मंगलवार, नवंबर 17, 2009

अब देश हुआ बेगाना


मुंबई मराठी का,गुजरात गुजराती का,बंगाल बंगाली का,तमिल तमिलों का, बिहार बिहारियों का, तो फिर इस देश के किसान कहा का जिसका कोई अपना प्रदेश नही हैं और ना ही कोई नेता हैं जो अलग से किसानिस्तान की मांग करे।सवाल मौजू हैं देश की अस्सी फिस्दी अबादी किसान हैं लेकिन इसकी सुनता कौंन हैं।मौंसम ने दगा क्या दे दिया आर्थिक महाशक्ति होने का दावा करने वाली भारतीय अर्थ व्यवस्था की हवा निकल गयी हैं।फिर भी इसकी बात सूनने वाला कोई नही हैं क्यों कि यह हमेशा अपने को पहले भारतीय कहता हैं फिर बिहारी,पंजाबी और मराठी।राज ठाकरे को मराठी मानुष से बेहद प्यार हैं सचिन ने क्या कह दिया की बुढा ठाकरे भी हुकांर मारने लगे लेकिन उसी महाराष्ट्र में जहां रोजना किसान आत्म हत्या कर रहा हैं उससे न तो ठाकरे परिवार को वास्ता हैं और ना ही भारतीयता का हुंकार मारने वाली मीडिया का।


पिछले एक सप्ताह से बिहार में आयोजनों की धूम मची हैं पुस्तक मेला,रोड कांग्रेस का ऱाष्ट्र सम्मेलन, राष्ट्रीय बिजनेस मीट,सहकारिता सम्मेलन और आज नंदन निलेकणि साहब बिहार आ रहे हैं।सारा मशीनरी और मीडिया के लिए जैसे उत्सव का माहौल हैं। मुख्यमंत्री बिहार बदल रहा हैं यह सूनने के लिए सारा कुछ दाव पर लगाने को तैयार हैं।मीडिया को बस बिहार बदल रहा हैं कही से भी ये बाते सामने आनी चाहिए बस मुख्यपृष्ठ के लिए खबर मिल गयी।लेकिन इन सब के बीच पूरे बिहार में खाद और बीज को लेकर किसानों का आन्दोलन चल रहा हैं जिसे दमाने के लिए नीतीश कुमार पूरी ताकत लगाये हुए हैं और नीतीश के दमन को यहां के नेता और मीडिया दमाने में लगा हैं।यू कहे तो मीडिया और नेता के लिए किसान कोई मुद्दा नही हैं क्यों कि यह कभी नही कह सकता कि मुझे अलग देश किसानिस्तान चाहिए।पिछले एक पखवाड़े में खाद और बीज के लिए आन्दोलन कर रहे किसानों पर लाठिया चली हैं और आज भी कई इलाकों में चक्का जाम आन्दोलन चल रहा हैं।खाद के लिए आन्दोलन कर रहे दर्जनों किसान आज भी बेतिया जेल में बंद हैं कसूर सिर्फ इतना ही हैं कि ये सब गांव से जिला मुख्यालय खाद लेने पहुंच गये थे।पुलिस ने पहले तो जमकर लाठी चलाई और जब इससे भी बात नही बनी तो आंशू गैंस के गोले बरसाये लेकिन सरकार इससे परेशान नही हैं।सरकार ने पूरे सूबे में कृषि यात्रा निकाली थी यात्रा जिस इलाके से गुजरा लोगो ने जबरदस्त विरोध किया ।मुजफ्फरपुर में कृषि मंत्री को बिना भाषण दिये भागना पड़ा और बेगूसराय में कृषि मंत्री को जान बचा कर भागना पड़ा।

सरकार के पास जबाव नही हैं कि अगर किसान को बीज और खाद नही मिल रहा हैं तो इससे लिए जबावदेह कौन हैं इस मसले पर न तो मुख्यमंत्री कुछ बोलने को तैयार नही और ना ही मुख्यमंत्री की पंसदीदा मंत्री रेणू देवी जिनकी योग्यता यही हैं कि इनकी पहुंच नीतीश के अंतहपुरी तक हैं।ऐसा नही हैं कि खाद और बीज मिल नही रहा हैं जितने चाहिए उतना उपलब्ध हैं लेकिन किमत दो गुनी आदा करनी होगी।

डीएपी जिसकी किमत 486रुपया हैं सात सौं में व्यापारी घर पर पहुंचाने को तैयार हैं।यही स्थिति पोटाश,यूरिया और मकई,गेंहू,मशाले के बीज का हैं पैंसे दिजिए और जितनी चाहिए उपलब्ध हैं।इस मामले में जब में खुद खाद दुकानदार से बात किया तो कहा कि सौं रुपया प्रति बोरा तो खाद लेने के समय ही डीएम के प्रतिनिधि ले लेते हैं और रेलवे के गोदाम से लाने में दस से पाच रुपये प्रति बोरा खर्च परता हैं।आपको 640रुपया प्रति बोरा जितान खाद कहेगे पहुचवा देगे।दुकानदार ऐसे बात कर रहा था कि जैसे मुझ पर ऐहसान कर रहा हो।मैंने समस्तीपुर डीएम को फोन किया और कहा कि आप के जिला में क्या हो रहा हैं डीएम ने जब रोसड़ा एडीओ को मामले की जांच का आदेश के साथ कारवाई करने को कहा तो पूरी मशीनरी दुकानदार को बचाने में लग गया ।कहने का मतलव यह हैं कि सरकार जब किसान को बीज औऱ खाद तक उपलब्ध कराने में असफल हैं तो फिर इस सरकार का मतलव क्या हैं।फिर यह कहे तो भारतीय होने का क्या मतलब हैं।

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