गुरुवार, अगस्त 04, 2011

माओवादियो के अगले निशाने पर है मीडियाकर्मी

बिहार के सासाराम जिले में माओवादियो ने तीन ग्रामीणो को शनिवार की शाम को हत्या कर दिया था हलाकि खबर छह लोगो के मारे जाने की आयी हुई थी।पूरी रात खबर को लेकर परेशानी रही लगातार पुलिस मुख्यालय और अपने सासाराम रिपोर्टर से बात होती रही।सुबह सुबह सासाराम रिपोर्टर का फोन आया भैया पहाड़ी पर पहुंच गये है आगे जाने से पुलिस रोक रही है। हलाकि रात में ही मालूम हो गया था पुलिस किसी दूसरे रास्ते से घटना स्थल पर जाने वाला है। मैने अपने रिपोर्टर को नही जाने को कहा लेकिन पत्रकारिता के प्रतिस्पर्धा के कारण जंगल में जाना पड़ा। उसके प्रवेश करते ही सूचना मिली की सभी पत्रकारो को माओवादी अपने साथ ले गया है। डर इसी को लेकर था कि खबर को लेकर कही ज्यादा नराजगी होगी तो दुरव्यवहार कर सकता है ।लेकिन जो कुछ भी हुआ वह अच्छा ही हुआ कम से कम से तो पता चला की आखिर माओवादी मीडियाकर्मियो के बारे में क्या सोचते हैं।

जंगल में थोड़ी दूर जाने के बाद बुधुवाकला गांव आया उभर खाबड़ सड़क पर रेगते हुए मीडियाकर्मियो की बाईक जैसे ही गांव में प्रवेश किया कि पुलिस का वर्दी पहने तीन चार लोग मीडियाकर्मियो को चारो और से घेर लिया और फिर शुरु हुआ माओवादियो का जन आदालत दस करीब मीडिया वाले थे सभी को एक चबुतरानुमा जगह पर बिठाया गया और चारो तरफ से हथियार बंद दस्ता खड़ा हो गया जिसमें महिला दस्ता भी शामिल थी।इस बीच वायरलेस पर लगातार संदेशो का आदान प्रदान जारी रहा यह सब चल ही रहा था कि अचानक दस्ता के सभी सदस्य एलर्ट हो गया थोड़ी देर बाद एक व्यक्ति जिसे आगे पीछे अत्याधुनिक हथियार से लैश चार पाच लोग चल रहे थे सामने आया और सामने लगे बिछावन बैंठ गया उसके बाद शुरु हुई सुनवाई आपका क्या नाम है कितने दिनो से पत्रकार है किस किसी मीडिया हाउस से जुड़े हुए हैं आपको घटना की जानकारी कौन देता है इन सब सवालो के बाद शुरु हुआ मौलिक अधिकार क्या है सम्पत्ति का अधिकार किस तरह का अधिकार है जनता का मौलिक कर्तव्य क्या है, संविधान से आम नागरिक को क्या अधिकार मिला है। गरीबो के हक के लिए संविधान में क्या क्या प्रावधान है।भगत ही शहीद है तो फिर हमे उग्रवादी क्यो कहते है।मनमोहन सिंह कहते है कि देश में आतंकवाद से बड़ा खतरा उग्रवादी है क्या उग्रवादी देश के नागरिक नहीं है गरीबो की लड़ाई लड़ना देश द्रोह है।

अन्ना की लड़ाई में गरीब लोगो को कोई स्थान नही है इस तरह के कई सवाल जन अदालत के दौरान माओवादी नेता ने मीडियाकर्मियो से किया सवाल जबाव का यह सिलसिसा लगभग चार घंटे तक चला और उसके बाद अंत में कहा कि जल्द ही आप लोगो के खिलाफ भी अभियान शुरु होने वाला है क्यो कि आपका आचरण गरीब विरोधी होता जा रहा है मरने के लिए तैयार रहे कुछ ही दिनो में इस तरह का फरमान जारी होने वाला है क्यो कि आप सरकार पुलिस और दमन करने वाले अधिकारियो और नेता के जुवान हो गये हैं। गरीबो की बात दिखाने और छापने के लिए आपके पास जगह नही है। अपने प्रबंधको को यह जानकारी दे दे और इस तरह जगंल मे मत आया करिए क्यो कि आप ही लिखते है कि जगंल में माओवादी रहते है और वह उग्रवादी है ।लेकिन वह किस हालात में रहते है उसे लिखने और दिखाने की जरुरत नही है आप जनता का विश्वास खोते जा रहे है जो आपकी पूंजी थी। यह सब चल ही रहा था कि इसी बीच काफी संख्या में सामने से गाँव वाले आते दिखायी दिये जैसे जैसे वे करीब आ रहे थे माओवादी वहां से निकलने लगे जब वे लोग पास आसे तब तक सभी निकल गये।गांव वालो ने मीडियाकर्मियो से पुंछा आपके साथ यह मारपीट किया है गांव वाले काफी गुस्से में थे लेकिन मीडियाकर्मियो ने किसी वारदात से इनकार किया तो वे लोग शांत हुए और कहने लगे मीडिया वाले ही तो मेरा हाल जानने आते है औऱ हमलोग किस हलात में है दुनिया को बतायेगे उसके साथ बदसुलिकी बर्दास्त नही किया जायेगा।गाँव वालो ने सभी मीडियाकर्मियो को पहाड़ से उतारा और उसके बाद सभी को पहले चीनी के साथ पानी पिलाया और उसके बाद भोजन कराकर पहाड़ी के नीचे छोड़ दिया।पूरी घटना के लिखने के पीछे मेरी मंशा यह है कि प्रबंधक कुछ भी शर्ते लागू करे हमारी जो जबावदेही है उससे मुख नही मोड़े नही तो एक बार जनता के नजर से गिर गये तो फिर कोई पुछने वाला नही रहेगा। मेरी पूंजी है जब भी कैमरा या कलम उठाये अंतिम आदमी को सोचकर।

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