रविवार, नवंबर 28, 2010

बिहार की जनता ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया


बिहार विधानसभा चुनाव के परिणाम को लेकर विशलेषण का दौड़ जारी है।एक और जहां नीतीश कुमार में लोग देश के प्रधानमत्री की छवी देखने लगे हैं, तो वही दूसरी और विशलेषक परिणाम को मडंल राजनीत के होलिका दहन के रुप में भी देख रहे हैं।वही मुख्यमत्री नीतीश कुमार की अपनी एक अलग व्याख्या है और जनता के इस अपार समर्थन से थोड़ा घबराये हुए हैं। उनकी घबराहट से मैं भी इत्फाक रखता हूं,हो सकता है वे इतनी दूर तक नही सोचते होगे लेकिन मेरा मानना है कि बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम भारतीय लोकतंत्रातिक व्यवस्था के लिए मील का पथ्थर साबित होगा।जिस उम्मीद से मतदाताओ ने नीतीश कुमार को वोट दिया है उस पर अगर नीतीश खड़े नही उतरे तो भाई यह बिहार है ऐसी प्रतिक्रिया होगी कि मैं सोचकर ही घबरा जाता हूं।मैंने पिछले लेख में नीतीश कुमार के आपार बहुमत से जीतने की बात लिखा था साथ ही मैंने यह भी लिखा था कि जनता में भ्रष्टाचार को लेकर खासा आक्रोश है। मेरी नीतीश कुमार से राय है कि भ्रष्टाचारियो को कानून के सहारे रोका नही जा सकता है कृप्या करके भ्रष्टाचार को नियत्रित करने वाली जो ऐंजसी उपलब्ध है उसकी आजादी बनाये रखे।सूचना के अधिकार कानून पर जो पाबंदी नीतीश कुमार ने लगा रखी है उसे मुक्त करे अधिकारियो को जबाबदेह बनाये सूचना नही देने वाले अधिकारियो के पंक्ष में नही खड़े हो।राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देश के पालन में जाति नही देखे।वही लोकपाल और उपभोगता फोरम जैसी संस्थान को मजबूती प्रदान करे नही तो जिस अंदाज में बिहार में हिंसक प्रवृति बढ रही है उसे रोकना काफी मुश्किल होगा।

वामपंथी पार्टियां खासकर भाकपा माले के बिहार विधानसभा चुनाव में शून्य पर आउट होने पर नक्सलियो की जो प्रतिक्रिया आयी है वह बेहद गम्भीर है और सरकार को नक्सली नेता के बयान को गम्भीरता से लेनी चाहिए।माओवादी संगठन के प्रवक्ता ने चुनाव परिणाम पर प्रतिक्रिया वयक्त करते हुए कहा कि चुनाव लड़ने वाली कम्युनिस्ट पार्टिया जिस तरह संसदीय भटकाव में फंसी थी उसमें इनकी यही दुर्गिति होनी होनी थी।वही भाकपा माले जो वर्ग संधर्ष और संसदीय संघर्ष को एक साथ मिलाने का दावा किया वही खुद संसदवाद के दलदल में फंस गई।कई इलाको में भाकपा माले इन्ही तर्क के आधार पर गरीबो को लोकतांत्रिक व्यवस्था से जोड़कर रखे हुए था और गरीबो को लगता था कि वे हमारे हक और हकुक की बात करते हैं। लेकिन बिहार के राजनीत में यह पहला मौंका है जब विधानसभा में लाल झंडा का एक मात्र प्रतिनिधि पहुंचा है।चर्चित नक्सली नेता उमाधर सिंह जिन्हे पहली बार इस तरह से जनता ने खारिज कर किया है उन्हे मांत्र चार हजार के करीब वोट आया है जबकि आम अमाव और भ्रष्टाचारियो के खिलाफ आवाज उठाने वाले राजनेताओ में इनकी गिनती होती है।

मुझे जनता के इसी आचरण से डर लग रहा है क्योकि नीतीश कुमार की जो छवि जनता के सामने है वह पूरी तौर पर मीडिया का क्रियेसन है जिसमें सच्चाई का दूर दूर तक वास्ता नही है।जब भ्रष्टाचारियो को मुख्यमंत्री सचिवालय से ही संरक्षण मिलेगा तो फिर भ्रष्टाचारियो पर कैसे नकेल कसेगी।लालू के कभी नम्वर वन सलाहकार रहे श्याम रजक से क्या उम्मीद की जा सकती है वैसे कई मंत्री इनके मंत्रीमंडल में शामिल हुए जिनकी योग्यता सिर्फ और सिर्फ जात है।

जनता ने तो जात आधारित राजनीत को पूरी तौर पर नकार दिया लेकिन लगता है राजनेता इस जीन को बचाकर रखना चाहते है।हलाकि मैं नीतीश कुमार को लेकर कोई खुश फोमी पाल नही रखा था लेकिन जो दिन में सपने देख रहे थे उन्हे नीतीश के मंत्रीमंडल गठन से थोड़ा झटका जरुर लगा है।कई दागी और काम चोर चेहरा इस बार भी मंत्रीमंडल में शामिल किये गये है और काम करने वाले मंत्री को कमजोर मत्रांलय दिया गया है।वही सरकार द्वारा कार्यभार ग्रहण करने के बाद जो पहली नियुक्ति हुई है महाअधिवक्ता के पद पर वे मुख्यमंत्री के विरादरी का है।

देखिये आगे आगे होता है क्या --

गुरुवार, नवंबर 18, 2010

कई मायने में ऐतिहासिक रहा बिहार विधानसभा का चुनाव


बिहार विधानसभा चुनाव लगभग समाप्ति पर है और अब सबो की नजर चुनाव परिणाम पर टिकी हुई है।उम्मीद की जा रही है की चुनाव परिणाम बिहार की जनता के लिए खुशहाली और समृद्धि लेकर आयेगी। क्यो कि पहली बार बिहार के वोटरो नें जाति,धर्म,मजहब,नाते रिश्ते को तोड़कर विकास और समाजिक समरसता के नाम पर वोटिंग किया है।मतदाताओ ने एक और जहां नीतीश कुमार के विकास और सुशासन के दावे पर मोहर लगा दी, वही नीतीश कुमार के अंहकार और राज्य में जारी अफसरशाही औऱ भ्रष्टाचार को लेकर खिचाई भी किया है। यही कारण रहा कि प्रथम चरण के चुनाव के बाद नीतीश कुमार जहां भ्रष्टाचारियो की सम्पत्ति जप्त करने की घोषणा कर मतदाताओ की वाहवाही लूटे। वही दूसरी और लालू प्रसाद ने अफसरशाही खत्म करने का भरोसा दिलाकर ऱुठे मतदाताओ को मनाते दिखे।लेकिन पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जो अहम बाते रही की मतदाताओ ने नीतीश कुमार के एक बार और मुख्यमत्री बनाने की अपील को काफी गम्भीरता से लिया ।लेकिन इसका असर चुनाव परिणाम पर कितना पड़ता है ये तो परिणाम आने के बाद ही सामने आयेगा।

पूरे चुनावी अभियान के दौरान नीतीश कुमार के पास कोई टिंक टैंक जैसी बाते देखने को नही मिला जो पार्टी उम्मीदवार के नकारात्मक पंक्षो के काऱण जनता में उपजे आक्रोश को नियंत्रित कर सके। और यही कारण है कि जनता के अपार समर्थन के बावजूद नीतीश मंत्रीमंडल के अधिकांश मंत्री और विधायक की विधायकी खतरे में है।अगर परिणाम प्रतिकुल होता है तो इसमें जनता से कही अधिक गुनाहगार खुद नीतीश कुमार होगे जिन्होने टिकट बटवारे से लेकर पूरे चुनाव अभियान के दौरान जनता के भवानाओ को दरकिनार करते दिखे।लेकिन इन सबके बावजूद जनता ने जो दिलेरी दिखायी है वह वाकई देखने लाईक था।

नीतीश कुमार का नालंदा के रहुउ में 11बजे सभा होनी थी लाईफ कभरेज हो इसके लिए पूरी टीम के साथ सुबह 9.35में ही सभा स्थल पर पहुंच गये थे।कार्यक्रम नीतीश कुमार के कर्मभूमि पर होने वाला था इसलिए सभी की पैनी नजर चुनावी सभा पर टिकी हुई थी।सभा स्थल पर एक बूढा व्यक्ति जिसकी उर्म 55 के करीब होगा लेकिन देखने में 75के करीब लग रहा था डी एरिया के बाहर बैंठा हुआ था उस समय कुछ पुलिस को छोड़कर कोई नही पहुचा था जैसे जैसे सभा का समय करीब होने को हो रहा था लोगो के आने का सिलसिला तेज होने लगा और नीतीश कुमार जब पहुंचे तो पूरा मैंदान भरा हुआ था नीतीश कुमार जिन्दावाद का नारा लग ही रहा था कि पीछे से कोई व्यक्ति बार बार चिल्ला रहा था तनी हटहो(जरा हट जाये)मैंने पलट कर देखा वही बूढा चिल्ला रहा था जो डी एरिया में मीडियाकर्मियो के ट्रायपोर्ट लगने के कारण नीतीश कुमार को नही देख पा रहा था मै उसके पास गया औऱ डी ऐरिया के बाहर लगे बांस के बल्ले के नीचे से आने का इशारा करते हुए उन्हे मीडिया सेंन्टर में ले आया औऱ उसके बाद मैंने अपनी कुर्सी में बैंठा दिया पूरे भाषण के दौरान मेरी नजर जब भी उस बूढे व्यक्ति पर पड़ता देखता की वह टकटकी निगाह से नीतीश कुमार को देख रहा है।भाषण खत्म हुआ नीतीश उड़ चले हम लोग समान पैंकप करा रहे थे तभी मुझे लगा कि पीछे से कोई व्यक्ति आशिर्वाद देना चाह रहा है जैसे ही पलटा सामने वही बूढा व्यक्ति खड़ा था मैने पुछा बाबा गये नही है नही बाबू तोड़ से मिलले बिना कैसे जतियो(तुमसे मिले बगैर कैसे जाते, मैनें पुछा बाबा नीतीश जी की कहलथून बड़ी शांत भाव से उन्होने कहा बाबू अंतिम आस इही छे मैने पुछा क्या कहा बाबा, तो उन्होने कहा लोग कहे रहे अपन सरकार बनले 15वर्ष लालू के इही नाम पर वोट देलिए पांच वरस नीतीश बबुआ के वोट देलिए औऱ इही बेर द रहल बानी लेकिन गरीब के भला नही भेल तो अनर्थ भे जाईते, मैने पुछा क्यो बूरा होगा, बाबू नईका छौड़ा(लड़का, सब हथियार उठवे के बात करे छे गरीब के भला नही भले त बाबू बढ बूरा दिन आवे वाला छई,55वर्ष से इ नाटक चली रहल छई पहले कही छले बड़का सब लूट ले छई लेकिन बीस वर्ष से बिहार में गिरिबहे के बेटा मुख्यमंत्री होई रहल छई ओकरा बादो गरीब के देखे वाला कोई नही है।

उस बूढे की बात जब जब जेहन में आता है मेरे सामने अंधेरा छा जाता है और आने वाले बिहार को लेकर चिंतित हो उठता हूं।वाकई बिहार का यह चुनाव या तो बिहार की दिशा और दशा को बदल देगी या फिर घोर निराशा के खाई में इतने नीचे चला जायेगा कि जहां से निकलना मूमकिन ही नही पूरी तौर नामूमकिन होगा।