नीतीश कुमार के कार्यशैली को लेकर इन दिनो ब्लांग पर जबरदस्त बहस छिड़ी हैं।इस बहस को रवीश जी के बिहार दौड़े ने और हवा दे दी हैं।पहली बार दोनो पंक्ष काफी मजबूती से अपनी बातो को रख रहे हैं।मैं तो नीतीश की कार्यशैली पर सवाल खड़े किये जाने को लेकर ही जाना जाता हूं ।लेकिन इसकी जो वजह हैं उससे लोग रुबरु होना नही चाहते हैं।मेरा मानना हैं कि आज की तारीख में नीतीश देश के सबसे प्रतिभावान राजनेता हैं।विकास के प्रति संवेदनशील हैं और बिहार जैसे प्रदेशो में जहां की राजनीत जातिये गोलबंदी पर आधारित हैं उसको पहली बार नीतीश कुमार ने पूरी तौर पर तोड़ दिया हैं।यही बजह हैं कि आज नीतीश कुमार के घोर विरोधी भी उनके खिलाफ कोई माहौल नही बना पा रहे हैं।
नीतीश कुमार बिहार के विकास के मुद्दे को लेकर चुनावी मैंदान में आये थे, लोगो ने इनकी भावनाओ का सम्मान भी किया और इन्हे पूर्ण बहुमत के साथ बिहार की गद्दी पर बैंठाया भी।
नीतीश कुमार के जीत में सूबे के आम और खास दोनो वर्गो के लोगो का जबरदस्त योगदान रहा हैं। एक और जहां बिहार के आम लोग जातिये समीकरण को नजर अंदाज कर लालू जैसे नेता को दरकिनार कर दिया।
वही खास लोगो ने लालू के खिलाफ पूरे सूबे में ऐसा माहौल बनाया कि बिहार में वाकई जगल राज हैं।मैं इस बहस में नही पड़ना चाहता क्यों कि नीतीश कुमार आज वाकई खास लोगो के दिल में पूरी तौर पर जगह बना लिया हैं।ये वही खास लोग हैं जिनकी पकड़ मीडिया और ब्यूरोक्रेसी के साथ साथ व्यवसाय पर हैं जो बिहार के कुल आबादी के पाच फिसदी भी नही हैं।खास लोगो में दूसरा वर्ग जो काफी संख्या में हैं और उसके आवाज में दम भी हैं ।
वे हैं बिहार के मीडिल क्लास जिसकी सोच, मैं और मेरा परिवार तक सीमित हैं।नीतीश कुमार के कार्यकाल के दौरान दोनो वर्ग के लोग काफी कमफोरटेबल महसूस कर रहे हैं। लोगो को क्या चाहिए पैसे कमाने की आजादी और उसके खर्च करने की व्यवस्था। नीतीश कुमार इस पर पूरी तरह से खड़े उतरे हैं ,आज आप पटना पहुंचे और एक माह बाद फिर से पटना आये काफी फर्क नजर आयेगा। वह सारी व्यवस्था आज पटना में उपलब्ध हैं जिसकी चाहत में लोग दिल्ली मुबई जाते हैं।एक से एक रेस्टरा आज पटना में मौंजूद हैं जहा आप देर रात तक मचा उठा सकते हैं।शहर की कौन कहे छोटे छोटे कस्बो में भी हेमामालिन के गाल से भी चिकना सड़क आपको मिल जायेगा भले ही उन सड़को पर बैलगाड़ी ही दौड़ता क्यो न मिल जाये।आज पटना में स्थिति यह हैं कि यहां की जमीन औऱ एपार्टमैंन्ट की कमित एनसीआर से भी अधिक हो गयी हैं।जिस एपार्टमेंन्ट की किमत पिछले वर्ष 9लाख था आज 18लाख में खरीदने वालो की लाईन लगी हुई हैं।
दफ्तर जाने के समय आप सड़को पर खड़े हो जाये तो दिल्ली सा नजारा देखने को मिल जायेगा।महिलाओ और लड़किया फोरविलर और एसक्यटी से दफ्तर जाते मिल जायेगी जो पांच वर्ष पहले सोच भी नही सकती था।पटना में इन्सुरेन्स, मोबाईल के साथ साथ बैकिंग क्षेत्र से जुड़ी अधिकांश कम्पनियो का दफ्तर खुल गया हैं। दफ्तर में चले जाये आपको लगेगा ही नही की यह वही बिहार हैं।लगभग बिहार के अधिकांश छोटे और मझौले शहर की यही स्थिति हैं।इस स्थिति तक पहुचाने में नीतीश कुमार की सबसे अहम भूमिका हैं।लेकिन मैं जिस फिल्ड का उदाहरण दे रहा हूं उस फिल्ड से बिहार की पांच फिसद आबादी भी नही जुड़ा हैं ।लेकिन इसके आवाज में इतना दम हैं कि पूरे भारत में लग रहा हैं की वाकई बिहार बदल गया हैं।हो भी क्यो न बिहार ही नही पूरे देश में विकास का पैमाना ही यही हैं।
लेकिन बिहार के तस्वीर का दूसरा पहलु भी हैं जो आबादी के अस्सी फिस्दी हैं, लेकिन उसके जुबान में आवाज नही हैं, उसके आवाज से किसी की हमदर्दी नही हैं, मीडिया के लिए वह कोई खबर नही हैं।लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार बदलने की ताकत उसी के पास हैं।जिस पांच से दस फिसदी को सामने रख कर नीतीश कुमार विकास के ढोल पीट रहे हैं वह दस फिसदी आवादी चुनाव के दिन बीवी और बच्चो के साथ अपने बेंडरुम में आराम फरमाते रहेगे। मेरी लड़ाई इन्ही दस फिसदी लोगो से हैं जो स्टेट के रिसोर्सेज का अधिक से अधिक उपयोग करते हैं लेकिन जब स्टेट की बात आती हैं तो इनकी सोच , मैं और मेरे परिवार तक सिमट कर रह जाती हैं।
आज पूरे सूबे का किसान बेहाल हैं बड़ी मेहतन से आलू और मकई की खेती किया मौंसम के साथ नही मिलने के बावजूद खून पिसान एक करके किसानों ने जबरदस्त पैंदावार किया लेकिन आज आलू खरीदने वाला कोई नही हैं जिसकी कमित दो माह पूर्व बीस रुपये किलो था आज किसान एक रुपये किलो पर भी बेचने को तैयार हैं लेकिन कोई खरीदार नही हैं जिसके कारण किसानों का आलू खेत मैं सर रहा हैं।वही मकई की खेती करने वाले किसानो का हाल तो और बूरा हैं।इस बार जो बीज किसानो को सरकार और निजी कम्पनियो ने मुहैया करया हैं उसमें खेत में मकई की फसले तो लहलहा रही हैं लेकिन मक्के में दाना नही हैं।पहली बार बिहार में किसानो ने फसल का हाल देखकर आत्महत्या किया हैं हलाकि पूरी मशीनरी उस किसान के आत्महत्या को परिवारिक विवाद ठहराने में जुटा हैं।
मेरा विरोध का कारण यही हैं आज राजधानी पटना को छोड़कर पूरे बिहार में कही भी दो घंटे से अधिक बिजली नही रहती हैं।यू कहे तो बिहार में विकास के नाम पर लूट मची हैं।पदाधिकारी और ठिकेदार मालोमाल हो रहे हैं और आम लोग दो वक्त की रोटी के लिए मुबई और दिल्ली की सड़के पर रेग रहे हैं।
आज सूबे की पूरी मशीनरी बिहार दिवस मनाने में लगा हैं पहली बार बिहार बंगाल से अलग होने की तारीख 22मार्च को बिहार स्थापना दिवस के रुप में मनाने का फैसला लिया हैं।सूबे में ही नही देश औऱ विदेश में जहां कही भी बिहारी हैं उनसे राज्य सरकार ने अपील किया हैं कि बिहार दिवस के अवसर पर कार्यक्रम करे।इसके लिए राज्य सरकार मदद करने की भी पेशकश की हैं। अच्छी पहल हैं इससे लोगो में बिहार के प्रति जो भावना पाल रखा हैं उसमें भी बदलाउ आयेगा और बिहारियो को बिहारी होने का एहसास भी होगा।समाज को जोड़ने और साथ लाने का यह एक आधुनिक तरीका हैं लेकिन जिस सूबे की अस्सी फिसद आबादी की रोज की आमदनी बीस रुपये हैं।उसके लिए बिहार दिवस का कोई माईने हैं क्या प्रदेश की 38में 26जिले नक्सल प्रभावित हो गये हैं और इन इलाको में सरकार की पकड़ धीरे धीरे कमजोर होती जा रही हैं।ऐसे हलात में नीतीश कुमार के सुशासन के दावे का कोई मतलव हैं तो मैं भी नीतीश चलीसा पढने को तैयार हूं।