भारतीय राजनैंतिक इतिहास में शायद चाणक्य के बाद किसी और राजनेता की नीति पर बहस की जा सकती हैं तो वह हैं नीतीश कुमार, जिनकी नीति के सामने चाणक्य नीति भी मात खा जायेगी।यह संयोग ही हैं कि इतिहास जिस चाणक्य को पाटलिपुत्र के शासक के मंत्री के रुप में जानता हैं। उसी पाटलिपुत्र के सिंहासन पर आज नीतीश विराजमान हैं।दोनो में फर्क सिर्फ इतना हैं कि चाणक्य ने अपने नीति का उपयोग पाटलिपुत्र के वेभव को बढाने में किया वही नीतीश अपने नीति के सहारे पूरे देश को बेवकूफ बनाकर पाटलिपुत्र के वेभव को मिटाने में कर रहे हैं।आज के समय नीतीश कुमार को लेकर यह टिप्पणी करना शायद लोगो को नागवार गुजरे लेकिन नीतीश के नीति को लेकर लोगो के अंदर जो भ्रम हैं उसे बाहर निकालना एक पत्रकार की सबसे बड़ी जबावदेही हैं।इसी जबावदेही को निभाते हुए मैंने नीतीश के पाखंड को आपके सामने लाने के लिए आज से एक अभियान शुरु किया हैं।इस अभियान का मकसद हैं पाटलिपुत्र के गौरवशाली इतिहास के सहारे लोगो को जागृत करना।-------
शुरु करते हैं नीतीश कुमार के उस नीति को जिसको लेकर वे इन दिनों सुर्खियों में हैं।नीति हैं राजनीत में परिवारवाद का इन्होने बिहार विधानसभा के उप चुनाव में सासंद ,विधायक और मंत्री के परिवार को टिकट नही देने का फैसला लिया।नीतीश कुमार के इस फैसले को लेकर मीडिया में जमकर तारीफ हुई और लिखने वाले यहां तक लिख डाले की नीतीश कुमार उपचुनाव भले ही हार गये हो लेकिन इतिहास उन्हे एक सुधाकर के रुप में याद रखेगा।दैनिक हिन्दुस्तान के स्थानीय संपादक अंकु श्रीवास्तव ने तो संपादकीय पेज पर नीतीश की इस नीति पर पूरा आलेख ही लिख डाला जिसमें नीतीश कुमार के इस कदम को भारतीय राजनीत में एक क्रांतिकारी कदम मानते हुए नीतीश कुमार को एक नायक के रुप में पेश किया गया। इसी तरह का लेख बिहार के चर्चित पत्रकार सुरेन्द्र किशोर ने भी लिखा।नीतीश के इस फैसले पर लगा जैसे देश मं राजनीत की एक नयी बयार निकल पड़ी हो हिन्दी अखबार को कौन कहे अंग्रेजी अखबार के बड़े बड़े विद्वान नीतीश के इस फैसले पर कलम तोड़ने लगे ।लगा कि राजाराम मोहन राय के बाद देश में कोई दूसरा सबसे बड़ा सुधारक अवतरित हुआ हो। लेकिन जब चुनाव परिणाम सामने आया तो नीतीश के हार को लेकर मीडिया के परोधाओं मैं राजनीत मैं परिवारवाद के प्रयोग को हार का एक बड़ी बजह दिखाने का होड़ लग गया।दैनिक हिन्दुस्तान ने अपने संपादकीय में लिखा कि नीतीश कुमार और शरद यादव ने परिवारवाद को लेकर जो कदम उठाये वह हार का कारण बना हैं तो इसे सकारात्मक परिणाम कहा जा सकता हैं बिहार की जनता में परिवारवाद की बिमारी इस कदर घर कर गयी हैं कि उससे निजात के लिए और काम करने की जरुरत हैं।कहने का मतलब यह हैं कि नीतीश के हार से एसी0मैं बैठने वाले विद्वान मित्र इतने विचलित हो रहे हैं कि इसके लिए बिहार की जनता को ही जबावदेह ठहराने लगे।इसी तरह की टिप्पणी प्रभात खबर में सुरेन्द्र किशोर द्वारा लिखे गये,कैसे बदला तीन महीने में मतदाताओं का मूड,आलेख में देखा जा सकता हैं।
पत्रकारिता के क्षेत्र में मेरी कोई विसात नही हैं और ना ही मैं बड़े घराने से जुड़ा हुआ हैं। लेकिन पिछले दस वर्षों की पत्रकारिता में प्रखंड से लेकर राजधानी तक के पत्रकारिता का सकारात्मक अनुभव जरुर हैं।मुझे मुखिया के चुनाव से लेकर सासंद,विधायक और मुख्यमंत्री बनने के चुनाव को बड़ी ही बारीकी से देखने और समझने का अवसर जरुर मिला हैं। मुझे बेहद दुख के साथ कहना पड़ रहा कि हमारे विरादरी के लोक जनता से काफी दूर हो गये हैं।पटना से चुनाव के दौरान भ्रमण कर जनता के नब्ज के टटोलने का दावा करने वाले पत्रकार बंधु नीतीश कुमार जो बोलते हैं उसके कुटनीति को समझने का प्रयास करे। आपके जरिये किस तरह वे अपना स्वार्थ सिद्दी कर रहे हैं कभी आप ने सोचा हैं।नीतीश कुमार की कुटनीति का सबसे पहला मंत्र हैं ऐसे विचारों को सामने लाये जो आदर्श स्थिति की बात करने वाले को लगे कि नीतीश महान राजनेता हैं।
अब जरा उनके परिवारवाद के सिद्धात का विशलेषण करे नीतीश कुमार के कहा था कि परिवारवाद स्वस्थय राजनीत के लिए बड़ी बाधा हैं और इसके कारण जमीन पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता निराश होते हैं।इस बार के चुनाव में मेरी पार्टी किसी भी सांसद,विधायक और मंत्री के रिश्तेदार को टिकट नही देगी।पार्टी इस बार अपने समर्पित कार्यकर्ताओं को टिकट देगी जिससे पार्टी नेतृत्व के प्रति कार्यकर्ताओं में विश्वास जगेगा।नीतीश कुमार के इस बयान पर भूचाल आ गया बिहार के सभी अखबारों ने नीतीश के इस बयान को काफी प्रमुखता से छापा और इसको लेकर सभी अखबारो ने कांलम शुरु कर दिया ।लेकिन नीतीश को महिमामंडीत करने के इस होड़ में, पत्रकार बंधु बिहार के जिस बारह सीटों पर नीतीश ने अपना उम्मीदवार खड़े किये उनकी राजनैतिक हैसियत क्या हैं किस आधार पर टिकट दिया गया हैं उसकी पड़ताल करने की जिम्मेवारी भी भूल गये। शायद यह भूल नही करते तो नीतीश कुमार के हार का ठिकरा आप बिहार की जनता पर नही फोड़ते।नीतीश कुमार जहानावाद और गोपालगंज के सासंद जगदीश शर्मा और पूर्णमासी राम के पत्नी और बेटे को टिकट नही देकर जिस परिवारवाद का डंका पिटे उनसे जरा पुछे घौरैया विधानसभा से जद यू के टिकट पर चुनाव जीतने वाले मनीष कुमार की क्या राजनैतिक हैसियत हैं।पटना में जन्म लिया यही पला बढा और इन्हे पार्टी ने बांका जिले के घौरेया विधानसभा क्षेत्र से टिकट दे दिया जरा मैं पुछना चाहता हू अपने विरादारी के लोगो से मनीष कुमार को किस आधार पर नीतीश कुमार ने टिकट दिया न तो यह बांका जिले का रहने वाला हैं और ना ही जद यू का समर्पित कार्यकर्ता हैं इसकी योग्यता सिर्फ यह हैं कि ये विधानसभा अध्यक्ष के रिश्तेदार हैं । क्या परिवारवाद में सिर्फ पत्नी बेटा ही आता हैं कहां गया नीतीश की घोषणा जमीनी कार्यकर्ता को पार्टी टिकट देगी।इसी तरह त्रिवेणीगंज से चुनाव जीतने वाले दिलेश्वर कामत को ले ये जनाव एक वर्ष पूर्व रेलवे की नौंकरी से रिटायर हुए हैं और पार्टी इन्हे टिकट देती हैं।नौतन विधानसभा से चुनाव लड़ने वाली मनोरमा देवी इसी वर्ष शिक्षक पद से रिटायर हुई हैं बेतिया के एक बड़े डां की पत्नी हैं इनकी राजनैंतिक हैसियत यह हैं कि जहां से यह चुनाव लड़ रही थी उस क्षेत्र में कितने पंचायत हैं यह भी इन्हें पता नही था। पत्रकारों ने जब जद यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में जानना चाहा तो पार्टी अध्यक्ष का नाम भी ठीक से नही बता पायी।
औराई विधानसभा क्षेत्र से इन्होने मुजफ्फपुर के एक बड़े ठिकेदार जो चुनाव के दो वर्ष पूर्व तक जद यू का प्राथमिक सदस्य भी नही था उसको टिकट दिये।कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि पार्टी की टिकट के लिए बोली लगायी गयी और सबसे अधिक बोली लगाने वाले को टिकट दिया गया।12 उम्मीदवारों में एक को छोड़कर ऐसा कोई भी प्रत्याशी आपको नही मिलेगा जो जमीनी कार्यकर्ता था या फिर पार्टी का वफादार सिपाही।कहने का मतलब यह हैं कि परिवारवाद के आर में नीतीश कुमार की पार्टी ने वो सारा कुकर्म किया जिसको लेकर भारतीय लोकतंत्र बदनाम हैं।
5 टिप्पणियां:
लालू और पासवान का भी अगर कोई पाखंड हो तो उसे भी उजागर करें
जो कथनी ओर करनी में अंतर कर लेता
वो ही हैं आज का असली समझदार नेता
कुंवे में ही भांग पड़ी हैं
संतोषजी
नीतिश कुमार के बिहार के मुख्यमंत्री और नेता के रूप में विश्लेषण करते समय भावुकता के शिकार हो जाते हैं और उनको मनचाही विशाषणों से विभूषित करते दिखाते हैं .जो तथ्य आपने सामने रखा है वह निसंदेह कई बातें कह रही हैं. पर जिस तरह से बिहार की संसदीय राजनीति में आप नीतिश कुमार को खलनायक और सबसे वाहियात शक्श घोसित करते रहते हैं वह व्यक्तिगत दुराग्रह जैसा लगता है . पत्रकार के नाते आपसे vastunishth vishleshan की अपेक्षा है. क्या बिहार की संसदीय राजनीती में सबसे वाहियात नीतिश कुमार हिन् है. क्या नीतिश ने अपने किसी भाई भतीजे को राजनीति में आगे किया या के फिर औरों की तरह अपना दलाल नियुक्त कर रखा है.आपकी अगर नीतिश कुमार से कोई निजी शिकायत हो तो बात अलग है.
न्याय के साथ विकास और परिवारवाद के विरुद्ध मुद्दा आगे लाना शिकायत की बात है ?
आप अगर बिहार की राजनीति में पाखण्ड , धुर्तई और भ्रष्टाचार की कसौटी पर सारे नेतायों को सम्यक drishtikon से कसें और इसमें यह सबसे नीचे आये और इसे उप्मायों से विभूषित करें तो बात वस्तुनिष्ठ लगेगी.अन्यथा यह आपका निजी दुराग्रह lagega .
बिहार के पुनर्निमाण में सब की सामूहिक भागीदारी और जवाबदेही है.और इसमें पत्रकार और पत्रकारिता की अहम जिम्मेवारी है .
पुनश्चः
सिर्फ संसदीय राजनीति के भरोसे बिहार की बदहाली से निजात का रास्ता कितना दुरूह है , आपके पोस्ट लगातार इस तथ्य को उद्घाटित कर रहे हैं. न्याय के साथ विकास - भला इससे कोई कैसे इनकार कर सकता है, पर जनता ऐसे हीं लोक लुभावन नारों से छली भी जाती रही है.वायदों और सतह पर उपलव्धियों में इतना अंतर . लेकिन बिहार अभी नीतिश कुमार से निराश नहीं हुआ है ,ऐसा दिखता है.क्योंकि वाकी विकल्प शर्तिया तौर पर बिहार के लिए घातक साबित हो चुके हैं.
आप से मेरी उम्मीद है की खोज परक , निष्पक्ष और वस्तुनिष्ठ रापैएँ बिहार पर मिलाती रहेंगीं.
सादर
You are a brave journalist.Keep doing good job.Best wishes.
एक टिप्पणी भेजें