रविवार, दिसंबर 20, 2009
निरंजन तिवारी के बहाने बिहार को समझने का मौंका मिला
बिहार की आठ करोड़ आवादी निरंजन की तरह सुबह जगने से लेकर रात के सोने तक भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा हैं।लेकिन सत्ता संरक्षित भ्रष्टाचार की जड़े इतनी मजबूत हैं कि कोई इसके भेदने का साहस नही जुटा पा रही हैं,।स्थिति यह हैं कि अधिकांश मामलों में लोग या तो समझौता कर रहे हैं या फिर व्यवस्था में शामिल होकर भ्रष्टाचारियों की राह आसान कर रहे हैं।राजधानी के पत्रकारिता में निरंजन जैसे लोगो से मिलने का मौंका कम ही मिलता हैं।
संयोग से पिछले सोमवार को मुख्यमंत्री के जनता दरवार के कभरेज का मौंका मुझे मिला और इस बार के विषय में शिक्षा भी शामिल था।निरंजन तिवारी से जुड़ी हुई फाईले लेकर मैं सुबह सुबह जनता दरवार पहुचा।शिक्षा विभाग के तमाम आलाधिकारी के साथ साथ मंत्री ,गृह सचिव,निगरानी के एडीजीपी और पुलिस मुख्यालय के एडीजीपी,वी नरायनण मौंजूद थे।मेरे खुशी का ठिकाना नही था लगा कि आज तो निरंजन के लड़ाई का कोई न कोई हल सामने जरुर आयेगा।सबसे पहले मैं गृह सचिव अमीर सुहानी से मिला जरा अमीर सुहानी के बारे में याद ताजा कर ले ये पहले बिहारी हैं जिन्होने यूपीएससी की परीक्षा में पूरे भारत में टांप किये थे।मुझे भी याद हैं उस वक्त में सातवी वर्ग का छात्र था। स्कूल में बच्चों के बीच अमीर सुहानी के बारे में बताया गया था कि किस तरह एक मध्यमवर्ग के लड़के देश के सबसे बड़े इम्तिहान में प्रथम आया हैं।
इसकी प्ररेणा ने बिहार के युवकों में यूपीएससी को लेकर जो क्रेज पैंदा किया वह आज भी कायम हैं।लेकिन इससे मिलकर बड़ी निराशा हुई कहने वाले कहते हैं कि ये पांचों वक्त के नवाजी हैं और इसके इमानदारी की चर्चा आम हैं।जब इनसे निरजंन तिवारी के मामले में सूबे के सबसे बड़े अधिकारी प्रधान सचिव अनुप मुखर्जी के सीबीआई जांच से जुड़े हुए पत्र के बारे में जानना चाहा तो इनका कहना था हमारे पास ऐसे सैकड़ो पत्र आते रहते हैं जिसमें किसी ने थप्पर मारने की घटना का सीबीआई जांच कराना चाह रहे हैं तो कोई अपने पति के मामले में सीबीआई जांच कराना चाह रहे हैं।जब मैंने निरंजन के मामले की गहराही पर सवाल किया तो कहे ऐसे पत्र आते रहते हैं लेकिन जैसे ही मैंने थोड़ी उच्ची आवाज में बोला की इस मामले पर आज मुख्यमंत्री से सवाल करेगे तो आनन फानन में मुझसे फाईल झटक के पढने लगे।कहा मामला तो वाकई गम्भीर हैं चलो देखते हैं यह आपका अपना मामला हैं क्या मैंने कहा नही नही यह व्यक्ति अपनी व्यथा लेकर मुझसे मिलने आया था।जबाव सुनकर साहब जरा कुटील मुस्कान के सहारे कहा देखते हैं।मैने उनसे इस मामले में बाईट लेनी चाही तो कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया।
अब मामले को लेकर राज्य के शिक्षा मंत्री के पास पहुंचा शिक्षा मंत्री हरीनरायण सिंह पूरे विभाग के साथ जनता के दरवार में बैंठे हुए थे।शिक्षा मंत्री को पूरे मामले के बारे में विस्तृत जानकारी दी इन्होने एक एक पत्र को पूरी गम्भीरता से पढा उन्होने कहा मामला वाकई गम्भीर हैं।बाजू में बैंठे शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव अंजनी सिंह से इन्होने कहा देखिये मामला तो वाकई में काफी गम्भीर हैं मंत्री लगातार बोलते रहे लेकिन प्रधान सचिव पूरी बात की अनसुनी करते रहे हार कर मंत्री ने बिहार विधालय समिति के सचिव अनुप कुमार को बुलाया और पूरे मामले की जांच करने का निर्देश दिया।अनुप कुमार साहब ने कहा कि जरा आप सारा पत्र का फोटो कांपी कराकर दे दे।अंदर ही अंदर मुझे गुस्सा भी आ रहा था ।मैंने डीपीआरओ को कहकर सारा फोटो कांपी करवाया और सचिव को दे दिया।तत्तकाल सचिव ने अपने कार्यलय में फोन करके सारे कागजात को निकलवाने का निर्देश दिया।बातचीत के दौरान इन्होने भी यह अहसास दिलाने से बाज नही आये कि आप इतने इन्ट्रेस्टेंट क्यों हैं सब कुछ मैं धेर्य से देखता और सूनता रहा।थोड़ी देर बाद जनता दरवार खत्म हो गया औऱ अब पत्रकारों के सवाल जबाव का सेशन शुरु हुआ।नेशनल मीडिया वाले तेलगंना मामले फिल्म पा और अल्पसंख्यकों के आरक्षंण से जुड़े सवालों का बोछार किये हुआ था क्यों कि उनके लिए बिहार की जनता की व्यथा का कोई मतलव नही हैं।रही बात अखवार वालों की तो उसके जुवान पर मैनेजमेंन्ट का ताला लगा हैं कोई ऐसा मसला नही उठाये जिनसे मुख्यमंत्री कि छवी पर कोई असर पड़े और इसका खामियाजा विज्ञापन पर पड़े।मैने निरंजन का मामला उठाया मुख्यमंत्री पूरे मामले को गम्भीरता से सुने और सूचना विभाग के प्रधानसचिव राजेश भूषण को बुलाया और कहा इनसे मिलकर पूरे मामले को देखे।मैं हतफ्रभ था मामला शिक्षा से जुड़ा हें और बात करने के ले सूचना विभाग के प्रधान सचिव को कह रहे हैं मैं फिर से सवाल दोहराया लेकिन मुख्यमंत्री साहब बीच में ही रोकते हुए कहा राजेश भूषण आपसे बात कर लगे।वार्ता खत्म होने के बाद मैंने देखा कि राजेश भूषण बिना कुछ बात किये हुए अपनी गाड़ी की तरफ बढ गये मैं तेजी से बढा और कहा कुछ बात करनी हैं पलट कर वे इस तरह देखे जैसे मैंने कोई गुनाह कर दिया।अब बात मेरी समक्ष में आयी कि मुख्यमंत्री ने राजेश भूषण को क्यो कहा,राजेश भूषण तय करते हैं कि किस चैनल को कितना विज्ञापन देना हैं और किस अखवार को कितना विज्ञापन देना हैं।खैर मैने हार नही मानी और जंग जारी रखने का फैसला लिया।
इस बीच बिहार विधालय समिति के सचिव जिन्हे जांच का जिम्मा सौंपा गया था उनसे मिलने के लिए बुधवार को उनके दफ्तर पहुंचा उसने मिलने से इनकार कर दिया मुझे लगा क्या बात हैं।मैं भी उनके चैम्बर के सामने डटा रहा थोड़ी देर बाद निकला और भागते हुए अपनी गाड़ी और बढा संतोष जी प्रधान सचिव के यहां बैंठक हैं बाद में मिलते हैं जाते जाते उनसे मैंने निरंजन मामले के बारे में जानकारी मांगी सभी फर्जी हैं और मैंने सभी शिक्षकों को बर्खास्त करने को लिख दिया हैं ।मैंने कहा खबर चला देते हैं कहा नही नही हम आपसे बात करते हैं।शाम में मिलते हैं लेकिन तीन दिनों तक वह मुझसे कटते रहे लेकिन शुक्रवार को मैं बोर्ड के दफ्तर में पहुंच कर जबरदस्ती मिला देखते हैं साहब निरंजन के मामले से जुड़ी फाईल लेकर बैंठे हैं।इन्होने कहा कि फर्जी सार्टीफिकेंट मामले से जुड़ी जांच रिपोर्ट बोर्ड से नही गयी हैं।किसी ने फर्जी सत्यापन पत्र पुलिस को भेजा हैं।सूचना के अधिकार के तहत दी गयी जानकारी सही हैं और सभी शिक्षक जो अभी भी कार्य कर रहे हैं उनकी ड्रिग्री पूरी तरह फर्जी हैं।मैने जांच रिपोर्ट सरकार को भेज दी हैं।थोड़ी राहत मिली चलो मामला एक कदम आगे तो बढा विधानसभा सत्र के कारण शिक्षा मंत्री से बात नही हो पायी हैं।अब आप सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि नीतीश के शासन में ब्यूरोक्रेसी कितनी निंरकुश हैं।(नोट-मामले से जुड़ी पूरी खबर-ये हैं मेरा बिहार,लेख में पढ सकते हैं)
मंगलवार, दिसंबर 15, 2009
ये हैं मेरा बिहार
आज से करीब दस वर्ष पूर्व गांधीवादियों के एक सम्मेलन में भाग लेने का मौका मिला था। सम्मेलन में अधिकांश कांलेज के लड़के मौजूद थे।मंच पर गांधिवादियों का जमावरा लगा हुआ था और दर्शक दिर्घा में अधिकांश ऐसे युवक मौंजूद थे जिनके मन में गांधी के प्रति कोई आदर भाव नही था कार्यक्रम शुरु हुआ एक से एक वक्ता अपनी बात रख रहे थे।इसी दौरान एक व्यक्ति जिसकी उम्र 70वर्ष के करीब होगा अपनी बात रखने किसी तरह से मंच पर खड़े हुए जहां तक मुझे याद हैं वे दादा धर्माधिकारी थे और महाराष्ट्र से आने की बात कह रहे थे।भाषण की शुरुआत बिहार के पावन धरती को प्रणाम करने साथ हुआ। इन्होने कहा कि 1977के बाद बिहार आया हूं जब मैं अपने लोग से कहा कि मैं बिहार जा रहा हूं तो बहुत सारे मित्र मुझे स्टेशन तक छोड़ने आये,और कहा कि बिहार जा रहे हैं तो बिहारवालों को अवश्य बोलियेगा की पूरा देश उनसे एक और क्रांति की आस लगाये बैंठा हैं।भाषण का सिलसिल आगे बढा 70 वर्ष का वह व्यक्ति बोलते बोलते रोने लगा कहा बस अब आप से ही उम्मीद बची हैं सारा मुल्क आर्थिक उदारीकरण के सामने नस्तमस्तक हो गया हैं ।बहुराष्ट्रीय कम्पनी एक एक कर हमारे आर्थिक संरचना को धवस्त कर रहा हैं,एक बेवस और लाचार मराठी आपसे विनती करने आया हैं ।जागो और पूरे देश को जगाओं नही तो आने वाला कल बड़ी भवावह होगा। मैं इसी उम्मीद से बिहार आया हूं क्यों कि मुझे सभी बिहाररियों में गांधी, विनोवा और जेपी की प्रतिभा दिखती हैं।भाषण समाप्त होने के बाद सवाल जबाव का सत्र शुरु हुआ मैंने महाराष्ट्र से आये उस व्यक्ति से सीधा सवाल किया बिहार और बिहारियों में ऐसी कौन सी बात हैं जो पूरा देश क्रंति की उम्मीद लिए बैंठा हैं।उस वक्त इन्होने जो जबाव दिया था वह मुझे स्वीकार्य नही था। फिर भी मेरे जेहन में बिहार और बिहारियों के प्रति इस तरह के विचार रखने के पीछे के कारणों की तलाश छात्र जीवन से लेकर पत्रकारिता के आठ वर्षो के सफर तक सत्तत जारी रहा।कभी उम्मीद जगी भी लेकिन बाद मैं निराशा ही हाथ लगा। लेकिन कल जिस बिहारी से मिला उसकी बात सुनकर लगा कि आखिर बिहार का इतिहास इतना गौरवशाली क्यो रहा हैं और आज भी लोग बिहार से परिवर्तन की उम्मीद क्यों लगाये हुए हैं।
नाम निरंजन तिवारी पिता स्व-वीर तिवारी घर-धोकरहा,थाना मझौलिय,प0चम्पारण(बेतिया)के स्थायी निवासी हैं। अपने बड़े भाई के खिलाफ पिछले तीन वर्ष से धर्म युध लड़ रहा हैं अभी तक इस युध में उसे जलालत ही झेलनी पड़ी हैं ।लेकिन आज वे हमारे दफ्तर में न्याय के इस युध में मदद की गुहार लेकर आया हैं।मामला बिहार सरकार के सुशासन से जुड़ा हैं।
निरंजन दिल्ली में काम करता था छुट्टी में घर आया तो देखा कि उसके घर पर रात भर लोगो का आना जाना लगा रहता हैं।मालूम करने पर पता चला कि उसका बड़ा भाई राम जी तिवारी फर्जी डिग्री का कारोबार कर रहे हैं।बात 2007की हैं जब पूरे बिहार में प्राप्ताक के आधार पर शिक्षक की बहाली चल रहा था।राम जी तिवारी टिचर ट्रेनिंग से लेकर बोर्ड और संस्कृत बोर्ड का फर्जी सार्टीफिकेट बेचता था।घर में फर्जी सार्टीफिकेंट बनाने की फैक्ट्री चल रहा था पहले निरंजन ने अपने भाई को समझाया यह क्या कर रहे हैं यह देश के भविष्य के साथ खिलवार होगा ।लेकिन भाई के इस सलाह को गम्भीरता से नही लिया तब जाकर इस मामले की सूचना निरजंन ने बेतिया के तत्तकालिन डीएम और एसपी0 को दिया लेकिन कारवाई करना तो दूर उलटे निरंजन पर झूठा मुकदमा कर जेल भेज दिया।यह खेल वैसे एसपी के मिली भगत से किया गया जो बाहुबलि शहाबुदीन के घर पर पुलिस फोर्स ले जाने का साहस दिखाया था बच्चू सिंह मिणा जिनके बारे में बिहार में एक अलग छवि मानी जाती हैं।जेल से छुटने के बाद निरंजन फर्जी फर्जी सार्टिफिकेट रेकैट को उजागर करने की ठानी और पुलिस और प्रशासनिक विभाग के तमाम आलाधिकारी के दरवार में जा कर न्याय की गुहार लगायी लेकिन कोई कारवाई नही हुई अंत में पूरे साक्ष्य के साथ नीतीश कुमार के जनता दरवार में कई बार गया कारवाई नही होते देख एक दिन नीतीश के दरवार में जमकर हंगामा किया नीतीश कुमार खुद डीजीपी को छापामारी करने का निर्देश दिया जब छापामारी हुई तो राम जी तिवारी के घर से सैकड़ो जाली प्रमाण पत्र, मोहर बगैरह मिला ।बेतिया पुलिस प्रेस कान्फरेन्स कर एक बड़े रैकेट के भंडाफोर होने की बात कही लेकिन पुलिस का सुर कुछ ही दिनों में बदल गया और बीस दिनों के बाद कोर्ट से बेल भी मिल गया और बरामद सार्टीफिकेंट को सही लिखते हुए पुलिस ने केश को झुठा करार कर दिया और झुठा मुकदमा दर्ज करने का आरोप लगाते हुए निरंजन पर धारा 211के तहत कारवाई करने का आदेश तत्तकालीन एस0पी के0एस0अनुपम ने जारी किया।पुलिस ने मुकदमें के अनुसंधान के दौरान पांच लोगो का प्रमाण पत्र बिहार विधालय परीक्षा समिति और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविधालय वाराणसी जाकर जांच किया उपकुलसचिव के हस्ताक्षर से जांच कर्ता को पत्र दिया गया जिसमें राम तिवारी के घर से बरामद सभी प्रमाण पत्र को सही लिखा।लेकिन निरंजन तिवारी मानने को तैयार नही था इन्होने जांच में शामिल पांच लोगो के प्रमाण पत्र की सत्यता जानने के लिए सूचना के अधिकार के तहत बिहार विधालय परीक्षा समिति और सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविधालय के सूचना पदाधिकारी से इन छात्रों के परीक्षा परीणाम के बारे में जानकारी मांगी।रिपोर्ट चौकाने वाला हैं सभी विधार्थी का प्रमाण पत्र फर्जी निकला जिसके बारे में पुलिस ने अपने अनुसंधान के दौरान कुल सचिव के पत्र के आधार पर सही लिखा था।यह सभी छात्र बेतिया में पंचायत शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं जिसमें राम तिवारी की बेटी,बेटा और पुतहु भी शामिल हैं।निरंजन की माने तो पूरे बिहार में इस तरह के फर्जी सार्टीफिकेंट के माध्यम से एक हजार से अधिक शिक्षक के पद पर कार्यरत और सैंकड़ो पंचायत सेवक, सेना और पुलिस में नौकरी कर रहा हैं।इस रैकेट के भंडाफोर होने से कई अधिकारियों का जेल जाना तय हैं इसलिए पूरी मशीनरी इस मामले को दवाने में लगा हैं।
मामला जो भी हो लेकिन निरजंन इसे उजागर करने को लेकर अभी भी व्यवस्था से लड़ रहा हैं और आज भी मुख्यमंत्री से लेकर तमाम प्रशासनिक अधिकारी के पास जाकर न्याय की गुहार लगा रहा हैं।जब मैंने पुछा ऐसे हलात में हिंसा का रास्ता क्यो नही अख्तियार किया जबाव हिंसा कायर कि निशानी हैं आज न कल न्याय जुरुर मिलेगा।रही बात सुशासन की तो आप समझ सकते हैं बिहार में सुशासन क्या हैं।फिर मेरा सवाल था नीतीश कुमार को वोट देगे कहां जरुर देगे लालू का राज्य रहता तो कब की मेरी हत्या हो गयी रहती कम से कम सच्चाई की लड़ाई लड़ने वाला अपनी बात तो कह पा रहा हैं.।इतने दिनों से मीडिया के पास क्यो नही जा रहे थे बड़ी जोर से हंसा कहा सर जी अखबार के दफ्तर में कागज देते देते थग गया लेकिन आज तक नही छापा मैने पुछा तो मेरे पास क्यों आये, उम्मीद हैं एक न एक दिन सत्य उजागर होगा और सत्य की जीत होगी । अगला सवाल था इस लड़ाई में आपकी नौकरी गयी कई कई दिनों तक बिना खाये रात में सोना पड़ा लोगो की जलालत झेलनी पड़ी जेल जाना पड़ा आखिर इस लड़ाई से आपको क्या बास्ता हैं। कहा सर जी बिहार के भविष्य का सवाल हैं।इसका जबाव सुनकर महसूस हुआ कि आखिर उस मराठी मानुष को बिहार के लोगो से इतनी उम्मीद क्यो थी।---------
शनिवार, नवंबर 28, 2009
नीतीश के बेचैनी का राज खुलने लगा हैं
नीतीश कुमार इन दिनों कुछ ज्यादा ही बैचेन दिख रहे हैं।हो भी क्यो न चुनावी साल हैं और विधान सभा उप चुनाव में मिली करारी हार से अभी भी उबर नही पाये हैं।फिर भी उनसे अलोकतांत्रिक व्यवहार की उम्मीद तो नही ही जा सकती हैं।लेकिन इन दिनों इन्होने कई ऐसे कदम उठाये हैं जो उनके लोकतात्रिक चरित्र से मेल नही खाता हैं।यह मेरे लिए भी खोज का विषय था कि आखिरकार नीतीश कुमार जैसे राजनेता जिसे देश का भावी नेता माना जाता हैं इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हैं। सबसे बड़ा मसला सूचना के अधिकार कानून में संशोधन से जुड़ा हैं बिहार देश का पहला राज्य हैं जिन्होने सूचना के अधिकार पर कैंची चलायी हैं और इसे सीमित करने का प्रयास किया हैं।लेकिन दुर्भाग्य यह हैं कि इस मसले पर बिहार के बुद्धिजीवी और पत्रकार पूरी तौर पर खामोश हैं।इस संशोधन को लेकर ब्लांग पर जो लिखना था वह तो लिख कर मैंने अपनी भ्रास मिटाली। लेकिन यह सवाल मेरे जेहन में बार बार उठ रहा था कि आखिरकार नीतीश जी ऐसा क्यों किये।इस सवाल का हल ढूढने में लगा ही हुआ था कि एक दिन पूर्व विधायक उमाधर सिंह का फोन आया कहा हैं संतोष जी, सर पटना में ही हैं मैं भी पटना आया हूं और होटल गली में न्यू अमर होटल के कमरा नम्बर 16 में ठहरा हूं।कलम के इस शेर से मेरी बड़ी बनती थी लेकिन पटना आने के बाद बातचीत कम हो गयी थी।काम निपटा कर शीघ्र ही होटल पहुंचा बातचीत शुरु हुई तो पता चला कि सूचना आयोग के मुख्यआयुक्त इनसे मिलना चाहते हैं।बात शुरु हुई तो मेरे पेर के नीचे से जमीन खिसकने लगी और जिस सवाल का जवाव ढूढने को लेकर मेरी नींद हराम थी उस सवाल का हल मिलते दिखने लगा ।जैसे जैसे बात आगे बढती जा रही थी नीतीश में आये बदलाव का राज खुलता जा रहा था।
इन्होने योजना एवं विकास विभाग से नीतीश के कार्यकाल के दौरान हुए विकास और इकोनोमीग्रोथ के बारे में सूचना मांगा। लेकिन विभाग सूचना देने को लेकर टालमटोल करता रहा जब विभाग पर कारवाई की बात होने लगी तो विभाग ने वित्त विभाग के पास इनका आवेदन भेज दिया। वित्त विभाग भी इनके आवेदन पर टाल मटोल करता रहा लेकिन जब मामला अपीलीय कोर्ट में चला गया तो आनन फानन में वित्त विभाग ने इनके आवेदन को गैर सरकारी संगठन आद्री के पास भेज दिया ।और आग्रह किया कि इनके प्रश्न का जवाव दे दे।आद्री बिहार के आर्थिक बदलवा पर शोध करने वाली संस्था हैं और इन दिनों नीतीश चलीसा पढने में महारत हासिल किये हुए हैं।शैवाल गुप्ता इसके चीफ हैं,लेकिन सवाल का जवाब सूचना के अधिकार के तहत देना था तो इन्होने कानूनी पचरे में पड़ने के बजाय पूरी सूचना मुहैया करा दिया।सूचना काफी चौकाने वाली और विकास पुरुष नीतीश कुमार की कलई खोलने वाली थी।जरा आप भी रिपोर्ट को देखे---------
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य हैं और यहां की 90 प्रतिशत अबादी कृषि पर आधारित हैं लेकिन कृषि के क्षेत्र में विकास दर दिन प्रतिदिन कम होती जा रही हैं।
वर्ष-2004—2005—4.47प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।
वर्ष-2005-2006—3.66प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।
वर्ष 2006—2007—1.62प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में
इस तरह यह आंकड़ा बता रहा हैं कि बिहार में कैसा विकास हो रहा हैं।इसी तरह अर्थशास्त्र के द्वितीय सेक्टर उधोग के ग्रोथ का भी यही हाल हैं हलाकि आकड़े की माने तो ग्रोथ 4.06प्रतिशत से बढकर 11.13दिखाया गया हैं। लेकिन आकड़ो में बढोतरी के बारे में लिखा हैं उसमें उधोग के विकास के बारे में कुछ भी जानकारी नही दी गयी हैं।खुद आद्री ने लिखा हैं कि यह बढोतरी शहरों में भवनों निर्माण में तेजी आने के कारण हुई हैं।वही तीसरे सेक्टर में टेलीकोमनिकेशन, बैंकिग और ट्रान्सपोर्ट के क्षेत्र में .10प्रतिशत की बढोत्तरी दिखायी गयी हैं।अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों की माने तो यह ग्रोथ काले धन के फ्लो को दिखा रहा हैं। यह रिपोर्ट सरकार के तमाम रिपोर्ट कार्ड के दावे की कलई खोल कर रख दी हैं।अब मेरे समझ में आया कि नीतीश सूचना के अधिकार पर कैंची क्यों चलाये।बातचीत आगे बढी तो नीतीश से रही सही उम्मीद पर भी ग्रहन लग गया।योजना मद से जुड़े सूचना में सरकार की मशीनरी तो हद कर दी हैं।बिहार सरकार ने जो केन्द्र सरकार को लेखा जोखा भेजा या फिर विधानसभा के पटल पर जो लेखा जोखा रखा और सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी दी गयी तीनों अलग अलग हैं।उमाधर सिंह ने सूचना आयुक्त से पूछा हैं कि आखिरकार इन तीनों सूचना में कौन सी सूचना सही हैं ।इसी मसले पर बातचीत करने के लिए मुख्यसूचना आयुक्त इन्हे मिलने के लिए बुलाया था।मामला आगे न बढे इसको लेकर कई तरह का आफंर उमाधार सिंह को दी जा रही हैं।अब आप समझ सकते हैं कि बिहार की जनता को आकड़ों के सहारे किस तरह छला जा रहा हैं।बातचीत आगे बढी तो मीडिया के नीतीश परस्त होने का भी राज खुल गया हैं।इन्होने सूचना के अधिकार के तहत मांगा कि मीडिया को पिछले तीन वर्षों के दौरान किनता विज्ञापन सरकार की और से मिला हैं आकड़े चौकाने वाले हैं।पचास करोड़ प्रिट मीडिया को और तीन करोड़ रुपया का विज्ञापन इल्कट्रानिक मीडिया जो दिया गया हैं।विज्ञापन के अन्य माध्यमों को जोड़ दे तो लगभग सौं करोड़ खर्च सिर्फ सरकार के उपलब्धियों के प्रचार प्रसार पर किये गये हैं।अब आप ही बताये जिस प्रदेश की आधी से अधिक आबादी की औसत आमदानी रोजाना बीस रुपया से कम हैं वहां सरकार प्रचार प्रसार पर सौ करोड़ रुपये खर्च करती हैं।यही नीतीश के विकास का सच हैं जिसके सहारे दूसरी बार सत्ता में आना चाह रहे हैं।
इन्होने योजना एवं विकास विभाग से नीतीश के कार्यकाल के दौरान हुए विकास और इकोनोमीग्रोथ के बारे में सूचना मांगा। लेकिन विभाग सूचना देने को लेकर टालमटोल करता रहा जब विभाग पर कारवाई की बात होने लगी तो विभाग ने वित्त विभाग के पास इनका आवेदन भेज दिया। वित्त विभाग भी इनके आवेदन पर टाल मटोल करता रहा लेकिन जब मामला अपीलीय कोर्ट में चला गया तो आनन फानन में वित्त विभाग ने इनके आवेदन को गैर सरकारी संगठन आद्री के पास भेज दिया ।और आग्रह किया कि इनके प्रश्न का जवाव दे दे।आद्री बिहार के आर्थिक बदलवा पर शोध करने वाली संस्था हैं और इन दिनों नीतीश चलीसा पढने में महारत हासिल किये हुए हैं।शैवाल गुप्ता इसके चीफ हैं,लेकिन सवाल का जवाब सूचना के अधिकार के तहत देना था तो इन्होने कानूनी पचरे में पड़ने के बजाय पूरी सूचना मुहैया करा दिया।सूचना काफी चौकाने वाली और विकास पुरुष नीतीश कुमार की कलई खोलने वाली थी।जरा आप भी रिपोर्ट को देखे---------
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य हैं और यहां की 90 प्रतिशत अबादी कृषि पर आधारित हैं लेकिन कृषि के क्षेत्र में विकास दर दिन प्रतिदिन कम होती जा रही हैं।
वर्ष-2004—2005—4.47प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।
वर्ष-2005-2006—3.66प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में था।
वर्ष 2006—2007—1.62प्रतिशत इकोनोमी ग्रोथ कृषि के क्षेत्र में
इस तरह यह आंकड़ा बता रहा हैं कि बिहार में कैसा विकास हो रहा हैं।इसी तरह अर्थशास्त्र के द्वितीय सेक्टर उधोग के ग्रोथ का भी यही हाल हैं हलाकि आकड़े की माने तो ग्रोथ 4.06प्रतिशत से बढकर 11.13दिखाया गया हैं। लेकिन आकड़ो में बढोतरी के बारे में लिखा हैं उसमें उधोग के विकास के बारे में कुछ भी जानकारी नही दी गयी हैं।खुद आद्री ने लिखा हैं कि यह बढोतरी शहरों में भवनों निर्माण में तेजी आने के कारण हुई हैं।वही तीसरे सेक्टर में टेलीकोमनिकेशन, बैंकिग और ट्रान्सपोर्ट के क्षेत्र में .10प्रतिशत की बढोत्तरी दिखायी गयी हैं।अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों की माने तो यह ग्रोथ काले धन के फ्लो को दिखा रहा हैं। यह रिपोर्ट सरकार के तमाम रिपोर्ट कार्ड के दावे की कलई खोल कर रख दी हैं।अब मेरे समझ में आया कि नीतीश सूचना के अधिकार पर कैंची क्यों चलाये।बातचीत आगे बढी तो नीतीश से रही सही उम्मीद पर भी ग्रहन लग गया।योजना मद से जुड़े सूचना में सरकार की मशीनरी तो हद कर दी हैं।बिहार सरकार ने जो केन्द्र सरकार को लेखा जोखा भेजा या फिर विधानसभा के पटल पर जो लेखा जोखा रखा और सूचना के अधिकार के तहत जो जानकारी दी गयी तीनों अलग अलग हैं।उमाधर सिंह ने सूचना आयुक्त से पूछा हैं कि आखिरकार इन तीनों सूचना में कौन सी सूचना सही हैं ।इसी मसले पर बातचीत करने के लिए मुख्यसूचना आयुक्त इन्हे मिलने के लिए बुलाया था।मामला आगे न बढे इसको लेकर कई तरह का आफंर उमाधार सिंह को दी जा रही हैं।अब आप समझ सकते हैं कि बिहार की जनता को आकड़ों के सहारे किस तरह छला जा रहा हैं।बातचीत आगे बढी तो मीडिया के नीतीश परस्त होने का भी राज खुल गया हैं।इन्होने सूचना के अधिकार के तहत मांगा कि मीडिया को पिछले तीन वर्षों के दौरान किनता विज्ञापन सरकार की और से मिला हैं आकड़े चौकाने वाले हैं।पचास करोड़ प्रिट मीडिया को और तीन करोड़ रुपया का विज्ञापन इल्कट्रानिक मीडिया जो दिया गया हैं।विज्ञापन के अन्य माध्यमों को जोड़ दे तो लगभग सौं करोड़ खर्च सिर्फ सरकार के उपलब्धियों के प्रचार प्रसार पर किये गये हैं।अब आप ही बताये जिस प्रदेश की आधी से अधिक आबादी की औसत आमदानी रोजाना बीस रुपया से कम हैं वहां सरकार प्रचार प्रसार पर सौ करोड़ रुपये खर्च करती हैं।यही नीतीश के विकास का सच हैं जिसके सहारे दूसरी बार सत्ता में आना चाह रहे हैं।
मंगलवार, नवंबर 24, 2009
नीतीश ने पूरे किये चार वर्ष
आज पूरे बिहार में सीएम सचिवालय से लेकर डीएम सचिवालय तक उत्सव का महौल का था एक से एक लजीज पकवान मेज पर सजाये गये थे।कहते हैं कि इस उत्वस को सफल बनाने के लिए सरकार ने अपनी तिजौंरी खोल रखी थी।अखबार वालों को पचास लाख से एक करोड़ तक का विज्ञापन दिया गया हैं। अखबार वालों ने भी कोई कसर नही छोड़ी थी लग रहा था बिहार के आजादी का उत्सव मनाया जा रहा हैं।एक से एक विचारक, अर्थशास्त्री, और विशेषज्ञों की राय से पूरा अखबार पटा था।नीतीश को महिमामंडित करने में कोई कसर नही रह जाये इसके लिए चीफ रिपोर्टर से लेकर संपादक तक पूरी रात नीतीश चलीसा गढने मैं लगे रहे ऐसा सुबह सुबह अखबार पढने से लग रहा था ।होना भी चाहिए था क्यों कि आज नीतीश सरकार के कार्यकाल का चार वर्ष पूरा हुआ हैं।इस अवसर को भूनाने के लिए सीएम सचिवालय से लेकर डीएम सचिवालय पिछले दो माह से रात दिन एक किये हुए था।उपलब्धि का आकड़ा छूट न जाये इसके लिए विशेषज्ञों की पूरी फौंज लगायी गयी थी।रिपोर्ट कार्ड आने के बाद लगा की वाकय तैयारी पुलफ्रुफ था कार्ड देखने से लग रहा हैं कि इस सरकार की आलोचना करना सूर्य को दिपक दिखाने जैसा हैं। लेकिन इस उत्वस के बीच लोगो की राय जानने का जिम्मा आज मुझे मिला था।पटना के सड़कों पर पूरे दिन नीतीश सरकार के जनविरोधी नीति का हवाला देकर भाकपा माले का आन्दोलन जारी रहा। लेकिन बिहार में पहली बार यह देखने को मिला कि जनसरोकार की बात करने वाले भाकपा माले के आन्दोलन में कोई धार नही दिखाई दे रहा था।मुजफ्फरपुर,गया जैसे शहरों में दुकानदारों ने बंद करने से इनकार कर दिया और लोगो ने बंद समर्थकों को पीटा भी।वही दूसरी और लोक उपक्रम से जुड़े हजारों कर्मचारी वर्षों से बंद वेतन के भुकतान की मांग को लेकर अर्द्धनग्न प्रदर्शन किया और सरकार के रिपोर्ट कार्ड को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह सरकार ब्यूरोक्रेट के हाथों की कटपूतली बन कर रह गया।पटना के वीमेंन्स कांलेज की छात्राओं ने नीतीश के सुशासन के दावे को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि अभी भी महिलाये राजधानी पटना में सुरक्षित महसूस नही कर रही हैं।कही किसी ने बटाईदारी कानून की बात कर नीतीश सरकार को कटघरे में खड़े करने का प्रयास किया वही एक युवक ने कहा कि विकास का क्या मतलव हैं बेली रोड सड़क बनाने से विकास होता हैं इनके कार्यकाल में रोजगार के अवसर में कमी आयी हैं एक परीक्षा पास भी किये हैं तो लगता हैं बांस घाट(शमशान घाट)पर ही नियुक्ति पत्र मिलेगा। एक किसान खाद और बीज के लिए गांव से पटना आया था उसकी प्रतिक्रिया सहज और क़टु था किसान को सरकार से क्या चाहिए सरकार खाद और बीज भी मुहैया नही करा पाती हैं तो फिर सरकार क्या कर सकती हैं। सरकार फिलगुड महसूस कर रही हैं।एक रिक्शा चालक ने यहां तक कह डाला कि दिन पर कमाई करते हैं लेकिन परिवार को साथ रखने के लायक आमदनी नही होती हैं महंगाई इतनी बढ गयी हैं । हलाकि नीतीश सरकार को लेकर इस तरह की प्रतिक्रिया दवी जुबान ही सुनने को मिली लेकिन इतना तो जरुर दिखा कि नीतीश कुमार का हाल कही चन्द्र बावू नायडू वाला न हो जाये।क्यों कि नीतीश के फिलगुड,अपराध नियत्रण,विकास और सुशासन से सूबे की 90प्रतिशत जनता महरुम हैं।गांव में आज भी विकास की रोशनी दूर दूर तक दिखाई नही दे रही हैं वही भ्रष्टाचार की आंच मुखिया और पंचायत सचिव के माध्यम से गांव गांव तक पहुंच गया हैं।शिक्षक वहाली और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले को दी जाने वाली राशन किरासन में लूट को रोकने में सरकार की मशीनरी पूरी तरह फैल कर गयी हैं।नरेगा के नाम पर लूट मची हैं और एक बार फिर से मजदूरों का पलायन तेज हो गया हैं। लेकिन सरकार और राजधानी में बैंठे बुद्दि विलास करने वालो को लिए यह कोई सवाल नही हैं।खैर मुझे भी इस सवाल से कोई खास वास्ता नही हैं लेकिन दुख हैं कि कही नीतीश कुमार का राजनैतिक कैरियर चन्दबाबू नायडू की तरह ध्वस्त न हो जाये। लेकिन इन सब के बीच जिस तरह से पत्रकारों ने अपनी कलम गिरवी लगा रखी हैं उसका क्या हर्ष होगा यह सोचकर रुह कांप जाती हैं।
गुरुवार, नवंबर 19, 2009
आपातकाल के दौड़ से गुजर रहा हैं बिहार
इतिहास की यह कैसी नियति हैं जिस आपातकाल के खिलाफ बिहार में जेपी के नेतृत्व में छात्र आन्दोलन हुआ और उस आन्दोलन की उपज बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री बिहार में आपातकाल लागू करने पर आमदा हैं।यह पढकर आप सबों को थोड़ा अटपटा जरुर लग रहा होगा लेकिन यह सच हैं।शायद आज जेपी होते तो 1974 से भी बड़े आन्दोलन की घोषणा करते।आपातकाल के समय जो इंदिरा जी नही कर पायी वह आज नीतीश कर रहे हैं और दुख की बात यह हैं कि बिहार जिसे पूरा देश परिवर्तन के आन्दोलन का प्रणेता मानता हैं आज मूक दर्शक बना हुआ हैं।
नीतीश के कार्यशैली को लेकर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं लेकिन इस बार मामला कही ज्यादा गम्भीर हैं नीतीश कुमार ने भारतीय संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का अदम्य साहस दिखाया हैं लेकिन मीडिया से लेकर सारा तंत्र नीतीश के इस दुसाहस पर चुप हैं।मामला सूचना के अधिकार में कटौती से जुड़ा हुआ हैं।बिहार में लोकतंत्र पर नौकरशाही कितनी हावी हैं इसकी लम्बी चौरी फेहरिस्त हैं ।बिहार में सूचना के अधिकार के तहत अधिकार मांगने वाले सैकड़ो ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर प्रशासन ने जुवान बंद करने के लिए झूठे मुकदमें में फसा दिया हैं।कई लोग जेल गये हैं यह सब लोकतंत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार के संरक्षण में चल रहा हैं।मामला जब जोर पकड़ने लगा तो मुख्यमंत्री ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी को लेकर पदाधिकारी द्वारा दमन की कारवाई करने पर टाल फ्रि नम्बर पर शिकायत दर्ज करने की घोषणा की ।लेकिन जिन अधिकारियों ने मौलिक अधिकार को दमित करने के लिए कानून का दुरउपयोग किया उस पर कोई कारवाई नही की नतीजा सामने हैं मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी सूचना मांगने वालों पर दमनात्मक कारवाई जारी हैं।अब तो हद हो गयी राज्य सरकार ने जिस महाश्य को राज्य का मुख्य सूचना आयूक्त बनाया हैं उन्होने तो हद कर दी।पद भार ग्रहण करते ही इन्होने पूरे बिहार के लोक सूचना अधिकारी को केन्द्रीय कार्मिक विभाग का एक पत्र भेजा जिस पर किसी भी अधिकारी का हस्ताक्षर नही हैं।पत्र में सूचना के अधिकार को परिभाषित किया गया हैं जिसमें लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार हैं कि जो सूचना आप को गैर जरुरी लगे उसे देने के लिए आप बाध्य नही हैं।इसी तरह की कई और बाते इस पत्र में लिखा हुआ हैं।पत्र मिलते ही लोकसूचना अधिकारी की बांझे खिल गयी और सूचना मांगने वाले का फर्म ही लेने से यह कहते हुए इनकार करने लगा कि यह सूचना देने लायक नही हैं।ऐसा पत्र जिस पर किसी ओथिरिटी का हस्ताक्षर नही हो और वह पत्र राज्य सूचना के मुख्य आयुक्त के कार्यालय से निर्गत होता हैं तो आप समझ सकते हैं कि सरकार की मंशा क्या हैं।इस पर बहस शुरु ही हुआ था कि नीतीश सरकार मंगलवार को मंत्रीमंडल की बैंठक में यह फैंसला लेते हैं कि अब एक आवेदन में एक ही सूचना मांगी जा सकती हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बीपीएल सूची के लोगों को भी सूचना पाने के लिए दस रुपये देने होगे।जब कि पहले इन्हे मुफ्त में सूचना दी जाती थी।लोगो को यह समझ में नही आ रहा हैं कि जो कानून देश की संसद ने बनायी जिस पर ऱाष्ट्रपति का मोहर लगा और मामला संवैधानिक अधिकार से जुड़ा हैं ऐसे मामले में राज्य सरकार के मंत्रीमंडल को संशोधन करने का अधिकार हैं क्या।संविधानविदों का मानना हैं कि नीतीश सरकार का यह कदम गैर संवैधानिक हैं।आखिरकार जनता द्वारा चूनी गयी सरकार क्यों जनता के अधिकार की कटौंती के लिए संविधान के प्रावाधान के विपरीत कार्य कर रही हैं ।यह सवाल आप सबों से हैं।सोचिए नीतीश कुमार जिस जनता की ताकत पर दंभ भर रहे हैं उसी जनता के साथ यह खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं।
नीतीश के कार्यशैली को लेकर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं लेकिन इस बार मामला कही ज्यादा गम्भीर हैं नीतीश कुमार ने भारतीय संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का अदम्य साहस दिखाया हैं लेकिन मीडिया से लेकर सारा तंत्र नीतीश के इस दुसाहस पर चुप हैं।मामला सूचना के अधिकार में कटौती से जुड़ा हुआ हैं।बिहार में लोकतंत्र पर नौकरशाही कितनी हावी हैं इसकी लम्बी चौरी फेहरिस्त हैं ।बिहार में सूचना के अधिकार के तहत अधिकार मांगने वाले सैकड़ो ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर प्रशासन ने जुवान बंद करने के लिए झूठे मुकदमें में फसा दिया हैं।कई लोग जेल गये हैं यह सब लोकतंत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार के संरक्षण में चल रहा हैं।मामला जब जोर पकड़ने लगा तो मुख्यमंत्री ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी को लेकर पदाधिकारी द्वारा दमन की कारवाई करने पर टाल फ्रि नम्बर पर शिकायत दर्ज करने की घोषणा की ।लेकिन जिन अधिकारियों ने मौलिक अधिकार को दमित करने के लिए कानून का दुरउपयोग किया उस पर कोई कारवाई नही की नतीजा सामने हैं मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी सूचना मांगने वालों पर दमनात्मक कारवाई जारी हैं।अब तो हद हो गयी राज्य सरकार ने जिस महाश्य को राज्य का मुख्य सूचना आयूक्त बनाया हैं उन्होने तो हद कर दी।पद भार ग्रहण करते ही इन्होने पूरे बिहार के लोक सूचना अधिकारी को केन्द्रीय कार्मिक विभाग का एक पत्र भेजा जिस पर किसी भी अधिकारी का हस्ताक्षर नही हैं।पत्र में सूचना के अधिकार को परिभाषित किया गया हैं जिसमें लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार हैं कि जो सूचना आप को गैर जरुरी लगे उसे देने के लिए आप बाध्य नही हैं।इसी तरह की कई और बाते इस पत्र में लिखा हुआ हैं।पत्र मिलते ही लोकसूचना अधिकारी की बांझे खिल गयी और सूचना मांगने वाले का फर्म ही लेने से यह कहते हुए इनकार करने लगा कि यह सूचना देने लायक नही हैं।ऐसा पत्र जिस पर किसी ओथिरिटी का हस्ताक्षर नही हो और वह पत्र राज्य सूचना के मुख्य आयुक्त के कार्यालय से निर्गत होता हैं तो आप समझ सकते हैं कि सरकार की मंशा क्या हैं।इस पर बहस शुरु ही हुआ था कि नीतीश सरकार मंगलवार को मंत्रीमंडल की बैंठक में यह फैंसला लेते हैं कि अब एक आवेदन में एक ही सूचना मांगी जा सकती हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बीपीएल सूची के लोगों को भी सूचना पाने के लिए दस रुपये देने होगे।जब कि पहले इन्हे मुफ्त में सूचना दी जाती थी।लोगो को यह समझ में नही आ रहा हैं कि जो कानून देश की संसद ने बनायी जिस पर ऱाष्ट्रपति का मोहर लगा और मामला संवैधानिक अधिकार से जुड़ा हैं ऐसे मामले में राज्य सरकार के मंत्रीमंडल को संशोधन करने का अधिकार हैं क्या।संविधानविदों का मानना हैं कि नीतीश सरकार का यह कदम गैर संवैधानिक हैं।आखिरकार जनता द्वारा चूनी गयी सरकार क्यों जनता के अधिकार की कटौंती के लिए संविधान के प्रावाधान के विपरीत कार्य कर रही हैं ।यह सवाल आप सबों से हैं।सोचिए नीतीश कुमार जिस जनता की ताकत पर दंभ भर रहे हैं उसी जनता के साथ यह खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं।
मंगलवार, नवंबर 17, 2009
अब देश हुआ बेगाना
मुंबई मराठी का,गुजरात गुजराती का,बंगाल बंगाली का,तमिल तमिलों का, बिहार बिहारियों का, तो फिर इस देश के किसान कहा का जिसका कोई अपना प्रदेश नही हैं और ना ही कोई नेता हैं जो अलग से किसानिस्तान की मांग करे।सवाल मौजू हैं देश की अस्सी फिस्दी अबादी किसान हैं लेकिन इसकी सुनता कौंन हैं।मौंसम ने दगा क्या दे दिया आर्थिक महाशक्ति होने का दावा करने वाली भारतीय अर्थ व्यवस्था की हवा निकल गयी हैं।फिर भी इसकी बात सूनने वाला कोई नही हैं क्यों कि यह हमेशा अपने को पहले भारतीय कहता हैं फिर बिहारी,पंजाबी और मराठी।राज ठाकरे को मराठी मानुष से बेहद प्यार हैं सचिन ने क्या कह दिया की बुढा ठाकरे भी हुकांर मारने लगे लेकिन उसी महाराष्ट्र में जहां रोजना किसान आत्म हत्या कर रहा हैं उससे न तो ठाकरे परिवार को वास्ता हैं और ना ही भारतीयता का हुंकार मारने वाली मीडिया का।
पिछले एक सप्ताह से बिहार में आयोजनों की धूम मची हैं पुस्तक मेला,रोड कांग्रेस का ऱाष्ट्र सम्मेलन, राष्ट्रीय बिजनेस मीट,सहकारिता सम्मेलन और आज नंदन निलेकणि साहब बिहार आ रहे हैं।सारा मशीनरी और मीडिया के लिए जैसे उत्सव का माहौल हैं। मुख्यमंत्री बिहार बदल रहा हैं यह सूनने के लिए सारा कुछ दाव पर लगाने को तैयार हैं।मीडिया को बस बिहार बदल रहा हैं कही से भी ये बाते सामने आनी चाहिए बस मुख्यपृष्ठ के लिए खबर मिल गयी।लेकिन इन सब के बीच पूरे बिहार में खाद और बीज को लेकर किसानों का आन्दोलन चल रहा हैं जिसे दमाने के लिए नीतीश कुमार पूरी ताकत लगाये हुए हैं और नीतीश के दमन को यहां के नेता और मीडिया दमाने में लगा हैं।यू कहे तो मीडिया और नेता के लिए किसान कोई मुद्दा नही हैं क्यों कि यह कभी नही कह सकता कि मुझे अलग देश किसानिस्तान चाहिए।पिछले एक पखवाड़े में खाद और बीज के लिए आन्दोलन कर रहे किसानों पर लाठिया चली हैं और आज भी कई इलाकों में चक्का जाम आन्दोलन चल रहा हैं।खाद के लिए आन्दोलन कर रहे दर्जनों किसान आज भी बेतिया जेल में बंद हैं कसूर सिर्फ इतना ही हैं कि ये सब गांव से जिला मुख्यालय खाद लेने पहुंच गये थे।पुलिस ने पहले तो जमकर लाठी चलाई और जब इससे भी बात नही बनी तो आंशू गैंस के गोले बरसाये लेकिन सरकार इससे परेशान नही हैं।सरकार ने पूरे सूबे में कृषि यात्रा निकाली थी यात्रा जिस इलाके से गुजरा लोगो ने जबरदस्त विरोध किया ।मुजफ्फरपुर में कृषि मंत्री को बिना भाषण दिये भागना पड़ा और बेगूसराय में कृषि मंत्री को जान बचा कर भागना पड़ा।
सरकार के पास जबाव नही हैं कि अगर किसान को बीज और खाद नही मिल रहा हैं तो इससे लिए जबावदेह कौन हैं इस मसले पर न तो मुख्यमंत्री कुछ बोलने को तैयार नही और ना ही मुख्यमंत्री की पंसदीदा मंत्री रेणू देवी जिनकी योग्यता यही हैं कि इनकी पहुंच नीतीश के अंतहपुरी तक हैं।ऐसा नही हैं कि खाद और बीज मिल नही रहा हैं जितने चाहिए उतना उपलब्ध हैं लेकिन किमत दो गुनी आदा करनी होगी।
डीएपी जिसकी किमत 486रुपया हैं सात सौं में व्यापारी घर पर पहुंचाने को तैयार हैं।यही स्थिति पोटाश,यूरिया और मकई,गेंहू,मशाले के बीज का हैं पैंसे दिजिए और जितनी चाहिए उपलब्ध हैं।इस मामले में जब में खुद खाद दुकानदार से बात किया तो कहा कि सौं रुपया प्रति बोरा तो खाद लेने के समय ही डीएम के प्रतिनिधि ले लेते हैं और रेलवे के गोदाम से लाने में दस से पाच रुपये प्रति बोरा खर्च परता हैं।आपको 640रुपया प्रति बोरा जितान खाद कहेगे पहुचवा देगे।दुकानदार ऐसे बात कर रहा था कि जैसे मुझ पर ऐहसान कर रहा हो।मैंने समस्तीपुर डीएम को फोन किया और कहा कि आप के जिला में क्या हो रहा हैं डीएम ने जब रोसड़ा एडीओ को मामले की जांच का आदेश के साथ कारवाई करने को कहा तो पूरी मशीनरी दुकानदार को बचाने में लग गया ।कहने का मतलव यह हैं कि सरकार जब किसान को बीज औऱ खाद तक उपलब्ध कराने में असफल हैं तो फिर इस सरकार का मतलव क्या हैं।फिर यह कहे तो भारतीय होने का क्या मतलब हैं।
पिछले एक सप्ताह से बिहार में आयोजनों की धूम मची हैं पुस्तक मेला,रोड कांग्रेस का ऱाष्ट्र सम्मेलन, राष्ट्रीय बिजनेस मीट,सहकारिता सम्मेलन और आज नंदन निलेकणि साहब बिहार आ रहे हैं।सारा मशीनरी और मीडिया के लिए जैसे उत्सव का माहौल हैं। मुख्यमंत्री बिहार बदल रहा हैं यह सूनने के लिए सारा कुछ दाव पर लगाने को तैयार हैं।मीडिया को बस बिहार बदल रहा हैं कही से भी ये बाते सामने आनी चाहिए बस मुख्यपृष्ठ के लिए खबर मिल गयी।लेकिन इन सब के बीच पूरे बिहार में खाद और बीज को लेकर किसानों का आन्दोलन चल रहा हैं जिसे दमाने के लिए नीतीश कुमार पूरी ताकत लगाये हुए हैं और नीतीश के दमन को यहां के नेता और मीडिया दमाने में लगा हैं।यू कहे तो मीडिया और नेता के लिए किसान कोई मुद्दा नही हैं क्यों कि यह कभी नही कह सकता कि मुझे अलग देश किसानिस्तान चाहिए।पिछले एक पखवाड़े में खाद और बीज के लिए आन्दोलन कर रहे किसानों पर लाठिया चली हैं और आज भी कई इलाकों में चक्का जाम आन्दोलन चल रहा हैं।खाद के लिए आन्दोलन कर रहे दर्जनों किसान आज भी बेतिया जेल में बंद हैं कसूर सिर्फ इतना ही हैं कि ये सब गांव से जिला मुख्यालय खाद लेने पहुंच गये थे।पुलिस ने पहले तो जमकर लाठी चलाई और जब इससे भी बात नही बनी तो आंशू गैंस के गोले बरसाये लेकिन सरकार इससे परेशान नही हैं।सरकार ने पूरे सूबे में कृषि यात्रा निकाली थी यात्रा जिस इलाके से गुजरा लोगो ने जबरदस्त विरोध किया ।मुजफ्फरपुर में कृषि मंत्री को बिना भाषण दिये भागना पड़ा और बेगूसराय में कृषि मंत्री को जान बचा कर भागना पड़ा।
सरकार के पास जबाव नही हैं कि अगर किसान को बीज और खाद नही मिल रहा हैं तो इससे लिए जबावदेह कौन हैं इस मसले पर न तो मुख्यमंत्री कुछ बोलने को तैयार नही और ना ही मुख्यमंत्री की पंसदीदा मंत्री रेणू देवी जिनकी योग्यता यही हैं कि इनकी पहुंच नीतीश के अंतहपुरी तक हैं।ऐसा नही हैं कि खाद और बीज मिल नही रहा हैं जितने चाहिए उतना उपलब्ध हैं लेकिन किमत दो गुनी आदा करनी होगी।
डीएपी जिसकी किमत 486रुपया हैं सात सौं में व्यापारी घर पर पहुंचाने को तैयार हैं।यही स्थिति पोटाश,यूरिया और मकई,गेंहू,मशाले के बीज का हैं पैंसे दिजिए और जितनी चाहिए उपलब्ध हैं।इस मामले में जब में खुद खाद दुकानदार से बात किया तो कहा कि सौं रुपया प्रति बोरा तो खाद लेने के समय ही डीएम के प्रतिनिधि ले लेते हैं और रेलवे के गोदाम से लाने में दस से पाच रुपये प्रति बोरा खर्च परता हैं।आपको 640रुपया प्रति बोरा जितान खाद कहेगे पहुचवा देगे।दुकानदार ऐसे बात कर रहा था कि जैसे मुझ पर ऐहसान कर रहा हो।मैंने समस्तीपुर डीएम को फोन किया और कहा कि आप के जिला में क्या हो रहा हैं डीएम ने जब रोसड़ा एडीओ को मामले की जांच का आदेश के साथ कारवाई करने को कहा तो पूरी मशीनरी दुकानदार को बचाने में लग गया ।कहने का मतलव यह हैं कि सरकार जब किसान को बीज औऱ खाद तक उपलब्ध कराने में असफल हैं तो फिर इस सरकार का मतलव क्या हैं।फिर यह कहे तो भारतीय होने का क्या मतलब हैं।
बुधवार, नवंबर 11, 2009
कुत्ते के प्रेस वार्ता में पत्रकारों की बोलती हुई बंद
स्थान पटना का गांधी मैंदान मौंका था कुत्ते के राज्य स्तरीय सम्मेलन का बिहार के मुख्यमंत्री का कुत्ता से लेकर सूबे के तमाम आलाधिकारी, मंत्री, और विधायक का कुत्ता इस सम्मेलन में उपस्थित थे।तीन दिनों तक चले इस सम्मलेन का मुख्य ऐंजडा था नीतीश कुमार के चार वर्षों के कार्यकाल का रिपोर्ट कार्ड तैयार करना।सम्मेलन में पत्रकारों के प्रवेश पर पूरी तरह रोक लगा था।तीन दिनों तक मीडिया और अखबारों में सूत्रों के हवाले से इस सम्मेलन की खबड़ छपती रही।लेकिन अंतिम दिन आज राजधानी के तमाम मीडिया हांउस के पत्रकारों को विशेष तौर पर आमंत्रित किया गया था भेज नानभेज से लेकर पिटर एसकोच की व्यवस्था थी तय यह हुआ कि खाना औऱ पीने के बाद प्रेस वार्ता होगी।
प्रेस को सम्बोधित करने को लेकर मुख्यमंत्री ,उपमुख्यमंत्री और गिराजराज सिंह के कुत्ता के बीच कसमकश चल रहा था ।लेकिन आम राय नही बन पा रही थी इन तीनों पर कही एक बार फिर से बटाईदारी के मसले पर फिसलने की सम्भावना को देखते हुए कोई रिक्स लेने को तैयार नही था।लम्बी बहस के बाद डीजी साहब का कुत्ता राधे राधे कहते हुए सभा स्थल पर प्रस्ताव रखा कि यह जवावदेही डीजी होमर्गाड नीलमणि के कुत्ता को दिया जाये।प्रस्ताव आते ही एक स्वर से सभी कुत्ते ने इसका समर्थन कर दिया।प्रस्ताव पास होते ही डीजी होमगार्ड का कुत्ता मुस्कुराते हुए सभी को धन्यवाद दिया और इस जवाबदेही पर पूरी तौर पर खड़े होने का भरोसा दिलाते हुए मुख्यमंत्री के कुत्ते को इशारे इशारे में कुछ कहा और प्रेस वार्ता के लिए निर्धारित स्थल की और प्रस्थान कर गये।स्थल पर पहुंचे तो नजारा देखने लायक था कुत्ते की तरह भोजन पर सभी पत्रकार टुटे हुए थे।हाथ जोड़ते हुए नीलमणि साहब के स्वान ने कहा साँरी विलम्भ के लिए खेद हैं।पास खड़े भारद्वाज के कुत्ते से धीरे से कहा यार क्या माजरा हैं खाने पर इस तरह टुट पड़े हैं जैसे लगता हैं वर्षों से भूखा हो ।एक घंटे तक चली धक्का मुक्की के बाद प्रेस वार्ता शुरु हुई।नीलमणि जी के स्वान ने कहा पहले आप सभी सवाल करे और फिर हम एक एक कर जवाब देगे।सारे तोप पत्रकार वार्ता में मौंजूद थे।अधिकांश चैनलों पर लाईभ चल रहा था क्यों न हो सभी ने जो मोटी रकम लाईभ करने के लिए जो लिया था।सवाल सूबे में बढते अपराध से लेकर बिजली बोर्ड के धोटाले, ललन नीतीश के रिश्ते में आयी खटास सहित मनसे विधायकों के कारनामे तक से जुड़ा था।
आंधे घंटे तक सवाल के बौछार के बाद बारी आयी जबाव देने का नीलमणि साहब के अंदाज में ही उनके स्वान ने भी एक एक सवाल का जवाब देना शुरु किया।अंदर पंडाल में मुख्यमंत्री के कुत्ते साहब प्रेस वार्ता को बड़ी गम्भीरता से देख रहे थे।मोदी साहब का लाडला बटाईदारी से जुड़े सवालों के जवाब का इंतजार कर रहे थे वही नगर विकास के प्रधान सचिव अमानुल्लाह का कुत्ता आराम से खराटा ले रहा था।वार्ता स्थल पर जबरदस्त बहस चल रही थी।इसी दौरान हिन्दुस्तान अखबार के प्रतिनिधि ने स्वान साहब को टोकते हुए कहा कि अपराध से जुड़ा जो आकड़ा आप दे रहे हैं वह पूरी तरह गलत हैं स्वान साहब ने कहा आप सही कह रहे हैं आंकड़ा सही में गलत हैं ।लेकिन यह आंकड़ा तो पिछले चार वर्षों से आप ही अखबार के मुख्य पेंज पर छाप रहे हैं। भारद्वाज साहव यह प्रेस कतरन सभी लोगो को बांट दिजिए।कतरन देखते ही हिन्दुस्तान के प्रतिनिधि मुंह छिपाये वार्ता स्थल से खिसक चले ।अब बारी जागरण के प्रतिनिधि के सवालों के जबाव का था जिसमें भ्रष्टाचार के तरीके से जुड़े आकंड़ों पर जबाव देनी थी ।नीलमणि साहब के स्वान ने पास बैंठे पी0के0ठाकुर के स्वान को इशारे किये और कुछ लाने का निर्देश दिया।इस बीच नीलमणि साहब का स्वान निगरानी के कारवाई पर बोलते रहे लेकिन जागरण के महोदय सूनने को तैयार नही थे।तब तक पी0के0ठाकुर साहब के स्वान सूचना जनसम्पर्क के प्रधान सचिव राजेश भूषण के स्वान के साथ तीन चार मोंटी फाईले लेकर आते हुए दिखे ।उनके आते ही पूरे प्रेसं वार्ता स्थल पर भूचाल आ गया जागरण के प्रतिनिधि किधर गये पता नही चला और प्रभात खबड़ ,आज और सहारा के प्रतिनिधि की भाषा ही बदल गयी।देखते देखते प्रेस वर्ता स्थल पर नीतीश के सुशासन का राष्ट्र गान शुरु हो गया और सभी एक स्वर से राग भैंरवी गाने लगे प्रेस वार्ता नीतीश की जय हो के नारे से गुजने लगा और धीरे धीरे लोग जाने भी लगे नीलमणि साहब का स्वान खड़े होकर सभी का अभिवादन कर रहे थे।तभी उनकी नजर ई0टी0भी0 के प्रतिनिधि पर परा झट से आगे बढते हुए नीलमणि साहब के स्वान ने कहा आप कहा आ जाते हैं इनकी महफिल में। आप अपनी राग जारी रखिये आप का हाल लालू जी के समय भी वही था और नीतीश जी के समय भी वही हैं जिसका स्वभाव बैंरागी वाला रहता हैं उसको बदला नही जा सकता हैं।आवाज थोड़ा लरखराते हुए कहा ऐ सर इ कोन सा ललका फाईल मंगवाये जो सब के सब भाग गया नीलमणि साहब के स्वान ने कहा आप नही समझियेगा।आपके यहां से जो महुंआ में गया हैं उससे पुछये उस ललका फाईल में क्या हैं।ये सब पांच सौं करोड से ज्यादा का विज्ञापन सरकार से लिया हैं और रिपोर्ट कार्ड छापने के लिए सरकार ने सौं करोड़ का बजट बनाया हैं इस फाईल पर एक दो दिन मैं दस्तख्त होना हैं किसको कितना विज्ञापन मिलना हैं।वो सर अब समझ में आया साला हमरे यहां तो इस सब से मतलबे नही हैं चलिए कुछ कहना हैं आपको, क्या कहे आप तो सरकार की ऐसी की तैसी करवे किजिएगा।चलिए सर गुडनाईट बहुत अच्छा खस्सा बना था।अंदर लाईभ देख रहे सभी लोग गदगद थे अरे भाई नीलमणि तो कमाल कर दिया।जाते हैं साहब को कहगे ऐ सर नीलमणि साहब को पर्मानेन्ट प्रवक्ता बनाईये दिजिए।बरका बराक पत्रकार को पानी पीला दिये जो साहब को आये दिन जड़ा में भी पसीना छोड़ाया रहता हैं।
प्रेस को सम्बोधित करने को लेकर मुख्यमंत्री ,उपमुख्यमंत्री और गिराजराज सिंह के कुत्ता के बीच कसमकश चल रहा था ।लेकिन आम राय नही बन पा रही थी इन तीनों पर कही एक बार फिर से बटाईदारी के मसले पर फिसलने की सम्भावना को देखते हुए कोई रिक्स लेने को तैयार नही था।लम्बी बहस के बाद डीजी साहब का कुत्ता राधे राधे कहते हुए सभा स्थल पर प्रस्ताव रखा कि यह जवावदेही डीजी होमर्गाड नीलमणि के कुत्ता को दिया जाये।प्रस्ताव आते ही एक स्वर से सभी कुत्ते ने इसका समर्थन कर दिया।प्रस्ताव पास होते ही डीजी होमगार्ड का कुत्ता मुस्कुराते हुए सभी को धन्यवाद दिया और इस जवाबदेही पर पूरी तौर पर खड़े होने का भरोसा दिलाते हुए मुख्यमंत्री के कुत्ते को इशारे इशारे में कुछ कहा और प्रेस वार्ता के लिए निर्धारित स्थल की और प्रस्थान कर गये।स्थल पर पहुंचे तो नजारा देखने लायक था कुत्ते की तरह भोजन पर सभी पत्रकार टुटे हुए थे।हाथ जोड़ते हुए नीलमणि साहब के स्वान ने कहा साँरी विलम्भ के लिए खेद हैं।पास खड़े भारद्वाज के कुत्ते से धीरे से कहा यार क्या माजरा हैं खाने पर इस तरह टुट पड़े हैं जैसे लगता हैं वर्षों से भूखा हो ।एक घंटे तक चली धक्का मुक्की के बाद प्रेस वार्ता शुरु हुई।नीलमणि जी के स्वान ने कहा पहले आप सभी सवाल करे और फिर हम एक एक कर जवाब देगे।सारे तोप पत्रकार वार्ता में मौंजूद थे।अधिकांश चैनलों पर लाईभ चल रहा था क्यों न हो सभी ने जो मोटी रकम लाईभ करने के लिए जो लिया था।सवाल सूबे में बढते अपराध से लेकर बिजली बोर्ड के धोटाले, ललन नीतीश के रिश्ते में आयी खटास सहित मनसे विधायकों के कारनामे तक से जुड़ा था।
आंधे घंटे तक सवाल के बौछार के बाद बारी आयी जबाव देने का नीलमणि साहब के अंदाज में ही उनके स्वान ने भी एक एक सवाल का जवाब देना शुरु किया।अंदर पंडाल में मुख्यमंत्री के कुत्ते साहब प्रेस वार्ता को बड़ी गम्भीरता से देख रहे थे।मोदी साहब का लाडला बटाईदारी से जुड़े सवालों के जवाब का इंतजार कर रहे थे वही नगर विकास के प्रधान सचिव अमानुल्लाह का कुत्ता आराम से खराटा ले रहा था।वार्ता स्थल पर जबरदस्त बहस चल रही थी।इसी दौरान हिन्दुस्तान अखबार के प्रतिनिधि ने स्वान साहब को टोकते हुए कहा कि अपराध से जुड़ा जो आकड़ा आप दे रहे हैं वह पूरी तरह गलत हैं स्वान साहब ने कहा आप सही कह रहे हैं आंकड़ा सही में गलत हैं ।लेकिन यह आंकड़ा तो पिछले चार वर्षों से आप ही अखबार के मुख्य पेंज पर छाप रहे हैं। भारद्वाज साहव यह प्रेस कतरन सभी लोगो को बांट दिजिए।कतरन देखते ही हिन्दुस्तान के प्रतिनिधि मुंह छिपाये वार्ता स्थल से खिसक चले ।अब बारी जागरण के प्रतिनिधि के सवालों के जबाव का था जिसमें भ्रष्टाचार के तरीके से जुड़े आकंड़ों पर जबाव देनी थी ।नीलमणि साहब के स्वान ने पास बैंठे पी0के0ठाकुर के स्वान को इशारे किये और कुछ लाने का निर्देश दिया।इस बीच नीलमणि साहब का स्वान निगरानी के कारवाई पर बोलते रहे लेकिन जागरण के महोदय सूनने को तैयार नही थे।तब तक पी0के0ठाकुर साहब के स्वान सूचना जनसम्पर्क के प्रधान सचिव राजेश भूषण के स्वान के साथ तीन चार मोंटी फाईले लेकर आते हुए दिखे ।उनके आते ही पूरे प्रेसं वार्ता स्थल पर भूचाल आ गया जागरण के प्रतिनिधि किधर गये पता नही चला और प्रभात खबड़ ,आज और सहारा के प्रतिनिधि की भाषा ही बदल गयी।देखते देखते प्रेस वर्ता स्थल पर नीतीश के सुशासन का राष्ट्र गान शुरु हो गया और सभी एक स्वर से राग भैंरवी गाने लगे प्रेस वार्ता नीतीश की जय हो के नारे से गुजने लगा और धीरे धीरे लोग जाने भी लगे नीलमणि साहब का स्वान खड़े होकर सभी का अभिवादन कर रहे थे।तभी उनकी नजर ई0टी0भी0 के प्रतिनिधि पर परा झट से आगे बढते हुए नीलमणि साहब के स्वान ने कहा आप कहा आ जाते हैं इनकी महफिल में। आप अपनी राग जारी रखिये आप का हाल लालू जी के समय भी वही था और नीतीश जी के समय भी वही हैं जिसका स्वभाव बैंरागी वाला रहता हैं उसको बदला नही जा सकता हैं।आवाज थोड़ा लरखराते हुए कहा ऐ सर इ कोन सा ललका फाईल मंगवाये जो सब के सब भाग गया नीलमणि साहब के स्वान ने कहा आप नही समझियेगा।आपके यहां से जो महुंआ में गया हैं उससे पुछये उस ललका फाईल में क्या हैं।ये सब पांच सौं करोड से ज्यादा का विज्ञापन सरकार से लिया हैं और रिपोर्ट कार्ड छापने के लिए सरकार ने सौं करोड़ का बजट बनाया हैं इस फाईल पर एक दो दिन मैं दस्तख्त होना हैं किसको कितना विज्ञापन मिलना हैं।वो सर अब समझ में आया साला हमरे यहां तो इस सब से मतलबे नही हैं चलिए कुछ कहना हैं आपको, क्या कहे आप तो सरकार की ऐसी की तैसी करवे किजिएगा।चलिए सर गुडनाईट बहुत अच्छा खस्सा बना था।अंदर लाईभ देख रहे सभी लोग गदगद थे अरे भाई नीलमणि तो कमाल कर दिया।जाते हैं साहब को कहगे ऐ सर नीलमणि साहब को पर्मानेन्ट प्रवक्ता बनाईये दिजिए।बरका बराक पत्रकार को पानी पीला दिये जो साहब को आये दिन जड़ा में भी पसीना छोड़ाया रहता हैं।
रविवार, नवंबर 08, 2009
किसने कहा प्रभाष जी इस दुनिया से चले गये
प्रभाष जी को पत्रकारिता के क्षेत्र का गांधी कहे तो कोई अतिशियोक्ति नही होगी ।आने वाले समय में जब भी क्रिकेट पर बात होगी, देश के शासन व्यवस्था को लेकर लिखी जायेगी या फिर भारत के आर्थिक सामाजिक और विदेश नीति पर लिखने की बात आयेगी तो एक बार लोगो के जेहन में यह अवश्य आयेगा कि प्रभाष जी इस अंदाज में लिखते या फिर प्रभाष जी इस मसले को इस तरह से सोचते।कहने का मतलब यह हैं कि प्रभाष जी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में वो महल खड़ा कर दिया हैं जिसके सामने दुनिया की सबसे बड़ी इमारत भी बौंनी लग रही हैं।
मुझे लगता हैं कि इस दुनिया में मौंत ही एक मात्र सत्य हैं जिसे झुठलाया नही जा सकता। भले ही प्रभाष जी अब टीवी स्क्रीन और अखबारों में बेवाकी से लिखते हुए नही दिखे। लेकिन आने वाले सौ साल बाद भी पत्रकार कितना भी भ्रष्ट क्यों न हो जाये उसके जुबान और कलम पर प्रभाष जी की झलक दिख ही जायेगी।इनकी यही कृत्ति इन्हे पत्रकारिता का गांधी होने का गुरुर प्रदान करती हैं।कौन कहता हैं कि प्रभाष जी इस दुनिया से चले गये आज भी और अभी भी हमारे बीच उसी अंदाज में धोती पहने खड़े हैं ।और चुनौती दे रहे हैं अखबार में काम करने वाले पत्रकारों को, टीवी चैनल के एंकर और रिपोर्टर को कह रहे हैं मद्दा हैं तो प्रभाष जोशी बनकर दिखाओं।
आज पटना में पत्रकारों के बीच यह चर्चा आम रही कि दैंनिक जागरण अखबार ने प्रभाष जी के बारे में एक खबड़ तक नही लिखा। शायद गुप्ता परिवार को लग रहा होगा कि हमारे नही छापने से प्रभाष जी की लोकप्रियता में बड़ी सेंधमारी हो जायेगी।इनकी नादानी पर हंसी आती हैं बाबू अखबार के पीछे के पन्ने पर पूरे खानदान का नाम प्रबंध संपादक से लेकर स्थानीय संपादक तक क्यों न छपवा लों लोग कहेगे ही कि यह कविता और संपादकीय इसके बाप की लिखी हुई नही हैं।पैंसा है अखबार की फैक्ट्री लगा सकते हो लेकिन बाजार में प्रभाष जोशी जैसा संस्कार नही बिकता हैं जो खरीद लोगे।वक्त अभी बहुत बाकी हैं पत्रकारिता के बल पर पैंसा लूटने वाले जल्द ही इस क्षेत्र से भांगते नजर आयेगे प्रभाष जोशी का भूत इन्हें पीछा छोड़ने वाला नही हैं। प्रभाष जोशी ने एक नही, सौं नही हजार नही ,लाख नही ,करोड़ो ऐसे पाठक पैंदा करके गये हैं जो इन्हे पत्रकारिता करने पर मजबूर कर देगी।खैर छोड़िये बात करते करते कहां चले गये सवाल तो प्रभाष जी के जाने का हैं।
मुझे आज भी याद हैं तारीख 9मई 2000 समस्तीपुर जिले में बाढ आयी हुई थी प्रभाष जोशी और रामबहादुर राय रोसड़ा आये थे बाढ के हलात पर लिखने के लिए और लोगो से बाढ के स्थायी समाधान पर वहस करने के लिए।स्थान था भरतदास मंदीर परिसर में तील रखने की जगह नही थी बाढ पीड़ितों के साथ साथ आसपास के लोग आये हुए थे।कार्यक्रम की शुरुआत बाढ पीड़ितों के आप बीती से हुई और अंत प्रभाष जोशी के दमदार भाषण के साथ। प्रभाष जोशी के भाषण के दौरान सभा स्थल पर मौंजूद फटेहाल और कई दिनों से तटबंध पर शरण लिए हुए ग्रामीणों में लगा जैसे दूसरा गांधी उनके बीच हो सबों के जुबान पर बस एक ही नारा था जोशी बाबा इस दर्द से मुक्ति दिलाओं।
उस वक्त मेरी नयी नयी शादी हुई थी और अपनी पत्नी को प्रभाष जोशी का भाषण सुनाने ले गया था हलाकि उसे इक्छा नही थी उसे लग रहा था कि एक पत्रकार को देख ही रहे हैं तो दूसरा कैसा हो सकता हैं।लेकिन प्रभाष जोशी की बात सून कर पत्रकारों को लेकर उसकी पूरी धारना ही बदल गयी और आज पत्रकारिता के लिए कुछ भी कर पा रहा हू तो उसमें मेरी पत्नी की भूमिका कम कर नही आंकी जा सकती हैं ।क्यों कि हर वक्त वो जोशी जी के आदर्शों को याद दिलाती रहती हैं।यह कैसा संयोग हैं जिस दिन सुबह जोशी जी के मरने की खबर मिली उसी दिन आंफिस जाने पर मुझे प्रमोशन दिये जाने की सूचना दी गयी । लेकिन पूरे घर में खामोशी छाई हुई हैं सिर्फ एक ही चर्चा हो रही हैं किस तरह प्रभाष जोशी और राम बहादुर राय खूले आकाश के नीचे मछरदानी लगा कर सोने की जिंद करते रहे यह कहते हुए कि ऐसी स्वच्छ हवा दिल्ली में मिलती कहा हैं।काफी दिनों बाद आकाश को देखने का अवसर मिला हैं इतनी तारा को कब देखा याद भी नही हैं।घर को लोग चितित थे कि ओस में सोने पर कही इन लोगो की तबियत न बिगड़ जाये ।लेकिन दो दिनों के निवास के दौरान कभी भी जोशी जी को खांसी होते नही देखा।बाद के दिनों में इन्होने अपनी नियमित कांलम में रोसड़ा की यात्रा को लिखा था।प्रभाष जी पढे लिखे के बीच ही नही गांव के किसान के बीच भी उतने ही लोक प्रिय हैं जितने उनके कांलम पढने वाले पाठकों के बीच, ऐसे में कोई इतनी जल्दी कैसे जोशी जी के इस जहां से चले जाने की बात स्वीकार कर ले।
शुक्रवार, अक्तूबर 16, 2009
दवा के साथ साथ मर्ज बढता ही जा रहा हैं
मनुष्य के अंदर अमुमन जो बुराईया होती हैं उससे अभी तक मेरा साकपा नही पड़ा हैं।जन्म से पहले पिता का साया सर से उठ गया लेकिन आज तक कभी एहसास नही हुआ कि पिता मेरे नही हैं। अपनी बहन नही हैं लेकिन आज तक बहन का प्यार नही मिला हो ऐसा कभी नही हुआ।समाज रिश्तेदार और मित्रों का इतना प्यार मिला हैं कि आज भी मैं गैरजबावदेह हुं।बचपन दादा के गोद में गुजरा जहां सुबह होते ही ऐसे लोगो से भेट होती थी जिसके तन पर वस्त्र नही रहता था किसी का भाई बैमानी कर लिया हैं तो किसी को थाने वाला तंग कर रहा हैं तो किसी को शहर का महाजन अधिक सूद मांग रहा हैं। रोजना रोते बिलखते लोगो के बीच मेंरी नींद खुलती थी औऱ दिन भर ऐसे लोगो के बीच रहता था।यहां आने वाला हर कोई दुखिया ही रहता था ।
दादी के पास पहुंचता तो कोई महिला अपने बच्चों के इलाज के लिए पैंसा लेने के लिए बैंठी रहती थी तो कोई पिया के परदेश भेजने के लिए टिकट का पैसा लेने के लिए। कई बार तो ऐसी महिलाये भी आती थी जो कई दिनों से भुखी रहती और एक दो किलो मकई या गेहू की मांग करते हुई दिन भर बैंठी रह जाती थी।मुझे लगता था लोग गरीब क्यों होते हैं पुलिस वाले और ब्लांक वाले गरीब लोगो को ही तंग क्यों करता है।एक दिन की बात हैं एक रिक्शा वाला जो अकसर मुझे घुमाता था वह पूरी तरह से खून से लथपथ भागे भागे दादा के पास आकर गिर गया।दादा जी उसका हाल जानने के बदले उसकी पिटाई शुरु कर दी मुझे लगा यह क्या हो रहा हैं मैं जोड़ जोड़ से रोने लगा और दादा जी इसे मत मारो मत मारो कहने लगा इसी बीच वह रिक्शा चालक मार खाने के दौरान ही मुझे गोद में ले लिया और कहने लगा बाबू चलिए चलिए रिक्शा पर घुमाते हैं। उसके गोद में गया तो मुझे आज भी याद हैं कि उसका मुंह इतना गंदा महक रहा था कि उसके बाद कभी भी उसके गोद में नही गया और ना ही कभी उसके रिक्शा पर बैठा।थोड़ी देर बाद पच्चीस तीस लोग आये साथ में कई महिलाये भी थी।पता चला रिक्शा वाला अपनी पत्नी को मार दिया हैं क्यो कि उसकी पत्नी शराब पीने से हमेशा रोकती रहती थी।मुझे याद हैं कि मैंने दादा से पुछा था शराब क्या होता हैं और यह कैसे बनता हैं पता चला सरकार ही बनाकर बेचती हैं ।तब से शराब के बारे में मेरा जो ख्यालात बना आज तक कायम हैं।
बचपन में मुझसे जो कोई भी पुछता क्या बनोगे मैं गर्व से कहता था नेता बनूंगा लेकिन जैसे जैसे बड़ा होते गया नेता बनने की इक्छा मरती गयी ।बाद के दिनों मैंने देखा जनता नेता से उम्मीद करता हैं कि आप हमारे लिए गलत पेरवी करे ,हमारे नजायज कार्यों का समर्थन करे हम लोगो को लूटे आप मुझे बचाये।गरीब और बेसहारा लोगो का जमीन हड़प ले विधवा के साथ अन्याय करे और उस पाप में आप भी सह भागी बने।अगर आपने ऐसा नही किया तो आपको वोट नही देगे ।जनता के इस व्यवहार को लेकर घर में चर्चाये होनी लगी थी और सामूहिक फैसला हुआ कि अब चुनाव नही लड़ना चाहिए लेकिन चुनाव आते ही लोगो का इतना दवाव पड़ा कि चाचा जी को चुनाव लड़ना ही पड़ा और दादा जी से लेकर अभी तीस वर्ष से लगातार प्रतिनिधुत्व करे रहे मेरे चाचा जी को चुनावी हार झेलनी पड़ी।
इस खेल में वैसे ही प्रपंची लोग शामिल थे जिन्हे कभी जमीन हड़पने या फिर अपराधिक मामले में जेल जाने पर मदद नही किया गया।इस हार के बाद यू कहे तो मेरी आस्था और सम्मान इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से पूरी तरह समाप्त हो गयी।लेकिन बचपन से जिन समस्याओं को देखा उसके समाधान को लेकर मन कभी भी शांत नही रहा दिल्ली विश्वविधालय से पढाई पूरी करने के बाद कई खयालात आये सिविल सर्विसेज की नौकरी का प्रयास किया लेकिन सफलता नही मिली ।कपार्ट जैसी संस्थान से जुड़ने का मौंका मिला लेकिन मुझे लगा कि स्वयंसेवी संस्थान के साथ काम करने या खुद का एनजीओ खड़ा कर लोगो के लिए काम करे इसके लिए फंडिंग को लेकर जो खेल होता हैं उसमें संतोष को पहले मरना पड़ेगा।
काफी सोच विचार कर पत्रकारिता की राह थामी और दिल्ली में पत्रकारिता करने के बजाय गांव से पत्रकारिता की शुरुआत की मेरा कैरियर 1998में प्रभातखबर से शुरु हुई और प्रिंट मीडिया में हिन्दुस्तान अखवार से खत्म हुआ।इस फिल्ड में आने के बाद पता चला कि जिस शोषण के खिलाफ आवाज उठाने आये हैं वह खुद इतना शोषित हैं। लेकिन महज संयोग रहा कि इसका प्रभाव कभी भी मेरे लेखनी पर नही पड़ा शोषण के खिलाफ लिखते रहे और हर दूसरे दिन नये उत्साह के साथ अभियान जारी रखा। लालू के शासन काल में कई बड़े नेता के गिरेवान पर हाथ डाला और सुरजभान जैसे माफिया की धमकी मेरे काम पर प्रभाव नही डाल सका।मेरे उपर फर्जी मुकदमें दायर किये गये लेकिन लेखनी में निष्पक्षता और वेवाकी को देखते हुए बड़े से बड़े अधिकारी ने कभी मेरे स्वाभिमान को ठेस नही पहुंचाया।
आप को जानकर यह आशर्चय होगा कि माफिया तत्वों ने जब कलम पर अंकुश नही लगा सका तो मेरी पत्नी को भी एक मामले में अभियुक्त बना दिया लेकिन जज साहब को धन्यावाद देना चाहुंगा जिन्होने न्यायपालिक के इतिहास में पहली बार अभियुक्ति को गठघड़े में बुलाने के बजाय घर पर आकर जमानत दिये और उस मामले को तुंरत खत्म कर दिया।इस तरह के कई झंझावत झेलने पड़े हैं लेकिन मेरा मानना हैं कि आप अपने लेखनी में निष्पक्ष हैं तो एक से एक भ्रष्ठ आचरण वाले अधिकारी, माफिया,नेता और अपराधी कभी भी आपके काम में बाधा नही डालेगा।जब कभी भी किसी मसले पर कलम उठाया भ्रष्ट से भ्रष्टतम अधिकारी त्वरीत कारवाई कर लोगो को समाज को और कभी कभी गांव को न्याय दिलाया हैं।अगर किसी व्यक्ति के बारे में सीधे जाकर अधिकारी को कहा कि यह व्यक्ति अपराधी नही हैं पुलिस सोचने पर मजबूर हो जाती थी।इसके साथ न्याय नही हो रहा हैं यह कहना ही काफी था कभी किसी ने इसका प्रतिकार नही किया लेकिन इस विश्वास को जनता ने ही तोड़ा और धीरे धीरे यह संर्घष कुंद पड़ने लगा।लेकिन अभी भी वह लड़ाई जारी हैं जिसका एहसास मुझे लोरी की गीत के साथ हुआ था लेकिन इस मर्ज से अब मुक्ति चाहते हैं रात में चैंन से सोना चाहता हूं।आपके पास कोई नुकसा हो तो बताये अभी तक तो स्वस्थय और रोग विहीन बिंदास हूं ।अपने में मदमस्त व्यवस्था से लड़ता रहता हूं जितने ताकत से वार करता हूं उतनी उर्जा मिलती हैं लेकिन अब थोड़ी थकान महसूस होने लगी हैं।चलिए इस पर्व के अवसर पर आपका नींद क्यो हराम करु।दिपावली और छठ की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ एक सप्ताह के लिए अपनी लेखनी को यही विराम देते हैं।आज से 26अक्टूबर तक संचार के अधिकांश संशाधनों से मुक्त होकर गांव जा रहा हूं फिर वही मेंघू बाबा,खल्टू,मधुरी वकिल भुनैया तेतर,मन्ना के पास जो कभी मुझे लोरी सुनाकर कंधे पर बैठाकर मेला घुमाते थे।वक्त गुजरेगा खेत के मेर पर धान की कटनी में और गेहू और मकई के साथ साथ ईख की रोपनी करने में। मेरे दोस्त गांव जाता हू तो पूरी तौर पर किसान का जीवन जीता हूं मजदूर और किसानों से मिलता हूं।लोगो से सुशासन पर बात करता हू सरकारी योजनाओं का हाल जानता हू और उस स्कूल का हाल जरुर जानता हूं जहां से पढकर दिल्ली पहुचा था।
दादी के पास पहुंचता तो कोई महिला अपने बच्चों के इलाज के लिए पैंसा लेने के लिए बैंठी रहती थी तो कोई पिया के परदेश भेजने के लिए टिकट का पैसा लेने के लिए। कई बार तो ऐसी महिलाये भी आती थी जो कई दिनों से भुखी रहती और एक दो किलो मकई या गेहू की मांग करते हुई दिन भर बैंठी रह जाती थी।मुझे लगता था लोग गरीब क्यों होते हैं पुलिस वाले और ब्लांक वाले गरीब लोगो को ही तंग क्यों करता है।एक दिन की बात हैं एक रिक्शा वाला जो अकसर मुझे घुमाता था वह पूरी तरह से खून से लथपथ भागे भागे दादा के पास आकर गिर गया।दादा जी उसका हाल जानने के बदले उसकी पिटाई शुरु कर दी मुझे लगा यह क्या हो रहा हैं मैं जोड़ जोड़ से रोने लगा और दादा जी इसे मत मारो मत मारो कहने लगा इसी बीच वह रिक्शा चालक मार खाने के दौरान ही मुझे गोद में ले लिया और कहने लगा बाबू चलिए चलिए रिक्शा पर घुमाते हैं। उसके गोद में गया तो मुझे आज भी याद हैं कि उसका मुंह इतना गंदा महक रहा था कि उसके बाद कभी भी उसके गोद में नही गया और ना ही कभी उसके रिक्शा पर बैठा।थोड़ी देर बाद पच्चीस तीस लोग आये साथ में कई महिलाये भी थी।पता चला रिक्शा वाला अपनी पत्नी को मार दिया हैं क्यो कि उसकी पत्नी शराब पीने से हमेशा रोकती रहती थी।मुझे याद हैं कि मैंने दादा से पुछा था शराब क्या होता हैं और यह कैसे बनता हैं पता चला सरकार ही बनाकर बेचती हैं ।तब से शराब के बारे में मेरा जो ख्यालात बना आज तक कायम हैं।
बचपन में मुझसे जो कोई भी पुछता क्या बनोगे मैं गर्व से कहता था नेता बनूंगा लेकिन जैसे जैसे बड़ा होते गया नेता बनने की इक्छा मरती गयी ।बाद के दिनों मैंने देखा जनता नेता से उम्मीद करता हैं कि आप हमारे लिए गलत पेरवी करे ,हमारे नजायज कार्यों का समर्थन करे हम लोगो को लूटे आप मुझे बचाये।गरीब और बेसहारा लोगो का जमीन हड़प ले विधवा के साथ अन्याय करे और उस पाप में आप भी सह भागी बने।अगर आपने ऐसा नही किया तो आपको वोट नही देगे ।जनता के इस व्यवहार को लेकर घर में चर्चाये होनी लगी थी और सामूहिक फैसला हुआ कि अब चुनाव नही लड़ना चाहिए लेकिन चुनाव आते ही लोगो का इतना दवाव पड़ा कि चाचा जी को चुनाव लड़ना ही पड़ा और दादा जी से लेकर अभी तीस वर्ष से लगातार प्रतिनिधुत्व करे रहे मेरे चाचा जी को चुनावी हार झेलनी पड़ी।
इस खेल में वैसे ही प्रपंची लोग शामिल थे जिन्हे कभी जमीन हड़पने या फिर अपराधिक मामले में जेल जाने पर मदद नही किया गया।इस हार के बाद यू कहे तो मेरी आस्था और सम्मान इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से पूरी तरह समाप्त हो गयी।लेकिन बचपन से जिन समस्याओं को देखा उसके समाधान को लेकर मन कभी भी शांत नही रहा दिल्ली विश्वविधालय से पढाई पूरी करने के बाद कई खयालात आये सिविल सर्विसेज की नौकरी का प्रयास किया लेकिन सफलता नही मिली ।कपार्ट जैसी संस्थान से जुड़ने का मौंका मिला लेकिन मुझे लगा कि स्वयंसेवी संस्थान के साथ काम करने या खुद का एनजीओ खड़ा कर लोगो के लिए काम करे इसके लिए फंडिंग को लेकर जो खेल होता हैं उसमें संतोष को पहले मरना पड़ेगा।
काफी सोच विचार कर पत्रकारिता की राह थामी और दिल्ली में पत्रकारिता करने के बजाय गांव से पत्रकारिता की शुरुआत की मेरा कैरियर 1998में प्रभातखबर से शुरु हुई और प्रिंट मीडिया में हिन्दुस्तान अखवार से खत्म हुआ।इस फिल्ड में आने के बाद पता चला कि जिस शोषण के खिलाफ आवाज उठाने आये हैं वह खुद इतना शोषित हैं। लेकिन महज संयोग रहा कि इसका प्रभाव कभी भी मेरे लेखनी पर नही पड़ा शोषण के खिलाफ लिखते रहे और हर दूसरे दिन नये उत्साह के साथ अभियान जारी रखा। लालू के शासन काल में कई बड़े नेता के गिरेवान पर हाथ डाला और सुरजभान जैसे माफिया की धमकी मेरे काम पर प्रभाव नही डाल सका।मेरे उपर फर्जी मुकदमें दायर किये गये लेकिन लेखनी में निष्पक्षता और वेवाकी को देखते हुए बड़े से बड़े अधिकारी ने कभी मेरे स्वाभिमान को ठेस नही पहुंचाया।
आप को जानकर यह आशर्चय होगा कि माफिया तत्वों ने जब कलम पर अंकुश नही लगा सका तो मेरी पत्नी को भी एक मामले में अभियुक्त बना दिया लेकिन जज साहब को धन्यावाद देना चाहुंगा जिन्होने न्यायपालिक के इतिहास में पहली बार अभियुक्ति को गठघड़े में बुलाने के बजाय घर पर आकर जमानत दिये और उस मामले को तुंरत खत्म कर दिया।इस तरह के कई झंझावत झेलने पड़े हैं लेकिन मेरा मानना हैं कि आप अपने लेखनी में निष्पक्ष हैं तो एक से एक भ्रष्ठ आचरण वाले अधिकारी, माफिया,नेता और अपराधी कभी भी आपके काम में बाधा नही डालेगा।जब कभी भी किसी मसले पर कलम उठाया भ्रष्ट से भ्रष्टतम अधिकारी त्वरीत कारवाई कर लोगो को समाज को और कभी कभी गांव को न्याय दिलाया हैं।अगर किसी व्यक्ति के बारे में सीधे जाकर अधिकारी को कहा कि यह व्यक्ति अपराधी नही हैं पुलिस सोचने पर मजबूर हो जाती थी।इसके साथ न्याय नही हो रहा हैं यह कहना ही काफी था कभी किसी ने इसका प्रतिकार नही किया लेकिन इस विश्वास को जनता ने ही तोड़ा और धीरे धीरे यह संर्घष कुंद पड़ने लगा।लेकिन अभी भी वह लड़ाई जारी हैं जिसका एहसास मुझे लोरी की गीत के साथ हुआ था लेकिन इस मर्ज से अब मुक्ति चाहते हैं रात में चैंन से सोना चाहता हूं।आपके पास कोई नुकसा हो तो बताये अभी तक तो स्वस्थय और रोग विहीन बिंदास हूं ।अपने में मदमस्त व्यवस्था से लड़ता रहता हूं जितने ताकत से वार करता हूं उतनी उर्जा मिलती हैं लेकिन अब थोड़ी थकान महसूस होने लगी हैं।चलिए इस पर्व के अवसर पर आपका नींद क्यो हराम करु।दिपावली और छठ की ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ एक सप्ताह के लिए अपनी लेखनी को यही विराम देते हैं।आज से 26अक्टूबर तक संचार के अधिकांश संशाधनों से मुक्त होकर गांव जा रहा हूं फिर वही मेंघू बाबा,खल्टू,मधुरी वकिल भुनैया तेतर,मन्ना के पास जो कभी मुझे लोरी सुनाकर कंधे पर बैठाकर मेला घुमाते थे।वक्त गुजरेगा खेत के मेर पर धान की कटनी में और गेहू और मकई के साथ साथ ईख की रोपनी करने में। मेरे दोस्त गांव जाता हू तो पूरी तौर पर किसान का जीवन जीता हूं मजदूर और किसानों से मिलता हूं।लोगो से सुशासन पर बात करता हू सरकारी योजनाओं का हाल जानता हू और उस स्कूल का हाल जरुर जानता हूं जहां से पढकर दिल्ली पहुचा था।
रविवार, अक्तूबर 11, 2009
जहां मुर्दे की भी बोली लगायी जाती हैं
नीतीश जी आपके सुशासन का एक चेहरा देश के सामने लाने जा रहा हूं पढने के बाद आप खुद तय करेगे की लोग आप को दोबारा किस बिनाह पर चुने ।यह सवाल उनके लिए भी हैं जो बिहार में बदलाव की बात सोच रहे हैं और डंके के चोट पर बोल भी रहे हैं। कभी पटना मेडिकल कांलेज देश ही नही दुनिया में ख्याति प्राप्त था आज भी अमेरिका और इंग्लैंड के बड़े मेडिकल कांलेज में यहां से पढे डांक्टर मिल जायेगे।वाकिया दो तीन दिनों पूर्व का ही हैं मेरा आंफ था आराम से घर पर मस्ती कर रहे थे और नानभेज बनने का इंतजार कर रहा था जैसे ही कुकर खुला डाईनानिंग टेबल पर बैठ गया जमकर खाया एक तो डियूटी पर नही जाने का सकुन था दूसरा प्रिय भोजन खाये जा रहा था इस बीच कई बार मोबाईल की घंटी बची लेकिन खाने की मस्ती में घंटी की आवाज मानो कान तक पहुंच ही नही रही थी।खाना खत्म करने के बाद जैसे ही विस्तर पर आराम करने पहुंचा फिर मोबाईल की घंटी बची।मोबाईल की और देखा तो जाना पहचाना नम्बर नही था फिर भी मोबाईल उठाया टुनटुन(मेरे घर का नाम हैं)संजय मामा बोल रहे हैं आवाज पहचानी लग रही थी लेकिन समझ नही पा रहा था कि ये हैं कौन लेकिन संबोधन से समझ गया कि कोई करीबी रिस्तेदार ही होगे मैं हालचाल पुछने लगा इसी बीच इन्होने बोला दतुआर वाले मेहमान जी का ऐक्सीडेन्ट हो गया हैं सुनते ही मेरा होस उड़ गया मैने पुछा आप हैं कहा उन्होने बोला रात में ही पीएमसीएच आये हैं लेकिन कोई डांक्टर ठिक से देख नही रहा हैं कोई प्रायवेट में बेहतर डांक्टर हो तो बताओं।मैं हक्का बक्का था क्यो कि जिस शक्स के बिमार होने की बात की जा रही थी वो हमारे जीजी जी लगते थे और वे हमें गोद में खिलाये हुए थे ।मैं आनन फानन में तैयार हुआ और निकलने से पहले स्वास्थय मंत्री के पीए और पीएमसीएच के एक डाक्टर मित्र को फोन किया संयोग से डाक्टर पीएमसीएच मैं ही मौजूद थे ।जब तक मैं अस्पताल पहुचता मरीज को देखने के लिए डांक्टरों की लाईन लग गयी।भागे भागे मैं जब पीएमसीएच के आईसीयू रुम मैं पहुचा तो देखते हैं डांक्टरों की एक पूरी टीम लगी हुई हैं मेरे मित्र डांक्टर मुझे दिलासा दिला रहे हैं कोई घबड़ाने की बात नही हैं सब कुछ ठिक हो जायेगा।मरीज का हाल देख कर मैं इतना भावुक हो गया कि अंदर पाच मिनट भी नही रुक सका बाहर आकर सीसे से देखने लगा ।इसी बीच एक डांक्टर पहुचता है और 403नम्बर बेड के मरीज के बारे में आईसीयू के इनचार्ज से पुछताछ करने लगता हैं कब भर्ती हुआ क्या क्या ट्रिटमेंट हुआ हैं। सर कल रात को दस बजे हैं भर्ती हुआ हैं डां कस्यप देखे हैं ब्रेन हेमरेज लग रहा हैं पूरी फाईल दिखायों फाईल देखते ही डाक्टर गुस्से में आ गया कल रात में ही मेडिसीन के डांक्टर को देखने का कांल लिखा हुआ हैं अभी तक कोई देखा नही हैं सिस्टर आप लोग क्या रवैये अपनाये हुए हैं तुरंत डांक्टर मनीश पर कांल करो इस मरीज के बारे में स्वास्थय मंत्री पुछताछ कर रहे हैं।यह सब चुपचाप मैं देख रहा था इसी बीच डांक्टर की नजर आईसीयू के अंदर पड़ती हैं सिस्टर अंदर में कौन कौन डांक्टर हैं सर सभी 403 बेड के मरीज को ही देख रहे हैं।तेजी से वे भी अंदर चले गये थोड़ी देर बाद पोर्टेबल एक्सरे मशीन और अल्ट्रा साउड मशीन अंदर जाता हैं और फिर जांच शुरु होती हैं। मैं बाहर खड़ा होकर बेवस सब कुछ देख रहा था थोड़ी देर बाद अंदर से सभी डांक्टर बाहर आये और फिर शुरु हुआ लाईन आंफ ट्रिटमेंन्ट पर बहस। आधे घंटे में पाच हजार से अधिक की दवाये मरीज को लगा दी गयी ।इसी बीच पिछे से किसी के बुलाने की आवाज आयी पलट कर देखा तो सामने मेरी बहन खड़ी थी हलाकि दस वर्ष बाद आमना सामना हो रहा था लेकिन एक बार में ही पहचान गया। मैं अपने आपको संभाल नही पा रहा था लेकिन बहन बात बदलते हुए बोली इसे पहचानते हो गौर से पहचानने का प्रयास किया लेकिन चेहरा समझ में नही आ रहा था अरे यह बेबी हैं वही बेबी जिसके साथ बचपन में खेलते थे।25वर्ष बाद वह सामने थी एक प्रोढ महिला की तरह जिसके बारे में जब भी मैं ननिहाल जाता था जो बहन से भेंट होने पर पुछता था। मिल कर काफी खुशी हुई लेकिन वक्त ऐसा था कि खुशी व्यक्त नही हो पा रहा था।आंखो आंखो में ही एक दूसरे को अपने बचपन की यादे को ताजा करते हुए कुछ कहना चाह रहे थे तभी सिस्टर बाहर निकलती हैं संतोष जी कौन हैं नीचे के रुम में डांक्टर साहब बुला रहे हैं।भागते हुए नीचे गया अस्पताल के कई आला डाक्टर मौंजूद थे मैं अपने मित्र के सामने चुपचाप बैंठ गया तभी एक भारी भडकम आवाज में आयी जो बेहतर ट्रिटमेंन्ट होगा वह सभी किया जायेगा उपर वाले की इक्छा हुई तो ये सकुशल घर जायेगे।मैं अंदर ही अंदर काप रहा था शायद कल रात से ही ट्रिटमेंट होता तो आज यह स्थिति नही होती खैर चुपचाप डाक्टर की बात सुनता रहा।आधे घंटे तक उस रुम में बैठा रहा स्थिति देख कर आत्मा कचोट रही थी पेसेंट का परिवार दौड़ रहा हैं डांक्टर आक्सीजन का पाईस निकल गया हैं डांक्टर साहब मेरा पेसेंट तीन घंटे से दर्द से चिहार रहा हैं कोई देखने वाला नही हैं,डांक्टर साहब देखिये दिखिये मेरे पेसेंट का हालत अचानक बिगड़ गया हैं। सामने बैंठे जुनियर डांक्टर की और देखते हुए जाओं देख लो सीनियर डांक्टर इसी तरह से फरमान जारी करते रहे हर पांच मिनट पर तेज रोने की आवाज आती रहती थी।एक डांक्टर उठा कहा चलो यार यहां पर लोग शांति से बैठने भी नही देगा।यह सब मैं चुप चाप देख रहा था और सोच रहा था यही डांक्टर हैं जिसे लोग भगवान मानते हैं।सभी के सभी सीनियर डांक्टर उठ कर चल दिये। संतोष जी आप भी चलिए यहां पर बैठना मुश्किल हैं शांति से हमलोग बात भी नही कर सकते हैं।तभी एक जुनीयर डांक्टर तेजी से अंदर आता हैं सर उस पेसेंट का बीपी बहुत तेजी से फांल कर रहा हैं समझ में नही आ रहा हैं अरे यार फलाना दवा दे दो जब तक मरीज के परिजन दवा लेकर आता तब तक पेसेंट की मौंत हो गयी यह सब जाते जाते देख रहा था ।मेने अपने मित्र डांक्टर को बुला कर कहा आप लोगो की संवेदना मर चुकी हैं आप कहां रहेगे मैं उपर मरीज को देख कर आ रहा हूं उपर जब मरीज के पास गया तो लगा चमत्कार हो गया सांसे जो इतनी तेज चल रही थी लगभग समान्य हो गया था और चेहरे का रंग बदलने लगा था बीपी,पल्स रेंट और हार्टवीट पूरी तरह समान्य हो गया था बाहर निकल कर फिर डां0 को फोन किया बोले में तुरंत आ रहा हू परिवर्तन देख कर डां0 साहब भी थोड़े आसानवित हुए और बोले आज रात बच गये तो हम लोग रिकभर कर लेगे सही माईने में कहे तो अभी इनका इलाज शुरु हुआ ही हैं।लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मनजुर था जैसे ही मैं घर लौटा फोन आया एक्सपाईर कर गये।भागे भागे अस्पताल पहुंचा रात के 11 बज रहे थे होने लगा कैसे भेजा जाये गांड़ी वाले से बातचीत होने लगी मधुवनी जाने के लिए पांच हजार रुपये से कम कोई भाड़ा नही बता रहा था।तब तक मैं भी अपने को संभाल लिया था।पीएमसीएच पीरवहोर थाने मैं पड़ता हैं याद आया अड़े यहां का थानेदार पूर्व से परिचित हैं रात के बारह बजे उनके मोबाईल पर फोन किया घंटी बजते ही बोल उठे संतोष जी इतनी रात गये क्या बात हैं सारी बात बताया कहां पाच मिनट के अंदर तिवारी जी आपके पास पहुंचे रहे हैं आप वही रहे। पाच मिनट में ही थाने की मोबाईल गाड़ी आ गयी आवाज लगाते ही आपातकालीन सेवा के सामने लगाये हुए गाड़ी में से एक व्यक्ति भागे भागे तिवारी जी के पास पहुचा तिवारी जी कड़क कर बोले ऐ साहब के मित्र हैं तुरत गाड़ी दो सर तेल भरवा दिजियेगा मैं चुपचाप यह सब सुन रहा था मैंने पुछा तिवारी जी यह लुटेरो की बस्ती हैं क्या तिवारी जी बड़ी बेवाकी से कहां सर पीएमसीएच यमराज का घर हैं यहा डाक्टर से लेकर स्वीपर तक लुटेरा हैं।तभी पता चला कि लाश का पोस्टमार्टम होगा क्यों कि मामला ऐक्सीडेन्ट से जुड़ा हैं।इलाज के हड़वड़ी में मैं पुछ भी नही सका था कि कैसे घटना घटी।यह सब बाते हो रही थी कि थाना अध्यक्ष भी पहुंच गये ।वे खुद डांक्टर से बात किये और उसी समय यादव जी को फोन लगाये यादव जी सुबह सुबह आ जाईएगा पहला पोस्टमार्टन इनका होना चाहिए।उसके बाद विचार हुआ जो साथ महिलाये और बच्चा आया हैं उसके भेज दिया जाये क्यों कि पोस्टमार्टम होते होते बाहर बज ही जायेगा।बोलोरो जैसी गाड़ी से इन लोगो को भेजने का फैसला लिया गया बात होते होते सुबह के पांच बज गये थे।पीएमसीएच के सामने वाले टेक्सी ऐसटेन्ड से बात की गयी तो चार हजार से कम में कोई गाड़ी वाला जाने को तैयार नही थी हार कर पटना जग्शन के जीआरपी प्रभारी को फोन किया तुरंत एक गांड़ी 2000हजार रुपये के किराये पर भेज दिया।इन गाड़ी से सभी महिला को भेजवा कर हम भी फ्रेस होने घर आ गये।थोड़ी देर बाद अस्ताल से फोन आता हैं लाश को आईसीयू से निकाल कर मुर्दा घर में रखने के लिए एक हजार रुपया मांग रहा हैं।मैं हैरान रह गया ये क्या बात हुई तब मैंने पीएमसीएच बीट देखने वाले एक रिपोर्टर को फोन किया उसको सारी बाते बतलायी उसने वहां के कर्मचारी नेता का मोबाईल नम्बर दिया और कहा हम बात कर लते हैं।थोडी देर बाद फोन किया नेता का जवाव आता हैं सर यह पहचान नही रहा था लाश को पोस्टमार्ट के लिए भेज रहे हैं।थोडी देर बाद मैं भी अस्पताल पहुंच गया पता चला ये लोग सौ रुपया दे दिये हैं।तभी एक व्यक्ति आया और कहां सर पोस्टमार्टम वाले को आप खुद कह देगे बहुत पैंसा मांगता हैं।तय समय के अनुसार पुलिस अधिकारी बयान लेने आ गये तुरंत बयान की प्रक्रिया पूरी हो गयी मैंने जानने के उद्देश्य से कर्मचारी संघ के नेता से पुछा यह पुलिस वाला कितना लेता हैं सर जी यहां पोस्टींग करवाने के लिए एसएसपी के यहां बोली लगती हैं जैसा मामला होता हैं वैसा उसका रेट होता हैं.।खैर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा नेता से पुछा अब क्या करना हैं उसने कहा चलिए सर अंदर आप ही बात कर ले जैसे ही अंदर गया टेबुल पर कई लाश रखी हुई थी और एक व्यक्ति बड़ा चाकू से लाश का पेट फार रहा था।कहा अईलोहन(आये) नेता जी ऐ सुनों ये पत्रकार साहब हैं पहचाने छिए बोलहो काम क्या हैं।नेता जी सारी बात बतला दिया।कहा आज वैसे ही धन्धा मंदा हैं अभी तक रोज 15से बीस लाश आ जाता था लेकिन आज तो पांच पर भी आफत हैं इसी बीच डांक्टर भी आ गये मैंने अपना पिरचय दिया और आग्रह किया कि लाश को दुर जाना हैं इसलिए थोड़ा कम चीर फार करगे।खैर पोस्टमार्टम हो गया लाश ले जाने की बारी आयी तो मौल भाव होने लगा मैं इससे अपने आप को साफ अलग रखा वह बार बार कह रहा था पत्रकार साहब वाला बात हैं इसलिए दो हजार मांग रहे हैं नही तो चार पाच हजार से कम नही लेते ।ज्यदा मोलभाव करियेगा तो लाश को बिना टांका लगाये दे देगे मैं चुपचाप बाहर यह सब सुनता रहा तभी एक पुलिस अधिकारी आ गया संतोष जी कोई बड़ी घटना घटी हैं क्या नही नही मजरा समझते ही वह धिकारी अंदर गया और कड़क कर कहा लाश को बढिया से टांका लगाकर पैंक करो अचानक सभी लोग चुप हो गये थोड़ी देर बाद देखते हैं लाश को बाहर निकाला जा रहा हैं बाद में मैंने पुछा तो पता चला कि पांच सौ रुपया दे दिये हैं।ये सारी बाते कहने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ यह दिखलाना हैं कि भ्रष्टाचार किस तरीके के कहा कहा जड़ जमाये हुए हैं ।ऐसे हलात में एक ईमानदार आदमी की ईमानदारी बच पायेगी जहां इलाज कराने से लेकर लाश ले जाने तक की किमत तय हैं।यह हालात हैं सूबे की राजधानी पटना में स्थित पीएमसीएच अस्पताल का जिस पर मुख्यमंत्री से लेकर सूबे के तमाम आलाधिकारी की नजर रहती हैं।अब आप ही बताये इस सुशासन का क्या मतलव हैं।
मंगलवार, अक्तूबर 06, 2009
तूती की आवाज के सफर का एक वर्ष
आज से एक वर्ष पूर्व तूती की आवाज के माध्यम से आप सबों से मिलने का मौंका मिला कई अच्छे अनुभव भी हुए टी0वी0स्टार रविश जी जैसे लोगो का प्यार मिला, सागर जैसा पाठक मिला जिन्होने समय समय पर बेहतर सलाह दिया।वन्दना अवस्थी जैसी महिला मित्र मिली जिन्होने महिलाओं से जुड़ी खबरो पर सार्थक सलाह समय समय पर देती रही ।कौशल जी जैसे नीतीश समर्थक भी मिले।इस तरह ब्लांग के इस सफर में कई ऐसे लोग मिले जिन्होने सफर को जारी रखने में काफी मदद की।सुधा गुप्ता, अर्शिया, अजय कुमार झा जैसे मित्र भी मिले जिन्होने समय समय पर हौंसला अफजाई किया।
साथ काम करने वाले वरिष्ट प्रबोध जी का सहयोग सराहनीय रहा जिन्होने समय पर समय तकनीकी सहयोग के साथ साथ आलेख पर प्रतिक्रिया भी दिया।हमारे संस्थान के तकनीकि इनचार्ज का भी सहयोग मिला जिन्होने मेरे ब्लांग को साथ काम करने वाले लोगो के कम्पूटर से जोड़ दिया।सबो के प्यार और स्नेह से यह सफर जारी रहा हैं अब तो ऐसा लगने लगा हैं कि भोजन की तरह ब्लांग पर जाना शाररीक और मानसिक जरुरत बन गयी हैं। इसके बगैर जी नही सकते हैं जैसे सुबह सुबह अखबार देखने की बैचेनी रहती हैं उसी तरह रात में सोने से पहले ब्लांग पर जाने की बैचेनी रहती हैं।इस आदत से मेरी पत्नी काफी नराज भी रहती हैं।
मेरी पहचान साथ काम करने वालो के बीच ननसिरियस लोगो की श्रेणी में आता हैं हसना और हसाना मेरी पहचान हैं कोई कभी भी गम्भीर बहस के दौड़ान मेरी प्रतिक्रिया पर ध्यान नही देते हैं लोगो को लगता हैं संतोष को बोलने की आदत हैं ।लेकिन तूती की आवाज ने मेरे कई मित्र को मेरे बारे में अलग तरह से सोचने को मजबूर किया हैं।साथ काम करने वाले ऐसे ही एक मित्र जो उर्दु चैनल के बिहार के चीफ हैं महफुज जी एक दिन अचानक मेरे पास आये और धीरे से कहा भाई हम तो आपके फैन हो गये हैं। तूती की आवाज को पढने के बाद आपके बारे में मेरा नजरिया ही बदल गया आप रोजमर्रे की घटना को जिस अंदाज में रखते हैं इसकी सानी नही हैं। इसी तरह की प्रतिक्रिया साथ कार्य करने वाले कुलभूषण जी का भी रहा।मुझे लगा कि ब्लांग बनाने का मेरा मकसद कामयाब हो गया मैंने ब्लांग के माध्यम से वैसे लोगो की लड़ाई भी जीती हैं जिसको लेकर आज का अखबार और टीवी0 चैनल खामोश हैं।दरभंगा की पिक्की जिसे लोगो ने वैश्यामंडी में बेच दिया था ब्लांग पर खबड़ आने के बाद इस तरह भूचाल मचा कि आज इसमें शामिल सभी अपराधी सलाखो के पीछे हैं।इसी तरह कि प्रतिक्रिया बेगूसराय में सरेआम थानेदार द्वारा एक रिक्शा चालक की पिटायी के मामले में सामने आया थानेदार निलम्बित हुआ और रिक्शा चालक पर दर्ज झूठा मुकदमा वापस लेना पड़ा।
मैं इसी मकसद के साथ ब्लांग शुरु किया था कि वैसे अंतिम आदमी का आवाज बनकर कार्य करु जिसकी आवाज इस सोर में कही गुम हो गयी हैं।आप सबों का इसी तरह से प्यार मिलता रहा तो यह ब्लांग एक आन्दोलन बनकर बिहार के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी।
बुधवार, सितंबर 30, 2009
बिहार में नौका दुर्घटना सौ के मरने की आशंका जिम्मेवार कौन


रविवार, सितंबर 27, 2009
जुल्म सहने से बेहतर हैं पति के बगैर जीने की आदत डालों

गुरुवार, सितंबर 24, 2009
नीतीश जी यह कैसा सुशासन हैं।
बुधवार, सितंबर 23, 2009
बिहार पुलिस का यह हैं पीपुल्स फ्रेडली चेहरा
सोमवार, सितंबर 21, 2009
बिहार को जलाने की रची गयी थी साजिश

रविवार, सितंबर 20, 2009
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पाखंड-भाग-1

रविवार, सितंबर 13, 2009
ये हैं मेरा बिहार

मंगलवार, सितंबर 08, 2009
नीतीश जी इतने गुस्से में क्यों हैं।

रविवार, सितंबर 06, 2009
कानून अपना काम करेगा--नीतीश कुमार

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