रविवार, जुलाई 25, 2010

हम तेरे शहर में आये हैं मुसाफिर की तरह--

वक्त का तकाजा है कभी खबर बनाने वाले भी खबर बन जाते हैं घटना 19जुलाई की है। शाम के 7बजकर 40मिनट के करीब दफ्तर से काम निपटाकर निकल रहा था इसी दौरान गाँधी मैंदान के ठिक सामने रामगुलाम चौक से जैसे ही होटल मोर्या की तरफ मुड़ा सामने देखते हैं कि एक लड़की को पीछे से एक एसकोरपियो वाले ने धक्का मार दिया, औऱ लड़की वही गिर गयी लेकिन तुरंत वे उठी औऱ गांड़ी पर सवार लोगो को कुछ कहने लगी इतने में तीन नौजवान तेजी से गांड़ी से उतरा औऱ लड़की के साथ उची स्वर में बात करने लगा ।तब तक मेरी गांड़ी भी वहा पहुंच गयी।मैं जब तक गांड़ी से उतरता देखते है एक लड़का लड़की को अपनी और खीच रहा है मैं अचानक उसकी और दौड़ा और कहा ये क्या कर रहो हो इतने में उसके औऱ साथियो ने लड़की को छोड़कर मुझ पर ही टूट परा स्थिति इतनी बिगड़ गयी की मुझे एसएसपी कन्ट्राल को फोन करना पड़ा।जब तक और बाते बढती पुलिस की दो जिप्सी पहुंच गयी जिस्पी पर सवार पुलिस वाले ने उन लड़को की और लपका तो कहने लगा मैं सासंद सुभाष यादब(लालू प्रसाद का साला)का रिश्तेदार हू तो दूसरो ने नीतीश कुमार के नजदीकी कैबिनेट मंत्री विषृण पटेल का रिश्तेदार होने का हवाला देते हुए पुलिस पर ही बसरने लगा।किसी तरह से पुलिस वालो ने उसे लेकर थाना आया।थाने पर पहुंचते ही उन तीनो का मोबाईल बजने लगा स्थिति यह हो गयी कि पुलिस वाले भाग रहे थे और वो तीनो गाली देते हुए पुलिस वाले को मोबाईल से बात करने को कह रहे थे। कोई कह रहा था मंत्री का फोन है तो दूसरा कह रहा था सासंद का फोन है कहा गया रे थानेदार गाली देते हुए बात काहे नही करते हो।साला तुम्हारा एसपी दिन में तीन बार सलामी देता है, और मुख्यमंत्री तो भरुआ है मैं चुपचाप इन लोगो का हड़कत देख रहा था।


उलेट एक पुलिस वाला डांट कर मुझे कहता है रोड पर पक्का लेते है शर्म नही आता है। मैने धीरे से कहा वही जगह था जहां पिछले वार दिनदहाड़े लड़की को नंगे कर घुमाया गया था जिसके कारण पूरे पुलिस महकमा को मुख्यमंत्री ने हटा दिया था इतना कहना था कि पुलिस वाले मुझपर ही बरस पड़े।मैं चुपचाप एक कोने में बैंठ गया और उन तीनो का हरकत देख रहा था जितनी भी गाली देनी थी दिये जा रहा था ।

वही पुलिस वाले चुप चाप उसके गाली को सूने जा रहा था स्थिति यह थी कि गाली देते देते थक जाता था तो पुलिस वाले उसे पीने के लिए पानी दे रहे थे। मैं बड़े अराम से यह सब देख और सून रहा था स्थिति मेरे लिए तब असहज हो गयी जब एक नौजबान दरोगा उसका मोबाईल छिन कर दो थप्पर मारा तो वहा तैनात थाने की मुंशी कहता है आप उसके संवैधानिक अधिकार पर चोट कर रहे मैने बड़े ही आराम से कहा आपके सामने मुझे गाली दी जा रही है क्या यह गैर संवैधानिक नही है।मुंशी कहता है कागज लिजिए इस पर जो भी लिखना है लिखकर दे दिजिए ज्यादा भाषण देने की जरुरत नही है।

लगभग दस वर्षो के बाद पहली बार आम लोगो की तरह मैं थाना पर पहुंचा था नही तो कभी कलम लेकर तो कभी लोगो लेकर प्रेस लिखे गांड़ी से थाना जाया करते थे थानेदार से लेकर सभी कर्मी स्वागत में लगे रहते थे मुझे लगता था कि समय के साथ थाने में बदलाव आया है।

लेकिन अब मुझे समझ में आने लगा था कि आम लोग सरेआम गाली गलौज सूनने के बाद भी थाना आने से क्यो कतराते हैं क्यो परिवार के साथ चलने वाले लोग आंखो के सामने छेड़खानी होते देख बरदास्त कर जाते हैं। कोई घटना होने पर लोगो का आक्रोश इतना उग्र क्यो हो जाता है पुलिस वाले के खिलाफ आम लोगो में इतना आक्रोश क्यो है।

यह सब दिमाग में चल ही रहा था कि अचानक एक कड़क आवाज सूनाई दी कितने देर से लिख रहे हैं।अब मेरा धैर्य जबाव देने लगा पहले मैने अपने मीडिया मित्रो को सूचित किया देखते देखते दस मिनट में सारे चैनल के पत्रकार थाने पर पहुंच गये मीडियाकर्मियो को देखते ही उन तीनो लड़को का तेवर और उग्र हो गया औऱ जमकर गाली गलौज करने लगा।

मीडिया वाले को थाने में इस तरह का लाईफ सोंट तो कभी कभी ही मिलता है जो भी आया सबके सब फोटो लेने में मस्त हो गया थाने में मुख्यमंत्री ले कर डीजीपी को गाली दे इससे बढिया स्टोरी क्या हो सकती है।मीडिया वाले के पहुंचने के बाद भी थाने की पुलिस का रहमदिल युवको के प्रति साफ दिख रहा था अब मुझे लगा कि कुछ करना चाहिए मैंने सीधे डीजीपी को फोन किया एक ही रिंग हुआ होगा कि उसने कहा क्या संतोष जी क्या हाल है ।सर ऐसी ऐसी बात अरे आपके साथ घटना घटी है आप वही रहे तुरंत कारवाई होगी।दो मिनट बाद ही देखते है थानेदार भागे भागे बरामदे पर आता है ।

अरे कहा गये संतोष जी क्या सर आपको पहले कहना चाहिए कहा गया रे पानी लाउ देखते देखते पूरे थाने का नजारा बदल गया दो मिनट पहले जो मुंशी मुझे संविधान बता रहा था उसके चेहरे से पसीना टपक रहा था पूरे थाने में मानो मौहाल ही बदल गया, सभी उन तीनो लड़के को चुप्प करने लगे।सुबह जब अखबार में खबर छपी और चैनलो पर खबर चलने लगा तो पूरे विभाग में हरकम्प मच गया तीनो लड़को पर गैर जमानतीय धारा लगाने को लिए पुलिस वाले मुझसे लगातार बात कर रहे थे सर थोड़ी देर के लिए थाने पर आ जाइए।यह है पुलिस जिसकी जबावदेही आम लोगो को सुरक्षा प्रदान करने की है।

गुरुवार, जुलाई 22, 2010

आदमखोर हीरा सिंह को ग्रामीणो ने पीट पीटकर कर मार डाला

बिहार इन दिनो फिर सुर्खियो मे है,नीतीश कुमार पर 11हजार करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप है ।आरोप में कितना दम है यह तो जांच के बाद सामने आयेगा लेकिन यह तो पूरी तौर पर सिद्ध है कि बिहार के नौकरशाह ने देश की जनता की मेहनत की कमाई को खर्च किया लेकिन पिछले आठ वर्ष बाद भी उस खर्च का हिसाब देना जरुरी नही समझा।दुर्भाग्य यह है जिसे हिसाब लेना था वह आज नौकरशाह के बचाव में लगा है और उसके लिए नीतीश कुमार कुछ भी करने को तैयार है।लेकिन जिस नौकरशाह को बचाने में नीतीश कुमार अपना सब कुछ दाव पर लगाये हुए है उनका चरित्र किया है उसे आप भी जाने---

मामला बिहार के दरभंगा जिले के मब्बी थाना क्षेत्र स्थित मखनाही गांव का है जहां दो दिन पूर्व गांव के ग्रामीणो ने एक तीस वर्षीय युवक हीरा सिंह पर आदमखोर होने का आरोप लगाते हुए गांव के बीचो बीच बिजली के खम्भे में बांध कर तब तक पिटता रहा जब तक उसकी मौंत नही हो गयी। इस दौरान दर्द से कराह रहे हीरा को पानी की जगह ग्रामीण, बच्चो को सामने में पेसाब करावा कर उसे पिलाया गया। इसकी सूचना गांव के कुछ युवक पूरी रात जिले के एसपी से लेकर तमाम आलाधिकारी को देते रहे। लेकिन रात भर कोई अधिकारी नही आया।सुबह में भी थाना वाला इस मामले को रफा दफा करने में लगा हुआ था लेकिन गांव के कुछ युवक ने इसकी सूचना मीडिया वाले को दे दी, मीडियाकर्मियो के पहुंचने के बाद पुलिस घटना स्थल पर पहुंची।

अब जरा आदमखोर हीरा सिंह के द्स्तान के बारे में जान ले ये लड़का एक पुलिसकर्मी का बेटा था।गांव में खेती करता था आज से छह माह पूर्व गांव के पास से गुजर रही नदी में ग्रामीणो ने एक लाश देखा लाश का पेट फटा हुआ था इसकी सूचना गांव वाले ने पुलिस को दी पुलिस ने जांच के दौरान पाया कि लाश का पोस्टमार्टम हुआ है।पुलिस वाले उसके बाद लाश को नदी में बहा दिया किसी ने कहा कि जिस व्यक्ति का वह लाश था उसे दो तीन दिनो से हीरा सिंह के साथ घूमते हुए देख रहे थे।

इस घटना के एक सप्ताह के अंदर फिर एक लाश नदी में तैरते हुए देखा गया उसका भी पेट फटा हुआ था इस बार ग्रामीणो ने पुलिस को सूचना दिया तो पुलिस नही आयी इसको लेकर पुलिस वालो का तर्क था कि जो लाश को पहचानने वाला कोई नही होता है उसे पोस्टमार्टम के बाद नदी में फैक दिया जाता है।वही इस मामले को लेकर गांव में चर्चाये होने लगी कि जो आज लाश नदी में तैर रहा था रात मे उसे हीरा सिंह के साथ दरभंगा से लौटते हुए देखा गया है।बात बढते बढते यहा तक पहुंच गयी कि हीरा सिंह लोगो को बाहर से फसा कर लाता है और उसको मारने के बाद उसका खून पीता है और फिर उसका पेट फारकर उसका कलेजा खाता है।

बात इतनी बढ गयी कि आज उस गांव में एक लाश मिला है फिर दो दिनो के बाद फिर अफवाह फैलता कि रात में हीरवा किसी राहगीर को मार कर खा गया है।स्थिति इतनी भयावह वह गयी कि गांव के बच्चो से लेकर जवान तक शाम ढलने से पहले घर लौट जाते थे।कई चैनल वाले आदमखोर मानव की स्टोरी बनाने गांव भी पहुंच गये लेकिन आसपास के किसी भी गांव से किसी के लपाता होने की सूचना नही मिलने के बाद मीडिया वाले भी चुप बैंठ गये।

इस बीच गांव वालो ने महापंचायत बुलाकर हीरा को गांव छोड़ने का आदेश दिया और उस पर उसके रिटायर पुलिसपदाधिकारी पिता से जबरन हस्ताक्षर भी करा लिया।इसकी सूचना हीरा सिंह और उसके पिता ने थाने को भी दिया लेकिन थान की औऱ से कोई कारवाई नही हुई।गांव वाले का रुख देखते हुए हीरा सिंह गांव छोड़कर चला गया।उसके जाने के बाद भी आये दिन हल्ला होता रहता था की आज हीरा सिंह को वहा देखा गया एक अजनवी व्यक्ति के साथ घूमते देखा गया स्थिति यहा तक आ गयी कि गांव के लोग रात में जगकर पहरेदारी करने लगे। इन सारी घटनाओ की सूचना थाने को थी।एक माह पहले उसी गांव के पास खानाबदोस जाति के लोगो ने अपना डेरा डाला एक दिन किसी गांव वाले ने हल्ला किया कि रात में हीरा सिंह को इस खानाबदोस के टेंट से निकलते देखे हैं।

फिर क्या था देखते देखते गांव के बच्चे से लेकर बूढे तक यहा तक कि महिलाये भी जिसको जो मिला वही लेकर खानाबदोस के डेरा को घेर लिया। किसी ने कहा यही चारो है जिसे हीरा के साथ में रात देखे थे।फिर क्या था सबके सब उस पर टूट परा। किसी तरह से चारो भागते भागते मब्वी थाने पर पहुंचा।पूरे गांव वाला थाना को घेर लिया और उस चारो पर हीरा का दोस्त होने का आरोप लगाते हुए पुलिस से जबरन छुड़ाने लगा स्थिति यहा तक बिगड़ गयी की लोगो ने थाना में आग लगा दिया उसके बाद जिले के तमाम आलाधिकारी औऱ दस थाने की पुलिस और पदाधिकारी स्थिति को नियत्रित करने मब्वी थाने पहुचे तब भी स्थिति नियत्रित करने में कई घंटे लग गये।इस दौरान कई बार पुलिस को गोली चलाने के लिए पोजीशन भी लेनी पड़ी।शाम तक पुलिस और प्रशासन के लोग समझाते रहे की यह अफवाह है ऐसा नही होता है।किसी तरह मामला शांत हो गया और फिर हमारे अधिकारी वापस अपने अपने धंधे में लिप्त हो गये ।

दो दिन पहले किसी तरह से छुप कर आधी रात में अपने बीमार बाप को देखने आये हीरा के बारे में गांव वालो को भनक लग गयी औऱ फिर क्या था गांव वालो ने बिमार बाप से लिप्टे हीरा को खिचकर बाहर निकाला, और घर के सामने लगे बिजली के खम्भे में उसे बांध दिया धीरे धीरे पूरे गांव के लोग आ गये और उसके बाद शुरु हुआ पिटाई का दौड़।

अब मेरा सवाल राज्य के मुखिया और आप सबो से है हीरा के मौंत के लिए कौन जिम्मेवार हैं। पिछले छह माह से आये दिन हो रही घटनाओ को रोकने की जिम्मेवारी किसकी है।वही दूसरा सवाल राज्य के मुखिया से भी है जो दरभंगा जिले के नौकरशाह के चरित्र के सहारे सूबे में सुशासन लाने की बात करते हैं जहां पुलिस महानिरीक्षक और आयुक्त जैसे अधिकारी बैंठते हैं। (---राज्य के नौकरशाह के आचरण का एक और पंक्ष आप सबो को जल्द ही पढने को मिलेगा।)

रविवार, जुलाई 18, 2010

चुप्पी क्यो साधे हो नीतीश जी कुछ तो बोलिये

चार माह पूर्व जब राज्य के अवकारी मंत्री ने नीतीश कुमार पर घोटाले का आरोप लगाया था, तो नीतीश कुमार ने मीडिया के सामने पूरे दंभ के साथ कहा था कि देश में कोई ऐसा टकसाल नही बना है जो नीतीश को खरीद सके।लेकिन हाईकोर्ट के गम्भीर टिप्पणी ने नीतीश कुमार के दंभ को चकनाचूर कर दिया है।और पिछले तीन दिनो से चेहरा छुपाये फिर रहे हैं।शुक्र मीडिया का जो नीतीश के असली चेहरा को छुपाने के लिए अपनी सारी मर्यादओ को ताख पर रख दिया है।

खैर नीतीश को लेकर मेरी राय आज भी वही है जो दो वर्ष पूर्व थी जिसको लेकर मेरे मित्र काफी नराज रहा करते थे।हाईकोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश के बाद भी तरह तरह के विचार सामने आ रहे हैं और नीतीश कुमार को पाक साफ दिखाने की होड़ मची है।अब जरा आप भी इस महाघोटाले के बारे में समझने का प्रयास करे आखिर यह महाघोटाला है क्या।हलाकि इस घोटाल में लालू राबड़ी की भी उतनी ही भागीदारी है। लेकिन दोनो इस घोटाले में शामिल है इसलिए दोनो के दोनो खामोश है।

राज्य सरकार के अधिकारी ट्रेजरी से वर्ष 2002 से वर्ष 2008के बीच विकास कार्य और कल्याणकारी योजनाओ के लिए 11,924.44हजार करोड़ रुपया अग्रिम लिया लेकिन पिछले छह वर्षो के दौरान मात्र 511.90करोड़ रुपया का ही हिसाब महालेखागार को भेजा है।शेष 11,412,54हजार करोड़ रुपया के खर्च का कोई हिसाब सीएजी को नही दी गयी हैं.सीएजी लगातार विधानसभा को इस वित्तिय गोलमाल से सूचित करता रहा।इसी वर्ष जनवरी में सीएसजी ने एक विस्तृत रिपोर्ट विधान सभा के पटल पर रखा जिसमें सरकारी राशी के बड़े पैमाने पर लूट खसोट की बात करते हुए सरकार को अगाह किया। वही पैसे का कोई हिसाब नही देने के कारण केन्द्र सरकार बिहार के आवंटित राशी पर रोक लगा दिया मुख्यमंत्री ने राशी रोके जाने को मुद्दा बना दिये लेकिन इतने बड़े पैमाने पर राशी के दुरउपयोग पर चुप्पी साधे रहे।इस मामले में विधानसभा की लोकलेखा समिति ने जमकर हंगामा किया और मुख्यमंत्री और वित्तमंत्री सुशील मोदी से तत्तकाल इस मसले की गम्भीरता को देखते हुए कारवाई का आदेश निर्गत करने की मांग की।लेकिन छह माह तक सरकार के कान में जू तक नही रेंगी।वही हाईकोर्ट ने सीएजी की रिपोर्ट पर आधारित जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई जांच का आदेश निर्गत कर दिया।हाईकोर्ट की इस कारवाई के बाद सरकार सक्ते में है और कल मुख्यमंत्री ने बिहार के सभी डीएम को राशी के उपयोग का प्रमाण पत्र 24जुलाई तक सौपने का निर्देश जारी किया है।अगर वर्ष 2002से वर्ष 2010तक की राशी को जोड़े तो यह मामला बीस हजार करोड़ से अधिक का बनता है।सबसे महत्वपूर्ण बाते यह हैं कि ये सभी राशी गरीबो के उत्थान से जुड़ी योजनाओ के लिए अग्रिम ली गयी थी।

अब जरा इसकी कानूनी पहलुओ पर भी गौर कर ले कोई भी सरकारी पदाधिकारी किसी भी मद में अग्रिम राशी लेता है तो उसे छह माह के अंदर राशी के उपयोगिता का प्रमाण पत्र सौंप देना है। अगर आप नही सौपते हैं तो यह वित्तिय अपराध की के श्रेणी में आयेगा।वही किसी भी स्थिति में राशी अगर एक वर्ष के अंदर खर्च नही होती है तो उसे विभाग को लौटा देनी है लेकिन यहा तो छह छह वर्ष से लोग पैसे का हिसाब नही दे रहे जो गम्भीर वित्तिय अपराध की श्रेणी में आता है।अब आप ही बताये सरकार के मुखिया का क्या काम है आपके खजाने से पैसे निकल रहा है लेकिन पैसे का क्या हो रहा है उसका हिसाब कौन लेगा।चालीस के अधिक ऐसे मामले सामने आ चुके है जिसमें सरकारी पैसे का उपयोग निजी कार्यो मे करते हुए अधिकारी पकड़े गये हैं।तो सवाल यह उठता है कि जो सरकार जनता के मेहनत की कमाई के पैसे का हिसाब नही रख सकता है उसे गद्दी पर बने रहने का कोई हक है क्या।

गुरुवार, जुलाई 15, 2010

मेरे दिवानगी पर कुछ तो रहम करो

मीडियाकर्मियो को किन किन हलातो से गुजरना पड़ता है उसकी एक बनगी आप सबो से शेयर कर रहा हूं,पिछले एक माह से हमारे दरभंगा के साथी एक अंननोन लड़की की समस्या को लेकर परेशान है।लड़की की समस्या है कि दरभंगा(बिहार)का लड़का उसके साथ शादी करने के कुछ माह बाद छोड़कर दूसरा शहर चला गया है।लड़की चाहती है कि किसी तरह उस लड़के को वापस लौटने पर मजबूर किया जाये।इसके लिए स्थानीय समाज द्वारा लड़के के परिवार पर दबाव बनाने में पत्रकार मित्रो का सहयोग चाह रही है।स्थानीय पत्रकारो ने इसके लिए पहल भी किया स्थानीय वार्ड पार्षद,मुहरंम कमिटी के अध्यक्ष के माध्यम से लड़के के परिवार वालो पर दबाव भी बनाया गया लेकिन बाद में धर्म के नाम पर दोनो अपने को इस मामले से अलग कर लिये।इसी दौरान दरभंगा के मेरे मित्र ने इस मसले पर मेरी राय जाननी चाही और बातचीत में यह तह हुआ कि इस मसले पर लड़की पहले आपसे बात करे।


दो दिन पूर्व दिन के तीन बजे के करीब उस लड़की का फोन आया बोली में वो बोल रही हूं थोड़ा अटपटा लगा फिर दरभंगा का हवाला देते हुए अपनी बात कहने लगी।मैं दरभंगा के एक मुस्लिम लड़के से पिछले 14 वर्षो से प्यार कर रही हूं इस दौरान कई बार हमारे रिश्ते में तनाव भी आया लेकिन अक्सर लड़का किसी न किसी स्थिति में मेरा गुस्सा शांत कर देता था।पिछले वर्ष हम दोनो ने शादी करने का निर्णय लिया मेरी शर्त थी कि मैं मुस्लिम नही बनूगी,लड़के ने आर्य समाज मंदिर दिल्ली मे हिन्दू धर्म अपनाने के बाद मुझसे शादी कर लिया।सब कुछ ठिक ठाक चल रहा था कि अचानक एक दिन वह घर से निकला और फिर कई दिनो तक वापस नही आया।बात करने पर उसने कहा कि तुम मुस्लिम धर्म अपनाओ तो फिर मैं तुम्हारे साथ रहूगा।मैने पुछा क्या लड़का कोई काम नही करता है।बोली मेरठ में किसी डेयरी फर्म में काम करता है।मैने पुछा तुम इतने बड़े पद पर कार्यरत हो और लड़का सड़क छाप है ऐसे प्यार का क्या मतलव है।(लड़की आईसीआई बैंक में अधिकारी है)बोली मैं उसे 14 वर्ष से जानती हूं ऐसा लड़का नही था उसे किसी कोलकोता की लड़की से चेटिंग के दौरान प्यार हो गया है।

उसी के चक्कर में वह दिवाना है, एक बार उस लड़की से रिस्ता खत्म हो जाये वह भागे भागे मेरे पास आ जायेगा।मैने सवाल किया क्या उस लड़की को आप जानती है उसने बोली उसके पूरे खनदान को जानती हू कोलगर्ल है वह शाहिद को ट्रेप करने अपने जाल में फसाये हुए है एक बार शाहिद कोलकोता गया था वही उसे कुछ खिला दिया है उसके बाद से वह उसका दिवाना बना है उससे सम्बन्ध तोड़ने के लिए मैने उस लड़की के परिवार से भी बात किया।लेकिन लड़की के परिवार वाले वे भी मुस्लिम है मेरी एक नही सूना।

उसके खिलाफ कोलकोता क्रायम ब्रांच में मेरे पति को बहलाह फुसला कर रखने के आरोप में मुकदमा भी दर्ज किया है।लेकिन जानते ही मुकदमे में कितना वक्त लगता है।वही लड़का दिल्ली कोर्ट में जबरन धर्म परिवर्तन कराकर शादी करने की बात कर मुकदमा किया है। लेकिन तारीख के अलावे अभी कुछ भी नही हुआ है।इतनी बातो के बाद मैने पुछा तो फिर जब ममाला कोर्ट में चल रहा है तो फिर आप हमलोगो से क्या चाहती हैं।मैं चाहती हू कि शाहिद के परिवार पर समाजिक दबाव बने, किस तरह एक लड़की के साथ शादी करने के बाद धोखा दे रहा है।मैने सीधे सीधे पुछा क्या आपने समाज से पुछकर या फिर समाज की सहमति से शादी की है।जब आपने समाजिक मान्यताओ के ठीक उलट आपने अपनी मर्जी से अपने माँ बाप की जानकारी के बगैर शादी की और अब आप समाज से मदद की उम्मीद कर रही है क्यो।इस सवाल पर थोड़ी झल्ला गयी और फिर मै किससे उम्मीद करु कानूनी प्रक्रिया इतनी जटील है कि समाधान में वर्षो लग जायेगा।

तो मैने बड़ी आराम से पुछा उस सड़क छाप में रखा क्या है क्यो उसके लिए जान दी हुई है जब आपका परिवार इस शादी के बारे में कुछ भी नही जानता है तो बात खत्म करे। नये सिरे से अपना जीवन शुरु करे क्यो ऐसे लोगो के चक्कर में अपना जीवन तबाह कर रही है।बड़ी मासूमियत मे बोलती है क्या करे रहा नही जाता है।मैं चाहती हू कि किसी भी स्थिति में एक बार शाहिद मेरे पास आ जाये फिर वे मुझे कभी छोड़कर नही जायेगा।पिलिज कुछ करिये,मैने कहा कोई कानून नही है जो शाहिद को तुम्हारे साथ रहने पर मजबूर करे रही बात समाजिक दबाव का तो उसकी एक सीमा है वार्ड पार्षद और मुहरंम किमटी के अध्यक्ष भी उसी मुस्लिम समाज से आता है ।वह आज तक जो भी कुछ पहल किया है वह इसलिए की हमलोगो से उसका सम्बन्ध बेहतर है।

अब आप ही बताये इस समस्या का क्या समाधान हो सकता है,क्योकि आज इस तरह के स्थिति से लाखो युवा गुजर रहा है,कहते है प्यार मजहब और देश की सीमाओ को नही मानती,प्यार करने वाले समाजिक मान्यताओ को दकियानुसी मानता है। मीडिया हो या फिर देश के बुद्दिजिवी इस मसले पर बड़ी ही प्रोग्रेसिव पोस्जर देते है और इस तरह से शादी करने वाले को क्रांतिकारी मानते हैं। लेकिन शादी के बाद जो समस्याये सामने आती है उसके समाधान का उपाय न तो मीडिया के पास है और ना ही प्रोग्रेसिव विचार के सहारे बाते करने वाले बुद्दिजिवीयो के पास। यह एक अहम सवाल है और आने वाले समय में हमारे समाज के सामने एक बड़ी चुनौती होगी क्यो कि यह कहना कि लवमेरेंज से जाति का बंधन टुटेगा और दहेज जैसी कुप्रथा पर लगाम लगेगा यह तो दिख रहा है लेकिन इस तरह के शादी का जो प्रभाव सामने आ रहा है वह इन कुप्रथाओ से कम भयावह नही है।वक्त इस विषय पर गम्भीरता से सोचने का है क्यो कि जैसे जैसे उदारीकरण का दौड़ तेज हो रहा है इस तरह के मामले और तेजी से बढेगे ऐसे हलात में देश के युवा पीढी के साथ साथ अभिभावको को भी इस मसले पर सोचना चाहिए क्यो कि देश में कानून और न्याय प्रणाली की जो स्थिति है उसमे आने वाले समय में अराजक स्थिति हो जायेगी।

मंगलवार, जुलाई 06, 2010

देश के नेताओ कुछ तो शर्म करो

नेता की ठाठशाही,और अधिकारी की अफरशाही देश की मेहनत कस जनता की गांढी कमाई पर चल रही।यह जूमला बचपन से सूनता आ रहा हू,पत्रकारिता में आने के बाद यह जुमला अक्सर किसी न किसी कार्यक्रम के दौरान सूनने को मिलता रहा है। लेकिन कभी भी इस विन्दु को गम्भीरता से नही लिया,लगा यह महज समाजवादी और वामपंथियो की राजनैतिक चौचलेबाजी मात्र है।


सोमवार को एनडीए और वामपंथी पार्टी द्वारा महंगाई को लेकर आयोजित बंद का कभरेज के दौरान पेट्रोल पम्प ऐसोसिएन के लोगो से भेट हुई बातचीत के दौरान एक पेट्रोल पम्प मालिक ने कहा सभी दल राजनीत कर रहा है, किसी को भी जनता का फिक्र नही है। लेकिन जनता के नाम पर ये सभी दल अपनी अपनी राजनीत की दुकाने चला रही है।कोई कहने वाला नही है राजनीति में वैसे लोगो की जमात है जिन्हे देश की अर्थ व्यवस्था की समक्ष नही है।शिक्षाविदो को अपनी नौकरी करने के अलावे समाजिक और आर्थिक मुद्दे पर सोचने का वक्त कहा है।और पत्रकारिता के बारे में बात करनी ही बेकार है।जोरदार बहस चल रही थी लेकिन पल पल की खबर पर नजर रखने की मजबूरी ने इस बहस का हिस्सा बनने की प्रबल इक्छा के बाद भी शामिल नही हो पा रहा था।

लेकिन जाते जाते मैंने उनका मोबाईल नम्बर ले लिया।रात में जब घर लौटा तो दिन की गर्मी और खबर भेजनी की आपाधापी में पूरी तरह थक जाने के बावजूद मैने पेट्रोल पम्प मालिक को फोन लगा दिया जैसे जैसे बाते आगे बढ रही थी मेरी बैचेनी बढती जा रही थी उन्होने जो कहा वह मुझे यकिन ही नही हो रहा था।मैं बार बार कह रहा था कि जो तथ्य आप रख रहे है, इतने बड़े बड़े जानकार इस देश में मौंजूद हैं बड़े बड़े पत्रकार हैं उनके नजर में ये बाते क्यो नही आ रही है।यह तो बहूत बड़ा पाखंड है उनके तथ्यो को लिखने के बाद पटना विश्वविधालय के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर एन0के0चौधरी से मैंने बात की उन्होने कहा कि पेट्रोल पम्प के मालिक ने जो कहा है वह पूरी तौर पर सही है।उसके बाद और कई मित्रो से बात किया, जिसने भी सूना सभी के सभी भौंचक रहे गये।हो सकता है आप लोगो की जानकारी में ये बाते हो लेकिन इस सच से सबो का अवगत कराने की मेरी बैंचनी ने आज लिखने को मजबूर कर दिया है।जिस पेट्रोलियम पदार्थ के दाम को लेकर इतनी हाई तौबा मचायी जा रही है जरा उसके अंक गणित को समझे,

केन्द्र सरकार ने कहा कि सबसिडी खत्म करने के कारण तेल का दाम बढाया गया है यह मजबूरी में उठाया गया कदम है। लेकिन तेल के दामो में बढोतरी करने से केन्द्र और राज्य सरकार के आमदनी में बीस हजार करोड़ के करीब बढोतरी हुई है।जरा इस आकड़ो पर आप भी गौर करे।

पेट्रोल पर केन्द्र सरकार 11.80प्रतिशत सेन्ट्रल ऐक्ससाईज 9.75प्रतिशत एक्सपोर्ट टेक्स लेती है।और बिहार सरकार 24.50प्रतिशत वेट टेक्स के रुप में लेती है।इस तरह एक लीटर पेट्रोल पर दोनो मिलकर 46प्रतिशत टेक्स लेती है,इसका मतलब हुआ 53रुपये 19पैसे में 23रुपया टेक्स सरकार आम जनता से लेती है।यही स्थिति डीजल का हैं इसमें भी 40प्रतिशत के करीब टेक्स राज्य और केन्द्र वसूलती है।ऐसे हलात में सरकार टेक्स में कमी कर जनता के बोझ को कम कर सकती है लेकिन इस पर सभी खामोश हैं।ब्लाग पर इस तथ्य को सामने लाने के पीछे इस विषय खुलकर चर्चाये हो और अगर आकंड़ो के खेल में ये बाते सही साबित होती है तो सरकार और नेताओ के पाखंड पर खुलकर हल्ला बोलने की जरुरत है।