शुक्रवार, अक्तूबर 16, 2009

दवा के साथ साथ मर्ज बढता ही जा रहा हैं


मनुष्य के अंदर अमुमन जो बुराईया होती हैं उससे अभी तक मेरा साकपा नही पड़ा हैं।जन्म से पहले पिता का साया सर से उठ गया लेकिन आज तक कभी एहसास नही हुआ कि पिता मेरे नही हैं। अपनी बहन नही हैं लेकिन आज तक बहन का प्यार नही मिला हो ऐसा कभी नही हुआ।समाज रिश्तेदार और मित्रों का इतना प्यार मिला हैं कि आज भी मैं गैरजबावदेह हुं।बचपन दादा के गोद में गुजरा जहां सुबह होते ही ऐसे लोगो से भेट होती थी जिसके तन पर वस्त्र नही रहता था किसी का भाई बैमानी कर लिया हैं तो किसी को थाने वाला तंग कर रहा हैं तो किसी को शहर का महाजन अधिक सूद मांग रहा हैं। रोजना रोते बिलखते लोगो के बीच मेंरी नींद खुलती थी औऱ दिन भर ऐसे लोगो के बीच रहता था।यहां आने वाला हर कोई दुखिया ही रहता था ।


दादी के पास पहुंचता तो कोई महिला अपने बच्चों के इलाज के लिए पैंसा लेने के लिए बैंठी रहती थी तो कोई पिया के परदेश भेजने के लिए टिकट का पैसा लेने के लिए। कई बार तो ऐसी महिलाये भी आती थी जो कई दिनों से भुखी रहती और एक दो किलो मकई या गेहू की मांग करते हुई दिन भर बैंठी रह जाती थी।मुझे लगता था लोग गरीब क्यों होते हैं पुलिस वाले और ब्लांक वाले गरीब लोगो को ही तंग क्यों करता है।एक दिन की बात हैं एक रिक्शा वाला जो अकसर मुझे घुमाता था वह पूरी तरह से खून से लथपथ भागे भागे दादा के पास आकर गिर गया।दादा जी उसका हाल जानने के बदले उसकी पिटाई शुरु कर दी मुझे लगा यह क्या हो रहा हैं मैं जोड़ जोड़ से रोने लगा और दादा जी इसे मत मारो मत मारो कहने लगा इसी बीच वह रिक्शा चालक मार खाने के दौरान ही मुझे गोद में ले लिया और कहने लगा बाबू चलिए चलिए रिक्शा पर घुमाते हैं। उसके गोद में गया तो मुझे आज भी याद हैं कि उसका मुंह इतना गंदा महक रहा था कि उसके बाद कभी भी उसके गोद में नही गया और ना ही कभी उसके रिक्शा पर बैठा।थोड़ी देर बाद पच्चीस तीस लोग आये साथ में कई महिलाये भी थी।पता चला रिक्शा वाला अपनी पत्नी को मार दिया हैं क्यो कि उसकी पत्नी शराब पीने से हमेशा रोकती रहती थी।मुझे याद हैं कि मैंने दादा से पुछा था शराब क्या होता हैं और यह कैसे बनता हैं पता चला सरकार ही बनाकर बेचती हैं ।तब से शराब के बारे में मेरा जो ख्यालात बना आज तक कायम हैं।

बचपन में मुझसे जो कोई भी पुछता क्या बनोगे मैं गर्व से कहता था नेता बनूंगा लेकिन जैसे जैसे बड़ा होते गया नेता बनने की इक्छा मरती गयी ।बाद के दिनों मैंने देखा जनता नेता से उम्मीद करता हैं कि आप हमारे लिए गलत पेरवी करे ,हमारे नजायज कार्यों का समर्थन करे हम लोगो को लूटे आप मुझे बचाये।गरीब और बेसहारा लोगो का जमीन हड़प ले विधवा के साथ अन्याय करे और उस पाप में आप भी सह भागी बने।अगर आपने ऐसा नही किया तो आपको वोट नही देगे ।जनता के इस व्यवहार को लेकर घर में चर्चाये होनी लगी थी और सामूहिक फैसला हुआ कि अब चुनाव नही लड़ना चाहिए लेकिन चुनाव आते ही लोगो का इतना दवाव पड़ा कि चाचा जी को चुनाव लड़ना ही पड़ा और दादा जी से लेकर अभी तीस वर्ष से लगातार प्रतिनिधुत्व करे रहे मेरे चाचा जी को चुनावी हार झेलनी पड़ी।

इस खेल में वैसे ही प्रपंची लोग शामिल थे जिन्हे कभी जमीन हड़पने या फिर अपराधिक मामले में जेल जाने पर मदद नही किया गया।इस हार के बाद यू कहे तो मेरी आस्था और सम्मान इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से पूरी तरह समाप्त हो गयी।लेकिन बचपन से जिन समस्याओं को देखा उसके समाधान को लेकर मन कभी भी शांत नही रहा दिल्ली विश्वविधालय से पढाई पूरी करने के बाद कई खयालात आये सिविल सर्विसेज की नौकरी का प्रयास किया लेकिन सफलता नही मिली ।कपार्ट जैसी संस्थान से जुड़ने का मौंका मिला लेकिन मुझे लगा कि स्वयंसेवी संस्थान के साथ काम करने या खुद का एनजीओ खड़ा कर लोगो के लिए काम करे इसके लिए फंडिंग को लेकर जो खेल होता हैं उसमें संतोष को पहले मरना पड़ेगा।

काफी सोच विचार कर पत्रकारिता की राह थामी और दिल्ली में पत्रकारिता करने के बजाय गांव से पत्रकारिता की शुरुआत की मेरा कैरियर 1998में प्रभातखबर से शुरु हुई और प्रिंट मीडिया में हिन्दुस्तान अखवार से खत्म हुआ।इस फिल्ड में आने के बाद पता चला कि जिस शोषण के खिलाफ आवाज उठाने आये हैं वह खुद इतना शोषित हैं। लेकिन महज संयोग रहा कि इसका प्रभाव कभी भी मेरे लेखनी पर नही पड़ा शोषण के खिलाफ लिखते रहे और हर दूसरे दिन नये उत्साह के साथ अभियान जारी रखा। लालू के शासन काल में कई बड़े नेता के गिरेवान पर हाथ डाला और सुरजभान जैसे माफिया की धमकी मेरे काम पर प्रभाव नही डाल सका।मेरे उपर फर्जी मुकदमें दायर किये गये लेकिन लेखनी में निष्पक्षता और वेवाकी को देखते हुए बड़े से बड़े अधिकारी ने कभी मेरे स्वाभिमान को ठेस नही पहुंचाया।

आप को जानकर यह आशर्चय होगा कि माफिया तत्वों ने जब कलम पर अंकुश नही लगा सका तो मेरी पत्नी को भी एक मामले में अभियुक्त बना दिया लेकिन जज साहब को धन्यावाद देना चाहुंगा जिन्होने न्यायपालिक के इतिहास में पहली बार अभियुक्ति को गठघड़े में बुलाने के बजाय घर पर आकर जमानत दिये और उस मामले को तुंरत खत्म कर दिया।इस तरह के कई झंझावत झेलने पड़े हैं लेकिन मेरा मानना हैं कि आप अपने लेखनी में निष्पक्ष हैं तो एक से एक भ्रष्ठ आचरण वाले अधिकारी, माफिया,नेता और अपराधी कभी भी आपके काम में बाधा नही डालेगा।जब कभी भी किसी मसले पर कलम उठाया भ्रष्ट से भ्रष्टतम अधिकारी त्वरीत कारवाई कर लोगो को समाज को और कभी कभी गांव को न्याय दिलाया हैं।अगर किसी व्यक्ति के बारे में सीधे जाकर अधिकारी को कहा कि यह व्यक्ति अपराधी नही हैं पुलिस सोचने पर मजबूर हो जाती थी।इसके साथ न्याय नही हो रहा हैं यह कहना ही काफी था कभी किसी ने इसका प्रतिकार नही किया लेकिन इस विश्वास को जनता ने ही तोड़ा और धीरे धीरे यह संर्घष कुंद पड़ने लगा।लेकिन अभी भी वह लड़ाई जारी हैं जिसका एहसास मुझे लोरी की गीत के साथ हुआ था लेकिन इस मर्ज से अब मुक्ति चाहते हैं रात में चैंन से सोना चाहता हूं।आपके पास कोई नुकसा हो तो बताये अभी तक तो स्वस्थय और रोग विहीन बिंदास हूं ।अपने में मदमस्त व्यवस्था से लड़ता रहता हूं जितने ताकत से वार करता हूं उतनी उर्जा मिलती हैं लेकिन अब थोड़ी थकान महसूस होने लगी हैं।चलिए इस पर्व के अवसर पर आपका नींद क्यो हराम करु।दिपावली और छठ की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ एक सप्ताह के लिए अपनी लेखनी को यही विराम देते हैं।आज से 26अक्टूबर तक संचार के अधिकांश संशाधनों से मुक्त होकर गांव जा रहा हूं फिर वही मेंघू बाबा,खल्टू,मधुरी वकिल भुनैया तेतर,मन्ना के पास जो कभी मुझे लोरी सुनाकर कंधे पर बैठाकर मेला घुमाते थे।वक्त गुजरेगा खेत के मेर पर धान की कटनी में और गेहू और मकई के साथ साथ ईख की रोपनी करने में। मेरे दोस्त गांव जाता हू तो पूरी तौर पर किसान का जीवन जीता हूं मजदूर और किसानों से मिलता हूं।लोगो से सुशासन पर बात करता हू सरकारी योजनाओं का हाल जानता हू और उस स्कूल का हाल जरुर जानता हूं जहां से पढकर दिल्ली पहुचा था।

रविवार, अक्तूबर 11, 2009

जहां मुर्दे की भी बोली लगायी जाती हैं


नीतीश जी आपके सुशासन का एक चेहरा देश के सामने लाने जा रहा हूं पढने के बाद आप खुद तय करेगे की लोग आप को दोबारा किस बिनाह पर चुने ।यह सवाल उनके लिए भी हैं जो बिहार में बदलाव की बात सोच रहे हैं और डंके के चोट पर बोल भी रहे हैं। कभी पटना मेडिकल कांलेज देश ही नही दुनिया में ख्याति प्राप्त था आज भी अमेरिका और इंग्लैंड के बड़े मेडिकल कांलेज में यहां से पढे डांक्टर मिल जायेगे।वाकिया दो तीन दिनों पूर्व का ही हैं मेरा आंफ था आराम से घर पर मस्ती कर रहे थे और नानभेज बनने का इंतजार कर रहा था जैसे ही कुकर खुला डाईनानिंग टेबल पर बैठ गया जमकर खाया एक तो डियूटी पर नही जाने का सकुन था दूसरा प्रिय भोजन खाये जा रहा था इस बीच कई बार मोबाईल की घंटी बची लेकिन खाने की मस्ती में घंटी की आवाज मानो कान तक पहुंच ही नही रही थी।खाना खत्म करने के बाद जैसे ही विस्तर पर आराम करने पहुंचा फिर मोबाईल की घंटी बची।मोबाईल की और देखा तो जाना पहचाना नम्बर नही था फिर भी मोबाईल उठाया टुनटुन(मेरे घर का नाम हैं)संजय मामा बोल रहे हैं आवाज पहचानी लग रही थी लेकिन समझ नही पा रहा था कि ये हैं कौन लेकिन संबोधन से समझ गया कि कोई करीबी रिस्तेदार ही होगे मैं हालचाल पुछने लगा इसी बीच इन्होने बोला दतुआर वाले मेहमान जी का ऐक्सीडेन्ट हो गया हैं सुनते ही मेरा होस उड़ गया मैने पुछा आप हैं कहा उन्होने बोला रात में ही पीएमसीएच आये हैं लेकिन कोई डांक्टर ठिक से देख नही रहा हैं कोई प्रायवेट में बेहतर डांक्टर हो तो बताओं।मैं हक्का बक्का था क्यो कि जिस शक्स के बिमार होने की बात की जा रही थी वो हमारे जीजी जी लगते थे और वे हमें गोद में खिलाये हुए थे ।मैं आनन फानन में तैयार हुआ और निकलने से पहले स्वास्थय मंत्री के पीए और पीएमसीएच के एक डाक्टर मित्र को फोन किया संयोग से डाक्टर पीएमसीएच मैं ही मौजूद थे ।जब तक मैं अस्पताल पहुचता मरीज को देखने के लिए डांक्टरों की लाईन लग गयी।भागे भागे मैं जब पीएमसीएच के आईसीयू रुम मैं पहुचा तो देखते हैं डांक्टरों की एक पूरी टीम लगी हुई हैं मेरे मित्र डांक्टर मुझे दिलासा दिला रहे हैं कोई घबड़ाने की बात नही हैं सब कुछ ठिक हो जायेगा।मरीज का हाल देख कर मैं इतना भावुक हो गया कि अंदर पाच मिनट भी नही रुक सका बाहर आकर सीसे से देखने लगा ।इसी बीच एक डांक्टर पहुचता है और 403नम्बर बेड के मरीज के बारे में आईसीयू के इनचार्ज से पुछताछ करने लगता हैं कब भर्ती हुआ क्या क्या ट्रिटमेंट हुआ हैं। सर कल रात को दस बजे हैं भर्ती हुआ हैं डां कस्यप देखे हैं ब्रेन हेमरेज लग रहा हैं पूरी फाईल दिखायों फाईल देखते ही डाक्टर गुस्से में आ गया कल रात में ही मेडिसीन के डांक्टर को देखने का कांल लिखा हुआ हैं अभी तक कोई देखा नही हैं सिस्टर आप लोग क्या रवैये अपनाये हुए हैं तुरंत डांक्टर मनीश पर कांल करो इस मरीज के बारे में स्वास्थय मंत्री पुछताछ कर रहे हैं।यह सब चुपचाप मैं देख रहा था इसी बीच डांक्टर की नजर आईसीयू के अंदर पड़ती हैं सिस्टर अंदर में कौन कौन डांक्टर हैं सर सभी 403 बेड के मरीज को ही देख रहे हैं।तेजी से वे भी अंदर चले गये थोड़ी देर बाद पोर्टेबल एक्सरे मशीन और अल्ट्रा साउड मशीन अंदर जाता हैं और फिर जांच शुरु होती हैं। मैं बाहर खड़ा होकर बेवस सब कुछ देख रहा था थोड़ी देर बाद अंदर से सभी डांक्टर बाहर आये और फिर शुरु हुआ लाईन आंफ ट्रिटमेंन्ट पर बहस। आधे घंटे में पाच हजार से अधिक की दवाये मरीज को लगा दी गयी ।इसी बीच पिछे से किसी के बुलाने की आवाज आयी पलट कर देखा तो सामने मेरी बहन खड़ी थी हलाकि दस वर्ष बाद आमना सामना हो रहा था लेकिन एक बार में ही पहचान गया। मैं अपने आपको संभाल नही पा रहा था लेकिन बहन बात बदलते हुए बोली इसे पहचानते हो गौर से पहचानने का प्रयास किया लेकिन चेहरा समझ में नही आ रहा था अरे यह बेबी हैं वही बेबी जिसके साथ बचपन में खेलते थे।25वर्ष बाद वह सामने थी एक प्रोढ महिला की तरह जिसके बारे में जब भी मैं ननिहाल जाता था जो बहन से भेंट होने पर पुछता था। मिल कर काफी खुशी हुई लेकिन वक्त ऐसा था कि खुशी व्यक्त नही हो पा रहा था।आंखो आंखो में ही एक दूसरे को अपने बचपन की यादे को ताजा करते हुए कुछ कहना चाह रहे थे तभी सिस्टर बाहर निकलती हैं संतोष जी कौन हैं नीचे के रुम में डांक्टर साहब बुला रहे हैं।भागते हुए नीचे गया अस्पताल के कई आला डाक्टर मौंजूद थे मैं अपने मित्र के सामने चुपचाप बैंठ गया तभी एक भारी भडकम आवाज में आयी जो बेहतर ट्रिटमेंन्ट होगा वह सभी किया जायेगा उपर वाले की इक्छा हुई तो ये सकुशल घर जायेगे।मैं अंदर ही अंदर काप रहा था शायद कल रात से ही ट्रिटमेंट होता तो आज यह स्थिति नही होती खैर चुपचाप डाक्टर की बात सुनता रहा।आधे घंटे तक उस रुम में बैठा रहा स्थिति देख कर आत्मा कचोट रही थी पेसेंट का परिवार दौड़ रहा हैं डांक्टर आक्सीजन का पाईस निकल गया हैं डांक्टर साहब मेरा पेसेंट तीन घंटे से दर्द से चिहार रहा हैं कोई देखने वाला नही हैं,डांक्टर साहब देखिये दिखिये मेरे पेसेंट का हालत अचानक बिगड़ गया हैं। सामने बैंठे जुनियर डांक्टर की और देखते हुए जाओं देख लो सीनियर डांक्टर इसी तरह से फरमान जारी करते रहे हर पांच मिनट पर तेज रोने की आवाज आती रहती थी।एक डांक्टर उठा कहा चलो यार यहां पर लोग शांति से बैठने भी नही देगा।यह सब मैं चुप चाप देख रहा था और सोच रहा था यही डांक्टर हैं जिसे लोग भगवान मानते हैं।सभी के सभी सीनियर डांक्टर उठ कर चल दिये। संतोष जी आप भी चलिए यहां पर बैठना मुश्किल हैं शांति से हमलोग बात भी नही कर सकते हैं।तभी एक जुनीयर डांक्टर तेजी से अंदर आता हैं सर उस पेसेंट का बीपी बहुत तेजी से फांल कर रहा हैं समझ में नही आ रहा हैं अरे यार फलाना दवा दे दो जब तक मरीज के परिजन दवा लेकर आता तब तक पेसेंट की मौंत हो गयी यह सब जाते जाते देख रहा था ।मेने अपने मित्र डांक्टर को बुला कर कहा आप लोगो की संवेदना मर चुकी हैं आप कहां रहेगे मैं उपर मरीज को देख कर आ रहा हूं उपर जब मरीज के पास गया तो लगा चमत्कार हो गया सांसे जो इतनी तेज चल रही थी लगभग समान्य हो गया था और चेहरे का रंग बदलने लगा था बीपी,पल्स रेंट और हार्टवीट पूरी तरह समान्य हो गया था बाहर निकल कर फिर डां0 को फोन किया बोले में तुरंत आ रहा हू परिवर्तन देख कर डां0 साहब भी थोड़े आसानवित हुए और बोले आज रात बच गये तो हम लोग रिकभर कर लेगे सही माईने में कहे तो अभी इनका इलाज शुरु हुआ ही हैं।लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मनजुर था जैसे ही मैं घर लौटा फोन आया एक्सपाईर कर गये।भागे भागे अस्पताल पहुंचा रात के 11 बज रहे थे होने लगा कैसे भेजा जाये गांड़ी वाले से बातचीत होने लगी मधुवनी जाने के लिए पांच हजार रुपये से कम कोई भाड़ा नही बता रहा था।तब तक मैं भी अपने को संभाल लिया था।पीएमसीएच पीरवहोर थाने मैं पड़ता हैं याद आया अड़े यहां का थानेदार पूर्व से परिचित हैं रात के बारह बजे उनके मोबाईल पर फोन किया घंटी बजते ही बोल उठे संतोष जी इतनी रात गये क्या बात हैं सारी बात बताया कहां पाच मिनट के अंदर तिवारी जी आपके पास पहुंचे रहे हैं आप वही रहे। पाच मिनट में ही थाने की मोबाईल गाड़ी आ गयी आवाज लगाते ही आपातकालीन सेवा के सामने लगाये हुए गाड़ी में से एक व्यक्ति भागे भागे तिवारी जी के पास पहुचा तिवारी जी कड़क कर बोले ऐ साहब के मित्र हैं तुरत गाड़ी दो सर तेल भरवा दिजियेगा मैं चुपचाप यह सब सुन रहा था मैंने पुछा तिवारी जी यह लुटेरो की बस्ती हैं क्या तिवारी जी बड़ी बेवाकी से कहां सर पीएमसीएच यमराज का घर हैं यहा डाक्टर से लेकर स्वीपर तक लुटेरा हैं।तभी पता चला कि लाश का पोस्टमार्टम होगा क्यों कि मामला ऐक्सीडेन्ट से जुड़ा हैं।इलाज के हड़वड़ी में मैं पुछ भी नही सका था कि कैसे घटना घटी।यह सब बाते हो रही थी कि थाना अध्यक्ष भी पहुंच गये ।वे खुद डांक्टर से बात किये और उसी समय यादव जी को फोन लगाये यादव जी सुबह सुबह आ जाईएगा पहला पोस्टमार्टन इनका होना चाहिए।उसके बाद विचार हुआ जो साथ महिलाये और बच्चा आया हैं उसके भेज दिया जाये क्यों कि पोस्टमार्टम होते होते बाहर बज ही जायेगा।बोलोरो जैसी गाड़ी से इन लोगो को भेजने का फैसला लिया गया बात होते होते सुबह के पांच बज गये थे।पीएमसीएच के सामने वाले टेक्सी ऐसटेन्ड से बात की गयी तो चार हजार से कम में कोई गाड़ी वाला जाने को तैयार नही थी हार कर पटना जग्शन के जीआरपी प्रभारी को फोन किया तुरंत एक गांड़ी 2000हजार रुपये के किराये पर भेज दिया।इन गाड़ी से सभी महिला को भेजवा कर हम भी फ्रेस होने घर आ गये।थोड़ी देर बाद अस्ताल से फोन आता हैं लाश को आईसीयू से निकाल कर मुर्दा घर में रखने के लिए एक हजार रुपया मांग रहा हैं।मैं हैरान रह गया ये क्या बात हुई तब मैंने पीएमसीएच बीट देखने वाले एक रिपोर्टर को फोन किया उसको सारी बाते बतलायी उसने वहां के कर्मचारी नेता का मोबाईल नम्बर दिया और कहा हम बात कर लते हैं।थोडी देर बाद फोन किया नेता का जवाव आता हैं सर यह पहचान नही रहा था लाश को पोस्टमार्ट के लिए भेज रहे हैं।थोडी देर बाद मैं भी अस्पताल पहुंच गया पता चला ये लोग सौ रुपया दे दिये हैं।तभी एक व्यक्ति आया और कहां सर पोस्टमार्टम वाले को आप खुद कह देगे बहुत पैंसा मांगता हैं।तय समय के अनुसार पुलिस अधिकारी बयान लेने आ गये तुरंत बयान की प्रक्रिया पूरी हो गयी मैंने जानने के उद्देश्य से कर्मचारी संघ के नेता से पुछा यह पुलिस वाला कितना लेता हैं सर जी यहां पोस्टींग करवाने के लिए एसएसपी के यहां बोली लगती हैं जैसा मामला होता हैं वैसा उसका रेट होता हैं.।खैर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा नेता से पुछा अब क्या करना हैं उसने कहा चलिए सर अंदर आप ही बात कर ले जैसे ही अंदर गया टेबुल पर कई लाश रखी हुई थी और एक व्यक्ति बड़ा चाकू से लाश का पेट फार रहा था।कहा अईलोहन(आये) नेता जी ऐ सुनों ये पत्रकार साहब हैं पहचाने छिए बोलहो काम क्या हैं।नेता जी सारी बात बतला दिया।कहा आज वैसे ही धन्धा मंदा हैं अभी तक रोज 15से बीस लाश आ जाता था लेकिन आज तो पांच पर भी आफत हैं इसी बीच डांक्टर भी आ गये मैंने अपना पिरचय दिया और आग्रह किया कि लाश को दुर जाना हैं इसलिए थोड़ा कम चीर फार करगे।खैर पोस्टमार्टम हो गया लाश ले जाने की बारी आयी तो मौल भाव होने लगा मैं इससे अपने आप को साफ अलग रखा वह बार बार कह रहा था पत्रकार साहब वाला बात हैं इसलिए दो हजार मांग रहे हैं नही तो चार पाच हजार से कम नही लेते ।ज्यदा मोलभाव करियेगा तो लाश को बिना टांका लगाये दे देगे मैं चुपचाप बाहर यह सब सुनता रहा तभी एक पुलिस अधिकारी आ गया संतोष जी कोई बड़ी घटना घटी हैं क्या नही नही मजरा समझते ही वह धिकारी अंदर गया और कड़क कर कहा लाश को बढिया से टांका लगाकर पैंक करो अचानक सभी लोग चुप हो गये थोड़ी देर बाद देखते हैं लाश को बाहर निकाला जा रहा हैं बाद में मैंने पुछा तो पता चला कि पांच सौ रुपया दे दिये हैं।ये सारी बाते कहने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ यह दिखलाना हैं कि भ्रष्टाचार किस तरीके के कहा कहा जड़ जमाये हुए हैं ।ऐसे हलात में एक ईमानदार आदमी की ईमानदारी बच पायेगी जहां इलाज कराने से लेकर लाश ले जाने तक की किमत तय हैं।यह हालात हैं सूबे की राजधानी पटना में स्थित पीएमसीएच अस्पताल का जिस पर मुख्यमंत्री से लेकर सूबे के तमाम आलाधिकारी की नजर रहती हैं।अब आप ही बताये इस सुशासन का क्या मतलव हैं।





मंगलवार, अक्तूबर 06, 2009

तूती की आवाज के सफर का एक वर्ष

आज से एक वर्ष पूर्व तूती की आवाज के माध्यम से आप सबों से मिलने का मौंका मिला कई अच्छे अनुभव भी हुए टी0वी0स्टार रविश जी जैसे लोगो का प्यार मिला, सागर जैसा पाठक मिला जिन्होने समय समय पर बेहतर सलाह दिया।वन्दना अवस्थी जैसी महिला मित्र मिली जिन्होने महिलाओं से जुड़ी खबरो पर सार्थक सलाह समय समय पर देती रही ।कौशल जी जैसे नीतीश समर्थक भी मिले।इस तरह ब्लांग के इस सफर में कई ऐसे लोग मिले जिन्होने सफर को जारी रखने में काफी मदद की।सुधा गुप्ता, अर्शिया, अजय कुमार झा जैसे मित्र भी मिले जिन्होने समय समय पर हौंसला अफजाई किया। साथ काम करने वाले वरिष्ट प्रबोध जी का सहयोग सराहनीय रहा जिन्होने समय पर समय तकनीकी सहयोग के साथ साथ आलेख पर प्रतिक्रिया भी दिया।हमारे संस्थान के तकनीकि इनचार्ज का भी सहयोग मिला जिन्होने मेरे ब्लांग को साथ काम करने वाले लोगो के कम्पूटर से जोड़ दिया।सबो के प्यार और स्नेह से यह सफर जारी रहा हैं अब तो ऐसा लगने लगा हैं कि भोजन की तरह ब्लांग पर जाना शाररीक और मानसिक जरुरत बन गयी हैं। इसके बगैर जी नही सकते हैं जैसे सुबह सुबह अखबार देखने की बैचेनी रहती हैं उसी तरह रात में सोने से पहले ब्लांग पर जाने की बैचेनी रहती हैं।इस आदत से मेरी पत्नी काफी नराज भी रहती हैं। मेरी पहचान साथ काम करने वालो के बीच ननसिरियस लोगो की श्रेणी में आता हैं हसना और हसाना मेरी पहचान हैं कोई कभी भी गम्भीर बहस के दौड़ान मेरी प्रतिक्रिया पर ध्यान नही देते हैं लोगो को लगता हैं संतोष को बोलने की आदत हैं ।लेकिन तूती की आवाज ने मेरे कई मित्र को मेरे बारे में अलग तरह से सोचने को मजबूर किया हैं।साथ काम करने वाले ऐसे ही एक मित्र जो उर्दु चैनल के बिहार के चीफ हैं महफुज जी एक दिन अचानक मेरे पास आये और धीरे से कहा भाई हम तो आपके फैन हो गये हैं। तूती की आवाज को पढने के बाद आपके बारे में मेरा नजरिया ही बदल गया आप रोजमर्रे की घटना को जिस अंदाज में रखते हैं इसकी सानी नही हैं। इसी तरह की प्रतिक्रिया साथ कार्य करने वाले कुलभूषण जी का भी रहा।मुझे लगा कि ब्लांग बनाने का मेरा मकसद कामयाब हो गया मैंने ब्लांग के माध्यम से वैसे लोगो की लड़ाई भी जीती हैं जिसको लेकर आज का अखबार और टीवी0 चैनल खामोश हैं।दरभंगा की पिक्की जिसे लोगो ने वैश्यामंडी में बेच दिया था ब्लांग पर खबड़ आने के बाद इस तरह भूचाल मचा कि आज इसमें शामिल सभी अपराधी सलाखो के पीछे हैं।इसी तरह कि प्रतिक्रिया बेगूसराय में सरेआम थानेदार द्वारा एक रिक्शा चालक की पिटायी के मामले में सामने आया थानेदार निलम्बित हुआ और रिक्शा चालक पर दर्ज झूठा मुकदमा वापस लेना पड़ा। मैं इसी मकसद के साथ ब्लांग शुरु किया था कि वैसे अंतिम आदमी का आवाज बनकर कार्य करु जिसकी आवाज इस सोर में कही गुम हो गयी हैं।आप सबों का इसी तरह से प्यार मिलता रहा तो यह ब्लांग एक आन्दोलन बनकर बिहार के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।