करती हैं लोग क्या पढना चाहते हैं और क्या देखना चाहते हैं इससे समझा जा सकता हैं टीआरपी का खेल यही हैं।सारे क्षेत्रो में नैतिक पतन हुआ हैं तो यह क्षेत्र कैसे अछुता रह जायेगा।इसी समाज में पले बढे लोग इस प्रोफेसन में हैं तो उनसे बेहतरी की बात सोचना ही बेमानी हैं।इस तर्क के बाद में चुप हो गया लेकिन मैंने इतनी बात जरुर कहा जहा तक सम्भव हो सच्चाई को सामने लाने के लिए सिस्तम से लड़ना चाहिए कोई और नही तो ब्लांग पर ही लिखेगे।ब्लांग पर फोटो लगाने के काऱण अगर किन्ही को हर्ट पहुचा हैं तो उसके लिए मुझे क्षमा कर देगे।------

निरुपमा मामले में आप सबो की मुहिम रंग लाने लगा हैं।प्रियभाशु पर सिंकजा कसने लगा हैं औऱ कोडरमा एसपी इस मामले में नये सिरे से अनुसंधान प्रारम्भ कर दिया हैं।निरुपमा मामले में जारी खोज के तहत कल निरुपमा के घर के आस पास के लोगो से बात करने का प्रयास किया, जहां नये लोगो को देखते ही मुहल्ले वाले अपने घर के खिड़की और दरवाजे बंद करने लगते हैं। निरुपमा के घर जाने वाली गली का नामाकरण हत्यारिण माँ गली कर दी गयी हैं। लेकिन जैसे जैसे मुहल्ले वाले खुलते गये लगा यह मामला तो पूरी तौर पर ओपेन हैं। और इसको लेकर इतने कयास क्यो लगाये जा रहे हैं। मुहल्ले वासी को दुख हैं तो मीडिया की भूमिका को लेकर जिन्होने निरुपमा के परिवार को दोहरी मार दी हैं।बातचीत शुरु हुई तो सबसे पहले निरुपमा के सबसे नजदीक के पड़ोसी 75वर्षीय काली महतो अपनी बात रखने लगे इन्होने बताया हैं कि निरुपमा से उनकी भेट 29तारीख के सुबह 8बजे हुई थी। मैने अपने बगान से खीरा तोड़ कर निरुपमा को दिया था। उस वक्त निरुपमा थोड़ी उदास जरुर दिखी मैंने पुछा भी सब कुछ ठिक ठाक हैं न।थोड़ी देर बाद उसकी माँ के चिल्लाने की आवाज आई मेरे घर से और आसपास के घर से लोग दौंड़ कर गये तो लोग देख रहे हैं कि निरुपमा पंखे से लटकी हैं और उसकी माँ उसे उतारने का प्रयास कर रही हैं।वही उसकी माँ चिल्ला चिल्ला कर केरंट लगने की बात कर रही थी। तो हल्ला सुनकर मुहल्ले के कई नवयुवक भी पहुंच गये ।और आनन फानन में पड़ोसी के गांड़ी से पास ही स्थित पार्वति निर्सिग होम में ले जाया गया जहां डां0ने देखने के बाद उसे मृत घोषित कर दिया।फिर वही लोगो जो निरुपमा को निर्सिग होम ले गये थे उसकी लाश लेकर वापस मुहल्ले में आ गये।उसके बाद निरुपमा की माँ के मोबाईल से उसके एक दूर के रिश्तेदार जो कोडरमा में ही रहते हैं उनको फोन किया गया उनके आने के बाद वे निरुपमा के पिता,भाई मामा और चाचा को फोन किये।कुछ ही मिनटो में यह खबर आसपास के मुहल्लो में भी फैल गयी और लोगो के आने जाने का सिलसिल जारी हो गया।






इसी दौरान पुलिस भी आयी और लाश देखकर चली गयी, यह कहते हुए की निरुपमा के पापा लोग आये तो पुलिस को सूचना दे देगे।लेकिन दोपहर होते होते दिल्ली से जो खेल शुरु हुआ उसके सोर में यह सच कही गुम हो गयी और देखते देखते पूरा माजरा ही बदल गया।जन्मदायी मां हत्यारिन माँ हो गयी।पूरी घटना के बारे में निरुपमा के पड़ोसी प्रवीण सिन्हा उनकी पत्नी,नरायण सिंह और कामेश्वर यादव ने यहा तक कहा कि पुलिस घटना स्थल पर आये तब न सच क्या हैं लोग बतायेगे।



इस पूरे प्रकरण की सूचना एसपी को दी गयी, और दोपहर बाद एसपी खुद मामले की जांच करने निरुपमा के घर पहुंचे।इस सच से रुबरु होने के बाद लगता हैं एसपी के विचार में भी बदलाव आया हैं।वही दूसरी और कोडरमा पुलिस को निरुपमा के मोबाईल का प्रिन्टआउट मिल गया हैं।सबसे चौकाने वाली बात यह हैं कि निरुपमा की 22अप्रैल से 28अप्रैल के बीच प्रियभाशु से एक बार भी बात नही हुई हैं। जबकि इस दौरान निरुपमा दिल्ली के अपने कई मित्रो से बात की हैं।28तारीख को शाम चार बजे निरुपमा और प्रियभाशु के बीच लगभग 15 मिनट बात हुई और उसके बात निरुपमा का मोबाईल स्वीच आंफ हो गया हैं।



ऐसा इसलिए लगता हैं कि उसके बाद कोई कांल निरुपमा के मोबाईल पर नही आया हैं और ना ही किया गया हैं।



इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद सबसे बड़ा सवाल यह हैं कि आखिर कौन सी बजह थी जो निरुपमा और उसके तथाकथित प्रेमी के बीच एक सप्ताह तक बातचीत नही हुई और जब बातचीत होती हैं तो उसके बाद उसका मोबाईल स्वीच आंफ हो जाता हैं और सुबह उसके हत्या होने की बात सामने आती हैं।



प्रियभाशु भले ही मीडिया के सामने यह कह रहा हैं कि न्याय के लिए कही भी जाने को तैयार हैं लेकिन एक सप्ताह तक दोनो के बीच बातचीत नही होने को लेकर पुछे गये सवालो का वे जबाव नही दे पा रहा हैं।



हलाकि पुलिस को निरुपमा के हत्या के मुकदमो को आत्महत्या में बदलने को लेकर कई कानूनी अरचने हैं।वही इस मामले में दोषी को सजा दिलना तो और भी मुश्किल हैं।लेकिन मामले के पूरी तौर पर सामने आने से हत्यारिन माँ की कंलक झेल रही निरुपमा की माँ को थोड़ी राहत जरुर मिल सकती हैं।



लेकिन इस स्थिति के लिए उन्हे माफ नही किया जा सकता क्यो कि निरुपमा के इस स्थिति से उबारने में एक माँ के रुप में वे विफल रही हैं।खैर इस मामले को औऱ इमोशनल बनाने की जरुरत नही हैं।लेकिन देर से ही सही अब मीडिया का रुख भी बदलने लगा हैं।

शुक्रवार, मई 07, 2010

निरुपमा मामले में आँनर किलिंग साबित करने वालो के लिए बूरी खबर हैं।

देशी मछली देशी मुर्गा और विदेशी वियर के सहारे निरुपमा मामले में आँनर किलिंग प्रमाणित करने को लेकर कोडरमा के सेन्ट्रल एसक्वायर होटल में ठहरे मीडियाकर्मीयो के लिए बुरी खबर हैं।


प्रियभांशु और मीडिया के टारगेट नम्बर एक निरुपमा के मामा और चाचा के विरुध कोडरमा पुलिस को कोई साक्ष्य नही मिला हैं।यू कहे तो इन लोगो के पास ऐसे अकाट्य साक्ष्य हैं जिसको पुलिस नजरअंदाज नही कर सकती।पिछले 24घंटे से निरुपमा के माम और चाचा के साथ पुछताछ में जो तथ्य सामने आये हैं उसके अनुसार दोनो को सूचना निरुपमा की माँ ने मोबाईल पर दी थी।कोडरमा पुलिस को उम्मीद थी की मोबाईल के टावर लोकेसन से पूरे मामले को उदभेदन हो जायेगा।

लेकिन मोबाईल के टावर का लोकेसन बिहार के बाढ से मामा का शुरु होता हैं और निरुपमा के दोनो भाई के मोबाईल का टावर लोकेसन मुबंई और बगलुरु दिखा रहा हैं।इसी तरह चाचा के मोबाईल का लोकेसन बिहार का गया दिखा रहा हैं।कोडरमा पुलिस की एक टीम मुबंई गयी थी और एक टीम उत्तर प्रदेश के गोंडा गयी हुई थी जांच के दौरान यह तथ्य सामने आया हैं कि निरुपमा के पिता और भाई दोनो अपने आफिस में घटना के दिन मौंजूद थे।

अब सवाल यह उठता हैं कि निरुपमा के घर में सारे रिश्तेदार को जोड़े तो पाच पुरुष उसके परिवार में हैं जो सभी के सभी घटना के दिन कोडरमा में नही हैं।तो फिर किसने निरुपमा की हत्या की, क्या 55वर्ष की बिमार मां अकेले निरुपमा की हत्या कर दी।इस सवाल के सामने आने के बाद कोडरमा पुलिस की नींद हराम हैं कि अगर निरुपमा की हत्या हुई तो इसको अंजाम किसने दिया।

लेकिन इस मामले का जो सबसे मजबूत पहलु हैं वह हैं डाक्टरो का विरोधाभासी बयान। जब डांक्टर यहा तक कह रहे हैं कि मुझे पोस्टमार्टम करने के बारे में जानकारी नही थी और पहली बार पोस्टमार्टम कर रहा था और मामला हाई प्रोफाईल होने के कारण जल्दी से जल्दी पोस्टमार्टम रिपोर्ट देने के हरबरी में कई साक्ष्यो छुट कहे।जब डांक्टर यहां तक स्वीकार कर रहे हैं तो ये भी तो हो सकता हैं कि इन्होने आत्महत्या और हत्या को लेकर जो साक्ष्य बर्डी में रहता हैं उसका आकलन सही नही कर पाये।

जिसके कारण इन्होने आत्महत्या को हत्या करार कर दिया जिसकी सम्भावना अब अधिक दिख रही हैं।मामला जो भी हो लेकिन कोडरमा पुलिस को पूरी सावधानी से मामले की जांच करनी होगी। क्यो कि एक पंक्ष जो मामले को हत्या साबित करने में लगा हैं औऱ उसमें कुछ हद तक कामयाब भी रहा हैं उसके प्रभाव से कोडरमा पुलिस को मुक्त होने की जरुरत हैं।

इस पूरे प्रकरण का सबसे दुखद पहलु यह हैं कि कोडरमा में जुटे मीडिया के कर्णधार यह सब जानने के बाद भी खामोस हैं क्यो कि इन तथ्यो को दिखाने के बाद उनकी आँनर किलिंग की थियूरी फलोप कर जायेगी।

इस मामले में जैसे जैसे जानकारी सामने आती रहेगी मेरा प्रयास होगा कि उसे आपके पास शीघ्र से शीघ्र से पहुंचाये।मेरी पूरी कोशिश हैं कि इस मामले का पूरी तौर पर उदभेदन हो औऱ इसमें शामिल अपराधी चाहे वो कितना भी बड़ा क्यो न हो उसे सजा जरुर मिलनी चाहिए-

गुरुवार, मई 06, 2010

निरुपमा मामला,लगता हैं मीडिया ने आरुषि मामले से सीख नही ली










निरुपमा की हत्या को लेकर पिछले चार दिनो से जारी मीडिया ट्रायल को देख कर लगता हैं कि मीडिया बीते वारदातो से सबक लेने को तैयार नही हैं।इन्हे लगता ही नही हैं कि देश में एक कानून हैं जिससे उपर कोई नही हैं ।जिस तरीके से मीडिया इन दिनो एक्ट कर रही हैं कोई एक व्यक्ति कोर्ट चला गया तो मीडिया का वो हाल होगा जिसकी कल्पना नही की जा सकती हैं।इन्हे लगता ही नही हैं कि इस देश में जो अधिकार एक व्यक्ति को प्राप्त हैं वह अधिकार भी मीडिया को प्राप्त नही हैं।कब तक जनता के हीत के सहारे गैर कानूनी कार्य करते रहेगे।अब तो सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक प्रावधानो को अहमियत देते हुए पोलोग्राफी,नार्गो टेस्ट और ब्रेन मैंपिंग टेस्ट को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया हैं।


निरुपमा के मामले में आंनर किलिंग तो फिर पिता की पाती जैसे शीर्षक को लेकर पिछले कई दिनो से चैंनल और अखबार वाले खबर लिख रहे हैं।खबर का ऐगिल आरुषि,अलीगंढ के प्रोफेसर मामले और भोपाल के स्कूल शिक्षका से जुड़े मामलो की तरह ही एक ही धर्रा पर चल रहा हैं।जिस तरीके से निरुपमा के तथा कथित प्रेमी को आधुनिक भारत के प्रणेता के रुप में मीडिया दिखा रही हैं और कोई विशेष साक्ष्य आये बगैर पूरे मामलो में जिस तरीके से निरुपमा के परिवार वाले को टारगेट किया जा रहा हैं वह बेहद शर्मनाक हैं।

इस मामले को मैं भी काफी करीब देख रहा हू और पोस्टमार्टम रिपोर्ट और लाश के पंचनामा को लेकर जो सवाल अब मीडिया सामने ला रही हैं उसकी खोज मैने ही किया हैं।इस मामले में मीडिया को पार्टी नही बननी चाहिए कई ऐसे विन्दु हैं जिस पर निरुपमा के दोस्त प्रियभांशु रंजन की भूमिका संदिग्ध जान पर रही हैं।अगर मीडिया अपने को जनता का पंक्षधर मानती हैं तो दोनो पंक्ष को सामने लाना चाहिए।मेरा मानना हैं कि निरुपमा की मां जो आज जेल में हैं इसके लिए पूरी तौर पर मीडिया जबावदेह हैं हो सकता हैं मां और मामा ने मिलकर निरुपमा की हत्या की हो लेकिन पुलिस के पास फिलहाल कोई ऐसा साक्ष्य नही हैं। जिससे पूरी तौर पर मां और मामा के द्वारा कांड किये जाने की बात सिद्द होती हो।मामले के नैतिक पंक्ष पर मेरा कुछ भी नही कहना हैं।

निरुपमा की हत्या हुई हैं या फिर निरुपमा ने आत्महत्या की हैं यह पूरी तौर पर साबित नही हो सका हैं।यू कहे तो जो साक्ष्य उपलब्ध हैं उसके आधार पर सौ प्रतिशत हत्या की बात नही कही जा सकती हैं।जिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर निरुपमा की हत्या की बात कही जा रही हैं उसमें भारी चुक हुई हैं या यू कहे तो पूरा पोस्टमार्टम रिपोर्ट ही संदेह के घेरे में हैं। मौंत का समय किसी भी पोस्टमार्टम का मुख्य आधार होता हैं लेकिन उस पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौंत का समय अंकित नही हैं।दूसरा पहलू हैं शरीर पर कही भी कोई इनजुरी नही हैं जबकि डाक्टर कहते हैं कि दो तीन लोग इसको जबरन पकड़कर तकिया से मुह बंदकर मारा हैं।ऐसे मामलो में भेसरा का रखना जरुरी होता हैं।लेकिन भेसरा सुरक्षित नही रखा गया वही दूसरी और जब पोस्टमार्टम मेडिकल बोर्ड कर रही हैं तो पूरे पोस्टमार्टम का वीडियोग्राफी क्यो नही कराया गया।और सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह हैं कि जिस पुलिस अधिकारी ने लाश का पंचनामा तैयारी किया था उसने जो लिखा हैं उसमें गर्दन में जो चिन्ह दिखाया हैं वह नीचे से उपर की और दिखाया गया हैं जो आत्महत्या की और इंकित करता हैं।और इससे भी अहम सवाल यह हैं कि जब डाक्टर को पोस्टमार्टम टेबल पर ही हत्या के साक्ष्य मिल गये तो तत्तकाल पुलिस को इसकी सूचना क्यो नही दी ।जब आपने पाया कि निरुपमा गर्भवती हैं तो उस साक्ष्य को क्यो नही रखा।वही आप यह भी लिखते हैं कि हत्या करने के बाद उसे पंखे से लटकाया गया हैं तो ऐसे हलात में हायड बोन को आपने सुरक्षित क्यो नही रखा।हो सकता हैं कि यह महज मानवीय भूल हो लेकिन इसका लाभ किसको मिला।निरुपमा के मा मामा,पिता और भाई तो जांच के दायरे में हैं ही लेकिन इस फाईडिंग से सबसे बड़ा लाभ प्रियभांशु को मिला हैं।जो आज चीख चीखकर न्याय की गुहार लगा रहा हैं।अब जरा आप एक औऱ पहलु के बारे में जान ले।निरुपमा की मौंत 29तारीख के 10बजे तब प्रकाश में आया जब उसके आस परोड़ के लोगो उसे उठाकर अस्पताल ले गये जहां डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया।11बजे प्रियभांशु का फोन कोडरमा के एसपी के पास आता हैं कि निरुपमा की हत्या की गयी हैं।उसके घर वालो ने ही हत्या की हैं।इस फोन के बाद पुलिस पहुचती हैं औऱ उसके मां से बयान लेने के बाद चली जाती हैं कि कल तक उसके पिता और भाई पहुंच रहे हैं।लाश निरुपमा के घर पर ही रखा रहा ।इस बीच प्रियभांशु के दोस्त अमित कर्ण और हिमांशु शेखर कोडरमा के पत्रकारो को इस मामले के बारे में फोन पर फोन करने लगा औऱ इन दोनो का एक ही सवाल था कि निरुपमा के परिवार वाले दिल्ली से इस मामले को तो नही जोड़ रहे हैं।इसके बाद मीडिया वाले निरुपमा के घर पहुंच कर प्रेम प्रसंग से लेकर कई तरह के सवाल किये लेकिन उसके परिवार वाले कुछ भी बोलने को तैयार नही था।बात बनती नही देख इन लड़को ने कांलेज संगठन के पैड पर लिखकर एसपी कोडरमा और सिविल सर्जन कोडरमा को फैक्स कर निरुपमा की हत्या की आशंका जताते हुए मेडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने का आग्रह किया।उसी आधार पर निरुपमा का पोस्टमार्टम मेडिकल बोर्ड से कराया गया।इस पूरे मामले में जो अहम सवाल हैं वह हैं कि प्रियभांशु को निरुपमा की हत्या की जानकारी एक घंटे के अंदर कैसे हो गयी जबकि इसकी खबर स्थानीय मीडिया तक को नही थी।दूसरी बात निरुपमा के दिल्ली स्थित आवास से सारा समान को आनन फानन में उसके दोस्तो ने क्यो हटाया।इन तमाम बिन्दु पर कोडरमा एसपी प्रियभांशु से पिछले तीन दिनो से जाबव मांग रहे हैं लेकिन वह जबाव देने से बचता रहा जिसके कारण पुलिस को पुछताछ के लिए दिल्ली जाना पड़ा हैं।ऐसे कई और विन्दु हैं जिस पर संघन जांच की जरुरत हैं।इस घटना में निरुपमा के परिवार वाले कानून के घेरे में तो हैं ही लेकिन इस पूरे प्रकरण में प्रियभांशु औऱ उसके मित्र के कारगुजारी को भी सामने लाना अहम हैं क्यो कि अभी तक जो इन लड़को के मोबाईल का प्रिंट आउट आया हैं उससे कई राज खुलने वाला हैं क्यो कि कुछ खास नम्बर हैं जिन पर इन लड़को की घंटो बातचीत होती रही हैं।वह नम्बर एक दो नही हैं पाच छह हैं और वे सभी नम्बर लड़कियो के हैं।जब बात बढी हैं तो मीडिया वालो का यह भी दायुत्व हैं कि सिर्फ अधिकार की ही बाते नही होनी चाहिए ।अधिकार के साथ साथ कर्तव्य की भी बात होनी चाहिए क्यो कि जब कोई हाईप्रोफाईल पोस्ट पर तैनात बेटा अपने मा बाप को भूखे मरने छोड़ देता हैं तो आप ही इसे खबर बनाकर हाई तौबा मचाते हैं।दूसरी बात जो काफी गम्भीर बाते हैं समाजिक मूल्यो को तोड़ना ही आधुनिकता की पहचान नही हैं।मीडिया इस मसले पर दोनो पक्षो को मजबूती से रखे तो बेहतर परिणाम सामने आ सकते हैं.

रविवार, मई 02, 2010

ऐ भैया वीर कुंवर सिंह बाबूये साहब हैं

बिहार में इन दिनो जातिये रैली की होड़ मची हैं, इस होड़ में लोगो ने गांधी जी को भी नही बक्शा।बनिया जाति के लोगो ने गांधी के सहारे जातिये गोलबंदी के लिए एक रैली का आयोजन किया हैं जिसके मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं।इससे पहले सहजानंद सरस्वती के बहाने भूमिहारो की रैली हुई जिसमें एक और लालू प्रसाद मुख्य अतिथि थे तो दूसरी और नीतीश कुमार।वही वीर कुंवर सिंह के बहाने राजपूतो को गोलबंदी करने के लिए भी रैली का आयोजन किया गया जिसमें लालू प्रसाद और नीतीश कुमार दोनो शामिल हुए।इसी तरह की रैली बह्रमण जाति द्वारा भी आयोजित किया गया ।और अम्बेदकर के बहाने तो बिहार में पिछले 14अप्रैल से रैलियो की बाढ आ गयी हैं कम से कम पटना मे ही चालीस से अधिक कार्यक्रमो का आयोजन किया गया जिसमें सारे नेता भाग लिये।पिछले महिने राम मनोहर लोहिया और ज्योतिवा फूले के बहाने भी कई कार्यक्रमो का आयोजन किया गया था।


कहने का मतलव यह हैं कि देश के महापुरुषो की जाति जाननी हो तो बिहार आ जाये एक वर्ष में आप कौन से नेता किस जाति के हैं उसका सारा बायोडाटा आपको मिल जायेगा।

यह प्रसंग इसलिए छेड़ रहा हूं कि इस दौरान दो बड़ी बाते हमारे सामने आयी जिससे लगा कि इन राजनीतिज्ञो के कारण बिहार के समाज को कितना नुकसान हो रहा हैं।दो दिन पहले की बात हैं किसी न्यूज के सिलसिले में निकले थे और मोबाईल से कही बात कर रहे थे ।इसी दौरान मेरे पीछे वाले सीट पर बैंठे कैमरामेंन ने बड़ी उत्साहित होकर कहा।ऐ भैया वीर कुवंर सिंह बाबूये साहब हैं हम नही जानते थे।पहले तो मुझे काफी जोर से हंसी आयी और उसके बाद अचानक मैं खामोश हो गया मोबाईल काटा और पीछे मुड़कर कैमरामैंन से पुछा तो क्या हुआ तो बड़ी सहज भाव से कहता हैं नही भैया हम नही जानते थे की वीर कुवंर सिंह राजपूत थे रैली का कभरेज करने गये थे तो वही पता चला कि राजपूत हैं।दूसरी घटना कल की हैं एक मई को महान समाजवादी मधुलमिये की जंयती थी।मधुलमिये रहने वाले तो महाराष्ट्र के थे लेकिन समाजवादी विचार का प्रचार प्रसार बिहार में किये और ये भागलपुर से सांसद भी बने।कल इनकी जंयती ए0एन0सिन्हा संस्थान के छोटे से सभागार में मनाया गया।सभागार की अधिकांश कुर्शिया खाली थी लोग आ जा रहे थे मंच पर कोई ऐसा लीडर मौंजूद नही था जिसे देखकर पहचाना जाय।बाहर आने पर कुछ छात्र खड़े थे जो मधुलमिये के बारे में बड़ी गम्भीरता से बाते कर रहे थे।मुझे अच्छा लगा कि नयी पीढी भी मधुलमिये के विचार धाराओ को लेकर संवेदनशील हैं। लेकिन अचानक मेरा कदम ठहर सा गया उन लड़को में से एक कह रहा था कि बिहार की समाजवादी राजनीत में लोहिया से कही बड़ी भूमिका मधुलमिये की रही हैं लेकिन इन्हे याद करने वाले कोई नही हैं। क्योकि इसकी कोई वैसी जाति नही हैं जिसके सहारे राजनीत की जा सके।नयी पीढी के इन छात्रो की बात सुनकर में हैरान रह गया और मुझे पहली बार एहसास हुआ कि जातिवादी राजनीत ने बिहारी समाज को कितना घायल कर दिया हैं।

क्या वीर कुवंर सिंह ने अग्रेजो से लोहा लेते हुए कभी सोचा भी होगा की बाद के दिनो में इन्हे लोग 1857के क्रांति के नायक के रुप में नही, एक राजपूत होने के नाम पर उन्हे याद किया जायेगा।कभी मधुलमिये के जेहन में यह सवाल उठा होगा कि जिस पिछड़ी जाति के सम्मान की लड़ाई वे लड़ रहे हैं उनकी आने वाली पीढी उनके बलिदान को इसलिए याद नही करेगी कि वे उनकी जाति के नही हैं।

मुझे तो लगता हैं कि हमलोगो ने इतिहास से सबक नही लिया जिस तरीके से समाज को राजनीतिज्ञ जाति और मजहब के नाम पर बाट रहे वह दिन दूर नही हैं जब सौ अक्रमणकारी पूरे देश को रौदते हुए इतिहास को दोहराह दे।