रविवार, अक्तूबर 11, 2009

जहां मुर्दे की भी बोली लगायी जाती हैं


नीतीश जी आपके सुशासन का एक चेहरा देश के सामने लाने जा रहा हूं पढने के बाद आप खुद तय करेगे की लोग आप को दोबारा किस बिनाह पर चुने ।यह सवाल उनके लिए भी हैं जो बिहार में बदलाव की बात सोच रहे हैं और डंके के चोट पर बोल भी रहे हैं। कभी पटना मेडिकल कांलेज देश ही नही दुनिया में ख्याति प्राप्त था आज भी अमेरिका और इंग्लैंड के बड़े मेडिकल कांलेज में यहां से पढे डांक्टर मिल जायेगे।वाकिया दो तीन दिनों पूर्व का ही हैं मेरा आंफ था आराम से घर पर मस्ती कर रहे थे और नानभेज बनने का इंतजार कर रहा था जैसे ही कुकर खुला डाईनानिंग टेबल पर बैठ गया जमकर खाया एक तो डियूटी पर नही जाने का सकुन था दूसरा प्रिय भोजन खाये जा रहा था इस बीच कई बार मोबाईल की घंटी बची लेकिन खाने की मस्ती में घंटी की आवाज मानो कान तक पहुंच ही नही रही थी।खाना खत्म करने के बाद जैसे ही विस्तर पर आराम करने पहुंचा फिर मोबाईल की घंटी बची।मोबाईल की और देखा तो जाना पहचाना नम्बर नही था फिर भी मोबाईल उठाया टुनटुन(मेरे घर का नाम हैं)संजय मामा बोल रहे हैं आवाज पहचानी लग रही थी लेकिन समझ नही पा रहा था कि ये हैं कौन लेकिन संबोधन से समझ गया कि कोई करीबी रिस्तेदार ही होगे मैं हालचाल पुछने लगा इसी बीच इन्होने बोला दतुआर वाले मेहमान जी का ऐक्सीडेन्ट हो गया हैं सुनते ही मेरा होस उड़ गया मैने पुछा आप हैं कहा उन्होने बोला रात में ही पीएमसीएच आये हैं लेकिन कोई डांक्टर ठिक से देख नही रहा हैं कोई प्रायवेट में बेहतर डांक्टर हो तो बताओं।मैं हक्का बक्का था क्यो कि जिस शक्स के बिमार होने की बात की जा रही थी वो हमारे जीजी जी लगते थे और वे हमें गोद में खिलाये हुए थे ।मैं आनन फानन में तैयार हुआ और निकलने से पहले स्वास्थय मंत्री के पीए और पीएमसीएच के एक डाक्टर मित्र को फोन किया संयोग से डाक्टर पीएमसीएच मैं ही मौजूद थे ।जब तक मैं अस्पताल पहुचता मरीज को देखने के लिए डांक्टरों की लाईन लग गयी।भागे भागे मैं जब पीएमसीएच के आईसीयू रुम मैं पहुचा तो देखते हैं डांक्टरों की एक पूरी टीम लगी हुई हैं मेरे मित्र डांक्टर मुझे दिलासा दिला रहे हैं कोई घबड़ाने की बात नही हैं सब कुछ ठिक हो जायेगा।मरीज का हाल देख कर मैं इतना भावुक हो गया कि अंदर पाच मिनट भी नही रुक सका बाहर आकर सीसे से देखने लगा ।इसी बीच एक डांक्टर पहुचता है और 403नम्बर बेड के मरीज के बारे में आईसीयू के इनचार्ज से पुछताछ करने लगता हैं कब भर्ती हुआ क्या क्या ट्रिटमेंट हुआ हैं। सर कल रात को दस बजे हैं भर्ती हुआ हैं डां कस्यप देखे हैं ब्रेन हेमरेज लग रहा हैं पूरी फाईल दिखायों फाईल देखते ही डाक्टर गुस्से में आ गया कल रात में ही मेडिसीन के डांक्टर को देखने का कांल लिखा हुआ हैं अभी तक कोई देखा नही हैं सिस्टर आप लोग क्या रवैये अपनाये हुए हैं तुरंत डांक्टर मनीश पर कांल करो इस मरीज के बारे में स्वास्थय मंत्री पुछताछ कर रहे हैं।यह सब चुपचाप मैं देख रहा था इसी बीच डांक्टर की नजर आईसीयू के अंदर पड़ती हैं सिस्टर अंदर में कौन कौन डांक्टर हैं सर सभी 403 बेड के मरीज को ही देख रहे हैं।तेजी से वे भी अंदर चले गये थोड़ी देर बाद पोर्टेबल एक्सरे मशीन और अल्ट्रा साउड मशीन अंदर जाता हैं और फिर जांच शुरु होती हैं। मैं बाहर खड़ा होकर बेवस सब कुछ देख रहा था थोड़ी देर बाद अंदर से सभी डांक्टर बाहर आये और फिर शुरु हुआ लाईन आंफ ट्रिटमेंन्ट पर बहस। आधे घंटे में पाच हजार से अधिक की दवाये मरीज को लगा दी गयी ।इसी बीच पिछे से किसी के बुलाने की आवाज आयी पलट कर देखा तो सामने मेरी बहन खड़ी थी हलाकि दस वर्ष बाद आमना सामना हो रहा था लेकिन एक बार में ही पहचान गया। मैं अपने आपको संभाल नही पा रहा था लेकिन बहन बात बदलते हुए बोली इसे पहचानते हो गौर से पहचानने का प्रयास किया लेकिन चेहरा समझ में नही आ रहा था अरे यह बेबी हैं वही बेबी जिसके साथ बचपन में खेलते थे।25वर्ष बाद वह सामने थी एक प्रोढ महिला की तरह जिसके बारे में जब भी मैं ननिहाल जाता था जो बहन से भेंट होने पर पुछता था। मिल कर काफी खुशी हुई लेकिन वक्त ऐसा था कि खुशी व्यक्त नही हो पा रहा था।आंखो आंखो में ही एक दूसरे को अपने बचपन की यादे को ताजा करते हुए कुछ कहना चाह रहे थे तभी सिस्टर बाहर निकलती हैं संतोष जी कौन हैं नीचे के रुम में डांक्टर साहब बुला रहे हैं।भागते हुए नीचे गया अस्पताल के कई आला डाक्टर मौंजूद थे मैं अपने मित्र के सामने चुपचाप बैंठ गया तभी एक भारी भडकम आवाज में आयी जो बेहतर ट्रिटमेंन्ट होगा वह सभी किया जायेगा उपर वाले की इक्छा हुई तो ये सकुशल घर जायेगे।मैं अंदर ही अंदर काप रहा था शायद कल रात से ही ट्रिटमेंट होता तो आज यह स्थिति नही होती खैर चुपचाप डाक्टर की बात सुनता रहा।आधे घंटे तक उस रुम में बैठा रहा स्थिति देख कर आत्मा कचोट रही थी पेसेंट का परिवार दौड़ रहा हैं डांक्टर आक्सीजन का पाईस निकल गया हैं डांक्टर साहब मेरा पेसेंट तीन घंटे से दर्द से चिहार रहा हैं कोई देखने वाला नही हैं,डांक्टर साहब देखिये दिखिये मेरे पेसेंट का हालत अचानक बिगड़ गया हैं। सामने बैंठे जुनियर डांक्टर की और देखते हुए जाओं देख लो सीनियर डांक्टर इसी तरह से फरमान जारी करते रहे हर पांच मिनट पर तेज रोने की आवाज आती रहती थी।एक डांक्टर उठा कहा चलो यार यहां पर लोग शांति से बैठने भी नही देगा।यह सब मैं चुप चाप देख रहा था और सोच रहा था यही डांक्टर हैं जिसे लोग भगवान मानते हैं।सभी के सभी सीनियर डांक्टर उठ कर चल दिये। संतोष जी आप भी चलिए यहां पर बैठना मुश्किल हैं शांति से हमलोग बात भी नही कर सकते हैं।तभी एक जुनीयर डांक्टर तेजी से अंदर आता हैं सर उस पेसेंट का बीपी बहुत तेजी से फांल कर रहा हैं समझ में नही आ रहा हैं अरे यार फलाना दवा दे दो जब तक मरीज के परिजन दवा लेकर आता तब तक पेसेंट की मौंत हो गयी यह सब जाते जाते देख रहा था ।मेने अपने मित्र डांक्टर को बुला कर कहा आप लोगो की संवेदना मर चुकी हैं आप कहां रहेगे मैं उपर मरीज को देख कर आ रहा हूं उपर जब मरीज के पास गया तो लगा चमत्कार हो गया सांसे जो इतनी तेज चल रही थी लगभग समान्य हो गया था और चेहरे का रंग बदलने लगा था बीपी,पल्स रेंट और हार्टवीट पूरी तरह समान्य हो गया था बाहर निकल कर फिर डां0 को फोन किया बोले में तुरंत आ रहा हू परिवर्तन देख कर डां0 साहब भी थोड़े आसानवित हुए और बोले आज रात बच गये तो हम लोग रिकभर कर लेगे सही माईने में कहे तो अभी इनका इलाज शुरु हुआ ही हैं।लेकिन ईश्वर को कुछ और ही मनजुर था जैसे ही मैं घर लौटा फोन आया एक्सपाईर कर गये।भागे भागे अस्पताल पहुंचा रात के 11 बज रहे थे होने लगा कैसे भेजा जाये गांड़ी वाले से बातचीत होने लगी मधुवनी जाने के लिए पांच हजार रुपये से कम कोई भाड़ा नही बता रहा था।तब तक मैं भी अपने को संभाल लिया था।पीएमसीएच पीरवहोर थाने मैं पड़ता हैं याद आया अड़े यहां का थानेदार पूर्व से परिचित हैं रात के बारह बजे उनके मोबाईल पर फोन किया घंटी बजते ही बोल उठे संतोष जी इतनी रात गये क्या बात हैं सारी बात बताया कहां पाच मिनट के अंदर तिवारी जी आपके पास पहुंचे रहे हैं आप वही रहे। पाच मिनट में ही थाने की मोबाईल गाड़ी आ गयी आवाज लगाते ही आपातकालीन सेवा के सामने लगाये हुए गाड़ी में से एक व्यक्ति भागे भागे तिवारी जी के पास पहुचा तिवारी जी कड़क कर बोले ऐ साहब के मित्र हैं तुरत गाड़ी दो सर तेल भरवा दिजियेगा मैं चुपचाप यह सब सुन रहा था मैंने पुछा तिवारी जी यह लुटेरो की बस्ती हैं क्या तिवारी जी बड़ी बेवाकी से कहां सर पीएमसीएच यमराज का घर हैं यहा डाक्टर से लेकर स्वीपर तक लुटेरा हैं।तभी पता चला कि लाश का पोस्टमार्टम होगा क्यों कि मामला ऐक्सीडेन्ट से जुड़ा हैं।इलाज के हड़वड़ी में मैं पुछ भी नही सका था कि कैसे घटना घटी।यह सब बाते हो रही थी कि थाना अध्यक्ष भी पहुंच गये ।वे खुद डांक्टर से बात किये और उसी समय यादव जी को फोन लगाये यादव जी सुबह सुबह आ जाईएगा पहला पोस्टमार्टन इनका होना चाहिए।उसके बाद विचार हुआ जो साथ महिलाये और बच्चा आया हैं उसके भेज दिया जाये क्यों कि पोस्टमार्टम होते होते बाहर बज ही जायेगा।बोलोरो जैसी गाड़ी से इन लोगो को भेजने का फैसला लिया गया बात होते होते सुबह के पांच बज गये थे।पीएमसीएच के सामने वाले टेक्सी ऐसटेन्ड से बात की गयी तो चार हजार से कम में कोई गाड़ी वाला जाने को तैयार नही थी हार कर पटना जग्शन के जीआरपी प्रभारी को फोन किया तुरंत एक गांड़ी 2000हजार रुपये के किराये पर भेज दिया।इन गाड़ी से सभी महिला को भेजवा कर हम भी फ्रेस होने घर आ गये।थोड़ी देर बाद अस्ताल से फोन आता हैं लाश को आईसीयू से निकाल कर मुर्दा घर में रखने के लिए एक हजार रुपया मांग रहा हैं।मैं हैरान रह गया ये क्या बात हुई तब मैंने पीएमसीएच बीट देखने वाले एक रिपोर्टर को फोन किया उसको सारी बाते बतलायी उसने वहां के कर्मचारी नेता का मोबाईल नम्बर दिया और कहा हम बात कर लते हैं।थोडी देर बाद फोन किया नेता का जवाव आता हैं सर यह पहचान नही रहा था लाश को पोस्टमार्ट के लिए भेज रहे हैं।थोडी देर बाद मैं भी अस्पताल पहुंच गया पता चला ये लोग सौ रुपया दे दिये हैं।तभी एक व्यक्ति आया और कहां सर पोस्टमार्टम वाले को आप खुद कह देगे बहुत पैंसा मांगता हैं।तय समय के अनुसार पुलिस अधिकारी बयान लेने आ गये तुरंत बयान की प्रक्रिया पूरी हो गयी मैंने जानने के उद्देश्य से कर्मचारी संघ के नेता से पुछा यह पुलिस वाला कितना लेता हैं सर जी यहां पोस्टींग करवाने के लिए एसएसपी के यहां बोली लगती हैं जैसा मामला होता हैं वैसा उसका रेट होता हैं.।खैर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचा नेता से पुछा अब क्या करना हैं उसने कहा चलिए सर अंदर आप ही बात कर ले जैसे ही अंदर गया टेबुल पर कई लाश रखी हुई थी और एक व्यक्ति बड़ा चाकू से लाश का पेट फार रहा था।कहा अईलोहन(आये) नेता जी ऐ सुनों ये पत्रकार साहब हैं पहचाने छिए बोलहो काम क्या हैं।नेता जी सारी बात बतला दिया।कहा आज वैसे ही धन्धा मंदा हैं अभी तक रोज 15से बीस लाश आ जाता था लेकिन आज तो पांच पर भी आफत हैं इसी बीच डांक्टर भी आ गये मैंने अपना पिरचय दिया और आग्रह किया कि लाश को दुर जाना हैं इसलिए थोड़ा कम चीर फार करगे।खैर पोस्टमार्टम हो गया लाश ले जाने की बारी आयी तो मौल भाव होने लगा मैं इससे अपने आप को साफ अलग रखा वह बार बार कह रहा था पत्रकार साहब वाला बात हैं इसलिए दो हजार मांग रहे हैं नही तो चार पाच हजार से कम नही लेते ।ज्यदा मोलभाव करियेगा तो लाश को बिना टांका लगाये दे देगे मैं चुपचाप बाहर यह सब सुनता रहा तभी एक पुलिस अधिकारी आ गया संतोष जी कोई बड़ी घटना घटी हैं क्या नही नही मजरा समझते ही वह धिकारी अंदर गया और कड़क कर कहा लाश को बढिया से टांका लगाकर पैंक करो अचानक सभी लोग चुप हो गये थोड़ी देर बाद देखते हैं लाश को बाहर निकाला जा रहा हैं बाद में मैंने पुछा तो पता चला कि पांच सौ रुपया दे दिये हैं।ये सारी बाते कहने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ यह दिखलाना हैं कि भ्रष्टाचार किस तरीके के कहा कहा जड़ जमाये हुए हैं ।ऐसे हलात में एक ईमानदार आदमी की ईमानदारी बच पायेगी जहां इलाज कराने से लेकर लाश ले जाने तक की किमत तय हैं।यह हालात हैं सूबे की राजधानी पटना में स्थित पीएमसीएच अस्पताल का जिस पर मुख्यमंत्री से लेकर सूबे के तमाम आलाधिकारी की नजर रहती हैं।अब आप ही बताये इस सुशासन का क्या मतलव हैं।





9 टिप्‍पणियां:

Sachi ने कहा…

यह बात सिर्फ बिहार की ही नहीं है, पूरे देश की हैं, फिर बिहार को ही गाली क्यों?

संतोष कुमार सिंह ने कहा…

पूरे देश का यही हाल हैं तो फिर इस देश का क्या मतलव हैं आजादी के साठ वर्ष बाद भी अगर सरकार समान्य सुविधा भी आम लोगो को मुहैया नही पायी हैं तो फिर इस लोकतंत्र का क्या मतलव हैं।ऐसे में देश में नक्सल आन्दोलन तेज हो रहा हैं तो सरकार किस विनाह पर रोकने की बात कर रही हैं।

सागर ने कहा…

२ दिनों से यह पोस्ट पेंडिंग था...

आप पत्रकार है और बिहार में पत्रकारों की थोडी-बहुत इज्ज़त देख कर आया हूँ... इसलिए तरीके से इलाज़ भी हो रहा था... स्पस्ट कर दूँ... वो एक मरीज़ नहीं था वो आपका रिश्तेदार था और स्वास्थ्य मंत्री के फ़ोन से खासम- खास बन गया था...

वरना यह नसीब सबका नहीं होता, मैं देख कर नहीं आया, माँ बताती है और रूह काँप जाता है... कारण यह नहीं है की नीतिश का शासन है, दुर्गति तो सभी टाइम रहा....

गरीब जनता तो यही कहती है...

"सराबी सिलसिले अच्छे लगेंगे..
यूँ ही से वास्ते अच्छे लगेंगे

हमारे पास न दौलत है न शोहरत
हम उन्हें किसलिए अच्छे लगेंगे..."

संतोष कुमार सिंह ने कहा…

सागर भाई बिहार में पत्रकारों की क्या विसात हैं यह लेख का विषय नही हैं हम यह दिखाना चाह रहे हैं कि व्यवस्था क्या हैं ।इस व्यवस्था में आम आदमी कहा हैं लोगो को सरकार से क्या चाहिए आजादी के साठ वर्ष बाद अगर हम बेहतर व्यवस्था भी मुहैया नही करा पा रहे हैं तो फिर इस आजादी का क्या मतलव हैं।लालू प्रसाद को बिहार के आम लोगो ने गद्दी से हटाया था हटाने वालों में यादव,मुसलमान सभी की भूमिका रही जिस तरिके से समाजिक न्याय के बुनियाद पर लालू 15वर्ष राज्य किया उस बुनियाद को गांव के गरीब गुरबा ने भ्रष्टाचार,बिगड़ते कानून व्यवस्था और बेहतर परिवेश उपलब्ध नही करा पाने के कारण हटा दिया ।लालू के गद्दी से हटना भारतीय राजनीत का सबसे बड़ा मेरेक्लस कह सकते हैं क्यों कि जिस तरीके से राजनीत में जातपात छल प्रपंच चलता हैं उसमें लालू के जोड़े का इस देश में कोई राजनीतिज्ञ नही हैं।बिहार की जनता ने इस मिथ्या को तोड़ते हुए लालू को गद्दी से बेदखल कर दिया लेकिन नीतीश गद्दी सम्भालते ही।शहर के लोगो को विकास का शब्दवाग दिखा कर ग्रामीण समाज को पिछड़ा अति पिछड़ा और दलित महादलित में बांट दिया।आज पूरे बिहार में फिर से वर्ग संर्घष छिड़ गया हैं भ्रष्टाचार चरम पर हैं ऐसे मैं बिहार की जनता करे तो क्या करे।मीडिया को नीतीश की सरकार ने इस तरह से नकेल कस दी हैं कि सच के सामने आना तो दूर बड़ी से बड़ी घटना अखवार और मीडिया की सुर्खिया नही बन पाती हैं,।

सागर ने कहा…

जितनी बातें आपने कही वोही मैंने भी कहा है... फर्क इतना था की वहां रुतबे वाले को ही तवज्जू मिलती है... यह भी अन्याय का एक हिस्सा ही है... अगर समानता होती तो पी एम् सी एच. इतना बुरा नहीं होता और न आपको यह पोस्ट लिखने जरुरत होती...

Mukesh hissariya ने कहा…

जय माता दी,
भैया आपकी सारी बातें सही हैं .हो सकता है की मेरी बात का आपको बुरा भी लगे बावजूद इसके मैं आपको जवाब दे रहा हूँ की पूरा तालाब ही गन्दा था क्या वो रातो रत साफ हो जाएगा क्या?अरे सर, हमें सरकार को प्रोत्साहित करना चाहेया .हो सकता है की आप कहें की अपने पर अति है तो पता चलता है वाजिब भी है.लेकिन मैं तो PMCH के बगल में पिछले दस सालों से बैठा हूँ महीने में दस चक्कर लग जाता है मुझे बहुत परिवर्तन नजर आ रहा है .
हमें ये नही भूलना चाहेया की चुनाव से पहले बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने के नीतिश जी की पहल का स्वागत करने वाली कांग्रेस गवर्मेंट आज तक बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा पूरा नही कर रही हैं हमे लगता है की राजनीती के चक्कर में बिहार का बंटाधार हो रहा है.हमें मिल बैठकर एक मुहीम सुरु करनी चाहेया.
भैया ,बुरा मत मानयेगा .

संतोष कुमार सिंह ने कहा…

मुकेश जी अच्धा लगा आप हमारे ब्लांग आये और पूरी बेवाकी से अपनी बात लिखा कोई शिकवा या शिकायत आप से नही हैं।मेरी शुभकामनाये आपके साथ है नीतीश जी देश के प्रधानमंत्री बने फिर भी आप से मेरी कोई शिकायत नही रहेगी आप ही मालिक हैं वोट जिन्हें देगे देश और राज्य का प्रतिनिधुत्व करेगा।लेकिन मैं देश के नागरिक के साथ साथ एक पत्रकार भी हूं इसलिए समाज के सामने आज हो भी हो रहा हैं उसे समाने रखना मेरा धर्म और कर्म दोनो हैं।निर्णय थोपना मेरा काम नही हैं लेकिन स्थिति जो हैं उसे सामने लना मेरी मजबूरी भी हैं।तय आपको करना हैं ।क्यों कि समाज के वैसे लोग जो आम लोगो के हक पर कब्जा जमाये हुए हैं या यू कहे हमारी गाढी कमाई पर जो राज्य कर हैं वैसे लोग तो चाहते ही हैं कि मेरे जैसे पत्रकार की जुवान को जैसे भी हो बंद रखा जाये। आज बिहार में कमोंवेश यही हो रहा हैं।अगर इसको दूसरे तरीके से कहे तो बिहार के एक नम्बर वन चैनल में काम करने वाले पत्रकार को सत्ता के अंहकार पर आवाज उठाने की जरुरत कहा हैं सिर्फ खबड़ दिखाना या लिखना बंद कर दू तो बहुत सेवा शुल्क मिल सकता हैं।1998से पत्रकारिता से जुड़ा हू मैं भी मानता हूं जिस तरीके से समाज अयोग्य और भ्रष्टाचारियों का पुजारी हो गया हैं वहा मेरी विसात ही क्या हैं लेकिन मेरी जमीर अभी मरी नही हैं लेकिन एक बदलाव आना शुरु हो गया हैं संवेदनाये धीरे धीरे शून्य की और जाने लगा हैं ।ईश्वर से कामना करता हूं कि मेरी संवेदनाये जल्द से जल्द शून्य हो जाये तो शायद आपको नीतीश को और इस दुनिया को बेहतर तरीके से समझ पायेगे।जब तक संवेदनाये बची हैं जंग जारी रहेगा।

Mukesh hissariya ने कहा…

जय माता दी,
हमने आपको कहा की आप बुरा ना माने लेकिन आपने संवेदनाये शून्य होने की कामना भगवान से की है क्या ये सही है?शायद आपको पता नही है की १९८७ से १९९१ तक मैंने चार साल तक करीब हजारों लेख फ्रीलांस पत्रकार के रूप में प्रिंट मीडिया के लिए लिखा है.समय को यही मंजूर था आज हमारें ज़माने के पत्रकार Delhi तक पहुँच गये है मैंने भी जितनी मंजिल तये की थी उससे बहुत आगे आ चूका हूँ.रही बात ज़ंग से जूझने की तो मैं आपको विस्वास दिलाता हूँ २४ घन्टे मैं इस ज़ंग में आपका साझीदार बनने की लिए तैयार हूँ.एक बात हमेशा ध्यान रखें की हम जैसे लोग आदमी कमाने में बिस्वास रखतें हैं आदमी खोने में नही यही फर्क आपमे,हममें और सत्तासीन लोगों में हैं.
भैया ,आपके लेख का जवाब हमेशां देने की कोशिस करूँगा बिना ये जाने की आपका रिमार्क्स कैसा होगा.धन्यवाद .

Mukesh hissariya ने कहा…

जय माता दी,
http://prasunbajpai.itzmyblog.com/ पुण्य प्रसून बाजपेयी जी का १५ ओक्ट का लेख भी पढें