बुधवार, मई 27, 2009

आइ0आइटी में बिहार का परचम लहराया

बिहारी छात्रों ने एक बार फिर देश की सर्वोच्च संस्थान आइ आइटी में अपना परचम लहराया हैं।यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से चला आ रहा हैं लेकिन इस बार का परिणाम कुछ खास हैं।पहली बार बङी संख्या में गांव के किसान, मजदूर और अल्पसंख्यक समाज के बच्चे सफल हुए हैं।इसका श्रेय कही न कही बिहार के वरिय आई0पी0एस0 अधिकारी अभयानंद और गणितज्ञ आनंद को जाता हैं ।जिन्होने बिहार के छात्रों में आइ0आइटी0 की परीक्षा में सफल होने का जुनुन पैदा कर दिया हैं।यही कारण हैं कि इस बार भी सुपर थर्टी,रहमानी थर्टी और त्रिवेणी थर्टी ने शतप्रतिशत रिजल्ट दिया हैं।इन संस्थानों का नकल करते हुए जीनियश 40,जैसी कई संस्थानों ने भी बेहतर परिणाम दिया हैं।आकङा पर गौर करे तो बिहार में परीक्षा की तैयारी करने वाले आठ सौ से अधिक छात्र सफल हुए हैं जिनमें से 90 प्रतिशत छात्र बिहार के सरकारी स्कूलों से पढकर यह कामयाबी हासिल की हैं ।और अधिकांश छात्र ग्रामीण परिवेश से जुङे हैं और पढने में औसत से बेहतर इनका रिजल्ट रहा हैं।अंग्रेजी और अंग्रेजिएट से इन सफल छात्रों का दूर दूर तक कोई वास्ता नही हैं।विक्रम राज को ही ले बिहार के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित गांवों में एक गया जिले के चौगाइ का रहने वाला हैं।इसी तरह छपङा के किसान का बेटा जो विजय नरायण(1548)स्थान पाया हैं।ऐसे कई नाम हैं जिनका आर्थिक और सामाजिक हैसियत कमोवेश एक ही जैसा हैं।इस सफलता का श्रेय भी सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दी जा सकती हैं। जिन्होनें स्पीडी ट्रायल का इंजाद कर पूरे बिहार में कानून का राज्य स्थापित करने वाले ए0डी0जी0पी0अभयानंद को जलील कर पुलिस मुख्यालय से बाहर कर दिया। और इनके ड्रीम सुपर थर्टी के सहयोगी आनंद को राजनैतिक महत्व देकर आपस में ही विवाद खङा करा दिया और स्थिति इतनी बिगङ गयी की अभयानंद को सुपर थर्थी को छोङना पङा।लेकिन कुछ ही दिनों बाद अभयानंद अपने आप को संभालते हुए पटना के अलावे पहली बार गया,भागलपुर और नीतीश कुमार के नालंदा में गरीब बच्चों के सहयोग के लिए आइ0 आइटी का कौचिंग संस्थान खोला जहां छात्रों को मुफ्त में पढाई और रहने खाने का प्रबंध किया।इसके लिए स्थानीय लोगो ने अभयानंद को काफी सहयोग किया और आइ0आइटी0 के कई पूर्ववर्ती छात्रों ने पढाने में सहयोग दिया जिसके बल पर इन संस्थानों में पढने वाले 55में 48छात्र सफल हुए।वही इस वर्ष से बिहार के कई और छोटे शहरों में अभयानंद का ड्रीम प्रोजेक्ट शुरु होने वाला हैं।जिसमें छात्रों को मुफ्त में शिक्षा के साथ रहने और खाने की भी व्यवस्था की जा रही हैं।जून में इसके लिए पूरे बिहार में प्रवेश परीक्षा का आयोजित होने वाला हैं।अभयानंद हमेशा कहते हैं बिहार ने मुझे बहुत कुछ दिया हैं जब तक इसके कर्ज को अदा नही कर देगे चैन से सांस नही लेगे।काश देश और विदेश में अपनी प्रतिभा के बल पर परचम लहङाने वाले हजारों बिहारी अभयानंद की तरह सोचते तो आज बिहार के मुख्यमंत्री को केन्द्र से भीख नही मांगनी पङती।

रविवार, मई 24, 2009

ममता,माया और जयललिता का राजनैतिक सफर

भारतीय राजनीत में ममता बनर्जी,मायावती और जयललिता किसी पहचान की मोहताज नही हैं।बिना किसी राजनैतिक क्षत्रंप के सहारे अपने बल पर राजनीत के क्षेत्र में इतिहास रचने वाले इन तीन देवियों ने बङे बङे सुरमाओ को दिन में तारे दिखा चुकी हैं।पिछले दो दशक से भारतीय राजनीत को अपने आस पास केन्द्रीत रखने वाले इन देवियों में इस वार ममता की बारी हैं जिन्होनें अपने बल पर वामपंथियों को उसी के गंढ में पटखनी दी हैं।ऐसे कयास लगाये जा रही हैं कि अगले विधानसभा चुनाव में वामपंथियों के अवैध दुर्ग पश्चिम बंगाल की किला ममता जरुर फतह कर लेगी।लेकिन ऐसा लगता हैं कि इस बार भी ममता उन्ही राजनैतिक गलतियों को फिर से दुहराह रही हैं जिसके कारण काफी लम्बी अवधी तक राजनीत की मुख्य धारा से दरकिनार रहना पङा था।यू कहे तो इन तीनों देवियों का हाल भारतीय हांकी टीम की जैसी हैं बहुत अच्छा खेलती लेकिन जब गोल करने की बारी आती हैं तो अंतिम समय में खुद गोल करने के चक्कर में या तो बोल गोलपोस्ट के उपर से चला जाता हैं या फिर विपक्षी टीम के रक्षंक खिलाङी छिनने में कामयाब हो जाते हैं।कहने का मतलव यह हैं कि जिस सोशल इंनजीनियरिंग के सहारे मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी।लेकिन एक ही वर्ष में उसकी धार कुंद हो गयी और लोकसभा के चुनाव में नुकसान उठाना पङा।राजनीत में व्यक्तिगत विद्वेश्य और अतिवादी कार्य शैली का कोई स्थान नही हैं लेकिन ये तीनों देवी इसके शिकार हैं,।जिसके कारण हर बङी जीत के बाद इन्हे फिर से शून्य से शुरु करनी पङती हैं।मायावती जिस अंदाज में उत्तरप्रदेश की गद्दी सम्भाली थी ऐसे कयास लगाये जाने लगा था कि आने वाले वर्षों में यह देश की प्रधानमंत्री बनेगी लेकिन अपनी गलती से ये भी सीख नही ली और सत्ता सम्भालते ही व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप में अपना समय जया करनी लगी परिणाम सामने हैं।मीडिया से लेकर करुणानिधी की कैम्प भी यह मान रहा था की इस बार तमिलनाडु में जयललिता की ढंका फिर बजेगी लेकिन हुआ इसके ठिक उलट इसके पीछे भी जयललिता की हठधर्मिता आङे आयी और तमिलनाडु के इतिहास के ठिक उलट परिवार वाद के सिंकजे में उलझ चुके करुणानिधि को लोगो ने अपार मतो से जीताया। ममता बन्रजी एक बार फिर काफी तामझाम के साथ सत्ता में आयी लेकिन ऐसा लग रहा हैं कि अपनी पुरानी गलती से सीख नही ली हैं। दिल्ली पहुचंते ही ममता वही पूरानी ममता दिखने लगी जिन्हे सम्भालने में वाजपेयी जी जैसे राजनेता को काफी मस्कत करनी पङी थी।रेल मंत्रालय की जिंद और पश्चिम बंगाल की सरकार को बरर्खास्त करने की मांग एक बार फिर से पूरानी ममता की याद ताजा कर दी हैं।हलाकि यह कहावत बिहार के गांव गांव में प्रचलित हैं लेकिन थोङा अभ्रश हैं लेकिन इन तीनों देवियों पर सटीक बैठती हैं कि कुत्ता को घी नही पचता हैं मतलब सत्ता इन्हे रास नही आती हैं।

शुक्रवार, मई 15, 2009

लोकतंत्र के नाम पर सब कुछ जायज हैं।

भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में 15वी लोकसभा का चुनाव कई मायनों में यादगार रहेगा। आजादी के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव रहा जिसमें किसी भी राजनैतिक दल के पास कोई मुद्दा नही था।जब कि मंहगाई चरम पर हैं लेकिन किसी भी राजनैतिक दल ने इस मुद्दे को लेकर मनमोहन की सरकार को घेरने का प्रयास नही किया।वामपंथी जो चुनाव से पूर्व परमाणु डील के मुद्दे पर सरकार गिराने को आमदा थे चुनाव में इस मुद्दे को लेकर चर्चाये भी नही हुई।मुंबई में बिहारियों के पिटाई के मामले में जद यू के सांसद अपने पद से त्यागपत्र दे दिये थे लेकिन चुनाव में इस मसले को लेकर चर्चाये तक नही हुई।आये दिन लोगो की नौकरी जा रही हैं लेकिन यह किसी भी राजनैतिक दल के लिए कोई मुद्दा नही रहा कहने का यह मतलब हैं कि जनता के सरोकार से जुङे मुद्दे को लेकर कोई भी राजनैतिक दल चुनावी मैदान में नही आये थे ऐसे में मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग नही किया तो कौन सा गुनाह किया।वही इस चुनाव का दूसरा पहलु यह रहा कि चुनावी हिंसा में कही से भी किसी के हताहत होने की खबर नही आयी नक्सलीयों ने तबाही मचाने का प्रयास जरुर किया लेकिन कुछ खास कामयाबी उसे भी नही मिला।कहने का यह तातपर्य हैं कि राजनैतिक दल के गैर लोकतांत्रिक आचरण के बावजूद जनता ने मर्यादित होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया लोकतंत्र के बेहतरी के लिए किया ।लेकिन चुनाव परिणाम के आहट के साथ ही जिस तरीके से दिल्ली के सिंहासन के लिए चौसर में दाव लग रहा हैं भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नही हैं।चुनाव खत्म होते ही राजनेता वह सब कुछ भूल गये जो कुछ चुनाव अभियान के दौरान जनता के सामने वादा किया था।बिहार के मुख्यमंत्री अपने ही गठबंधन के नेता नरेन्द्र मोदी को बिहार आने पर प्रतिबंध लगा दिया था लेकिन चुनाव खत्म होते ही दोनो गले मिल रहे हैं। नीतीश कुमार पर भरोसा करने वाले अल्पसंख्यक मतदाताओं को आज क्या महसूस हो रहा होगा इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं।यही स्थिति कांग्रेस का हैं जिन्होने बिहार की जनता से चुनाव के दौरान लालू को मदद करने को लेकर माफी मांगा था लेकिन चुनाव खत्म होंते ही आज एक दूसरे को गले लगा रहे हैं।लालू प्रसाद से अलग हुए अल्पसंख्यक मतदाता और नीतीश के सामंती कार्यशैली से क्षुब्द मतदाताओ का क्या हाल होगा जो कांग्रेस को खुलकर वोट दिया।भारतीय इतिहास में सत्ता के लिए सबसे बङा संग्राम महाभारत को माना जाता हैं जहां सत्ता पर काबिज रहने के लिए सभी तरह के मर्यादाओं को ताक पर रख दिया गया था।लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां जनता की भागीदारी से सरकार बनती हैं इस दौङ में भी सत्ता के लिए इस तरह का खेल क्या जायज हैं।यह एक यक्ष सवाल हैं क्या यही लोकतंत्र हैं।

रविवार, मई 03, 2009

इतिहास नीतीश को दूसरे औरंगजेब के रुप में याद रखेगा

राजनैतिक विशलेषको और भाजपा जद यू के हल्ला बोल पार्टी और मीडिया के एक बङे तबके की माने तो नीतीश की आंधी पूरे सूबे में चल रही हैं।कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि बिहार में 1977वाली लहर चल रही हैं।परिणाम जो भी हो लेकिन इस बार के चुनाव में बिहार की जनता ने लालू और रामविलास पासवान के राजनैतिक कैरियर पर विराम लगाने का प्रयास अवश्य किया हैं।पिछले कई दशक से जातिये राजनीत के बल पर बिहार की जनता के दिल पर राज करने वाले इन दोनों नेताओं की यह शायद आखिर पारी न साबित हो। कहने का यह मतलब हैं कि बिहार में जातिये समीकरण पर चुनाव लङने की वर्षों पुरानी शैली का अंत होता दिख रहा हैं ऐसे में अब जातिये नारो पर बिहार में राज करना सम्भव होता नही दिख रहा हैं।जो भी हो बिहार वाकई बदल रहा हैं और अपने गौरवशाली इतिहास की और लौटने की प्रवृति बलवति होती दिख रही हैं।चुनाव के जो भी परिणाम हो लेकिन बिहार के लोगो ने नीतीश कुमार के तथाकथित सुशासन और विकास के दावे को भी लोगो ने सिरे ने नकार दिया हैं।1962के बाद बिहार में सबसे कम पोलिंग इसी चुनाव में हुआ है।लोगो ने काग्रेस को हाथों हाथ लिया जहां कांग्रेस का कोई नाम लेवा नही था वही आज सभी वर्गो के जुवान पर कांग्रेस का नाम हैं।लालू और रामविलास के हार का कारण भी कांग्रेस ही बनेगा।हो सकता हैं कि बिहार में कांग्रेस खाता भी नही खोल सके लेकिन एक बङी ताकत के रुप में जरुर उभर कर सामने आयेगा जो नीतीश और लालू राम विलास तीनों के लिए शुभ संकेत नही हैं।नीतीश कुमार फले ही ऐतिहासिक जीत दर्ज करे लेकिन बिहार की शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने के लिए इन्हे याद किया जायेगा।वही बिहार की राजनीत में जिस तरह से इन्होने मौका परस्ति और जातिये राजनीत के आङ में राजनीत का जो धिनौना खेल खेला हैं इतिहास औरंगजेब के बाद इन्हे शिद्दत से याद करेगा।जिस जार्ज ने लालू के अंहकार के खिलाफ बिहार में पार्टी खङी की और लालू प्रसाद को सत्ता से बेदखल किया उनके साथ नीतीश का व्यवहार शायद राजनीत का सबसे घिनौना चेहरा साबित होगा ।हो सकता हैं इस बार मुजफ्फरपुर में जार्ज की जमानत भी नही बचे लेकिन चुनाव अभियान के दौरान बिहार की जनता के सामने एक यक्ष सवाल जरुर खङा कर दिया हैं।क्या राजनीत में मौका परस्ति अनिवार्य हैं।जार्ज और दिग्विजय सिंह के साथ नीतीश कुमार को जो व्यवहार रहा शायद इस चुनाव का सबसे दुखद पहुली माना जायेगा।नीतीश भले ही ऐतिहासिक जीत दर्ज कर भारतीय राजनीत में एक नये क्षंत्रप के रुप में स्थापित हो जाये। लेकिन इनका यह मौका परस्ति इनके राजनैतिक सफर के अंत के लिए मील का पत्थर न कही शाबित हो जाये।