रविवार, मार्च 07, 2010

महिला दिवस पर विशेष आलेख,आधी आबादी की संवेदनहीनता पर शर्म आती हैं--1


आज मैं ऐसे विषय पर अपनी राय व्यक्त कर रहा हूँ जिस पर लोग अक्सर सार्वजनिक रुप से राय व्यक्त करने से परहेज करते हैं।इतिहास का छात्र रहा हूं इसलिए इतिहास के माध्यम से इस विषय पर कुछ लिखना चाह रहा हूं।औरतों के मामले में इतिहास में दो तीन बाते को बड़ी गम्भीरता से लिखी गयी हैं।श्रृग्वेद भारतीय इतिहास की पहली पुस्तक मानी जाती हैं जिसकी रचना ईसा पूर्व 1500आकी गयी हैं।इसकी एक सहायक ग्रंथ हैं शतपथ ब्राह्रमण जिसमें प्रतापी राजा पुरु और परी उर्वशी की कहानी लिखी हैं।जरा आप भी पढ ले।राजा पुरु उस समय के काफी प्रभावशाली राजा थे बाद के दिनों में इन्ही के वशंज भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा ।पृथ्वी के राजा पुरु के कार्यशैली से प्रभावित होकर सभी भगवानों ने सर्वसम्मति से स्वर्ग का राजा भी पुरु को बनाने का फैसला लिया।


शपथ ग्रहण की तारीख तय हो गयी यह खबर जब राजा इन्द्र को लगी तो वे हैरान हो गये, और राजसत्ता हाथ से निकलने की व्यथा में वे बिमार पड़ गये।स्थिति इतनी बिगड़ गयी की वे तीन दिनों तक अपने कक्ष से बाहर ही नही आये। इन्द्र का हाल देखकर उनके सबसे प्रिय परी उर्वशी को इसकी सूचना दी गयी वह भागी भागी इन्द्र के पास पहुंची और सारा बात सूनकर जोर से हस पड़ी बोली महराज आपकी सत्ता हमारे रहते जाने वाली नही हैं।उसने राजा पुरु के लोकेसन को सेटेलाईट से देखी तो उस वक्त राजा पुरु जंगल में शिकार कर रहे थे। उर्वशी इन्द्रलोक से उड़ी और राजा पुरु के सामने प्रकट हो गयी उर्वशी की सुन्दरता देख कर राजा इस तरह मोहित हो गये की उन्हे याद भी नही रहा कि उनका शपथ ग्रहण होना हैं।उर्वशी उनके साथ तबतक रही जब तक की शपथ ग्रहण की अवधी खत्म नही हो गयी ।अवधि खत्म होते ही उर्वशी राजा पुरु को छोड़कर इन्द्रलोक चली गयी वही राजा पुरु उर्वशी के प्यार में इस कदर पागल हो गये कि उन्हे याद भी नही रहा कि वह पृथ्वी लोक का राजा हैं।पागल की तरह जगलों में भटकते बस एक ही राक अलापते रहे उर्वशी कहा हो उवर्शी ।यह सिलसिला वर्षो तक जारी रहा कि एक दिन राजा पुरु तलाब के किनारे बैठ उर्वशी की याद में विलख रहे थे वही तलाब में सात आठ हंस तैर रही थी।तभी एक हंस की नजर राजा पुरु पर पड़ा वह चौक उठी अरे ये तो प्रतापी राजा पुरु हैं क्या हाल बना रखा हैं।हंस के रुप में सभी परी थी उस परी में उर्वशी भी थी



उसने सारी बाते अपनी परी मित्र को सुनायी,कहानी सुनने के बाद परियो ने कहा उर्वशी यह तुमने ठीक नही किया इसे समझाना चाहिए।सभी हंस अपने रुप में प्रकट हुई उवर्शी को देख राजा पुरु का रो रो कर हाल बुरा था ।तभी एक परी ने राजा पुरु को जोर से हिलाया और कहा राजा साहब आप किस गम में खोये है,महिलाओ में दोस्ती जैसी कोई चीज नही पायी जाती हैं क्योकि उसका दिल आधी भेड़िया के समान होता हैं।इस सच को स्वीकार करे और उर्वशी को लेकर इतने इमोशनल होने की जरुरत नही हैं।(फ्रेन्डशिप इज नाट टू वी फाउन्ड इन ए वीमेंन वीकाउज देयर हार्ट इज डाईट आंफ ए जेकाल)

दूसरी बार औरतो को लेकर भगवान गौंतम बुद्ध और उनके शिष्य आनंद और गौतमी के बीच धर्म में महिलाओं को शामिल करने को लेकर हुई वार्ता मे सामने आयी हैं। जब बुद्ध ने कहा कि बौद्ध धर्म में महिलाओ को शामिल किया गया तो यह धर्म पाच सौ वर्ष से ज्यादा नही चलेगा।तीसरी बार तुलसी दास ने नारी को तारन का अधिकारी लिखा ।

हलाकि इतिहास में दर्ज इन पहलुओ से मैं पूरी तौर पर सहमत नही हूं लेकिन 21वी सदी के इस दौड़ में जहां महिला और पुरुषों के बीच समानता की बाते की जा रही हो इस दौर में आधी आबादी के चरित्र को देख कर इतिहास में दर्ज विशलेषण पर सोचने पर मजबूर हो गया हूं ।

जरा आप भी सोचे कल पूरे देश में जहां महिलाओ के ससंद में आरक्षण को लेकर बहस चल रही थी और जिसके लिए यह बहस हो रहा था वे सभी राहुल महाजन के स्वयंवर देखने में मस्त थी ।मैं भौचक हूं जहां खूलेआम महिलाओ के चरित्र की बोली लगायी जा रही थी देश में कही से भी विरोध का कोई स्वर सुनाई नही दिया। कहा गयी वह महिला संगठन जो बात बात में महिलाओ के अधिकार को लेकर झंडा उठाते रहती हैं।वह फैमनिस्ट कहा गयी जो पुरुष और महिलाओं के फर्क करने वालो पर लात जूते बरसाती थी।जिस तरीके से करोड़ो लोगो के सामने महिलाओं के मान और सम्मान को राहुल महाजन अपने जूते से रौदते रहा और इस देश की आधी आबादी देखती रही मुझे लगता हैं कि भगवान बुद्ध की धारना मैं वाकई दम था।कल जो कुछ भी टीवी पर चल रहा था क्या यह 13वर्षीय बच्ची के साथ बीच सड़क पर सामूहिक बलात्कार की घटना से कम थी क्या। लेकिन जिसको आवाज उठानी चाहिए थी वो टीवी सेंट पर घंटो टकटकी लगाये देख रही थी।यह सवाल आपसे औऱ इस देश की आधी आबादी से हैं जिस तरीके से आज महिलाओ की नुमाईस हो रही हैं क्या वाकई महिला इसे अपना विकास मानती हैं।(क्रमश0)

2 टिप्‍पणियां:

Ajay Yadav ने कहा…

संतोष जी, महिला आरक्षण के मुद्दे पर www.kathphodwa.bolgspot.com लिखे लेख पर अपना विचार जरूर दें।

सागर ने कहा…

कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं जहाँ सांप छुछुनदर जैसी हालत हो जाती है... महिला आरक्षण इसी का उदहारण है... आप खुलेआम बुरा नही बोल सकते... समर्थन पर कुछ अन्दर से रोकता है... महिलाएं यह कह सकती है वो शाश्वत नियम भी है की तुम मर्द लोग नहीं चाहते औरत आगे आये, फलाना चिलाना... लेकिन लालू प्रसाद यादव की यह बात सही लगती है की अगर कलावती को सीट मिले तो आरक्षण सफल होगा वरना पर्स लटकती महिलाएं जो पहले ही हुकुम चला रही है और समाज पर हावी हैं.. तो इस तरह वही महिलाएं अपने लिए अब सिंघासन खोज रही हैं... बात भी सच है जो दबे हुए हैं वो आगे नहीं आयेंगे... उलटे मंत्रियों के बहु - बेटी अपने पत्ते खेलेंगे...

मैं वैसे भी थोडा निराशावादी हूँ... जनतंत्र के आड़ में यह खेल से ज्यादा उत्साहित नहीं होता... इससे भारत नहीं बदल जायेगा.