रविवार, मार्च 21, 2010

नीतीश कुमार के सफर का एक सच यह भी हैं।



नीतीश कुमार के कार्यशैली को लेकर इन दिनो ब्लांग पर जबरदस्त बहस छिड़ी हैं।इस बहस को रवीश जी के बिहार दौड़े ने और हवा दे दी हैं।पहली बार दोनो पंक्ष काफी मजबूती से अपनी बातो को रख रहे हैं।मैं तो नीतीश की कार्यशैली पर सवाल खड़े किये जाने को लेकर ही जाना जाता हूं ।लेकिन इसकी जो वजह हैं उससे लोग रुबरु होना नही चाहते हैं।मेरा मानना हैं कि आज की तारीख में नीतीश देश के सबसे प्रतिभावान राजनेता हैं।विकास के प्रति संवेदनशील हैं और बिहार जैसे प्रदेशो में जहां की राजनीत जातिये गोलबंदी पर आधारित हैं उसको पहली बार नीतीश कुमार ने पूरी तौर पर तोड़ दिया हैं।यही बजह हैं कि आज नीतीश कुमार के घोर विरोधी भी उनके खिलाफ कोई माहौल नही बना पा रहे हैं।


नीतीश कुमार बिहार के विकास के मुद्दे को लेकर चुनावी मैंदान में आये थे, लोगो ने इनकी भावनाओ का सम्मान भी किया और इन्हे पूर्ण बहुमत के साथ बिहार की गद्दी पर बैंठाया भी।

नीतीश कुमार के जीत में सूबे के आम और खास दोनो वर्गो के लोगो का जबरदस्त योगदान रहा हैं। एक और जहां बिहार के आम लोग जातिये समीकरण को नजर अंदाज कर लालू जैसे नेता को दरकिनार कर दिया।

वही खास लोगो ने लालू के खिलाफ पूरे सूबे में ऐसा माहौल बनाया कि बिहार में वाकई जगल राज हैं।मैं इस बहस में नही पड़ना चाहता क्यों कि नीतीश कुमार आज वाकई खास लोगो के दिल में पूरी तौर पर जगह बना लिया हैं।ये वही खास लोग हैं जिनकी पकड़ मीडिया और ब्यूरोक्रेसी के साथ साथ व्यवसाय पर हैं जो बिहार के कुल आबादी के पाच फिसदी भी नही हैं।खास लोगो में दूसरा वर्ग जो काफी संख्या में हैं और उसके आवाज में दम भी हैं ।

वे हैं बिहार के मीडिल क्लास जिसकी सोच, मैं और मेरा परिवार तक सीमित हैं।नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान दोनो वर्ग के लोग काफी कमफोरटेबल महसूस कर रहे हैं। लोगो को क्या चाहिए पैसे कमाने की आजादी और उसके खर्च करने की व्यवस्था। नीतीश कुमार इस पर पूरी तरह से खड़े उतरे हैं ,आज आप पटना पहुंचे और एक माह बाद फिर से पटना आये काफी फर्क नजर आयेगा। वह सारी व्यवस्था आज पटना में उपलब्ध हैं जिसकी चाहत में लोग दिल्ली मुबई जाते हैं।एक से एक रेस्टरा आज पटना में मौंजूद हैं जहा आप देर रात तक मचा उठा सकते हैं।शहर की कौन कहे छोटे छोटे कस्बो में भी हेमामालिन के गाल से भी चिकना सड़क आपको मिल जायेगा भले ही उन सड़को पर बैलगाड़ी ही दौड़ता क्यो न मिल जाये।आज पटना में स्थिति यह हैं कि यहां की जमीन औऱ एपार्टमैंन्ट की कमित एनसीआर से भी अधिक हो गयी हैं।जिस एपार्टमेंन्ट की किमत पिछले वर्ष 9लाख था आज 18लाख में खरीदने वालो की लाईन लगी हुई हैं।

दफ्तर जाने के समय आप सड़को पर खड़े हो जाये तो दिल्ली सा नजारा देखने को मिल जायेगा।महिलाओ और लड़किया फोरविलर और एसक्यटी से दफ्तर जाते मिल जायेगी जो पांच वर्ष पहले सोच भी नही सकती था।पटना में इन्सुरेन्स, मोबाईल के साथ साथ बैकिंग क्षेत्र से जुड़ी अधिकांश कम्पनियो का दफ्तर खुल गया हैं। दफ्तर में चले जाये आपको लगेगा ही नही की यह वही बिहार हैं।लगभग बिहार के अधिकांश छोटे और मझौले शहर की यही स्थिति हैं।इस स्थिति तक पहुचाने में नीतीश कुमार की सबसे अहम भूमिका हैं।लेकिन मैं जिस फिल्ड का उदाहरण दे रहा हूं उस फिल्ड से बिहार की पांच फिसद आबादी भी नही जुड़ा हैं ।लेकिन इसके आवाज में इतना दम हैं कि पूरे भारत में लग रहा हैं की वाकई बिहार बदल गया हैं।हो भी क्यो न बिहार ही नही पूरे देश में विकास का पैमाना ही यही हैं।

लेकिन बिहार के तस्वीर का दूसरा पहलु भी हैं जो आबादी के अस्सी फिस्दी हैं, लेकिन उसके जुबान में आवाज नही हैं, उसके आवाज से किसी की हमदर्दी नही हैं, मीडिया के लिए वह कोई खबर नही हैं।लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार बदलने की ताकत उसी के पास हैं।जिस पांच से दस फिसदी को सामने रख कर नीतीश कुमार विकास के ढोल पीट रहे हैं वह दस फिसदी आवादी चुनाव के दिन बीवी और बच्चो के साथ अपने बेंडरुम में आराम फरमाते रहेगे। मेरी लड़ाई इन्ही दस फिसदी लोगो से हैं जो स्टेट के रिसोर्सेज का अधिक से अधिक उपयोग करते हैं लेकिन जब स्टेट की बात आती हैं तो इनकी सोच , मैं और मेरे परिवार तक सिमट कर रह जाती हैं।

आज पूरे सूबे का किसान बेहाल हैं बड़ी मेहतन से आलू और मकई की खेती किया मौंसम के साथ नही मिलने के बावजूद खून पिसान एक करके किसानों ने जबरदस्त पैंदावार किया लेकिन आज आलू खरीदने वाला कोई नही हैं जिसकी कमित दो माह पूर्व बीस रुपये किलो था आज किसान एक रुपये किलो पर भी बेचने को तैयार हैं लेकिन कोई खरीदार नही हैं जिसके कारण किसानों का आलू खेत मैं सर रहा हैं।वही मकई की खेती करने वाले किसानो का हाल तो और बूरा हैं।इस बार जो बीज किसानो को सरकार और निजी कम्पनियो ने मुहैया करया हैं उसमें खेत में मकई की फसले तो लहलहा रही हैं लेकिन मक्के में दाना नही हैं।पहली बार बिहार में किसानो ने फसल का हाल देखकर आत्महत्या किया हैं हलाकि पूरी मशीनरी उस किसान के आत्महत्या को परिवारिक विवाद ठहराने में जुटा हैं।

मेरा विरोध का कारण यही हैं आज राजधानी पटना को छोड़कर पूरे बिहार में कही भी दो घंटे से अधिक बिजली नही रहती हैं।यू कहे तो बिहार में विकास के नाम पर लूट मची हैं।पदाधिकारी और ठिकेदार मालोमाल हो रहे हैं और आम लोग दो वक्त की रोटी के लिए मुबई और दिल्ली की सड़के पर रेग रहे हैं।

आज सूबे की पूरी मशीनरी बिहार दिवस मनाने में लगा हैं पहली बार बिहार बंगाल से अलग होने की तारीख 22मार्च को बिहार स्थापना दिवस के रुप में मनाने का फैसला लिया हैं।सूबे में ही नही देश औऱ विदेश में जहां कही भी बिहारी हैं उनसे राज्य सरकार ने अपील किया हैं कि बिहार दिवस के अवसर पर कार्यक्रम करे।इसके लिए राज्य सरकार मदद करने की भी पेशकश की हैं। अच्छी पहल हैं इससे लोगो में बिहार के प्रति जो भावना पाल रखा हैं उसमें भी बदलाउ आयेगा और बिहारियो को बिहारी होने का एहसास भी होगा।समाज को जोड़ने और साथ लाने का यह एक आधुनिक तरीका हैं लेकिन जिस सूबे की अस्सी फिसद आबादी की रोज की आमदनी बीस रुपये हैं।उसके लिए बिहार दिवस का कोई माईने हैं क्या प्रदेश की 38में 26जिले नक्सल प्रभावित हो गये हैं और इन इलाको में सरकार की पकड़ धीरे धीरे कमजोर होती जा रही हैं।ऐसे हलात में नीतीश कुमार के सुशासन के दावे का कोई मतलव हैं तो मैं भी नीतीश चलीसा पढने को तैयार हूं।

रविवार, मार्च 14, 2010

इस जहा मैं मनुवादी कौन हैं

वेद में देवता और दानव के बीच कई युद्धो की चर्चा मिलती हैं।जिसमें संख्या बल के बावजूद दानव की हमेशा हार होती हैं।इस युद्द को लेकर बाद के दिनो में जातिवादी सोच रखने वाले इतिहासकारो ने सर्वण और शुद्र के बीच युद्ध की संज्ञा दी और इतिहास की एक धारा इसी पर केन्द्रीत होकर लिखा गया।बाद के दिनों में पिछड़ा और अगड़े की राजनीत करने वाले राजनीतिज्ञ भी इस इतिहास का सहारा लिये। लेकिन किसी ने भी युद्ध में हुई पराजय के कारणों का न तो विशलेषण किया और ना ही हार के कारणों से सीख लेने की कोशिश की।


महिला आरक्षण के मसले पर एक बार फिर यह विवाद सामने आया हैं लालू,रामविलास,शरद और मायावती राजनैतिज्ञ लाभ और नुकसान को लेकर फैसले का विरोध कर रहे हैं ।लेकिन जिस अंदाज में पिछड़े जाति से जुड़े पत्रकार और बुद्दिजीवी इस मसले पर अपनी राय जाहिर कर रहे हैं मुझे लगता हैं कि दानव के लगातार हार का कारण इन्ही सोच में छुपा हैं।

इस मसले पर खुलकर चर्चाये होनी चाहिए और मुझे यह कहने में कोई संकोच नही हैं कि वैसे लोग जो समाज को देवता और दानव के रुप देखते हैं उनसे मैं पुछना चाहता हू कि इस देश के इतिहास में जितने समाज सुधारक हुए हैं जो दानवों के सावल पर समाजिक परिवर्तन लाने का काम किया हैं ।उनमें से चार पांच सुधारक को छोड़कर दानव जाति से आये हुए कितने लोग हैं।समाज तोड़ना और उस पर अपनी राजनीत करनी अलग बात हैं लेकिन समाज में बदलाव लाने के लिए अपने कुटुभ से वगावत कर आपके हक की लड़ाई लड़नी बहुत बड़ी बात हैं।सिर्फ दानव कुल में पैंदा लेने से ही कोई दानव का सबसे बड़ा हितैसी नही हो सकता और इतिहास गवाह हैं कि ऐसा हुआ भी नही हैं।

वीपी सिंह ने जिस अंदाज में मंडल कमीशन लागू किये इसको लेकर बहस हो सकती हैं लेकिन इस राजनीत के बल पर सत्ता हासिल करने वाले लालू,मुलायम,शरद,रामविलास और मायावती जी क्या कर रही हैं।लालू प्रसाद के बिहार में पला और बढा इसलिए कुछ ज्यादा ही एहसास हैं जरा मैं पुछना चाहता हू उन पत्रकार और बुद्धिजीवीओ से लालू प्रसाद 15 वर्ष तक बिहार में शासन किया इसने दानवो के लिए क्या किया किसका चारा इन्होने लूटा कहते थे बड़े घर के लोग सड़क पर चलते हैं सड़क बनाने की जरुरत क्या हैं,बाढ का चावल और गेहू कागज पर ही बेच दिया इसमें देवता के हिस्से का चावल गेहू कितना था।

इसमे कोई शक नही हैं कि लालू के 15वर्ष के शासन काल में बिहार के समाज में काफी बदलाव आया लेकिन यह बदलाव किसी ठोस नतीजे पर नही पहुंच पायी और 15वर्ष होते होते दानवो के शासन का अंत हो गया।जिनकी चिंता हैं कि दानवो का शासन बना रहे उन्हे लालू के हार के कारणो से सीख लेनी चाहिए।

मयावती,मुलायम,और रामविलास का इसी अंदाज में हार तय हैं।नीतीश कुमार के महादलित कार्ट ने रामविलास के राजनैतिक कैरियर अंतिम दौड़ में ला खड़ा किया हैं और यही स्थिति मुलायम का हैं और आने वाले समय में मायावती का भी यही हाल होगा।भावनाओ को भड़का कर ज्यादा दिनो तक सत्ता में बने रहना सम्भव नही हैं।अब तो एक बार फिर से नांलेज की प्रधानता बढने लगी हैं। ऐसे हालात में बाजार और समाज में बने रहने के लिए देवता का चरित्र तो धारण करना ही पड़ेगा।

देवता ने तो अपने समाज के कोस्ट पर दानवो के लिए बहुत कुछ किया हैं लेकिन मैं पुछना चाहता हू दानवो के उस सरोकार से उसने अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को दरकिनार कर दानवो के लिए क्या किया।वीपी सिंह ने आरक्षण लागू कर दिया लेकिन उस वक्त भी सवाल उठा था और आज भी सवाल उठ रहा हैं कि गांव में रहने वाले या फिर दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करने वाले मेघू यादव या फिर खलटु पासवान का बेटा सिविलसर्विस या किरानी का भी नौंकरी प्राप्त कर सका हैं दानवा जो सोचना होगा कहने के लिए रामविलास पासवान का भाषण मैं पिछले बीस वर्षो से सून रहा हू मैं उस घर में दिया जलाउगा जिस घर में सदियों से अंधेरा छाया हैं लेकिन जिसके घर में दिया जलाने का वादा कर वोट लेते रहे उसके घर में आज तक दिया नही जला लेकिन अपने पूरे खानदान को सांसद और विधायक बनाकर अपना घर तो रोशन कर ही लिया।जिस महिला आरक्षण बिल को लेकर हाई तोबा मच रहा हैं लोग तो यहां तक कहने लगे की इस बिल के बहाने देवताओ के घर को रोशन करने की साजिश चल रही हैं।मै उनसे पुछना चाहता हू लालू प्रसाद के पार्टी में सबसे योग्य महिला राबड़ी देवी ही थी।क्या मुलायम सिंह यादव के पार्टी में सबसे योग्य महिला उनकी पुतुहु डिम्पल यादव ही थी।दानव भाई देवता को पराजित करना चाहते हो तो त्याग करना सीखा नही तो आने वाले समय में आपको औऱ बुरी स्थिति देखनी पड़ सकती हैं।क्यो कि सत्ता आपके हाथ में और सत्ता के शिखर पर जाने की चांभी भी आपके ही के हाथ मैं हैं।अंतिम आदमी के लिए नही कुछ किया तो फिर लाख चाहने के बाद भी दक्षिण भारत की तरह एक बार फिर देवताओ के हाथ में सत्ता चली जायेगी औऱ आप संख्या बल के राग अलापते रह जायेगे।समय हैं सुधर जाये नही तो वक्त अब दूर नही रह गया हैं.।मेरी भी इक्छा हैं कि दनावो का शासन रहे लेकिन दानवो के कोस्ट पर नही।लेकिन दुख हैं जो सवाल एक तथाकथित देवता कुल का व्यक्ति खड़ा कर रहा हैं वह सवाल दानवो की और से उठनी चाहिए थी। जब तक यह नही होगा।देवता का शासन चलता रहेगा।

रविवार, मार्च 07, 2010

महिला दिवस पर विशेष आलेख,आधी आबादी की संवेदनहीनता पर शर्म आती हैं--1


आज मैं ऐसे विषय पर अपनी राय व्यक्त कर रहा हूँ जिस पर लोग अक्सर सार्वजनिक रुप से राय व्यक्त करने से परहेज करते हैं।इतिहास का छात्र रहा हूं इसलिए इतिहास के माध्यम से इस विषय पर कुछ लिखना चाह रहा हूं।औरतों के मामले में इतिहास में दो तीन बाते को बड़ी गम्भीरता से लिखी गयी हैं।श्रृग्वेद भारतीय इतिहास की पहली पुस्तक मानी जाती हैं जिसकी रचना ईसा पूर्व 1500आकी गयी हैं।इसकी एक सहायक ग्रंथ हैं शतपथ ब्राह्रमण जिसमें प्रतापी राजा पुरु और परी उर्वशी की कहानी लिखी हैं।जरा आप भी पढ ले।राजा पुरु उस समय के काफी प्रभावशाली राजा थे बाद के दिनों में इन्ही के वशंज भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा ।पृथ्वी के राजा पुरु के कार्यशैली से प्रभावित होकर सभी भगवानों ने सर्वसम्मति से स्वर्ग का राजा भी पुरु को बनाने का फैसला लिया।


शपथ ग्रहण की तारीख तय हो गयी यह खबर जब राजा इन्द्र को लगी तो वे हैरान हो गये, और राजसत्ता हाथ से निकलने की व्यथा में वे बिमार पड़ गये।स्थिति इतनी बिगड़ गयी की वे तीन दिनों तक अपने कक्ष से बाहर ही नही आये। इन्द्र का हाल देखकर उनके सबसे प्रिय परी उर्वशी को इसकी सूचना दी गयी वह भागी भागी इन्द्र के पास पहुंची और सारा बात सूनकर जोर से हस पड़ी बोली महराज आपकी सत्ता हमारे रहते जाने वाली नही हैं।उसने राजा पुरु के लोकेसन को सेटेलाईट से देखी तो उस वक्त राजा पुरु जंगल में शिकार कर रहे थे। उर्वशी इन्द्रलोक से उड़ी और राजा पुरु के सामने प्रकट हो गयी उर्वशी की सुन्दरता देख कर राजा इस तरह मोहित हो गये की उन्हे याद भी नही रहा कि उनका शपथ ग्रहण होना हैं।उर्वशी उनके साथ तबतक रही जब तक की शपथ ग्रहण की अवधी खत्म नही हो गयी ।अवधि खत्म होते ही उर्वशी राजा पुरु को छोड़कर इन्द्रलोक चली गयी वही राजा पुरु उर्वशी के प्यार में इस कदर पागल हो गये कि उन्हे याद भी नही रहा कि वह पृथ्वी लोक का राजा हैं।पागल की तरह जगलों में भटकते बस एक ही राक अलापते रहे उर्वशी कहा हो उवर्शी ।यह सिलसिला वर्षो तक जारी रहा कि एक दिन राजा पुरु तलाब के किनारे बैठ उर्वशी की याद में विलख रहे थे वही तलाब में सात आठ हंस तैर रही थी।तभी एक हंस की नजर राजा पुरु पर पड़ा वह चौक उठी अरे ये तो प्रतापी राजा पुरु हैं क्या हाल बना रखा हैं।हंस के रुप में सभी परी थी उस परी में उर्वशी भी थी



उसने सारी बाते अपनी परी मित्र को सुनायी,कहानी सुनने के बाद परियो ने कहा उर्वशी यह तुमने ठीक नही किया इसे समझाना चाहिए।सभी हंस अपने रुप में प्रकट हुई उवर्शी को देख राजा पुरु का रो रो कर हाल बुरा था ।तभी एक परी ने राजा पुरु को जोर से हिलाया और कहा राजा साहब आप किस गम में खोये है,महिलाओ में दोस्ती जैसी कोई चीज नही पायी जाती हैं क्योकि उसका दिल आधी भेड़िया के समान होता हैं।इस सच को स्वीकार करे और उर्वशी को लेकर इतने इमोशनल होने की जरुरत नही हैं।(फ्रेन्डशिप इज नाट टू वी फाउन्ड इन ए वीमेंन वीकाउज देयर हार्ट इज डाईट आंफ ए जेकाल)

दूसरी बार औरतो को लेकर भगवान गौंतम बुद्ध और उनके शिष्य आनंद और गौतमी के बीच धर्म में महिलाओं को शामिल करने को लेकर हुई वार्ता मे सामने आयी हैं। जब बुद्ध ने कहा कि बौद्ध धर्म में महिलाओ को शामिल किया गया तो यह धर्म पाच सौ वर्ष से ज्यादा नही चलेगा।तीसरी बार तुलसी दास ने नारी को तारन का अधिकारी लिखा ।

हलाकि इतिहास में दर्ज इन पहलुओ से मैं पूरी तौर पर सहमत नही हूं लेकिन 21वी सदी के इस दौड़ में जहां महिला और पुरुषों के बीच समानता की बाते की जा रही हो इस दौर में आधी आबादी के चरित्र को देख कर इतिहास में दर्ज विशलेषण पर सोचने पर मजबूर हो गया हूं ।

जरा आप भी सोचे कल पूरे देश में जहां महिलाओ के ससंद में आरक्षण को लेकर बहस चल रही थी और जिसके लिए यह बहस हो रहा था वे सभी राहुल महाजन के स्वयंवर देखने में मस्त थी ।मैं भौचक हूं जहां खूलेआम महिलाओ के चरित्र की बोली लगायी जा रही थी देश में कही से भी विरोध का कोई स्वर सुनाई नही दिया। कहा गयी वह महिला संगठन जो बात बात में महिलाओ के अधिकार को लेकर झंडा उठाते रहती हैं।वह फैमनिस्ट कहा गयी जो पुरुष और महिलाओं के फर्क करने वालो पर लात जूते बरसाती थी।जिस तरीके से करोड़ो लोगो के सामने महिलाओं के मान और सम्मान को राहुल महाजन अपने जूते से रौदते रहा और इस देश की आधी आबादी देखती रही मुझे लगता हैं कि भगवान बुद्ध की धारना मैं वाकई दम था।कल जो कुछ भी टीवी पर चल रहा था क्या यह 13वर्षीय बच्ची के साथ बीच सड़क पर सामूहिक बलात्कार की घटना से कम थी क्या। लेकिन जिसको आवाज उठानी चाहिए थी वो टीवी सेंट पर घंटो टकटकी लगाये देख रही थी।यह सवाल आपसे औऱ इस देश की आधी आबादी से हैं जिस तरीके से आज महिलाओ की नुमाईस हो रही हैं क्या वाकई महिला इसे अपना विकास मानती हैं।(क्रमश0)