बिहार इन दिनों फिर सुर्खियों में हैं मामला मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हत्या के एक मामले में संज्ञान लेने से जुड़ा हैं।विपक्षी राज्य में संवैधानिक संकट का हवाला देते हुए राज्यपाल से मिल रहे हैं वही नीतीश कुमार की और से पार्टी के अध्यक्ष और राज्य के महाअधिवक्ता मोर्चा संभाले हुए हैं।
नीतीश के मामले में आज तक जो मीडिया का रुख रहा हैं वही रुख इस मामले में भी कायम हैं।प्रिट मीडिया हो या फिर इल्कट्रानिग मीडिया दोनों नेताओं का पंक्ष रखने के साथ खामोस हैं।उनके अनुसंधानक सोच पर ऐसा लगता हैं की वर्फ की बड़ी सीली रख दी गयी हैं। अक्सर किसी भी मामले में अमेरीकी खुफिया ऐंजसी की तरह अनुसंधान करने वाली भारतीय मीडिया इस मामले में पूरी तरह खामोस हैं।
मामले के तह में जायेगे तो ज्ञात होगा कि 1991 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार लालू प्रसाद के पार्टी से बाढ लोक सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव के दिन 16नवम्बर 1991 को बाढ लोकसभा क्षेत्र के मतदान केन्द्र संख्या 168मीडिल स्कूल डीवर पर शाम के तीन बजे बूथ लूटेरों ने मतदान कर रहे ग्रामीण से मतदान केन्द्र से तुरत हट जाने का निर्देश दिया।वोट डालने के लिए लाईन में खड़े लोगो ने इसका विरोध किया जिससे आक्रोशित होकर बूथ लूटरों ने मतदान केन्द्र पर अंधाधुध गोली चलाने लगा जिसमें एक व्यक्ति की घटना स्थल पर ही मौंत हो गयी और एक का अस्पताल में ईलाज के दौरान मौंत हो गयी।इस मामले में मृत्तक के भाई के बयान पर नीतीश कुमार को मुख्यअभियुक्त बनया गया ।लेकिन मामला सत्ता के शीर्ष से जुड़ा हुआ था इसलिए पूरे मामले को ही ठंठे बस्ते में डाल दिया।
17वर्षों तक मामला कोर्ट में लम्बित रहा मुख्यमंत्री के स्पीडी ट्रायल योजना में भी इस मुकदमें की सुनवाई नही हुई।पिछले वर्ष अगस्त माह में इस मामले की फिर सुनवाई शुरु हुई और पुलिस डायरी के आलोक में नीतीश कुमार और कुख्यात डाकू दुलारचंद यादव को छोड़कर अन्य सभी अभियुक्तों पर कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए गिरफ्तारी का आदेश जारी कर दिया।इस मामले के प्रकाश में आने के बाद उसी गांव के एक व्यक्ति ने नीतीश कुमार पर संज्ञान नही लेने के विरुध आवेदन दिया और कोर्ट में गवाही होने के बाद बाढ कोर्ट ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और दुलारचंद यादव पर संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी कर दिया।
मैं मानता हूं कि नीतीश कुमार पर जो आरोप हैं कि खुद नीतीश कुमार राईफल से गोली चला रहे थे पूरी तरह राजनीत से प्रेरित हैं उनका यह चरित्र नही रहा हैं।लेकिन इस मामले के प्रकाश में आने के बाद मुख्यमंत्री के सिपहसलहार की जो भूमिका रही हैं वह वेहद ही आपत्तिजनक हैं।यह सब एक संवैधानिक प्रक्रिया से चुनी गयी सरकार को शोभा नही देती हैं।एक बार फिर आम और खास लोगो के बीच नीतीश कुमार ने रेखा खिचने में अपनी पूरी मशीनरी को लगा दिया जिसका वह खुद विरोध करते रहे हैं।नीतीश कुमार के इसी दोहरे चरित्र से मेरा विरोध हैं जिसको समझने में बिहार की जनता को वक्त लग रहा हैं।मुख्यमंत्री के पार्टी के अध्यक्ष प्रेस कांन्फर्स कर न्यायपालिका के कार्यप्रणाली पर जमकर प्रहार किया और जिस जज ने नीतीश कुमार पर सम्मन जारी किया उसके योग्यता पर ही सवाल खड़ा कर दिया।महाअधिवक्ता ने तो पूरी मर्यादा को ही दाव पर लगा दिया और इनका आचरन कानून के प्रहरी का नही बल्कि जद यू के प्रवक्ता जैसी दिख रही हैं।पूरी न्यायिक प्रक्रिया को इस अंदाज में खारिज कर रहे हैं जैसे कोई कानूनविद नही पार्टी का विधायक बोल रहा हो।उक्त जज के बारे में जिस तरीके से अमर्यादित भाषा का उपयोग महाअधिवक्ता ने किया हैं ।शायद यह कोई आम आदमी किया होता तो आज कोर्ट आफ कन्टेम्ट चलता। यह धमकी देना की जज के खिलाफ पार्टी पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टीस से मिल कर शिकायत करेगी ।
क्या यह न्यायपालिका के कार्य को प्रभावित करने की बात नही हैं मामला मुख्यमंत्री से जुड़ा हैं तो पूरी मशीनरी भीष्मपितामह की तरह चुप्पी साधे हुए हैं इतिहास उन्हे कभी माफ नही करेगी।मैंने इस मसले पर अपने कई मित्रों से बात किया हैं जो न्यायिक सेवा से जुड़ा हैं उनका कहना हैं कि यह तो न्यायलय का रुटीन मामला हैं प्रधानमंत्री के खिलाफ भी तीन चार लोग गवाही दे दे की उन्होनें मेंरी पोकेटमारी कर ली हैं तो कोर्ट संज्ञान ले लेगी और प्रधानमंत्री को कोर्ट में हाजिर होने का सम्मन जारी कर देगी और हाजिर नही होगे को गिरफ्तारी का वांरट जारी कर दिया जायेगा।रोजाना इस तरह के मामले में पूरे देश में हजारों मामले दर्ज होते हैं और लोगो को ऐसी ही गवाही के आधार पर सजा भी मिलती हैं।कोर्ट ने भी न्याय पाने के इस प्रावधान को इसीलिए प्रारम्भ किया कि बड़े लोग और सत्ता के शिखर पर बैठे लोगो के खिलाफ पुलिस की संदिग्ध भूमिका के कारण लोगो को न्याय नही मिल रहा था।जज भी मानते हैं कि इस प्रावधान का दूर उपयोग हो रहा हैं लेकिन आप पुलिस को स्वतंत्र नही करेगे।अंनुसंधान की सभी कड़ियों पर अंकुश लगा कर रखेगे तो फिर लोगो को न्याय कैसे मिलेगा।आज मुख्यमंत्री की बाड़ी आयी हैं तो हाई तौवा मचा हैं,जब कि स्पीडी ट्रायल के नाम पर बिहार के 28हजार लोगो को सजा मिली हैं और जेल के सलाखों के पीछे हैं।इसमें अधिकांश मामले लालू प्रसाद के कार्यकाल के दौरान की हैं जिसमें कानून व्यवस्था के नाम की कोई चीज सूबे में नही रह गया थी लोग अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहे थे जिसमें हजारों ऐसे मामले दर्ज हुए जो पूरी तौर पर राजनीत से प्रेरित थे।वैसे मामले मैं भी लोगो को सजा मिली हैं।
इस मामले के प्रकाश मैं आने के बाद से मुख्यमंत्री मीडिया से लगातार दूर भाग रहे हैं इसलिए कि कही मीडिया वाले यह सवाल न खडा कर दे की आपने भी चुनाव जीतने के लिए बाहुवलियों का कभी सहारा लिया हैं।
2 टिप्पणियां:
कानून अपना काम करेगा कि करेगी?
अब देखिये सभी पूरी तरह से अच्छे होंगे यह सोचना तो बेमानी है, राजनीति में पाक-साफ़ तो कोई नहीं होता... नीतिश जी ने खुद गोलियां नहीं चलायी होंगी, इससे मैं भी सहमत हूँ, पर अब आज अगर कन्नी काट रहे हैं या फिर जज की योग्यता पर सवाल उठा रहे है तो यह एक ठंडा मामला में फिर से लगती आग पर खीझ ही होगी... बिना बाहुबली के इलेक्शन थोड़े ही जीता जा सकता है... वो भी उस दौर में, अभी की बात अलग हो सकती है...
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