रविवार, सितंबर 26, 2010

काँमनवेल्थ गेम को लेकर मीडिया की नकारात्मक भूमिका-

मेरी जानकारी में काँमनवेल्थ गेम में वही देश भाग लेते है जो कभी ब्रिटेन के राजसत्ता के अधीन रहा है।लेकिन अभी समय इस पर बहस करने कि नही हैं,बहस तो मीडिया की भूमिका पर होनी चाहिए जिन्होने इतने बड़े आयोजन को आलोचनाओ के भंवर में इस कदर उलझा दिया है कि आज देश के साथ साथ भारतीय नागरिक भी शर्मशार है।माना की आयोजन में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है,लेकिन मीडिया ने जिस तरीके से उस धांधली को उजागर करने के नाम पर इनभेसटिगेटिंग स्टोरी करना शुरु किया उसकी जितनी भी निंदा की जाये कम है। लगता है भारतीय मीडिया अभी भी गुलामी की मानसिकता से उपर नही उठ पायी है।जो चरित्र दिख रहा है उससे बेहतर चरित्र तो वेश्या की होती है मुझे कहने में थोड़ी सी भी शर्म महसूस नही हो रहा है कि हमारी स्थिति एक वेश्या से भी गयी गुजरी है उसका भी इमान होता है औऱ कई बार सामने भी आया है।

लेकिन हम पत्रकारो ने उसको भी बेच डाला है पता नही कल प्रबंधको के जी हजूरी में अपने घर के बहु बेटियो तक को दाव पर न लगा दे।क्या घोटाले के अलावा कुछ और खबर काँमनवेल्थ गेम से जुड़ा नही है।कल किसी अखबार में पाकिस्तान के हांकी टीम के पूर्व कप्तान का बयान पढने को मिला कही कोने में उनको जगह मिली थी उसने बड़ी बेवाकी के कहा कि आस्ट्रेलिया जो आज भाषण दे रहा है अपना कांमनवेल्थ गेम भूल गया क्या भारतीय और पाकिस्तान की टीम को कांलेज के हांस्टल में ठहराया गया था जहां गंदगी की कौन कहे क्या क्या नही बिखरे हुए थे पूरे कांलेज कैम्पस में एक एक रुम में चार चार खेलाड़ियो की रहने की व्यवस्था की गयी थी,इसलिए आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैन्ड को तो इस तरह की बात नही करनी चाहिए।

पाकिस्तानी खेलाड़ी ये कोई नयी जानकारी नही दे रहे इसी तरह का प्रबंध होता रहा है लेकिन उस देश की मीडिया कभी इस तरह की फौड़ी हरकत नही करता है इनता बड़ा आयोजन है कमी रहेगी लेकिन हमलोग हौसला अफजाई करने के बजाय नीचा दिखाने में लगे हैं, यब सब इसलिए हो रहा है कि देश का नेतृत्व आज ऐसे कापुरुष के पास है जिसका अपना स्वाभिमान कभी कभी जागता है और सोनिया गांधी देश की बहु बनने को लेकर जो दिखावा कर ले लेकिन देश के प्रति वह जजवा कैसे पैंदा हो सकता है जो इंदिरा औऱ राजीव,और बाजपेयी के साथ था।मीडिया के नकारात्मक और गैर जिम्मेदराना भूमिका के काँमनवेल्थ जैसे गेम के आयोजन का जो लाभ भारत को मिलता उससे वंचित करने का काम किया है देश इन मीडियाकर्मियो को कभी माफ नही करेगा।मैने ने चैनल देखना ही बंद कर दिया है और अगर यही हालत रही तो लोग एक बार फिर से दूरदर्शन समाचार देखने लगेगे।

5 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बिलकुल सही कहा ....इंदिरा जी वाला जज़्बा नहीं आ सकता ..फिर भी यह खेल बहुत अच्छे से होंगे यही उम्मीद है ...

रूप ने कहा…

शानदार पोस्ट है, साधुवाद, कभी यहाँ भी पधारें. roop62 .blogspot .com

AVshek.... ने कहा…

धन्येबाद आप को ! सच में आप ने तो हमारे दिल की बात प्रश्तुत कर दी |

आज एक बार फिर से इंडियन मिडिया ने साबित कर दिया की हम पाँव किचने में सच में बहुत आगे है इस में कोई हमारे बराबरी नहीं कर सकता है |
अब तो शर्म करो आप ने आप को देश के सुब चिन्तक बताने वाले मीडिया कर्मी !

varsha singh ने कहा…

आपका ये लेख पढ़ कर आप को धन्यवाद कहने का मन हो रहा है.पिछले कुछ दिनों से मै सोंच रही थी कैसे सारे न्यूज़ चैनल वालो को कहू की ये सब बंद करो.सिर्फ ब्रेअकिंग न्यूज़ पहले से पहले दिखाने के चक्कर मे अपनी ही फजीहत कर रहे है.मै एक आम जनता हु जो शायद सारी बाते डिटेल मे नहीं जानती पर एक छोटी सी बात जो मेरे लिए बहुत बड़ी है और सारे हिन्दुस्तानी के लिए भी कि देश की इज्ज़त से बड़ा कुछ नहीं.आज तक कभी हमें ये नहीं पता चला कि हमारे खिलाडी जब किसी और देश मै जाते है तो वहां क्या खातिर होती है न ही हमारे ये न्यूज़ चैनल ये बताने की जहमत उठाते है पर अपने देश के बारे मै बुरा बोलना सिर्फ इसलिए ताकि उनके चैनल का नाम हो,इससे ज्यादा घटिया बात और कोई नहीं हो सकती शायद.यदि मीडिया को इतनी ही फिक्र थी तो वह ६ साल से कहा थे और क्यों नहीं उन्होंने ये सब समय रहते किया.दुर्भाग्यवश आज मीडिया इस हसियत मे आ गयी है की वोह किसी को भी सही या गलत कारण से कटघरे मै खड़ा कर सकती है.तो ये काम वोह पहले करते तो शायद आज ये हालत न होती,आज पूरी दुनिया को ये बता कर की हमने अपना काम सही से नहीं किया मीडिया क्या बताना चाहती है? बहुत से देश जो खेल गाँव के बारे मै बोल रहे है वोह शायद १० साल मै भी इस लायक नहीं हो पाएंगे की उनके देश मे सी डब्लू जी करवा सके.कितने पैसे खर्च हुए या कितना नुकसान हुआ ये हम गेम होने के बाद भी बात कर सकते है पर पूरी दुनिया के सामने बता कर मीडिया सिर्फ अपनी छोटी सोंच और मौकापरस्ती का उदाहरन दे रही है.आपके इस ब्लॉग पे ये सब लिख कर मै सिर्फ अपनी छोटी सी कोशिश करना चाहती हु की मीडिया का कोई सेकसन इस बारे मै भी सोंचे की जिनको वोह ये सब ब्रेअकिंग न्यूज़ दिखा रहे है वोह क्या कहना या सुनना चाहती है.मीडिया अपनी जिमेदारी समझे,जब मुंबई पे आतंकबादी हमले हुए तब इनके ब्रेअकिंग न्यूज़ के चक्कर मे आतंकबादियों को ही मदद मिली, पर ये बात करते मीडिया कभी नज़र नहीं आते.मीडिया सिर्फ दूसरों की कोशिशों पे ही नज़र रखती है,उन्हें अपने किय का मंथन करना चाहिए.आज सिर्फ ये सोंचने और अपनी तरफ से मदद करने का समय है ताकि इस देश की इज्ज़त और बढे न की अपने लोगो की खिचाई कर के dusaro को बोलने का mauka dene का.अभी लड़ने का नहीं काम करने का टाइम है यदि मीडिया कुह अच्छे कर सकती है सी डब्लू जी के लिए तो करे, दूर से खरे हो कर गलतिय न दिखाए.हम ये देखने के लिए न्यूज़ चैनल नहीं देखते है.

सागर ने कहा…

कई बातों से सहमति और कुछ के साथ असहमति के साथ यह कहना चाहुगा कि विदेशी मीडिया खास कर विकसित देशों की मीडिया अपने रुतबे को लेकर हमेशा से घृणित पत्रकारिता करती रही है. यह मैंने पत्रकारिता में भी पढ़ा था और अभी गेम्स के दौरान इस चीज़ को देख भी लिया गया.... हमारी मीडिया भी गयी गुजरी है जो वो हाईप करते हैं हम भी उसी के पीछे पड़ जाते हैं... अपनी मानसिकता और धैर्य बेच कर...

पत्रकारिता सचमुच थर्ड क्लास हो गया हो गया है लेकिन पब्लिक भी यही थर्ड क्लास देख कर इनका मन बढ़ा रही है.