गुरुवार, नवंबर 19, 2009

आपातकाल के दौड़ से गुजर रहा हैं बिहार


इतिहास की यह कैसी नियति हैं जिस आपातकाल के खिलाफ बिहार में जेपी के नेतृत्व में छात्र आन्दोलन हुआ और उस आन्दोलन की उपज बिहार के वर्तमान मुख्यमंत्री बिहार में आपातकाल लागू करने पर आमदा हैं।यह पढकर आप सबों को थोड़ा अटपटा जरुर लग रहा होगा लेकिन यह सच हैं।शायद आज जेपी होते तो 1974 से भी बड़े आन्दोलन की घोषणा करते।आपातकाल के समय जो इंदिरा जी नही कर पायी वह आज नीतीश कर रहे हैं और दुख की बात यह हैं कि बिहार जिसे पूरा देश परिवर्तन के आन्दोलन का प्रणेता मानता हैं आज मूक दर्शक बना हुआ हैं।


नीतीश के कार्यशैली को लेकर पहले भी सवाल खड़े होते रहे हैं लेकिन इस बार मामला कही ज्यादा गम्भीर हैं नीतीश कुमार ने भारतीय संविधान के साथ छेड़छाड़ करने का अदम्य साहस दिखाया हैं लेकिन मीडिया से लेकर सारा तंत्र नीतीश के इस दुसाहस पर चुप हैं।मामला सूचना के अधिकार में कटौती से जुड़ा हुआ हैं।बिहार में लोकतंत्र पर नौकरशाही कितनी हावी हैं इसकी लम्बी चौरी फेहरिस्त हैं ।बिहार में सूचना के अधिकार के तहत अधिकार मांगने वाले सैकड़ो ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर प्रशासन ने जुवान बंद करने के लिए झूठे मुकदमें में फसा दिया हैं।कई लोग जेल गये हैं यह सब लोकतंत्रिक तरीके से चुनी गयी सरकार के संरक्षण में चल रहा हैं।मामला जब जोर पकड़ने लगा तो मुख्यमंत्री ने सूचना के अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी को लेकर पदाधिकारी द्वारा दमन की कारवाई करने पर टाल फ्रि नम्बर पर शिकायत दर्ज करने की घोषणा की ।लेकिन जिन अधिकारियों ने मौलिक अधिकार को दमित करने के लिए कानून का दुरउपयोग किया उस पर कोई कारवाई नही की नतीजा सामने हैं मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद भी सूचना मांगने वालों पर दमनात्मक कारवाई जारी हैं।अब तो हद हो गयी राज्य सरकार ने जिस महाश्य को राज्य का मुख्य सूचना आयूक्त बनाया हैं उन्होने तो हद कर दी।पद भार ग्रहण करते ही इन्होने पूरे बिहार के लोक सूचना अधिकारी को केन्द्रीय कार्मिक विभाग का एक पत्र भेजा जिस पर किसी भी अधिकारी का हस्ताक्षर नही हैं।पत्र में सूचना के अधिकार को परिभाषित किया गया हैं जिसमें लोक सूचना अधिकारी को यह अधिकार हैं कि जो सूचना आप को गैर जरुरी लगे उसे देने के लिए आप बाध्य नही हैं।इसी तरह की कई और बाते इस पत्र में लिखा हुआ हैं।पत्र मिलते ही लोकसूचना अधिकारी की बांझे खिल गयी और सूचना मांगने वाले का फर्म ही लेने से यह कहते हुए इनकार करने लगा कि यह सूचना देने लायक नही हैं।ऐसा पत्र जिस पर किसी ओथिरिटी का हस्ताक्षर नही हो और वह पत्र राज्य सूचना के मुख्य आयुक्त के कार्यालय से निर्गत होता हैं तो आप समझ सकते हैं कि सरकार की मंशा क्या हैं।इस पर बहस शुरु ही हुआ था कि नीतीश सरकार मंगलवार को मंत्रीमंडल की बैंठक में यह फैंसला लेते हैं कि अब एक आवेदन में एक ही सूचना मांगी जा सकती हैं और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले बीपीएल सूची के लोगों को भी सूचना पाने के लिए दस रुपये देने होगे।जब कि पहले इन्हे मुफ्त में सूचना दी जाती थी।लोगो को यह समझ में नही आ रहा हैं कि जो कानून देश की संसद ने बनायी जिस पर ऱाष्ट्रपति का मोहर लगा और मामला संवैधानिक अधिकार से जुड़ा हैं ऐसे मामले में राज्य सरकार के मंत्रीमंडल को संशोधन करने का अधिकार हैं क्या।संविधानविदों का मानना हैं कि नीतीश सरकार का यह कदम गैर संवैधानिक हैं।आखिरकार जनता द्वारा चूनी गयी सरकार क्यों जनता के अधिकार की कटौंती के लिए संविधान के प्रावाधान के विपरीत कार्य कर रही हैं ।यह सवाल आप सबों से हैं।सोचिए नीतीश कुमार जिस जनता की ताकत पर दंभ भर रहे हैं उसी जनता के साथ यह खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं।

3 टिप्‍पणियां:

सागर ने कहा…

सूचना का अधिकार यह एक ऐसा मुद्दा है जिसपर घंटों बहेस किया जा सकता है... अगर ऐसा है तो बात वाकई गंभीर है... वैसे इस अधिकार का हनन और दुरूपयोग ज्यादा देख रहा हूँ...

सागर ने कहा…

हाँ... आपसे पहले भी कहा है रेगुलर रहिये... इसे अन्यथा मत lijiyega... mujhe intzaar rehta hai

Jharkhand RTI Forum ने कहा…

आनलाइन हस्ताक्षर करके विरोध जतायें

बिहार में सूचना मांगने वालों को प्रताड़ित करने की काफी शिकायतें आ रही हैं। अब बिहार सरकार ने सूचना पाने के नियमों में अवैध संशोधन करके एक आवेदन पर महज एक सूचना देने का नियम बनाया है। अब गरीबी रेखा के नीचे के लोगों को सिर्फ दस पेज की सूचना निशुल्क मिलेगी, इससे अधिक पेज के लिए राशि जमा करनी होगी। ऐसे नियम पूरे देश के किसी राज्य में नहीं हैं। ऐसे नियम सूचना कानून विरोधी हैं। इससे सूचना मांगने वाले नागरिक हताश होंगे। इससे नौकरशाही की मनमानी बढ़ेगी। इस तरह बिहार सरकार ने सूचना कानून के खिलाफ गहरी साजिश की है। अगर सूचना पाने के नियमों में संशोधन हुआ तो नागरिकों को सूचना पाने के इस महत्वपूर्ण अधिकार से वंचित होना पड़ेगा। एक समय बिहार को आंदोलन का प्रतीक माना जाता था। आज सूचना कानून के मामले में बिहार पूरे देश में सबसे लाचार और बेबस राज्य नजर आ रहा है। वहां सुशासन की बात करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दुशासन की भूमिका निभाते हुए कुशासन को बढ़ाना देने के लिए सूचना कानून को कमजोर किया है।
इसलिए आनलाइन पिटिशन पर हस्ताक्षर करके अपना विरोध अवश्य दर्ज करायें। इसके लिए यहां क्लिक करें- -
http://www.PetitionOnline.com/rtibihar/petition.html


-विष्णु राजगढ़िया
सचिव, झारखंड आरटीआइ फोरम

संशोधन के संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए लिंक
http://mohallalive.com/2009/11/19/nitish-government-changed-right-to-information-act/

http://thehoot.org/web/home/story.php?storyid=4227&mod=1&pg=1&sectionId=2&valid=true