रविवार, जुलाई 26, 2009

बिहारी मीडिया का तालिबानी चेहरा

पटना में महिला को सरेआम अपमानित करने की घटना को मीडिया ने जिस तरीके से परोसा हैं उसको लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गयी हैं।वह मीडिया जो पूरे समाज को आये दिन नैतिकता का पाठ पढाते रहता हैं वह खुद कितना नैतिकवान हैं आज यह सवाल बिहार की आम जनता आप मीडिया वाले से कर रही हैं।आपके पास माध्यम हैं तो आप कुछ भी दिखा सकते हैं और कुछ भी लिख सकते हैं इस बिनहा पर की सवाल जनता से और लोकतंत्र की रक्षा से जुड़ा हुआ हैं।खबड़ से जुड़े हुए पूरे फूटेक को देखने और घटना स्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शी की माने तो घटना को लेकर जो कुछ भी दिखाया गया हैं और अखबार ने जिस तरीके से खबड़ो को परोसा हैं वह घटना का एक पहलु हैं।बिहार में तालिबान,चिरहरण होता रहा लेकिन कोई कृष्ण बचाने नही आया,भीड़ असहाय महिला को गिद्ध और चील की तरह नौचती रही।पटना मुझे माफ करो,जैसे शीर्षक के माध्यम से अखबार वाले पिछले तीन दिनों से समाज को आईना दिखाने का काम कर रही हैं।लेकिन पूरे घटना क्रम का एक सबसे अहम पहलू जिसे मीडिया ने जान बूझ कर दरकिनार किया पता नही यह मीडियाकर्मीयों के मानसिक दिवालियापन का परिचायक हैं या फिर बाजारबाद का प्रभाव यह तो मीडिया वाले खुद तय करे।लेकिन दस वर्षो का मेरा खुद का जो अनुभव रहा हैं उसके आधार पर मैं दावे के साथ कह सकता हूं की मीडिया में जितने अयोग्य लोगो को जगह मिली हुई हैं शायद दूसरे किसी भी प्रोफेशन में नही होगा।समाज को आईना दिखाने वाला खुद कितने आदर्शवादी हैं मीडिया वाले अपने दिला पर हाथ रख कर सोचे समाज को जाति और धर्म को तोड़ने का नसीहत देने वाली मीडिया में जितना जातिवाद हैं शायद कही और देखने को मिले। जिस द्रोपदी के चिरहरण की बात कर मीडिया वाले हायतोबा मचाये हुए हैं उस मीडिया हाउस में काम करने वाली लड़की से जड़ा पुछे किस तरह आफिस बांय से लेकर गाड़ी का ड्रायवर,कैमरामैंन आबीभेन का तेकनीसियन और फिर रिपोर्टर के बाहो में खेलना पड़ता हैं।ब्यूरोचीफ और एडीटर की बात ही छोड़ दे यही स्थिति अखवार के दफ्तर मैं भी हैं।मुझे यह स्वीकार करने में कतई गुरेज नही हैं की मीडिया हाउस में काम करने वाली लड़कियों के साथ वह सब कुछ होता हैं।जिसको लेकर मीडिया वाले आये दिन हाई तौवा मचाते रहते हैं।फर्क इतना ही हैं कि इस फिल्ड के गलैमर के सामने कोई मुंह नही खोलता हैं। लेकिन इसका यह कतई मतलव नही हैं कि पटना की सड़को पर जो कुछ भी हुआ उसे दिखाने का हक मीडिया वाले को नही हैं।दोस्तो जिस महाभारत का उदाहरण देकर आप समाज के सामने सवाल खड़े कर रहे हैं लेकिन आपने पत्रकारिता के परोधा वेद व्यास की लेखन शैली से सीख नही लिया।उसने द्रोपदी के चीरहरण को लिखते समय समाज के सामने कृष्ण को एक नायक के रुप में प्रस्तुत किया जिसका उदाहरण आप खुद दे रहे हैं।आपने अपने मन को टोटेले हमेशा दो मन एक साथ आपके साथ रहता हैं एक मन जो बुड़ा काम करने को प्रेरित करता हैं और दूसरा मन जो काफी कमजोर हैं आपको सही काम करने की सलाह दोती हैं।आप किस समाज मैं रहते हैं आपकी शिक्षा दिक्षा कैसी हैं और आपका परिवारिक पाढशाला कैसा रहा हैं उसी अनुसार आपका मन काम करता हैं।बूरा वाला मन सबसे ताकत बर होता हैं हम सबों का दायुत्व हैं कि बूरे मन को समाज पर हौबी नही होने दे।उस भीड़ में अधिकांश लोग बेवस और लचार महिला के जिस्म के साथ खेल रहे थे या फिर तमाशबीन बनकर मोबाईल में फोटो उतार रहा था।लेकिन उस भीड़ को चीरते हुए कई लोग अन्दर आये और महिलाओं को कपड़े पहनाने और सुरक्षित थाना पहुचाने में मदद की, मीडिया के लिए नायक वह शक्स हैं जिसने इस भीड़ में कृष्ण की भूमिका निभायी लेकिन हम सबों ने क्या किया कृष्ण की जगह दुसाशन को महिमामंडीत करने में लगे रहे।आप भूल गये की आप पर समाज को सही दिशा दिखाने का दायु्त्त्व हैं।जिस व्यक्ति ने महिला को सुरक्षित थाना पहुचाया कोई और नही सीआईएसएफ का जवान था समाज और राज्य के नेत़ृत्वकर्ता को चाहिए की इस भीड़ में जिसने भी कृष्ण की भूमिका निभायी उन्हे सम्मानित करे। पथ भ्रष्ठ हो चुके हमारे समाज के लिए उम्मीद की किरण के रुप में वह जवान उभरा हैं।

गुरुवार, जुलाई 16, 2009

नीतीश जी यह कैसा सुशासन है

यह कोई फिल्मी कहानी नही है एक हकीकत हैं जिसे सामने लाने को कोई तैयार नही हैं।प्रिंट मीडिया को नीतीश के सुशासन के अलावे सूबे में और कुछ नही दिख रहा हैं। यही स्थिति समाचार चैनलों का हैं और राष्ट्रीय चैनलों का हाल तो कहना ही नही हैं उन्हे तो प्रोफाइल चाहिए और आरुषी जैसी स्टोरी चाहिए।लेकिन पिंकी न तो बड़े बाप की बेटी हैं और ना ही आरुषी की तरह किसी नामी गरामी कांन्भेन्ट स्कूल की छात्रा हैं।यह तो बिहार के दरभंगा जिले की एक सरकारी स्कूली की सातवी कक्षा की छात्रा हैं जिसका आज से दो वर्ष पूर्व स्कूल जाने के क्रम में अपहरण हो गया था।बिहार के लिए अपहरण कोई बड़ी खबर नही हैं वह भी मामला लड़की के अपहरण का हो तो पुलिस से लेकर समाज तक प्रेम प्रसंग का मामला मान कर खामोश बैठ जाती हैं। पिंकी के साथ भी यही हुआ घटना 15 मई 2007 की हैं उस वक्त मैं भी दरभंगा में ही पदस्थापित था पिंकी के अपहरण की सूचना लेकर एक बेबस और लाचार बाप सूबह सूबह मेरे आवास पर आया मैं भी इस मामले को फौड़ी तौर पर प्रेम प्रसंग का मामला मान कर आस पास के लड़को के साथ भाग जाने की बात कहते हुए मामले को मैं भी लगभग खारिज ही कर दिया था।लेकिन जब कभी मैं न्यूज के सिलसिले में पुलिस के आलाधिकारी के पास जाता था पिंकी के पिता अपने तरीके से बेटी की सकुशल रिहाई की गुहार लगाते हुए अक्सर दिख जाता था।मामला प्रेम प्रसंग का ही क्यों न हो एक बेटी के लिए बाप के मन इतनी बैचेनी देख मेरी संवेदनाये जग गयी और मैं इस मसले को लेकर खबड़ दिखाना शुरु कर दिया खबड़ चलते ही इसके मदद के लिए राजनैतिक दल के लोगो के साथ साथ कई और लोग सामने आये। मामले की गम्भीरता मुझे तब समझ में आयी जब खबड़ को नही चलाने को लेकर कई तरह का प्रलोभन मुझे दी जाने लगी।मैं सोचने लगा की इस खबड़ को लेकर इतनी बैचेनी क्यो हैं।पता चला इस मामले में जिस लड़के का नाम आ रहा हैं वह एक बड़े शिक्षा माफिया का बेटा हैं।लेकिन इन सब बातों का कोई असर नही दिखा हार कर पिंकी का पिता कोर्ट के शरण में गये जहां कोर्ट ने दरभंगा एस0पी0को प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया इस मामले का दुखद पहलु यह भी हैं की उस वक्त दरभंगा की एस0पी0महिला ही थी लेकिन इन्हे न्याय नही मिला।मामला दर्ज हुए कई माह बीत गये लेकिन नामजद अभियुक्तों पर कोई कारवाई नही हुई लेकिन पिंकी के पिता ने हार नही मानी और तत्तकालीन आई0जी0 आर0एल कनौजिया से मिलकर आप बीती सुनाई आई0जी0 पूरे मामले में पुलिस के उदासीन रवैये को लेकर नराजगी व्यक्त करते हुए तत्तकाल सभी नामजद अभियुक्तों को गिरफ्तार करने का आदेश दिया लेकिन अभियुक्तों के नजायज कमायी के आगे आई0जी0 का आदेश भी थानेदार के पोकेट में महिनों घुमता रहा। इस बीच आई0जी0 कनौजिया का तवादला हो गया और उनकी जगह आये गणेश प्रसाद यादव। कुछ होता नही दिख पिंकी के पिता मुख्यमंत्री के जनता दरवार में न्याय की गुहार लेकर आये। मैं भी पटना आ गया था जब जब ये जनता दरबार में आये मैं खबड़ दिखाता रहा लेकिन कोई कारवाई नही हुई। हद तो तब हो गयी जब आई0जी0पूरे मामले को ही झूठा करार देते हुए पिंकी के पिता पर ही झूठा मुकदमा दायर करने के आरोप में मुकदमा चलाने का आदेश निर्गत कर दिया।इस मसले को लेकर पिंकी के पिता 13बार मुख्यमंत्री से मिले लेकिन न्याय नही मिला और अंत में मुख्यमंत्री भी खड़ी खोटी सुना कर बाहर कर दिये। फिर भी हार नही माना राज्य महिला आयोग में शिकायत दर्ज कराया और जिले में चलने वाले जनता दरबार में जाकर पुलिस के आलाधिकारी से न्याय का भीख मांगता रहा अचानक 3जून को पिंकी का फोन चाचा के मोबाईल पर आता हैं चाचा मैं बेगूसराय जिले के बखरी स्थिति वेश्यालय से बोल रही हुँ इस नरक से मुझे निकालो।जैसे ही यह फोन आया पिंकी के चाचा राज्य महिला आयोग के अध्यक्ष से मिल कर पिंकी के बारे में जानकारी दी।आयोग ने तुरंत बेगूसराय एस0पी0को इस मामले की जानकारी दी और तत्तकाल कारवाई करने का आदेश दिया।इस मामले में एस0पी0 ने खुद कारवाई की और पिंकी को बखरी स्थित वेश्यालय से बरामद कर लिया।पिंकी ने जो आप बीती सुनाई हैं उसे सुनकर आप भी हैरान रह जायेगे।जिस लड़के पर पिंकी के पिता ने बेटी के अपहरण का आरोप लगाया था उस लड़के से प्यार करती थी 15मई को पिंकी को घुमने चलने के बहाने राजीव पास के एक होटल में ले गया जहां अपने दोस्तों के साथ तीन दिनों तक बलात्कार किया और फिर दलालों के हाथो बेच दिया।बेचारी पिंकी दो वर्षों तक पूर्णिया ,खगड़िया और बखरी के वेश्यालय में अपने जिश्म का सौदा होते देखते रही। एक दिन किसी ग्राहक को इसकी आप बीती सुनकर तरस आ गयी और अपने मोबाईल से पंकी को चाचा से बात करा दिया। इस सच को अपने ब्लांग पर लिखने के पीछे न तो नीतीश सरकार के सुशासन के दावे पर सवाल खड़े करने का कोई इरादा हैं और ना ही इस राज्य के डी0जी0पी0 डी0एन0गौतम को आईना दिखाना हैं जो आये दिन अपने पुलिस के कार्यकलापों के लेकर बड़ी बड़ी बाते करते रहते हैं।पिंकी के बेहतर जीवन के लिए क्या किया जा सकता हैं और देश में कौन कौन सी ऐसी ऐंजसी हैं जो पिंकी को कानूनी मदद के साथ साथ मानशिक रुप से विक्षिप्त हो चुकी पिंकी को नये सिरे से जिंदगी जीने में सहयोग कर सकती हैं ऐसी कोई जानकारी आप के पास हो तो तुरंत दे क्यों कि इस सिंस्टम में लोकतंत्र के सारे स्तम्भ लगभग संवेदन शून्य हो गये हैं।