सोमवार, नवंबर 05, 2012

सिस्टम ने मुझे कायर बना दिया

वर्षो बाद किसी बड़े इभेंन्ट में मैं दर्शक की भूमिका में चैनल बदल कर जानकारी ले रहा था मैं बीते कल की बात कर रहा हूं। एक और पटना के गांधी मैंदान में नीतीश कुमार बिहारी अस्मिता के बहाने बिहार की राजनीत की नीति और नियति बदलने में लगे हुए थे। तो दूसरी तरफ कांग्रेस एफडीआई के बहाने अपने आपको स्थापित करने की कोशिस कर रहा था।रैली में कितने लोग जुटे और कैसे जुटे इस पर बहस कि कोई जरुरत नही है लेकिन इन दोनो रैली में कुछ बाते ऐसे हुई जिस पर सोचने की जरुरत है।एक और राहुल गांधी का भाषण जिसको लोगो ने बेहद मजाकिया अंदाज में लिया, किसी ने कहा भाषण के दौरान राहुल ऐसे बोल रहे थे जैसे कि कोई विरोधी दल का नेता बोल रहा है। किसी ने कहा इसके लिए तो उनका ही परिवार जिम्मेवार है सब कुछ सही है। लेकिन राहुल ने आखिर कहा क्या --- आमलोग और कमजोर आदमी के लिए राजनीतिक सिस्टम बंद है,राजनैतिक पार्टियो में आम लोगो के लिए दरवाजा बंद है,आम आदमी सपना देखते है और राजनैतिक सिस्टम उसे ठोकर मार कर गिरा देता है। ऐसे कई सवाल उन्होने वर्तमान राजनैतिक हलात के बारे में खुलकर रखा शायद राहुल के सवाल का बेहतर जबाव आज की व्यवस्था में जहां कही भी किसी भी तरह के संस्थानो में काम करने वाले लोग बेहतर दे सकते है।इस तरह के सवाल से आज हर यूथ जुझ रहा है चाहे वह किसी बड़ी कम्पनी का मालिक ही क्यो न हो । राहुल के उदगार को हलके से न ले देश आज इसी हलात से गुजर रहा है। और दूसरी बड़ी बात राहुल की कौन कहे आज इंदिरा गांधी ही क्यो नही रहती जितना विवश राहुल है उससे कम विविश वो भी नही रहती है। आज कोई भी संस्थान हो उसमें आम आदमी का प्रवेश और आम लोगो के लिए काम करना और ईमानदारी के साथ काम करना कितना मुश्किल है वह कोई काम करने वाला ही बेहतर बता सकता है। हमलोग वैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करते है जैसे पवेलिएन में बैंठे दर्शक सचिन को स्टेन की बाहर जाती गेंद पर विकेट गवाने पर व्यक्त करते है शायद दर्शक को पता नही है एक अदना स्टेन को भी खेलना कितना मुश्किल है।
अब बात करते है बिहार के मिस्टर किलिंन नीतीश कुमार की कल बड़े जोरदार तरीके से विशेष राज्य को लेकर रैली बुलायी और मीडिया ने जो लिखा है और जो दिखाने की कोशिस किया है उससे लगता है कि ऐसी ऐतिहासिक रैली पहले कभी नही हुई है। कई तरह की बाते लिखी गयी और चैनलो पर बहस भी हुई रैली में आये लोग बेहद अनुशासित थे। तो किसी ने कहा कि इस रैली से नीतीश को एक अलग पहचान देश स्तर पर मिला है।जिसको जो हुआ कहा और लिखा और मीडिया वाले मान्य तरीके के तहत रैली की घोषणा के दिन से ही बार गर्ल के डांन्स, बाहुबलियो की नौंटकी ,रैली के नाम पर चंदा उगाही या फिर रैली में आये लोग कहा उत्पात मचा रहे है ऐसी खबरो में ही अपना दिन बिता दिये।लेकिन किसी ने ये सवाल नही उठाया कि भ्रष्टाचार को लेकर बड़ी बड़ी बाते करने वाले नीतीश कुमार की पार्टी रैली के सफल आयोजन के लिए पचास करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कंहा से किया यह पैसा कहा से आया क्या इस तरह के पैसे देने वाले किसकी हकमारी करके पैसा दिया होगा आम आदमी का ---
जरा नीतीश कुमार से पुछुए लखनुउ से जो साउन्ड सिस्टम आया था उसकी राशी किसने दिया ऐसे कई सवाल है, तमाम मंत्री के यहां विभाग के अधिकारी व्यवस्था करने में लगे हुए थे जिस पार्टी के 80 प्रतिशत विधायक की आय वेतन के अलावा एक लाख भी नही है वो एक दिन में हजारो लोगो के रहने खाने का व्यवस्था कहा से किया ।.ये सही है लालू की रैली की तरह थाना या बीडियो से पैसा की उगाही नही की गयी लेकिन खर्च तो हुए और ये खर्च भी कही न कही से आम आदमी के हकमारी करके ही किया गया है। चाहे वो कोई डीएम एसपी या इनिजीनयर या व्यापारी ही क्यो न दिया हो ।ये मैं इसलिए कह रहा हूं कि आज के सिस्टम में बने रहने के लिए पैसा बेहद जरुरी है और उसके लिए आपको अपनी बोली लगानी पड़ेगी नीतीश इससे अलग नही है। सिस्टम के खिलाफ गोलबंद होने की जरुरत है, राहुल, सोनिया मनमोहन या फिर  नीतीश, और नरेन्द्र मोदी जितने मजबूत दिखते है उससे कही अधिक कमजोर है और सिस्टम के गुलाम की तरह कार्य करते है।ये समझने की जरुरत है नही तो इसी तरह हमलोग गुस्से का इजहार करते रहेगे सरकार बदलती रहेगी ,लेकिन आम आदमी कमजोर और बिमार होता जायेगा ।सोचिए और अपने गुस्से को सही अंजाम तक पहुंचाने में मदद करिए। राहुल की आवाज एक निराश पीढी का आवाज है जो कुछ करने की इक्छा रखता है लेकिन सिस्टम के आगे विवश है उसके आवाज को गम्भीरता से लेने की जरुरत है।

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