सोमवार, जनवरी 25, 2010

नीतीश कुमार की कार्यशैली पर उठा सवाल


नये वर्ष की शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत हैं काफी लम्बे अर्से बाद ब्लांग पर आपसे मिल रहा हूं।सोचा था नये वर्ष में नये तेवर के साथ आपसे मिलेगे लेकिन पिछले एक माह से जारी कड़ाके की ठंड ने पूरी योजना पर पानी फेर दिया।नही चाहते हुए भी एक बार फिर नीतीश कुमार को लेकर लिखना पड़ रहा हैं इस बार मामला और भी गम्भीर हैं लेकिन आश्चार्य यह हैं कि इस मसले पर विपक्ष के साथ साथ सभी स्तम्भ खामोश हैं।मामला भारतीय संविधान के अनदेखी से जुड़ा हैं।आप सबों से भी राय अपेक्षित हैं बिहार सरकार ने बीपीएससी के अध्यक्ष अशोक कुमार चौधरी को राज्य सूचना आयोग का मुख्य आयुक्त नियुक्त किया हैं संविधान के अनुच्छेद 319के अनुसार संघ लोकसेवा आयोग और राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य या अध्यक्ष को राज्य सरकार द्वारा किसी और पद पर नियुक्त नही किया जा सकता हैं।लेकिन नीतीश कुमार ऐसा किये हैं अशोक कुमार चौधरी वही हैं जो बीपीएससी के अध्यक्ष बनने से पहले बिहार का चीफ सैक्रट्री थे औऱ इन पर अपने बेटी का मेडिकल कांलेज में गलत तरीके से नामंकन करवाने का आरोप हैं इसके आलावा भी इनका सर्विस काल साफ सुथरी नही रही हैं लेकिन जातिये समीकरण और सरकार के इशारे पर काम करने में फिट बैठने के काऱण सरकार इनके लिए संविधान को ताक पर रख दिया हैं क्या यही नीतीश जी का रुल आंफ लां हैं।


नीतीश कुमार के चार वर्षो के कार्यकाल पर गौर करेगे तो इस तरह के गैर संवैधानिक कार्यो के दर्जनों दृष्टान मिल जायेगे।लेकिन सबसे दुखद पहलु यह हैं कि इस तरह के गैर संवैधानिक कार्य पर पूरा तंत्र खामोस हैं मीडिया तो नीतीश के यश गान में लगा हैं और यही हाल बिहार के बुद्धिजीवीओं का हैं और कोर्ट के बारे में टिप्पनी करना तो अवमानना माना जाता हैं लेकिन इनकी शैली भी अदभूत हैं।

लालू फिर से लौट के नही आ जाये इस भय ने पूरा बिहार को नपुसंक बना दिया हैं और नीतीश इसी भय को दिखाकर वह सब कुछ कर रहे हैं जो कभी राजा महराजा किया करते थे।अशोक चौधरी ने भी पद भार ग्रहन करते ही सरकार को खुश करने के लिए वह कदम उठाया हैं जो उनके अधिकार क्षेत्र में हैं ही नही इन्होने सूचना के अधिकार के कानून में बदलाव कर दिया हैं जो देश की संसद ने बनायी थी।