रविवार, फ़रवरी 01, 2009

जो खबङे सुर्खियां न बन सकी

पिछले दो माह से जारी राजनैतिक और आर्थिक उथल पुथल के बीच एक ऐसी खबङ भी आयी जो सकून देने वाली थी।लेकिन मीडिया को इस खबङ में न तो गलैमर दिख रहा था और ना ही रोमांश लेकिन प्रिंट मीडिया जो आज भी अपने को आम भारतीय का हमदर्द होने का दंभ भरती हैं उनके कलम की सियाही क्यों सुख गयी।चलिये उस ऐतिहासिक खबङ की औऱ चलते हैं जिसके बाङे में देश के जाने माने कानूनविद और पुलिस पदाधिकारियों का कहना हैं कि दरोगा राज का अंत हो गया जिसके बल पर अंग्रेजी हुकूमत की मानसिकता आज भी जीवित थी।शीतकालीन सत्र में केन्द्र सरकार ने भारतीय दंड संघिता की धारा 41 में संशोधन से सम्बन्धित एक विधेयक पेश किया था जिसमें सात साल से कम सजा वाले धाराओं में पुलिस किसी भी व्यक्ति को कोर्ट के आदेश के बगैर गिरफ्तार नही कर सकती हैं।इस विधेयक पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर हुए एक माह से अधिक हो गया हैं।इस संशोधन का वकीलों द्वारा विरोध करने की खबङे आयी हैं लेकिन इस पर विस्तृत चर्चाये न तो किसी चैनल पर दिखने को मिला और ना ही किसी अखबार ने इस खबङ को कोई तब्जों दिया।सच कहे तो मैं भी इस खबङ को हलके में ही ले रहा था लेकिन जिस दिन इस विधेयक पर राष्ट्रपति महोदिया का दस्तख्त हुआ उसी रात लगभग 12 बजे मेरे एक आई0पी0एस0 मित्र का फोन आया आज देश की जनता को असली आजादी मिली हैं।मैं समझा नही सका क्यों कि आधे घंटे पहले ही सभी खबङिया चैनल देख कर सोने आया था।मुझे लगा चंद मिनटों में ऐसी कौन सी बाते हो गयी।मैंने कहा पहेली मत समझाओं बताओं आखिर हुआ क्या हैं बङी भावूक होकर उसने कहा संतोष चाह कर भी दरोगा के गुडागर्दी को रोक नही पा रहे थे उसको इतना पावर था कि किसी को भी किसी भी मामले में पुछताछ करने के बहाने या फिर आलाधिकारियों,नेताओं को खुश करने के लिए गिरफ्तार कर जेल भेज देता हैं।देश में जितने भी मामले दर्ज होती हैं उसमें महज पांच से सात प्रतिशत मामले में ही सजा हो पाती हैं।और रोजाना देश में हजारों निर्दोश लोगों को संदेह के आधार पर जेल भेजी जा रही हैं।पुलिस आरुषि के पिता की खोई हुई प्रतिष्ठा ळौटा सकती हैं।ऐसे हजारो आरुषि के पिता भाई,और रिश्तेदार हैं जो पुलिस के जुल्म के शिकार आये दिन हो रहे हैं।और रही सही कसर मीडिया वाले पूरी कर देते हैं।मेरा कानून कहता हैं कि सौ गुनाह गार छुट जाये लेकिन एक निर्दोश को सजा नही मिलनी चाहिए।आप अपने आस पङोस में देखे तो निर्दोश जेल के सलाखों में खुट खुट कर मर रहा हैं और अपराधी छुट्टा धुम रहा हैं।ऐसे में सरकार के इस पहल को और प्रचारित करने की जरुरत हैं और इस पर पूरे देश में सार्थक बहस होनी चाहिए क्यों कि एक बङा तवका इस कानून के गजट प्रकाशन पर रोक लगाने को लेकर लोबी बाजी कर रहा हैं।

1 टिप्पणी:

संगीता पुरी ने कहा…

अच्‍छी जानकारी दी है आपने.....मीडिया आज गंभीर खबरें लोगों तक कहां पहंचा रहे है....अब यह आप हम का ही कर्तब्‍य हो गया है....