मंगलवार, नवंबर 06, 2012

क्या बिहार में कानून का राज्य है

मित्रों किसी ऐसे व्यक्ति ने ये खबर मुझे भेजी है जो मुझे एक निर्मिक, निडर और उत्साही पत्रकार के रुप में जानता है ।लेकिन शायद पहली बार उसके उम्मीद पर मैं खड़ा उतर नही पाया ।मैंने इस खबर के लिए सोशलसाईट का सहारा लिया शायद इस खबर में सुशील मोदी
की जगह विपंक्ष का कोई भी नेता रहता है या कही लालू प्रसाद होते तो आज पूरे देश के मीडिया में पहले खबर भजने की होड़ मची रहती ।लेकिन ऐसा नही है इस खबर के बारे में सभी मीडिया हाउस को मालूम है लेकिन सभी ने अपना ईमान गिरवी रखने में परहेज नही किया।खबर ये है कि बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी बिहार में बाध के सरक्षंण को लेकर बाल्मिकीनगर जंगल के दौरे पर गये थे। दो दिनो तक इसको लेकर विशेष अभियान चलाया गया जोरदार कभरेज मिले इसके लिए पत्रकारओ की एक पूरी फौज को वहां पर ठहराने और रहने की विशेष व्यवस्था की गयी थी।भले ही खबर प्रथम पृष्ठ पर नही छपी लेकिन खबर आयी थी।अब इस खबर के पीछे की खबर जान ले याद करिए बाहुवलि शाहाबुद्दीन का वो जवाना जब उसकी तुती बोलती थी। उस वक्त इंडिया टू़डे ने एक कभर स्टोरी छापी थी जिसमें हीरण को मारकर जश्न मनाते हुए शहाबुद्दीन की तस्वीर छपी थी। जिसके आधार पर शहाबुद्दीन सहित कई लोगो पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था, यही सुशील मोदी इस तस्वीर को लेकर बड़े बवेला मचाये थे पशु सरंक्षण लेकर कई तरह की दलीले देकर तत्तकालिन राजद सरकार को कठघरे में खड़े किये और पूरे देश के पशु सरंक्षक और पर्यावरणविद इसको लेकर आवाज उठाये थे।अब जरा तस्वीर का दूसरा रुप देखिए शहाबद्दीन हीरण को मार कर जिस समय जस्न माना रहा था उस समय के फोटो को गौर से देखे और लाल लकीर से जिस व्यक्ति का चेहरा घेरा है उसको देखे। उसके बारे में कुछ कहने की जरुरत नही है शहाबुद्दीन के इतने करीब रहने वाला भगत सिंह तो नही ही हो सकता है। उस लड़के पर आरोप था कि जिस समय शहाबुद्दीन अपने कुनवे के साथ हीरण का शिकार करने बल्मिकीनगर जंगल गया था उस वक्त यही लड़का गाड़ी चला रहा था। आज देखिए जब सुशील मोदी बाल्मिकीनगर बाघ के सरंक्षण के लिए पहुंचे है तो यही लड़का जो आज न्याज हसन डांन के नाम से चर्चित है मोदी का ड्रायवरी कर रहा है।ये संयोग नही हो सकता क्यो कि ड्रायविंग सीट पर कोई खास आदमी ही बैंठ सकता है वह भी तब जब सूबे के उप मुख्यमंत्री को बगल के सीट पर बैठना हो।मोदी या उनके जानने वालो का यादास्त भले ही कमजोर हो गयी लेकिन उन वन अधिकारियो और पुलिस अधिकारियो पर क्या गुजरा होगा जब न्याज हसन को बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी के इतना करीब देखा होगा। जिस पर न जाने कितने बाघ और हीरण मारने के आरोप लगते रहे है क्या यही सुशासन है इसी को कानून राज्य कहते हैं।

सोमवार, नवंबर 05, 2012

सिस्टम ने मुझे कायर बना दिया

वर्षो बाद किसी बड़े इभेंन्ट में मैं दर्शक की भूमिका में चैनल बदल कर जानकारी ले रहा था मैं बीते कल की बात कर रहा हूं। एक और पटना के गांधी मैंदान में नीतीश कुमार बिहारी अस्मिता के बहाने बिहार की राजनीत की नीति और नियति बदलने में लगे हुए थे। तो दूसरी तरफ कांग्रेस एफडीआई के बहाने अपने आपको स्थापित करने की कोशिस कर रहा था।रैली में कितने लोग जुटे और कैसे जुटे इस पर बहस कि कोई जरुरत नही है लेकिन इन दोनो रैली में कुछ बाते ऐसे हुई जिस पर सोचने की जरुरत है।एक और राहुल गांधी का भाषण जिसको लोगो ने बेहद मजाकिया अंदाज में लिया, किसी ने कहा भाषण के दौरान राहुल ऐसे बोल रहे थे जैसे कि कोई विरोधी दल का नेता बोल रहा है। किसी ने कहा इसके लिए तो उनका ही परिवार जिम्मेवार है सब कुछ सही है। लेकिन राहुल ने आखिर कहा क्या --- आमलोग और कमजोर आदमी के लिए राजनीतिक सिस्टम बंद है,राजनैतिक पार्टियो में आम लोगो के लिए दरवाजा बंद है,आम आदमी सपना देखते है और राजनैतिक सिस्टम उसे ठोकर मार कर गिरा देता है। ऐसे कई सवाल उन्होने वर्तमान राजनैतिक हलात के बारे में खुलकर रखा शायद राहुल के सवाल का बेहतर जबाव आज की व्यवस्था में जहां कही भी किसी भी तरह के संस्थानो में काम करने वाले लोग बेहतर दे सकते है।इस तरह के सवाल से आज हर यूथ जुझ रहा है चाहे वह किसी बड़ी कम्पनी का मालिक ही क्यो न हो । राहुल के उदगार को हलके से न ले देश आज इसी हलात से गुजर रहा है। और दूसरी बड़ी बात राहुल की कौन कहे आज इंदिरा गांधी ही क्यो नही रहती जितना विवश राहुल है उससे कम विविश वो भी नही रहती है। आज कोई भी संस्थान हो उसमें आम आदमी का प्रवेश और आम लोगो के लिए काम करना और ईमानदारी के साथ काम करना कितना मुश्किल है वह कोई काम करने वाला ही बेहतर बता सकता है। हमलोग वैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करते है जैसे पवेलिएन में बैंठे दर्शक सचिन को स्टेन की बाहर जाती गेंद पर विकेट गवाने पर व्यक्त करते है शायद दर्शक को पता नही है एक अदना स्टेन को भी खेलना कितना मुश्किल है।
अब बात करते है बिहार के मिस्टर किलिंन नीतीश कुमार की कल बड़े जोरदार तरीके से विशेष राज्य को लेकर रैली बुलायी और मीडिया ने जो लिखा है और जो दिखाने की कोशिस किया है उससे लगता है कि ऐसी ऐतिहासिक रैली पहले कभी नही हुई है। कई तरह की बाते लिखी गयी और चैनलो पर बहस भी हुई रैली में आये लोग बेहद अनुशासित थे। तो किसी ने कहा कि इस रैली से नीतीश को एक अलग पहचान देश स्तर पर मिला है।जिसको जो हुआ कहा और लिखा और मीडिया वाले मान्य तरीके के तहत रैली की घोषणा के दिन से ही बार गर्ल के डांन्स, बाहुबलियो की नौंटकी ,रैली के नाम पर चंदा उगाही या फिर रैली में आये लोग कहा उत्पात मचा रहे है ऐसी खबरो में ही अपना दिन बिता दिये।लेकिन किसी ने ये सवाल नही उठाया कि भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी बड़ी बाते करने वाले नीतीश कुमार की पार्टी रैली के सफल आयोजन के लिए पचास करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कंहा से किया यह पैसा कहा से आया क्या इस तरह के पैसे देने वाले किसकी हकमारी करके पैसा दिया होगा आम आदमी का ---
जरा नीतीश कुमार से पुछुए लखनुउ से जो साउन्ड सिस्टम आया था उसकी राशी किसने दिया ऐसे कई सवाल है, तमाम मंत्री के यहां विभाग के अधिकारी व्यवस्था करने में लगे हुए थे जिस पार्टी के 80 प्रतिशत विधायक की आय वेतन के अलावा एक लाख भी नही है वो एक दिन में हजारो लोगो के रहने खाने का व्यवस्था कहा से किया ।.ये सही है लालू की रैली की तरह थाना या बीडियो से पैसा की उगाही नही की गयी लेकिन खर्च तो हुए और ये खर्च भी कही न कही से आम आदमी के हकमारी करके ही किया गया है। चाहे वो कोई डीएम एसपी या इनिजीनयर या व्यापारी ही क्यो न दिया हो ।ये मैं इसलिए कह रहा हूं कि आज के सिस्टम में बने रहने के लिए पैसा बेहद जरुरी है और उसके लिए आपको अपनी बोली लगानी पड़ेगी नीतीश इससे अलग नही है। सिस्टम के खिलाफ गोलबंद होने की जरुरत है, राहुल, सोनिया मनमोहन या फिर  नीतीश, और नरेन्द्र मोदी जितने मजबूत दिखते है उससे कही अधिक कमजोर है और सिस्टम के गुलाम की तरह कार्य करते है।ये समझने की जरुरत है नही तो इसी तरह हमलोग गुस्से का इजहार करते रहेगे सरकार बदलती रहेगी ,लेकिन आम आदमी कमजोर और बिमार होता जायेगा ।सोचिए और अपने गुस्से को सही अंजाम तक पहुंचाने में मदद करिए। राहुल की आवाज एक निराश पीढी का आवाज है जो कुछ करने की इक्छा रखता है लेकिन सिस्टम के आगे विवश है उसके आवाज को गम्भीरता से लेने की जरुरत है।

सोमवार, सितंबर 10, 2012

मनमोहन सिंह जी फेसबुक पर और कुछ भी हो रहा है

  फेसबुक को लेकर इन दिनो काफी चर्चाये हो रही है,कहने वाले तो यहां तक कहने लगे है कि आने वाले समय में यह बेहद घातक हथियार के रुप में सामने आयेगा,असम मामले में हो या फिर अन्ना आन्दोलन हो या फिर कोई और मसला हो हर कोई अपने अपने तरीके से इस माध्यम का उपयोग कर रहा है। स्थिति यहां तक आ गयी है कि इस पर प्रतिबंध तक लगाने की बात कही जाने लगी है।इस मसले पर मैं अपने फेसबुक दोस्त से ही जानना चाहा सभी के अपने अपन
    े अनुभव रहे। लेकिन एक जो आम राय रही वह यह कि इस माध्यम का बेहतर इस्तमाल हो तो भारतीय समाज के कई बुराई से निजात पायी जा सकती है।तीन चार मित्रो का अनुभव आपके बीच रख रहा हूं एक दिन एक लड़की अपने कोर्स का मेटेरियल हमारे पोस्ट पर पोस्ट कर दी देखा तो सारा मेटेरियल पत्रकारिता के कोर्स से जुड़ा हुआ था। एक दिन रात में उससे बात करने का मौंका मिला पहले तो उसने साँरी बोली की यह पोस्ट किसी और को करना था लेकिन आपके पोस्ट पर चला गया। फिर बात बढने लगा वे भोपाल से पत्रकारिता में स्नातक कर रही थी ।
    पत्रकारिता के बारे में बात होने लगी और यह सिलसिला दो तीन माह तक लगातार जारी रहा एक दिन उसका मैसेज आया कहां है आपसे से जरुरी बात करनी है। उस वक्त में आंन लाईन नही था लगभग छह सात घंटे बाद उसका मैंसेज देखा जैसे ही मैं आंन लाईन हुआ लगा जैसे इन्तजार ही कर रही थी।
    जरा आप भी जानिए उसे क्या हुआ था उसके पिता जी और भाई आज होस्टल आये हुआ थे, भाई ने बोला कि अब तुम्हारी पढाई पूरी हो गयी और अब लौटो घर शादी विवाह करनी है ।आरजु विनती करती रही लेकिन घर वाले नही माने कल उसे हांस्टल छोड़ना पड़ेगा। लगभग दो घंटे तक बातचीत होती रही इस दौरान स्त्री पुरुष के बीच रिश्ते को लेकर चर्चाये हुई अंत में फैसला हुआ की पहले घर जाओ फिर इसके समाधान के बारे में विचार किया जायेगा।दो दिन बाद उसका नाम फ्रेंड लिस्ट से गायब देखा थोड़ा घबराया क्या हुआ उसके साथ। लगभग 15दिनो के बाद एक अनजान यूजर चेंट पर आया और बोली मैं स्मिता हूं अरे कहां हो, सर जी आपका टिप्स काम कर गया मेरा भाई आज मान गया कल में पीजी में नामंकन के लिए भोपाल जा रही हूं।आपने जो सलाह दिया था उसी के अनुसार पहले मैंने अपने भाई को कांलेज के बारे में समझाया लड़को के साथ दोस्ती के बारे में बताया फेसबुक और मोबाईल फोन का नम्बर उसके सामने हटा दिया और कहा तुम्हारे इज्जत पर कभी दाग नही आने देगे।स्मिता के पूरे परिवार में स्मिता ही एक थी जो स्नातक पास किया था बड़ा भाई मेट्रिक के बाद पिता जी का बिजनेश सम्भाल रहा था और उसमें इतना लीन था कि दुनिया की कौन कहे आस पास की दुनिया के बारे में कोई जानकारी उसके पास नही था। ऐसे में कोई उसके बहन को लड़का फोन करे, घर छुट्टी में पहुंचे तो देर रात तक फेसबुक पर रहे। कोई मिडिल क्लास भाई यह सब कैसे स्वीकार कर सकता। खुशी है आज उसका पूरा परिवार उसके साथ है और पीजी कर रही है क्यो कि उसने पहले अपने भाई और पिता को विश्वास में लिया और आज वो मिशन में आगे बढ रही है।
    इस तरह के कई वाकई है एक वाकया तो ऐसा है कि देश के जाने माने कांलेज से पीजी कर रही रुची जिसके साथ कई माह से देश के सामाजिक और राजनैतिक हलातो पर बात होती रहती थी। एक दिन उसने बड़े धबरायी हुई मैंसेज दी रात दस बजे के बाद कुछ बाते करनी है जरुर आंन लाईन रहगे।बात शुरु हुई मेरी शादी होने वाली है आप तो शादी शुदा है,जरा बताये लड़के लड़कियो को किस नजरिए से देखता है, शादी के बारे में लड़के क्या सोचते है एक अनजान व्यक्ति के साथ शादी के बाद कमरे में बंद कर दिया जाता है और उसके बाद बलात्कार नही तो और क्या होता है मैने उसे एल एम वासम की प्राचीन भारत किताब पढने की सलाह दी जिसमें वेद में भारतीय शादी परम्परा के बारे में काफी विस्तार से लिखा गया है उसमें प्रेम विवाह की भी चर्चा है।इस तरह के कई और सवाल रुची से हुई और एक एक सावल पर घंटो बहस हुई। प्रेम विवाद और अरेंज मैंरेज को लेकर जोरदार बहस चली क्यो प्रेम विवाह असफल हो रहा है इस पर भी चर्चाये हुई ।तीन दिनो के बाद उसने कहा सर जी आपने सही कहा लड़के और लड़कियो, दोनो का स्वर्णीम काल शादी तय होने से पहले तक रहता है और उसके बाद बच्चो के सेटल होने के बाद। इस दौरान समझौता महत्वपूर्ण हो जाता है जिसके प्रति कभी लोग सोच भी नही पाता है इसलिए समझौता के काल में जितने बेहतर तरीके से अपने को बचाते हुए समझौता निभाते रहे आपका जीवन सुख मय रहेगा ।आज रुची अपने वैवाहिक जीवन के खुश है क्यो कि इस नये जीवन में उसे अभी तक कुछ ऐसा समझौता नही करना पड़ा है जिससे कि उसके होने का सवाल खड़ा हो। शादी के छह माह बाद भी वो आज भी अपनी फिलिंग शेयर करती है और उसका परिवारिक जीवन बेहतर तरीके से चल रहा है कहने का मतलब यह है कि फेसबूक या और जो साईट है उसके बेहतर इस्तमाल के कई सम्भावनाये है ।
    ऐसे भी अनुभव रहे है कि एक लड़का लड़की का फोटो लगाकर किसी से दोस्ती की और फसाते फसाते पाच लाख रुपये अधिक की ठगी कर ली हुआ यू कि पहले अपना मोबाईल नम्बर देकर रिजार्ज करवाना शुरु किया और उसके बाद बात होने लगी और जैसै जैसे वह फसता गया उससे अपने बैंक खाते में पैसा भी डलवाने लगा इसके लिए लड़के ने चाईनिंज मोबाईल का उपयोग किया करता था जिसमें लड़के के आवाज को लड़की के आवाज में बदल देता है ऐसा भी वाकिया मेरे जानकारी में है।
   

शनिवार, अगस्त 25, 2012

इस रिश्ते को क्या नाम दू

कल शाम दिल्ली से सुशांत का फोन आया था संतोष भाई रवि सुसाईट की कोशिस किया है।खबरो के साथ खेलना तो रोज का हमलोगो का धंधा ही है लेकिन इस खबर ने चंद मिनट के लिए होश उड़ा दिया जब तक सम्भल पाते उसने सारी स्टोरी बता दी ।अभी अभी अपोलो से वापस तीन दिन बाद लौटा है। मैने पुछा पत्नी से कुछ हुआ था क्या पता नही क्या हुआ पूरा परिवार चुप है ।कोई कुछ नही बोल रहा है तरुणा से बात किये क्या हो सकता है उसे पता हो ,नही वो तो मोबाईल ही नही उठा रही है लगता है देश से बाहर गयी हुई है।ठिक है घर पहुंच कर बात करते है।रात आठ बजे के करीब फोन दिया रिंग हो रहा था कोई रिसपोन्स नही लगातार तीन चार बार रिंग किया लेकिन मोबाईल नही उठा,अंत में बेसफोन पर लगाया अंतिम रिंग होते होते स्वाति रवि की पत्नी ने फोन उठायी।भारी मन से बोली रवि बाथरुम में है निकलता है तो फिर बात कर लेगा और कुछ बात कर पाते उससे पहले फोन रख दी। रवि के फोन का इन्तजार करता रहा लेकिन रात के दस बजे तक कोई फोन नही आया इस बीच तरुणा को भी कई बार फोन किया लेकिन उसका भी कोई जबाव नही आया।लगभग 11बजे मेरे मोबाईल की घंटी बजी मेने देखा रवि का कांल है तुरंत उठाया अरे क्या सून रहे सही बात है इतना कहना था कि फफक फफक कर रोने लगा साले इतने तू बुजदिल हो क्या स्वाति से कुछ हुआ क्या नही ऐसा नही है। मुझसे इतनी बड़ी गलती हो गयी है कि मैं अपने आपको फेस नही कर पा रहा हूं, ऐसा क्या हो गया मैंने तरुणा के साथ जबरदस्ती किया हूं अरे साले क्या बोल रहे हो हैं क्या हुआ पता नही मेरे अंदर कौन का जानवर जागृत हो।
तुरुणा मैं और रवि तीनो साथ साथ दिल्ली विश्व विधालय में पढता था।कांलेज में जब हमलोग पहले दिन पहुंचे तो लगा कि किस दुनिया में आ गये है। लड़कियो की कौन कहे लड़को का रंग ढंग गजब का था।मैं ही तीन लोग थे जो शुद्ध देहाती लग रहे थे।सिर में तेल समान्य पेट शर्ट और हाथ में किताब का साधारण बैंग।क्लास में पहुंचे तो संयोग से हम तीने बैंठ भी एक साथ पूरे क्लास से अलग बीच वाले डेक्स पर पहली मुलाकात में ही हमलोगो की दोस्ती हो गयी ।और यह दोस्ती पाच वर्षो तक लगातार जारी रहा सम्बन्ध इतने धनिष्ठ हो गये कि उसके परिवार वाले भी तय नही कर पा रहे थे कि तरुणा शादी किससे करेगी।कई बार उसके परिवार वाले इशारे इशारे में पूछते भी थे तो हम लोगो का जबाव रहता था ऐसा कुछ नही है।बाद में मेरी शादी हो गयी और उसके बाद रवि की भी शादी हो गयी फिर सभी दोस्त तुरुणा के शादी में एक साथ मिले सभी लोग परिवार के साथ एक ही होटल में ठहरे हुए थे। शादी के कल होकर मैं और मेरी पत्नी ,रवि और उसकी पत्नी एक साथ खाना के टेबल पर मिले सारी रात शादी में जगे रहने के कारण थोड़ा थका थका सा महसूस कर रहा था खाने का कुछ ओर्डर दिया जाता इससे पहले रवि की पत्नी बड़ी ही मजाकिये लहजा में बोली कैसा महसूस हो रहा है तरुणा तो आज किसी और की हो गयी दोनो मित्र एक साथ बोल पड़े क्यो महसूस क्या होना है हमलोगो का पूरा आशिर्वाद उसके साथ है कैसा रिश्ता है मेरे समझ में नही आ रहा है लेकिन दोनो महिलाओ की चेहरे पर जो भाव दिख रहा था उससे लगा रहा था कि रवि के जबाव से दोनो सहमत नही है फिर बात शुरु हुई तरुणा नाम के जैसे हमेशा तरुण ही दिखती रहती थी ऐसा ड्रेस कमबिनेसन रहता था कि सीधे सीधे उस पर नजर नही खीचती थी कभी हम लोगो ने मेकेप में उसे नही देखा कभी भी बिना दोपट्टा को उसको कभी नही देखा उसके घर पर भी गये तो कभी हाई फाई ड्रेस में नही देखा पंजाबी लड़की हाईट 5फिट 7इंच रंग विशुद्ध गोरा लेकिन चेहरे पर कभी लटका झतटा नही देखा गम्भीर बातो में शालिनता और किसी भी मसले पर खुल कर बात करना उसकी आदत थी कई बार कांलेज टूर में रात भर साथ रहने का मौका मिला साथ घूमने टहलने घंटे बात करने का भी मौंका मिला ,लेकिन कभी उसके बारे में उस तरह का खयाल नही आया। कई बार बातचीत के दौरान काफी करीब भी आये लेकिन मन में कभी भी बूरा ख्याल नही आया आज उसकी शादी हो गयी है तो थोड़ा जलन हो रहा है। इस बात का कि जिस तरीके से तुम लोगो को तुऱुणा से कोई परहेज नही था मजाकिया लहजे में जो कह देते थे। लेकिन इसको  लेकर कभी घर में विवाद नही हुआ काश उसका पति भी ऐसे ही खलायात के हो।बात चल ही रहा था कि तरुणा अपने पति के साथ होटल पहुंच गयी सामने देखा तो होश उड़ गया अरे यही तरुणा है आज उसके सामने बड़ी से बड़ी हीरोईन भी फिका लग रही थी।कुछ देर साथ रही और उसके बाद अपने पति के साथ चली गयी।संयोग ऐसा हुआ कि बाद में रवि और तरुणा दोनों एक ही एनजीओ को लिए काम करने लगे और बराबरा उन लोगो के बीच मुलाकात होने लगी पता नही अचानक क्या हुआ जो रवि ने 15वर्षो के सम्बन्ध को दागदार कर दिया।
काफी कुरदने के बाद रवि ने बोलना शुरु किया देखो ने पिछले तीन माह से मैं राजस्थान में काम कर रहा था दिल्ली लौटने पर तुरुणा को फोन किया दिल्ली पहुंच गये है कुछ एसाईनमेंट है उस पर बात करनी है वह जब पहुंचे तो में हक्का बक्का रह गया इतना भड़किला ड्रेस पहन कर वो आयी थी कि उससे बात ही नही कर पा रहे थे काफी कोशिस के बाद बी सहज नही हो पा रहे था आखिर में मीडिग को मैंने रद्द कर दिया और कल मिलने की बात तय कर वापस डेरा चला आया लेकिन बड़ी कोशिस के बावजूद सहज नही हो पा रहा था सुबह खुद तरुणा फोन की डेरा पर आ जाये मुझे पता नही था कि स्वाति आज सुबह ही घर से निकल गयी है मैंने हां कह दिया लेकिन उसके आने के बाद जो नही होना था वह हो गया और इसके लिए मैं अपने आपको माफ नही कर पा रहा हूं आखिर इतने पढाई लिखाई और विचार के बाबजूद मनुष्यो में कब पसुता जग जाये कहना मुश्किल है इसी कारण मैं बेहद परेशान है क्या स्वाति को पता चल गया है हां मैंने बता दिया है तो फिर सोसाईड की कोशिस क्यो किया, जो सहयोग स्वाति से मिलनी चाहिए थी वह नही मिला और 15वर्षो के दोस्ती को उसने शाररिक रिश्तो पर आधारित दोस्ती की संज्ञा देकर ऐसे ऐसे बाते बोली जिसका जबाव नही था मेरे पास।
तुरुणा के साथ बने इस नये रिश्ते को लेकर भले ही रवि को आज पशुता तक की संज्ञा ग्रहण करनी पड़ रही है,हो सकता है इस फेज से मैं भी गुजर सकता हूं आप भी गुजर सकते है लेकिन इसका समाधान क्या हो ।

शनिवार, अगस्त 11, 2012

नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी के बहाने मीडिया समाज को डिंकटेट कर रही है

पिछले कुछ वर्षो से मीडिया में एक फोबिया देखने को मिल रहा है इसको लेकर कई बार चर्चाये भी हुई आखिर इस फोबिया का कारण क्या है। भाई नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बन गया तो लगता है इस देश में क्या हो जायेगा।पता नही इसको लेकर मीडिया मैं इतनी बैचेनी क्यो है। कल जब दफ्तर पहुंचा तो मोहन भागवत के बयान पर बबेला मचा हुआ था सीएम से प्रतिक्रिया लिजिए जितने भी राजनैतिक दल है उसके बड़े नेताओ की जितनी जल्दी हो प्रतिक्रया चाहिए।राजनीति मेरा प्रिय विषय नही रहा है लेकिन राजनैतिक गतिविधियो पर नजर रखते है और राजनैतिक हलात पर सोचते भी है ।मुझे तरस आती है उन बड़े पत्रकारो पर जिनके राजनैतिक समझ के काऱण मीडिया में पहचान है, कैसे नीतीश कुमार को वे पीएम के रेस में मानते है। सीएम के गतिविधियो को मैं भी एक वर्षो से लगातार करीब से देख रहा हूं मुझे तो नही लगता कि नीतीश कुमार इतने बेवकूफ है ।उन्हे अपनी मंजिल और लक्ष्य के बारे में पूरी समझ है और वे जानते है कि उनकी राजनीत अभी आने वाले 2014तक ढलान पर आने वाले नही है।कई बार मीडिया में इन्होने पीएम की बात खारिज भी कर दिये है फिर भी चर्चाये बंद होने का नाम नही ले रहा है ।कल तो हाईट हो गया चीख चीख कर सुशासन की धज्जिया उड़ने वाले टीवी चैनल भी मोहन भागवत के बायन को प्रमुखता से दिखा रहा था जैसे अमेरिका के राष्ट्रपति ने नीतीश की तारिफ कर दिया हो। इससे पहले भी नीतीश के सुशासन की तारीफ करते रहे है लेकिन इस तरह के न्यूज डस्टबिन में फेक दिये जाते थे। लेकिन कल की खबर नीतीश की जय वाली थी लगता है । मीडिया इस वक्त दो गेम खेल रहा है एक तो नरेन्द्र मोदी को नीतीश के बहाने गुजरात से बाहर आने से रोकना और इसके लिए तरह तरह का हथाकंडा अजमा रहे है।आडवाणी जी के ब्लांग को ही ले उन्होने लिखा क्या उसको दिखाया क्या गया । वही बात मोहन भागवत को लेकर चल रहा है विदेशी मीडिया को भागवत ने क्या कहा उसको किस अंदाज में चलाया जा रहा है ।इसका सीधा मतलब तो यही ही है कि मीडिया अब समाज को एजुकेंट करने के बजाय डिकटेंट करने में लग गया है। जनाव बचिए इस प्रवृति से।प्रधानमंत्री तय करने की जिम्मेवारी भारत की जनता का है मीडिया हाउस का नही ऐसा न हो फिर एक बार भ्रम टूट जाये

बुधवार, जुलाई 25, 2012

पत्रकार अक्सर लक्ष्मण रेखा पार करते रहते है

गुवाहाटी की घटना के क्रम में ही पटना के मीडिया वाले को भी कही से एक सीडी मुहैया कराया गया था, जिसमें एक स्कूली छात्रा के साथ गैंगरेप होते दिखाया गया है।जब तक सीडी चलाने पर कुछ निर्णय होता तब तक एक चैनल ने इस खबर को ब्रेक कर दिया।व्यवसायिक प्रतिद्वव्दता के कारण बाकी चैनल चुप्पी साध लिया अखबार वालो ने भी यही किया।कई हाउस में इस खबर को लेकर बहस भी हुई आखिर क्या किया जाये।तय हुआ जब तक पीड़िता सामने नही आती है तब तक इस तरह की खबर नही दिखायी जाये। क्यो कि इस तरह की खबर को दिखाना गैर कानूनी है, हो सकता है पूरा सीडी ही फेक हो, यह भी सम्भव हो कि किसी को बदनाम करने के लिए किसी और लड़की का चेहरा पेस्ट कर दिया गया हो जो आजकल धड़ल्ले से हो रहा है।इन सब बातो को देखते हुए कुछ चैनल ने खबर नही दिखाने का फैसला लिया ,वही दूसरी औऱ पत्रकारो के बीच की प्रतिद्वव्दता के कारण कुछ चैनल के रिपोर्टर खबर को गलत साबित करने में लग गये।यह सब चलता रहा वही खबर दिखाने वाला चैनल मामले को जिंदा रखने के लिए मोमवती जुलुस,राज्य महिला आयोग के अधिकारी को जांच करने के लिए प्रेरित करने के साथ साथ चैनल के माध्यम से पूरे मामले को जिंदा रखने की कोशिस जारी रखा। इस दौरान पत्रकारो ने वह सारे हथकंडे अपनाये जो उनसे सम्भव था, महिला समाजिक कार्यकर्ता को आन्दोलन के लिए प्रेरित करना, रोजना बाईट लेना ,विपंक्ष को गोलबंद करना,पुलिस पर दबाव बनाने के लिए डिवेट कराना,मुख्यमंत्री से सवाल करना ,ऐसे सारे हथकंडे अपनाये। लेकिन फिर भी बात नही बन पा रही थी पुलिस के अधिकारी पीड़िता के सामने आये बगैर कारवाई करने को तैयार नही था।जांच के लिए गये अधिकारी से पीड़ित का परिवार बात करने से साफ इनकार कर दिया। वही दूसरी और मीडिया उन लड़को का स्टील फोटो दिखा रहे थे और चीख चीख कर कह रहे थे ये वही बलात्कारी है जिन्होने स्कूली छात्रा के साथ गैंगरेप किया है।यह सब चलता रहा इस बीच कल राज्य महिला आयोग ने पीड़ित लड़की का बयान डीजीपी को भेजा। आयोग का पत्र मिलते ही डीजीपी के आदेश पर कल ही महिला थाने में मामला दर्ज कर दिया गया और आज पुलिस ने जांच भी प्रारम्भ कर दिया।यह कारवाई पूरी तौर पर उस चैनल की जीत है जिसने एक मुहिम के तहत पिछले 10 दिनो से उस खबर को जिंदा ऱखने के लिए चला रहा था।लेकिन सवाल यह उठता है कि मीडिया की यह मुहिम जायज है क्या, पूरी कानूनी प्रावधानो को दरकिनार कर मीडिया की यह अति सक्रियता घातक नही है क्या ।क्यो कि इसी अति सक्रियता के कारण गुवाहाटी में पत्रकारो को शर्मसार होना पड़ा ।क्योकि एक स्थिति के बाद खबर की दुनिया मैं पत्रकारो को एहसास ही नही हो पाता  है कि समाज औऱ संविधान ने उसकी भूमिका क्या निर्धारित की है। अक्सर उत्साह में वे सारे लक्ष्मण रेखा पार कर जाते है ऐसी स्थिति में यही वक्त है सोचने का क्योकि अति हमेशा बूरा होता है।

शनिवार, जुलाई 21, 2012

जीवन जीने के लिए मिला है खोने के लिए हमारे आपके पास बहुत कुछ है


ऱाष्ट्रपति चुनाव के दिन विधानसभा में डियूटी लगी हुई थी सुबह 9बजे विधानसभा पहुंचा और घर पहुंचते पहुंचते रात के 10बजे गये।इस दौरान हलात बिहार पुलिस के जबान से कम नही था लगातार खड़े रहो ।शुक्र रहा पत्रकार मित्रो का जिन्होने पूरानी याद को बया कर जमकर हंसाया, इतनी हंसी याद नही कब आयी थी।घर पहुचते पहुचते किसी काम के लायक नही रह गया था, लेकिन आदतन टीवी खोलकर पूरे दिन का हाल जानने बैंठ गया सभी चैनलो पर  राजेश खन्ना छाये हुए थे देखते देखते कब नींद आ गयी पता ही नही चला । अचानक मोबाईल की घंटी बजने लगा अमूमन देर रात मोबाईल की घंटी बजने पर एक से दो रिंग में उठा लेते हैं लेकिन लगता है शायद उस दिन अंतिम रिंग के दौरान मोबाईल उठाया सर मैं बर्डीगार्ड राजीव बोल रहा हूं मैंडम हाथ काट ली है और साहब का मोबाईल नही लग रहा है अचानक नींद में लगा कोई खोलता हुआ गर्मी पानी डाल दिया ।
आनन फानन में मोबाईल लेकर विस्तर से बाहर निकला लेकिन पत्रकार की पत्नी समझे नही ऐसा तो सम्भव नही था जब तक बाहर निकलते वह भी बाहर आ गयी क्या हुआ है कोई घटना घट गया है क्या किसी तरह से उसे झाझा देकर बाहर बालकोनी में पहुंचा और फिर राजीव से पुंछा मैंडम किस हाल में है सर बेहोश है पास में जो भी बड़ा अस्पताल है ले जाओ एसीपी को हम खुद फोन कर रहे है तुम लेकर बढो।
इस दौरान किसी तरह मैंडम के साहब से भी बात हो गयी वे विशेष मिशन में बाहर निकले थे काम छोड़कर वापस चल पड़े इस दौरान कम सुबह हो गया पता ही नही चला डांक्टर ने सुबह कहा कि अब चिंता करने की जरुरत नही अब मैंडम पूरी तरह खतरे से बाहर है।मित्रो मैंडम का परिचय है एक ईमानदार अधिकारी का है इनके प्रशासनिक क्षमता का उदाहरण दिया जाता है। सभी क्षेत्रो में बेहतर है लेकिन उन्हे अपने पति पर हर वक्त यह शंक रहता है कि किसी और के साथ कोई चक्कर तो नही चला रहा है या फिर कोई उसे फसा तो नही रहा है।अमूमन आज की युवा पीढी जो काम करते है इस बिमारी से ग्रसित है लड़किया कुछ ज्यादा ही परेशान है ।
ऐरेंज मैरेज हो या फिर लभ मैंरेज ही क्यो न हो दोनो परेशान है,ऐरेंज मैरेज वाले को इन समस्याओ से लड़ने के लिए कुछ वक्त मिलता है और फिर दोनो परिवार और रिश्तेनाते होते है जो स्थिति सम्भालते रहते है लेकिन लभ मैंरेज करने वाले के साथ कोई नही होता है और उन्हे अपने हलात से खुद लड़ना पड़ता है।यह बिमारी अब महानगरो से कसबे तक पहुंच गया है काम करने वाले 80 फिसद्दी शादी शुदा जोड़ा आज इस द्वव्द से गुजर रहा है। कही पति घूटन महसूस कर रहा है तो कही पत्नी।
विदेशो में तो सरकार की औऱ से कई तरह से स्पोट सिस्टम मौंजूद है या फिर वहां के समाज ने इसको स्वीकार कर लिया है ।लेकिन हमारे यहां कुछ भी अनुकुल नही है आज भी अकेले जीवन जीने के बारे में सोचा नही जा सकता है ऐसे हलात में इस बिमारी का क्या इलाज हो सकता है। पुरुष इस मामले में इनता कमजोर है कि बहुत कुछ चाह कर भी बहुत कुछ नही कर पाता है। समाज के बदलाव को अभी भी वह पूरी तौर पर आत्मसात नही कर पाया है, महिलाओ के साथ रिश्ते बनाने में अभी भी वह सहज नही हो पाया है। साथ काम करते करते कब दोस्ती प्यार में बदल जाता है पता ही नही चलता है।हलाकि समय समय पर समाज इस बिमारी का इलाज खुद करता रहता है लेकिन इसके इलाज की प्रक्रिया मनुष्य के निर्माण के साथ शुरु हुआ है वह आज भी जारी है ।और लगता है जब तक मनुष्य है खोज जारी रहेगा।बेहतर है इस रिश्ते को अपने अंदाज में चलने दिजिए जीवन बहुत किमती है फिर यह जीवन मिलेगा की नही किसी ने नही देखा है ।ऐसे में इस बहुल्य जीवन को महज रिश्ते में आ रहे बदलाव के कारण खत्म कर ले जायज नही है ।महिला और पुऱुष दोनो को यह समझने की जरुरत है जीवन मिला है कुछ करके जाओ, प्यार किया है तो निभाने की कला सीखो और कोई रिश्ता टूटने है तो नये रिश्ते बनाने की कला सीखे इसी में बेहतरी है

मंगलवार, मई 22, 2012

बाजार में बिकने को सजधज कर तैयार हूं कोई खरीदोगे

पढाई पूरी करने के बाद हमारे पास कैरियर को लेकर कई विकल्प थे राजनीत,एनजीओ,और फिर सरकारी नौकरी के लिए जोर तोड़ करना।मैने सबसे पहले निर्णय लिया कि दिल्ली छोड़ना है गांव जाना है फिर कैरियर के बारे में सोचा जायेगा।दिल्ली से लौटने के बाद खेती करना शुरु किया और पूरी मन से ,नगदी फसल में ईख और गेहू की खेती से शुऱुआत किया और धीरे धीरे खेती के क्षेत्र में कई सफल प्रयोग भी किये। आज भी उसके लिए समय निकाल लेता हूं, लगता है देश के निर्माण में मेरी सार्थक भूमिका यही है।धीरे धीरे खेती में मन लगने लगा लेकिन कुछ कुछ खाली खाली पन महसूस होता रहता था। खासकर जब कोई परेशान व्यक्ति न्याय के लिए चौखट पर आता था या फिर कही अन्नाय होता दिखता था ।ऐसे में मुझे महसूस हुआ कि इतनी पहुंच होनी चाहिए कि सिस्टम को सही काम करने पर मजबूर कर सकू और इसी उम्मीद से पत्रकार बना ।तीन वर्षो तक आंचलिक पत्रकारिता किया और उस पूरे इलाके में पत्रकारिता का मायने बदल दिया। राजद के शासनकाल के बावजूद प्रशासन से लेकर विधायक और मंत्री तक हमारी बात को बड़ी अहमिएत देते थे। एक तो बेवाक लेखनी और दूसरा दिल्ली विश्वविधालय का जलवा।लेकिन यह समय ज्यादा दिनो तक नही चल सका औऱ  एक स्टोरी ने मेरी पूरी भूमिका को ही बदल दिया। मैंने एक स्टोरी लिखा किस तरीके से रोसड़ा प्रखंड के एक गांव में आये दिन जंगली भेड़िया बच्चे को मार रहा है और यह सिलसिला पिछले पाच वर्षो से चल रहा है। स्थिति यह हो गयी थी कि गर्भवती महिलाये बच्चे देने का समय आने पर अपने मायके चली जाती थी फिर भी पचास से अधिक बच्चे जंगली भेड़िया का शिकार हो चुका था। इस स्टोरी के छपने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की टीम उस गांव के दौरे पर आयी ।जिस दौरान बिहार के बड़े पत्रकार गुंजन सिन्हा जी से मुलाकात हुई और उन्होने मुझे ईटीवी में काम करने को कहां ।मेरी पहली पोस्टिंग दरभंगा हुआ फिर भी खेती के साथ साथ पत्रकारिता भी जारी रहा और मुझे गर्व है कि दरभंगा जैसे जगह में जहां घर घर में बड़े बड़े पत्रकार है आज भी दरभंगा छोड़ने के चार वर्ष बाद भी गांव गांव से फोन आता है और आम लोग शिद्दत से याद करते है और पत्रकारिता की दुहाई देते हैं।आज भले ही मैं पटना में सीएम से लेकर डीजीपी  तक को कभर कर रहा हूं लेकिन लगता है जैसे मेरी हैसियत कोठे के बाई से भी बदतर है हर कोई बोली लगाने को तैयार रहता है मानो बजार में मेरी यही पहचान हो।कसवे से राजधानी तक के इस सफर में मैं तो पत्रकार बन गया, लेकिन पत्रकारिता वही छूट गयी देखते है इस द्वव्द के साथ कब तक जीते हैं।
यही हलात है कुछ समझ में नही आ रहा है

शुक्रवार, मार्च 30, 2012

बदलते बिहार की यह एक तस्वीर है

दो तीन दिनों पूर्व बिहार के मधुवनी के रहने वाले राज झा का फेसबूक पर एक मैंसेज आया,उनका कहना था कि आपका चैनल रोजना देखते है चैनल देखने से लगता है, कि बिहार में कोई खास बदलाव नही आया है। मैं बिहार आना चाहता हूं क्या वाकई में स्थिति ऐसी ही है आप मुझे बेहतर सलाह दे।बिहार से बाहर बिहार के बारे में जो छवि मीडिया ने बनायी है उसमें इस तरह का सवाल पुछना लाजमी है। लेकिन इनके सवाल के जबाव देने के लिए में बेहतर समय का इन्तजार कर रहा था।शायद आज उनके सवालो का जबाव बेहतर तरीके से दिया जा सकता है,मेरा मानना है कि देश में आज नीतीश कुमार के टक्कर का राजनेता नही के बराबर है। बिहार को बदलने के प्रति गम्भीर भी है लेकिन जो समाजिक आर्थिक और प्रशासनिक ढंचा है उसमें बदलाव के लिए जो जजवा चाहिए उसकी कमी नीतीश कुमार में जरुर है। लेकिन इसके लिए सिर्फ नीतीश कुमार को ही जिम्मेवार नही ठहराय सकता है।एक घटना से आप बिहार के बदलाव को बेहतर तरीके से समझ जायेगे।तीन दिन पहले जमुई में रोड लुटेरे ने एक परिवार को लूट लिया और उसमें सवार एक महिला के साथ बलात्कार किया और फिर उसकी हत्या कर दी गयी।पुलिस जांच में ये बाते सामने आयी है कि पति ने ही उस महिला की हत्या करायी है, अपने प्रेमी को पाने के लिए।ऐसा हो भी सकता है लेकिन आप देखिए जिस दिन यह घटना घटी उस दिन घटना के समय गांड़ी में साथ चल रहे मृतका की 8वर्ष की बेटी ,भाई पति और भाभी चीख चीख कर रात भर इस थाने से उस थाने और एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में दौड़ती रही लेकिन किसी पुलिस ने उसकी बात तक नही सुनी। मीडिया में जब खबर चली तो 14घंटे बाद प्राथमिकी दर्ज हुई ,बिहार के किसी भी अखबार ने इस खबर को प्रमुखता नही दिया लेकिन जैसे ही ये बाते आयी कि इस घटना में पति शामिल है खबर प्रथम पेज पर छपने लगा कहने का मतलब यह है कि यहां लोकतंत्र के चारो स्तम्भ नीतीश वंदना करने में लगा है फेस बचाने के लिए किसी भी हद तक सौदा कर सकता है अब आप खुद तय करे,यह महज उदाहरण है लेकिन इश एक उदाहरण से बिहार के बदलाव को समझा जा सकता है रही बात मेरे चैनल द्वारा खबर दिखाये जाने की तो इस पर मेरी कोई प्रतिक्रिया नही होगी।

शनिवार, मार्च 03, 2012

क्या कर रहे हो मित्र

मुझे अब अपने प्रोफेसन से शर्म आने लगा है,समझ में नही आ रहा है की इस प्रोफेसन का क्या होगा, हमलोगो ने तो इस प्रोफेसन के स्वर्णिम काल का आनंद ले लिया। दुर्भाग्य यह है कि नये लड़के जो इस प्रोफेसन से जुड़ रहे  हैं पता नही किस दुनिया में रहते हैं।उन्हे यह समझ में क्यो नही आ रहा है कि पत्रकारिता विश्वास के बुनियाद पर है ठिका है। विश्वास खो दिये तो फिर इस प्रोफेसन से जुड़े लोगो का क्या होगा, लगता है इस और कोई सोचता ही नही है।राजनेता और मीडिया के व्यापार करने वाले उघोगपति भी तो यही चाह रहे है और हमलोग उसके गिरफ्त में फसते जा रहे है, हमारे पास क्या है जनता का विश्वास अगर वही खत्म हो गया तो फिर मेरा हाल क्या होगा सोचिए मित्र।अब जरा कल ही की घटना को ले राज्य के एक बड़े अग्रेजी दैनिक अखबार के बड़े पत्रकार ने लिखा की तीन सौ रुपये के खातिर ठिकेदार नें एक लड़के का दोनो हाथ काट दिया खबर छपते ही हंगामा हो गया।मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश दे दिया विधानसभा और विधानपरिषद में विपंक्षी ने जमकर हंगामा मचाया और उसके बाद तो भिजुउल मीडिया ने  जो खेल खेला  वह तो आप लोग देखे ही होगे।मैंने इस खबर को लेकर संदेह व्यक्त किया लेकिन किसी ने मेरी नही सुनी और उसके बाद शाम में जब सच सामने आये तो खबर चल रही है अपना खंडन क्यो रहे इस दंभ में कोई भी खबर रोकने को तैयार नही हुआ।मामला यह है कि अरवल निवासी रामसागर चन्द्रवंशी का 19फरवरी को दानापुर में ट्रेन से गिरने के दौरान घायल हो गया था।दानापुर  जीआरपी ने घायल चन्द्रवंशी को बेहतर इलाज के लिए पीएमसीएच में भर्ती कराया स्थिति में सुधार होने पर चन्द्रवंशी अस्पताल से भाग खड़ा हुआ और फिर गांव पहुंच कर इस तरह का खेल रचा गया और इसके झांसे में मीडिया आ गया क्यो कि हमारे लिए सरकार को नीचा दिखाने का इससे बेहतर मौंका और क्या हो सकता था।

गुरुवार, मार्च 01, 2012

ससुरा नलायक पुरुष कौम कब सुधरेगा

पुरुष और महिलाओ के रिश्ते को लेकर आये दिन चर्चाय होती रहती है निशाने पर पुऱुष ही होता है,चलिए आज आप सबो से कुछ अलग अंदाज में बात करते है उम्मीद है मित्र आप दिमाग से नही दिल से जबाब देगे।पुरुष आलसी होता है,दूसरे का खयाल नही रखता है,घर का दबाव नही रहे तो पूरे दिन अवारागर्दी करते रहेगा,घर में माँ और पत्नी के एहसान तले दवा रहता है, तो घर से बाहर लड़कियो पर डोरा डालता रहता है,कानून और समाज का भय नही हो तो राह चलते लड़कियो के साथ किसी भी हद को जाने में देर नही लगायेगा,बंधन उसे पसंद नही है ,महिलाओ के मामले में पूरी तौर पर फ्लट करने में विश्वास रखता है, घर से बाहर निकलते ही दूसरे पर डोरा डालना शुरु कर देता है,महिलाओ के साथ इसका व्यवहार इस कदर होता है जैसे कोई उपभोग की वस्तु हो इनते बूरे होते है पुरुष। अब आप बताये इस पुरुष रुपी समस्या का समाधान क्या है। हजारो वर्षो के दौरान हमारे पूर्वजो ने जो समाज का निर्माण किया या फिर परिवार जैसी संस्था बनायी ,जिसके बारे में महिलाये कहती है कि परिवार जैसी संस्था ने महिलाओ के शोषण को और बढा दिया।अब आप ही बताये कौन सी संस्था होनी चाहिए क्यो कि बाकी और जो भी संस्था है उसमें पुऱुष का तो बल्ले बल्ले है ।पुऱुष तो चाहता ही कि जीवन में जीतनी महिलाए मिले बेहतर है बच्चा पैंदा करे और महिलाये उसका लालन पालन करे और सड़क पर पुरुष आवारा कि तरह डोरा डालते रहे।यह सच एक पुरुष के रुप में मैं पूरे होशो हवास में स्वीकार कर रहा हूं और अब आप बताये इस  पुऱुष रुपी समस्या का समाधान क्या हो सकता है
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गुरुवार, जनवरी 05, 2012

मुझे कुछ कहना है

किसी खबर के सिलसिले में फोनिंग चल रहा था ।इस दौरान एक अपरिचित नम्बर से लगातार फोन आ रहा था, जैसे ही फोनिंग खत्म हुआ उस नम्बर पर फोन किया।फोन के रिसिव होते ही सामने वाली बरस पड़ी ।जब तक कुछ समझ पाते जो कुछ नही भी बोलने चाहिए बोलती चली गयी पुरुष होता ही ऐसा है ।एक स्वर से बोली जा रहा थी अचानक आवाज पहचान में आ गयी अरे कैसी हो इतने दिनो बाद मेरा नम्बर कैसे मिला। अच्छा तो अब तुम मुझे पहचाने ।मैने कहा अरे बाबा ऐसी कोई बात नही है फोनिंग चल रहा था इसलिए फोन काट कर बात नही क्या छोड़ो बात क्या है।देखो आदित्य आज कल मेरे साथ बड़ा ही बुरा वर्ताव कर रहा है। क्यो, ऐसा क्या हो गया फोन करो तो बात नही करता मेरा ख्याल नही रखता है घर में अकेली बैठी बोर होती रहती हूं आफिस फोन करु तो डपट देता है। तुम्हे तो वह दिन याद होगा किस तरह कांलेज में मेरे लिए पलके बिछाये रहता था अब स्थिति यह है कि हमसे ठिक से बात तक नही करता है ।पाच मिनट में आदिय्त को पूरी तरह धो डाली लगा ऐसा जो आदित्य जैसा बूरा इंसान इस जहां में कोई और नही है।जब भी आदित्य का पंक्ष रखना चहता था कि वह भड़क उठती थी और बस एक बात सारे पुरुष एक जैसे होते है।मैने प्यार से बोला देख यह सिर्फ तुम्हारी समस्या नही है यह समस्या पूरी आंधी आबादी की है ।देख अपना बचपन याद कर मा पापा के सबसे लाडली तुम रही होगी पूरे परिवार का केन्द्र विन्दु रही होगी।जैसे जैसे बड़ी हुई चाहने वालो की लम्बी सूची तैयार हो गयी  होगी ।घर के नौकर से लेकर ड्रायवर औऱ फिर कोचिंग जाने के रास्ते तक पलके बिछाये लोग तुम्हारा इंन्तजार करते हो यह सिलसिला वर्षो चली होगी ।फिर  कांलेज आय़ी तो प्रो0 से लेकर सीनियर औऱ बेचमेट के ऐटेशन में रही फिर जीवन में आदित्य की तरह चाहने वाले कई लोग आये आज भी वो लोग तुमको उसी तरह पलके बिछाये याद करते होगे।लेकिन शादी के बाद धीरे धीरे चाहने वालो की फेहरिस्त छोटी होने लगी होगी । औऱ एक समय बाद सिर्फ तुम बच जाती हो। यह हर किसी के जीवन में आता है ।हर लड़किया अपने दायरे में सेलिब्रेटी होती है । इस सेलिब्रेटी वाली सोच से बाहर निकलने की जरुरत है  दुनिया फिर विंदास है ।इतना कहना था कि वह पूराने रंग में आ गयी और फिर शुरु हो गयी दिल्ली विश्व विधालय के कैंटीन की कहानी जहां पहली बार आदित्य से मिली थी