गुरुवार, अगस्त 04, 2011

माओवादियो के अगले निशाने पर है मीडियाकर्मी

बिहार के सासाराम जिले में माओवादियो ने तीन ग्रामीणो को शनिवार की शाम को हत्या कर दिया था हलाकि खबर छह लोगो के मारे जाने की आयी हुई थी।पूरी रात खबर को लेकर परेशानी रही लगातार पुलिस मुख्यालय और अपने सासाराम रिपोर्टर से बात होती रही।सुबह सुबह सासाराम रिपोर्टर का फोन आया भैया पहाड़ी पर पहुंच गये है आगे जाने से पुलिस रोक रही है। हलाकि रात में ही मालूम हो गया था पुलिस किसी दूसरे रास्ते से घटना स्थल पर जाने वाला है। मैने अपने रिपोर्टर को नही जाने को कहा लेकिन पत्रकारिता के प्रतिस्पर्धा के कारण जंगल में जाना पड़ा। उसके प्रवेश करते ही सूचना मिली की सभी पत्रकारो को माओवादी अपने साथ ले गया है। डर इसी को लेकर था कि खबर को लेकर कही ज्यादा नराजगी होगी तो दुरव्यवहार कर सकता है ।लेकिन जो कुछ भी हुआ वह अच्छा ही हुआ कम से कम से तो पता चला की आखिर माओवादी मीडियाकर्मियो के बारे में क्या सोचते हैं।

जंगल में थोड़ी दूर जाने के बाद बुधुवाकला गांव आया उभर खाबड़ सड़क पर रेगते हुए मीडियाकर्मियो की बाईक जैसे ही गांव में प्रवेश किया कि पुलिस का वर्दी पहने तीन चार लोग मीडियाकर्मियो को चारो और से घेर लिया और फिर शुरु हुआ माओवादियो का जन आदालत दस करीब मीडिया वाले थे सभी को एक चबुतरानुमा जगह पर बिठाया गया और चारो तरफ से हथियार बंद दस्ता खड़ा हो गया जिसमें महिला दस्ता भी शामिल थी।इस बीच वायरलेस पर लगातार संदेशो का आदान प्रदान जारी रहा यह सब चल ही रहा था कि अचानक दस्ता के सभी सदस्य एलर्ट हो गया थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति जिसे आगे पीछे अत्याधुनिक हथियार से लैश चार पाच लोग चल रहे थे सामने आया और सामने लगे बिछावन बैंठ गया उसके बाद शुरु हुई सुनवाई आपका क्या नाम है कितने दिनो से पत्रकार है किस किसी मीडिया हाउस से जुड़े हुए हैं आपको घटना की जानकारी कौन देता है इन सब सवालो के बाद शुरु हुआ मौलिक अधिकार क्या है सम्पत्ति का अधिकार किस तरह का अधिकार है जनता का मौलिक कर्तव्य क्या है, संविधान से आम नागरिक को क्या अधिकार मिला है। गरीबो के हक के लिए संविधान में क्या क्या प्रावधान है।भगत ही शहीद है तो फिर हमे उग्रवादी क्यो कहते है।मनमोहन सिंह कहते है कि देश में आतंकवाद से बड़ा खतरा उग्रवादी है क्या उग्रवादी देश के नागरिक नहीं है गरीबो की लड़ाई लड़ना देश द्रोह है।

अन्ना की लड़ाई में गरीब लोगो को कोई स्थान नही है इस तरह के कई सवाल जन अदालत के दौरान माओवादी नेता ने मीडियाकर्मियो से किया सवाल जबाव का यह सिलसिसा लगभग चार घंटे तक चला और उसके बाद अंत में कहा कि जल्द ही आप लोगो के खिलाफ भी अभियान शुरु होने वाला है क्यो कि आपका आचरण गरीब विरोधी होता जा रहा है मरने के लिए तैयार रहे कुछ ही दिनो में इस तरह का फरमान जारी होने वाला है क्यो कि आप सरकार पुलिस और दमन करने वाले अधिकारियो और नेता के जुवान हो गये हैं। गरीबो की बात दिखाने और छापने के लिए आपके पास जगह नही है। अपने प्रबंधको को यह जानकारी दे दे और इस तरह जगंल मे मत आया करिए क्यो कि आप ही लिखते है कि जगंल में माओवादी रहते है और वह उग्रवादी है ।लेकिन वह किस हालात में रहते है उसे लिखने और दिखाने की जरुरत नही है आप जनता का विश्वास खोते जा रहे है जो आपकी पूंजी थी। यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच काफी संख्या में सामने से गाँव वाले आते दिखायी दिये जैसे जैसे वे करीब आ रहे थे माओवादी वहां से निकलने लगे जब वे लोग पास आसे तब तक सभी निकल गये।गांव वालो ने मीडियाकर्मियो से पुंछा आपके साथ यह मारपीट किया है गांव वाले काफी गुस्से में थे लेकिन मीडियाकर्मियो ने किसी वारदात से इनकार किया तो वे लोग शांत हुए और कहने लगे मीडिया वाले ही तो मेरा हाल जानने आते है औऱ हमलोग किस हलात में है दुनिया को बतायेगे उसके साथ बदसुलिकी बर्दास्त नही किया जायेगा।गाँव वालो ने सभी मीडियाकर्मियो को पहाड़ से उतारा और उसके बाद सभी को पहले चीनी के साथ पानी पिलाया और उसके बाद भोजन कराकर पहाड़ी के नीचे छोड़ दिया।पूरी घटना के लिखने के पीछे मेरी मंशा यह है कि प्रबंधक कुछ भी शर्ते लागू करे हमारी जो जबावदेही है उससे मुख नही मोड़े नही तो एक बार जनता के नजर से गिर गये तो फिर कोई पुछने वाला नही रहेगा। मेरी पूंजी है जब भी कैमरा या कलम उठाये अंतिम आदमी को सोचकर।

गुरुवार, मई 19, 2011

आज खुद सुजाता टीवी और अखबार की सुर्खिया बनी है


कल तक जो खुद हेडलाईन बनाती थी आज वह खुद हेडलाईन बनी हुई है।बात हम पटना के सुजाता की कर रहे हैं जिन्हें मौंत के मुंह से बाहर निकालने की क्रेडिंट लेने की होड़ चैनलो में मची हुई है।लेकिन खोजपूर्ण पत्रकारिता का दंभ भरने वाली मीडिया सुजाता के इस हालात के पीछे के सच को खोजने में दिलचस्पी क्यो नही दिखा रही है।

आज से सात आठ वर्ष पहले सुजाता पटना से प्रकाशित होने वाले एक अखबार में पत्रकार हुआ करती थी।अपने पिता के गुम होने और माँ के साथ साथ दो भाई के सिजोफेमिया से ग्रसित होने के बावजूद दोनो बहने परिवार को बचाने के जद्दोजहन से जुझ रही थी।सब कुछ ठिक ठाक चल रहा था माँ को पिता की जगह सरकारी नौकरी दिलवाने में भी कामयाब रही। लेकिन सुजाता के साथ ऐसा क्या हुआ कि वो भी अपने को काली कोठरी में कैंद कर ली, इसका जबाव तो उसके साथ काम करने वाले पत्रकार ही दे सकते है।लेकिन आज स्थिति यह है कि पटना का कोई भी पत्रकार यह कहने को तैयार नही है कि सुजाता मेरे साथ काम करती थी।इसके साथ काम करने वालो में एक दिल्ली में परचम लहराह रहे है कई ऐसे है लोग है जो महिला संशसक्तिकरण और पत्रकारिता में समाजिक न्याय की बात करते हुए उसकी दुकान चला रहे हैं ।लेकिन सुजाता का नाम सुनते ही पसीने छुटने लगते है।

जो बाते सामने आ रही है वह यह है कि सुजाता के साथ काम करने वाला कोई साथी पत्रकार ने ही धोखा दिया ,प्यार में धोखा दिया सुजाता उस पर इतना विश्वसास करने लगा था कि अपनी छोटी बहन के विरोध के बावजूद उसे अपने घर में रहने की जगह दी। अपने पैसे से बाईक खरीद कर दिया लेकिन कुछ दिनो के बाद उसे छोड़कर वह लड़का चला गया कहने वालो का कहना है कि अभी वह जमशेदपुर में पत्रकार है।लेकिन इतना सब कुछ ओपेन होने के बावजूद सुजाता को लेकर खोजपूर्ण पत्रकारिता नही हो पा रही है।उसकी माँ और छोटी बहन पिछले कई वर्षो से गायब है कहा गया कोई निठारी जैसी घटना तो पटना में नही हो रही है। इस तरह के कई सवाल खड़े हो रहे है लेकिन सभी के कलम और कैमरे में मानो जंग लग गया है।

नयी पीढी के पत्रकार कुछ अपने बल पर मदद का प्रयास कर रहे हैं।वह भी कब तक चलता है पाता नही, इस अभियान में शामिल एनजीओ के लोग है य़ा फिर वैसे लोग जो समाज सेवा का स्वांग रचते है आज वे सभी अपनी कमित मांग रहे हैं।मुझे लगता है कि हमारी स्थिति गिद्ध से भी बदतर हो गयी है इतने प्रदूषण के बावजूद गिद्ध अभी भी अपने विरादरी का माँस नही खाता है।





शुक्रवार, अप्रैल 08, 2011

जेपी, वीपी और अब अन्ना की बारी

भ्रष्टाचार को लेकर देश में आजादी के बाद सबसे बड़ी लड़ाई जय प्रकाश नरायण के नेतृत्व मे लड़ी गयी थी और उसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने बोफोर्स मसले पर पूरे देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ गोलबंद किया था और अब अन्ना मैदान में हैं।दोनो आन्दोलन का हस्र सामने है।जय प्रकाश नरायण के नेतृत्व में लड़ी गयी लड़ाई का परिणाम 1977में काग्रेस की पराजय के रुप में सामने आयी। और वीपी सिंह ने अभूतपूर्ण बहुमत के साथ देश का बागडोर सम्भालने वाले मिस्टर किलिंन राजीव गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया।दोनो आन्दोलन का एक परिणाम समान्य रहा वह है देश में सत्ता का परिवर्तन।लेकिन दोनो ही बार सत्ता परिवर्तन का प्रयोग पूरी तौर पर सफल नही हो सका। लेकिन एक सत्य जो इस दोनो जन आन्दोलन के बाद सामने आयी वह यह था कि इस व्यवस्था में बहुत कुछ करने की गुनजायस नही है।जेपी ने बाहर रहते हुए सत्ता को जनता के हित में संचालित करने का प्रयास किया। उर्म के साथ साथ नेताओ के आपसी खीचतान के कारण जेपी के अभियान को बड़ी सफलता नही मिली।लेकिन सत्ता की राजनीत से इतर जेपी के अनुयाईयो ने समाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में हो या फिर पत्रकारिता का क्षेत्र हो या फिर ब्यूरो क्रेसी का क्षेत्र हो आज उनमें से कई आदर्श पुरुप है। लेकिन जिसने भी राजनीत के माध्यम से व्यवस्था बदलने की बात की वे सभी के सभी असफल हुए और आज वे कही से भी जेपी के आदर्शो पर खड़े नही उतर रहे हैं। ऐसा नही है कि उनमें जेपी के आदर्शो के प्रति समर्पन नही है लेकिन विधायक और सांसद बने रहने के लिए जो कुछ भी खोना पड़ता है उसके बाद उनके पास खोने के लिए कुछ भी नही बचता है।

वीपी सिंह ने जेपी और गांधी के प्रयोग को लोकतांत्रिक व्यवस्था के माध्यम से मजबूत करने का प्रयोग किया। प्रयोग कितना सफल रहा यह तो विवाद का विषय हो सकता है। लेकिन मुझे याद है 1991 का वह आम चुनाव रामविलास पासवान हमारे यहां से चुनाव लड़ रहे थे ।मंडल कमीशन के दौरान रामविलास पासवान के भाषण से खास कर सर्वण मतादात खासे नराज थे।

रामविलास पासवान की जीत के लिए सर्वण मतदाताओ का मत आना जरुरी था।इसके लिए वीपी सिंह की सभा राजपूत बहुल्य इलाके में आयोजित की गयी जहां वीपी सिंह ने खूले मंच से कहा कि संकट की घड़ी में रामविलास छोटे भाई की तरह हमारे पीठ पर खड़ा रहा जिस तरह राम के साथ लक्ष्मण खड़े हुए थे।रामविलास की जीत में आप सबो की भागीदारी जरुरी है छोटे भाई की भूमिका में इनका कर्ज मेरे उपर है। इतिहास गवाह है कि हमलोग वफादारी को जबाव सर कटा कर देते आये है ऐसे में रामविलास को वोट देना अपनी हजारो वर्ष पूरानी रिवाज को फिर से स्थापित करने से जुड़ा है।

लोगो ने जमकर वोट किया और रामविलास पासवान रेकर्ड मत से चुनाव जीते।लेकिन इसके लिए वीपी सिंह को बहुत कुछ खोना पड़ा और यही कारण था कि सासंद उन्हे प्रधानमंत्री बनाने के लिए कुर्सी लेकर खोज रहे थे और बीपी सिंह दिल्ली के रिंग रोड पर चक्कर लगा रहे थे।आखिर में इंन्द्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री बने थे।

यही चीज समझने की है ,अन्ना के आन्दोलन का मैं पूरी तौर पर समर्थन करता हूं लेकिन भ्रष्टाचार को कानून के सहारे खत्म किया जा सकता है इस विचार से मैं सहमत नही हूं।साथ ही अन्ना और उनके समर्थन में अनशन पर बैंठे लोगो से मेरी गुजारिस है कि स्टेडियम या फिर टीवी स्क्रिन पर मैंच देखना और उस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करना या फिर मैदान में स्टेन और ब्रेट ली का सामना करते हुए बल्ले से जबाव देना। दोनो में जो फर्क है उन्हे समझने की कोशिस करे।



रविवार, मार्च 27, 2011

बिहार की जय हो, नीतीश की जय हो बिहार के पत्रकारो की जय हो

बिहारी होना मेरे लिए कल भी गर्व की बात थी और आज भी गर्व की बात है लेकिन एक फर्क जरुर आया है पहले दबंगई और पढाई के बल पर लोगो को स्वीकार करने पर विवश करना पड़ता था लेकिन आज पूरे देश में सर्वसाधारण के बीच बिहारी होना स्वाभिमान की बात है आज बिहारी गाली नही गर्व की बात है।इसमें कोई दो राय नही की बिहार की छवि बदलने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अहम भूमिका रही है। लेकिन बिहार के छवि को बदलने मे बिहार की मीडिया की भूमिका को भी नकारा नही जा सकता है।सूबे से जुड़ी नकारात्मक खबड़े या तो डस्टबिन में डाल दिये जाते हैं या फिर ऐसी जगह प्रकाशित किया जाता है की लोगो की नजर पहुंच नही पाये लेकिन इसका यह मतलब भी नही है कि बिहार मे बदलाव नही आया है।

बिहार अपना 99वर्षगांठ मना रहा है मुख्यमंत्री ने इस वर्षगांठ को बिहारी स्वाभिमान से जोड़ा है और इसका प्रभाव भी दिख रहा है लोग काफी उत्साहित है और देश विदेश से बिहार दिवस मनाये जाने की खबर आ रही है।बुद्दवार को रात के करीब 11बजे न्यायिक सेवा से जुड़े एक अधिकारी का फोन आया ये अधिकारी नीतीश कुमार के काफी करीबी माने जाते हैं।हाल चाल से बाते शुरु हुई और बाते बढते बढते बिहार दिवस पर केन्द्रीत हो मैंने कहा सर विधानसभा सत्र के कारण गांधी मैंदान जाने का मौंका नही मिला है।उन्होने बड़ी आहतमन से कहा संतोष जी मैं मानता हूं कि आप बेहद संवेदनशीन पत्रकार है देखिये इन अधिकारियो को अपना कार्यलय को रोशनी से नहा दिया है और बगल के गांधी संग्रहालय में अंधेरा छाया है क्या गांधी के बगैर बिहार का इतिहास कभी पूरा हो सकता है।कुछ किजिए मैंने कहा सर कल मेरा रात्री डियूटी है कोशिस करेगे इस खबर को प्रमुखता से चलायेगे।।कल होकर भारत आस्ट्रेलिया के बीच मैंच था लेकिन मैंच के बाद बिहार दिवस का हाल जानने निकला देख कर काफी दुख हुआ गांधी संग्रहालय को कौन कहे चंद कदम की दूरी पर स्थित गोलघर और डाँ राजेन्द्र प्रसाद के समाधि स्थल पर एक दीप भी नही जल रहा था जबकि सामने में स्थित आयुक्त कार्यलय,डीएम आवास दुल्हन की तरह सजा हुआ था।
                                                                                                               खबर कर ही रहे थे कि स्कूली छात्रो का एक ग्रुप बाईक से काफी तेजी से पास से गुजरा लेकिन थोड़ी दूर जा कर वे लोग फिर से लौंट कर मेरे सामने आये और पुंछा क्रिकेट मैंच पर प्रतिक्रिया ले रहे हैं मैने कहा नही बिहार दिवस पर हमारी ऐतिहासिक घरोहर किस तरह उपेक्षित है उस पर स्टोरी बना रहे हैं सभी के सभी छात्र बाईक पर से उतर गये और पास आकर बोले सर जी अभी तो हमलोग बिहार दिवस के समापन समारोह में हिस्सा लेकर लौंट रहे हैं लेकिन आपने तो ऐसे सच से रुबरु करा दिया कि बिहार दिवस का मजा ही किरकिरा हो गया।सब लड़को ने इस मसले पर जबरदस्त बाईट दिया और अंत में एक लड़के ने जो कहा तो मेरा होश ही उर गया।सर जी आप जो खबर कर रहे हैं वह चलेगा की नही यह तो मैं नही जानता लेकिन आपने जो मुद्दा उठाया है वह वाकई गम्भीर है और आपके गम्भीरता के हम कायल है। इस तरह से सोचने वाले लोग अभी भी पत्रकारिता में हैं मेरे लिए गर्व की बात है। इतना कह कर वह लड़का जिसका उर्म महज 18साल होगा बाईक से चलता बना।





गुरुवार, मार्च 03, 2011

कोडरमा पुलिस ने निरुपमा मामले मे क्लोजर रिपोर्ट कोर्ट को सौपी




मित्रों खबरो की भूख ने मुझे ब्लांग से जुड़ने को मजबूर किया था संस्थागत मजबूरियो के काराण कई बार एसहास होता था कि हमलोग खबरो के साथ न्याय नही कर पा रहे हैं ।या फिर जिस उद्देश्य से मीडिया से जुड़े हैं वह कही समय के साथ साथ खोता जा रहा है और जिस अंतिम व्यक्ति की आवाज बनने की सोच को लेकर मीडिया से जुड़ा उसके साथ न्याय नही कर पा रहे हैं।लेकिन ब्लांग के लगभग दो वर्ष के सफर के बाद मुझे बेहद सकून महसूस हो रहा है कि मैं अपने मकसद में बहुत हद तक कामयाब रहा खासकर निरुपमा पाठक के मौंत मामले में जिस तरीके से मीडिया के धाराओ के साफ विपरित निरुपमा के मौंत को लेकर जारी मीडिया ट्रायल को तूती की आवाज के माध्यम से कुंद किया उसको लेकर आज मुझे गर्व महसूस हो रहा है।

आज सभी चुप हैं क्योकि पुलिस ने भी मेरी थ्योरी को ही मौहर लगायी है। पुलिस ने अपने क्लोजर रिपोर्ट में निरुपमा के आत्महत्या की बात लिखी है जिसके लिए निरुपमा के माँ,पिता और भाई के साथ साथ प्रेमी प्रियभांशु को जबावदेह ठहराया है।पूरा अनुसंधान एम्स के डाँक्टर के रिपोर्ट के साथ साथ हैदराबाद के फौरेन्सिक लैब के रिपोर्ट पर आधारित है जिसमें सोसाईड नोट निरुपमा के द्वारा ही लिखे जाने की बात जांच में सामने आयी है।साथ ही एम्स के डांक्टरो की संयुक्त जांच टीम ने निरुपमा की मौंत को आत्महत्या माना है।हैदारबाद लैब ने निरुपमा के लैपटोप के साथ मोबाईल के उन तमाम मैसेज को भी समाने लाया है जिसे प्रियभांशु ने बड़ी सावधानी से उड़ा दिया था।पुलिस इन सभी तथ्यो के आधार पर धारा 306 के तहत कैस को सही पाया है ।इस मामले में दस वर्षो तक की सजा का प्रावधान है।

पाखंडी पंडित परिवार को जितनी सजा मिलनी थी वह मिल चुकी है और अब बारी प्रियभांशु एण्ड कम्पनी की है जिन्होने इस पूरे प्रकरण के दौरान प्रियभांशु के बचाव में अनर्गल अलाप करते रहे।पुलिस के जाँच में जो बाते सामने आयी है उनमें से अधिकांश तथ्यो का मैंने खुलासा अपने ब्लांग के माध्यम से पहले ही कर दिया था।लेकिन पुलिस ने उन बातो को भी अपने अनुसंधान में लिखा है जिसको लिखने से मैं परहेज कर रहा था। निरुपमा के साथ प्रियभांशु का व्यवहार समय के साथ साथ कैसे कैसे बदला सारा कुछ पुलिस के डायरी में दर्ज है। किस तरीके से प्रियभांशु ने निरुपमा के लैपटोप से सारा साक्ष्य मिटाने की पूरी कोशिस की लेकिन हैदरावाद की रिपोर्ट ने प्रियभांशु के सारे मनसूबे पर पानी फेर दिया।प्रियभांशु ने निरुपमा के गर्भवती होने की खबर के बाद किस तरह से निरुपमा को शाररिक और मानसिक रुप से प्रतारित किया वह सब कुछ निरुपमा के लैंपटोप में दर्ज है ।फिर भी इस मामले की सीबीआई जांच को लेकर पहल होनी चाहिए इसलिए नही कि निरुपमा के साथ न्याय नही हुआ इसलिए होना चाहिए कि प्रियभांशु जैसे भेड़िया आये दिन किस तरीके से महानगरो में लड़कियो को अपने जाल में फंसा कर शाररिक और मानसिक शौषण कर रहा है और इससे बचने के लिए किस किस तरह के हथकंडो का उपयोग करते हैं।इस पूरे प्रकरण में जिन जिन लोगो ने मुझे हौसला अफजाई किया उन्हे स हद्यय धन्यवाद ।साथ ही उन मित्रो को भी धन्यवाद जिन्होने इस पूरे प्रकरण में मेरी माँ बहनो को भी गाली देने से नही चुंके।




गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

बिहार के पत्रकारो को अब खोने के लिए कुछ भी नही बचा है

बिहार में विधानसभा का सत्र चल रहा है बुधवार को राज्यपाल के अभिभाषण पर विपंक्ष के नेता अब्दुलबारी सिद्दीकी को बोलना था।जैसी उम्मीद की जा रही थी उससे कही जबरदस्त प्रस्तुति सिद्दीकी का रहा। पूरा सदन खामोस होकर सिद्दीकी की बात सूनता रहा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चेहरा छुपाये अपने किये से मुख मोड़ते दिखे।राज्य में कानून व्यवस्था से लेकर राज्य सरकार द्वारा अधिकारियो के चयण के मामलो में पैसा और जाति का नग्गा खेल खेलने का तथ्य सदन के सामने रखते हुए सिद्दीकी ने मुख्यमत्री को खुली चुनौती दी ।

आशर्चय जनक तो यह रहा है कि जिस तेवर मे सिद्दीकी बोल रहे थे और पूरा सदन ऐसा खामोस था जैसे सिद्दीकी की बातो से सभी सदस्य सहमत हो वही नीतीश अपने अगल बगल झाक रहे थे लेकिन मौंन समर्थन से अधिक कुछ भी नही मिल पा रहा था।सवाल ही ऐसा था भ्रष्टाचार को लेकर इन दिनो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जो बयान आ रहे हैं उस पर चुटकी लेते हुए सिद्दीकी ने खुली चुनौती दी कि राजधानी पटना के एपार्टमेंन्ट खरीदार की सूची सरकार सार्वजनिक करे 75प्रतिशत ऐपार्टमेंन्ट सूबे के भ्रष्टअधिकारी है जो राज्य की जनता का हकमारी कर मुख्यमंत्री के आंखो के तारे बने हुए है।वही सबसे बड़ा सवाल उन्होने सदन के सामने रखा कि आखिर मुख्यमंत्री जो आये दिन आम जनता को जाति और धर्म से उपर उठ कर बिहारी बनने की नसीहत देने वाले मुख्यमंत्री तमाम नियम कायदो को ताख पर रख कर अपनी जाति के ही आइएस अधिकारी जो दूसरे स्टेट कैंडर के हैं उन्हे ही पटना का डीएम क्यो बनाया जा रहा है।पटना के एसएसपी जिन्हे बनाया गया है उनका नाम जम्मू काश्मीर में गैरजिम्मेदार अधिकारी के रुप में दर्ज है ।पिछले छह माह पहले बिहार डिपटेशन पर आया है और बिहार के किसी भी जिले के पुलिस कप्तान के रुप मे कोई अनुभव नही है लेकिन उन्हे पटना का सीनियर एसएसपी बना दिया गया क्योकि वह नीतीश कुमार के गृह जिले का रहने वाला है।भष्टाचार को लेकर कई उदाहरण दिये जिसमें समाजकल्याण से जुड़े योजनाओ को किस तरह के अधिकारी अपने बीबी बच्चा के नाम पर एनजीओ खोलकर लूट रहे हैं।सिद्दीकी ने इसकी पूरी सूची सदन के पटल पर रखा लेकिन दुर्भाग्य है आज राजधानी के किसी भी अखबार में सिद्दकी के इस आरोप की चर्चा तक नही है पूरा पेज फिलगुड से भरा है आखिर हम चाहते क्या हैं हम क्यो पार्टी बन रहे हैं पत्रकारिता कभी भी रोजगार नही हो सकता है हमारी पूंजी विश्वास है उसको क्यो दाव पर लगाये।





रविवार, फ़रवरी 06, 2011

बिहार में जूनियर डाँ के सामने क्यो बेवस है सरकार

बिहार मे कानून का राज्य है ऐसा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अक्सर बोलते रहते है,लेकिन जूनियर डाँ के मामले में ऐसा होता नही दिख रहा है नीतीश कुमार के शासनकाल में जूनियर डाँ पर मरीज के परिजन के साथ मारपीट करने और सरकारी सम्पत्ति को तोड़फोड़ करने को लेकर 28मुकदमा सूबे के विभिन्न थानो में दर्ज है।लेकिन उन मुकदमो पर कोई कारवाई आज तक नही हुई है।इनके हड़ताल पर जाने  के कारण दो सौ से अधिक मरीजो की मौत हो चुकी है।मरने वालो में अधिकांश वही थे जिनका मसिहा होने का दावा नीतीश कुमार करते हैं।मानवाधिकार आयोग ने जूनियर डाँ के इस आचरण को गैर कानूनी मानते हुए मरीजो के मौत के लिए जूनियर डाँ को जबावदेह ठहराया था यह फैसला दो वर्ष पूर्व  आया है।आयोग राज्य सरकार से उन जूनियर डाँ की सूची पिछले दो वर्ष से लगातार माँग रही है जो इस मामले में आरोपित है।लेकिन सरकार सूची देने से आना कानी कर रही है, नीतीश कुमार पर सीधा आरोप है कि जूनियर डाँ में अधिकांश चर्चित रंजीत डोन का प्रोडक्ट है और मुख्यमंत्री के स्वजातीय है जिसके कारण उन जूनियर डाँ पर कारवाई नही हो रही है तहकिकात के दौरान लोगो का आरोप लगभग सही पाया गया है। अब आप ही बताये सूबे मे कानून का राज्य है क्या---

रविवार, जनवरी 09, 2011

इस बेपनाह अंधेरे को सुबह कैसे कहूं इन नजारो का मैं अंधा तमाशवीन नही

सभी मित्रो को नव वर्ष की शुभकामनाये काफी दिनो बाद आपसे मिल रहा हूं विषय ऐसा है कि आपके लिए कुछ विशेष जानने के लिए बचा नही होगा,सरकार पूरे मामले की जाँच सीबीआई से कराने की अनुशंसा कर दी है।अब सारा खेल सीबीआई के पाले में है अब आप भी समझ गये होगे कि मैं किस मामले में बात कर रहा हूं। वही मामला पूर्णिया विधायक की हत्या का जिसमें सरकार के उप मुख्यमत्री सुशील कुमार मोदी अपने बयानो के कारण विवाद में घिरे हैं।फिर भी मैं इस पूरे प्रकरण के उन पहलुओ से आप सबो को अवगत करा रहा हूं जो अभी भी मीडिया के सुर्खियो में नही है या यू कहे तो मीडिया इन पहलुओ को छूने से परहेज कर रही है।अखबार ने अपनी भूमिका से पत्रकारिता को शर्मसार तो कर ही दिया लेकिन पहली बार पांच वर्षो के बाद प्रिंट मीडिया का वह दंभ चकनाचूर हुआ है कि जब तक मैं पहल नही करुंगा कोई मामला सुर्खियो में नही आयेगा।

वही दूसरी और इस पूरे प्रकरण में बिहारी समाज का वह चेहरा सामने आया है जिसकी कल्पना मैने नही की थी ।बेहद दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि बिहारी समाज जिसकी संवेदनशीलता की देश भर में चर्चाये हुआ करती थी वह समाज इतना कुंद हो गया इसका एहसास मुझे पहली बार इस पूरे प्रकरण में देखने को मिला।घटना चार जनवरी की है मेरा मोरनिंग सिफ्ट था कड़ाके की ठंड के कारण थोड़े विलम्भ से दफ्तर पहुंचा स्टोरी को लेकर मंथन चल ही रहा था कि डीजीपी का मैसेंज आया जैसे ही मैंसेज बोक्स खोला होश उड़ गये पूर्णिया विधायक की हत्या ,हत्या उसी महिला ने की जिसने विधायक पर यौन शोषण का आरोप लगाया था।शुरु हो गया ब्रेकिंग न्यूज का सिलसिला तभी खबड़ आयी कि इस मामले में उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कुछ कहना चाह रहे है।भागे भागे उनके पोलो रोड स्थित सरकारी आवास पर पंहुचा उपमुख्यमंत्री इस मामले पर बोलना शुरु किये शुरुआत महिला के चरित्रहीन,ब्लैक मेलर के उपमा से हुआ वही विधायक को 1974के आन्दोलन का सिपाही होने की बात करते हुए उसके महानता की गाथा सुनाने लगे जैसे कि 1974 का आन्दोलन देश के आजादी का आन्दोलन हो।

टीवी स्क्रिन पर मोदी का बयान चलने लगा रुपम पाठक चरित्रहीन है ब्लैक मेलर है विधायक की एक बड़ी साजिश के तहत हत्या की गयी है।इस बयान के बाद मैने कई महिला संगठनो के प्रतिनिधियो से बात किया लेकिन मोदी के इस बयान पर उन्होने प्रतिक्रिया व्यक्त करने की इक्छा जाहिर नही की ऐसे मैं ऐसे महिलाओ की राय लेकर स्क्रिन पर चलाने का फैसला लिया गया जो सिर्फ महिलाये थी उनका कोई समाजिक और राजनैतिक पहचान नही थी ।वही बाद में जब मामला गरमाने लगा तो वही महिलाये चीख चीख कर महिलाओ के स्वाभिमान पर आघात की बात करते हुए हल्ला बोल दिया।

दूसरा पहलु तो इससे भी दुखद है लोग मोदी के बचाव में खुलकर बोलने लगे हैं और स्थिति यहां तक आ गयी है कि जिस तरीके से लालू प्रसाद पर चारा घोटाला का आरोप लगा था तब बिहारी समाज का एक बड़ा तबका समाजिक न्याय के नाम पर लालू प्रसाद के बचाव में खुलकर सामने आये थे और आज वही स्थिति है सुशासन और विकास के नाम पर बिहारी समाज का एक बड़ा तबका इस मामले को सही साबित करने मे लगा है।

लेकिन इन सबसे दूर रुपम पाठक के साथ आज उनका पूरा परिवार खड़ा है उनकी माँ जहाँ बेटी के कदम को सही ठहरा रही है वही उनका पति इस हत्या को वध की संज्ञा देने की बात करते हुए पूरे मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात कर रहे है।फिर भी मेरा बिहारी समाज सोया हुआ है और मजा ले रहा है और बेशर्म की तरह सवाल कर रहा है कि क्या रुपम की बेटी पर भी विधायक हाथ फेर दिया।